"द पर्सुइट आफ हैप्पीनेस" जीवट को सलाम करती है 'खुशी' / राकेश मित्तल

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"द पर्सुइट आफ हैप्पीनेस" जीवट को सलाम करती है 'खुशी'
प्रकाशन तिथि : 05 जनवरी 2013


अमेरिकी अरबपति क्रिस गार्डनर के जीवन पर बनी यह फिल्म विपरीत परिस्थितियों में इंसान के जीवट एवं इच्छाशक्ति की विजय गाथा है। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो जीवन में सफलता और खुशी की तलाश में है। वह एक निर्मम और प्रतिस्पर्धी दुनिया में अपना बेहतर भविष्य बनाने की कोशिश कर रहा है ताकि अपने बच्चे की अच्छी परवरिश कर सके। जीवन की कठिन जद्दोजहद में पत्नी उसका साथ छोड़ देती है। किराए के लिए पैसे नहीं होने के कारण उसे घर से बेघर होना पड़ता है। मगर वह हिम्मत नहीं हारता और तमाम मुश्किलों, बाधाओं, विषमताओं के रहते हुए भी अपना संघर्ष जारी रखता है तथा एक दिन मनचाही खुशी पाकर रहता है।

वर्ष 1981 में ‘पोर्टेबल बोन डेंसिटी स्कैनर’ नामक मशीन की मांग को देखते हुए सैन फ्रांसिस्को निवासी क्रिस गार्डनर अपने जीवन की सारी जमा पूंजी बेचकर ढेर सारी मशीनें खरीद लेता है, जिन्हें वह डोर-टू-डोर मार्केटिंग के तहत शहर के डॉक्टरों को बेचने की योजना बनाता है। तमाम कोशिशों के बावजूद मशीनों की बिक्री उसकी आशा के अनुरूप नहीं हो पाती। धीरे-धीरे उसका निवेश एक सफेद हाथी सिद्ध होने लगता है।

मशीनों में पैसा फंसा होने और समुचित आय न होने से घर की माली हालत बिगड़ने लगती है और पत्नी के डबल शिफ्ट में काम करने के बावजूद घर खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है। दांपत्य जीवन में बढ़ते तनाव के चलते एक दिन पत्नी उसे छोड़कर चली जाती है। अपने छः वर्षीय बेटे को वह बहुत प्यार करता है और उसे किसी भी कीमत पर अपने साथ रखना चाहता है। दिन-ब-दिन नई-नई मुश्किलें आने और पैसों की आवक न होने से एक दिन वह अपने बेटे के साथ फुटपाथ पर जीवन बिताने पर मजबूर हो जाता है।

मशीनें बेचने के दौरान उसकी मुलाकात जे ट्विसल नामक व्यक्ति से होती है, जो एक इंवेस्टमेंट कंपनी का डायरेक्टर है। क्रिस का आत्मविश्वास और दृढ़ता ‘जे’ को बहुत प्रभावित करती है। ‘जे’ के माध्यम से क्रिस को उसकी कंपनी में बिना तनख्वाह के छः माह के लिए स्टॉक ब्रोकर इंटर्न के रूप में कार्य करने का अवसर मिलता है। क्रिस के लिए यह एकदम नया विषय है लेकिन वह हमेशा से इसकी ओर आकृष्ट रहा है। चुने हुए बीस प्रशिक्षुओं में से सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले प्रशिक्षु को ‘जे’ की कंपनी में आकर्षक नौकरी दिए जाने का प्रस्ताव है।

क्रिस इस चुनौती को स्वीकार करता है। वह लाईब्रेरी से किताबें लाकर रात में विषय का अध्ययन करता है, दिन में प्रशिक्षण के तहत कंपनी में अवैतनिक रूप से आठ से दस घंटे काम करता है तथा बचे समय में मशीनें बेचकर गुजारा चलाने की कोशिश करता है। उसके पास रहने को घर नहीं है, किताबों के लिए पैसा नहीं है, छः साल के बच्चे की परवरिश भी करना है, उसे स्कूल भेजना है और रोज कम से कम एक मशीन बेचना है ताकि जिंदगी की गाड़ी चल सके। प्रतिदिन लगभग 20 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद वह आखिर में कामयाब होता है और एक दिन अमेरिका के सबसे अमीर व्यक्तियों में उसका नाम शुमार होता है। दिसंबर 2006 में प्रदर्शित इस फिल्म को विश्व के अनेक समारोहों में पुरस्कृत एवं नामांकित किया गया। क्रिस गार्डनर की आत्मकथा मई 2006 में प्रकाशित हुई थी और मात्र छः माह में निर्देशक गेब्रियल मुत्चीनो ने उसे एक बेहतरीन फिल्म का स्वरूप दे दिया। क्रिस स्वयं फिल्म के सह-निर्माता भी हैं।

क्रिस गार्डनर की भूमिका में हॉलीवुड की एक्शन फिल्मों के सुपरस्टार विल स्मिथ ने कमाल किया है। उनका जीवंत अभिनय देखकर अनेक बार आंखें नम हो जाती हैं। विल के छः वर्षीय बेटे जेडन स्मिथ (फिल्म जगत में पहला कदम) ने क्रिस गार्डनर के बेटे की भूमिका निभाई है और पूत के पांव पालने में दिख रहे हैं। पिता-पुत्र ने अपनी अदाकारी से इस फिल्म को अविस्मरणीय बना दिया है। इस फिल्म के लिए विल स्मिथ को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के ऑस्कर एवं गोल्डन ग्लोब पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था।

फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छी कमाई की और अपनी लागत से लगभग छः गुना व्यवसाय किया। यह फिल्म इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि मनुष्य की इच्छाशक्ति, मनोबल एवं सकारात्मक सोच उसे जीवन में अपने लक्ष्य तक पहुंचा ही देते हैं।