"द रूल्स ऑफ द गेम" अभिजात्य समाज की आचार संहिता / राकेश मित्तल

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"द रूल्स ऑफ द गेम" अभिजात्य समाज की आचार संहिता
प्रकाशन तिथि : 18 जनवरी 2014


विश्व के महानतम फिल्मकारों में फ्रांस के ज्यां रैनां का नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है। फ्रांस के विख्यात चित्रकार अगस्टे रैनां के इस महान प्रतिभाशाली पुत्र को उत्कृष्ट फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक एवं अभिनेता के रूप में जाना जाता है। यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही वे फ्रांसीसी सेना में भर्ती हो गए और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कई बार घायल हुए। युद्ध समाप्ति के पश्चात वे चार्ली चैपलिन से प्रभावित होकर फिल्म निर्माण के क्षेत्र में आ गए। रैनां को फिल्मों में नए-नए प्रयोग करने का नशा था। फिल्म विधा के कलात्मक एवं तकनीकी दोनों पहलुओं पर उनकी समान रूप से पकड़ थी। अपने लंबे फिल्मी करियर में उन्होंने लगभग चालीस फिल्मों का निर्माण/निर्देशन किया। वर्ष 1939 में प्रदर्शित उनकी फिल्म 'द रूल्स ऑफ द गेम" को सिनेमा इतिहास की सर्वोत्कृष्ट कृति माना जाता है। विश्व की टॉप टेन फिल्मों की सूची में इसे हमेशा शामिल किया गया है। हालांकि व्यवसायिक रूप से यह उनकी सबसे फ्लॉप फिल्म रही।

यह फिल्म द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्ववर्ती वर्षों में फ्रांस के उच्चवर्गीय समाज की मानसिकता एवं जीवन शैली पर करारा व्यंग्य है। फिल्म के प्रदर्शित होते ही इसका घोर विरोध होने लगा। वितरकों ने 113 मिनिट की फिल्म को काट-छांटकर 80 मिनिट का बना दिया लेकिन फिर भी इसका विरोध्ा जारी रहा। अनेक सिनेमाघरों में दर्शकों ने उग्र प्रदर्शन किए। अंतत: फ्रांसीसी सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। फिल्म प्रदर्शन के कुछ सप्ताह बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हो गया था। 1940 की शुरूआत में कुछ समय के लिए प्रतिबंध उठा लिया गया किंतु मई 1940 में जर्मनी की नाजी सेना द्वारा फ्रांस पर कब्जे के बाद इसे पुन: प्रतिबंधित कर दिया गया। बमबारी में फिल्म के मूल निगेटिव्स जलकर नष्ट हो गए और फिल्म के जबर्दस्त विरोध के चलते ज्यां रैनां को योरप छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। इसके बाद उन्होंने अमेरिका की नागरिकता ले ली और हॉलीवुड को अपनी कर्मस्थली बना लिया।

युद्ध खत्म होने के कई वर्षों बाद 1959 में इस फिल्म का पुनरुद्धार कर इसे मूल स्वरूप एवं लंबाई के साथ पुन: प्रदर्शित किया गया, जिसे देखकर दुनिया भर के फिल्म समीक्षक, फिल्मकार एवं दर्शक दंग रह गए। फिल्म की कलात्मक शैली, अनूठी परिकल्पना, शानदार अभिनय एवं बेहतरीन निर्देशन के चलते इसकी गणना विश्व की महानतम फिल्मों में की जाने लगी।

यह फिल्म उन्नीसवीं शताब्दी के मशहूर व्यंग्य नाटक 'कॉमेडी ऑफ मैनर्स" पर आधारित है। आंद्रे (रोलैंड टोंटा) एक प्रसिद्ध एवं जुझारू फ्रेंच पायलट है, जिसने अकेले अटलांटिक महासागर की लंबी उड़ान भरकर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली है। वह क्रिस्टीन (नोरा ग्रेगर) नामक महिला से प्रेम करता है, जो एक रईस, कुलीन यहूदी उद्योगपति रॉबर्ट (मार्सेल डेलिओ) की पत्नी है। रॉबर्ट की अपनी रखैल जेनेविव (मिला पारेली) है, जिसके साथ वह सप्ताहांत में अपने जंगल स्थित विशाल फार्महाउस पर समय बिताता है। ऑक्टेव (ज्यां रैनां) क्रिस्टीन का बचपन का मित्र है और आंद्रे तथा रॉबर्ट का भी अच्छा दोस्त है। रॉबर्ट अपने फार्म हाउस पर एक वीकेंड पार्टी आयोजित करता है, जिसमें वह ऑक्टेव, आंद्रे, क्रिस्टीन एवं जेनेविव सहित अन्य अभिजात्य मित्रों को आमंत्रित करता है। उस पार्टी में रॉबर्ट की मित्र मंडली के अलावा ढेर सारे नौकर शामिल हैं, जो फार्म हाउस के रखरखाव, भोजन एवं शिकार व्यवस्था के लिए रखे गए हैं। पार्टी में सभी को मौज-मस्ती तथा परिंदों एवं खरगोशों के शिकार की खुली छूट है। उच्च वर्ग में व्यभिचार न केवल सामान्य बात है, बल्कि एक अपेक्षित हुनर भी है। यहां अनैतिकता अपराध नहीं है लेकिन उसे छुपा न पाना शिष्टाचार का उल्लंघन है। इस खेल के अपने अलिखित नियम हैं, जिन्हें कथित भद्र लोग बेहतर तरीके से जानते हैं। रैनां के इन पात्रों में कोई नायक या खलनायक नहीं है। सभी मानव सुलभ कमजोरियों से युक्त सामान्य मनुष्य हैं। अनेक उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए अंतत: सप्ताहांत एक बुरे अनुभव में तब्दील हो जाता है।

रैनां की कसी हुई पटकथा एवं अद्भुत सिनेमेटोग्राफी इस फिल्म की जान है। फिल्म में एक साथ अनेक घटनाएं घटित हो रही हैं और निर्देशक का कैमरा बड़ी कुशलता से पात्रों, मंच की प्रस्तुतियों, नेपथ्य की गतिविधियों, कमरों, गलियारों और बागीचों में तत्परता से घूमता है। ऐसा लगता है कि हम कई आंखों से कई दृश्य एक साथ देख रहे हैं और सभी कलाकार एक साथ पूरे समय अभिनय कर रहे हैं। डीप फोकस तकनीक का प्रयोग करते हुए रैनां ने एक ही समय में अग्रिम, मध्य और नेपथ्य की हलचल पर फोकस किया है। यहां तक कि फेड-आउट होकर अदृश्य होते पात्र अगले क्षण अग्रिम केंद्र में दिखाई देने लगते हैं। निरंतरता बनाए रखने के लिए अध्ािकांश दृश्य लगातार एवं लांग शॉट्स में फिल्माए गए हैं।

इस फिल्म को हर दृष्टि से एक परिपूर्ण फिल्म माना जाता है। सिनेमा माध्यम की समझ विकसित करने के लिए इसे अवश्य देखा जाना चाहिए।