"नाइट्स ऑफ कैबीरिया" दर्द की लहरों पर उम्मीद की कश्ती / राकेश मित्तल

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"नाइट्स ऑफ कैबीरिया" दर्द की लहरों पर उम्मीद की कश्ती
प्रकाशन तिथि : 12 अक्टूबर 2013


इटली के विश्वविख्यात फिल्मकार फेडरिको फेलिनी सिनेमा की दुनिया में युग प्रवर्तक के रूप में देखे जाते हैं। पिछली शताब्दि के उत्तरार्द्ध में जिन फिल्मकारों ने विश्व सिनेमा को अभिनव आयाम प्रदान किए, उनमें फेलिनी प्रमुख हैं। लेखक, निर्देशक और निर्माता के रूप में फेलिनी ने असाधारण फिल्मों की रचना की है। वर्ष 1957 में प्रदर्शित ‘नाइट्स ऑफ कैबीरिया’ उनकी बेहतरीन फिल्मों में से एक है, जिसे ‘बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म’ का ऑस्कर प्राप्त हुआ था।

फेलिनी का शुरूआती जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में गुजरा। बचपन में ही वे घर छोड़कर भाग गए थे। जीवन यापन के लिए उन्होंने सर्कस में भी काम किया। इसके अलावा उन्होंने पत्रिकाओं में कार्टून बनाए, नाटकों की मंच सज्जा की और फिर धीरे-धीरे संवाद लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाई। इन अनुभवों के चलते उन्हें दुनिया को बहुत करीब से देखने का मौका मिला, जो उनकी फिल्मों में भी परिलक्षित होता है। फेलिनी दुनिया के एकमात्र निर्देशक हैं, जिनकी चार फिल्मों को ‘बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म’ का ऑस्कर मिला है।

‘नाइट्स ऑफ कैबीरिया’ एक वेश्या के जीवन की मर्मस्पर्शी दास्तान है। कैबीरिया की भूमिका में विख्यात इतालवी अभिनेत्री ओर फेलिनी की पत्नी गलीटा मसीना ने कमाल किया है। उन्हें अपने हृदयस्पर्शी अभिनय के लिए कान फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाजा गया था।

फिल्म की शुरूआत में हम देखते हैं कि कैबीरिया अपने प्रेमी के साथ नदी किनारे घूम रही है। उसके हावभाव से लग रहा है कि वह बेहद खुश है। उसके हाथों में पैसों से भरा पर्स है, जिसे झुलाती हुई वह अपने प्रेमी के साथ अठखेलियां कर रही है। तभी अचानक प्रेमी उसका पर्स छीनकर उसे नदी में धक्का दे देता है। कैबीरिया को तैरना नहीं आता और वह नदी की विशाल जलराशि में मृत्यु से संघर्ष करने लगती है। आसपास के बच्चे और रहवासी उसे किसी तरह डूबने से बचा लेते हैं। इस धोखे से बुरी तरह आहत वह किसी तरह स्वयं को संभालती है और पुनः अपनी पुरानी जिंदगी की ओर लौटती है।

बाकी की फिल्म कैबीरिया की सच्चे प्रेम की तलाश में भटकने की कहानी है। वह कदम-कदम पर छली जाती है पर किसी तरह अपनी जिजीविषा और जिंदगी के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को बचाए रखने में कामयाब रहती है। जीवन के कड़वे अनुभवों ने उसे शुष्क और मुंहफट बना दिया है लेकिन मन के भीतर किसी कोने में वह प्यार की प्यास संजोए है। स्वभावतः वह गुस्सैल और लड़ाकू दिखाई देती है पर भीतर से बेहद कोमल और संवेदनशील है। सच्चे प्यार की उसकी तलाश ऑस्कर (फ्रांसवा पेरियर) नामक युवक पर खत्म होती प्रतीत होती है, जो उसके भोलेपन पर फिदा है और पूरी शिद्दत से अपने प्यार का इजहार करने लगता है। अपने पूर्व अनुभवों के चलते कैबीरिया शुरूआत में उस पर विश्वास नहीं करती पर धीरे-धीरे उस पर न्यौछावर हो जाती है और उसका शादी का प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है। वह अपना सब कुछ बेचकर नकदी में परिवर्तन कर लेती है और ऑस्कर के साथ कहीं दूर जाकर घर बसाना चाहती है किंतु अंततः यहां भी उसे निराशा हाथ लगती है।

फेलिनी शब्दों और संगीत के जादूगर थे। उन्होंने किसी भी फिल्म की शूटिंग के दौरान संवादों को रेकॉर्ड नहीं किया, बल्कि उस समय सेट पर वे सिर्फ संगीत का सहारा लेते थे। सारे संवाद वे फिल्म पूरी करने के बाद डब करते थे। चूंकि लेखन और निर्देशन दोनों की जवाबदारियां उन्हीं के कंधों पर रहती थी, इसलिए बाद में इत्मीनान से शब्द पिरोना उन्हें अधिक भाता था। इसी कारण उनकी फिल्मों के संवाद दृश्यों के परिप्रेक्ष्य में ज्यादा प्रभावी रूप से उभरकर आते थे। यह फिल्म उनकी इस शैली का बेहतरीन उदाहरण है।

फिल्म के कई दृश्य कमाल के हैं। खास तौर पर कैबीरिया का सुपरस्टार से मिलने का सीन लाजवाब है। सुपरस्टार (अमेडो नाजारी) के साथ नाइट क्लब में जाने तथा उसके आलीशान घर में दाखिल होने से लेकर बाहर निकलने तक कैबीरिया की निम्नवर्गीय मानसिकता और हीन भावना को गलीटा बहुत स्वाभाविक और विश्वसनीय तरीके से अभिव्यक्त करती हैं। इसी तरह एक जादूगर (सम्मोहक) के साथ स्टेज पर दिए गए दृश्यों में भी उन्होंने अद्भुत अदाकारी की है। फिल्म का अंतिम दृश्य बेहद खूबसूरत है। अपने जीवन से निराश कैबीरिया आंखों में आंसू लिए सूनी सड़क पर जा रही है। तभी युवाओं का एक समूह नाचता-गाता-बजाता उसके पास से गुजरता है। कैबीरिया को दुःखी देख वे उसके आसपास घेरा बनाते हुए नाचने-गाने लगते हैं और गीली बांखों के बीच बरबस ही उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है। एक बार फिर वह जीवन का मुकाबला करने के लिए उम्मीद का दामन थाम लेती है।

जीवन के अंतिम दिनों में इस असाधारण फिल्मकार को उनके अद्वितीय रचनाकर्म और सिनेमा के लिए अप्रतिम योगदान हेतु विशेष ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार ग्रहण करते समय हॉल की अग्रिम पंक्ति में बैठी उनकी पत्नी गलौटा मसीना की आंखों में खुशी के आंसू थे। फेलिनी मंच से माइक पर उन्हें धन्यवाद देते हुए नहीं रोने का आग्रह करने लगे। समारोह स्थल के सारे कैमरे गलीटा के चेहरे पर टिक गए और आंसू भरी आंखों के बीच उनके चेहरे पर वही कैबीरिया वाली मुस्कुराहट खिल उठी....।