"माय फादर एण्ड माय सन" पीढ़ियों के टकराव में रिश्तों की उलझनें / राकेश मित्तल

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"माय फादर एण्ड माय सन" पीढ़ियों के टकराव में रिश्तों की उलझनें
प्रकाशन तिथि : 26 अक्टूबर 2013


एशिया और योरप के संधिस्थल पर बसे संस्कृति के धनी देश तुर्की में सिनेमा का प्रादुर्भाव सही मायने में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद हुआ। विश्व सिनेमा की महान एवं कालजयी फिल्मों की सूची में भले ही यहां की फिल्मों को स्थान न मिल पाए लेकिन सिनेमा में सांस्कृतिक अवदान के लिए तुर्की की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।

स्थानीय स्तर पर अनेक फिल्मकार तुर्की के फिल्म उद्योग में सक्रिय रहे ंिकंतु प्रचार-प्रसार के प्रति उदासीनता एवं सरकारी बंधनों व जटिलताओं के कारण बहुत कम फिल्में विश्व स्तर पर चर्चित हो पाईं। तुर्की के सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक एवं पटकथा लेखक केगन इमांक की वर्ष 2005 में प्रदर्शित फिल्म ‘माय फादर एण्ड माय सन’ उन चुनिंदा फिल्मों में से है, जिन्होंने तुर्की के बाहर अन्य देशों में भी अपनी लोकप्रियता दर्ज कराई। एक विद्रोही युवक के अपने पिता और पुत्र के साथ संबंधों पर आधारित यह फिल्म टर्किश सिनेमा के इतिहास की सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्म रही है।

वर्तमान लोकतंत्र बहाल होने के पूर्व सत्तर एवं अस्सी के दशकों में कमजोर अस्थिर राजनीतिक नेतृत्व तथा सेना की निरंकुश तानाशाही के चलते तुर्की को अनेक प्रकार की चुनौतियों से जूझना पड़ रहा था। यह फिल्म उस दौर की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के साथ-साथ पारिवारिक मूल्यों एवं संवेदनाओं को बेहद कुशलता से चित्रित करती है।

फिल्म का नायक सादिक (फिकरेत कुस्कां) इस्तांबुल विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करना चाहता है किंतु उसके पिता हुसैन (सेटिन तेकिन्दर) उसे कृषि इंजीनियर बनाना चाहते हैं ताकि वह परिवार की विशाल खेतीवाड़ी को संभाल सके और सुचारू रूप से परिवार का पालन-पोषण कर सके। सादिक पिता की बात नहीं मानता और उनसे विद्रोह कर घर छोड़ देता है। कॉलेज में आने के बाद उसका झुकाव वामपंथ की ओर हो जाता है और वह सक्रिय रूप से वामपंथी छात्र राजनीति में भाग लेने लगता है। धीरे-धीरे वह कट्टर एवं हिंसात्मक गतिविधियों से जुड़ जाता है। उसके इन कार्यकलापों की सूचना मिलने पर उसके पिता उसे परिवार से बेदखल कर देते हैं। सादिक वहीं इस्तांबुल में शादी करके घर बसा लेता है। राजनीतिक अस्थिरता के दौर में 12 सितंबर 1980 को सेना सत्ता पर कब्जा कर लेती है। उसी दिन सादिक की पत्नी को प्रसव पीड़ा होती है। बाहर कर्फ्यू लगा होने के कारण वह सड़क किनारे एक पार्क में पुत्र को जन्म देते हुए मर जाती है। सादिक का बुरा समय यहीं खत्म नहीं होता। विद्रोही राजनीतिक गतिविधियांें के चलते सैन्य शासन उसे गिरफ्तार कर लेता है। उसे जेल में अनेक प्रकार की यंत्रणाएं दी जाती हैं। तीन-चार साल यातनापूर्ण जिंदगी जीने के बाद वह मरणासन्न अवस्था में जेल से रिहा कर दिया जाता है। उसकी एकमात्र चिंता सात साल का नन्हा बेटा डेनिस है, जिसे वह मरने के पूर्व अपने माता-पिता के पास छोड़ना चाहता है क्योंकि इसके अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है। मगर बीते हुए कल की परछाइयों तले वह बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। बाकी की फिल्म सादिक द्वारा अपने पिता और पुत्र के बीच रिश्तों का पुल बनाने की प्रक्रिया है।

फिल्म में राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों के केंद्र में मानवीय रिश्तों की कहानी को खूबसूरती के साथ पिरोया गया है। कसी हुई पटकथा के साथ कलाकारों का सधा हुआ अभिनय फिल्म के उद्देश्य को स्पष्टता प्रदान करता है। फिल्म के अंतिम हिस्से को छोड़कर अधिकांश भाग मनोरंजक एवं हास-परिहास से भरपूर है। सादिक की दबंग माता, अर्धविक्षिप्त चाची एवं आलसी भाई अनेक दृश्यों में बेहतरीन हास्य रचते हैं। डेनिस द्वारा अपने नाराज दादाजी के करीब आने की कोशिशें बहुत प्यारी लगती हैं। नन्हें बालक एज तांमन ने डेनिस की भूमिका में अद्भुत अभिनय किया है।