'पंख हैं घायल, आंख है धुंधली, जाना है सागर पार' / जयप्रकाश चौकसे

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'पंख हैं घायल, आंख है धुंधली, जाना है सागर पार'
प्रकाशन तिथि : 20 सितम्बर 2019


अल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्म 'बर्ड्स' में दिखाया गया है कि मौसम के प्रतिकूल होते ही पक्षी आक्रोश की मुद्रा में आ जाते हैं और उनका रुख आक्रामक हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति किसी एक पंछी की नुकसान पहुंचाता है तो सारे पंछी उसका विरोध करते हैं। यह फिल्म डेफियन मॉरियर की कथा से प्रेरित हुई थी। एक अन्य फिल्म में जनजाति को नुकसान पहुंचाने वाले लोग हेलिकॉप्टर द्वारा लौट रहे होते हैं तो जनजाति का एक व्यक्ति पंछियों का आह्वान करता है कि वे हेलिकॉप्टर पर आक्रमण करें। सैकड़ों पक्षी हेलिकॉप्टर के कांच से टकराते हैं और चालक कुछ देख नहीं पाता। अतः दुर्घटना हो जाती है। कुछ लोग पंछियों की भाषा समझते हैं और पंछी भी मनुष्य की भाषा समझते हैं।

पंछियों के संसार में इतना प्रेम और सद्भभावना है कि कौए के द्वारा बनाए गए घोंसले में कोयल अंडे देती है और कौआ कोयल के बच्चों को दाना-पानी लाकर देता है। ज्ञातव्य है कि 'धरम' नामक फिल्म में काशी के एक ब्राह्मण को दंगे के समय एक अनाथ बालक मिलता है। वे उसका पालन पोषण करते हैं। बच्चे को संस्कृत के श्लोक कंठस्थ हो जाते हैं। कुछ वर्ष पश्चात बालक के माता-पिता वहां आते हैं और सप्रमाण सिद्ध कर देते हैं कि बालक उनका है। इस तरह संस्कृत जपने वाला बालक मुस्लिम परिवार में रहने लगता है। कुछ समय बाद फिर दंगे होते हैं और बालक के मकान में दंगाई आग लगा देते हैं। वही ब्राह्मण उसकी रक्षा के लिए हुड़दंगियों से भिड़ जाता है।

पंछियों के घरों पर कोई मालिकाना अधिकार नहीं होता। उनके घर वामपंथी कम्यून की तरह होते हैं। उनके निवासी होने का कोई रजिस्टर नहीं बनाया जाता। यह संकीर्णता मनुष्य की रचना है। पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। प्रदूषण के कारण मनुष्यों की तरह पंछियों का जीवन भी खतरे में है। मनुष्य की विचारहीनता और स्वार्थ की सीमा अंतरिक्ष के परे जाती है।

फिल्म के गीतकार पंछियों पर गीत लिखते रहे हैं। राज कपूर और नरगिस अभिनीत फिल्म 'चोरी चोरी' में गीत है, 'पंछी बनूं उड़ती फिरूं मस्त गगन में/ आज मैं आज़ाद हूं दुनिया के चमन में'। ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'गुड्डी' में गीत है 'बोले रे पपीहरा...'। फिल्म 'अनाड़ी' में नूतन पर फिल्माया गीत है 'बन के पंछी गाएं प्यार का तराना'। अमिया चक्रवर्ती की फिल्म 'सीमा' के लिए शैलेन्द्र का लिखा गीत है, 'पागल मन का घायल पंछी उड़ने को बेकरार, पंख हैं कोमल, आंख है धुंधली जाना है सागर पार, अब तू ही हमें बता जाएं कौन दिशा में हम..' दरअसल, शैलेन्द्र का आशय यह है कि दो सौ वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी में देश के पंख घायल हो गए हैं परंतु विकास करने की इच्छा बड़ी बलवती है। सबसे अहम बात यह है कि किस दिशा की ओर बढ़ें- समानता, न्याय आधारित धर्मनिरपेक्षता की ओर या फासिज्म की राह पर चलें। शैलेन्द्र के लिखे प्रेम गीतों में भी सामाजिक सरोकार बने रहते थे। राज कपूर उन गीतों को 'तोतापुरी गीत' कहते थे, जिन्हें अवाम दोहरा सके। ज्ञातव्य है कि तोता मनुष्य से सुनी बात को दोहराता है। जयपुर के परवेज अहमद विगत चार दशकों से घायल पंछियों की सेवा टहल करते हैं, उन्हें दाना-पानी मुहैया कराने में अपनी सीमित आय का बड़ा हिस्सा खर्च कर देते हैं। जयपुर के बनीपार्क के बसंत रोड पर बने अपने मात्र हजार फीट के घर में पंछियों के साथ जानवरों को भी शरण देते हैं। उनके इस काम में सहयोग करते हुए डॉ. टी. रामचंदानी, डॉ. उमाशंकर और डॉ. सुनील वर्मा घायल परिंदों और जानवरों का इलाज नि:शुल्क कर देते हैं। ज्ञातव्य है कि परवेज अहमद के पंछी प्रेम के कारण ही उनका विवाह नहीं हो पाया ('सौतन' के होते दुल्हन कैसे राजी होती?) यह सच है कि सुस्त और निर्मोही व्यवस्था के दौर में भी अनगिनत लोग समाज सेवा का कार्य कर रहे हैं और ऐसे ही लोगों के कारण घोर नैराश्य के बादल छंटने लगते हैं। बकौल साहिर लुधियानवी 'वह सुबह कभी तो आएगी, वह सुबह हमीं से आएगी'।

ज्ञातव्य है कि कभी पंछी उड़ते हुए हवाई जहाज में पायलट कक्ष के शीशे से टकरा जाते हैं। ऐसे में दुर्घटना की संभावना होती है। इसीलिए एयरपोर्ट के नज़दीक पंछियों को दूर रखने के लिए दाना-पानी देने पर रोक लगाई जाती है। कुछ पंछी 320 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ते हैं और उनके द्वारा मारी गई टक्कर भयावह हो सकती है। सदियों पहले जब संचार माध्यम विकसित नहीं हुए थे, तब परिंदों के पैर में पत्र बांधकर भेजे जाते थे। सूरज बड़जात्या ने अपनी पहली फिल्म 'मैंने प्यार किया' में दिखाया है कि कबूतर प्रेम-पत्र लेकर जाता है गोयाकि परिंदा ही डाकिये का काम करता है। बोनी कपूर की श्रीदेवी और अनिल कपूर अभिनीत फिल्म 'रूप की रानी और चोरों का राजा' के दृश्य में एक बहुमूल्य नेकलेस की चोरी करके नायक अपने परिंदे के माध्यम से हीरों के नेकलेस को उस स्थान से दूर भेज देता है। मनमोहन देसाई की एक फिल्म में भी एक बाज नायक के कंधे पर बैठा होता है। कई दिनों तक चलने वाली शूटिंग में तीन बाजों का इस्तेमाल किया गया, क्योंकि बाज की उम्र लंबी नहीं होती। इन बाजों पर आए खर्च पर आयकर विभाग ने अविश्वास जताया था। फिल्म पूरी होते ही उस पर किए गए व्यय का ब्योरा आयकर विभाग को देने का नियम था। आयकर विभाग हुक्मरान के इशारे पर अपने कोड़े बरसाता है।