अंधे जहान के अंधे रास्ते, जाएं तो जाएं कहां? / जयप्रकाश चौकसे

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अंधे जहान के अंधे रास्ते, जाएं तो जाएं कहां?
प्रकाशन तिथि :16 जनवरी 2017


राकेश रोशन ने अपनी आगामी फिल्म 'काबिल' का प्रदर्शन किया, जिसमें उनके सभी वितरक एवं सिनेमाघरों की शृंखला के मालिक आमंत्रित किए गए। फिल्म का प्रदर्शन 25 जनवरी को होगा। फिल्म के समाप्त होने पर राकेश रोशन ने वितरकों और सिनेमाघर शृंखलाअों के मालिकों से प्रार्थना की कि प्रदर्शन के समय वे सिनेमाघरों का समान वितरण करें। ज्ञातव्य है कि उसी दिन शाहरुख खान की 'रईस' भी प्रदर्शित हो रही है। राकेश रोशन ने समानता की मांग की है, क्योंकि 'रईस' लंबे समय से अधिकतम सिनेमाघर प्राप्त करने का प्रयास कर रही है। एक तरह से 'रईस' का दृष्टिकोण पूंजीवादी था कि वह अधिकतम 'माल' हड़प ले और राकेश रोशन ने समाजवादी मांग की है कि एक साथ लगने वाली फिल्मों को प्रदर्शन का समान अवसर प्राप्त हो। मनोरंजन उद्योग अब सप्ताहांत में सिमट गया है और पहले तीन दिन की आय ही निर्णायक सिद्ध होती है। 'रईस' ने पूरा खेल प्रपंच से खेला है। पहले टक्कर टालने पर वे सहमत थे और राकेश रोशन एक सप्ताह पहले या बाद में आने को तैयार थे परंतु रईस ने ताकतवर खिलाड़ी की मुद्रा अख्तियार की और उनका व्यवहार मनोरंजन क्षेत्र के बादशाह की तरह था। वे अपनी रियाया पर कोड़े बरसाने की हेकड़ी की मुद्रा में पेश आए। राकेश रोशन पीछे हटते गए और जब उनकी पीठ दीवार पर जा टिकी तो उन्होंने सामना करने का निर्णय लिया।

राकेश रोशन ने रूंधे हुए गले से अपनी फिल्म को समान अवसर देने की बात की। उनकी डबडबाई आंखें उनकी वेदना प्रकट कर रही थीं। उस अवसर पर मौजूद वितरकों और प्रदर्शकों ने उन्हें विश्वास दिलाया कि समानता से बंटवारा होगा और पचास वर्ष से रोशन परिवार मनोरंजन उद्योग में लगा रहा है। उन्हें विचलित और दु:खी होनेे की आवश्यकता नहीं है। राकेश के पिता स्वर्गवासी संगीतकार रोशन साहब का एक गीत था, 'खुशी खुशी कर दो बिदा कि रानी बेटी राज करेगी।' मनोरंजन उद्योग में फिल्म प्रदर्शन के समय निर्माता उस लड़की के पिता की तरह होता है, जिसे विवाह के बाद विदा किया जाता है। संगीतकार रोशन साहब ने उसी फिल्म 'अनोखी रात' में एक और गीत रचा गया था, 'ओह रे ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना ओह रे ताल..।' फिल्म उद्योग में आय के सारे ताल जाने किस नदी में समाते हैं कि यह उद्योग हमेशा कड़का ही रहा है और फिल्म बनाने के साधनों की कमी बनी रहती है। मात्र नौ हजार एकल सिनेमा के कारण इस उद्योग की असली ताकत का पता ही नहीं चलता, जबकि चीन में 65 हजार एकल सिनेमा हैं। ज्ञातव्य है कि अपनी देशज फिल्मों को भरपूर अवसर देने के लिए विदेश की केवल बारह फिल्में प्रतिवर्ष प्रदर्शित की जाती है। चीन और भारत के बीच 'चीन की दीवार' प्रतीकात्मक ढंग से सभी क्षेत्रों पर लागू होती है। सबसे अधिक गौरतलब बात यह है कि चीन भी अपने पुरातन इतिहास में चिरंतन भारत की तरह अनेक अभिमानी राजाओं की रियासत में बंटा था और साम्यवाद के उदय के बाद उसने साम्यवादी होना पसंद किया, जबकि भारत ने गणतंत्र व्यवस्था का चुनाव किया और गणतंत्र व्यवस्था को ऐसा रंग दे दिया कि अब उसे गणतंत्र व्यवस्था के जनक भी पहचान नहीं पाते। यह मामला चंद्रशेखर के 'तनु वेड्स मनु' के गीत की तरह है कि 'रंगरेज पूछे कि रंग का कारोबार क्या है और पानी में कौन-सा रंग मिलाया है।'

राकेश रोशन की 'कािबल' के नायक और उसकी पत्नी आंखों से देख नहीं पाते। उनका अंधत्व जन्मजात है। कुछ असामाजिक तत्व उस अंधी स्त्री का दो बार दुष्कर्म करते हैं और तीसरी बार की धमकी देते हैं तो वह आत्महत्या कर लेती है। उसका पति पुलिस थाने जाकर कहता है कि इस बार वह केवल यह बताने आया है कि दृष्टिहीन होने के बावजूद वह उन वहशियों को मार देगा और कोई सुराग भी नहीं छोड़ेगा। दरअसल, अंधी तो पूरी व्यवस्था ही है और कातिल सिरमौर बने बैठे हैं। इस रोचक फिल्म में हर दृश्य दर्शकों को चकाचौंध कर देगा और भावना के स्तर पर आंदोलित भी करेगा। फिल्म अंधी, लूली लंगड़ी व्यवस्था पर करारा प्रहार करती है। रोशन परिवार दशकों से फिल्म बना रहा है और यह उनका सबसे अधिक साहसी प्रयास है। 25 जनवरी को नोरंजन संविधान पुन: परिभाषित होगा।