अपराध और दंड / अध्याय 2 / भाग 3 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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लेकिन बीमारी के पूरे दौर में वह चेतनाशून्य रहा हो, ऐसी बात नहीं थी। उसे तेज बुखार था, कभी सरसाम की हालत भी हो जाती थी, कभी नीम-बेहोशीवाली हालत रहती थी। बाद में उसे उस समय की बहुत-सी बातें याद रह गईं। कभी लगता उसके चारों ओर बहुत-से लोग थे; उसे कहीं ले जाना चाहते थे, उसके बारे में काफी बहस हुई और काफी झगड़ा हुआ। फिर वह कमरे में अकेला रह जाता था; सब लोग उससे डर कर चले जाते थे और बीच-बीच में दरवाजे को थोड़ा-सा खोल कर उसे देख लेते थे। वे उसे धमकाते थे, मिल कर कोई साजिश करते थे, हँसते और उसे मुँह चिढ़ाते थे। उसे याद आता कि नस्तास्या अकसर इसके बिस्तर के पास होती थी। वह एक और शख्स को भी पहचानता था, जिसके बारे में उसे लगता था कि वह उसे बहुत अच्छी तरह जानता था, पर उसे यह याद नहीं आता था कि वह कौन था। इस बात पर वह बहुत झुँझलाता था और रो भी पड़ता था। कभी लगता कि वह महीने भर से वहाँ पड़ा था; और फिर लगने लगता कि वही दिन है। उसकी उस बात की उसे कोई याद नहीं थी; फिर भी वह हर पल महसूस करता था कि वह कोई ऐसी बात भूल गया है, जो उसे याद रहनी चाहिए थी। याद करने की कोशिश में वह परेशान हो जाता था, अपने आपको यातना देता था, कराहता था, गुस्से में भड़क उठता था या भयानक असहनीय आतंक से दब जाता था। तब वह उठने के लिए पूरा जोर लगाता था, भाग जाना चाहता था, लेकिन हर बार कोई उसे जबरन रोक लेता था, और वह फिर बेहद कमजोरी और बेहोशी का शिकार हो जाता था। आखिरकार उसे काफी हद तक होश आ गया।

यह सुबह दस बजे की बात थी। आसमान जब खुला होता था, तब उस कमरे में धूप आती थी और दाहिनी ओर की दीवार पर और दरवाजे के पास वाले कोने में रोशनी की एक पट्टी दिखाई देती थी। नस्तास्या किसी और आदमी के साथ उसकी बगल में खड़ी थी। वह शख्स एकदम अजनबी था और बड़ी जिज्ञासा से उसे देख रहा था। यह एक दाढ़ीवाला नौजवान था, पिंडलियों तक का लंबा कोट पहने था और देखने से कारीगर लगता था। मकान-मालकिन अधखुले दरवाजे से झाँक रही थी। रस्कोलनिकोव उठ कर बैठ गया।

'यह कौन है, नस्तास्या?' उसने नौजवान की तरफ इशारा करके पूछा।

'इसे सचमुच होश आने गया है!' वह बोली।

'हाँ, आ गया है,' उस आदमी ने बात दोहराई। इस नतीजे पर पहुँच कर कि उसे होश आ गया है, मकान-मालकिन दरवाजा बंद करके खिसक गई। वह हमेशा से बहुत शर्मीली थी और बातचीत या बहस से बहुत घबराती थी। वह कोई चालीस साल की थी; सूरत-शक्ल की बुरी भी नहीं थी। मोटा, गदराया हुआ शरीर, काली आँखें और भवें, मोटापे और काहिली की वजह से स्वभाव की अच्छी, और बेतुकेपन की हद तक लजीली।

'कौन...हो तुम?' उस आदमी को संबोधित करके वह कहता रहा। लेकिन उसी समय दरवाजा धड़ से खुला और रजुमीखिन अंदर आया। लंबा होने की वजह से उसे कुछ झुकना पड़ा।

'खूब कबूतरखाना है यह भी!' वह जोर से चीखा। 'हर बार मेरा सर टकरा जाता है। यह भी कोई रहने की जगह है! तो तुम्हें होश आ गया, जिगर! मुझे पाशेंका ने अभी-अभी बताया।'

'हाँ, अभी-अभी आएला है,' नस्तास्या बोली।

'हाँ, एकदम अभी होश आया है,' उस आदमी ने मुस्कराते हुए फिर उसकी बात दोहराई।

'पर आप कौन हैं, जनाब?' रजुमीखिन ने अचानक उसकी ओर मुड़ते हुए कहा। 'मेरा नाम व्रजुमीखिन है, आपका सेवक। रजुमीखिन नहीं, जैसा कि लोग मुझे हमेशा कहते हैं, बल्कि व्रजुमीखिन, छात्र और शरीफजादा, और ये हैं मेरे दोस्त पर आप कौन हैं?'

'मुझे अपने दफ्तर की तरफ से भेजा गया है। सेठ शेलोपाएव के दफ्तर से। और मैं एक काम से आया हूँ।'

'यहाँ तशरीफ रखिए।' रजुमीखिन मेज की दूसरी तरफ बैठ गया। 'जिगर, अच्छा हुआ कि तुम्हें होश आ गया,' वह रस्कोलनिकोव से कहता रहा। 'चार दिन से तुमने न कुछ खाया है न पिया है। हम लोगों को तुम्हें चम्मच से चाय पिलानी पड़ी। मैं दो बार जोसिमोव को तुम्हें देखने के लिए लाया। जोसिमोव की याद है तुम्हें उसने तुम्हें अच्छी तरह देख कर फौरन बता दिया कि घबराने की कोई बात नहीं - कोई बात तुम्हारे दिमाग को लग गई है। उसका कहना है कि कोई नसों की गड़बड़ी है, ठीक से खाना न खाने की वजह से, तुम्हें पर्याप्त बियर और मूली नहीं मिली है। लेकिन कोई खास बीमारी नहीं है। कुछ दिनों में दूर हो जाएगी और तुम एकदम ठीक हो जाओगे। जोसिमोव बहुत बढ़िया आदमी है, काफी नाम कमा रहा है। अच्छा यह बताओ, मैं तुम्हें बहुत ज्यादा देर नहीं रोकना चाहता,' उसने फिर उस आदमी की ओर मुड़ते हुए कहा। 'बताओ, क्या काम है तुम्हें मालूम हो रोद्या कि उस दफ्तर से दूसरी बार कोई आया है। पिछली बार कोई और आदमी आया था, मैंने उससे बात भी की थी। पहले कौन आया था?'

'जनाब, मैं यह बता दूँ कि वह परसों की बात है। वह अलेक्सेई सेम्योनोविच था, हमारे ही दफ्तर में काम करता है।'

'तुमसे ज्यादा समझदार था वह, मानते हो न?'

'हाँ, जनाब, यह तो है, उसका रुत्बा भी तो मुझसे ऊपर है।'

'एकदम ठीक कहते हो; खैर, बताते जाओ।'

'आपकी माँ की हिदायत पर, अफनासी इवानोविच बाखरूशिन के जरिए, मेरा खयाल है, उनकी चर्चा आपने पहले भी कई बार सुना होगा, हमारे दफ्तर से आपके लिए कुछ रकम भेजी गई है,' उस आदमी ने रस्कोलनिकोव को संबोधित करते हुए कहना शुरू किया। 'अगर आप बातें समझने की हालत में हैं, तो मुझे आपको पैंतीस रूबल देने हैं क्योंकि, पहले कई बार की तरह, आपकी माँ की खास हिदायत पर सेम्योन सेम्योनोविच को अफनासी इवानोविच से यह रकम मिल चुकी है। आप उन्हें जानते हैं जनाब?'

'हाँ, मुझे... वाखरूशिन की याद है...', रस्कोलनिकोव ने सोच में डूबे हुए कहा।

'सुना तुमने व्यापारी वाखरूशिन को पहचानता है यह।' रजुमीखिन खुशी से उछल पड़ा। 'कौन कहता है कि यह फिर अपने आपे में नहीं आएगा? मैं देखता हूँ कि तुम भी समझदार आदमी हो। बहरहाल, अक्लमंदी की बात सुन कर मुझे हमेशा बड़ी खुशी होती है।'

'हाँ, वही बाखरूशिन, अफनासी इवानोविच। और आपकी माँ के कहने पर, जिन्होंने पहले भी एक बार उनके जरिए आपके लिए इसी तरह रकम भेजी थी, इस बार भी उन्होंने इनकार नहीं किया। उन्होंने सेम्योन सेम्योनोविच को अब से कुछ दिन पहले हिदायत भेजी थी कि आपको पैंतीस रूबल अदा कर दिए जाएँ। आप आगे चल कर इससे भी ज्यादा की उम्मीद रख सकते हैं।'

'तुम्हारी 'आगे चल कर इससे भी ज्यादा की उम्मीद' वाली बात आज की बढ़िया बात है, हालाँकि 'आपकी माँ' वाली बात भी कुछ बुरी नहीं रही। तो बोलो, क्या कहते हो यह पूरी तरह होश में है कि नहीं?'

'सो तो ठीक है। आप बस इस कागज पर दस्तखत कर दें।'

'हाँ, अपना नाम तो लिख ही लेंगे। तुम्हारे पास किताब है?'

'हाँ, यह रही।'

'लाओ, मुझे दो। यह लो रोद्या, जरा उठ कर बैठो। मैं तुम्हें पकड़े रहूँगा। कलम ले कर 'रस्कोलनिकोव' घसीट तो दो। इस वक्त तो जिगर, पैसा मिल जाए तो क्या कहने!'

'मुझे नहीं चाहिए,' रस्कोलनिकोव ने कलम दूर हटाते हुए कहा।

'क्या नहीं चाहिए?'

'मैं इस पर दस्तखत नहीं करूँगा।'

'अरे ओ कमबख्त, दस्तखत किए बिना कैसे काम चलेगा?'

'मुझे नहीं चाहिए... यह पैसा।'

'पैसा नहीं चाहिए! अरे भाई यह सब झूठ है - मैं गवाह हूँ! तुम परेशान न हो। बात बस यह है कि यह जरा फिर बहकने लगा है। लेकिन इसके लिए यह कोई नई बात नहीं, हमेशा ही होता रहता है। तुम समझदार आदमी हो; हम लोग अभी इसे काबू में किए लेते हैं। मेरा सीधा-सा मतलब यह है कि हम इसका हाथ पकड़ कर दस्तखत करवा देंगे। काम बस झटपट निबटा दो।'

'अरे, मैं कभी फिर आ जाऊँगा।'

'नहीं, नहीं। तुम परीशानी क्यों उठाओ तुम तो समझदार आदमी हो। ...चलो रोद्या, इन्हें बेकार क्यों रोक रखा है। देखो तो कब से बेचारे इंतजार कर रहे हैं,' और यह कह कर वह सचमुच रस्कोलनिकोव का हाथ पकड़ने के लिए बढ़ा।

'तुम रहने दो, मैं खुद...' रस्कोलनिकोव ने कलम ले कर दस्तखत करते हुए कहा। गुमाश्ते ने पैसे निकाल कर मेज पर रखे और चला गया।

'शाबाश! अच्छा जिगर, तुम्हें कुछ भूख तो लगी होगी?'

'हाँ,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया।

'कोई सूप है?'

'कल का थोड़ा-सा बचेला है,' नस्तास्या ने जवाब दिया; वह सारे वक्त वहीं खड़ी थी।

'आलू और चावल उसमें पड़ा है न?'

'हाँ, आलू और चावल है।'

'मुझे तो रत्ती-रत्ती सब पता है। ठीक है, सूप ले आओ और हम लोगों को थोड़ी-सी चाय पिला दो।'

'अच्छी बात बोलता है।'

'रस्कोलनिकोव बड़ी हैरत से और एक दबी-दबी, बेबुनियाद दहशत के साथ सब कुछ देखता रहा। उसने फैसला कर लिया था कि एकदम चुप रह कर देखता रहेगा कि होता क्या है। 'मेरा खयाल है कि मैं बहक नहीं रहा। मैं समझता हूँ यह सब कुछ सचमुच हो रहा है,' उसने सोचा।

कुछ ही मिनटों में नस्तास्या सूप ले कर लौटी और ऐलान किया कि चाय अभी तैयार हुई जाती है। सूप के साथ वह दो चम्मच, दो प्लेटें, नमक, मिर्च, गोश्त के लिए पिसी हुई राई वगैरह भी लाई थी। खाने की मेज कुछ इस तरह सजाई गई थी कि वैसे बहुत दिन से सजाई नहीं गई थी। मेजपोश भी साफ था।

'मेरी प्यारी नस्तास्या, अगर प्रस्कोव्या पाव्लोव्ना हमें दो-तीन बोतल बियर भिजवा दें तो कुछ बेजा बात तो नहीं होगी। हम उन्हें खाली कर देंगे।'

'तुम बी कोई मौका चूकेला नईं,' नस्तास्या ने मुँह-ही-मुँह में कहा, और हुक्म बजा लाने को चली।

रस्कोलनिकोव फटी-फटी आँखों से घूरे चला जा रहा था; ध्यान कहीं केंद्रित रखने के लिए उसे जोर लगाना पड़ रहा था। इसी बीच रजुमीखिन सोफे पर बगल में आ कर बैठ गया और अपने बाएँ हाथ से बड़े भोंडे तरीके से, जैसे किसी को भालू ने दबोचा हो, रस्कोलनिकोव के सर को सहारा दे कर दाहिने हाथ से चम्मच से सूप ले कर पिलाने लगा हालाँकि वह अपने आप बैठ सकता था। सूप को वह फूँक मार कर ठंडा करता जाता था कि कहीं मुँह न जल जाए। लेकिन सूप गर्म नहीं था। रस्कोलनिकोव तरसे हुए आदमी की तरह एक चम्मच सूप निगल गया, फिर दूसरा, फिर तीसरा। लेकिन उसे कुछ और चम्मच सूप पिलाने के बाद रजुमीखिन अचानक रुक गया और बोला उसे जोसिमोव से पूछना होगा कि तुम्हें और सूप दिया जाए या नहीं।

नस्तास्या बियर की दो बोतलें ले आई।

'चाय तो पियोगे?'

'हाँ।'

'नस्तास्या, भाग कर जा और थोड़ी चाय ले आ, क्योंकि चाय तो हम बिना किसी से पूछे भी पी सकते हैं। मगर बियर आ गई है!' वह वापस अपनी कुर्सी पर जा कर बैठ गया। सूप और गोश्त सामने खींच कर वह इस तरह खाने लगा गोया तीन दिन से खाना छुआ तक न हो।

'मैं तुम्हें बता दूँ, रोद्या, कि अब मैं रोज यहाँ इसी तरह खाता हूँ।' वह मुँह में गोश्त भरे कुछ इस तरह बोल रहा था कि आधी बात समझ में ही नहीं आती थी। 'और यह सब मेहरबानी तुम्हारी प्यारी मकान-मालकिन पाशेंका की है, जो इसका पूरा बंदोबस्त कर देती है। वह मेरे लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है। मैं उससे यह सब करने को तो कहता नहीं, लेकिन जाहिर है कि मैं उसे रोकता भी नहीं। लो, नस्तास्या चाय भी ले आई। बड़ी चुस्त लड़की है! नस्तास्या, मेरी प्यारी नस्तास्या, थोड़ी-सी बियर तो पिओगी?'

'बस, रहने दो अपना बकवास!'

'एक प्याली चाय ही पी लो।'

'चाय मैं पिएँगी।'

'तो बनाओ! खैर, रहने दो, मैं खुद बनाता हूँ। तुम बैठ जाओ।'

उसने दो प्याली चाय बनाई, और खाना छोड़ कर फिर सोफे पर आन बैठा। पहले की ही तरह उसने अपने बीमार दोस्त के सर को बाएँ हाथ से सहारा दे कर उठाया और चम्मच से उसे चाय पिलाने लगा। इस बार भी वह बहुत सँभाल कर, बड़ी लगन के साथ, हर चम्मच को इस तरह फूँक मार-मार कर पिला रहा था जैसे उसके दोस्त को चंगा करने का खास और सबसे कारगर तरीका यही हो। रस्कोलनिकोव कुछ नहीं बोला और जो कुछ वह कर रहा था, उसे करने दिया। यूँ वह अपने बदन में इतनी ताकत महसूस कर रहा था कि सोफे पर बिना सहारे के बैठ सकता था, और न सिर्फ चम्मच या प्याला पकड़ सकता था, बल्कि उठ कर शायद चल-फिर भी सकता था। लेकिन किसी अजीब, जानवरों जैसी चालाकी की वजह से उसने तय किया कि किसी को अपनी ताकत का पता न लगने दे, कुछ समय के लिए ऐसे ही चुपका पड़ा रहे, जरूरत हो तो यह ढोंग भी करे कि अभी उसके हवास पूरी तरह ठीक नहीं हुए हैं, और उस बीच कान लगा कर सुनता रहे और मालूम करता रहे कि हो क्या रहा है। फिर भी वह अपनी तीखी नफरत की भावना पर काबू न पा सका। चाय के लगभग एक दर्जन चम्मच धीरे-धीरे पीने के बाद उसने अपना सर छुड़ा लिया और अचानक न जाने क्या उसके जी में आया कि चम्मच दूर हटा कर फिर तकिए पर लुढ़क गया। अब उसके सर के नीचे सचमुच के तकिए थे, साफ गिलाफ चढ़े हुए, चिड़ियों के पंख भरे हुए तकिए। उसने यह बात देखी और उसे अच्छी तरह अपने मन में बिठा लिया।

'आज पाशेंका को चाहिए थोड़ा-सा रसभरी का मुरब्बा भेज दे, फिर हम इसे रसभरी की चाय पिलाएँ,' रजुमीखिन ने अपनी कुर्सी पर वापस जाते हुए और सूप और बियर पर फिर धावा बोलते हुए कहा।

'तुम्हारा लिए उसे रसभरियाँ कहाँ से मिलेंगा?' नस्तास्या ने अपनी पाँचों फैली हुई उँगलियों पर तश्तरी टिका कर, शकर की डली मुँह में रख कर चाय पीते हुए पूछा।

'दुकान से मिलेंगी भलीमानस, और कहाँ से। बात यह है रोद्या कि जब से तुम बीमार पड़े हो, तब से बहुत कुछ होता ही रहा है, जिनके बारे में तुम नहीं जानते। जब तुम बदमाशी दिखा कर, अपना पता छोड़े बिना, मेरे यहाँ से भाग आए तो मुझे इतना गुस्सा आया कि मैंने तुम्हें खोज निकालने और सजा देने का फैसला किया। मैं उसी दिन इस काम से जुट गया। तुम्हारा पता लगाने के लिए कहाँ-कहाँ मैं नहीं गया। मैं तुम्हारी यह रहने की जगह भूल गया था, सच तो यह है कि मुझे यह कभी याद ही नहीं थी, क्योंकि मैं इसे जानता ही नहीं था। रहा तुम्हारी पुरानी जगह का सवाल, तो मुझे बस इतना याद है कि वह पंचकोण में थी, खर्लामोव के मकान में। मैं खर्लामोव का यह घर खोजते-खोजते हार गया और बाद में पता चला कि वह खर्लामोव का नहीं बल्कि बुख का घर था। कभी-कभी सुनने में कैसी गड़बड़ी हो जाती है! मैं गुस्से के मारे आपे से बाहर हो गया और अगले ही दिन यूँ ही किस्मत आजमाने पतोंवाले दफ्तर चला गया। फिर कमाल यह हुआ कि दो मिनट में उन्होंने तुम्हारा पता ढूँढ़ निकाला! तुम्हारा नाम वहाँ चढ़ा हुआ है।'

'मेरा नाम चढ़ा हुआ है?'

'सौ फीसदी लेकिन यह भी तो देखो कि जब मैं वहाँ था, तो वे लोग किसी जनरल कोबेलेव का पता नहीं ढूँढ़ पाए। खैर छोड़ो, यह बहुत लंबा किस्सा है। लेकिन इस जगह कदम रखते ही, थोड़े ही देर में मुझे तुम्हारा सारा कच्चा चिट्ठा मालूम हो गया - सब कुछ, एक-एक बात। मुझे सब मालूम है, जिगर, यह नस्तास्या तुम्हें बताएगी। मैंने निकोदिम फोमीच से और इल्या पेत्रोविच से और दरबान से और मिस्टर जमेतोव से, वही अलेक्सांद्र ग्रिगोरियेविच, जो पुलिस के दफ्तर में बड़ा बाबू है, और सबसे बढ़ कर, पाशेंका से जान-पहचान पैदा की। नस्तास्या को सब मालूम है...'

'इनने उनका ऊपर कोई मंतर फूँकेला है,' नस्तास्या ने शरारत से मुस्करा कर दबी जबान से कहा।

'तुम शकर अपनी चाय में क्यों डाल नहीं लेती, नस्तास्या निकीफोराव्ना?'

'तुम बी एक ही आदमी होएला है!' नस्तास्या अचानक हँसी से दोहरी हो कर बोली। 'निकीफोरोव्ना नहीं, मैं पेत्रोव्ना होएला,' अपनी हँसी रोक कर वह तपाक से बोली।

'सो मैं याद रखूँगा। खैर अच्छा जिगर, लंबा किस्सा छोड़ो, असल बात यह है कि मैं तो यहाँ के सारे मकड़जाल पैदा करनेवाले हालात उखाड़ फेंकने के लिए बम का धमाका करनेवाला था, लेकिन पाशेंका के आगे मेरी एक न चली। मैंने कभी सोचा भी नहीं था जिगर कि वह ऐसी... लाजवाब औरत होगी। क्यों, तुम्हारा क्या खयाल है?'

रस्कोलनिकोव कुछ नहीं बोला। उसकी दहशत भरी आँखें उस पर जमी रहीं।

'सच तो यह है कि हर बात में उसने किसी तरह की कोई कमी रहने नहीं दी, 'रस्कोलनिकोव की खामोशी से जरा भी परेशान हुए बिना रजुमीखिन अपनी बात कहता रहा।

'ये बड़ा चलता पुर्जा आदमी होएला!' नस्तास्या एक बार फिर खुशी से चिल्लाई। उसे इस बातचीत में बेहद मजा आ रहा था।

'बड़े अफसोस की बात है, जिगर कि शुरू से तुमने कुछ सही ढंग से इस सिलसिले को नहीं सँभाला। तुम्हें उनके साथ कुछ अलग ढंग का रवैया अपनाना चाहिए था। उसका स्वभाव, बस यूँ समझ लो कि आसानी से समझ में नहीं आता। खैर, उसके स्वभाव के बारे में हम फिर कभी बातें करेंगे। ...तुमने नौबत यहाँ तक पहुँचने ही कैसे दी कि उसने तुम्हारा खाना तक भेजना बंद कर दिया और वह प्रोनोट! तुम्हारा दिमाग एकदम ही खराब रहा होगा कि तुमने उस प्रोनोट पर दस्तखत कर दिए! और जब उसकी वह बेटी, नताल्या येगोरोव्ना, जिंदा थी, तब उससे शादी करने का वादा ...सब कुछ मालूम है मुझे! पर मैं देखता हूँ कि यह एक नाजुक मामला है और मैं भी बहुत बड़ा गधा हूँ; मुझे माफ करना। लेकिन अब बेवकूफी की चर्चा चली है तो मैं इतना बता दूँ कि प्रस्कोव्या पाव्लोव्ना उतनी बेवकूफ नहीं है जितना कि पहली बार देखने में लगती है। यह बात क्या मालूम है तुम्हें?'

'मालूम है,' रस्कोलनिकोव मुँह फेर कर बुदबुदाया। लेकिन वह महसूस कर रहा था कि बातचीत का सिलसिला जारी रखना ही अच्छा है।

'सही है, है न?' उसके मुँह से जवाब में कुछ अलफाज सुन कर रजुमीखिन खुशी के मारे उछल पड़ा। 'लेकिन वह बहुत चालाक भी नहीं है, है न? बुनियादी तौर पर वह एक पहेली है! मैं तुमसे सच कहता हूँ, कभी-कभी तो मैं दंग रह जाता हूँ... चालीस की तो होगी पर कहती है कि छत्तीस की है, और उसे ऐसा कहने का पूरा अधिकार है। लेकिन मैं कसम खा कर कहता हूँ कि मैं उसे बौद्धिकता की कसौटी पर परखता हूँ, केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से। देखो जिगर बात यह है कि हम दोनों के बीच जो संबंध है, उसकी बुनियाद प्रतीकों पर है। एकदम तुम्हारी बीजगणित की तरह! मैं इस बात को पूरी तरह नहीं समझ पाता! खैर छोड़ो, यह सब तो बकवास है। बात बस इतनी है कि उसने जब देखा कि तुम अब पढ़ते भी नहीं हो, तुम्हारे ट्यूशन भी छूट गए हैं और तुम्हारे पास ढंग के कपड़े तक नहीं रहे, और उस लड़की के मर जाने की वजह से अब उसे तुम्हारे साथ रिश्तेदारों जैसा बर्ताव रखने की भी जरूरत नहीं रही, तो यकायक उसे डर लगने लगा। सो जब तुम भी मुँह छिपा कर अपनी माँद में दुबक कर बैठ रहे और उसके साथ अपने सारे संबंध तुमने तोड़ लिए तो उसने भी तुमसे छुटकारा पाने की ठान ली। उसने यह बात ठानी तो बहुत पहले ही थी, लेकिन उसे अफसोस इस बात का था कि उसकी रकम मारी जाएगी। इसके अलावा, तुम खुद उसे यकीन दिला चुके थे कि तुम्हारी माँ कर्ज चुका देंगी।'

'हाँ, यह बात कहना सरासर मेरा कमीनापन था। ...मेरी माँ खुद ही लगभग कंगाल हैं... मैंने तो वह झूठ इसलिए बोला था कि रहने की जगह बनी रहे और... खाना मिलता रहे,' रस्कोलनिकोव ने ऊँचे स्वर में साफ-साफ कहा।

'हाँ, सो तो तुमने समझदारी की। लेकिन सबसे बुरी बात यह हुई कि उसी वक्त मिस्टर चेबारोव आ पहुँचे। कोई व्यापारी हैं और कोर्ट कौंसिलर भी। पाशेंका तो अपनी तरफ से कार्रवाई करने की बात सोचती भी नहीं, हद से ज्यादा संकोची है बेचारी; लेकिन व्यापारी तो संकोची नहीं होता। इसलिए उन्होंने पहला काम यह किया कि एक सवाल पूछा : 'क्या प्रोनोट की वसूली की उम्मीद है?' जवाब मिला, 'है तो, क्योंकि उसकी माँ है, जो अपनी सवा सौ रूबल की पेंशन के सहारे अपने रोद्या को जरूर बचाने की कोशिश करेगी, चाहे इसके लिए उसे भूखा ही क्यों न रहना पड़े, और फिर उसकी एक बहन भी है जो उसकी खातिर अपने आपको भी गिरवी रख देगी।' वह इसी की आस लगाए थे। ...तुम चौंके क्यों अब मुझे तुम्हारा सारा कच्चा चिट्ठा पता चल चुका है, जिगर। जब तुम पाशेंका के होनेवाले दामाद थे, तब तुम खुल कर उससे सारी बातें कह देते थे; मैं यह सब कुछ एक दोस्त की हैसियत से तुम्हें बता रहा हूँ। लेकिन मैं तुम्हें बताऊँ कि बात क्या है : ईमानदार और दर्दमंद आदमी खुले दिल से बात करता है, और व्यापारी तुम्हारी बात सुनता रहता है और अंदर-ही-अंदर जुगाली करता रहता है ताकि उस ईमानदार बंदे को चबा सके। खैर हुआ यह कि उसने वह प्रोनोट किसी भुगतान के बदले इसी चेबारोव को दे दिया, और उन्होंने आव देखा न ताव, बाकायदा वसूली के लिए उसे दाखिल कर दिया। जब मुझे यह सब कुछ मालूम हुआ तो मेरा तो जी चाहा कि अपना जमीर पाक रखने के लिए मैं उसकी भी धज्जियाँ उड़ा दूँ, लेकिन तब तक मेरे और पाशेंका के बीच गहरा दोस्ताना हो गया था। मैंने इस पूरे सिलसिले को खत्म करने पर जोर दिया, और यह जिम्मा लिया कि तुम रकम चुका दोंगे। मैंने तुम्हारी जमानत ली, जिगर। समझ रहे हो न हमने चेबारोव को बुलवाया, दस रूबल उसके मुँह पर फेंक मारे और प्रोनोट उससे वापस ले लिया, और मैं वही प्रोनोट अब आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ। पाशेंका को तुम्हारे ऊपर पूरा भरोसा है। लो, यह लो, मैंने इसे फाड़ दिया।' रजुमीखिन ने प्रोनोट मेज पर रख दिया। रस्कोलनिकोव ने उसकी ओर देखा और कुछ भी कहे बिना दीवार की तरफ मुँह फेर कर लेट गया। रजुमीखिन तक को भी थोड़ा बुरा लगा।

'मेरी समझ में तो यही आ रहा है जिगर,' एक पल बाद वह बोला, 'कि मैं फिर बेवकूफी कर रहा हूँ। मैंने सोचा था कि अपनी बकबक से तुम्हारा कुछ दिल बहलाऊँ, पर लग रहा है कि तुम्हें मेरी बातों से कोफ्त हो रही है।'

'जब मैं सरसाम की हालत में था, तब तुम ही आए थे क्या, जिसे मैंने पहचाना नहीं था?' रस्कोलनिकोव ने अपना सर घुमाये बिना ही एक पल ठहर कर पूछा।

'हाँ, मैं ही था। और तुम तब तो भड़क ही उठे थे, जब मैं खास तौर पर एक दिन जमेतोव को लाया था।'

'जमेतोव वह बड़ा बाबू किसलिए?' रस्कोलनिकोव ने जल्दी से करवट बदली और रजुमीखिन को नजरें गड़ा कर घूरने लगा।

'तुम्हें हो क्या गया है आखिर ...आखिर इतना परेशान क्यों हो वह तुमसे तो यूँ ही मिलना चाहता था क्योंकि मैंने उससे तुम्हारे बारे में बहुत-सी बातें की थीं... वरना मुझे इतनी सारी बातें मालूम कैसे होतीं बड़ा लाजवाब आदमी है, जिगर एकदम पक्का... जाहिर है, अपने ढंग से। अब हमारी दोस्ती हो गई है... लगभग रोज मुलाकात होती है। जानते हो, मैं इसी इलाके में आ गया हूँ हाल ही में अभी मैं उसके साथ एक-दो बार लुईजा इवानोव्ना के यहाँ भी गया था... लुईजा की याद है, लुईजा इवानोव्ना की?'

'सरसाम में मैंने कुछ कहा था क्या?'

'बहुत कुछ कहा था! अपने होश में नहीं थे तुम।'

'किस चीज के बारे में बड़बड़ा रहा था?'

'अब क्या पूछते हो, किस चीज के बारे में बड़बड़ा रहे थे लोग काहे के बारे में बड़बड़ाते हैं... अच्छा जिगर, अब मैं चलता हूँ। अब गँवाने को मेरे पास और वक्त नहीं है।'

वह उठा और अपनी टोपी उठा ली।

'मैं किस चीज के बारे में बड़बड़ा रहा था?'

'क्या रट लगा रखी है भला! तुम्हें डर है क्या कि कहीं तुमने कोई भेद तो नहीं खोला? परेशान न हो, तुमने किसी शहजादी के बारे में कुछ नहीं कहा। लेकिन तुम कुछ बक रहे थे; किसी बुलडाग के बारे में, कानों की बालियों और जंजीरों के बारे में, क्रेस्तोव्स्की द्वीप के बारे में, किसी दरबान के बारे में, निकोदिम फोमीच और असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट इल्या पेत्रोविच के बारे में न जाने क्या-क्या बक रहे थे। और एक चीज थी जिसमें तुम्हें खास दिलचस्पी थी, अपने मोजे के बारे में! तुम कराह-कराह कर कह रहे थे; 'मुझे मेरे मोजे दो दो!' जमेतोव ने पूरे कमरे में तुम्हारे मोजे ढूँढ़े और खुद अपने इत्र से महकते हुए और अँगूठियों से सजे हुए हाथों से कहीं से खोज कर वह चीथड़ा तुम्हें दिया था। तब जा कर तुम्हें तसल्ली हुई और अगले चौबीस घंटे तुमने उन मनहूस मोजों को अपनी मुट्ठी में दबोचे रखा; लाख कोशिश करने पर भी हम उन्हें नहीं ले सके। इस वक्त भी वे तुम्हारी रजाई के अंदर ही कहीं होंगे। फिर तुम दर्द भरी आवाज में अपने पतलून की मोरी माँगने लगे, जो हमारी समझ में कुछ भी नहीं आया। खैर, अब कुछ काम की बातें करें! ये पैंतीस रूबल हैं। इनमें से दस मैं लिए लेता हूँ, और घंटे दो घंटे में तुम्हें इसका हिसाब दे दूँगा। साथ ही मैं जोसिमोव को भी बता दूँगा, हालाँकि उसे यहाँ बहुत पहले ही आ जाना चाहिए था, क्योंकि अब तो बारह बज रहे हैं। और तुम, नस्तास्या, मेरे जाने के बाद जितनी बार भी हो सके, बीच-बीच में आ कर झाँक लेना कि इसे कुछ पीने के लिए या कोई और चीज तो नहीं चाहिए। और जिन चीजों की जरूरत है। वह मैं पाशेंका से अभी कहे जाता हूँ। तो मैं चला!'

'उनका पाशेंका कहेला है! अरे, बहुत पहुँचा होएला है!' उसके बाहर निकलते-निकलते नस्तास्या ने कहा। फिर उसने दरवाजा खोला और कान लगा कर खड़ी सुनती रही, लेकिन भाग कर सीढ़ियाँ उतरते हुए उसके पीछे-पीछे गए बिना रह न सकी। उसे यह सुनने की उत्सुकता थी कि वह मकान-मालकिन से क्या कह रहा है। साफ जाहिर था कि वह रजुमीखिन पर काफी रीझ गई थी।

नस्तास्या के जाते ही मरीज ने रजाई वगैरह किनारे फेंकी और पागलों की तरह बिस्तर से उछला। बेचैनी के मारे वह अंदर-ही-अंदर फुँका जा रहा था, उसका अंग-अंग फड़क रहा था। कब से वह इंतजार में था कि ये लोग टलें तो वह अपना काम शुरू करे। लेकिन कौन-सा काम, अब गोया उसे चिढ़ाने के लिए यही बात उसके दिमाग से निकल गई थी। 'हे भगवान, मुझे बस एक बात बता दो : उन लोगों को पता चल चुका है या नहीं अगर उन्हें मालूम हो गया है और वे सब दिखावा कर रहे हैं, मुझे मेरी बीमारी में चिढ़ा रहे हैं, और फिर वे अचानक आ धमकेंगे और मुझसे कहेंगे कि पता तो बहुत पहले चल गया था और यह कि वे लोग तो बस... मैं अब करूँ तो क्या यही तो मैं भूल गया हूँ, गोया जान-बूझ कर; और वह भी एकदम से; अभी पल भर पहले तक तो याद था...'

वह कमरे के बीच में खड़ा दुखी मन भौंचक्का, इधर-उधर देखता रहा। चल कर वह दरवाजे तक गया, उसे खोला और कान लगा कर सुनने लगा, लेकिन यह तो वह काम नहीं था जो वह करना चाहता था। अचानक, उसे जैसे किसी चीज की याद आ गई हो, वह भाग कर उस कोने में गया जहाँ कागज के नीचे खोखल था और उसकी छानबीन करने लगा। उसने खोखल में हाथ डाला, यह टटोला, वह टटोला, लेकिन वह काम तो यह भी नहीं था। आतिशदान के पास गया, उसे खोला और राख कुरेद कर देखने लगा : उसके पतलून के लत्ते और जेब में से निकाले गए चीथड़े अभी तक वहाँ उसी तरह पड़े थे, जिस तरह उन्हें उसने फेंका था। तो फिर... किसी ने वहाँ तलाशी नहीं ली है! फिर उसे उस मोजे की याद आई, जिसके बारे में रजुमीखिन उसे बता रहा था। हाँ, वह वहीं सोफे पर, रजाई के नीचे पड़ा था, लेकिन उस पर इतनी गर्द जम गई थी कि जमेतोव को उस पर कुछ दिखाई नहीं पड़ा होगा।

'ओह हाँ, जमेतोव! ...थाना! ...मुझे थाने क्यों बुलाया गया है? सम्मन कहाँ है? लानत है! मैं सब बातों को एक में मिलाए दे रहा हूँ : वह तो तब की बात है! मैंने तब भी अपने मोजे को देखा था, लेकिन अब... अभी तो मैं बीमारी से उठा हूँ। लेकिन जमेतोव क्यों आया था? रजुमीखिन क्यों उसे लाया था...' वह लाचार हो कर फिर सोफे पर बैठते हुए बुदबुदाया। 'मतलब क्या है इसका? अभी तक मैं अपने होश में नहीं हूँ?, या यह सब सच है मैं समझता हूँ यह सब कुछ सच है... ओह, अब याद आया : मुझे भाग जाना चाहिए! हाँ, मुझे यही करना चाहिए, भाग जाना चाहिए! हाँ... लेकिन कहाँ मेरे कपड़े कहाँ गए? मेरे पास जूते भी नहीं हैं! वे लोग ले गए उन्होंने छिपा दिए सब समझता हूँ मैं! ओह, यह रहा मेरा कोट - यह उनकी नजर से चूक गया! और ये मेज पर पैसे भी रखे हैं, भगवान उनका भला करे! प्रोनोट भी यह रहा। ...मैं पैसे ले कर चला जाता हूँ और रहने की कोई दूसरी जगह किराए पर लिए लेता हूँ। मुझे वे लोग ढूँढ़ नहीं सकेंगे! ...हाँ, लेकिन पतोंवाला दफ्तर वे लोग यकीनन मुझे खोज निकालेंगे, रजुमीखिन मुझे ढूँढ़ लेगा। बेहतर यही होगा कि एकदम भाग लूँ... कहीं बहुत दूर... अमेरिका। फिर चाहे वे अपना सर फोड़ते रहें! और प्रोनोट भी लेता जाऊँ... वहाँ काम आएगा। और क्या-क्या ले जाना है मुझे ये लोग समझते हैं कि बीमार हूँ मैं! उन्हें यह भी नहीं मालूम कि मैं चल-फिर सकता हूँ, ही-ही-ही! उनकी आँखों से तो मुझे लगा गोया उन्हें सब कुछ मालूम है! बस नीचे किसी तरह उतर पाऊँ! और अगर उन्होंने पहरा बिठा रखा हो, पुलिसवाले हों तो! यह क्या है, चाय आह, और यह कुछ बियर भी बची है। आधी बोतल... ठंडी!'

लपक कर उसने बोतल उठा ली, जिसमें अब भी एक गिलास बियर बची हुई थी और उसे गट-गट पी गया जैसे सीने के अंदर कोई आग बुझा रहा हो। लेकिन अगले ही पल बियर उसके सर चढ़ गई, और एक हलकी-सी, बल्कि यूँ कहिए कि सुखद, सिहरन उसकी रीढ़ में दौड़ गई। वह लेट गया और रजाई अपने ऊपर खींच ली। उसके बीमार और बिखरे विचार और भी तितर-बितर थे। जल्दी ही हलकी, सुखद तंद्रा ने उसे आ घेरा। आराम महसूस करते हुए उसने अपना सर तकिए में धँसा लिया। उस नर्म, गुलगुली रजाई को, जिसने उसके फटे-पुराने ओवरकोट का स्थान ले लिया था, उसने अपने शरीर पर और कस कर लपेटा, हलकी-सी आह भरी और गहरी, ताजगी लानेवाली नींद सो गया।

किसी के अंदर आने की आहट सुन कर वह जागा। आँख खोली तो देखा कि रजुमीखिन चौखट पर संकोच में खड़ा है : कि अंदर आए या न आए। रस्कोलनिकोव जल्दी से उठ कर सोफे पर बैठ गया और उसे घूरने लगा, गोया कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो।

'आह तो तुम सो नहीं रहे! मैं आ गया! नस्तास्या, बंडल यहाँ अंदर लाओ!' रजुमीखिन ने सीढ़ियों से नीचे पुकार कर कहा। 'हिसाब मैं तुम्हें अभी दिए देता हूँ।'

'क्या बजा है?' रस्कोलनिकोव ने बेचैनी से चारों ओर देखते हुए पूछा।

'तुम तो अच्छी नींद सोए, जिगर अब तो शाम होने को आई। थोड़ी देर में छह बजनेवाले हैं। तुम छह घंटे से ज्यादा सोए।'

'कमाल हो गया! सचमुच मैं इतना सोया!'

'इसमें गलत ही क्या है अच्छा ही है तुम्हारे लिए। जल्दी भी क्या है किसी से मिलने जाना है या कोई और बात हमारे पास वक्त-ही-वक्त है। मैं पिछले तीन घंटे से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ। ऊपर दो बार आया और देखा, तुम सो रहे हो। दो बार जोसिमोव के यहाँ हो आया, पर वह घर पर नहीं था कोई बात नहीं, आ जाएगा! ...खैर फिर थोड़ी देर के लिए अपने काम से भी गया था। आज मैं घर बदल रहा हूँ, अपने चचा के साथ रहने आ रहा हूँ। अब मेरे साथ मेरे एक चचा रहते हैं। लेकिन छोड़ो यह बात, काम की बात करें! नस्तास्या, मुझे बंडल तो देना। अब तुम्हारा जी कैसा है, जिगर?'

'मैं तो एकदम ठीक हूँ, अब बीमार थोड़े ही हूँ... रजुमीखिन, तुम्हें यहाँ आए क्या बहुत वक्त हो गया?'

'मैंने कहा न, पिछले तीन घंटे से इंतजार कर रहा हूँ।'

'नहीं, अभी नहीं। पहले?'

'मतलब क्या है तुम्हारा?'

'यहाँ तुम कब से आ-जा रहे हो?'

'अरे, सबेरे ही तो तुम्हें सब कुछ बताया। याद भी नहीं?'

रस्कोलनिकोव कुछ सोचने लगा। सुबहवाली बात उसे सपना लग रही थी। कोई याद न दिलाए तो उसे कुछ नहीं याद आ रहा था। रजुमीखिन की तरफ उसने सवालिया नजरों से देखा।

'हूँ!' रजुमीखिन बोला, 'तो भूल गए! मैंने उसी वक्त समझ लिया था कि तुम पूरी तरह होश में नहीं हो। अब थोड़ा सोने के बाद तुम्हारी हालत पहले से बहुत अच्छी है... सचमुच पहले से बहुत अच्छे नजर आ रहे हो। बहुत बढ़िया! खैर, अब कुछ तो काम की बात! अभी सब कुछ याद आ जाएगा। यह देखो, जिगर।'

उसने बंडल खोलना शुरू किया। साफ लग रहा था कि इस काम में वह भारी दिलचस्पी ले रहा था।

'यकीन जानो, यार, यह एक ऐसी बात है, जो खास मेरे अपने दिल की बात है, क्योंकि तुमको इनसान बनाना हमारा काम है। तो आओ, ऊपर से शुरू करते हैं। यह टोपी देखी?' उसने बंडल से सस्ती और मामूली-सी पर काफी अच्छी टोपी निकाली। 'आओ, आजमा कर तो देखूँ।'

'थोड़ी देर बाद,' रस्कोलनिकोव ने चिड़चिड़ा कर उसे दूर हटाते हुए कहा।

'आओ भी यार, जिद न करो। बाद में बहुत देर हो जाएगी और मुझे सारी रात नींद नहीं आएगी, क्योंकि इसे मैंने अंदाजे से बिना नाप के खरीदा है। एकदम ठीक!' उसे टोपी पहनाते हुए वह जोर से चिल्लाया जैसे कोई मैदान मार लिया हो, 'ठीक तुम्हारे नाप की है! लिबास में पहली बात देखने की यह होती है कि सर पर पहनने की चीज ठीक हो। एक तरह से आदमी की पहचान उसी से होती है। मेरा एक दोस्त है, तोल्स्त्याकोव। जब भी किसी ऐसी जगह जाता है, जहाँ सभी लोग हैट या टोपियाँ पहने रहते हैं, तो उसे हमेशा अपना तसला उतार लेना पड़ता है। लोग समझते हैं कि वह दासों जैसी विनम्रता के कारण ऐसा करता है, लेकिन इसकी सीधी-सी वजह यह है कि उसे अपने उस चिड़िया के घोंसले पर शर्म आती है। ऐसा झेंपू आदमी है कि बस! देखो, नस्तास्या, ये रहे टोपियों के दो नमूने : यह पामर्स्टन हैट,' यह कह कर उसने कोने में से रस्कोलनिकोव की पुरानी टूटी हुई हैट उठाई, जिसे वह न जाने क्यों पामर्स्टन कहता था, 'और यह नगीना! कीमत का अंदाजा लगाओ, रोद्या... तुम्हारा क्या खयाल है नस्तास्या, मैंने इसके क्या दाम दिए होंगे' यह देख कर कि रस्कोलनिकोव कुछ नहीं बोला, उसने नस्तास्या की ओर मुड़ कर पूछा।

'ज्यास्ती से ज्यास्ती बीस कोपेक, मैं दावों के साथ कह सके हूँ,' नस्तास्या ने जवाब दिया।

'बीस कोपेक... बेवकूफ कहीं की!' वह झुँझला कर जोर से चिल्लाया। 'अरे, आजकल तो तेरा ही मोल इससे ज्यादा होगा। ...अस्सी कोपेक! और वो भी इसलिए कि सेकेंड-हैंड है। यह इस जमानत पर खरीदी गई है कि फट जाएगी तो अगले साल वे लोग दूसरी टोपी मुफ्त में देंगे। हाँ, मेरी बात मानो! खैर, अब आओ अमेरिका के नक्शे पर, जैसा कि हम लोग स्कूल में कहा करते थे। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि मुझे इस पर बहुत नाज है,' यह कह कर उसने रस्कोलनिकोव को ऊनी कपड़े की स्लेटी हलकी, गर्मी में पहनने की एक पतलून दिखाई। 'न कोई सूराख, न कहीं धब्बा और देखने में बहुत शरीफाना लगती है, हालाँकि थोड़ी पहनी हुई है। और यह रही इसी के जोड़ की वास्कट, एकदम आजकल के फैशन के मुताबिक से। यह थोड़ी-सी पहनी हुई होने की वजह से तो और भी अच्छी हो गई है, ज्यादा नर्म और मुलायम। देखो रोद्या, मैं समझता हूँ कि इस दुनिया में निभाने के लिए सबसे बड़ी जरूरत इसकी है कि आदमी मौसम के हिसाब से चले। अगर जनवरी में खाने का शौक नहीं तो पैसे बचा कर बटुए में रखो। यही बात इस सौदे के बारे में सच है। आजकल गर्मी है, इसलिए मैं गर्मी की चीजें खरीद कर लाया हूँ। पतझड़ में इससे ज्यादा गर्म कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, तब ये चीजें यों भी फेंक ही देनी पड़ेंगी... अगर तुम्हारा ऐश-आराम का स्तर ऊँचा हो जाने की वजह से न भी हो तो भी खास तौर पर इसलिए कि खुद इनमें इतना कसाव बाकी नहीं रहेगा। अच्छा, इनकी कीमत लगाओ! सिर्फ दो रूबल पच्चीस कोपेक! वह जमानत याद रहे : अगर पहनते-पहनते फट जाएँ तो अगले साल दूसरा मुफ्त मिलेगा! इस तर्ज का कारोबार सिर्फ फेद्यायेव के यहाँ होता है : एक बार कोई चीज खरीद ली तो उमर-भर की तसल्ली, क्योंकि अपनी मर्जी से तो आप फिर वहाँ जाने से रहे! अब जूतों पर आइए। क्या कहते हो थोड़े से घिसे हुए तो हैं लेकिन दो-चार महीने चल जाएँगे। इसलिए कि विलायती कारीगर का काम है, और चमड़ा भी विलायती है। इंगलैंड की एंबेसी के सेक्रेटरी ने पिछले हफ्ते बेचे थे। उसने इन्हें महज छह दिन पहना लेकिन फिर उसे पैसों की तंगी हो गई। कीमत-डेढ़ रूबल। है न किस्मत की बात?'

'लेकिन शैद इसका पाँव में ठीक नहीं आएगा,' नस्तास्या ने अपनी राय दी।

'ठीक नहीं आएँगे!' रजुमीखिन ने अपनी जेब से रस्कोलनिकोव का पुराना, टूटा हुआ जूता निकाला जिस पर कीचड़ की पर्त जमी हुई थी। 'खाली हाथ नहीं गया था मैं, इस जिन्नाती जूते से नाप कर दिया उन लोगों ने। हम सबने अपने तरफ से अच्छे से अच्छा माल लाने की कोशिश की है। रहा तुम्हारे दूसरे कपड़ों का सवाल, तो तुम्हारी मकान-मालकिन ने उसका बंदोबस्त कर दिया है। ये लो, पहले तो यह रहीं तीन कमीजें, हैं तो मोटे कपड़े की लेकिन अगला बाजू बहुत फैशनेबुल है... तो अब, अस्सी कोपेक टोपी के; दो रूबल पच्चीस कोपेक सूट के... तो कुल मिला कर हुए तीन रूबल पाँच कोपेक, डेढ़ रूबल जूतों के क्योंकि देखो तो सही, हैं बहुत बढ़िया... तो ये हो गए चार रूबल पचपन कोपेक। पाँच रूबल अंदर पहनने के कपड़ों के जो थोक भाव से खरीदे गए थे। इनको मिला कर हुए पूरे नौ रूबल पचपन कोपेक। और यह रही पैंतालीस कोपेक की रेजगारी... ताँबे के सिक्कों में। तो रोद्या, अब तुम्हारा सारा पहनावा-लिबास हो गया नया। तुम्हारा ओवरकोट तो अभी काम देगा, और उसकी है भी अपनी एक अलग शान। यही होता है जब आदमी शार्मेर के यहाँ से कपड़ा खरीदता है! रहा तुम्हारे मोजों और दूसरी चीजों का सवाल, तो वह तुम्हारे ऊपर छोड़ा; अभी हमारे पास पच्चीस रूबल बचे हैं। जहाँ तक पाशेंका की और यहाँ रहने के पैसे देने की बात है, तुम उसकी चिंता न करो। मैं कहता हूँ, वह तुम्हारा किसी चीज के लिए भरोसा कर लेगी। और अब जिगर, तुम्हारे कपड़े बदलवा दूँ, क्योंकि मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि कमीज उतार कर फेंकते ही तुम्हारी बीमारी भी छू हो जाएगी।'

'रहने दो! मुझे नहीं चाहिए!' रस्कोलनिकोव ने उसके मश्विरे को रद्द कर दिया। रजुमीखिन अपनी खरीदारी के बारे में जिस तरह मसखरेपन की बातें कर रहा था, उसे उसने बहुत खीझ कर सुना था।

'उठो भी यार, तुम्हें छोड़ जाऊँ, यह तो होने से रहा। यह तो मत कहना, मैं बेकार इतनी देर अपनी टाँगे घिसता रहा,' रजुमीखिन ने जोर दे कर कहा।

'शर्माओ नहीं नस्तास्या, आ कर मेरी मदद करो... यह हुई न बात,' रस्कोलनिकोव के विरोध के बावजूद उसकी कमीज उसने बदलवा ही दी। रस्कोलनिकोव ने अपना सर फिर तकियों से धँसा लिया और एक-दो पल तक कुछ नहीं बोला।

'इनसे पिंड छुड़ाने में बहुत वक्त लगेगा,' उसने सोचा। 'यह सब कुछ खरीदा गया है तो पैसा कहाँ से आया?' उसने आखिरकार दीवार को घूरते हुए पूछा।

'पैसा क्यों, तुम्हारा ही पैसा था, वही जो वाखरूशिन का आदमी लाया था, जो तुम्हारी माँ ने भेजा है। यह भी भूल गए?'

'याद आया,' रस्कोलनिकोव ने देर तक उदासी के साथ चुप रहने के बाद कहा। रजुमीखिन माथे पर तेवर लिए बेचैनी से उसे देखता रहा।

इतने में दरवाजा खुला और एक तगड़ा आदमी अंदर आया रस्कोलनिकोव को उसकी कुछ सूरत पहचानी-पहचानी लग रही थी।

'जोसिमोव! आ गए आखिर!' रजुमीखिन खुशी से चिल्लाया।