अपराध और दंड / अध्याय 2 / भाग 4 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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जोसिमोव एक लंबा और मोटा-सा शख्स था। फूला-फूला, बेरंग, सफाचट चेहरा और सीधे, सन जैसे बाल। चश्मा लगाता था और अपनी मोटी-सी उँगली पर सोने की एक बड़ी-सी अँगूठी पहनता था। वह सत्ताईस साल का था। वह हलके सुर्मई रंग का फैशनेबुल ढीला-ढीला कोट और गर्मियोंवाला हल्का पतलून पहने हुए था। उसकी हर चीज ढीली-ढाली, फैशनेबुक और एकदम नई थी। कमीज पर कोई उँगली नहीं उठा सकता था; घड़ी की चेन भी भारी-भरकम थी। वह एक सुस्त और बहुत कुछ लापरवाह शख्स था, लेकिन साथ ही उसमें बहुत कोशिश से पैदा की हुई बेतकल्लुफी और बेबाकी भी थी। वह अपने गुरूर को छिपाने की कोशिश तो करता था, लेकिन हर क्षण वह उभर कर सामने आ जाता था। जान-पहचानवाले सभी लोग उसे टेढ़ा आदमी समझते थे, लेकिन यह जरूर मानते थे कि वह अपने काम में होशियार था।

'यार, आज मैं तुम्हारे यहाँ दो बार गया। देख रहे हो न, इसे होश आ गया है,' रजुमीखिन जोश से बोला।

'हाँ, हाँ, और अब कैसा जी है, क्यों?' जोसिमोव ने रस्कोलनिकोव को ध्यान से देखते हुए, और सोफे के सिरे पर जितने भी आराम से मुमकिन हो सका, बैठते हुए, उससे पूछा।

'अभी भी तबीयत कुछ गिरी हुई ही है,' रजुमीखिन कहता रहा। 'अभी हमने इसके कपड़े बदलवाए तो लगभग रो पड़ा।'

'यह तो समझ की बात है : अगर इसका जी नहीं चाह रहा था तो न बदलवाते। नब्ज तो बहुत बढ़िया चल रही है। सर में दर्द अब भी है, क्यों?'

'मैं ठीक हूँ, एकदम ठीक हूँ!' रस्कोलनिकोव ने भरोसे के साथ और कुछ चिढ़ कर कहा। वह सोफे पर थोड़ा-सा उठा और उन्हें चमकती हुई आँखों से देखने लगा, लेकिन फिर फौरन ही तकिए में सर धँसा कर दीवार की ओर मुँह कर लिया। जोसिमोव गौर से उसे देखता रहा।

'बहुत अच्छा है... ठीक जा रहा है जैसा जाना चाहिए' उसने अलसाए स्वर में कहा। 'कुछ खाया?'

उन लोगों ने बताया और फिर पूछा कि खाने को क्या-क्या दिया जा सकता है।

'कुछ भी खा सकता है... सूप, चाय... अलबत्ता मशरूम और खीरा न देना। अच्छा हो कि अभी गोश्त भी न खाएँ, और... लेकिन वह बताने की तो तुम्हें कोई जरूरत नहीं!' रजुमीखिन और जोसिमोव ने एक-दूसरे को देखा। 'अब कोई दवा या कोई और चीज नहीं देनी। मैं कल फिर देखने आऊँगा। शायद, आज ही आऊँ... लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं है...'

'मैं इसे कल शाम टहलाने ले जाऊँगा,' रजुमीखिन ने कहा। 'हम लोग युसूपोव बाग जाएँगे, फिर रंगमहल जाएँगे।'

'मेरी राय में कल तो इसे एकदम न छेड़ा जाए, लेकिन मैं ठीक से कह नहीं सकता... हो सकता है थोड़ा-सा चलने में कोई हर्ज न हो... खैर, कल की कल देखेंगे।'

'यह तो दिल दुखानेवाली बात हुई। आज मैंने गृह-प्रवेश की दावत रखी है। यहाँ से बस दो कदम पर। इसे नहीं ले जा सकते वहीं सोफे पर लेटा रहेगा। तुम तो आ रहे रहो न?' रजुमीखिन ने जोसिमोव से कहा। 'भूलना नहीं, तुमने वादा किया था।'

'अच्छी बात है, लेकिन आऊँगा जरा देर से। क्या-क्या कर रखा है?'

'कुछ नहीं यार, यही चाय, वोद्का, नमक-लगी मछली। एक केक होगा... बस हमारे दोस्त होंगे।'

'कौन-कौन?'

'सब यहीं के रहनेवाले हैं और लगभग सभी नए हैं। मेरे बूढ़े चाचा को छोड़ कर... और वह भी तो नए ही हैं... अपने किसी काम के सिलसिले में अभी कल ही तो पीतर्सबर्ग आए हैं। हम लोगों की मुलाकात पाँच बरस में कहीं एक बार होती है।'

'करते क्या हैं?'

'उमर भर जिला पोस्टमास्टर की नौकरी में सड़ते रहे, अब थोड़ी-बहुत पेंशन मिलती है। पैंसठ के हैं... कोई खास बात उनके बारे में चर्चा करने लायक नहीं है... लेकिन मुझे उनसे बहुत लगाव है। पोर्फिरी पेत्रोविच भी आएगा। यहाँ की छानबीन करनेवाला अफसर, कानून का ग्रेजुएट... उसे तो जानते हो तुम।'

'वह भी रिश्तेदार है तुम्हारा?'

'बहुत दूर का। तुम इस तरह मुँह क्यों बना रहे हो एक बार कभी उससे झगड़ा हो गया था, इसलिए तुम नहीं आओगे, क्यों?'

'मैं उसकी रत्ती बराबर परवाह नहीं करता!'

'तब तो और अच्छी बात है। फिर कुछ लड़के होंगे, एक मास्टर, एक सरकारी क्लर्क, एक गानेवाला, एक अफसर, और जमेतोव।'

'अच्छा, यह बताओ, जमेतोव से तुम्हारा या इसका,' जोसिमोव ने सिर हिला कर रस्कोलनिकोव की तरफ इशारा किया, 'क्या साथ है!'

'आह रे तुम शरीफ लोग! भाड़ में गए तुम्हारे सिद्धांत। बँधे हुए हो तुम लोग उनसे, कमानियों की तरह। तुम लोग अपने आप तो घूमने की हिम्मत भी नहीं कर सकते। मेरा तो यह सिद्धांत है कि आदमी भला हो और इतना ही काफी है। जमेतोव बहुत ही उम्दा आदमी है।'

'रिश्वत लेना पसंद करता है।'

'अच्छा, लेता है, तो! क्या होता है उससे वह अगर रिश्वत लेता भी है तब भी इसकी मुझे परवाह नहीं,' रजुमीखिन बेहद चिढ़ कर, जोर से बोला। 'रिश्वत लेने के लिए मैं उसकी तारीफ तो नहीं करता, पर इतना कहूँगा कि अपने ढंग का बहुत अच्छा आदमी है! अब अगर हर आदमी को हर पहलू से देखा जाए... तो कितने आदमी अच्छे बचेंगे मैं तो समझता हूँ, मुझे कोई एक टके को भी नहीं पूछेगा, और पूछेगा तो तभी जब तुम्हें मुफ्त जोड़ दिया जाए।'

'यह तो बहुत कम है। मैं ही तुम्हारे दो देने को तैयार हूँ।'

'और मैं तुम्हारे लिए एक से ज्यादा न दूँ। अच्छा, बस अब अपने ये मजाक रहने दो! जमेतोव अभी कल का लड़का है, मैं उसके कान खींच सकता हूँ, और आदमी को दूर नहीं भगाना चाहिए, अपनी ओर लाना चाहिए। दूर भगा कर आप किसी आदमी को नहीं सुधार सकते, खास तौर पर अगर वह अभी लड़का हो। लड़के के साथ तो और भी सावधानी बरतनी पड़ती है। तुम प्रगतिशील बुद्धू लोग तुम कुछ नहीं समझते। दूसरे आदमी की निंदा करके तुम अपने आपको नुकसान पहुँचाते हो... लेकिन अगर जानना ही चाहते हो तो सुनो, हम लोग मिल कर एक काम कर रहे हैं।'

'मैं जानना चाहूँगा कि वह क्या है।'

'कुछ नहीं यार, एक घर की पुताई करनेवाले का मामला है... झंझट में फँस गया था, हम लोग उसे छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं, हालाँकि अब कोई डरने की बात नहीं। मामला एकदम साफ है! हमें बस थोड़ा-सा जोर लगाना होगा।'

'किस पुताई करनेवाले की बात करते हो?'

'क्यों, मैंने तुम्हें उसके बारे में बताया नहीं था तो फिर मैंने तुमको चीजें गिरवी रखनेवाली उस बुढ़िया के कत्ल के बारे में शुरू का किस्सा ही बताया होगा। इसी में वह पुताई करनेवाला फँस गया है...'

'उस कत्ल के बारे में तो मैंने पहले भी सुना था और मुझे उसमें कुछ दिलचस्पी भी पैदा हुई थी... कुछ-कुछ... एक खास वजह से... मैंने उसके बारे में अखबारों में भी पढ़ा था! लेकिन...'

'लिजावेता का भी तो कतल होएला है,' नस्तास्या भी अचानक रस्कोलनिकोव को संबोधित करते हुए बोली। वह तमाम वक्त दरवाजे के पास खड़ी सब सुनती आ रही थी।

'लिजावेता' रस्कोलनिकोव इतने धीरे-से बुदबुदाया कि मुश्किल से ही कोई सुन सकता था।

'वही, जो पुराना कपड़ा बेचेली थी। तुम उसे जानता नहीं था क्या? यहाँ भी आया करे थी। तुम्हारा एक कमीज भी मरम्मत किएली थी उसने।'

रस्कोलनिकोव ने दीवार की ओर मुँह कर लिया और मैले, पीले कागज पर छपे एक भद्दे से सफेद फूल को ताक कर, कि जिस पर कत्थई लकीरें बनी थीं, वह यह देखने लगा कि उसमें कितनी पत्तियाँ हैं, पत्तियों में कितने कंगूरे हैं और उन पर कितनी लकीरें हैं। उसे अपनी बाँहें और टाँगें बेजान लग रही थीं, जैसे शरीर से काट कर अलग कर दी गई हों। उसने हिलने-डुलने की कोई कोशिश नहीं की, बस एकटक उस फूल को घूरता रहा।

'लेकिन उस पुताई करनेवाले का क्या हुआ?' नस्तास्या की बकबक को बीच में काट कर जोसिमोव ने खुली नाराजगी के साथ कहा। वह आह भर कर चुप हो गई।

'यार, उस पर तो कत्ल का इल्जाम लगाया गया था,' रजुमीखिन उत्तेजित हो कर बोलता रहा।

'तो उसके खिलाफ कोई सबूत रहा होगा?'

'सबूत की भी अच्छी कही! सबूत ऐसा था जो कोई सबूत ही नहीं था, और यही हमें साबित करना था! बिलकुल वैसे ही जैसे उन लोगों ने शुरू में कोख और पेस्त्र्याकोव को धर लिया था। छिः! कितनी बेवकूफी से यह सब काम किया जाता है... मतली होने लगती है, हालाँकि हमारा कोई लेना-देना नहीं है इस बात से! पेस्त्र्याकोव शायद आज रात को आए... अरे हाँ, रोद्या, तुमने तो इस मामले के बारे में सुना होगा। यह तुम्हारे बीमार पड़ने से पहले की बात है। जब वे लोग उसके बारे में थाने में बातें कर रहे थे और तुम बेहोश हो गए थे, उससे बस एक दिन पहले की।'

जोसिमोव बड़ी जिज्ञासा से रस्कोलनिकोव को देखता रहा। रस्कोलनिकोव हिला तक नहीं।

'मैं तो कहता हूँ, रजुमीखिन, मुझे तुम्हारे ऊपर हैरत होती है। जरूरत से ज्यादा जोश दिखाते हो तुम!' जोसिमोव ने अपना विचार व्यक्त किया।

'हो सकता है, लेकिन हम लोग उसे छुड़ा कर दम लेंगे,' मेज पर मुक्का मार कर जोर से चिल्लाया। 'रजुमीखिन सबसे ज्यादा बुरी जो बात लगती है, यह नहीं है कि वे झूठ बोलते हैं। झूठ बोलने को तो हमेशा माफ किया जा सकता है, झूठ बोलना तो अच्छी बात है क्योंकि उसी के सहारे हम सच्चाई तक पहुँचते हैं... बुरी लगनेवाली बात यह है कि वे झूठ बोलते हैं और अपने झूठ बोलने को सराहते हैं, उसकी पूजा करते हैं... मैं पोर्फिरी की इज्जत करता हूँ, लेकिन... उन्हें सबसे पहले किस बात ने चक्कर में डाला दरवाजा बंद था, और जब वे दरबान को ले कर लौटे तो दरवाजा खुला था। इससे नतीजा यह निकला कि कोख और पेस्त्र्याकोव ने कत्ल किया है... यह थी उनकी दलील!'

'ज्यादा ताव न खाओ। उन्हें उन लोगों ने सिर्फ पकड़ा ही तो था, और यह तो उन्हें करना ही पड़ता... और हाँ, मैं इस कोख से मिल चुका हूँ। वह उस बुढ़िया से गिरवी रखी हुई ऐसी चीजें खरीदता था जिन्हें छुड़ाया न गया हो, है न?'

'हाँ, वह जालिया है। प्रोनोट भी खरीदता है। उसका धंधा यही है। लेकिन उसकी बात छोड़ो! जानते हो, मुझे गुस्सा किस बात पर आता है उनकी उस घिनौनी, सड़ी हुई, घिसी-पिटी खानापूरी पर... और यह मामला कोई नया तरीका लागू करने की बुनियाद बन सकता है। हम मनोवैज्ञानिक तथ्यों के सहारे ही बता सकते हैं कि असली आदमी का पता कैसे लगाया जाए। 'हमारे पास तथ्य हैं,' वे लोग कहते हैं। लेकिन तथ्य ही तो सब कुछ नहीं होते-कम से कम आधा दारोमदार तो इस बात पर होता है कि उन तथ्यों का मतलब किस तरह निकाला जाता है!'

'तो तुम जानते हो कि उनका मतलब कैसे निकालें?'

'बहरहाल, आदमी अगर यह महसूस करता हो, और ठोस बुनियाद पर महसूस करता हो कि वह शायद कुछ मदद कर सकता है, अपनी जबान तो नहीं बंद रख सकता अगर सिर्फ... क्यों तुम्हें पूरा किस्सा मालूम है?'

'मैं तो यह सुनने की राह देख रहा हूँ कि उस पुताई करनेवाले का क्या हुआ।'

'हाँ! तो वह किस्सा इस तरह है। कत्ल के तीसरे दिन सबेरे, जब वे अभी भी कोख और पेस्त्र्याकोव को रगड़ रहे थे - हालाँकि उन्होंने अपने एक-एक कदम का पूरा हिसाब दे दिया था और बात बिल्कुल साफ हो चुकी थी! - अचानक एक ऐसी बात सामने आई जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था। दूश्किन नाम का एक किसान, जो उसी घर के सामने एक शराबखाना चलाता है, थाने में जेवर की एक डिबिया ले कर आया, जिसमें कानों की कुछ बालियाँ थीं। तो उसने एक लंबा-चौड़ा किस्सा सुनाया। 'परसों शाम को, ठीक आठ बजे के बाद' - दिन और वक्त पर जरा ध्यान दीजिए! - 'घरों की पुताई करनेवाला मिकोलाई, एक मामूली मजदूर, जो उस दिन पहले भी मेरे यहाँ आ चुका था, सोने की बालियों और नगीनों की यह डिबिया ले कर आया, और मुझसे कहने लगा कि उसे इसके दो रूबल दे दूँ। जब मैंने उससे पूछा कि ये चीजें उसे कहाँ मिलीं, तो उसने बताया कि सड़क पर पड़ी पाई हैं। मैंने उससे ज्यादा कुछ नहीं पूछा।' यह तुम्हें दूश्किन का बयान किया हुआ किस्सा बता रहा हूँ मैं। 'मैंने उसे एक नोट दिया' - यानी, एक रूबल - 'क्योंकि मैंने सोचा अगर मेरे पास नहीं तो किसी और के पास गिरवी रखेगा। बात तो वही होगी - पैसा तो वह दारू में ही उड़ाएगा, तो चीज मेरे ही पास रहे तो क्या बुरा है। जितना ही छिपाओ उतनी ही जल्दी उसका पता लगेगा, और अगर कोई ऐसी-वैसी बात हुई, अगर मैंने कोई उड़ती हुई बात सुनी, तो सारी चीजें ले कर पुलिस के पास चला जाऊँगा। 'जाहिर है, यह सब उसकी गप है; साफ झूठ बोलता है और पलक तक नहीं झपकाता। मैं इस दूश्किन को अच्छी तरह जानता हूँ; चीजें गिरवी रखता है, चोरी का माल खरीदता है, और उसने तीस रूबल का वह माल मिकोलाई को झाँसा दे कर इसलिए नहीं हथियाया था कि आखिर में ले जा कर पुलिस को दे दे, सो वह डर गया। खैर, दूश्किन का किस्सा सुनो। 'मैं इस किसान मिकोलाई देमेंत्येव को बचपन से जानता हूँ; वह भी हमारे प्रांत और उसी जरायस्क जिले का रहनेवाला है; हम दोनों रियाजान के हैं। यह मिकोलाई शराबी तो नहीं मगर थोड़ी-बहुत पी लेता है, और मैं जानता था कि वह उस घर में मित्रेई के साथ पुताई का काम कर रहा है। मित्रेई भी उसी गाँव का रहनेवाला है। रूबल पाते ही उसे उसने भुनाया, दो-एक गिलास पी और बाकी पैसे ले कर चलता बना। उस वक्त मैंने मित्रेई को उसके साथ नहीं देखा था। पर अगले दिन मैंने सुना कि अल्योना इवानोव्ना और उसकी बहन लिजावेता इवानोव्ना को किसी ने कुल्हाड़ी से कत्ल कर दिया है। हम लोग उन्हें जानते थे और मुझे फौरन उन बालियों के बारे में शक हुआ क्योंकि मुझे पता था कि जो औरत मारी गई थी, वह सामान गिरवी रख कर कर्ज देती थी। मैं उस घर में गया, और किसी से कुछ कहे बिना बड़ी सावधानी से पूछताछ करने लगा। सबसे पहले मैंने पूछा : 'मिकोलाई है? मित्रेई ने मुझे बताया कि मिकोलाई कहीं मौज कर रहा है; वह भोर पहर शराब पिए हुए घर आया था, वहाँ कोई दस मिनट रुका होगा और फिर निकल गया। उसके बाद मित्रेई ने उसे नहीं देखा और अब अकेले ही काम पूरा कर रहा है। वे लोग जिस फ्लैट में काम कर रहे थे। वह भी उन्हीं सीढ़ियों पर है जहाँ कत्ल हुआ था, दूसरी मंजिल पर। मैंने जब यह सब सुना तो किसी से कुछ भी नहीं कहा - यह दूश्किन का कहना है - 'लेकिन उस कत्ल के बारे में जो कुछ भी मैं पता लगा सका, मैंने लगाया और पहले की तरह ही शक में डूबा हुआ घर चला गया। और आज सबेरे आठ बजे' - वह तीसरा दिन था, आप समझ रहे हैं न - 'मैंने मिकोलाई को अंदर आते देखा। पूरी तरह होश में तो नहीं था, लेकिन सच पूछिए तो बहुत पिए हुए भी नहीं था - जो बात उससे कही जाती थी, उसे समझ लेता था। वह बेंच पर बैठ गया और कुछ नहीं बोला। शराबखाने में उस वक्त बस एक अजनबी था। एक और आदमी, जिसे मैं जानता था, बेंच पर सो रहा था और हमारे यहाँ काम करनेवाले दो छोकरे थे। 'तुमने मित्रेई को देखा है मैंने पूछा। 'नहीं, मैंने तो नहीं देखा,' वह बोला। 'और यहाँ भी तुम नहीं आए 'परसों के बाद नहीं,' वह बोला। 'और कल रात तुम सोए कहाँ थे 'पेस्की में।' 'तो कानों की बालियाँ तुम्हें कहाँ मिली थीं मैंने पूछा। 'मुझे सड़क पर पड़ी मिली थीं।' पर जिस तरह यह बात उसने कही, वह मुझे कुछ अजीब लगी। उसने मेरी ओर देखा भी नहीं। 'तुमने कुछ सुना है कि उसी दिन शाम को, उसी वक्त, उन्हीं सीढ़ियों पर क्या हुआ था मैंने पूछा। 'नहीं,' वह बोला, 'मैंने तो कुछ नहीं सुना।' वह जितनी देर ये सारी बातें सुनता रहा, उसकी आँखें अपने गड्ढों में से बाहर निकली पड़ रही थीं और रंग एकदम चूने की तरह सफेद पड़ गया था। मैंने उसे सारी बात बताई और वह अपना हैट उठा कर चल पड़ा। मैं उसे वहीं रोके रखना चाहता था। 'जरा ठहरो मिकोलाई,' मैंने कहा, 'कुछ पियोगे नहीं और मैं छोकरे को दरवाजा रोके रहने का इशारा करके गल्ले के पीछे से निकल कर बाहर आ गया। मगर वह तीर की तरह सड़क पर निकल गया और भागता हुआ मोड़ पर पहुँच कर गली में गायब हो गया। तब मेरे सारे शक दूर हो गए। यह उसी की हरकत थी, इसमें अब कोई शक ही नहीं रह गया था...'

'सो तो है,' जोसिमोव ने कहा।

'ठहरो, पूरी बात सुन लो। जाहिर है कि उन लोगों ने मिकोलाई को ढूँढ़ने के लिए कुओं में बाँस डलवा दिए, दूश्किन को पकड़ कर थाने ले जाया गया, उसके घर की तलाशी ली गई; मित्रेई को भी गिरफ्तार कर लिया गया, जहाँ उसने रात गुजारी थी, उसे उलट-पलट कर दिया गया। फिर उन लोगों ने मिकोलाई को परसों शहर के छोर पर एक शराबखाने में गिरफ्तार किया। वहाँ उसने गले से चाँदी का सलीब उतार कर उसके बदले थोड़ी-सी शराब माँगी थी। उन लोगों ने शराब उसे दे दी। कुछ ही मिनट बाद शराबवाले की औरत मवेशी बाँधने की छप्पर में गई, और वहाँ उसने दीवार की एक दरार में से देखा कि बगलवाले अस्तबल में उसने छत की शहतीर में कमरबंद बाँध कर एक फंदा बना रखा है और लकड़ी के एक कुंदे पर खड़ा हो कर उस फंदे में गर्दन फँसाने की कोशिश कर रहा है। पूरा जोर लगा कर वह औरत चीखी; लोग भाग कर वहाँ पहुँचे। 'तो अब पता चली तुम्हारी असलियत!' 'मुझे ले चलो', वह बोला, 'फलाँ थाने में; मैं सब कुछ सच-सच बता दूँगा।' तो उसे कुछ लोगों की निगरानी में थाने से जाया गया - मतलब कि यहाँ लाया गया। उससे इधर-उधर की बहुत-सी बातें पूछी गईं। 'क्या उम्र है, बाईस साल, वगैरह-वगैरह। जब उससे पूछा गया, 'जब तुम मित्रेई के साथ काम कर रहे थे, तब तुमने किसी को फलाँ वक्त सीढ़ियों पर देखा था, तब उसने जवाब दिया : 'लोग जरूर ऊपर-नीचे आते-जाते रहे होंगे, लेकिन मैंने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया।' 'तुमने कुछ सुना भी नहीं, कोई शोर वगैरह? 'हमने कोई खास बात नहीं सुनी।' 'और, मिकोलाई, तुमने क्या यह सुना कि उसी दिन फलाँ विधवा और उसकी बहन का कत्ल हुआ था और उन्हें लूट लिया गया था? 'मुझे उसके बारे में रत्ती भर भी कुछ नहीं मालूम था। इसके बारे में मैंने पहली बार परसों ही अफनासी पाव्लोविच से सुना।' 'ये कानों की बालियाँ तुम्हें कहाँ मिली थीं? 'सड़क की पटरी पर पड़ी पाई थीं।' 'अगले दिन तुम मित्रेई के साथ काम करने क्यों नहीं गए थे? 'इसलिए कि शराब पी रहा था।' 'और शराब कहाँ पी रहे थे? 'अरे, फलाँ जगह।' 'पर तुम दूश्किन के यहाँ से भाग क्यों आए थे? इसलिए कि बहुत डर लग रहा था।' 'तुम्हें डर किस बात का लग रहा था? 'कि मुझी पर इल्जाम लगाया जाएगा।' 'जब तुम्हारा कोई कुसूर नहीं था तो फिर तुम्हें डर कैसे लग रहा था? अब तो जोसिमोव, तुम मेरी बात पर यकीन करो या न करो लेकिन यह सवाल हू-ब-हू इन्हीं शब्दों में पूछा गया था। मैं इस बात को पक्की तरह जानता हूँ : वह सवाल ज्यों का त्यों मेरे सामने दोहराया गया था! इसके बारे में क्या कहते हो?'

'बहरहाल, कुछ सबूत तो है।'

'मैं अभी सबूत की बात नहीं कर रहा हूँ, उस सवाल की बात कर रहा हूँ, वे लोग खुद अपने बारे में जो कुछ समझते हैं, उसकी बात कर रहा हूँ। खैर, वे लोग उसे रगड़ते रहे, रगड़ते रहे, यहाँ तक कि आखिरकार उसने मान लिया : 'मुझे सड़क पर नहीं मिली थीं बल्कि उस फ्लैट में मिली थीं जहाँ मैं मित्रेई के साथ काम कर रहा था।' 'मतलब 'मतलब यह कि मित्रेई और मैं दिन भर पुतार्ई करते रहे और काम खतम करके हम लोग चलने की तैयारी कर रहे थे कि मित्रेई ने ब्रश ले कर मेरे मुँह पर रंग लगा दिया। फिर वह भागा और उसके पीछे मैं भागा। मैं पूरी ताकत से चिल्लाता हुआ उसके पीछे भागा, और सीढ़ियों के नीचे पहुँच कर मेरी मुठभेड़ सीधे दरबान से और कुछ और भलेमानुसों से हो गई... कितने लोग थे, यह मुझे याद नहीं। दरबान ने मुझे गाली दी, दूसरे दरबान ने भी गाली दी, दरबान की औरत बाहर निकल आई, और वह भी हम लोगों को गालियाँ देने लगी। एक साहब इतने में एक मेम साहब को साथ लिए अंदर आए, और उन्होंने भी हमें गालियाँ दीं क्योंकि मित्रेई और मैं बीच रास्ते में पड़े हुए थे। मित्रेई के बाल मेरे हाथ में आ गए थे; मैंने उसे पटक दिया था और उसे पीट रहा था। उधर मित्रेई ने भी मेरे बाल पकड़ रखे थे और मुझे मारने लगा था। लेकिन हम यह सब गुस्से में आ कर नहीं कर रहे थे, बल्कि दोस्तों की तरह, खिलवाड़ कर रहे थे। और उसके बाद मित्रेई हाथ छुड़ा कर सड़क पर भागा। मैं भी उसके पीछे भागा लेकिन उसे पकड़ नहीं पाया और फ्लैट में अकेला ही वापस चला गया; मुझे अपना सामान समेटना था। मैं सारी चीजें समेट कर रखने लगा, यह सोच कर कि मित्रेई आएगा; कि उसी वक्त मेरा पाँव दरवाजे के पासवाले कोने में डिबिया पर पड़ा। मैंने देखा कि कागज में लिपटी हुई कोई चीज पड़ी है। मैंने कागज उतारा तो कुछ छोटी-छोटी कंटियाँ दिखाई दीं; मैं खोला तो देखा कि डिबिया में कानों की बालियाँ थीं...'

'दरवाजे के पीछे, ठीक दरवाजे के पीछे क्या कहा, दरवाजे के पीछे...' अचानक रस्कोलनिकोव जोर से चीखा, आतंक भरी सूनी-सूनी नजरों से रजुमीखिन को घूरता रहा और धीरे-धीरे हाथ का सहारा ले कर सोफे पर बैठ गया।

'हाँ... तो फिर बात क्या है हुआ क्या?' रजुमीखिन भी अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ।

'कुछ नहीं,' रस्कोलनिकोव ने फिर तकिए पर सर टिका कर, दीवार की ओर मुँह फेरते हुए धीमी आवाज में जवाब दिया कुछ देर तक सभी चुप रहे।

'आँख लग गई है... शायद सोते में बड़बड़ाया होगा,' आखिरकार रजुमीखिन ने सवालिया नजरों से जोसिमोव को देखते हुए कहा। जोसिमोव ने धीरे से अपना सर हिला कर खंडन किया।

'खैर, आगे बढ़ो,' जोसिमोव बोला। 'फिर क्या हुआ?'

'फिर क्या हुआ बालियाँ देखते ही फ्लैट और मित्रेई सब कुछ भूल कर उसने सीधे अपनी टोपी उठाई और भाग कर दूश्किन के यहाँ जा पहुँचा और जैसा कि हमें मालूम है, उससे उसने एक रूबल पाया। वह झूठ बोला कि उसने सड़क पर पड़ी पाई थीं, और जा कर पीने लगा। कत्ल के बारे में वह अपनी शुरूवाली बात ही दोहराता रहता है : 'मैं उसके बारे में कुछ नहीं जानता, परसों से पहले मैंने उसके बारे में कभी सुना तक नहीं था।' 'तो तुम अभी तक पुलिस के पास क्यों नहीं आए? 'डर लगता था।' 'पर तुमने फाँसी लगाने की कोशिश क्यों की? 'चिंता के मारे।' 'काहे की चिंता? 'यही कि मेरे ऊपर दूसरा इल्जाम लगाया जाएगा।' तो यह रहा सारा किस्सा। खैर तुम्हारे खयाल से उन लोगों ने इससे क्या नतीजा निकाला?'

'इसमें मेरे खयाल करने की कोई बात ही नहीं। सुराग मौजूद हैं, जैसे भी हैं, पर हैं। तुम यह उम्मीद तो नहीं कर रहे होगे कि तुम्हारे उस पुताई करनेवाले को छोड़ दिया जाए?'

'अब उन्होंने तो उसे सीधे-सीधे कातिल समझ लिया है! इसमें उन्हें रत्ती भर शक नहीं है।'

'ये सब बेतुकी बातें हैं। तुम बिला वजह उबल रहे हो। लेकिन तुम्हें उन बालियों के बारे में क्या कहना है? यह तो मानना होगा कि अगर बुढ़िया के संदूक में से बालियाँ उसी दिन और उसी वक्त मिकोलाई के हाथों में पहुँचीं तो किसी न किसी तरह तो पहुँची होंगी। इस तरह के मामले में यह एक बड़ी बात होती है।'

'वहाँ कैसे पहुँचीं? वहाँ कैसे पहुँचीं...' रजुमीखिन चीखा। 'तुम एक डॉक्टर हो, जिसका काम यह होता है कि वह मनुष्य का अध्ययन करे और जिसे मनुष्य के स्वभाव का अध्ययन करने के सबसे ज्यादा अवसर मिलते हैं, तो तुम इस पूरे किस्से में उस आदमी के चरित्र को क्यों नहीं देख पाते? क्या यह बात तुम्हें नहीं दिखाई देती कि छानबीन के दौरान उसने जो जवाब दिए, वे परम सत्य हैं बालियाँ उसके हाथों में उसी तरह पहुँचीं जिस तरह उसने हमें बताया - उसका पाँव डिबिया पर पड़ा और उसने उसे उठा लिया।'

'परम सत्य! पर क्या उसने खुद यह बात नहीं मानी कि पहले वह झूठ बोला था?'

'मेरी बात सुनो, ध्यान से। दरबान, कोख और पेस्त्र्याकोव, दूसरा दरबान और पहले दरबान की बीवी और वह औरत जो दरबान के घर पर बैठी थी और वह सरकारी अफसर क्रियूकोव, जो उसी क्षण गाड़ी में से उतरा था और एक मेम साहब के हाथ में हाथ डाले बड़े फाटक से अंदर गया था, मतलब यह कि आठ-दस गवाह सब यह बात मानते हैं कि मिकोलाई ने मित्रेई को जमीन पर गिरा रखा था, उसके ऊपर चढ़ा बैठा था और उसे पीट रहा था, और मित्रेई ने भी उसके बाल कस कर पकड़ रखे थे और वह भी उसे पीट रहा था। दोनों सड़क के ठीक बीच में पड़े हुए थे और उन्होंने आवाजाही का रास्ता रोक रखा था। उन्हें चारों ओर से गालियाँ मिल रही थीं और वे 'बच्चों की तरह' (गवाहों के शब्द यही थे) एक-दूसरे को पटकनियाँ दे रहे थे, किलकारियाँ मार रहे थे, लड़ रहे थे, अजीब-अजीब सूरतें बना कर हँस रहे थे, और बच्चों की तरह एक-दूसरे का पीछा करते हुए बाहर सड़क पर निकल गए थे। समझे अब जरा ध्यान दे कर सुनो। ऊपर लाशों में गर्मी बाकी थी... समझे, जब उन लोगों ने उन्हें देखा तब उनमें गर्मी बाकी थी! अगर उन्होंने, या अकेले मिकोलाई ने, उनको कत्ल किया होता और संदूक तोड़े होते, या सिर्फ डाका ही डाला होता, तो मैं तुमसे एक सवाल पूछना चाहूँगा : क्या उनकी उस वक्त की दिमागी हालत, फाटक पर उनका किलकारियाँ मारना और हँसना और झगड़ा करना, क्या वे बातें कुल्हाड़ियों, खून-खच्चर, शैतानों जैसी चालाकी या डाकाजनी से मेल खाती हैं? उन्होंने उन दोनों औरतों को अभी-अभी कत्ल किया था, पाँच या दस मिनट पहले भी नहीं, क्योंकि उस वक्त तक भी लाशों में गर्मी बाकी थी, और फौरन फ्लैट खुला छोड़ कर, यह जानते हुए भी कि लोग जल्द ही वहाँ पहुँच जाएँगे, वे अपना लूट का माल वहीं फेंक कर बच्चों की तरह लुढ़क रहे थे, हँस रहे थे, सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। ऐसे दर्जन भर गवाह हैं जो कसम खा कर ये बातें कहने को तैयार हैं!'

'बात सचमुच कुछ अजीब तो है! बेशक यह नामुमकिन है, मगर...'

'नहीं यार, कोई अगर-मगर नहीं। माना कि कत्ल जब हुआ था, उसी दिन और उसी वक्त कानों की बालियों का मिकोलाई के हाथों में पाया जाना उसके खिलाफ एक बहुत बड़ा परिस्थितिजन्य साक्ष्य बन जाता है - हालाँकि उसने जो सफाई दी है, उससे इसकी वजह अच्छी तरह साफ हो गई है और इसलिए अगर कोई दूसरा सबूत हो तो भी यह बात उसकी पुष्टि करनेवाला सबूत नहीं हो सकती। ऐसी हालत में हमें उन बातों पर भी ध्यान देना चाहिए, जिनसे वह बेकसूर साबित होता है, खास तौर पर इसलिए कि वे ऐसी बातें हैं जिनसे इनकार नहीं किया जा सकता। पर हमारी कानून-व्यवस्था के चरित्र को देखते हुए, तुम क्या समझते हो कि वे लोग इस बात को मानेंगे, या वे इसे मानने की स्थिति में भी हैं - जिसका आधार केवल मनोविज्ञान की दृष्टि से उसका असंभव होना है - कि यह बात अभियोग पक्ष के परिस्थितिजन्य साक्ष्य को सोलह आने पक्के तौर पर चूर-चूर कर देती है नहीं, वे इस बात को नहीं मानेंगे, कतई नहीं मानेंगे, क्योंकि उन्हें जेवर की डिबिया उस आदमी के हाथ में मिली थी और उस आदमी ने अपने फाँसी लगाने की कोशिश की थी, जो कि अगर वह अपने आपको अपराधी न समझता तो कभी न करता। यही बात है जिस पर मुझे ताव आता है, और तुम्हें समझनी चाहिए!'

'आह, मैं देख रहा हूँ कि तुम्हें ताव आ रहा है! पर ठहरो। मैं तुमसे एक बात पूछना भूल गया : इस बात का क्या सबूत है कि वह डिबिया बुढ़िया के यहाँ से ही आई थी?'

'यह तो साबित हो चुका है,' रजुमीखिन ने त्योरियों पर बल डाल कर साफ झिझकते हुए जवाब दिया। 'कोख ने जेवर की वह डिबिया पहचानी थी और उसके असली मालिक का नाम भी बताया था, जिसने पक्के तौर पर साबित कर दिया था कि वह उसी की थी।'

'सो तो बुरा हुआ। अब एक बात और। क्या किसी ने मिकोलाई को उस वक्त देखा था जब कोख और पेस्त्र्याकोव पहली बार ऊपर जा रहे थे क्या उसके बारे में कोई सबूत नहीं है?'

'असली बात यही तो है कि किसी ने नहीं देखा,' रजुमीखिन ने चिढ़ कर जवाब दिया। 'सबसे बुरी बात यही है। ऊपर जाते हुए कोख और पेस्त्र्याकोव ने भी उन्हें नहीं देखा था, हालाँकि अब उनकी गवाही को बहुत वजनदार माना भी नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि वह फ्लैट खुला था और वहाँ जरूर कोई काम हो रहा होगा, लेकिन उन्होंने इस बात की ओर कोई खास ध्यान नहीं दिया था और उन्हें यह याद नहीं था कि वहाँ आदमी सचमुच काम कर रहे थे या नहीं।'

'हूँ! ...तो सफाई में अकेला सबूत यही है कि वे एक-दूसरे को पीट रहे थे और हँस रहे थे। मान लेते हैं कि इस बात में दम काफी है, लेकिन... जो सच्चाइयाँ सामने आई हैं, उनको तुमने किस तरह समझा है मेरा मतलब यह है कि तुम्हारी समझ में वे बालियाँ वहाँ कैसे पहुँचीं यानी जैसा कि वह कहता है अगर वे उसे सचमुच वहीं मिली थीं तो?'

'मेरी समझ में इसमें समझ का क्या सवाल है बात एकदम साफ है! बहरहाल, जिस कोण से इस बात को समझने की कोशिश की जानी चाहिए वह बिलकुल साफ है और जेवर की डिबिया उसी तरफ इशारा करती है। कानों की वे बालियाँ असली कातिल ने गिराई थीं। जिस वक्त कोख और पेस्त्र्याकोव ने दरवाजा खटखटाया उस वक्त कातिल ऊपर ही था, कमरे में बंद। कोख ने यह गधापन किया कि वहीं दरवाजे पर खड़ा नहीं रहा। फिर कातिल भी सरपट निकल कर बाहर नीचे भागा, क्योंकि उसके लिए भागने का कोई दूसरा रास्ता था ही नहीं। मिकोलाई और मित्रेई उस खाली फ्लैट में से भाग कर बाहर निकले तब कोख, पेस्त्र्याकोव और दरबान की नजरें बचा कर वह उसी फ्लैट में जा छिपा। जिस वक्त दरबान और दूसरे लोग ऊपर जा रहे थे, उस वक्त वह वहीं छिपा हुआ रहा और उनके इतनी दूर निकल जाने की राह देखता रहा कि उन्हें उसकी आहट सुनाई न दे। उसके बाद वह चुपचाप ठीक उस वक्त नीचे उतर गया, जब मिकोलाई और मित्रेई भाग कर सड़क पर पहुँच चुके थे और फाटक पर कोई नहीं था। उसे शायद किसी ने देखा भी हो, लेकिन किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। बहुत से लोग अंदर-बाहर आते-जाते ही रहते हैं। बालियाँ उसकी जेब से उसी वक्त गिरी होंगी जब वह दरवाजे के पीछे खड़ा था पर उसे पता नहीं चला कि वे गिर गई हैं, क्योंकि वह बहुत-सी दूसरी बातों के बारे में सोच रहा था। जेवर की डिबिया इस बात का पक्का सबूत है कि वह उस जगह खड़ा हुआ था। यह है सारी बात का निचोड़।'

'यह कुछ ज्यादा ही सोच-विचार कर कही गई बात है! नहीं, मेरे भाई, तुमने जरूरत से ज्यादा ही सोच-विचार से काम लिया है! बहुत होशियारी दिखा दी है!'

'लेकिन क्यों आखिर क्यों?'

'इसलिए कि हर चीज जरूरत से ज्यादा ही फिट बैठ रही है... इसमें नाटक कुछ जरूरत से ज्यादा ही है।'

'ओफ!' रजुमीखिन अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने ही वाला था कि उसी पल दरवाजा खुला और एक बंदा अंदर आया जो वहाँ पर मौजूद सभी लोगों के लिए एकदम अजनबी था।