अपराध और दंड / अध्याय 2 / भाग 5 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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वह सज्जन नौजवानी की उम्र पार कर चुके थे। कुछ अकड़ा हुआ, भारी-भरकम डील, कुछ काइयाँ और कुछ चिढ़ी हुई-सी सूरत। सबसे पहला काम उन्होंने यह किया कि दरवाजे पर ही ठिठके और अपने चारों ओर तौहीन भरी और खुली हैरानी से गौर से देखा, गोया अपने आपसे पूछ रहे हों कि वह भला कहाँ आ गए। उन्होंने रस्कोलनिकोव की उस नीची-सी, सँकरी 'चूहेदानी' को संदेह भरी नजरों से देखा, और कुछ ऐसे भाव से, गोया दंग रह गए हों और अपमान का अनुभव कर रहे हों। हैरत के उसी भाव से उन्होंने रस्कोलनिकोव को घूर कर देखा, जो अपने मैले-से फटीचर सोफे पर लेटा उन्हें एकटक देखे जा रहा था। उसने ठीक से कपड़े भी नहीं पहने थे, बाल बिखरे हुए थे और कई दिन से मुँह भी नहीं धोया था। फिर उन्होंने रजुमीखिन को उसी तरह ध्यान से सर से पाँव तक देखा - मैली-कुचैली वेश-भूषा, बिखरे बाल, चेहरे पर दाढ़ी बढ़ी हुई। रजुमीखिन भी उनकी आँखों में आँखें डाल कर ढिठाई से इस तरह देखता रहा, जैसे उनसे कोई सवाल पूछ रहा हो। कुछ पल खामोशी छाई रही और फिर जैसी कि आशा की जा सकती थी, दृश्य में कुछ परिवर्तन आया। शायद कुछेक, काफी असंदिग्ध संकेतों के आधार पर यह सोच कर कि उन लोगों पर अपना रोब डालने की कोशिश करके उन्हें यहाँ इस 'चूहेदानी' में कुछ नहीं मिलेगा, वह कुछ नर्म पड़े और बड़ी शिष्टता से, हालाँकि उसमें कुछ सख्ती भी थी, अपने सवाल के हर शब्द के एक-एक टुकड़े पर जोर देते हुए, उन्होंने जोसिमोव को संबोधित किया :

'रोदिओन रोमानोविच रस्कोलनिकोव छात्र, या पहले शायद छात्र रहा हो।'

जोसिमोव धीरे-से कसमसाया और सवाल का जवाब देने ही वाला था कि रजुमीखिन, जिसका इससे कोई वास्ता न था, उससे पहले ही बोल पड़ा :

'यह रहा, सोफे पर लेटा हुआ! आपको चाहिए क्या?'

यूँ लगा गोया इस जाने-पहचाने सवाल 'आपको चाहिए क्या' ने सज्जन के पाँव तले की जमीन ही खिसका दी। वह रजुमीखिन की ओर मुड़नेवाले थे कि उन्होंने समय रहते अपने आपको सँभाल लिया और एक बार फिर जोसिमोव की ओर मुड़े।

'यही है रस्कोलनिकोव,' जोसिमोव उसकी ओर सर हिला कर इशारा करते हुए बुदबुदाया। इसके बाद उसने अपना मुँह जहाँ तक हो सकता था, पूरा खोल कर लंबी जम्हाई ली। फिर अलसाए हुए ढंग से अपनी वास्कट की जेब में हाथ डाल कर उसने सोने की एक बड़ी-सी घड़ी निकाली, उसे खोल कर देखा और उतने ही धीरे-धीरे और अलसाए ढंग से उसे वापस अपनी जेब में रखने लगा।

रस्कोलनिकोव खुद कुछ बोले बिना, चित लेटा, बिना कुछ समझे हुए, लगातार अजनबी को घूरे चला जा रहा था। उसका चेहरा, जिसे उसने दीवार के कागज पर बने बेहद आकर्षक फूल की ओर से फेर लिया था, बेहद पीला पड़ गया था। उस पर वेदना की झलक साफ थी, गोया उसका कोई बहुत पीड़ाजनक ऑपरेशन हुआ हो या उसे अभी-अभी सूली पर से उतारा गया हो। लेकिन धीरे-धीरे उसे उस अजनबी में दिलचस्पी पैदा होने लगी, फिर आश्चर्य का भाव जागा, फिर संदेह का, यहाँ तक कि आतंक का भी। जब जोसिमोव ने कहा, 'यही है रस्कोलनिकोव' तो वह उछल कर सोफे पर बैठ गया और लगभग चुनौती देते हुए, लेकिन कमजोर और टूटे-टूटे लहजे में बोला :

'जी हाँ, रस्कोलनिकोव मैं ही हूँ। क्या चाहिए आपको?'

आनेवाले ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और बड़े रोब से ऐलान किया :

'प्योत्र पेत्रेविच लूजिन। मैं समझता हूँ मेरी यह उम्मीद बेबुनियाद नहीं है कि आप मेरे नाम से एकदम अनजान तो नहीं ही होंगे?'

लेकिन रस्कोलनिकोव, जो कोई दूसरी ही बात सोचे बैठा था, खाली-खाली नजरों से टकटकी बाँधे देखता रहा। उसने कोई जवाब नहीं दिया, गोया प्योत्र पेत्रोविच का नाम उसने पहली बार सुना हो।

'क्या ऐसा हो सकता है कि अभी तक कोई खबर आपको न मिली हो?' प्योत्र पेत्रोविच ने कुछ बिगड़ कर पूछा।

जवाब में रस्कोलनिकोव धीरे-धीरे अपने तकिए पर फिर झुक गया। उसने अपने हाथ सर के पीछे रख लिए और एकटक छत को देखता रहा। लूजिन के चेहरे पर उदासी का भाव उभर आया। जोसिमोव और रजुमीखिन उन्हें पहले से भी अधिक जिज्ञासा से घूरने लगे। आखिरकार एकदम साफ नजर आने लगा कि वे कुछ अटपटा महसूस कर रहे हैं।

'मैं यह मान कर आया था और मैंने हिसाब भी लगाया था,' वे अटक कर बोले, 'कि डाक में जो खत पंद्रह दिन पहले नहीं तो कम से कम दस दिन पहले तो जरूर ही डाला गया था...'

'मैं कहता हूँ, आप चौखट पर क्यों खड़े हैं?,' रजुमीखिन ने अचानक उनकी बात काटते हुए कहा। 'आपको अगर कुछ कहना है तो बैठ जाइए। नस्तास्या और आप दोनों एक-दूसरे का रास्ता रोक रहे हैं। नस्तास्या, जगह देना जरा! यह रही कुर्सी, दब-सिमट कर अंदर आ जाइए!'

अपनी कुर्सी उसने मेज के पास से कुछ पीछे सरका ली, मेज और अपने घुटनों के बीच थोड़ी-सी जगह बना दी, और सिकुड़ा-सिमटा बैठा इस बात की राह देखता रहा कि आनेवाला 'दब-सिमट कर अंदर' आ जाए। उसने अपनी बात कहने के लिए ऐसा पल चुना था कि इनकार किया ही नहीं जा सकता था। आनेवाला गिरता-पड़ता किसी तरह रास्ता बना कर अंदर घुस आया। कुर्सी के पास पहुँच कर वह उस पर बैठा और संदेह भरी नजरों से रजुमीखिन को देखने लगा।

'घबराने की कोई जरूरत नहीं,' रजुमीखिन अनायास ही बोला। 'रोद्या पिछले पाँच दिन से बीमार है और तीन दिन तो सरसाम की हालत में रहा है, लेकिन अब ठीक हो रहा है और उसे भूख भी लगने लगी है। ये हैं उसके डॉक्टर जिन्होंने अभी-अभी उसे देखा है। मैं रोद्या का साथी हूँ और उसी की तरह मैं भी पहले पढ़ता था, पर आजकल इसकी तीमारदारी में लगा हूँ। लिहाजा आप हमारी परवाह किए बिना अपना काम कीजिए।'

'शुक्रिया। लेकिन यहाँ मेरी मौजूदगी और मेरी बातचीत से मरीज को तो कोई परेशानी नहीं होगी' प्योत्र पेत्रोविच ने जोसिमोव से पूछा।

'न...हीं,' जोसिमोव ने बुदबुदा कर कहा, 'आपसे कुछ दिल ही बहलेगा।' उसने फिर जम्हाई ली।

'यह तो काफी देर से होश में है, सबेरे से,' रजुमीखिन कहता रहा। उसकी बेतकल्लुफी दिल की ऐसी सादगी का पता दे रही थी कि प्योत्र पेत्रोविच अधिक प्रसन्नचित्त दिखाई देने लगे। शायद कुछ हद तक इसलिए भी कि इस मैले-कुचैले और ढीठ आदमी ने अपना परिचय छात्र के रूप में कराया था।

'आपकी माँ...,' लूजिन ने कहना शुरू किया।

'हूँ!' रजुमीखिन जोर से खखारा। लूजिन ने उसे चकरा कर देखा।

'कोई बात नहीं, आप कहिए।'

लूजिन ने कंधे बिचकाए।

'आपकी माँ ने, जिन दिनों मैं उनके पड़ोस में रह रहा था, आपको एक खत लिखना शुरू किया था। यहाँ पहुँचने पर मैं जान-बूझ कर कुछ दिन आपसे मिलने नहीं आया ताकि मुझे इस बात का पक्का भरोसा हो जाए कि आपको पूरी खबर मिल गई है। लेकिन अब यह जान कर मुझे हैरत हो रही है कि...।'

'मालूम है, सब मालूम है!' रस्कोलनिकोव अचानक बड़ी बेचैनी से झुँझला कर चीखा। 'तो मँगेतर आप हैं मैं जानता हूँ, और बस इतना ही काफी है!'

इसमें कोई शक नहीं था कि इस बार प्योत्र पेत्रोविच को बुरा लगा था, पर उन्होंने कुछ कहा नहीं। उन्होंने इस बात को समझने की बेहद कोशिश की कि इस सबका मतलब क्या था। एक पल तक खामोशी रही।

इसी बीच रस्कोलनिकोव, जो जवाब देने के लिए जरा-सा उनकी तरफ मुड़ गया था, अचानक फिर उन्हें बड़ी जिज्ञासा से घूरने लगा, गोया अभी तक उसने उन्हें ठीक से देखा न हो, या गोया उसे कोई नई बात खटक गई हो। उसने जान-बूझ कर उन्हें घूरने के लिए तकिए पर से सर उठाया। प्योत्र पेत्रोविच की पूरी चाल-ढाल में निश्चित रूप से कोई अजीब-सी बात थी, कोई ऐसी बात जिसकी वजह से उनके लिए 'मँगेतर' की उपाधि का इतना अशिष्ट उपयोग ठीक ही लगता था। पहली बात तो यह थी कि यह एकदम साफ था, बल्कि जरूरत से ज्यादा ही साफ था, कि प्योत्र पेत्रोविच ने राजधानी में जो थोड़े से दिन गुजारे थे, उनको उन्होंने शादी की तैयारी में अपने आपको सजाने-सँवारने के लिए बड़े उत्साह और उत्सुकता से खर्च किया था - सचमुच यह एकदम निष्कपट और एकदम मुनासिब आचरण था। इस बात को देखते हुए कि प्योत्र पेत्रोविच ने मँगेतर की भूमिका अपना ली थी, इन परिस्थितियों में स्वयं उन्हें अपनी सूरत-शक्ल और चाल-ढाल में किसी सुखद सुधार की जरूरत का जो एहसास था और जिसकी वजह से शायद वह आवश्यकता से अधिक निश्चिंत हो गए थे, उन्हें क्षमा किया जा सकता था। उनके सारे कपड़े लगता था सीधे दर्जी के यहाँ से आए थे और एकदम ठीक थे। बात थी भी तो बस इतनी कि वे जरूरत से ज्यादा नए थे और हद से ज्यादा मुनासिब लग रहे थे। उसके तरहदार नए गोल हैट में भी यही खासियत थी : प्योत्र पेत्रोविच उसके साथ सम्मान का बर्ताव कर रहे थे और उसे बहुत सँभाल कर हाथ में लिए हुए थे। कासनी रंग के बेहद उम्दा फ्रांसीसी दस्ताने भी इसी बात का सबूत दे रहे थे, कम से कम इस बात से कि उन्होंने उनको पहनने की बजाय दिखाने के लिए हाथ में ले रखा था। प्योत्र पेत्रोविच के पूरे लिबास में हलके और नौजवानों लायक रंगों का जोर था। हलके बादामी रंग का खूबसूरत, गर्मियों का कोट, हलके पतले कपड़े का पतलून, उसी कपड़े की वास्कट, नई और बढ़िया कमीज, बेहद बारीक कैंब्रिक का गुलाबी धारियोंवाला गुलूबंद पर सबसे अच्छी बात तो यह थी कि यह सब कुछ प्योत्र पेत्रोविच पर फबता था। उनका खिला हुआ, बल्कि कह लीजिए कि खूबसूरत-सा चेहरा भी हर हालत में पैंतालीस साल से बहुत कम उम्र के आदमी का लग रहा था। दोनों ओर घने उगे हुए, गहरे रंग के मटनचॉप जैसे गलमुच्छे चमकदार, सफाचट चेहरे की शोभा बढ़ा रहे थे। वे अपने बालों से भी, जिनमें कहीं-कहीं सफेदी झाँक रही थी, हालाँकि उन्हें किसी नाई की दुकान में घुँघराले कराके सजाया-सँवारा गया था, देखने में बुद्धू नहीं लगते थे, जैसा कि घुँघराले बालोंवाला आदमी कुछ-कुछ जर्मन लगने की वजह से अपनी शादी के दिन हमेशा लगता है। देखने में भले और रोबदार लगनेवाले उनके चेहरे में अगर कोई चीज सचमुच अप्रिय और घृणाजनक थी, तो एकदम दूसरे कारणों से थी। बड़ी अशिष्टता से मिस्टर लूजिन को सर से पाँव तक देखने के बाद रस्कोलनिकोव दुश्मनी के भाव से मुस्कराया, फिर अपने तकिए पर लुढ़क गया और पहले की तरह छत को घूरने लगा।

मिस्टर लूजिन ने दिल कड़ा करके इन लोगों की उलटी-सीधी हरकतों की ओर ध्यान न देने का फैसला कर लिया था।

'आपको इस हालत में देख कर मुझे बेहद अफसोस है,' उन्होंने कोशिश करके खामोशी को तोड़ते हुए कहना शुरू किया। 'अगर मुझे आपकी बीमारी का पता होता तो मैं पहले आता। लेकिन आप तो कारोबार की हालत जानते हैं। इसके अलावा, सेनेट में भी एक बहुत बड़ा कानूनी मामला फँसा हुआ है और दूसरे भी बहुत-से काम हैं, जिनमें बहुत-सा वक्त निकल जाता है। आप इसका आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं। अब किसी भी वक्त आपकी माँ और बहन भी आ सकती हैं।'

रस्कोलनिकोव कुछ कसमसाया। लगा कि वह कुछ कहनेवाला है। चेहरे पर कुछ बेचैनी दिखाई दे रही थी। प्योत्र पेत्रोविच कुछ देर ठहर कर इंतजार करते रहे, लेकिन जब कुछ भी नहीं हुआ, तो उन्होंने अपनी बात जारी रखी :

'...किसी भी वक्त उनके यहाँ पहुँचने पर मैंने रहने की एक जगह भी ढूँढ़ ली है...'

'कहाँ?' रस्कोलनिकोव ने बुझी हुई आवाज में पूछा।

'पास ही में है। बकालेयेव के घर में।'

'वह तो बोज्नेसेंस्की में है,' रजुमीखिन बीच में बोला। 'उसमें दो मंजिलों पर बहुत सारे कमरे हैं जिन्हें यूशिन नाम का एक व्यापारी किराए पर उठाता है। मैं वहाँ जा चुका हूँ।'

'हाँ, सजे-सजाए कमरे...'

'बहुत ही बेहूदा जगह है। गंदी, बदबूदार और बदनाम भी। कुछ वारदातें हो चुकी हैं वहाँ, और तरह-तरह के अजीब लोग वहाँ रहते हैं! मैं भी एक लफड़े के सिलसिले में गया था। जगह सस्ती जरूर है, हालाँकि...'

'जाहिर है, मैं उस जगह के बारे में इतना कुछ मालूम नहीं कर सका, क्योंकि मैं खुद पीतर्सबर्ग में परदेसी हूँ,' प्योत्र पेत्रोविच ने झल्ला कर जवाब दिया। 'लेकिन दोनों कमरे हैं साफ-सुथरे, और हमें चाहिए भी तो थोड़े ही दिन के लिए... मैंने वैसे एक जगह पक्के तौर पर ले ली है, मतलब कि आगे चल कर हम लोगों के रहने के लिए,' उसने रस्कोलनिकोव को संबोधित करके कहा, 'और उसे मैं ठीक-ठाक करा रहा हूँ। इस बीच मैं अपने नौजवान दोस्त अंद्रेई सेम्योनोविच लेबेजियातनिकोव के साथ थोड़ी-सी जगह में किसी तरह रह रहा हूँ, मादाम लिप्पेवेख्सेल के फ्लैट में, उन्होंने ही मुझे बकालेयेव के इस घर के बारे में भी बताया था...'

'लेबेजियातनिकोव' रस्कोलनिकोव ने धीमे से कहा, जैसे कुछ याद कर रहा हो।

'हाँ, अंद्रेई सेम्योनोविच लेबेजियातनिकोव, मिनिस्ट्री में काम करता है। उसे आप जानते हैं?'

'हाँ... न... नहीं,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया।

'माफ कीजिएगा, आपने जिस तरह पूछा, उससे मुझे लगा कि आप जानते हैं। किसी जमाने में मैं उसका संरक्षक था... बहुत अच्छा नौजवान है और नए विचारों का शख्स है। मुझे नौजवानों से मिल कर खुशी होती है; उनसे नई-नई बातें सीखने को मिलती हैं।' लूजिन ने बड़ी उम्मीदभरी नजरों से उन सबको देखा।

'मतलब क्या है आपका?' रजुमीखिन ने पूछा।

'सबसे ज्यादा गंभीर और बुनियादी सवालों के बारे में,' प्योत्र पेत्रोविच ने इस तरह जवाब दिया जैसे यह सवाल सुन कर वे बहुत खुश हुए हों। 'देखिए, बात यह है कि मैं दस साल बाद पीतर्सबर्ग आया हूँ। सारी नई और अनोखी चीजें, सारे सुधार, सारे विचार दूर-दराज कस्बों में हम तक पहुँच गए हैं, लेकिन इन बातों को और भी साफ तरीके से देखने के लिए आदमी को पीतर्सबर्ग आना ही चाहिए। मैं तो यह भी सोचता हूँ कि नौजवान पीढ़ी को देख कर ही हम सबसे ज्यादा समझते और सीखते हैं। और मैं तो मानता हूँ कि मुझे बड़ी खुशी हुई...'

'किस बात पर?'

'तुम्हारा सवाल बहुत लंबा-चौड़ा है। मुमकिन है मेरा खयाल गलत हो, लेकिन मैं समझता हूँ कि मुझे कहीं ज्यादा साफ विचार मिलते हैं, यूँ कहिए कि ज्यादा आलोचना सुनने को मिलती है, ज्यादा व्यावहारिकता आती है...'

'सच कहा,' जोसिमोव पटाक से बोला।

'बकवास! इसमें कहीं कोई व्यावहारिकता नहीं है,' रजुमीखिन उस पर बरस पड़ा। 'व्यावहारिकता बड़ी मुश्किल से आती है, कोई आसमान से नहीं टपकती। हमारा व्यावहारिक जीवन से पिछले दो सौ साल से कोई नाता नहीं रहा है। आप कह सकते हैं, कि ढेरों विचार पनप रहे हैं,' उसने प्योत्र पेत्रोविच से कहा, 'अच्छाई की इच्छा भी मौजूद है, हालाँकि वह अभी बचकाना शक्ल में है, और ईमानदारी भी आपको मिल सकती है, हालाँकि यहाँ लुटेरों के गिरोह भी हैं। लेकिन व्यावहारिकता कहीं नहीं है! व्यावहारिकता तो खाते-पीते लोगों के यहाँ ही होती है।'

'मैं आपकी यह बात नहीं मानता,' प्योत्र पेत्रोविच ने जवाब दिया। देखने से ही लग रहा था कि उन्हें इस बातचीत में बहुत मजा आ रहा था। 'बेशक, लोगों को कुछ ज्यादा जोश आ जाता है और वे गलतियाँ कर बैठते हैं, लेकिन हमें बर्दाश्त करना चाहिए। वह जोश अपने ध्येय के प्रति उत्साह का और उन विकृत बाहरी परिस्थितियों का ही सबूत होता है जिनमें काम-धाम चलता है। अगर काम बहुत थोड़ा हुआ है तो बहुत ज्यादा वक्त भी तो नहीं मिला है; साधनों की बात मैं नहीं करूँगा। अगर आप जानना चाहें तो मेरा निजी विचार यह है कि कुछ तो हासिल किया जा चुका है : नए उपयोगी विचार फैलने लगे हैं, पुरानी और बेहद काल्पनिक रचनाओं की जगह नई, उपयोगी रचनाओं का चलन बढ़ रहा है। साहित्य में ज्यादा परिपक्वता आती जा रही है, कितने ही हानिकारक पूर्वाग्रह उखाड़ फेंके गए हैं और उन्हें हास्यास्पद बना दिया गया है... थोड़े शब्दों में कहा जाए तो हमने अतीत से पूरी तरह अपना नाता तोड़ लिया और यह मेरी राय में बहुत बड़ी बात है...'

'सब रट रखा है रोब झाड़ने के लिए!' रस्कोलनिकोव ने अचानक फैसला सुनाया।

'क्या कहा' प्योत्र पेत्रोविच ने पूछा, वह उसकी बात ठीक से सुन नहीं सके थे। लेकिन उन्हें अपने सवाल का कोई जवाब नहीं मिला।

'आप बिलकुल ठीक फरमाते हैं,' जोसिमोव जल्दी से बीच में बोला।

'है न' जोसिमोव को बड़े दुलार से देखते हुए प्योत्र पेत्रोविच ने अपनी बात जारी रखी। 'आपको मानना पड़ेगा,' उन्होंने कुछ विजय भाव और कुछ तिरस्कार के साथ-वह बस 'नौजवान' शब्द जोड़ते-जोड़ते रह गए - रजुमीखिन को संबोधित करते हुए अपनी बात को आगे जारी रखा, 'कि विज्ञान और आर्थिक सत्य के मामले में हम आगे बढ़े हैं, या जैसा कि आजकल लोग कहते हैं, प्रगति हुई है...'

'घिसी-पिटी बातें हैं!'

'नहीं जनाब, घिसी-पिटी बातें नहीं हैं! मिसाल के लिए, अगर मुझसे कहा जाता कि अपने पड़ोसी को प्यार करो, तो उसका क्या नतीजा होता?' प्योत्र पेत्रोविच शायद जरूरत से ज्यादा जल्दबाजी में अपनी बात कहते रहे। 'इसका यह मतलब होता कि मैं अपना आधा कोट फाड़ कर अपने पड़ोसी के साथ बाँट लूँ और हम दोनों आधे-आधे नंगे रहें। जैसी कि रूसी कहावत है, अगर दो खरगोशों का पीछा करोगे तो एक भी हाथ नहीं लगेगा। अब विज्ञान हमें बताता है कि सबसे बढ़ कर अपने आपको प्यार करो, क्योंकि दुनिया में हर चीज का दारोमदार स्वार्थ पर है। अपने आपको प्यार करोगे तो अपना हर काम ठीक से चलाओगे और तुम्हारा कोट पूरा रहेगा। आर्थिक सत्य इसमें इतना और जोड़ देता है कि समाज में निजी मुआमलों की व्यवस्था जितने ही अच्छे ढंग से की जाएगी - कहने का मतलब यह कि जितने ही ज्यादा लोगों के पास पूरे कोट होंगे - उस समाज की बुनियादें उतनी ही मजबूत होंगी और लोक-कल्याण की व्यवस्था भी उतनी ही अच्छी होगी। इसलिए, सिर्फ अपने लिए दौलत जुटा कर मैं एक तरह से सबके लिए दौलत पैदा कर रहा हूँ, और ऐसी हालत पैदा करने में मदद दे रहा हूँ कि मेरे पड़ोसी को आधे कोट से ज्यादा भी कुछ मिल सके। और यह सब अलग-अलग लोगों की निजी उदारता की वजह से नहीं, बल्कि इसलिए होता है कि आमतौर पर सभी ने तरक्की की है। यह विचार है बहुत सीधा-सा लेकिन अफसोस की बात यह है कि हमारे पास तक इसे पहुँचने में बहुत समय लगा, क्योंकि अस्पष्ट भावुकता और आदर्शवाद उसकी राह में रुकावट बने हुए थे। फिर भी यूँ लगता है कि इस बात को समझ सकने के लिए बहुत ज्यादा समझ की जरूरत नहीं है...'1

'माफ कीजिएगा, मेरे समझ तो खुद बहुत थोड़ी है,' रजुमीखिन ने चट से बात काट कर कहा, 'इसलिए अब इस बहस को रहने ही देते हैं। मैंने अपनी बातें एक खास मकसद से शुरू की थीं, लेकिन पिछले तीन साल के दौरान मनबहलाने की इस बकबक से, इन धाराप्रवाह घिसी-पिटी बातों से, जो हमेशा वही की वही रहती हैं, मैं इतना तंग आ चुका हूँ कि, भगवान जानता है, जब दूसरे लोग भी इसी तरह की बातें करते हैं तो मुझे शर्म आने लगती है। आपको यकीनन यह दिखाने की बेचैनी है कि आप कितने पढ़े-लिखे आदमी हैं। इस बात को माफ किया जा सकता है, और मैं आपको इसके लिए दोष भी नहीं देता, क्योंकि यह कोई ऐसी बुरी बात नहीं है। मैं तो बस यह मालूम करना चाहता था कि आप किस तरह के आदमी हैं, क्योंकि इधर कुछ दिनों से इतने सारे पाखंडी लोगों ने प्रगतिशील लक्ष्य को अपना लिया है और जिस चीज को भी हाथ लगाया है, उसे अपने निजी हितों के लिए इतना विकृत कर दिया है कि उस पूरे लक्ष्य की मिट्टी पलीद हो गई है। खैर, इतना ही काफी है!'

'माफ कीजिए, जनाब,' लूजिन ने बुरा मान कर और बेहद गरिमा के साथ बोलते हुए कहा, 'इतने दो-टूक ढंग से कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते कि...'

'नहीं, साहब... मेरी ऐसी मजाल ...छोड़िए, बस बहुत हो गया,' रजुमीखिन ने बात खत्म करते हुए कहा, और फिर वह अपनी पहलेवाली बातचीत का सिलसिला जारी रखने के लिए जोसिमोव की ओर मुड़ा।


1. यहाँ प्योत्र पेत्रोविच के मुँह से लेखक ने निकोलाई चेर्नीसव्स्की के उपन्यास क्या करें में 'प्रबुद्ध स्वार्थ ' की धारणा और जान स्टुअर्ट मिल के उपयोगितावाद का विरोध किया है - अनुवादक।


प्योत्र पेत्रोविच ने उसके इस खंडन को स्वीकार कर लेने में ही भलाई समझी। उसने उन लोगों से दो-एक मिनट में विदा लेने का मन बना लिया था।

'मुझे यकीन है कि हमारी जान-पहचान,' उसने रस्कोलनिकोव को संबोधित करते हुए कहा, 'आपके अच्छे हो जाने पर और उन परिस्थितियों को देखते हुए जिनसे आप परिचित हैं, और भी गहरी होंगी... सबसे बढ़ कर तो मैं आपके फिर से स्वस्थ हो जाने की कामना करता हूँ...'

रस्कोलनिकोव ने सर तक नहीं घुमाया। प्योत्र पेत्रोविच कुर्सी से उठने लगे।

'उसे उसके किसी गाहक ने ही मारा होगा।,' जोसिमोव ने पूरे विश्वास के साथ ऐलान किया।

'इसमें कोई शक ही नहीं,' रजुमीखिन ने जवाब दिया। 'पोर्फिरी अपनी राय नहीं बताता लेकिन उन सब लोगों से पूछताछ कर रहा है जिन्होंने चीजें वहाँ गिरवी रखी थीं।'

'पूछताछ कर रहा है?' रस्कोलनिकोव ने जोर से पूछा।

'हाँ। तो?'

'कुछ भी नहीं।'

'वे लोग उसके हाथ आएँगे कैसे?' जोसिमोव ने पूछा।

'कुछ के नाम तो कोख ने दिए हैं, कुछ नाम गिरवी रखी हुई चीजों के लिफाफों पर लिखे हैं और कुछ लोग इस मामले की खबर सुन कर खुद ही आ गए हैं।'

'कोई बहुत ही चालाक, छँटा हुआ बदमाश होगा! हिम्मत तो देखो उसकी! कैसे ठंडे दिमाग से सारा काम कर गया!'

'यही बात तो बस नहीं है,' रजुमीखिन बीच में बोल पड़ा। 'यही बात है जो तुम सब लोगों को भटका देती है। मेरा कहना यह है कि वह चालाक नहीं है, मँजा हुआ नहीं है, और शायद उसका यह पहला अपराध था। गुत्थी यह मान लेने से नहीं सुलझती कि यह अपराध सोच-समझ कर किया गया था और अपराधी चालाक था। अगर अब मान लें कि वह अनाड़ी था तो यह बात साफ है कि वह संयोग से ही बच निकला - और संयोग से तो कुछ भी हो सकता है। देखते नहीं, उसे शायद पहले से अंदाजा भी नहीं था कि राह में क्या-क्या रुकावटें आएँगी! और उसने सारा काम निबटाया किस तरह दस-बीस रूबल की चीजें ले कर अपनी जेबों में ठूँसीं, बुढ़िया का संदूक, फटे-पुराने कपड़े छान मारे - और अलमारी की सबसे ऊपरवाली दराज में एक संदूकची के अंदर नोटों के अलावा पंद्रह सौ रूबल ज्यों के त्यों रखे हुए मिले! उसे चोरी करना नहीं आता था, वह सिर्फ कत्ल कर सकता था। यह उसका पहला अपराध था, मैं आपको यकीन दिलाता हूँ, एकदम पहला अपराध। उसके हाथ-पाँव फूल गए और अगर वह बच निकला तो इसमें उसकी समझदारी से ज्यादा उसकी किस्मत ने साथ दिया।'

'मैं समझता हूँ आप उस बुढ़िया के कत्ल की बात कर रहे हैं, जो चीजें गिरवी रखती थी!' प्योत्र पेत्रोविच जोसिमोव को संबोधित करते हुए बीच में बोला। वह हैट और दस्ताने हाथ में लिए खड़ा था, लेकिन चलने से पहले उसका जी हुआ कि गहरी अक्ल की बातों के कुछ और मोती बिखेरते चलें। जाहिर है वह इस बात के लिए बहुत बेचैन था कि लोगों पर अपने बारे में अच्छा असर छोड़ कर जाएँ और इसीलिए उसके अहंकार ने उनके विवेक को दबोच लिया।

'जी हाँ। आप सुन चुके हैं उसके बारे में?'

'हाँ, पड़ोस में ही तो ठहरा हुआ हूँ।'

'सारी बातें आपको पता हैं?'

'यह तो मैं नहीं कह सकता। लेकिन इस मामले के एक और पहलू में बल्कि कहना चाहिए कि पूरी समस्या में - मुझे बड़ी दिलचस्पी है। इस बात से अलग कि पिछले पाँच साल के दौरान निचले वर्गों के बीच अपराध बहुत बढ़े हैं, और इस बात से भी अलग कि हर जगह डाके और आगजनी की वारदातें हो रही हैं, मुझे सबसे अजीब यह बात लगती है कि ऊँचे वर्गों में भी अपराध उतनी ही तेजी से बढ़ रहे हैं। कहीं यह सुनने को मिलता है कि किसी छात्र ने खुली सड़क पर डाल लूट ली; कहीं और भी अच्छी-खासी समाजी हैसियत के लोग जाली नोट बनाते हैं। मास्को में अभी हाल ही में एक पूरा गिरोह पकड़ा गया है जो लाटरी के जाली टिकट छापता था, और उसके सरगनों में एक तो विश्व-इतिहास का अध्यापक था। फिर किसी नामालूम फायदे के लिए विदेश में हमारे सेक्रेटरी की हत्या की गई... अब अगर चीजें गिरवी रखनेवाली इस बुढ़िया की हत्या भी समाज के ऊँचे वर्ग के किसी शख्स ने की है - क्योंकि किसान तो सोने के जेवर गिरवी रखते नहीं - तो अपने समाज के सभ्य वर्गों के इस नैतिक पतन की हम क्या वजह बयान कर सकते हैं?'

'बहुत से आर्थिक परिवर्तन हुए हैं,' जोसिमोव ने कहा।

'इसकी हम क्या वजह बयान कर सकते हैं?' रजुमीखिन ने उसे बीच से ही टोक दिया। 'इसकी वजह हमारे अंदर व्यावहारिकता का अभाव है।'

'क्या मतलब है आपका, जनाब?'

'आह, आपके उस मास्कोवाले अध्यापक ने इस सवाल का क्या जवाब दिया था कि वह जाली नोट क्यों बनाता था यही न कि 'हर आदमी किसी न किसी तरीके से अमीर बन रहा है, सो मैं भी जल्दी से अमीर बनना चाहता हूँ।' मुझे ठीक-ठीक उसके शब्द तो याद नहीं रहे, लेकिन उसका निचोड़ यह था कि वह कुछ किए बिना, धैर्य के साथ कुछ किए बिना, कोई काम किए बिना पैसा बनाना चाहता था! हम लोगों की आदत ही बन गई है और हम चाहते हैं कि हर चीज बनी-बनाई मिल जाए। हम बैसाखियों के सहारे चलना चाहते हैं, और चाहते हैं कि हमारा खाना भी कोई दूसरा चबा कर हमें खिला दे। फिर वह फैसले की घड़ी1 आई और हर आदमी की असलियत सामने आ गई।'

'लेकिन नैतिकता और वह चीज जिसे सिद्धांत कहा जाता है...?'

'आप उसकी चिंता क्यों करते हैं' रस्कोलनिकोव अचानक बीच में बोला। 'यह बात तो आपके ही सिद्धांत से मेल खाती है!'

'मेरे सिद्धांत से आपका क्या मतलब है?'

'जी, आप जिस सिद्धांत की पैरवी कर रहे थे उसे उसकी तर्कसंगत सीमा तक ले जाइए और आप इसी नतीजे पर पहुँचेंगे कि आपको दूसरों के गले काटने का हक है...'

'कमाल करते हैं आप!' लूजिन चीख पड़ा।

'नहीं, बात ऐसी नहीं है,' जोसिमोव ने कहा।

रस्कोलनिकोव पीला पड़ा हुआ था। चेहरा बिलकुल सफेद था और ऊपरवाला होठ फड़क रहा था। साँस लेने में तकलीफ हो रही थी।

'हर चीज की एक हद होती है,' लूजिन उसी तरह खंभे पर चढ़ा बोलता रहा। 'आर्थिक विचार कत्ल करने का उकसावा नहीं देते; हमें बस यह मान लेना होता है...'

'यह क्या सच है,' रस्कोलनिकोव एक बार फिर अचानक बीच में बोल पड़ा; इस बार भी गुस्से से उसकी आवाज काँप रही थी और उसे लूजिन का अपमान करने में मजा आ रहा था। 'यह क्या सच है कि आपने अपनी होनेवाली बीवी से... उसकी रजामंदी मिलने के वक्त ही... यह कहा था कि जिस बात की आपको सबसे ज्यादा खुशी थी... वह यह थी कि वह कंगाल थी... कि बीवी को गरीबी के चंगुल से छुड़ा कर लाना कहीं अच्छा होता है, ताकि वह पूरी तरह आपके बस में रहे, और आप उसके साथ उपकार करने के ताने देते रह सकें?'

'कमाल है यह तो!' लूजिन और भी गुस्से से चिढ़ कर चीखा; बौखलाहट के मारे उसका चेहरा तमतमा रहा था। 'मेरी बात को इस तरह तोड़ा-मरोड़ा गया है! माफ कीजिएगा, मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि जो खबर आपके पास पहुँची है, बल्कि आप तक पहुँचाई गई है, उसकी हकीकत में कोई बुनियाद नहीं है, और मुझे... शक है यह तीर... किसने... एक शब्द में... एक शब्द में, आपकी माँ... उनकी तमाम खूबियों के बावजूद, दूसरी बातों में मुझे ऐसा लगा था कि उनका सोचने का तरीका कुछ हवाई और रोमानी किस्म का है... लेकिन मुझे दूर-दूर तक इस बात का गुमान नहीं था कि वे मेरी बात को इतना गलत समझेंगी और अपनी कल्पना के सहारे उनका ऐसा गलत मतलब लगाएँगी... आखिरकार... आखिर तो...'


1. इशारा 1861 में अर्धदासों की मुक्ति की तरफ है - अनुवादक।


'एक बात मैं आपको बता दूँ,' रस्कोलनिकोव तकिए पर से सर उठा कर तीखी और दहकती हुई नजरों से उसे घूरता हुआ चिल्लाया। 'मैं आपको एक बात बता दूँ...'

'क्या?' लूजिन चुपचाप खड़ा इंतजार करता रहा। उसके चेहरे से लग रहा था कि उसे गहरी ठेस लगी थी और वह किसी भी चीज का सामना करने को तैयार है। यह चुप्पी कुछ पल तक जारी रही।

'अगर आपने फिर कभी... मेरी माँ के बारे में... एक बात भी मुँह से निकालने की हिम्मत की... आपको मैं नीचे फेंक दूँगा।'

'तुम्हें क्या हो गया है?' रजुमीखिन जोर से चिल्लाया।

'तो यह बात है जनाब!' लूजिन का रंग पीला पड़ गया और वह अपना होठ चबाने लगा। 'मैं आपको इतनी बात बता दूँ, जनाब,' उसने सँभल कर कहना शुरू किया; वह लंबी-लंबी साँसें ले कर अपने आपको काबू में रखने की कोशिश कर रहा था, 'आते ही मैंने देख लिया था कि मेरे बारे में आपका रवैया कुछ बहुत अच्छा नहीं था। फिर भी मैं जान-बूझ कर यहाँ रुका रहा कि कुछ और बातें मालूम कर सकूँ। मैं बीमार आदमी की, और वह भी एक रिश्तेदार की, बहुत-सी बातें माफ कर सकता हूँ, लेकिन आपको... इसके बाद कभी नहीं...'

'मैं बीमार नहीं हूँ!' रस्कोलनिकोव जोरों से चीखा।

'सो तो जनाब, और भी बुरा है...'

'शैतान के घर में जाइए आप!'

लेकिन लूजिन अपनी बात पूरी किए बिना मेज और कुर्सी के बीच से रास्ता बनाते हुए वैसे भी वहाँ से चल पड़ने को तैयार हो गया था और इस बार रजुमीखिन उन्हें रास्ता देने के लिए खड़ा हो गया था। किसी की ओर देखे बिना, और जोसिमोव की ओर तो सर हिलाए बिना ही, जो काफी देर से उनको इशारा कर रहा था कि वह बीमार को उसके हाल पर छोड़ दें, लूजिन बाहर चला गया। उसने दरवाजे से बाहर निकलने के लिए झुकते समय इस डर से कि कहीं हैट दब न जाए, उसे कंधे तक ऊँचा उठा लिया था। उसकी झुकी हुई पीठ भी साफ पता दे रही थी कि उसका कैसा अपमान हुआ था।

'यही तुम्हारा व्यवहार करने का ढंग है, क्यों!' रजुमीखिन परेशान हो कर अपना सर हिलाते हुए बोला।

'मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो... तुम सब लोग... मेरे हाल पर मुझे छोड़ दो!' रस्कोलनिकोव दीवानों की तरह चिल्लाया। 'तुम लोग कभी मुझे सताना बंद भी करोगे कि नहीं मैं तुमसे डरता नहीं हूँ! अब मैं किसी से नहीं डरता, किसी से भी नहीं! मेरे पास से चले जाओ! मैं अकेला रहना चाहता हूँ, अकेला, एकदम अकेला!'

'आओ, चलें,' जोसिमोव ने सर हिला कर रजुमीखिन को इशारा किया।

'लेकिन इसे इस तरह छोड़ कर तो हम जा नहीं सकते!'

'चलो भी,' जोसिमोव ने आग्रहपूर्वक दोहराया और बाहर निकल गया। रजुमीखिन एक पल सोचता रहा और फिर उसके पीछे लपका।

'उसकी मर्जी के खिलाफ कुछ करने का नतीजा और भी बुरा हो सकता है,' जोसिमोव ने सीढ़ियों पर कहा। 'हमें कोई ऐसी बात नहीं करनी चाहिए जिस पर वह झुँझलाए।'

'आखिर उसे हो क्या गया है?'

'अगर उसे कोई ऐसा झटका अचानक लगे जिससे उसे बेहद खुशी पहुँचे, तो काम बन सकता है! घंटाभर पहले तक तो वह ठीक ही था... बात यह है कि कोई बात उसके दिमाग में समाई हुई है! कोई ऐसा विचार घर कर गया है जो उसके मन पर बोझ बन गया है... मुझे तो यही डर लगता है; कोई न कोई विचार जरूर ऐसा है!'

'शायद वह शख्स जो आया था... प्योत्र पेत्रोविच! उसकी बातों से मुझे लगा कि वह उसकी बहन से शादी करनेवाला है, और अपनी बीमारी से फौरन पहले उसे इसके बारे में एक खत मिला था...'

'हाँ, लानत पहुँचे उस आदमी पर! हो सकता है कि उसी ने सारी बात बिगाड़ दी हो। लेकिन तुमने एक बात देखी? वह किसी भी चीज में दिलचस्पी नहीं लेता, किसी भी चीज का उस पर असर नहीं होता, अलावा एक बात के जिस पर वह भड़क उठता है - और वह है वह कत्ल!'

'हाँ, अरे हाँ!' रजुमीखिन ने हामी भरी, 'मैंने भी इस बात पर ध्यान दिया है। वह दिलचस्पी लेता है, डरता है। जिस दिन वह बीमार था, उस दिन उसे थाने में डराया-धमकाया गया था और वह बेहोश हो गया था।'

'आज रात को मुझे इसके बारे में कुछ और बताना, फिर बाद में तुम्हें मैं कुछ बताऊँगा। उसमें मुझे काफी दिलचस्पी पैदा हो गई है! आधे घंटे में मैं उसे फिर देखने जाऊँगा... मैं तो समझता हूँ कि बुखार उसके दिमाग पर नहीं चढ़ेगा।'

'शुक्रिया! मैं पाशेंका के पास उतनी देर बैठ कर इंतजार करूँगा और नस्तास्या के जरिए उसकी खोज-खबर रखूँगा...'

अकेले रह जाने पर रस्कोलनिकोव ने बहुत बेसब्री और बेचैनी के साथ नस्तास्या को देखा। लेकिन उसे जाने की कोई जल्दी नहीं थी।

'अब थोड़ी-सी चाय चलेगी?' उसने पूछा।

'बाद में! नींद आ रही है मुझे! जाओ यहाँ से!' फिर उसने झट से अपना मुँह दीवार की ओर फेर लिया। नस्तास्या बाहर चली गई।