अपराध और दंड / अध्याय 4 / भाग 3 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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असल में बात यह थी कि आखिरी पल तक उसने सोचा तक नहीं था कि यह सिलसिला इस तरह से खत्म होगा। उसने बेहद अक्खड़ रवैया अपनाए रहा क्योंकि उसे गुमान भी न था कि वे दोनों कंगाल, लाचार औरतें उसके चंगुल से निकल भी सकती हैं। अहंकार और अपनी पीठ आप थपथपाने वाले आत्मविश्वास के सबब उसका यह विश्वास और भी पक्का हो गया था। प्योत्र पेत्रोविच बहुत मामूली हैसियत से ऊपर चढ़ कर यहाँ तक पहुँचा था, बीमारी की हद तक आत्मप्रशंसा का मारा हुआ था, अपनी बुद्धि और क्षमताओं पर बेहद नाज करता था, और अकेले में कभी-कभी आईने के सामने खड़े हो कर अपने रंग-रूप पर इतराया भी करता था। लेकिन उसे जिस चीज से सबसे बढ़ कर प्यार था, जिसे वह सबसे मूल्यवान समझता था, वह थी वह दौलत जो उसने भारी मेहनत से और तरह-तरह की तिकड़म से जमा की थी। इसी दौलत के बल पर वह उन सबके बराबर पहुँच सका था, जो कभी उससे ऊँचे समझे जाते थे।

जब उसने जल-भुन कर दूनिया से कहा था कि उसके बारे में तरह-तरह की बुरी बातें सुनने के बावजूद उसने उसे अपनाने का फैसला किया था, तो यह उसके दिल की बात थी और उसे सचमुच इस तरह की 'कमीनी कृतघ्नता' पर गुस्सा आ रहा था। फिर भी दूनिया के सामने शादी का प्रस्ताव रखते समय उसे इन अफवाहों के बेबुनियाद होने का पूरी तरह पता था। मार्फा पेत्रोव्ना खुलेआम इस बकवास का खंडन कर चुकी थीं। कस्बे के लोग तो इसे न जाने कब के भुला भी चुके थे और हमदर्दी के साथ दूनिया का पक्ष भी लेने लगे थे। यूँ वह इस बात से इनकार भी न करता कि ये बातें उसे तब भी मालूम थीं। इसके बावजूद वह दूनिया को ऊपर उठा कर अपने स्तर तक पहुँचाने के फैसले को बहुत बड़ी बहादुरी समझता था। दूनिया से इसकी चर्चा करके उसने इसी गुप्त भावना को व्यक्त किया था जिसे वह अपने मन में सँजोए हुए था और जिसे सराहना की दृष्टि से देखता था। फिर यह बात भी उसकी समझ से बाहर थी कि कोई इस बात की सराहना किए बिना रह भी कैसे सकता था। वह एक ऐसे परोपकारी व्यक्ति की भावना ले कर रस्कोलनिकोव से मिलने गया था, जिसे अपने नेक कामों का फल प्राप्त होनेवाला था और जो इस सिलसिले में खुशामद के प्यारे-प्यारे बोल सुनना चाहता था। सो अब सीढ़ियाँ उतरते समय वह यही सोचे जा रहा था कि उसे चोट पहुँचा कर और इस तरह ठुकरा कर उसके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया गया है।

रही दूनिया की बात तो उसके बिना उसका काम चल भी नहीं सकता था। उसे छोड़ देना उसके लिए नामुमकिन था। वह शादी के सुनहरे सपने कई वर्षों से देखता आ रहा था, लेकिन वह राह ही देखता रहा और पैसा बटोरता रहा। एकांत में आनंद ले कर वह अपनी कल्पना में एक ऐसी लड़की का चित्र बनाया करता था जो सच्चरित्र हो, गरीब हो (उसका गरीब होना जरूरी भी था), बहुत जवान, बहुत सुंदर, अच्छे घर की और पढ़ी-लिखी हो, बेहद दब्बू हो, बेहद मुसीबतें झेल चुकी हो और उसके सामने पूरी तरह झुकी हुई रहे, ऐसी लड़की जो जीवन-भर उसे अपना समझे, उसकी पूजा करे, उसकी और केवल उसकी सराहना करे। अपने काम से फुरसत मिलने पर वह इस लुभावने और रँगीले विषय के बारे में कैसे-कैसे दृश्यों की, कैसी-कैसी प्यार की रंगरलियों की कल्पना किया करता था! और अब तो बरसों का वह सुहाना सपना पूरा भी होनेवाला था। अव्दोत्या रोमानोव्ना की सुंदरता और शिक्षा ने उसे प्रभावित किया था; उसकी लाचारी देख कर उसके मुँह में पानी भर आया था; उसे पा कर तो जितने की उसने कल्पना की थी उससे ज्यादा ही उसे मिल गया था। वह ऐसी लड़की थी जिसमें स्वाभिमान था, चरित्र था, गुण थे, जिसकी शिक्षा और जिसके लालन-पालन का स्तर उसके मुकाबले ऊँचा था (यह बात वह महसूस करता था), और यह लड़की उसके एहसान की मारी जीवन-भर उसकी बाँदी बन कर रहेगी, उसके पाँव धो कर पिएगी, उसके बस में रहेगी! ...कुछ ही समय तो हुआ जब उसने बहुत सोच-विचार के बाद और भारी आशाएँ लगा कर अपने जीवन के ढर्रे में एक बड़ा परिवर्तन करने, अपने कार्यकलापों का दायरा बढ़ाने का फैसला किया था। उसे लग रहा था कि इस परिवर्तन के साथ समाज के ऊँचे वर्ग में पहुँचने की गहरी मनोकामना अब पूरा ही होनेवाली थी। ...सच तो यह है कि वह पीतर्सबर्ग में अपनी तकदीर आजमाने का फैसला किए हुए था। वह जानता था कि औरतें 'बहुत कुछ' हासिल करा सकती हैं। एक रूपवती, सच्चरित्र और सुसभ्य स्त्री का आकर्षण उसके मार्ग को सुगम बना सकता था, लोगों को उसकी ओर खींच कर लाने का चमत्कार कर सकता था, उसके चारों ओर एक नई आभा पैदा कर सकता था। पर अब यही सपना तो बिखर कर चूर-चूर हो चुका था! इस अप्रत्याशित और भयानक संबंध-विच्छेद से गोया उस पर बिजली टूट पड़ी थी। यह एक बहुत ही भयानक मजाक था, एक बेतुकी बात थी! उसने तो बस जरा-सा अकड़ने की कोशिश की थी, उसे अपनी पूरी बात कहने का मौका भी नहीं मिला था, उसने बस एक छोटा-सा मजाक किया था, एक प्रवाह में बह गया था - और उसका इतना गंभीर परिणाम हुआ! फिर यह बात भी सच है कि वह अपने ढंग से दूनिया से प्यार भी करता था; अपने सपनों में वह उसे पा भी चुका था - और अचानक! ...नहीं! अगले दिन, अगले ही दिन, उसे सब कुछ ठीक कर लेना होगा, सारी गुत्थियाँ सुलझा लेनी होंगी, हर बात तय कर लेनी होगी। सबसे बड़ी बात यह कि उसे उस गुस्ताख लौंडे को कुचल देना होगा, जो इन सब बातों की जड़ था। उसे बरबस रजुमीखिन का ध्यान भी आया और उसके बारे में सोचते ही उसे जाने क्यों बेचैनी होने लगी। लेकिन इस बारे में जल्दी ही अपने दिल को तसल्ली दे ली; भला उस तरह के आदमी को उसकी बराबरी का कैसे माना जा सकता था! लेकिन जिस आदमी से उसे सचमुच डर लग रहा था, वह था स्विद्रिगाइलोव... मतलब यह कि उसे अभी बहुत-सी चिंताएँ करनी थीं...

'नहीं, दूसरों से ज्यादा मेरा दोष है!' दूनिया ने माँ के गले से लग कर उसे प्यार करते हुए कहा। 'मैं उसके पैसे के लालच में खो गई थी लेकिन भैया, मैं अपनी इज्जत की कसम खा कर कहती हूँ, मुझे पता भी नहीं था कि वह इतना नीच शख्स है। उसकी असलियत को अगर मैंने पहले ही पहचान लिया होता तो मैं यूँ लालच में न आती! भैया, मुझे इल्जाम न देना!'

'भगवान ने बचा लिया! हमें भगवान ने बचा लिया!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना बुदबुदाईं, लेकिन उन्हें पूरा होश नहीं था। लग रहा था कि क्या हो गया है, इसे वह अभी तक ठीक से समझ भी नहीं पाई थीं।

खुशी तो सभी को मिली थी और पाँच मिनट में सब हँसने भी लगे थे। यह सोच कर कि क्या हो गया था, बीच-बीच में दूनिया सफेद पड़ जाती थी और उसके माथे पर बल आ जाते थे। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना को इसी बात पर ताज्जुब था कि वह खुद भी खुश थीं : अभी सबेरे तक वे यही समझ रही थीं कि लूजिन से रिश्ता टूटना बहुत बड़ी बदनसीबी होगी। रजुमीखिन भी खुश हो रहा था। उसे अभी तक अपनी खुशी जाहिर करने की हिम्मत नहीं हो रही थी, लेकिन इस खुशी के मारे वह फूला नहीं समा रहा था, मानो उसके दिल पर से कोई भारी पत्थर हट गया हो। उसे अब अपना जीवन उन लोगों को अर्पित करने का, उनकी सेवा करने का अधिकार था... कौन जाने अब क्या-क्या हो सकता था! लेकिन वह अभी आगे की संभावनाओं के बारे में सोचते भी डर रहा था और उसे अपनी कल्पना के घोड़ों को ढील देने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। अकेला रस्कोलनिकोव अभी तक अपनी जगह बैठा हुआ था : उदास भी और उदासीन भी। लूजिन से नाता तोड़ने पर सबसे ज्यादा जोर तो वही देता आ रहा था, लेकिन अब लग रहा था कि जो कुछ हुआ उसमें सबसे कम दिलचस्पी उसी को थी। दूनिया को रह-रह कर यह खयाल आता था कि वह अभी तक उससे नाराज है। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना उसे सहमी हुई देख रही थीं।

'स्विद्रिगाइलोव ने क्या कहा था?' दूनिया ने उसकी ओर बढ़ कर पूछा।

'अरे हाँ, बताओ तो सही!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना उत्सुकता से बोलीं।

रस्कोलनिकोव ने सर उठा कर ऊपर देखा।

'वह तुम्हें दस हजार रूबल भेंट करने पर जोर दे रहा था और मेरी मौजूदगी में एक बार तुमसे मिलना चाहता है।'

'उससे मिलना! किसी हालत में नहीं!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने चीख कर कहा। 'और उसे पैसे देने की बात कहने की हिम्मत कैसे पड़ी!'

रस्कोलनिकोव ने स्विद्रिगाइलोव के साथ अपनी बातचीत को (कुछ रूखे ढंग से) दोहराया। पर उसने मार्फा पेत्रोवना के भूत के आने की बात नहीं कही क्योंकि वह फालतू बातों में नहीं जाना चाहता था क्योंकि जब तक एकदम जरूरी न हो, उसका कोई बात भी कहने को जी नहीं चाह रहा था।

'तुमने जवाब क्या दिया?' दूनिया ने पूछा।

'पहले तो मैंने कहा कि मैं उसका कोई पैगाम ले कर नहीं जा सकता। तब उसने कहा कि मेरी मदद के बिना भी वह तुमसे मुलाकात के लिए जो कुछ कर सकेगा, कर गुजरेगा। उसने यकीन दिलाया कि तुम्हारे लिए उसके दिल में उठा तूफान एक आई-गई बात थी, और तुमसे अब उसे कोई लगाव नहीं रह गया है। वह नहीं चाहता कि तुम लूजिन से शादी करो... उसकी बातचीत कुछ उलझी-सी थी।'

'तुमने उसकी बातों के बारे में क्या राय बनाई है, रोद्या वह तुम्हें कैसा आदमी लगा?'

'मैं साफ बात बताऊँ, मैं बातों को ठीक से समझ भी नहीं सका। वह तुम्हें दस हजार रूबल देने की बात कहता है और दूसरी तरफ यह भी कहता है कि वह बहुत मालदार नहीं है। कभी कहता है कि वह कहीं चला जाएगा और दस मिनट बाद ही भूल जाता है कि ऐसा उसने कहा था। कभी कहता है कि शादी करनेवाला है और उसने लड़की तय कर ली है। ...इसमें कोई शक नहीं कि उसका कोई मंसूबा है, और वह शायद बुरा ही है। लेकिन अगर तुम्हारे बारे में उसका कोई मंसूबा होता तो वह उसे इतने भोंडेपन से क्यों कहता... यह बात कुछ अजीब लगती है। जाहिर है, मैंने तुम्हारी तरफ से यह रकम लेने से इनकार कर दिया, साफ और पक्का इनकार कर दिया। मुझे वह कुल मिला कर कुछ अजीब-सा लगा... कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि वह पागल है। लेकिन हो सकता है कि मेरा खयाल गलत हो; या हो सकता है कि वह महज कोई स्वाँग रच रहा हो। लगता है मार्फा पेत्रोव्ना के मरने का उसके दिल पर गहरा असर हुआ है।'

'भगवान उनकी आत्मा को शांति दें!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने आह भर कर कहा। 'मैं उनके लिए हमेशा प्रार्थना करूँगी! दूनिया, इस तीन हजार रूबल के बिना तो हम लोग कहीं के न रहते! यह तो जैसे भगवान ने छप्पर फाड़ा है! रोद्या, आज सबेरे हम लोगों के पास सिर्फ तीन रूबल थे और दुनेच्का और मैं घड़ी गिरवी रखने की बात सोच रहे थे, ताकि जब तक वह आदमी खुद अपनी तरफ से मदद करने की बात न करे, तब तक हमें उससे माँगना न पड़े।'

स्विद्रिगाइलोव के रकम देने की पेशकश पर दूनिया भौंचक रह गई और खड़ी-खड़ी कुछ सोचने लगी थी।

'उसके दिमाग में कोई भयानक मंसूबा है,' उसने बुदबुदा कर अपने आपसे कहा और काँप-सी उठी।

रस्कोलनिकोव का ध्यान उसके इस घोर डर की ओर गया।

'मैं समझता हूँ, मुझे अभी कई बार उससे मिलना पड़ेगा,' उसने दूनिया से कहा।

'उस पर तो हम नजर रखेंगे! मैं उसका पता जरूर खोज लूँगा!' रजुमीखिन जोश में चिल्लाया। 'मैं उसे आँखों से ओझल तक नहीं होने दूँगा। रोद्या ने मुझे इसकी इजाजत दे दी है। उसने अभी खुद कहा था : मेरी बहन का ध्यान रखना। मुझे क्या आपकी भी इजाजत है, अव्दोत्या रोमानोव्ना?'

दूनिया ने मुस्करा कर अपना हाथ बढ़ाया लेकिन उसके चेहरे पर चिंता की छाप बनी रही। पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना सहमी हुई उसे देखती रहीं, लेकिन तीन हजार रूबल की बात से उन्हें जो तसल्ली बँधी थी, वह साफ दिखाई दे रही थी।

कोई पंद्रह मिनट बाद वे सब दिल खोल कर हँस-बोल रहे थे। रस्कोलनिकोव भी कुछ देर तक ध्यान से सब कुछ सुनता रहा पर कुछ बोला नहीं। बोलने का फर्ज रजुमीखिन अदा किए जा रहा था।

'आखिर क्यों, आप लोग यहाँ से जाएँगी क्यों?' वह खुशी के जोश में बोलता रहा। 'और उस छोटे से कस्बे में जा कर करेंगी क्या सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहाँ आप सब एक साथ हैं और आपको एक-दूसरे की जरूरत है - आप लोगों को एक-दूसरे की बहुत ही जरूरत है, मेरी यह बात गाँठ में बाँधिए। बहरहाल, कुछ वक्त के लिए तो है ही... मुझे अपना साथी, अपना हमराज बना लीजिए, और मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि हम लोग एक शानदार योजना बनाएँगे। सुनिए! मैं आपको सारी बातें विस्तार से समझाता हूँ, सारी योजना! यह बात आज ही सुबह मेरे दिमाग में अचानक आई, जब कि यह सब हुआ भी नहीं था। ...मैं बतलाता हूँ : मेरे एक चाचा हैं, मैं उन्हें आप लोगों से मिलवाऊँगा। (बहुत ही मेल-जोल से रहनेवाले, इज्जतदार बूढ़े आदमी हैं।) मेरे इन चाचाजान के पास एक हजार रूबल की पूँजी है, पर वह अपनी पेन्शन पर गुजर कर लेते हैं सो उन्हें उस पैसे की कोई जरूरत नहीं है। पिछले दो साल से वह मेरी जान खा रहे हैं कि मैं यह रकम उनसे उधार ले लूँ और उन्हें छह फीसदी सूद दे दिया करूँ। मुझे पता है इसका मतलब क्या है; वह बस मेरी मदद करना चाहते हैं। पिछले साल तक मुझे इस रकम की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन इस साल मैंने फैसला किया है कि उनके आते ही यह रकम उनसे ले लूँगा। अब अगर आप लोग अपने तीन हजार में से एक हजार मुझे उधार दे दीजिए तो हमारे पास काम शुरू करने के लिए काफी पूँजी हो जाएगी। इस तरह हम लोग एक साझेदारी कायम करेंगे... और हम लोग कारोबार क्या करेंगे?'

इसके बाद रजुमीखिन अपनी योजना समझाने लगा। उसने विस्तार से बताया कि हमारे जितने प्रकाशक और किताबफरोश हैं, उन्हें किताबों के बारे में बहुत ही कम जानकारी है और इसीलिए वे काफी बुरे प्रकाशक हैं जबकि आमतौर पर कोई भी अच्छा प्रकाशन बिक जाता है, उसमें मुनाफा होता है, कभी-कभी तो काफी होता है। रजुमीखिन तो बहुत दिनों में प्रकाशक बनने का सपना देख रहा था। क्योंकि दो साल तक वह प्रकाशकों के यहाँ काम कर चुका था और वह तीन यूरोपीय भाषाएँ अच्छी तरह जानता है, हालाँकि अभी छह दिन पहले उसने रस्कोलनिकोव को बताया था कि वह जर्मन भाषा में 'कमजोर' है और चाहता था कि रस्कालेनिकोव उससे अनुवाद का आधा काम और उसका आधा मेहनताना ले ले। उस वक्त उसने झूठ बोला था, और रस्कोलनिकोव को पता था कि वह झूठ बोल रहा है।

'मैं पूछता हूँ हम यह मौका चूकें क्यों, आखिर क्यों, जब सफलता का सबसे बड़ा साधन हमारे पास है - खुद अपना पैसा!' रजुमीखिन जोश में आ कर बोला। 'जाहिर है कि काम तो भारी करना पड़ेगा, लेकिन काम हम सब लोग करेंगे... आप, अव्दोत्या रोमानोव्ना, मैं और रोदिओन... आजकल कुछ किताबों पर अच्छा मुनाफा मिल जाता है! फिर इस कारोबार में सबसे अच्छी बात यह है कि हमें मालूम होगा कि किस किताब के अनुवाद की जरूरत है। हम लोग सारे काम एक साथ करेंगे, अनुवाद करेंगे, किताबें छापेंगे, बहुत कुछ सीखेंगे। इसमें मैं काम का आदमी साबित हो सकता हूँ क्योंकि मुझे इसका अनुभव है। मैं लगभग दो साल से प्रकाशकों के यहाँ चक्कर काट रहा हूँ, और मुझे उनके कारोबार की हर बात मालूम हो चुकी है। मेरी मानिए! वे कोई परोपकारी या संत नहीं होते, तो हम यह मौका हाथ से क्यों जाने दें! अरे, दो-तीन किताबें तो मैं ऐसी जानता हूँ - यूँ मैं किसी को बताता नहीं कि उनका अनुवाद छापने की बात सोचने के ही सौ-सौ रूबल मिल सकते हैं। अरे, उनमें से एक तो ऐसी है कि मैं उसके लिए पाँच सौ भी लेने को तैयार नहीं हूँगा। एक बात आपको मालूम है अगर किसी प्रकाशक से मैं कहूँ तो मेरा दावा है कि वह हिचकिचाएगा - ऐसे ही काठ के उल्लू होते हैं ये लोग। जहाँ तक कारोबार का, छपाई-कागज-बिक्री का सवाल है, मुझ पर भरोसा रखिए, मैं यह सारी बातें अच्छी तरह जानता हूँ। हम लोग छोटे पैमाने पर शुरू करेंगे और धीरे-धीरे काम बढ़ाएँगे। पेट भरने को तो बहरहाल मिल जाएगा और हमारी पूँजी वापस आ जाएगी।'

दूनिया की आँखें चमक उठीं। बोली, 'आप जो कुछ कह रहे हैं, द्मित्री प्रोकोफिच, मुझे पसंद है।'

'मैं तो इसके बारे में कुछ जानती भी नहीं,' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना बीच में बोलीं, 'हो सकता है कि खयाल ठीक हो, लेकिन फिर... भगवान ही जानता है। नया काम है, पहले कभी किया तो है नहीं। जाहिर है, हम लोगों को यहाँ कुछ अरसा तो रहना ही पड़ेगा...' उन्होंने रोद्या की ओर देखा।

'तुम्हारा खयाल क्या है, भैया?' दूनिया ने पूछा।

'मैं समझता हूँ खयाल इसका बहुत अच्छा है,' उसने जवाब दिया। जाहिर है, अभी से प्रकाशनगृह के सपने देखना जल्दबाजी होगी, लेकिन पाँच-छह किताबें तो हम छाप ही सकते हैं और अपनी कामयाबी सफलता की पक्की बुनियाद डाल सकते हैं। एक किताब तो मैं भी जानता हूँ जो यकीनन बहुत बिकेगी। जहाँ तक इंतजाम का सवाल है, उस बारे में भी मुझे कोई शक नहीं। यह कारोबार को समझता है... लेकिन इसकी बातें तो हम बाद में भी कर सकते हैं...'

'वाह!' रजुमीखिन खुश हो कर चिल्लाया। 'अच्छा तो अब आगे सुनिए, इसी घर में एक फ्लैट है, इसी मालिक का। वह एक अलग और खास तरह का फ्लैट है जिसका दूसरे किराए के कमरों से कोई वास्ता नहीं। जरूरत का सारा फर्नीचर उसमें मौजूद है, किराया मामूली है और कमरे तीन हैं। आप लोग कुछ दिनों के लिए उसे ले ही लें। मैं कल ही आपकी घड़ी गिरवी रख कर पैसे ला दूँगा, और सारा इंतजाम कर लिया जाएगा। आप तीनों साथ रह सकते हैं, और रोद्या आपके साथ रहेगा... लेकिन, रोद्या, तुम चले कहाँ?'

'रोद्या, तुम अभी जा रहे हो?' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना ने ताज्जुब से पूछा।

'ऐसे वक्त?' रजुमीखिन भी भड़क गया।

दूनिया अपने भाई को अविश्वास और आश्चर्य से देखती रही। वह अपनी टोपी हाथ में लिए खड़ा था और उन लोगों से विदा लेने वाला ही था।

'कोई सुनेगा तो यही सोचेगा कि तुम लोग मुझे दफन करने जा रहे हो या मुझसे हमेशा के लिए विदा हो रहे हो,' उसने जरा अजीब ढंग से कहा।

उसने मुस्कराने की कोशिश की लेकिन होठों पर मुस्कराहट न आ सकी।

'लेकिन सच कौन जाने, शायद यह हमारी आखिरी ही मुलाकात हो...' उसके मुँह से अचानक निकल गया।

दरअसल वह सोच भी यही रहा था, जो उसके मुँह से किसी तरह निकल गया।

'तुम्हें हुआ क्या है?' उसकी माँ दुखी हो कर कराह उठीं।

'कहाँ जा रहे हो, रोद्या?' दूनिया ने कुछ अजीब ढंग से पूछा।

'नहीं, मुझे जाना ही होगा,' उसने कुछ अस्पष्ट लहजे में उत्तर दिया, गोया जो कुछ वह कहना चाहता हो, उसे कहने से झिझक रहा हो। लेकिन उसके चेहरे पर, जिसका रंग एकदम सफेद पड़ गया था, एक दृढ़ संकल्प की छाया थी।

'मैं यह कहने के इरादे से आया था... मैं जब यहाँ आ रहा था... माँ, मैं तुम्हें और दूनिया, तुम्हें भी बताना चाहता था कि हमारे लिए अच्छा यही होगा कि हम कुछ वक्त के लिए अलग हो जाएँ। मैं बीमार हूँ; मन में शांति नहीं है। ...मैं बाद में आऊँगा, खुद आ जाऊँगा... जब मुमकिन होगा। तुम लोगों को मैं याद करता हूँ और मुझे तुम लोगों से प्यार है। ...मुझे छोड़ दो, मेरे हाल पर छोड़ दो। इसका फैसला मैं पहले ही कर चुका था... यह बात अपने मन में ठान चुका था। मेरा चाहे जो हाल हो, चाहे मैं तबाह हो जाऊँ या न होऊँ, मैं अकेले रहना चाहता हूँ। मुझे भूल जाओ। यही बेहतर होगा... मेरे बारे में पूछताछ करना भी नहीं। जब भी हो सकेगा, मैं खुद आऊँगा या ...तुम लोगों को बुलवा लूँगा। सब कुछ फिर शायद पहले जैसा हो जाए, लेकिन तुम लोगों को अगर मुझसे प्यार है तो मुझे भूल जाओ... वरना मुझे तुम लोगों से नफरत होने लगेगी, मैं यह बात महसूस कर रहा हूँ... तो मैं चला!'

'हे भगवान!' पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना चीख उठीं।

माँ और बहन दोनों ही बेहद सहमी हुई थीं। यही हाल रजुमीखिन का था।

'रोद्या, रोद्या, हमसे रूठ कर न जाओ! हम लोग पहले की तरह रहेंगे!' बेचारी माँ दुखी हो कर बोलीं।

वह धीरे-धीरे दरवाजे की ओर बढ़ा लेकिन वहाँ तक उसके पहुँचने से पहले ही दूनिया वहाँ जा पहुँची।

'माँ का क्या हाल कर रहे हो भैया?' उसने धीमे लहजे में कहा। उसकी आँखें गुस्से से चमक रही थीं। रस्कोलनिकोव ने घूरती आँखों से उसे देखा।

'कोई बात नहीं, मैं आऊँगा... आया करूँगा,' वह बहुत ही धीमे बुदबुदाया, गोया उसे होश न हो कि वह क्या कह रहा है। इतना कह कर वह कमरे के बाहर निकल गया।

'बेरहम और दुष्ट स्वार्थी इनसान!' दूनिया चीख उठी।

'वह पा...गल जरूर है, निर्दयी नहीं। आपको दिखाई नहीं देता कि वह आपे में नहीं है? आप अगर इतना भी नहीं समझ सकतीं तो आप ही निर्दयी हैं!...'

रजुमीखिन ने उसका हाथ जोर से पकड़ कर उसके कान के पास कहा।

'भयभीत माँ से उसने चिल्ला कर कहा, मैं अभी लौट कर आता हूँ,' और भाग कर कमरे से बाहर चला गया।

गलियारे के छोर पर रस्कोलनिकोव उसकी राह देख रहा था।

'जानता था मैं कि मेरे पीछे तुम भागे आओगे,' उसने कहा। 'लौट जाओ उनके पास-उनके ही पास रहो... उनके पास कल भी रहना और हमेशा... मैं... मैं शायद आऊँ... अगर आ सका तो... अलविदा!'

मिलाने के लिए हाथ बढ़ाए बिना ही वह चल पड़ा।

'लेकिन जा कहाँ रहे हो? कर क्या रहे हो तुम? हो क्या गया है? इस तरह काम कैसे चलेगा...' रजुमीखिन घोर निराशा से बुदबुदाया।

रस्कोलनिकोव एक बार फिर ठहर गया। 'हमेशा के लिए कहे देता हूँ, मुझसे किसी बात के बारे में कभी न पूछना। तुम्हें बताने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं... मिलने भी मत आना। शायद मैं ही यहाँ आऊँ... मुझे भले ही छोड़ दो, लेकिन इनका... साथ न छोड़ना। समझे मेरी बात...।'

गलियारे में अँधेरा था। वे दोनों एक लैंप के पास खड़े थे। लगभग एक मिनट तक दोनों एक-दूसरे को चुपचाप देखते रहे। रजुमीखिन को वह एक मिनट जिंदगी भर याद रहा। रस्कोलनिकोव की सुलगती हुई तीखी नजरें हर पल पैनी से पैनी होती जा रही थीं और उसकी आत्मा, उसकी चेतना में, पैठती जा रही थीं। अचानक रजुमीखिन चौंका। लगा, उन दोनों के बीच कोई विचित्र बात हुई है ...यूँ लगा कि दोनों के बीच कोई विचार, कोई इशारा, कुछ भयानक और विकराल अचानक गुजर गया था, जिसे दोनों ने अचानक समझ लिया था... रजुमीखिन पीला पड़ गया।

'अब तुम्हारी समझ में आया...' रस्कोलनिकोव ने कहा। उसका चेहरा दर्द के मारे टेढ़ा हो रहा था। 'जाओ, उनके ही पास वापस जाओ,' उसने अचानक कहा और तेजी से मुड़ कर घर से बाहर चला गया...

मैं यह सब बयान नहीं करने जा रहा कि उस शाम पुल्खेरिया अलेक्सांद्रोव्ना के कमरे में क्या हुआ, रजुमीखिन किस तरह उन दोनों के पास वापस गया, किस तरह उन्हें तसल्ली दी, किस तरह उन्हें समझाया कि बीमार को आराम की जरूरत है, कि रोद्या जरूर आएगा, कि वह रोज आएगा, कि वह बेहद परेशान है, कि ऐसी कोई भी बात नहीं की जानी चाहिए जिससे उसकी चिड़चिड़ाहट बढ़े कि वह, यानी रजुमीखिन, उस पर नजर रखेगा, उसके लिए डॉक्टर बुलाएगा, सबसे अच्छा डॉक्टर, उसके इलाज का बंदोबस्त करेगा... सच तो यह है कि उसी रात रजुमीखिन ने उनके बीच एक बेटे और एक भाई की हैसियत से अपनी एक जगह बना ली।