अपराध और दंड / अध्याय 4 / भाग 4 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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रस्कोलनिकोव सीधा नहर के किनारे उसी घर तक गया जहाँ सोन्या रहती थी। हरे रंग का पुराना-सा तीन-मंजिला मकान। दरबान को खोज कर उसने दर्जी कापरनाउमोव के यहाँ तक पहुँचने का रास्ता, मोटे तौर पर मालूम किया। आँगन के एक कोने में अँधेरी और तंग सीढ़ियों का दरवाजा ढूँढ़ कर वह ऊपर दूसरी मंजिल पर गया और एक गलियारे में जा निकला जो आँगन से लगी-लगी पूरी दूसरी मंजिल के चारों ओर चली गई थी। अभी वह अँधेरे में भटक ही रहा था कि कापरनाउमोव के दरवाजे तक पहुँचने के लिए किधर घूमे, कि उससे तीन कदम की दूरी पर एक दरवाजा खुला। उसने कुछ सोचे-समझे बिना उस दरवाजे को पकड़ लिया।

'कौन है?' एक औरत की घबराई हुई आवाज ने पूछा।

'मैं... तुमसे मिलने आया हूँ,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया और छोटी-सी ड्योढ़ी में घुस गया। टूटी-सी एक कुर्सी पर ताँबे के दबे-पिचके शमादान में शमा जल रही थी।

'आप! हे भगवान,' सोन्या ने कमजोर आवाज में कहा और उसी जगह खड़ी रह गई।

'तुम्हारा कौन-सा कमरा है इधर?' फिर रस्कोलनिकोव उसकी ओर न देखने की कोशिश करते हुए जल्दी से अंदर चला गया।

मिनट भर बाद सोन्या भी शमा लिए हुए अंदर आई, और शमादान पर रख कर घबराई-सी उसके सामने खड़ी हो गई। उसे एक अजीब-सी बेचैनी महसूस हो रही थी और वह उसके अचानक इस तरह वहाँ आ जाने से थोड़ा डर गई थी। अचानक उसके पीले चेहरे पर लाली दौड़ गई और आँखों में आँसू आ गए... वह परेशानी और शर्मिंदगी महसूस कर रही थी, पर साथ ही खुश भी थी... रस्कोलनिकोव तेजी से घूमा और मेज के पास पड़ी कुर्सी पर धप से बैठ गया। कमरे की हर चीज पर उसने एक सरसरी-सी नजर डाली।

कमरा काफी बड़ा लेकिन बेहद नीची छत वाला था। कापरनाउमोव परिवार ने बस यही कमरा किराए पर उठाया था। बाईं ओर की दीवार में जो बंद दरवाजा था, वह उनके ही कमरों में जाने का रास्ता था। सामने, दाहिनी दीवार में एक और दरवाजा था जिसमें हमेशा ताला पड़ा रहता था। वह एक और फ्लैट में जाने का रास्ता था, जो किसी और का था। सोन्या का कमरा अनाज के बखार जैसा लगता था। बहुत ही बेतुका, चौकोर कमरा था जिसका कोई कोना बराबर नहीं था। इस वजह से वह देखने में कुछ अजीब और भयानक लगता था। एक दीवार में तीन खिड़कियाँ नहर की ओर खुलती थीं और वह तिरछी दीवार ऐसा तीखा कोण बनाती हुई दूसरी दीवार से मिलती थी कि बहुत तेज रोशनी के बिना उस कोने में रखी हुई किसी चीज को देखना भी मुश्किल था। दूसरा कोना जरूरत से ज्यादा कोणदार था। कमरे में फर्नीचर के नाम पर थोड़ी-सी ही चीजें थीं। दाहिनी ओर कोने में एक पलँग और उसके पास, दरवाजे से सटी हुई एक कुर्सी। उसी दीवार के सहारे दूसरे फ्लैट में खुलने वाले दरवाजे के पास चीड़ की एक छोटी-सी बहुत मामूली मेज और उस पर नीले रंग का मेजपोश। मेज के पास बेंत से बुनी हुई दो कुर्सियाँ पड़ी थीं। सामनेवाली दीवार के सहारे, तीखे कोने के पास एक मामूली-सी, बहुत छोटी अलमारी रखी थी, जो रेगिस्तान में खोई हुई लगती थी। कमरे में सामान बस इतना ही था। दीवार पर पीले रंग का खरोंच लगा हुआ, मैला कागज कोनों के पास एकदम काला पड़ चुका था। जाड़ों में यहाँ बेहद सीलन रहती होगी और धुआँ भर जाता होगा। हर चीज से गरीबी टपकती थी। पलँग के इर्द-गिर्द पर्दे तक नहीं थे।

सोन्या चुपचाप खड़ी मेहमान को देखती रही, जो उसके कमरे को ध्यान से, बेझिझक देखे जा रहा था। आखिरकार वह काँपने लगी, गोया अपनी किस्मत का फैसला करनेवाले के सामने खड़ी हो।

'देर हो गई... ग्यारह तो बज ही रहा होगा?' उसने पूछा। वह अभी तक नजरें झुकाए हुए था।

'जी,' सोन्या ने बुदबुदा कर कहा, 'इतना ही होगा,' उसने जल्दी से इस तरह कहा मानो उसके बच निकलने का यही एक रास्ता हो। 'मकान-मालकिन की घड़ी में अभी घंटा बजा था... मैंने खुद सुना था...'

'मैं यहाँ आखिरी बार आया हूँ,' रस्कोलनिकोव ने उदास स्वर में आगे कहा, हालाँकि यहाँ वह पहली ही बार आया था। 'शायद तुमसे अब मुलाकात न हो...'

'आप... क्या कहीं जा रहे हैं?'

'मालूम नहीं... कल पता चलेगा...'

'तो कल आप कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ नहीं आएँगे?' सोन्या की आवाज काँप उठी।

'नहीं कह सकता। कल सुबह पता चलेगा... लेकिन बात कुछ और है, मैं कुछ कहने आया हूँ...'

उसने सोच में डूबी नजरें उठा कर सोन्या की ओर देखा अचानक उसे खयाल आया कि देर से वह कुर्सी पर बैठा था और वह अभी तक उसके सामने खड़ी रही थी।

'खड़ी क्यों हो? बैठ जाओ,' उसने बहुत बदले हुए लहजे में कहा, जिसमें मुलायमियत थी और स्नेह था।

वह बैठ गई। रस्कोलनिकोव ने प्यार से और उस पर तरस खाते हुए उसे देखा।

'कितनी दुबली हो तुम! हाथ तो देखो! काँच का बना हुआ लगता है, मुर्दा औरत जैसा।'

यह कह कर उसने उसका हाथ पकड़ लिया। सोन्या धीरे से मुस्कराई। 'मैं हमेशा से ऐसी ही हूँ,' वह बोली।

'घर पर रहती थीं, तब भी?'

'जी।'

'जरूर रही होगी,' उसने जल्दी से कहा। अचानक उसके चेहरे का भाव और उसका स्वर फिर बदल गए। उसने एक बार फिर चारों ओर नजर डाली।

'यह जगह कापरनाउमोव से तुमने किराए पर ली है?'

'जी...'

'वे लोग उधर रहते हैं, दरवाजे के पार?'

'जी हाँ... ऐसा ही एक कमरा उनके पास भी है।'

'सिर्फ एक कमरे में?'

'जी।'

'मैं तुम्हारे इस कमरे में रात को रहूँ तो डर से मर जाऊँ,' उसने उदास हो कर कहा।

'बहुत अच्छे लोग हैं, बड़े मेहरबान,' सोन्या ने जवाब दिया। वह अभी भी बौखलाई हुई लग रही थी। 'यह सारा फर्नीचर, हर चीज... हर चीज उन्हीं की है। और वे बड़े नेक लोग हैं; उनके बच्चे भी मुझसे मिलने आते हैं...'

'सब बोलने में मुश्किल महसूस करते हैं न?'

'जी... वह हकलाता है... और लँगड़ा भी है। उसकी बीवी भी... वह हकलाती तो नहीं लेकिन साफ नहीं बोल पाती। अच्छी, बहुत अच्छे दिल की औरत है। पहले यह किसी के घर में बँधुआ नौकर था। सात बच्चे हैं... हकलाता सिर्फ सबसे बड़ा है, बाकी सब बस बीमार रहते हैं... लेकिन हकलाते नहीं। ...इनके बारे में आपने कहाँ सुना?' उसने कुछ ताज्जुब से पूछा।

'तुम्हारे बाप ने मुझे बताया था, उस दिन। तुम्हारे बारे में उन्होंने मुझे सब कुछ बताया... किस तरह तुम छह बजे चली गईं और लौट कर नौ बजे आईं और किस तरह कतेरीना इवानोव्ना एक पाँव पर तुम्हारे पलँग के पास बैठी रहीं।'

सोन्या उलझन में पड़ गई। 'मुझे लगा कि आज उन्हें मैंने देखा है,' वह सकुचाते हुए फुसफुसाई।

'किसे?'

'पापा को। मैं सड़क पर चली जा रही थी। वहाँ उस नुक्कड़ पर... कोई दस बजे होंगे... मुझे ऐसा लगा कि वे मेरे आगे चल रहे हैं। एकदम वही लग रहे थे। मैं कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ जा रही थी...'

'तुम सड़क पर चल रही थीं?'

'जी,' सोन्या ने झट से जवाब दिया और फिर एक बार सिटपिटा कर नीचे घूरने लगी।

'जब तुम कतेरीना इवानोव्ना के साथ रहती थीं तब वे तुम्हें जरूर मारती होंगी। मारती थीं न?'

'जी नहीं, आप क्या कह रहे हैं हरगिज नहीं!' सोन्या ने उसे कुछ-कुछ हैरत के भाव से देखा।

'तो उन्हें तुम प्यार करती हो?'

'मैं उन्हें प्यार करती हूँ। जरूर करती हूँ!' सोन्या ने दर्द भरी आवाज में जोर दे कर कहा और दोनों हाथ आपस में कस कर भींच लिए। 'आह, उन्हें आप नहीं जानते... काश कि आपको मालूम होता। वे बिलकुल बच्चों जैसी हैं। दुख झेलते-झेलते... उनका दिमाग अब ठिकाने भी नहीं रह गया। ...कितनी समझदार हुआ करती थीं वे... कितनी उदार... कितनी नेक! आह, आप नहीं जानते, कुछ भी नहीं जानते!'

सोन्या ने यह बात जज्बात और दर्द के एहसास से हाथ मलते हुए कुछ इस तरह कही, जैसे वह हताश हो चुकी हो। उसके पीले गालों पर लाली दौड़ गई और उसकी आँखों से दर्द झाँकने लगा। साफ मालूम होता था कि दिल की गहराइयों तक वह हिल उठी थी, कि वह कुछ कहने किसी के हक में कुछ कहने के लिए, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए तड़प रही थी। चेहरे की एक-एक भंगिमा से, यूँ कहें कि अथाह संवेदना प्रकट हो रही थी।

'मुझे मारती थीं। यह बात आपने कही कैसे? हे भगवान, मुझे वे मारती थीं क्या! और अगर मुझे मारती भी थीं तो उससे क्या आपको कुछ नहीं मालूम, कुछ भी नहीं मालूम इस बारे में... वे कितनी दुखी हैं... आह, कितनी! और बीमार... वे न्याय की तलाश में हैं, उनका मन एकदम पवित्र है। उन्हें इतना पक्का विश्वास है कि हर जगह न्याय होना चाहिए और वे इसकी आशा भी करती हैं... अगर आप उन्हें तकलीफ भी पहुँचाएँ तो भी वे आपके साथ अन्याय नहीं करेंगी। वे यह नहीं समझतीं कि लोगों का न्यायपूर्ण होना असंभव है और जब लोग ऐसे नहीं होते तो उन्हें इस बात पर गुस्सा आता है... बच्चों की तरह, बिलकुल बच्चों की तरह! वे बहुत इन्साफपसंद हैं।'

'पर तुम्हारा क्या होगा?'

सोन्या ने उसे सवालिया निगाहों से देखा।

'बात यह है कि अब उन सबका बोझ तुम्हारे ऊपर आन पड़ा है। यूँ तो पहले भी सबका बोझ तुम्हारे ही ऊपर था, और ऊपर से तुम्हारा बाप तुम्हारे पास शराब के लिए पैसे माँगने आ जाता था। खैर, अब गाड़ी कैसे चलेगी'

'नहीं मालूम,' सोन्या ने उदास हो कर कहा।

'वे लोग क्या वहीं रहेंगे?'

'नहीं मालूम... उन्हें उस घर का काफी बकाया किराया चुकाना है लेकिन मैंने सुना है, मकान-मालकिन ने आज कहा कि वह उन लोगों से छुटकारा पाना चाहती है। उधर कतेरीना इवानोव्ना भी कहती हैं कि वहाँ अब एक मिनट भी नहीं रहेंगी।'

'इतनी हिम्मत उनमें कहाँ से आई तुम्हारे भरोसे?'

'जी नहीं, इस तरह की बातें मत कीजिए! ...हम सब एक हैं, एक हो कर रहते हैं।' सोन्या फिर उत्तेजित हो उठी थी। साथ ही उसे गुस्सा भी आ रहा था, ठीक वैसे ही जैसे किसी छोटी-सी चिड़िया को गुस्सा आए। 'वे और कर भी क्या सकती थीं क्या कर सकती थीं...' वह उत्तेजना के साथ अपनी बात को बार-बार दोहराती रही। 'और आज वे रो किस तरह रही थीं! उनका दिमाग ठिकाने नहीं है, आपने देखा नहीं। कतई ठिकाने नहीं है। एक पल बच्चों की तरह परेशान होने लगती हैं कि कल हर चीज ठीक-ठाक होनी चाहिए। खाना और सभी चीजें, और अगले ही पल अपने हाथ मलने लगती हैं, खून थूकने लगती हैं, रोने लगती हैं, निराशा हो कर दीवार से अपना सर टकराने लगती हैं। कुछ देर बाद वे फिर मामूल पर आ जाती हैं। वे तो सारी आस आप से लगाए हुए हैं; कहती हैं कि अब आप उनकी मदद करेंगे। यह भी कहती हैं कि कहीं से थोड़ा पैसा उधार ले कर वे मेरे साथ अपने शहर चली जाएँगी, वहाँ भले घरों की लड़कियों के लिए स्कूल खोलेंगी, मुझे उसकी निगरानी सौंप देंगी, और हम लोग इस तरह एक नई और शानदार जिंदगी शुरू करेंगे। वे मुझे चूमती हैं, कलेजे से लगाती हैं, तसल्ली देती हैं। मैं आपसे क्या बताऊँ, उन्हें कितना भरोसा है, अपने इन सपनों पर कितना भरोसा है! कोई उनकी इन बातों को काटे तो कैसे! आज उन्होंने सारा दिन कपड़े धोते, झाड़ू लगाते और फटे कपड़ों की मरम्मत करते बिताया। अपने कमजोर हाथों से वे कपड़े धोने की नाद घसीट कर कमरे में लाईं और हाँफ कर पलँग पर ढेर हो गईं। आज सुबह हम लोग पोलेंका और लीदा के लिए जूते खरीदने बाजार गए क्योंकि उनके जूते एकदम फट गए थे। हम लोग जितना पैसा जुटा सके, वह काफी नहीं था; पैसे काफी कम पड़ रहे थे। उन्होंने भी ऐसे प्यारे, छोटे-छोटे जूते पसंद किए थे कि क्या कहूँ; आप नहीं जानते... उनकी पसंद बहुत अच्छी है, वे वहीं दुकान के नौकरों के सामने फूट-फूट कर रोने लगीं कि उनके पास पूरा पैसा नहीं था... देख कर कलेजा फट रहा था।'

'अच्छा, अब समझ में आया कि तुम... इस तरह क्यों रहती हो,' रस्कोलनिकोव ने कड़वी मुस्कान के साथ कहा।

'तो आपको उन पर तरस नहीं आता दुख नहीं होता?' सोन्या फिर उस पर बरसी। 'क्या मैं नहीं जानती कि आपने यह सब देखे बिना भी अपनी आखिरी रकम तक उन्हें दे दी थी। काश कि आपने वह सब देखा होता! कितनी ही बार उन्हें ऐसा हो चुका। कितनी ही बार वे मेरी वजह से रोईं! अभी पिछले हफ्ते, जी हाँ, मेरी ही वजह से! पापा के मरने से बस एक हफ्ता पहले। मैंने ही बेरहमी की थी! कितनी ही बार मैं ऐसा कर चुकी! आह, इस बारे में सोच कर मैं दिन-भर दुखी होती रही!'

सोन्या उस बात को याद करके दुख से हाथ मलने लगी।

'तुमने बेरहमी की थी?'

'हाँ, मैंने... मैंने ही। उन लोगों से मैं मिलने गई थी,' वह रो-रो कर कहती रही, 'और पापा ने कहा : 'कुछ पढ़ कर सुनाओ, सोन्या, मेरे सर में दर्द हो रहा है, यह किताब पढ़ कर सुनाओ।' एक किताब थी उनके पास जो उन्हें आंद्रेई सेम्योनोविच लेबेजियातनिकोव ने दी थी। वे वहीं रहते हैं और न जाने कहाँ से मजेदार किताबें लाते हैं। मैंने कहा : 'मैं ज्यादा देर रुक नहीं सकती।' दरअसल मैं पढ़ना नहीं चाहती थी, और खास कर कतेरीना इवानोव्ना को कुछ कालर और कफ दिखाने गई थी। उस फेरीवाली लिजावेता ने कुछ कालर और कफ मेरे हाथ बहुत सस्ते बेचे थे। खूबसूरत, नए और कढ़े हुए। कतेरीना इवानोव्ना को बहुत अच्छे लगे; उन्होंने उनको लगा कर खुद को आईने में देखा और बेहद खुश हुईं। 'ये मुझे दे दे, सोन्या', वे बोलीं, 'मैं हमेशा तेरा एहसान मानूँगी,' उन्होंने कहा था। उनके लिए उनका जी बहुत ललचा गया था। पर उन्हें वे पहनतीं तो कब! बस उन्हें देख कर वे अपने बीते हुए सुखी दिनों की याद कर रही थीं। उन्होंने अपने आपको आईने में देखा, सराहा और तब, जबकि उनके पास ढंग के कपड़े तक नहीं, अपनी कोई चीज नहीं, बरसों से कभी रही भी नहीं! पर कभी किसी से कोई चीज वे नहीं माँगतीं। लेकिन ये उन्होंने इसलिए माँगे कि उन्हें बेहद अच्छे लगे थे। पर मेरा जी देने को नहीं चाहता था। 'ये आपके किस काम के? मैंने कहा। मैंने उनसे बिलकुल इसी तरह कह दिया जो कि कहना नहीं चाहिए था! उन्होंने मुझे इस तरह देखा कि बस पूछिए मत। मेरे इनकार करने पर वे इतनी दुखी हुईं, इतनी हुईं कि बस, उन्हें देख कर दिल दुखता था... उन्हें कालर न मिलने का दुख नहीं था, दुख था मेरे इनकार का... यह बात मैंने अच्छी तरह समझ ली थी। काश कि मैं वह सब लौटा सकती, बदल सकती, अपनी कही हुई बात वापस ले सकती! काश कि मैं... लेकिन आपको इससे क्या!'

'उस फेरीवाली लिजावेता को तुम जानती थीं?'

'जी... आप भी उसे जानते थे क्या?' सोनिया ने जरा ताज्जुब से पूछा।

'कतेरीना इवानोव्ना को तपेदिक है, तेजी से बढ़नेवाली तपेदिक; जल्दी ही वे मर जाएँगी,' रस्कोलनिकोव ने उसके सवाल का जवाब दिए बिना कुछ ठहर कर कहा।

'अरे नहीं, ऐसा मत कहिए!' सोन्या ने अनायास ही रस्कोलनिकोव के दोनों हाथ कस कर पकड़ लिए, जैसे यह मना रही हो कि वे न मरें।

'लेकिन उनके लिए मर जाना ही बेहतर होगा।'

'नहीं, बेहतर नहीं होगा, कतई नहीं होगा!' सोन्या ने एक बार फिर डर कर दोहराया। उसे शायद पता भी न रहा हो कि वह क्या कह रही है।

'और बच्चे? उन्हें अपने साथ रखने के अलावा तुम कर भी क्या सकती हो?'

'आह, मुझे नहीं मालूम,' सोन्या चीखी और निराश हो कर दोनों हाथों में अपना सर थामे बैठ गई। साफ लग रहा था कि यह बात उसके मन में पहले भी कई बार आई थी। रस्कोलनिकोव ने तो बस उसे फिर से कुरेद दिया था।

'और इस वक्त भी, जबकि कतेरीना इवानोव्ना अभी जिंदा हैं, तुम अगर बीमार पड़ जाओ और अस्पताल भेज दी जाओ, तब क्या होगा?' निर्दयता से वह इसी बात को आगे बढ़ाता रहा।

'आप ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं? ऐसा नहीं हो सकता!' सोन्या का चेहरा दहशत के मारे फड़कने लगा।

'नहीं हो सकता!' रस्कोलनिकोव बेरहम मुस्कान के साथ कहता रहा। 'इसके खिलाफ तुमने कोई बीमा तो कराया है नहीं, या कराया है तब उनका क्या होगा सब सड़क पर मारे-मारे फिरेंगे... सारे के सारे वे। खाँस-खाँस कर भीख माँगेंगी और किसी दीवार से अपना सर टकराएँगी, जैसा कि आज सुबह किया था, और बच्चे रोएँगे... फिर वे कहीं गिर पड़ेंगी, थाने और अस्पताल ले जायी जाएँगी, वहीं मर जाएँगी, और बच्चे...'

'नहीं, नहीं! ...भगवान ऐसा नहीं होने देगा!' अचानक सोन्या के सीने में भरा हुआ सारा गुबार फूट पड़ा। वह याचक भाव से उसकी बात सुनती आ रही थी और दोनों हाथ जोड़े उसे देखे जा रही थी, मानो सब कुछ उसी पर निर्भर हो।

रस्कोलनिकोव उठा और कमरे में टहलने लगा। एक मिनट बीता। सोन्या घोर निराशा में सर झुकाए खड़ी थी। हाथ ढीले लटक रहे थे।

'क्या तुम कुछ पैसा नहीं बचा सकतीं आड़े वक्तों के लिए?' उसने अचानक सोन्या के सामने रुक कर पूछा।

'नहीं,' सोन्या ने धीमे से कहा।

'जाहिर है, तुम्हारे लिए ऐसा मुमकिन नहीं हैं। कभी कोशिश की?' उसने लगभग व्यंग्य से कहा।

'की तो है।'

'और उसका कोई नतीजा नहीं निकला! जाहिर है, नहीं निकला होगा! इसमें पूछने की क्या बात!'

वह एक बार फिर कमरे में टहलने लगा। एक मिनट और बीता।

'तुम्हें रोज पैसे नहीं मिलते?'

सोन्या पहले से भी ज्यादा सिटपिटा गई। उसका चेहरा फिर तमतमा उठा।

'नहीं,' उसने बहुत कोशिश करके धीमे से कहा, जैसे उसे भारी तकलीफ हो रही हो।

'जाहिर है, पोलेंका का भी यही हाल होगा,' वह अचानक बोला।

'नहीं, बिलकुल नहीं! ऐसा नहीं हो सकता, कभी नहीं!' सोन्या घोर निराशा से तड़प कर जोर से चिल्लाई, गोया किसी ने उसके छुरा भोंक दिया हो। 'भगवान ऐसी भयानक बात कभी नहीं होने देगा।'

'दूसरों का तो वह ऐसा ही हाल करता है।'

'नहीं कतई नहीं! भगवान करेगा उसकी रक्षा, भगवान करेगा! ...' उसने बेचैन हो कर एक बार फिर कहा।

'भगवान तो शायद कोई है भी नहीं,' रस्कोलनिकोव ने कुछ बदनीयती से मुस्करा कर कहा और उसकी ओर देखने लगा।

अचानक सोन्या के चेहरे का भाव भयानक सीमा तक बदल गया और उस पर एक जरा-सी कँपकँपी दौड़ गई। उसने रस्कोलनिकोव को अकथनीय निंदा के भाव से देखा, कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन कुछ कह न सकी और दोनों हाथों में अपना मुँह छिपा कर, सिसक-सिसक कर रोने लगी।

'अरे, कहती हो कि कतेरीना इवानोव्ना का दिमाग ठिकाने नहीं है। अरे, खुद तुम्हारा दिमाग ठिकाने नहीं है,' उसने थोड़ी देर की चुप्पी के बाद कहा।

कोई पाँच मिनट बीत गए। वह अभी तक सोन्या की ओर देखे बिना कमरे में इधर-से-उधर टहल रहा था। आखिरकार वह उसके पास गया। उसकी आँखें चमक रही थीं। उसके कंधों पर अपने दोनों हाथ रख कर वह उसकी आँसू भरी आँखों में आँखें डाल कर देखने लगा। उसकी आँखों में कठोरता थी, गोया उसे तेज बुखार चढ़ आया हो, उसकी नजरें तीर की तरह बेध रही थीं, होठ फड़क रहे थे... अचानक वह तेजी से नीचे झुका और जमीन पर गिर कर उसने सोन्या के पाँव चूम लिए। सोन्या छिटक कर उससे इस तरह दूर हो गई जैसे किसी पागल से किनाराकशी कर रही हो। तब वह पागलों जैसा लग भी रहा था।

'यह कर क्या रहे हैं आप मेरे साथ?' वह धीरे से बुदबुदाई। उसका रंग पीला पड़ गया था। अचानक घोर तकलीफ ने दिल को जकड़ लिया था।

वह फौरन उठ खड़ा हुआ।

'मैं तुम्हारे नहीं, पूरी दबी-कुचली मानव जाति के सामने सर झुका रहा था,' वह जुनून के आलम में बोला और खिड़की की तरफ चला गया। 'सुनो,' एक मिनट बाद उसने सोन्या की ओर मुड़ कर कहा। 'मैंने कुछ ही देर हुए एक बदतमीज आदमी से कहा था कि वह तुम्हारी कानी उँगली के बराबर भी नहीं... यह भी कहा था कि मैंने अपनी बहन को तुम्हारे साथ बिठा कर उसे सम्मान दिया था।'

'छिः उनसे आपने ऐसी बात कही और अपनी बहन के सामने।' सोन्या डर कर चीखी। मेरे साथ बैठना और सम्मान की बात! कहाँ मैं एक... कलंकिनी हूँ! ...मैं एक पापिन... आह, आपने ऐसी बात कही भी कैसे?'

'मैंने तुम्हारे बारे में अपनी बात तुम्हारे कलंक और तुम्हारे पाप की वजह से नहीं, उन तमाम मुसीबतों को ध्यान में रख कर कही थी, जो तुमने झेली हैं। लेकिन यह बात तो सच है कि तुम बहुत बड़ी पापिन हो।' उसने उत्तेजना से कहा, 'सो तुम्हारा सबसे बड़ा पाप यह है कि तुमने बेकार ही अपने आपको तबाह और अपने साथ विश्वासघात किया है। यह क्या भयानक बात नहीं? यह भयानक बात नहीं है क्या कि तुम ऐसी गंदगी में रहती हो जिससे तुम्हें नफरत है, और साथ ही तुम खुद जानती हो (तुम्हें बस अपनी आँखें खोलने की जरूरत है) कि तुम ऐसा करके किसी की मदद नहीं कर रही हो, किसी चीज से किसी को बचा नहीं रही हो मुझे बताओ,' वह लगभग दीवानों की तरह बोलता रहा, 'यह कलंक और यह पतन तुम्हारे अंदर उनकी उलटी जो दूसरी पवित्र भावनाएँ हैं, उनके साथ कैसे रह सकते हैं इससे कहीं अच्छी, हजार गुनी माकूल और समझदारी की बात यह होगी कि तुम पानी में छलाँग लगा दो और यह सब खत्म कर दो।'

'लेकिन फिर उनका क्या होगा' सोन्या ने दर्दभरी आँखों से उसे घूरते हुए पूछा। फिर भी उसके भाव से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे इस सुझाव पर कोई हैरत हुई हो। रस्कोलनिकोव ने विचित्र ढंग से सोन्या को देखा।

उसने सोन्या के चेहरे से सब कुछ पढ़ लिया : तो यह विचार उसके मन में पहले भी उठा होगा, शायद कई बार, और हर तरफ से निराश हो कर ईमानदारी से उसने यही सोचा होगा कि इसे खत्म कैसे किया जाए। और यह सब इतनी ईमानदारी से उसने सोचा होगा कि अब इस सुझाव पर उसे कोई खास हैरत नहीं हो रही थी। उसके शब्दों की क्रूरता की ओर भी उसने कोई ध्यान नहीं दिया था। (जाहिर है, सोन्या ने उसके तानों और अपने कलंक की ओर उसके विचित्र रवैए की ओर भी ध्यान नहीं दिया था, और यह बात भी रस्कोलनिकोव की समझ में अच्छी तरह आई।) लेकिन फिर यह बात भी उसकी समझ में आई कि अपनी इस कलंकित और अपमानित स्थिति का विचार उसे कितनी बुरी तरह सता रहा था और कितने अरसे से सताता आ रहा था। 'क्या चीज थी, वह क्या चीज थी,' उसने सोचा, 'जो अब तक उसे इस सिलसिले को खत्म कर देने से रोके हुए रही...' अब जा कर उसकी समझ में आया कि सोन्या के लिए कितना महत्व था उन छोटे-छोटे अनाथ बच्चों का और उस दयनीय, आधी पागल कतेरीना इवानोव्ना का, जो तपेदिक की मरीज थी और बार-बार अपना सर दीवार से टकराने लगती थी।

तो भी यह बात उसके दिमाग में साफ थी कि अपने स्वभाव की वजह से और जैसे-तैसे करके उसने जो शिक्षा पाई थी उसकी वजह से, वह ऐसी हालात में हमेशा तो नहीं रह सकती थी। लेकिन यह सवाल उसे अब भी परेशान कर रहा था कि इतने दिनों तक ऐसी हालत में रहने के बाद अगर वह पानी में कूद कर आत्महत्या नहीं कर सकी तो फिर पागल क्यों नहीं हो गई? यह तो वह जानता था कि समाज में सोन्या की स्थिति एक बदनसीबी का नतीजा था, हालाँकि बदनसीबी की बात तो यह थी कि पहले कभी ऐसा हुआ ही न हो या अकसर होता न रहता हो, ऐसा भी नहीं था लेकिन उसकी समझ में यही आता था कि इसी वजह से, जो थोड़ी-बहुत शिक्षा उसने पाई थी उसकी वजह से, और अपने इससे पहले के जीवन की वजह से, उसे इस घिनौने रास्ते पर पहला कदम रखते ही मर जाना चाहिए था। तो उसे किस चीज ने रोके रखा? वह कोई चरित्रहीन तो थी नहीं... इस सारी बदनसीबी का स्पष्ट था कि उस पर थोड़ा-सा ही असर हुआ था, सचमुच चरित्रहीनता का एक कतरा भी उसके दिल की गहराइयों तक नहीं पहुँच सका था। यह बात वह जानता था। आज उसके सामने खड़े रह कर रस्कोलनिकोव को उसका सारा वास्तविक रूप नजर आ रहा था।...

'तीन रास्ते हैं इसके सामने,' उसने सोचा, 'जा कर नहर से डूब मरे, पागलखाने जाए या... फिर उसी चरित्रहीनता के दलदल में जा फँसे, जिसमें सोचने की शक्ति धुँधला जाती है, दिल पथरा जाता है।' अंतिम विकल्प सबसे ज्यादा घिनावना था, लेकिन वह अविश्वासी था, नौजवान था, अमूर्त ढंग से सोचता था, और इसलिए क्रूर था। यही कारण था कि वह यह सोचे बिना नहीं रह सका कि सबसे अधिक संभावना अंतिम विकल्प के ही साकार होने की थी।

'लेकिन ऐसा हो सकता है क्या?' उसका दिल कराह उठा। यह संभव है क्या कि जिस प्राणी ने अपनी आत्मा की शुद्धता को अभी तक बचा कर रखा हो, आखिरकार जाने-बूझे गंदगी और सड़ाँध की इस दलदल में खिंचा चला आए, कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सिलसिला शुरू हो गया हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि अभी तक वह इसे सिर्फ इसलिए बर्दाश्त करती आ रही हो कि पाप का यह जीवन उसे कम घिनावना लगता हो नहीं, ऐसा नहीं हो सकता!' वह उसी तरह चीखा जैसे अभी कुछ ही देर पहले सोन्या चीखी थी। 'नहीं, अभी तक जिस चीज ने उसे नहर से दूर ही रखा है वह है पाप का विचार और वे बच्चे... अगर वह अभी तक पागल नहीं हुई है... लेकिन कौन कहे पागल नहीं है वह क्या कोई होश में है कोई क्या इस तरह बात कर सकता है। इस तरह तर्क दे सकता है जैसे वह देती है यह कैसे हो सकता है कि घिनौनेपन के जिस दलदल में वह फँसती जा रही है, उसके कगार पर ही बैठी रहे और जब उसे इस खतरे के बारे में बताया जाए तो वह सुनने से भी इनकार कर दे क्या वह किसी चमत्कार की आस लगाए हुए है बेशक वह यही आस लगाए बैठी है। इन सब बातों का मतलब क्या पागलपन नहीं है?'

वह हठधर्मी से इस विचार पर जमा रहा। यह वजह बल्कि उसे किसी भी दूसरी वजह के मुकाबले ज्यादा पसंद थी। वह सोन्या को और भी ध्यान से देखने लगा।

'तो तुम भगवान की काफी प्रार्थनाएँ करती हो, सोन्या?' उसने पूछा।

सोन्या कुछ नहीं बोली। वह उत्तर की प्रतीक्षा में उसके पास ही खड़ा रहा।

'भगवान के बिना क्या हाल होता मेरा?' सोन्या ने कहा। उसकी आँखें अचानक चमक उठी थीं। उसने यह बात रस्कोलनिकोव की ओर एक नजर देख कर धीमे स्वर में और जल्दी से अपने शब्दों पर भरपूर जोर देते हुए कही। रस्कोलनिकोव का हाथ उसने कस कर अपने हाथों में भींच लिया।

'यानी कि मेरी बात सही है!' उसने सोचा।

'और भगवान तुम्हारे लिए करता क्या है?' उसने सोन्या के विचारों की और भी थाह लेने के लिए पूछा।

सोन्या काफी देर तक चुप रही, जैसे कोई जवाब न दे पा रही हो। उसका कमजोर सीना भावनाओं के दबाव के मारे धौंकनी की तरह चल रहा था।

'एक शब्द भी नहीं! ऐसे सवाल पूछिए भी मत! आप इसके अधिकारी नहीं हैं...' उसे कठोर और क्रोध से भरी आँखों से देखती हुई अचानक वह चीखी।

'ऐसा ही है! ऐसा ही!' वह बार-बार अपने आपसे दोहराता रहा।

'करता वही सब कुछ है,' सोन्या ने जल्दी से, धीमे लहजे में कहा और फिर एक बार नीचे देखने लगी।

'तो यह है हल और यह है वजह!' रस्कोलनिकोव एक नई, अजीब, लगभग बीमारों जैसी भावना के साथ सब कुछ टकटकी बाँधे देखता रहा। उसे पीले, दुबले-पतले, हड़ियल, तीखे नाक-नक्शेवाले छोटे से चेहरे को, उन नीली और कोमल आँखों को, जिनमें आग जैसी, कठोर प्रबल भावना की चमक भी पैदा हो सकी, रोष और क्रोध से काँपते हुए उस छोटे-से शरीर को और यह सब उसे हर पल अधिकाधिक विचित्र, लगभग असंभव नजर आने लगा। 'दिमाग की कमजोरी!' उसने अपने आप से कहा।

दराजोंवाली अलमारी के ऊपर एक किताब पड़ी थी। कमरे में इधर-से-उधर टहलते हुए हर बार रस्कोलनिकोव उसे देखता रहा था। अब उसने वह किताब उठा ली और उसे देखने लगा। वह इंजील के 'न्यू टेस्टामेंट' का रूसी अनुवाद था। चमड़े की जिल्द मढ़ी, फटी-पुरानी किताब थी।

'यह कहाँ मिली?' उसने कमरे के दूसरे छोर से पुकार कर पूछा। वह अभी तक उसी जगह, मेज से तीन कदम की दूरी पर खड़ी थी।

'किसी ने ला कर दी थी,' उसने उसकी ओर देखे बिना जवाब दिया, गोया जवाब देने को जी न चाह रहा हो।

'लाया कौन?'

'लिजावेता। मैंने मँगाई थी।'

'लिजावेता! अजीब बात है!' उसने सोचा। सोन्या की हर बात उसे हर पल अधिक विचित्र और अधिक आश्चर्यजनक लग रही थी। किताब को शमा के पास ले जा कर वह उसके पन्ने उलटने लगा।

'इसमें लैजरस का जिक्र कहाँ पर है?' उसने अचानक पूछा।

सोन्या नजरें जमाए जमीन की ओर देखती रही, कोई जवाब नहीं दिया। वह मेज के पास कुछ तिरछी खड़ी थी।

'इसमें लैजरस के फिर से जिंदा होने की बात कहाँ है? जरा ढूँढ़ कर तो दो, सोन्या।'

सोन्या ने चुपके से नजरें बचा कर उसकी ओर देखा।

'आप ठीक जगह नहीं देख रहे... चौथे संदेश में है,' सोन्या ने उसके पास आए बिना धीमे स्वर में पर कठोरता से कहा।

'निकाल कर और मुझे पढ़ कर सुनाओ,' उसने कहा। वह मेज पर कुहनियाँ टिका कर बैठ गया, सर अपने हाथ पर टेक लिया और उदास भाव से दूर देखता हुआ सुनने के लिए तैयार हो गया।

'तीन हफ्ते में ही इसे पागलखाने भेज दिया जाएगा!' वह अपने आप बुदबुदाता रहा। 'मैं समझता तो हूँ कि मैं भी वहीं हूँगा... अगर मेरे साथ उससे भी बदतर कुछ न हुआ।' वह मन-ही-मन बुदबुदाया।

सोन्या ने रस्कोलनिकोव की प्रार्थना अविश्वास के साथ सुनी और झिझकती हुई मेज की ओर बढ़ी। न चाहते हुए भी उसने किताब उठा ली।

'आपने पढ़ा नहीं है?' मेज के पार से रस्कोलनिकोव की ओर आँखें उठा कर देखते हुए उसने पूछा। उसके स्वर में कठोरता लगातार बढ़ती जा रही थी।

'बहुत पहले... जब स्कूल में था। तो पढ़ो!'

'कभी गिरजाघर में भी नहीं सुना?'

'मैं... गिरजाघर कभी गया ही नहीं। क्या तुम अकसर जाती हो?'

'न... हीं,' सोन्या ने दबी आवाज में जवाब दिया। रस्कोलनिकोव मुस्कराया।

'मैं समझ रहा हूँ... और कल अपने बाप के जनाजे में भी नहीं जाओगी?'

'जरूर जाऊँगी। पिछले हफ्ते भी गिरजाघर गई थी... किसी आत्मा की शांति के लिए खास तौर पर प्रार्थना कराई थी।'

'किसकी आत्मा की?'

'लिजावेता की। किसी ने कुल्हाड़ी से उसकी हत्या कर दी थी।'

रस्कोलनिकोव के दिमाग में तनाव बढ़ता जा रहा था। उसका सर चकराने लगा।

'लिजावेता से क्या तुम्हारी दोस्ती थी?'

'जी... वह बहुत अच्छी थी... यहाँ आती रहती थी... बहुत ज्यादा तो नहीं... उसे इतना मौका ही नहीं मिलता था... हम लोग मिल कर पढ़ा करते थे और... बातें करते थे। वह भगवान के पास जाएगी।'

रस्कोलनिकोव के कानों में ये किताबी बातें कुछ अजीब-सी लगीं। उसे इसमें फिर एक नई बात दिखाई दी : लिजावेता से उसका रहस्यमय ढंग से मिलना और दोनों... कमजोर दिमाग की!

'जल्दी ही मैं भी दिमाग का कमजोर हो जाऊँगा। यह छूत की बीमारी है!' उसने सोचा। 'पढ़ो!' उसने अचानक चिड़चिड़ा कर ऊँचे आग्रहभरे स्वर में कहा।

सोन्या अब भी झिझक रही थी। उसका दिल धड़क रहा था। पढ़ कर सुनाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। वह उस 'दुखी पागल लड़की' की ओर लगभग कातर हो कर देखने लगा।

'किसलिए? आप इस सब में विश्वास तो करते नहीं...' उसने रुँधे हुए स्वर में कहा।

'पढ़ो! मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे पढ़ कर सुनाओ!' वह आग्रह करता रहा। 'तुम लिजावेता को पढ़ कर तो सुनाती थी!'

सोन्या ने किताब खोल कर वह प्रसंग निकाला। उसके हाथ काँप रहे थे, आवाज साथ नहीं दे रही थी। दो बार उसने कोशिश की लेकिन पहला शब्द भी उसके मुँह से न निकल सका।

'तो हुआ यह कि एक शख्स बीमार था, उसका नाम था लैजरस, बेथनी का रहनेवाला...' आखिर उसने किसी तरह, अपने आपको मजबूत करके पढ़ा। पर तीसरे ही शब्द पर उसकी आवाज जरूरत से ज्यादा कसे तार की तरह झनझना कर टूट गई। साँस में फंदा पड़ गया।

रस्कोलनिकोव कुछ-कुछ समझ रहा था कि सोन्या उसे पढ़ कर सुनाने के लिए अपने आपको तैयार क्यों नहीं कर पा रही थी, और यह बात जितनी ही उसकी समझ में आती जा रही थी, उतनी ही ज्यादा रुखाई और चिड़चिड़ाहट के साथ वह उससे पढ़ने का आग्रह करता जा रहा था। वह बहुत अच्छी तरह समझ रहा था कि सोन्या को जो कुछ उसका अपना था, उसे बताने में, खोल कर उसके सामने रखने में कितना कष्ट हो रहा था। वह समझ रहा था कि ये भावनाएँ उसकी अपनी गुप्त निधि थीं, जिन्हें उसने शायद बरसों से सँजो कर रखा था। शायद बचपन से, जब वह एक अभागे बाप और दुख झेलते-झेलते पागल हो जानेवाली सौतेली माँ के साथ, भूख से बिलखते हुए बच्चों के बीच रहती होगी और बुरी-बुरी गालियाँ और उलाहने सुनती रही होगी। लेकिन साथ ही वह अब यह भी जानता था, और पक्के तौर पर जानता था, कि उसके मन में तो डर समाता जा रहा था, उसे पीड़ा भी हो रही थी पर फिर भी उसे यह इच्छा निरंतर साल रही थी कि वह पढ़े और उसे पढ़ कर सुनाए, इसी वक्त पढ़ कर सुनाए, और 'फिर चाहे जो हो!' यह बात उसे सोन्या की आँखों में जज्बात की उथल-पुथल में दिखाई दे रही थी। सोन्या ने अपने आपको सँभाला, गले में फँसे हुए जोश को वश में किया और सेंट जॉन के संदेश का ग्यारहवाँ अध्याय पढ़ने लगी। वह उन्नीसवें पद पर पहुँची :

'और बहुत-से यहूदी आए मार्था और मरियम के पास उनको उनके भाई के बारे में सांत्वना देने। फिर मार्था को जैसे ही पता चला कि प्रभु यीशु आ रहे हैं, वह उनसे जा कर मिली; लेकिन मरियम घर पर ही रही। मार्था ने कहा यीशु से : प्रभु! मेरा भाई न मरता यदि आप यहाँ होते। लेकिन अब भी जानती हूँ मैं कि अब भी आप जो कुछ माँगेंगे ईश्वर से, ईश्वर आपको देगा।'

यहाँ आ कर वह एक बार फिर रुक गई। यह सोच कर वह शर्मिंदा होने लगी कि उसकी आवाज फिर काँपेगी और बीच में टूट जाएगी...

'यीशु ने कहा : उससे फिर जी उठेगा तेरा भाई। मार्था बोली : यह तो मैं जानती हूँ कि अंतिम दिन, रविवार को, जब होगा मुर्दों का पुनरुत्थान तब उठ खड़ा होगा वह भी। यीशु ने कहा उससे : मैं ही मृतोत्थान हूँ और जीवन भी मैं ही हूँ : जो विश्वास रखता है मुझ पर वह मर ही क्यों न चुका हो, वही जीवित रहेगा। और जो है जीवित और मुझ पर रखता है विश्वास वह कभी मरेगा नहीं। क्या तुझे है इस बात पर विश्वास वह उनसे बोली : ...'

(बहुत दर्द-भरी साँसें ले-ले कर सोन्या साफ-साफ और जोर दे कर पढ़ती रही, गोया सबके सामने अपनी आस्था की ऐलान कर रही हो :)

'हाँ, प्रभु! है मुझे विश्वास कि आप ही हैं ख्रीस्त, वही ईश्वर के पुत्र जिन्हें आना है इस संसार में।'

वह पढ़ते-पढ़ते रुकी, जल्दी से नजरें उठा कर उसकी ओर देखा, और फिर अपने आपको काबू में करके पढ़ने लगी। रस्कोलनिकोव मेज पर कुहनियाँ टिकाए, नजरें दूसरी ओर फेरे चुपचाप बैठा रहा। सोन्या पढ़ते-पढ़ते बत्तीसवें पद पर पहुँच गई।

'फिर जब वहाँ आई मरियम जहाँ थे यीशु और उसने उन्हें देखा, तो गिर पड़ी उनके पाँव पर और बोली : प्रभु! अगर होते आप यहाँ तो न मरता मेरा भाई। जब यीशु ने रोते देखा उसे, और उन यहूदियों को भी, जो उसके साथ आए थे, तो कराह उठी उनकी आत्मा और हो उठे वे चिंतित और बोले : तुम लोगों ने उसे दफन कहाँ किया है वे लोग बोले उनसे : प्रभु! चल कर देख लीजिए। रो पड़े यीशु। तब यहूदी बोले : देखो, ये कितना प्यार करते थे उससे! और उनमें से कहा कुछ ने : क्या यह आदमी जिसने अंधे की खोल दीं आँखें, ऐसा नहीं कर सकता था कि यह आदमी भी न मरता?'

रस्कोलनिकोव ने उसकी भावनाओं से सराबोर हो कर देखा : हाँ, यही हुआ था! सोन्या काँप रही थी, उसे सचमुच बुखार चढ़ रहा था। रस्कोलनिकोव पहले ही सोच चुका था कि ऐसा ही होगा। अब वह परम चमत्कार की कहानी के पास पहुँच रही थी और विजय की बेपनाह गहरी भावना उस पर छाए जा रही थी। उसकी आवाज घंटी की तरह गूँजने लगी; विजय और प्रसन्नता की भावनाओं ने उसमें अपार शक्ति भर दी थी। पंक्तियाँ उसकी आँखों के सामने नाच रही थीं, लेकिन जो कुछ वह पढ़ रही थी वह उसे जबानी याद था। जब वह इस अंतिम वाक्य पर पहुँची कि 'क्या यह आदमी, जिसने अंधे की खोल दीं आँखें...' तब सोन्या ने अपनी आवाज कुछ धीमी करके, भावावेग में उन अंधे अविश्वासी यहूदियों की शंका, उनके ताने और उनकी भर्त्सना को व्यक्त किया, जो दूसरे ही पल यीशु के चरणों में गिर कर इस तरह रोए मानो उन पर बिजली गिरी हो और उनके मन में आस्था उत्पन्न हुई हो...' और वह, वह भी - वह जो अंधा है और अविश्वासी है वह भी सुनेगा, वह भी विश्वास करेगा, हाँ! फौरन, अभी,' सोन्या यह सपना देख रही था, और इस सुखद आशा से काँप रही थी।

'यीशु कब्र के पास पहुँचे, अंदर ही अंदर कराहते हुए। वह थी एक गुफा और उसके मुँह पर रखा था एक पत्थर। यीशु बोले : हटा दो पत्थर। मार्था ने, जो मरनेवाले की बहन थी, उनसे कहा : प्रभु! अब तक तो आने लगी होगी उसके शव से दुर्गंध क्योंकि उसे मरे हुए तो चार दिन बीत चुके।'

सोन्या ने चार शब्द पर जोर दिया।

'यीशु बोले उससे : कहा था न मैंने तुझसे कि होगी अगर तेरे मन में आस्था तो दिखाई देगी तुझे प्रभु की लीला। तब उन लोगों ने हटाया उस जगह से पत्थर जहाँ रखा गया था मृतक का शव। और यीशु ने ऊपर की ओर उठाई अपनी आँखें और बोले : हे परमपिता, मैं तेरा आभारी हूँ कि तूने मेरी बात सुनी और मैं जानता था कि तू सुनेगा सदा मेरी बात; लेकिन ऐसा कहा था मैंने अपने आसपास खड़े लोगों के कारण ताकि हो जाए उन्हें यह विश्वास कि तूने ही मुझे भेजा है और यह कह चुकने के बाद उन्होंने पुकार कर कहा, ऊँचे स्वर में, उठो लैजरस। और उठ खड़ा हुआ वह जो मर चुका था।'

(वह ऊँचे स्वर में पढ़ रही थी। खुशी के मारे उसका शरीर ठंडा पड़ गया था और वह काँपे जा रही थी, गोया अपनी आँखों के सामने यह दृश्य देख रही हो :) 'लिपटे हुए थे उसके हाथ और पाँव कफन में और बँधा हुआ था उसके मुँह पर रूमाल। यीशु ने कहा उन लोगों से : खोल दो इसे और जाने दो।'

'तब बहुत से यहूदियों ने, आए थे जो मरियम के पास, उन्होंने अपनी आँखों देखा था, जो कुछ किया था यीशु ने, उन पर विश्वास करने लगे।'

सोन्या ने आगे नहीं पढ़ा बल्कि सच तो यह है कि पढ़ न सकी। उसने किताब बंद कर दी और जल्दी से अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई।

'लैजरस के फिर से जिंदा होने की कहानी बस इतनी ही है,' सोन्या ने अचानक कठोर स्वर में कहा और घूम कर बेहरकत खड़ी रही। रस्कोलनिकोव की ओर आँखें उठा कर देखने की हिम्मत उसे नहीं हो रही थी, गोया वह शर्मिंदगी महसूस कर रही हो। वह अभी तक काँप रही थी, मानो बुखार चढ़ रहा हो। दबे-पिचके शमादान में शमा के आखिरी सिरे की लौ झिलमिला रही थी, और इस दीन-हीन कमरे में उस हत्यारे पर और उस वेश्या पर मद्धम-मद्धम रोशनी बिखेर रही थी जो विचित्र ढंग से मिल कर एक धर्मग्रन्थ का पाठ कर रहे थे। इसी तरह पाँच मिनट या उससे भी ज्यादा समय बीत गया।

'मैं तुमसे कुछ कहने आया था,' रस्कोलनिकोव ने माथे पर बल डाल कर अचानक ऊँची आवाज में कहा। वह उठ कर सोन्या के पास गया और सोन्या ने आँखें उठा कर चुपचाप उसे देखा। रस्कोलनिकोव का चेहरा खास तौर पर कठोर लग रहा था। उस पर एक वहशियाना संकल्प की छाप थी।

'आज मैं अपने परिवार को छोड़ कर आया हूँ,' वह बोला, 'अपनी माँ और बहन को। उनसे मिलने मैं अब नहीं जाऊँगा। उनसे मैंने नाता तोड़ लिया है।'

'पर क्यों?' सोन्या ने आश्चर्य से पूछा। हाल ही में उसकी माँ और बहन से मिल कर वह बहुत प्रभावित हुई थी, हालाँकि उससे इसका कारण पूछा जाता तो वह आसानी से शायद नहीं बता सकती थी। रस्कोलनिकोव के मुँह से यह बात सुन कर वह सहम गई।

'मुझे अब सिर्फ तुम्हारा सहारा है,' रस्कोलनिकोव कहता रहा। 'मैं तुम्हारे पास आया हूँ। हम दोनों अभागे हैं... इसलिए चलो, हम साथ चलें!'

उसकी आँखें चमक रही थीं। 'गोया वह पागल है,' इस बार सोन्या ने सोचा।

'कहाँ जाएँगे?' सोन्या ने भयभीत हो कर पूछा और अनायास पीछे हटी।

'मुझे क्या मालूम? मैं बस इतना जानता हूँ कि हम दोनों का एक रास्ता है। इतना मुझे पक्का पता है - बस हम दोनों की एक ही मंजिल है!'

सोन्या ने उसकी ओर देखा पर उसकी समझ में कुछ नहीं आया। वह बस इतना ही समझ सकी कि वह बहुत दुखी था, बेपनाह दुखी।

'तुम अगर बताओगी भी तो उनमें से कोई तुम्हारी बात नहीं समझेगा, लेकिन मैं समझ रहा हूँ। मुझे जरूरत है तुम्हारी। इसीलिए तुम्हारे पास आया हूँ,' वह कहता रहा।

'मैं नहीं समझी...' सोन्या ने धीमे स्वर में कहा।

'बाद में समझ जाओगी। तुमने भी क्या यही नहीं किया है? हद से आगे तो तुम भी निकल गई हो... हद से आगे निकल जाने की हिम्मत तुम में थी। तुमने खुद पर हाथ डाला है... एक जिंदगी बर्बाद की है, खुद अपनी (वह भी वही बात है!)। आत्मा और विवेक की कसौटी पर खरी उतरनेवाली जिंदगी तुम भी बिता सकती थीं, लेकिन आखिर में तुम भूसामंडी ही पहुँचोगी... लेकिन वह सब तुम बर्दाश्त नहीं कर सकोगी, और अगर अकेली रहोगी तो मेरी ही तरह पागल हो जाओगी। अभी भी तुम पागलों जैसी ही हो। इसलिए हम दोनों को एक ही रास्ते पर साथ चलना है। आओ, चलें!'

'क्यों? यह सब किसलिए कह रहे हो?' सोन्या बोली। उसकी बातों से उसमें एक अजीब और तीखी विद्रोह-भावना पैदा हो गई थी।

'क्यों? इसलिए कि तुम इस हाल में नहीं रह सकतीं; और क्यों! तुम आखिरकार संजीदगी और सच्चाई से हर चीज के बारे में सोचो, और बच्चों की तरह रो-रो कर यह मत कहो कि भगवान कभी ऐसा नहीं होने देगा! कल तुम्हें सचमुच अगर अस्पताल पहुँचा दिया गया तो क्या होगा? वे तो खैर पागल और तपेदिक की शिकार हैं; कुछ ही दिन की मेहमान हैं, पर बच्चे? तुम क्या मुझसे यह कहना चाहती हो कि पोलेंका की इज्जत नहीं उतरेगी? तुमने क्या यहाँ ऐसे बच्चों को नहीं देखा जिन्हें उनकी माँएँ सड़क के नुक्कड़ पर भीख माँगने भेज देती हैं? मैंने पता लगाया है कि वे माँएँ कहाँ और कैसे हालात में रहती हैं। बच्चे? वहाँ बच्चे नहीं रहते। वहाँ सात साल के ही बच्चे में सारी बुराइयाँ पैदा हो जाती हैं, वह चोर बन जाता है। फिर भी बच्चे, तुम तो जानती ही हो, ईसा मसीह का रूप होते हैं : 'उनका जीवन स्वर्ग है!' हमें उन्होंने बच्चों का सम्मान करने, उनसे प्यार करने का आदेश दिया था... वे मानवता के भविष्य हैं...'

'पर किया क्या जाए... क्या किया जाए?' सोन्या ने हाथ मलते हुए, बिलख-बिलख कर रोते हुए दोहराया।

'क्या किया जाए? जिस चीज को तोड़ना है उसे तोड़ दें... फौरन, और सारी मुसीबत अपने ऊपर ले लें। क्या... तुम नहीं समझीं? बाद में समझ जाओगी... आजादी और ताकत... सबसे बढ़ कर ताकत! सारी काँपती हुई मखलूक पर, चींटियों के सारे ढेर पर! ...लक्ष्य यही है! याद रखना! चलते-चलते मेरा संदेश यही है! तुमसे मैं शायद आखिरी बार बातें कर रहा हूँ। कल अगर मैं न आया और तुम इस बारे में सब कुछ सुनो, तब इन शब्दों को याद करना। फिर कुछ अरसा बीत जाने पर शायद बरसों बाद, तुम्हारी समझ में आए कि उनका मतलब क्या था। कल अगर मैं आया तो तुम्हें बताऊँगा कि लिजावेता को किसने मारा था। तो मैं चला।'

सोन्या डर कर चौंक पड़ी।

'क्यों, आपको मालूम है कि उसे किसने मारा था?' दीवानों की तरह उसे देखते हुए उसने पूछा। डर के मारे उसका खून जमा जा रहा था।

'मुझे मालूम है और मैं बताऊँगा... तुम्हें... सिर्फ तुम्हें! इसके लिए मैंने तुम्हें ही चुना है। मैं तुम्हारे पास क्षमा माँगने नहीं, सिर्फ बताने आऊँगा। यह बात कहने के लिए तुम्हें मैंने बहुत पहले ही चुन लिया था, जब तुम्हारे बाप ने मुझसे तुम्हारे बारे में कुछ बातें बताई थीं और लिजावेता जिंदा थी। तभी मैंने इस बारे में सोचा था, तो मैं चला। हाथ मिलाने की कोई जरूरत नहीं। कल!'

वह बाहर निकल गया। सोन्या उसे यूँ घूरती रही जैसे वह कोई पागल हो, लेकिन वह खुद पागलों जैसी हो रही थी और इस बात को महसूस करती थी। उसका सर चकरा रहा था। 'हे भगवान इन्हें कैसे मालूम कि लिजावेता को किसने मारा? उन शब्दों का मतलब क्या है? कितनी भयानक बात है!' लेकिन इसके बाद भी वह विचार उसके दिमाग में नहीं आया, एक पल के लिए भी नहीं! 'ओह, वे बहुत दुखी होंगे! ...अपनी माँ और बहन को उन्होंने छोड़ दिया है। क्यों हुआ क्या है? क्या बोझ था उनके दिमाग पर उन्होंने मुझसे क्या कहा था? मेरा पाँव चूमा था और कहा था... और कहा था (हाँ, साफ-साफ कहा था) कि वे मेरे बिना नहीं रह सकते... हे भगवान, दया करो!'

सोन्या की वह रात बुखार और सरसाम की हालत में बीती। बीच-बीच में चौंक कर वह उछल पड़ती थी, रोती थी, हाथ मलती थी, फिर बुखार की हालत में सो जाती थी और पोलेंका, कतेरीना इवानोव्ना और लिजावेता को सपने में देखती थी। वह सपने में देखती थी कि उन्हें बाइबिल पढ़ कर सुना रही है... उनका पीला चेहरा और दहकती हुई आँखें... कि वे मेरे पाँव चूम रहे हैं, और रोए जा रहे हैं... हे भगवान!

सोन्या के कमरे और मादाम रेसलिख के फ्लैट के बीच दाहिनी तरफ जो दरवाजा था, उसके दूसरी ओर एक कमरा था जो बहुत दिनों से खाली पड़ा था। किराए के लिए उस कमरे के खाली होने का इश्तहार फाटक पर और नहर की ओर खुलनेवाली खिड़कियों पर चिपका दिया गया था। सोन्या एक अरसे से उस कमरे के खाली पड़े रहने की आदी हो चुकी थी। लेकिन स्विद्रिगाइलोव उस खाली कमरे के दरवाजे के पास तमाम वक्त खड़ा, कान लगाए सुनता आ रहा था। रस्कोलनिकोव के जाने के बाद वह चुपचाप खड़ा एक पल तक कुछ सोचता रहा, फिर पंजों के बल उस खाली कमरे से लगे हुए अपने कमरे में गया, और कोई आवाज किए बिना वहाँ से एक कुर्सी ला कर उसे सोन्या के कमरे में जाने के दरवाजे के पास रख दिया। वह पूरी बातचीत उसे दिलचस्प और महत्वपूर्ण लगी और उसमें उसे बहुत मजा आया - यहाँ तक कि वह एक कुर्सी उठा लाया ताकि आगे कभी, मिसाल के लिए कल ही, उसे घंटे भर खड़े रहने की तकलीफ न उठानी पड़े, और आराम से वह सारी बात सुन सके।