अपराध और दंड / अध्याय 4 / भाग 6 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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बाद में उस पल को याद करने पर वह दृश्य रस्कोलनिकोव को इस रूप में नजर आया :

दरवाजे के पीछे शोर अचानक बढ़ा, और दरवाजा जरा-सा खुला।

'क्या है?' पोर्फिरी पेत्रोविच झुँझला कर चीखा। 'मैंने तुमको हुक्म दिया था न...'

पलभर के लिए कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन इतनी बात साफ थी कि दरवाजे के पास बहुत से लोग थे और किसी को पीछे धकेलने की कोशिश कर रहे थे।

'यह क्या है?' पोर्फिरी पेत्रोविच ने बेचैन हो कर दोहराया।

'कैदी निकोलाई हाजिर है,' किसी ने जवाब दिया।

'उसकी कोई जरूरत नहीं! ले जाओ उसे! थोड़ी देर उसे इंतजार करने दो! यहाँ वह क्या कर रहा है कैसी अफरातफरी मचा रखी है!' पोर्फिरी चीख कर दरवाजे की ओर लपका।

'लेकिन वह...' उसी आवाज ने फिर कहा पर अचानक बीच में रुक गई।

महज कुछ सेकेंड तक खींचातानी चलती रही, फिर किसी ने जोर का झटका दिया। एक आदमी, जिसका चेहरा पीला पड़ चुका था, लंबे कदम भरता हुआ कमरे में आया।

पहली निगाह में इस आदमी का हुलिया कुछ अजीब लगा। वह ठीक सामने नजरें गड़ाए हुए था, मानो उसे कुछ भी नजर न आ रहा हो। आँखों में संकल्प की चमक थी, साथ ही चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई थी, गोया उसे फाँसी के तख्ते पर खड़ा कर दिया गया हो। सफेद होठ थोड़े-थोड़े फड़क रहे थे।

वह मजदूरों जैसे कपड़े पहने हुए था। मँझोला कद, अभी भी काफी जवान, छरहरा बदन, बाल गोल टोपी की शक्ल में कटे हुए, दुबला-पतला, सूखा हुआ नाक-नक्शा। जिस आदमी को झटका दे कर उसने धकेला था, वह भी उसके पीछे-पीछे कमरे में आ गया और लपक कर उसका कंधा पकड़ लिया। वह वार्डर था, लेकिन निकोलाई ने झटक कर अपनी बाँह फिर छुड़ा ली।

दरवाजे पर बहुत से लोग जिज्ञासा के मारे भीड़ लगाए खड़े थे। कुछ ने अंदर आने की भी कोशिश की। यह सब कुछ लगभग पलक झपकते हो गया। 'बाहर जाओ, तुम कुछ पहले ही आ गए हो। जब तक बुलाया न जाए, इंतजार करो! इसे इतनी जल्द तुम लोग क्यों ले आए?' पोर्फिरी पेत्रोविच झुँझला कर बड़बड़ाया, मानो उसका सारा हिसाब बिगड़ गया हो। निकोलाई अचानक घुटनों के बल बैठ गया।

'क्या है?' पोर्फिरी ने आश्चर्य से चीख कर पूछा।

'मैं अपराधी हूँ! यह पाप मैंने ही किया! मैं ही हूँ, हत्यारा,' निकोलाई ने अचानक कुछ हाँफते हुए कहा, लेकिन वह काफी ऊँचे सुर में बोल रहा था।

कुछ सेकेंड तक मुकम्मल खामोशी रही, गोया सब गूँगे हो गए हों। वार्डर भी पीछे हटता हुआ दरवाजे तक पहुँच गया और वहीं चुपचाप खड़ा हो गया।

'है क्या?' पोर्फिरी पेत्रोविच ने पलभर के भौंचक्केपन से मुक्त हो कर डपटते हुए पूछा।

'मैं... हत्यारा हूँ...' निकोलाई ने कुछ देर चुप रहने के बाद दोहराया।

'क्या... तुम... किसकी हत्या की?'

'पोर्फिरी पेत्रोविच एकदम अक्ल से हैरान लग रहा था।'

निकोलाई पलभर फिर चुप रहा।

'अल्योना इवानोव्ना और उसकी बहन लिजावेता इवानोव्ना... मैंने... मारा है... उनको... कुल्हाड़ी से। मेरे मन पर कालिख छा गई थी,' उसने अचानक कहा और चुप हो गया। वह अभी तक घुटनों के बल बैठा हुआ था।

पोर्फिरी पेत्रोविच कुछ पल विचारों में डूबा रहा, लेकिन अचानक सँभल कर उसने बिन-बुलाए तमाशबीनों को हाथ के इशारे से चले जाने को कहा। वे फौरन वहाँ से निकल गए और दरवाजा बंद हो गया। इसके बाद पोर्फिरी रस्कोलनिकोव की ओर घूमा जो कोने में खड़ा फटी-फटी आँखों से, दीवानों की तरह निकोलाई को घूर रहा था। वह उसकी ओर बढ़ा, अचानक ठिठक कर रुक गया, उसकी ओर देखा, फिर निकोलाई की ओर देखा। उसके बाद फिर रस्कोलनिकोव की ओर, फिर निकोलाई की ओर, और फिर अपने आपको काबू में रखने में असमर्थ पा कर तीर की तरह निकोलाई की ओर बढ़ा।

'मन पर कलिख छा जाने की बात का क्या मतलब भला...,' उसने कुछ गुस्से से डाँट कर कहा। 'तुमसे मैंने पूछा तो नहीं कि तुम्हारे पर कौन-सा भूत सवार था... तो बोलो, क्या उनकी हत्या तुमने की थी?'

'मैं... हत्यारा हूँ... मैं बयान देना चाहता हूँ,' निकोलाई ने कहा।

'अच्छा! उन्हें तुमने मारा किस चीज से?'

'कुल्हाड़ी से। पहले से मेरे पास थी।'

'हूँ बयान देने की बड़ी जल्दी है इसे! तो अकेले ही?'

सवाल निकोलाई की समझ में नहीं आया।

'यह काम तुमने क्या अकेले किया?'

'जी हाँ। मित्रेई का कोई कसूर नहीं, उसका इसमें कोई सरोकार नहीं।'

'मित्रेई की अभी कोई जल्दी नहीं है! अच्छा! तो तुम उस वक्त इस तरह नीचे कैसे भाग गए? दरबानों ने तो तुम दोनों को साथ देखा!'

'ऐसा मैंने उन लोगों को भटकाने के लिए किया... मैं मित्रेई के पीछे भागा,' निकोलाई ने जल्दी से जवाब दिया, गोया उसने जवाब तैयार रखा हो।

'आह, तो यह किस्सा है।' पोर्फिरी झुँझला उठा। 'यह अपनी बात नहीं कह रहा,' वह अपने आप से बुदबुदा कर बोला और उसकी बाँह पकड़ कर दरवाजे की तरफ इशारा किया।

निकोलाई से सवाल-जवाब करने में वह साफ तौर पर इतना व्यस्त था कि एक पल के लिए उसे रस्कोलनिकोव का ध्यान भी नहीं रह गया था। उसने अचानक अपने आपको सँभाला। वह कुछ सिटपिटाया हुआ भी लग रहा था।

'यार रोदिओन रोमानोविच, माफ करना मुझे।' वह लपक कर उसके पास पहुँचा। 'यह सब कायदे के खिलाफ है। मैं समझता हूँ, तुम्हें यहाँ से चले जाना चाहिए। तुम्हारे लिए यहाँ ठहरना ठीक नहीं है। मैं ऐसा करता हूँ... देखो, बात यह है, कैसी हैरानी की बात है। अच्छा तो फिर मिलेंगे।' फिर उसकी बाँह पकड़ कर वह उसे दरवाजे की तरफ ले गया।

'मैं समझता हूँ, आप इसकी उम्मीद नहीं कर रहे थे?' रस्कोलनिकोव ने कहा। वह स्थिति को पूरी तरह समझ तो नहीं सका लेकिन उसकी हिम्मत लौट आई थी।

'इसकी उम्मीद तुम्हें भी तो नहीं रही होगी, दोस्त! देखो तो तुम्हारा हाथ किस तरह काँप रहा है! हिः-हिः!'

'काँप तो आप भी रहे हैं, पोर्फिरी पेत्रोविच!'

'हाँ, मैं काँप रहा हूँ... मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी...'

वे लोग दरवाजे पर पहुँच चुके थे। पोर्फिरी बेजार हो रहा था कि रस्कोलनिकोव किसी तरह वहाँ से फूटे।

'और वह अपना छोटा-सा अजूबा, नहीं दिखाएँगे क्या?' रस्कोलनिकोव ने अचानक कहा।

'बातें तो खूब कर रहा है, लेकिन दाँत कैसे बज रहे हैं इसके... हिः-हिः! तुम भी यार, अंदर से भरे हुए बंदे हो। अच्छा, तो फिर मिलेंगे!'

'मैं समझता हूँ, हम एक-दूसरे से हमेशा के लिए विदा ले सकते हैं।'

'सो तो भगवान के हाथ में है, 'पोर्फिरी एक अजीब-सी हँसी के साथ बुदबुदाया।

बाहरी दफ्तर से हो कर गुजरते वक्त रस्कोलनिकोव ने पाया कि बहुत-से लोग उसकी ओर देख रहे थे। उनमें उसे उस घर के वे दोनों दरबान भी थे जिन्हें उसने उस रात थाने चलने की चुनौती दी थी। वे वहाँ खड़े इंतजार कर रहे थे। लेकिन वह अभी सीढ़ियों तक पहुँचा ही था कि उसे पीछे से पोर्फिरी पेत्रोविच की आवाज सुनाई दी। उसने मुड़ कर देखा, वह हाँफता हुआ पीछे भागा आ रहा था।

'बस एक बात, रोदिओन रोमानोविच। जहाँ तक बाकी बातों का सवाल है, सो तो भगवान के हाथ में है, लेकिन मुझे तुमसे कुछ सवाल बाकायदा कार्रवाई के सिलसिले में पूछने ही होंगे... इसलिए हम फिर मिलेंगे; ठीक!'

पोर्फिरी मुस्कराता हुआ उसके सामने चुपचाप खड़ा रहा। 'देखेंगे!' उसने आगे कहा।

लग रहा था कि वह कुछ और कहना चाहता है लेकिन कह नहीं पा रहा है।

'अभी जो कुछ हुआ, मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ, पोर्फिरी पेत्रोविच; मुझे गुस्सा आ गया था,' रस्कोलनिकोव ने कहना शुरू किया। उसमें फिर एक बार हिम्मत पैदा हो गई थी और उसका जी चाह रहा था कि अपने आपको पूरी तरह शांत साबित कर दे।

'अरे यार कोई बात नहीं, कैसी बातें करते हो,' पोर्फिरी ने खुश हो कर जवाब दिया। 'मैं खुद भी तो... मैं मानता हूँ कि मेरा मिजाज बहुत बुरा है। लेकिन हमारी मुलाकात फिर होगी, जरूर होगी। भगवान ने चाहा तो अभी हम दोनों की बहुत सारी मुलाकातें होंगी।'

'और एक-दूसरे को हम लोग पूरी तरह समझेंगे,' रस्कोलनिकोव ने जोड़ा।

'हाँ, एक-दूसरे को पूरी तरह समझेंगे,' पोर्फिरी पेत्रोविच ने सहमति जताई और आँखें सिकोड़ कर ध्यान से रस्कोलनिकोव को देखने लगा। 'इस वक्त तुम किसी की सालगिरह पार्टी में जा रहे हो न?'

'नहीं, जनाजे में।'

'अरे हाँ, जनाजे में! अपनी सेहत का ध्यान रखना, दोस्त, ध्यान रखना...'

'मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इसके बदले आपके लिए मैं किस चीज की कामना करूँ,' रस्कोलनिकोव सीढ़ियाँ उतरने लगा था लेकिन एक बार फिर पीछे मुड़ कर वह पोर्फिरी की ओर देख कर बोला - 'मैं आपकी और भी सफलता की कामना करना चाहता हूँ, लेकिन आप तो खुद ही जानते हैं कि आपका काम अजीब मसखरोंवाला है।'

'मसखरोंवाला क्यों!' पोर्फिरी पेत्रोविच वापस जाने के लिए मुड़ चुका था, लेकिन यह सुन कर उसके कान खड़े हो गए।

'वो लीजिए, आप लोगों ने उस बेचारे निकोलाई को तो अपने ढंग से कैसी-कैसी दिमागी तकलीफें दी होंगी, कैसे-कैसे परेशान किया होगा, तब कहीं जा कर उसने जुर्म कबूल किया होगा! दिन-रात एक करके आप लोगों ने उसके दिल में यह बात बिठाई होगी कि वही हत्यारा है। और अब... चूँकि उसने कबूल कर लिया है, सो आप लोग फिर उसकी धज्जियाँ उड़ाना शुरू करेंगे। आप कहेंगे : झूठ बोल रहे हो तुम। तुम हत्यारे नहीं। हत्यारे तुम हो ही नहीं सकते! तुम अपनी बात तो कह नहीं रहे हो! अब भी आपका काम अगर मसखरोंवाला नहीं तो और क्या है!'

'हिः-हिः-हिः! अच्छा तो तुमने मेरी बात पकड़ ही ली, वही जो अभी-अभी निकोलाई से मैंने कहा था कि तुम अपनी बात तो कह ही नहीं रहे हो!'

'भला कैसे नहीं पकड़ता?'

'हिः-हिः! तुम्हारा दिमाग तेज है। हर चीज की तरफ ध्यान देता है! सचमुच चुलबुलापन है तुम्हारे दिमाग में! और मसखरेपन के पहलू को हमेशा तुम पकड़ लेते हो... हिः-हिः! लोग कहते हैं कि लेखकों में यही खास खूबी गोगोल की थी।'

'हाँ, गोगोल की।'

'हाँ, गोगोल की... अगली प्यारी-सी मुलाकात तक के लिए अलविदा!'

'हाँ, तब तक के लिए...'

रस्कोलनिकोव सीधा घर गया। इतना उलझा और बौखलाया हुआ कि घर पहुँच कर सोफे पर पंद्रह मिनट तक बैठा अपने विचारों को सुलझाने की कोशिश करता रहा। निकोलाई के बारे में सोचने की उसने कोशिश तक नहीं की। उसे लग रहा था कि निकोलाई का अपराध स्वीकार करना एक हैरत की बात थी, जिसकी कोई वजह समझ में नहीं आती थी... ऐसी हैरत की बात थी जो उसकी समझ में कभी भी नहीं आ सकती थी। लेकिन यह भी तो एक ठोस हकीकत थी कि निकोलाई ने जुर्म कबूल किया था। इस हकीकत के नतीजे उसे साफ दिखाई दे रहे थे : सच्चाई कभी न कभी सामने आएगी और तब वे लोग फिर उसके पीछे पड़ेंगे। कम से कम उस वक्त तक के लिए वह जरूर आजाद था, और इस बीच ही उसे अपने लिए कुछ करना होगा, क्योंकि उसके लिए किसी वक्त भी खतरा पैदा हो सकता था।

लेकिन वह खतरे में किस हद तक था, स्थिति स्पष्ट होती जा रही थी। पोर्फिरी के साथ उसकी अभी जो नोक-झोंक हुई थी, उसकी मोटी-मोटी बातों को ही याद करके वह फिर एक बार दहशत से काँप उठा। जाहिर है उसे अभी तक पोर्फिरी के सारे मंसूबे मालूम नहीं हुए थे, वह उसकी सारी चालों की टोह नहीं पा सका था। लेकिन उसने एक हद तक अपने दाँव-पेंच की झलक दे ही दी थी। इस बात को रस्कोलनिकोव से बेहतर कोई नहीं जानता था कि पोर्फिरी की यह 'चाल' उसके लिए कितनी खतरनाक थी। बस थोड़ी ही-सी कसर रह गई थी, नहीं तो उसका भाँडा पूरी तरह फूट चुका होता। पोर्फिरी जानता था कि उसका चिड़चिड़ापन बीमारी की हद तक पहुँच चुका था और पहली ही नजर में वह उसकी नस-नस पहचान चुका था। सो पोर्फिरी अपने खेल में थोड़ा दुस्साहस जरूर दिखा रहा था, लेकिन आखिर में उसकी ही जीत होनी थी। इससे इनकार नहीं किया जा सकता था कि रस्कोलनिकोव ने अपने आपको बहुत बुरी तरह शुबहे का पात्र बना लिया था। बस अभी तक तथ्य सामने नहीं आए थे; अभी तो हर बात को किसी दूसरी बात की तुलना में ही परखा जा सकता था। लेकिन स्थिति को क्या वह सही ढंग से देख रहा था कहीं कोई गलती तो नहीं कर रहा था आज पोर्फिरी आखिर क्या साबित करना चाहता था आज उसने क्या सचमुच उसके लिए कोई अजूबा तैयार करके रखा था और वह था क्या वह सचमुच किसी चीज का इंतजार कर रहा था, या नहीं अगर निकोलाई उस तरह वहाँ न आया होता तो उन दोनों की मुलाकात किस तरह खत्म होती?

पोर्फिरी ने अपने लगभग सारे पत्ते खोल दिए थे। उसने कुछ जोखिम तो जरूर मोल लिया था लेकिन पत्ते उसने खोल कर सामने रख दिए थे। अगर उसके पास सचमुच कोई तुरुप का पत्ता होता (रस्कोलनिकोव को कम से कम ऐसा ही लगा) तो वह उसे भी दिखा देता। आखिर वह 'अजूबा' था क्या? कोई मजाक था... क्या उसका सचमुच कोई मानी था? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके पीछे कोई ठोस हकीकत, कोई पक्की निशानी छिपी हो और वह शख्स जो कल उससे मिला था वह कहाँ गायब हो गया भला? आज वह कहाँ था पोर्फिरी के पास अगर सचमुच कोई सबूत होगा तो उस आदमी के साथ उसका जरूर कोई संबंध होगा...

कुहनियाँ घुटनों पर टिकाए और चेहरा हाथों में छिपाए वह सोफे पर बैठा रहा। वह अभी भी घबराहट के मारे काँप रहा था। आखिरकार वह उठा, अपनी टोपी उठाई, एक मिनट तक कुछ सोचा और दरवाजे की ओर बढ़ा।

पता नहीं कैसे उसके मन में यह खयाल आ रहा था कि कम-से-कम आज तो वह अपने को खतरे से बाहर समझ सकता था। अचानक उसे खुशी का एहसास हुआ : वह जल्दी-जल्दी से कतेरीना इवानोव्ना के यहाँ पहुँचना चाहता था। जाहिर है, जनाजे में शरीक होने के लिए तो देर हो चुकी, लेकिन मरनेवाले की याद में जो भोज हो रहा था, उसमें वक्त से पहुँच जाएगा। वहीं तो उसकी मुलाकात सोन्या से होगी।

वह चुपचाप खड़ा एक पल कुछ सोचता रहा और पलभर के लिए उसके होठों पर एक दर्दभरी मुस्कान दौड़ गई।

'आज! आज!' उसने मन-ही-मन दोहराया। 'हाँ, आज! ऐसा ही होना चाहिए...'

वह दरवाजा खोलने को था कि वह अपने आप खुलने लगा। चौंक कर वह पीछे हटा। दरवाजा धीरे-धीरे खुला और अचानक उसमें से एक चेहरा नजर आया : वही शख्स जो कल धरती का सीना चीर कर उससे मिला था।

वह शख्स दरवाजे पर खड़ा कुछ बोले बिना रस्कोलनिकोव की ओर देखता रहा, फिर एक कदम आगे बढ़ कर कमरे में आ गया। आज भी वह एकदम वैसा ही था जैसा कल था। वही हुलिया और वही पोशाक। लेकिन आज उसका चेहरा काफी बदला हुआ था : वह निराश दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर बाद उसने गहरी आह भरी। वह अगर गाल पर हाथ रख कर सर एक ओर को झुका लेता तो एकदम बूढ़ी किसान औरत जैसा दीखता।

'क्या चाहिए?' रस्कोलनिकोव ने पूछा; वह सुन्न-सा रह गया था।

वह शख्स अब भी खामोश था, लेकिन अचानक वह लगभग जमीन तक झुका, इतना कि दाएँ हाथ की उँगली से जमीन को छू सके।

'मैंने बहुत बड़ा पाप किया है,' वह धीरे से बोला।

'कैसे?'

'बुरी बातें सोच-सोच कर।'

दोनों ने एक-दूसरे को देखा।

'मुझे बहुत नाराजगी हो रही थी। आप जब आए, शायद पिए हुए, और आपने दरबानों से थाने चलने को कहा और खून के बारे में पूछा, तो मैं इस बात से परेशान हो गया कि उन लोगों ने आपको नशे में समझ कर क्यों जाने दिया। मैं इतना परेशान हुआ कि मेरी नींद उड़ गई। आपका पता तो मुझे याद ही था; हम कल यहाँ आए थे और हमने पूछा था...'

'कौन आया था' रस्कोलनिकोव ने उसकी बात काट कर पूछा। उसे अब कुछ-कुछ याद आने लगा था।

'मैं आया था यानी कि मैंने ही आपके साथ भारी बुराई की है।'

'तो तुम उसी घर में रहते हो?'

'उन लोगों के साथ फाटक पर मैं भी खड़ा था... आपको याद नहीं हम लोग उस घर में बरसों से धंधा करते आए हैं। चमड़ा कमाने और तैयार करने का काम करते हैं। हम लोग काम घर पर लाते हैं। ...असल बात तो यह थी कि मैं परेशान था...'

उस मकान के फाटक पर परसों का पूरा दृश्य रस्कोलनिकोव की आँखों के सामने घूम गया। उसे याद आया; दरबानों के अलावा वहाँ और भी कई लोग थे और उनमें कुछ औरतें भी थीं। उसे किसी शख्स की आवाज याद आई, जिसने उसे फौरन थाने ले जाए जाने का सुझाव दिया था। उसे उस आदमी का चेहरा तो याद नहीं रहा, जिसने यह बात कही थी, वह उसे इस वक्त भी याद नहीं कर पा रहा था, लेकिन इतना जरूर याद था कि उसने मुड़ कर उसे कुछ जवाब दिया था...

तो कल के भय की असल वजह यह थी। सबसे ज्यादा डर तो उसे यही सोच कर लगा था कि उसकी नैया लगभग डूब ही चुकी है, कि एक बहुत छोटी-सी बात की वजह से उसने अपने पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मारी थी। तो उन्हें यह आदमी इसके अलावा कुछ भी नहीं बता सका होगा कि मैंने फ्लैट और खून के धब्बों के बारे में पूछताछ की थी। इसीलिए पोर्फिरी के पास भी उस सरसामी हालत के अलावा कहने को और कुछ नहीं था, कोई तथ्य नहीं था, सिर्फ यह मनोविज्ञान था जो एक दोधारी तलवार है। कोई ठोस सबूत नहीं था। इसलिए अगर अब कोई और ठोस सबूत सामने नहीं आता (और नहीं आना चाहिए, आना भी नहीं चाहिए!), तब... तब वे उसका क्या बिगाड़ लेंगे उसे उन्होंने गिरफ्तार भी कर लिया तो उसे सजा कैसे दिला सकेंगे? पोर्फिरी ने भी तो फ्लैटवाली बात उसी वक्त सुनी थी; उसे पहले इस बात का कोई इल्म नहीं था।

'पोर्फिरी को तुमने बताया था... कि वहाँ मैं गया था?' अचानक एक विचार दिमाग में आया तो उसने ऊँचे स्वर में पूछा।

'पोर्फिरी कौन?'

'वही छानबीनवाला मजिस्ट्रेट।'

'जी। दरबान तो नहीं गए थे, लेकिन मैं गया था।'

'आज?'

'वहाँ मैं आपसे दो ही मिनट पहले किस तरह पहुँचा था। और मैंने सुना, मैंने सब कुछ सुना कि उन्होंने आपको परेशान किया।'

'कहाँ क्या कब?'

'और कहाँ वहीं, बगलवाले कमरे में। पूरे वक्त मैं वहीं तो बैठा हुआ था।'

'क्या कहा अच्छा, तो वह अजूबा तुम थे लेकिन यह सब हुआ कैसे? भगवान के लिए...।'

'मैंने देखा कि मैं जो कुछ कह रहा था वह करने पर दरबान राजी नहीं थे,' उसने कहना शुरू किया, 'क्योंकि उन्होंने कहा अब बहुत देर हो चुकी है, और कौन जाने वह इसी बात पर बिगड़ने लगे कि हम उसी वक्त क्यों नहीं आए। मैं बहुत झल्लाया हुआ था। मुझे नींद नहीं आई और मैंने पूछताछ शुरू कर दी। फिर कल मुझे जब मालूम हुआ तो आज मैं वहाँ गया। पहली बार जब मैं गया तब वह वहाँ नहीं था, घंटे भर बाद गया तो उसके पास मुझसे मिलने के लिए वक्त नहीं था। फिर मैं तीसरी बार गया, तब मुझे अंदर भेजा गया। जो कुछ हुआ था, वह सब मैंने उसे सच-सच बता दिया। तब वह कमरे में ही उछलने लगा और मुट्ठियों से अपना सीना पीटने लगा। 'बदमाश तुम लोग भला मेरे साथ कर क्या रहे हो अगर मुझे पहले से यह सब मालूम होता तो मैं उसे गिरफ्तार कर लेता!' फिर वह भाग कर बाहर गया, किसी को बुलाया और उसे कोने में ले जा कर उससे बातें करने लगा। उसके बाद वह मेरी तरफ मुड़ा, मुझे डाँटने-फटकारने और सवाल करने लगा। उसने मुझे बहुत फटकारा। मैंने उसे सब कुछ बता दिया, और यह भी बता दिया कि कल आपकी हिम्मत भी नहीं पड़ी थी कि जवाब में मुझसे एक बात भी कह सकें और आपने तो मुझे पहचाना भी नहीं था। यह सुन कर वह एक बार फिर कमरे में इधर-उधर भागने लगा, अपने सीने पर मुक्के मारने लगा, बेहद नाराज हो कर तेजी से इधन-से-उधर टहलने लगा, और जब उसे आपके आने की खबर दी गई तो मुझसे बगलवाले कमरे में जाने को कहा। 'थोड़ी देर वहीं बैठो,' वह बोला, 'चाहे जो कुछ भी कान में पड़े, अपनी जगह से हिलना भी मत।' उसने वहाँ मेरे लिए एक कुर्सी रखवा दी और मुझे ताले में बंद कर दिया। 'शायद' वह बोला, 'मैं तुम्हें बुलाऊँ।' फिर निकोलाई लाया गया, और उसके बाद आपके जाते ही मुझे भी छोड़ दिया गया। वह मुझसे कहने लगा : मैं तुम्हें फिर बुला कर कुछ पूछताछ करूँगा।'

'तुम्हारे सामने उसने निकोलाई से भी कोई पूछताछ की थी?'

'निकोलाई से बात करने से पहले तो उसने मुझसे भी आप ही की तरह, पीछा छुड़ा लिया था।'

'वह आदमी थोड़ी देर एकदम चुप खड़ा रहा और फिर अचानक झुक कर अपनी उँगली से जमीन को छू लिया।'

'मेरे दिमाग में बुरे-बुरे विचार आए और आपको इस तरह मैंने बदनाम किया, इसके लिए मुझे माफ कर दीजिए।'

'भगवान माफ करेगा तुम्हें,' रस्कोलनिकोव ने जवाब दिया। यह सुन कर वह आदमी एक बार फिर झुका, लेकिन जमीन तक नहीं, और धीरे-धीरे घूम कर कमरे के बाहर चला गया। 'हर चीज की दोहरी काट है; अब हर चीज दोनों तरफ काट करती है,' रस्कोलनिकोव ने एक ही बात को दो बार दोहराया और ऐसी उम्दा मानसिक स्थिति के साथ बाहर निकल गया जैसी कभी नहीं रही थी।

'अब होगा जम कर मुकाबला,' सीढ़ियाँ उतरते हुए उसने एक कड़वी मुस्कान के साथ कहा। अपनी इस कड़वाहट का निशाना वह खुद ही था। अपनी 'कायरता' को उसने काफी शर्मिंदगी और अपमानजनक भाव से याद किया।