अपराध और दंड / अध्याय 5 / भाग 3 / दोस्तोयेव्स्की

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'प्योत्र पेत्रोविच,' वह चिल्लाई, 'मुझे उम्मीद है कि कम-से-कम आप मेरी रक्षा जरूर करेंगे! आप ही इस बेवकूफ औरत को समझाइए कि एक मुसीबत की मारी शरीफ औरत के साथ वह ऐसा बर्ताव नहीं कर सकती, इस तरह की बातों के बारे में कानून भी है... मैं गवर्नर-जनरल साहब के पास खुद जाऊँगी... इसको अपनी इस हरकत का हिसाब देना होगा... आप मेरे पापा के मेहमान रह चुके हैं, उसी को याद करके इन अनाथ बच्चों की रक्षा कीजिए।'

'रास्ता दीजिए मादाम... पहले मुझे अंदर तो आने दीजिए,' प्योत्र पेत्रोविच ने हाथ के इशारे से उसे दूर हटने को कहा। 'आपके पापा को, जैसा कि आपको अच्छी तरह पता है, जानने का सौभाग्य मुझे कभी नहीं मिला' (इस पर कोई जोर से हँसा) 'और अमालिया इवानोव्ना के साथ आपके आए दिन के झगड़ों में पड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं... मैं तो यहाँ अपने ही मुआमलों के बारे में कुछ करने आया हूँ... और मैं कुछ बातें आपकी सौतेली बेटी सोफ्या... इवानोव्ना... से करना चाहता हूँ... यही नाम है न उसका? मुझे आने का रास्ता तो दीजिए...'

प्योत्र पेत्रोविच उससे कतराता हुआ कमरे के सामनेवाले कोने की ओर बढ़ गया जहाँ सोन्या थी।

कतेरीना इवानोव्ना वहीं की वहीं गड़ी रह गई, जैसे उस पर बिजली गिरी हो। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि प्योत्र पेत्रोविच ने इस बात से कैसे इनकार किया कि वह उसके बाप का मेहमान रह चुका था। इसलिए एक बार यह बात गढ़ लेने के बाद वह खुद इस पर पक्का विश्वास करने लगी थी। इसके अलावा प्योत्र पेत्रोविच का बातें करने का एकदम कारोबारी, रूखा ढंग देख कर, जिसमें तिरस्कार से भरी धमकी का पुट भी था, वह हैरत में पड़ गई। लूजिन के आते ही धीरे-धीरे हर आदमी चुप हो गया था। बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी कि 'इस संजीदा कारोबारी आदमी' का दावत में आए हुए लोगों से कोई मेल नहीं था। यह भी साफ था कि वह किसी बेहद जरूरी काम से आया है, कि कोई ऐसी ही असाधारण बात होगी जिसकी वजह से उसे वहाँ आना पड़ा है और इसलिए अब जरूर कुछ न कुछ होनेवाला है। रस्कोलनिकोव सोन्या के पास खड़ा था। वह प्योत्र पेत्रोविच को रास्ता देने के लिए एक तरफ को हटा लेकिन लग रहा था कि प्योत्र पेत्रोविच ने उसे देखा तक नहीं। एक मिनट बाद लेबेजियातनिकोव भी दरवाजे में आ कर खड़ा हो गया; वह अंदर नहीं आया बल्कि चुपचाप वहीं खड़ा दिलचस्पी के साथ और लगभग हैरत के साथ, सब कुछ सुनता रहा। देर तक ऐसा ही मालूम होता रहा कि उसकी समझ में कोई बात नहीं आ रही थी।

'मुझे अफसोस है कि मैं आप लोगों की बातों में शायद कोई रुकावट डाल रहा हूँ,' किसी खास आदमी को संबोधित न करके प्योत्र पेत्रोविच ने वहाँ सभी लोगों से कहा, 'लेकिन काम कुछ ऐसा ही जरूरी है। सच पूछिए तो मुझे इस बात की खुशी भी है कि यहाँ इतने सारे लोग मौजूद हैं। अमालिया इवानोव्ना, आप यहाँ की मकान-मालकिन हैं, सो मैं आपसे खास तौर पर यह कहना चाहूँगा कि सोफ्या इवानोव्ना से मुझे जो कुछ कहना है उस पर आप अच्छी तरह ध्यान दें। सोफ्या इवानोव्ना,' वह सीधे सोन्या को संबोधित करके कहने लगा, जो बहुत आश्चर्यचकित और अभी से कुछ डरी हुई दिखाई पड़ रही थी, 'मेरा एक नोट, सौ रूबल का तुम मेरे दोस्त लेबेजियातनिकोव के कमरे में आईं तो उसके फौरन बाद मेरी मेज पर से गायब हो गया। अगर तुम्हें उसके बारे में कुछ भी मालूम हो और तुम उसके बारे में बता दो कि वह कहाँ है तो मैं अपनी इज्जत की कसम खा कर कहता हूँ - और मैं चाहता हूँ कि इस कमरे में मौजूद हर आदमी इस बात का गवाह रहे - कि सारा मामला यहीं पर खत्म हो जाएगा; वरना मुझे मजबूर हो कर बहुत सख्त कार्रवाई करनी पड़ेगी और... उसका सारा दोष खुद तुम पर होगा!'

कमरे में सन्नाटा छा गया। बच्चों ने भी रोना बंद कर दिया। सोन्या का चेहरा मुर्दों की तरह पीला पड़ गया और वह लूजिन को एकटक देखती रह गई। उससे कुछ कहते नहीं बना। लग रहा था कि उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया था कि लूजिन किस चीज के बारे में बातें कर रहा था। इसी तरह कुछ पल बीत गए।

'तो मेम साहिबा, आपको क्या कहना है?' लूजिन ने उसे गौर से देख कर पूछा।

'मैं... मैं नहीं जानती... मुझे कुछ मालूम नहीं...' आखिर सोन्या ने बहुत धीमी आवाज में कहा।

'नहीं मालूम? पक्की बात है कि कुछ नहीं मालूम?' लूजिन ने पूछा और एक बार फिर कुछ पलों के लिए रुका। 'सोच लो मेम साहिबा,' उसने कठोर स्वर में कहना शुरू किया लेकिन अब भी कुछ इस ढंग से जैसे उसे चेतावनी दे रहा हो। 'अच्छी तरह सोच लो! मैं तुम्हें सोचने के लिए और वक्त भी देने को तैयार हूँ, क्योंकि यह समझ लो कि दुनिया का भारी तजुर्बा होने से मुझे पक्का यकीन न होता तो मैं तुम्हारे ऊपर इस तरह खुला इल्जाम लगाने का जोखिम न उठाता। इसलिए अगर यह बात झूठ निकली या सिर्फ मेरी गलतफहमी ही हो, तो मुझे भी सरेआम इस तरह का खुला इल्जाम लगाने का कुछ जवाब तो देना ही होगा। इतना तो मैं भी जानता हूँ। आज सबेरे मैंने अपनी जरूरत के लिए पाँच फीसदी सूदवाले कई बांड भुनाए थे, जो कुल तीन हजार रूबल के थे। इसका सारा हिसाब मेरी डायरी में लिखा है। घर लौट कर मैंने यह रकम गिनी, जिसकी गवाही मिस्टर लेबेजियातनिकोव दे सकते हैं, और दो हजार तीन सौ रूबल के नोट गिन कर मैंने अपने पर्स में रखे, जिसे मैंने अपने कोट की अंदरवाली जेब में वापस रख दिया। मेज पर लगभग पाँच सौ रूबल बचे रहे जो सारे के सारे नोटों की शक्ल में थे, और उनमें सौ-सौ रूबल के तीन नोट थे। उसी वक्त (मेरे बुलाने पर) तुम वहाँ आईं। तो जितनी देर भी तुम मेरे कमरे में रहीं तुम बेहद घबराई हुई लग रही थीं, यहाँ तक कि हमारी बातचीत के दौरान तीन बार तुम उठ खड़ी हुईं। किसी वजह से तुम्हें उस कमरे से जाने की जल्दी थी, हालाँकि हमारी बातचीत खत्म भी नहीं हुई थी। मिस्टर लेबेजियातनिकोव इसके गवाह हैं। तो मैं समझता हूँ कि, मेम साहिबा, इस बात से आप भी इनकार नहीं करेंगी कि मिस्टर लेबेजियातनिकोव के जरिए मैंने आपको सिर्फ इसलिए बुलवाया था कि आपकी रिश्तेदार कतेरीना इवानोव्ना की बदहाली और कंगाली के बारे में कुछ बातें कर सकूँ (उनकी दावत में न आ सकने का मुझे अफसोस है) और लॉटरी या इसी तरह की किसी और चीज की शक्ल में उनके लिए कुछ पैसा जुटाने की तदबीरों के बारे में कुछ बातचीत हो जाए। तब तुमने मेरा शुक्रिया अदा किया और आँसू तक बहाए। (जो कुछ तब हुआ उसे मैं ज्यों का त्यों इसलिए बयान कर रहा हूँ कि एक तो मैं तुम्हें इन सब बातों की याद दिलाना चाहता हूँ और दूसरे इसलिए कि मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ कि कोई छोटी-से-छोटी बात भी ऐसी नहीं जो मुझे याद न हो।) फिर मैंने मेज पर से दस रूबल का एक नोट उठाया और तुम्हारी रिश्तेदार की मदद के लिए जो रकम जुटाई जानेवाली थी, उसकी पहली किस्त के तौर पर, अपनी तरफ से वह नोट तुम्हें दिया। मिस्टर लेबेजियातनिकोव ने यह सब कुछ देखा। उसके बाद मैं तुम्हें दरवाजे तक पहुँचाने आया, तुम उस वक्त भी सिटपिटाई-सी लग रही थीं; इसके बाद मैं मिस्टर लेबेजियातनिकोव के साथ अकेला रह गया और कोई दस मिनट तक उनसे बातें करता रहा। फिर मिस्टर लेबेजियातनिकोव बाहर गए, और मैंने एक बार फिर मेज पर पड़ी रकम की ओर ध्यान दिया क्योंकि मैं उसे गिन कर अलग रख देना चाहता था, जैसा कि मेरा शुरू में ही इरादा था। तब मुझे वह देख कर ताज्जुब हुआ कि मेज पर जो रकम रखी थी उसमें से सौ रूबल का एक नोट गायब था। अब तुम ही सोचो : मिस्टर लेबेजियातनिकोव को तो मैं कोई इल्जाम दे नहीं सकता और इस तरह की बात की तरफ इशारा करते भी मुझे शर्म आती है। यह भी नहीं हो सकता कि मैंने नोट गिनने में गलती की हो क्योंकि तुम्हारे आने से फौरन पहले मैंने हिसाब लगा कर देखा था और जोड़ सही निकला था। तुम्हें मानना पड़ेगा कि तुम्हारी घबराहट को, तुम्हारी कमरे से जाने की बेचैनी को देखते हुए, इस बात को भी देखते हुए कि तुम कई मिनट तक अपने हाथ मेज पर रखे हुए थीं, और आखिर में तुम्हारी समाजी हालत और उन आदतों को ध्यान में रखते हुए जो उस हालत का एक लाजिमी हिस्सा होती हैं, मुझे एक तरह से मजबूर हो कर, जिससे मुझे बहुत धक्का भी पहुँचा और ताज्जुब भी हुआ, अपनी मर्जी के एकदम खिलाफ अपने दिल में एक शक लाना पड़ा - जो बेशक बहुत ही तकलीफदेह शक है, लेकिन एकदम सही शक है! और मैं यह भी बता दूँ, बल्कि मैं इस बात पर जोर देना चाहूँगा, कि इस बात के बावजूद कि मुझे अपने शक के सही होने का पूरा यकीन है, मैं इस बात को भी अच्छी तरह जानता हूँ कि इस वक्त तुम्हारे ऊपर यह इल्जाम लगा कर मैं कुछ जोखिम भी मोल ले रहा हूँ। लेकिन इतना तो तुम भी समझती होगी कि मैं इस बात को अनदेखा भी नहीं कर सकता था। मैं यह जोखिम मोल लेने को तैयार हूँ और मैं बताता हूँ क्यों; मेम साहिबा, सिर्फ आपकी सरासर एहसानफरामोशी की वजह से। जरा सोचिए, मैंने आपको आपकी कंगाल, रिश्तेदार की भलाई के खयाल से मिलने के लिए बुलाया और आपको अपनी तरफ से दस रूबल दिए जो मेरे लिए बहुत आसान बात नहीं थी। लेकिन मैंने आपके लिए जो कुछ किया, उसका बदला आपने इस हरकत से चुकाया! यह तो कोई अच्छी बात नहीं! आपको सबक सिखाना जरूरी है, मेम साहिबा! अच्छी तरह सोच लो। अलावा इसके एक सच्चे दोस्त की तरह। (क्योंकि इस वक्त मुझसे बेहतर तुम्हारा कोई दोस्त हो भी नहीं सकता) मैं तुमसे फिर कहता हूँ कि अच्छी तरह सोच-समझ लो। फिर मुझसे किसी मुरव्वत की उम्मीद मत रखना। हाँ, तो क्या कहती हो'

'मैंने आपकी कोई चीज नहीं ली है,' सोन्या ने सहम कर धीमे स्वर में कहा। 'आपने मुझे दस रूबल दिए थे। सो ये रहे। ये लीजिए।' सोन्या ने अपना रूमाल निकाल कर उसमें लगी हुई गाँठ खोली और दस रूबल का नोट निकाल कर लूजिन को दे दिया।

'तो तुम इससे इनकार करती हो कि तुमने सौ रूबल उठाए हैं?' उसने दस रूबल का नोट वापस लिए बिना घुड़क कर कहा।

सोन्या ने कमरे में चारों ओर नजर दौड़ाई। सभी उसे नफरत भरी नजरों से देख रहे थे - डरावनी, कठोर, उपहास भरी नजरों से। उसने रस्कोलनिकोव की ओर देखा। वह दोनों हाथ सीने पर बाँधे, दीवार का सहारा लिए खड़ा था और अंगारों की तरह दहकती आँखों से उसे देख रहा था।

'हे भगवान!' वह कँपकँपाते हुए बोली।

'मादाम,' लूजिन ने अमालिया इवानोव्ना से शांत स्वर में और नर्मी से कहा, 'माफ कीजिएगा, मुझे पुलिस को बुलवाना पड़ेगा। इसलिए क्या पहले दरबान को आप बुलवाएँगी?'

'भगवान बचाए!' अमालिया इवानोव्ना ने आहत हो कर जर्मन में कहा। 'अपुन तो पहले ही जानता होता कि वह चोर होएला है।'

'आप जानती थीं' लूजिन ने उसकी बात दोहराई, 'तो मैं समझता हूँ आप किसी ठोस बुनियाद पर ही ऐसा सोचती होंगी। मैं आपसे कहना चाहूँगा, मादाम लिप्पेवेख्सेल, कि आप अपनी इस बात को याद रखिएगा, जो आपने गवाहों के सामने कही है।'

कमरे के हर कोने से जोरों से बातें करने का शोर बुलंद हुआ। हलचल मच गई।

'क्या...या?' कतेरीना इवानोव्ना ने अचानक अपने आपको सँभालते हुए चीख कर कहा और लूजिन पर इस तरह झपटी जैसे उसे किसी मजबूत स्प्रिंग की तरह दबा कर छोड़ दिया गया हो। 'क्या इस पर चोरी का इल्जाम लगा रहे हो सोन्या पर कमीनों! नासपीटों!' फिर तेजी से सोन्या की ओर जा कर उसने उसे अपनी सूखी हुई बाँहों में शिकंजे की तरह जकड़ लिया।

'सोन्या! तूने इनसे दस रूबल लेने की हिम्मत कैसे की नादान लड़की! ला, मुझे दे! वह दस रूबल फौरन मुझे दे... ला इधर!'

दस रूबल का वह नोट सोन्या से छीन कर उसे अपने हाथ से भींचते हुए कतेरीना इवानोव्ना ने उसे जोर से लूजिन के मुँह पर फेंक कर मारा। मुड़े हुए कागज का गोला जा कर लूजिन की आँख में लगा और वहाँ से टकरा कर जमीन पर आ गिरा। अमालिया इवानोव्ना उसे उठाने के लिए लपकी। प्योत्र पेत्रोविच आगबबूला हो उठा।

'रोको इस पागल को!' वह चीखा।

उसी वक्त कुछ और लोग दरवाजे में, लेबेजियातनिकोव के पास आ कर खड़े हो गए। उनमें वे दोनों महिलाएँ भी थीं जो हाल ही में वहाँ आई थीं।

'क्या कहा पागल? मैं पागल हूँ बेवकूफ कहीं के!' कतेरीना इवानोव्ना चीखने लगी। 'तुम खुद बेवकूफ हो, बेईमान, नीच, कमीना! सोन्या, मेरी सोन्या इसका पैसा लेगी और कोई नहीं, सोन्या इसका पैसा चोरी करेगी! बेवकूफ, उलटे वह तुझे पैसा दे सकती है!' यह कह कर कतेरीना इवानोव्ना दीवानों की तरह हँसी। 'कभी ऐसा भी बेवकूफ देखा है आप लोगों ने?' वह कमरे में घूम-घूम कर एक-एक आदमी को उँगली से लूजिन की तरफ इशारा करके दिखाने लगी। 'क्या तू भी?' अचानक उसकी नजर मकान-मालकिन पर पड़ी। 'तू जर्मन छिनाल, तू भी कहती है कि वह चोर है! सूरत तो देख अपनी, पर-नुची मुर्गी को लगता है कलफदार लहँगा पहना दिया गया हो। बेवकूफ! अबे, तेरे यहाँ से आने के बाद तो वह इस कमरे से बाहर भी नहीं गई! सीधे आ कर रोदिओन रोमानिविच के पास बैठ गई! ...तलाशी ले ले! चूँकि वह कमरे से बाहर नहीं गई है, इसलिए पैसा अब भी उसके पास ही होगा! मैं कहती हूँ, ले ले तलाशी! ले लेकिन जनाबेआला इतना मैं बताए देती हूँ कि अगर पैसा न निकला तो आपको इसका जवाब देना पड़ेगा! मैं जार के पास खुद जाऊँगी, अपने जार के पास जो बड़े ही दयावान हैं! जा कर उसके पाँवों पर गिर पड़ूँगी, आज ही! इसी दम! मैं एक लाचार विधवा हूँ, मुझे कोई नहीं रोकेगा! आप समझते हैं कि वहाँ मुझे अंदर नहीं जाने देंगे? आप गलत सोचते हैं! मैं वहाँ तक जाऊँगी! पहुँच जाऊँगी, मैं आपको बताए देती हूँ! आपने समझा था, यह एकदम भीगी बिल्ली है आप इसी की उम्मीद लगाए बैठे थे न तो सुन लीजिए, जनाबेआला, मुझे आप इतनी आसानी से नहीं दबा सकते! आपको लेने के देने पड़ जाएँगे! आइए, लीजिए तलाशी! तलाशी लीजिए, मैं कहती हूँ! लीजिए न!'

यह कह कर कतेरीना इवानोव्ना ने लूजिन को पकड़ लिया और उसे खींच कर सोन्या की ओर चली।

'मैं पूरी तरह तैयार हूँ मादाम, और... मैं पूरी जिम्मेदारी लेने को तैयार हूँ... लेकिन बराय मेहरबानी पहले आप शांत हो जाएँ! मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि आपको आसानी से दबाया नहीं जा सकता! लेकिन... वह... मेरा मतलब है कि यह काम तो पुलिस के सामने ही किया जाएगा,' लूजिन बुदबुदा कर बोला। 'वैसे यहाँ काफी गवाह मौजूद हैं और... मैं तैयार हूँ... लेकिन यह जरा... मुश्किल काम है किसी मर्द के लिए, कि नहीं मेरा मतलब है, किसी मर्द के लिए औरत की तलाशी लेना। अगर अमालिया इवानोव्ना मदद करने को तैयार हो और... लेकिन यह भी ठीक तरीका नहीं है यह काम करने का... नहीं, बिलकुल नहीं!'

'जैसे आप चाहें!' कतेरीना इवानोव्ना ने चीख कर कहा। 'आप जिसे चाहें, तलाशी लेने को कह दें! सोन्या, अपनी जेबें उलट कर दिखा दो! हाँ, यही ठीक है! ले चंडाल, देख लिया यह जेब खाली है! इसमें उसका रूमाल था, और अब इसमें कुछ भी नहीं है! और यह लो दूसरी जेब! देखी कि नहीं?'

यह कह कर कतेरीना इवानोव्ना ने दोनों जेबों को एक के बाद एक उलटने की बजाय झटके के साथ खींच कर दिखाया। लेकिन दूसरी, दाहिनी तरफवाली, जेब से अचानक कागज का एक टुकड़ा निकला और हवा में कमान जैसी शक्ल बनाता हुआ लूजिन के पाँव के पास जा कर गिरा। सभी ने उसे देखा और कई के मुँह से हैरतभरी चीख निकल गई। प्योत्र पेत्रोविच ने झुक कर चुटकी से कागज का वह टुकड़ा फर्श पर से उठाया, उसे ऊँचा करके सबको दिखाया, और उसकी तहों को खोला। यह सौ रूबल का आठ तहों में मुड़ा हुआ नोट था। प्योत्र पेत्रोविच सबको नोट दिखाने के लिए उसे अपने हाथ में उठाए हुए, धीरे-धीरे एक सिरे से दूसरे सिरे तक चलता चला गया।

'चोट्टी कहीं की! निकल जाने का माँगता हमारा घर से! पोलीस! पोलीस!' अमालिया इवानोव्ना चीखी। 'साइबेरिया भिजवा देना को माँगता इसको! निकल जाने का माँगता यहाँ से!'

कमरे में हर तरफ एक शोर उठा। रस्कोलनिकोव चुप था और बीच-बीच में लूजिन पर एक उड़ती नजर डालने के अलावा उसने सोन्या पर से अपनी नजर नहीं हटाई थी, जो उसी जगह मानो मूरत बनी जमी रह गई थी। लग रहा था कि उसे तो कोई आश्चर्य भी नहीं था। अचानक उसके गालों पर लाली दौड़ी और उसने चीख कर दोनों हाथों में मुँह छिपा लिया।

'नहीं, मैंने कुछ नहीं किया! मैंने नहीं लिया था! इसका तो मुझे कुछ भी नहीं पता!' वह दिल हिला देनेवाली आवाज में चीखी और भाग कर कतेरीना इवानोव्ना के पास चली गई, जिसने उसे कलेजे से भींच कर चिपटा लिया, गोया सारी दुनिया से उसे बचाना चाहती हो।

'सोन्या! सोन्या! मैं इस पर विश्वास नहीं करती! देखें तो सही, कतई मैं विश्वास नहीं करती!' (उस हकीकत के बावजूद जो सबकी आँखों के सामने थी) कतेरीना इवानोव्ना रो-रो कर बोली। वह उसे अपनी बाँहों में बच्चे की तरह झुलाने और उसे बार-बार चूमने लगी। इसके बाद उसने सोन्या के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले कर उन्हें जोर से चूमा। 'तू इसका पैसा भला क्यों लेने लगी! कैसे मूरख हैं ये लोग भी! हे भगवान, तुम लोग भी कैसे मूरख हो, कितने मूरख!' कमरे में मौजूद सभी लोगों को संबोधित करके वह रो कर कहने लगी, 'तुम्हें नहीं मालूम कि दिल कैसा पाया है इसने। कैसी लड़की है यह, तुम लोग जरा भी नहीं जानते। यह भला पैसे चुराएगी यह अरे, यह तो अपने बदन का आखिरी चीथड़ा तक बेच देगी, नंगे पाँव घूमेगी, और तुम्हें जरूरत हुई तो तुम्हें अपनी हर चीज दे देगी। ऐसी लड़की है ये! यह सड़क पर भी इसलिए निकली कि मेरे बच्चे भूखों मर रहे थे! इसीलिए उसे पीला टिकट मिला। इसने हमारी खातिर अपने आप तक को बेच दिया! ...अरे, कहाँ चले गए तुम... देख रहे हो? यह सब देख रहे हो? यह सब कि नहीं कैसी दावत हो रही है तुम्हारी जनाजे की! मेरे भगवान! रोदिओन रोमानोविच, आप इसकी तरफ से कुछ बोलते क्यों नहीं? आप वहाँ इस तरह क्यों खड़े हैं? आप तो इस बात पर विश्वास नहीं करते तुम सब... सब, सारे के सारे, इसकी छोटीवाली उँगली के बराबर भी नहीं! हे भगवान, तुम ही अब इसकी रक्षा करो!'

लग रहा था कि देखनेवालों पर तपेदिक की मारी उस लाचार विधवा के आँसुओं का गहरा असर पड़ा। उस मुरझाए हुए तपेदिक के मारे चेहरे पर जो पीड़ा से विकृत हो गया था, उन खून के सूखे धब्बों वाले होठों पर, उस भर्राई और रोती हुई आवाज में, रोते हुए बच्चे जैसी उन जोरदार सिसकियों में, रक्षा की उस विश्वास भरी, बच्चों जैसी, और साथ ही घोर निराशा में डूबी हुई फरियाद में ऐसा दर्द था, चुभनेवाला दर्द था कि लगा अब हर आदमी को उस अभागी औरत पर तरस आने लगा था। बहरहाल प्योत्र पेत्रोविच को तो फौरन ही तरस आ गया।

'मादाम! मादाम!' वह ऊँची रोबदार आवाज में कहता रहा। 'आपका इस वाकिए में कोई भी हाथ नहीं है। आप पर इल्जाम रखने की बात कोई सपने में भी नहीं सोच सकता, कि इसमें आपकी मिलीभगत होगी या इसकी आपने मंजूरी दी होगी, खास कर इसलिए कि आपने खुद जेबें उलट कर इस अपराध को सबके सामने ला दिया, जो इस बात का पकका सबूत है कि आपको इसका कुछ भी पता नहीं था। मुझे अफसोस है, बहुत ही अफसोस है कि यूँ कह लीजिए कि गरीबी की वजह से मजबूर हो कर सोफ्या सेम्योनोव्ना ने ऐसा काम किया। लेकिन, मेम साहिबा, आपने अपना अपराध स्वीकार भला क्यों नहीं किया? क्या आप बदनामी से डरती थीं या यह आपका इस तरह का पहला अपराध था या शायद एकदम दिमाग ठिकाने नहीं था? खैर, सारी बात अब साफ है, एकदम साफ। लेकिन आखिर आपने ऐसा किया क्यों सज्जनो और देवियो!' उसने वहाँ मौजूद सभी लोगों को संबोधित करके कहा, 'जो कुछ हुआ उस पर मुझे बेहद अफसोस है और एक तरह से बहुत गहरी हमदर्दी भी है, लेकिन मैं अब भी हर बात को भूल जाने और माफ कर देने को तैयार हूँ, बावजूद इसके कि जाती तौर पर मेरी बेइज्जती की गई। और मेम साहिबा, अपनी इस आज की बदनामी से,' उसने सोन्या को संबोधित करके कहा, 'आइंदा के लिए आपको मुनासिब सबक लेना चाहिए। अपनी तरफ से, मैं आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने जा रहा, और इस पूरे सिलसिले को यहीं खत्म करके संतुष्ट हूँ। इतना काफी है!'

प्योत्र पेत्रोविच ने कनखियों से रस्कोलनिकोव की तरफ देखा। उनकी आँखें मिलीं तो रस्कोलनिकोव की दहकती हुई नजरें उसे भस्म कर देने को तैयार थीं। इस बीच लग रहा था कि कतेरीना इवानोव्ना ने कुछ सुना ही नहीं था। सोन्या को वह अपने सीने से चिपकाए रही, पागलों की तरह उसे चूमती रही। बच्चे भी चारों ओर से सोन्या से चिपके हुए थे। नहीं, पोलेंका को तो ठीक से पता तक नहीं था कि हो क्या रहा है। वह अपना सुंदर, छोटा-सा चेहरा सोन्या के कंधे पर रखे आँसू बहाए जा रही थी और इस तरह सिसकियाँ ले कर रो रही थी जैसे उसे दौरा पड़ गया हो। उसका चेहरा रोते-रोते सूज गया था।

'कितने कमीनेपन की हरकत है!' दरवाजे के पास से किसी की ऊँची आवाज आई।

प्योत्र पेत्रोविच ने फौरन मुड़ कर देखा।

'कितने कमीनेपन की हरकत है!' उसकी आँखों में आँखें डाल कर लेबेजियातनिकोव ने दोहराया।

प्योत्र पेत्रोविच चौंका और यह बात सभी ने देखा। (बाद में सभी को इसकी याद आई।) लेबेजियातनिकोव कमरे के अंदर आ गया।

'और ऊपर से तुम्हारी यह मजाल की तुमने मुझे गवाह बनाने की कोशिश की?' उसने लूजिन के पास जा कर कहा।

'मतलब क्या है आपका?, आंद्रेई सेमेनोविच आप किस बारे में बात कर रहे हैं?' लूजिन बुदबुदाया।

'मेरा मतलब यह है कि तुम... दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे हो! जो कुछ मैं कह रहा हूँ उसका मतलब यही है,' लेबेजियातनिकोव ने अपनी कमजोर आँखों से उसे कठोरता से देखते हुए कहा। उसे बेपनाह गुस्सा आ रहा था। रस्कोलनिकोव उसे गौर से देख रहा था, मानो उसके हर एक शब्द को अच्छी तरह समझने और तोलने की कोशिश कर रहा हो। एक बार फिर कमरे में सन्नाटा छा गया। प्योत्र पेत्रोविच बौखला उठा। कम-से-कम शुरू में तो ऐसा ही लगा।

'आप अगर मुझसे बातें कर रहे हैं...' उसने हकला कर कहना शुरू किया। 'लेकिन, हे भगवान... तुम्हें हो क्या गया है? दिमाग तो ठिकाने है तुम्हारा?'

'मेरा दिमाग ठिकाने है, असल में आप हैं छँटे हुए बदमाश! कितने कमीनेपन की हरकत तुमने की है! मैं वहाँ खड़ा पूरे वक्त तुम्हारी बातें सुनता रहा और जान-बूझ कर कुछ कहा नहीं, क्योंकि मैं समझना चाहता था कि आखिर यह सारा मामला है क्या। यह तो मैं मानता हूँ कि अब भी मुझे इस पूरे मामले में कोई तुक दिखाई नहीं देता... बात यह है... मेरी समझ में नहीं आता कि तुमने ऐसा किया क्यों?'

'पर मैंने किया ही क्या है? तुम अपनी पहेलियाँ बुझाना बंद भी करोगे कि नहीं? तुम कहीं नशे में तो नहीं हो?'

'नशे में तुम होगे कमीने, मैं नहीं हूँ! मैं कभी वोदका को हाथ तक नहीं लगाता क्योंकि यह मेरे उसूल के खिलाफ है! आप सभी लोग यह जान लें कि इसने, खुद इसने, अपने हाथों वह नोट सोफ्या सेम्योनोव्ना को दिया था... मैंने देखा था! मैं गवाह हूँ और कसम खा कर यह बात कहने को तैयार हूँ! यह हरकत इसकी है, इसी की!' लेबेजियातनिकोव कमरे में सभी को संबोधित करके बार-बार कहता रहा।

'पागल तो नहीं हो गया है तू, बेवकूफ कहीं का?' लूजिन चीखा। 'वह खुद तो सामने खड़ी है और उसने खुद अभी तेरे सामने माना है कि उसे मैंने सिर्फ दस रूबल का नोट दिया था। उसके बाद में उसे सौ रूबल का नोट कैसे दे सकता था?'

'मैंने देखा था... मैंने!' लेबेजियातनिकोव जोर से चीखा। 'यह बात हालाँकि मेरे उसूलों के खिलाफ है, लेकिन मैं इसी वक्त अदालत के सामने हलफ लेने को तैयार हूँ क्योंकि मैंने खुद देखा था कि किस तरह तुमने सौ रूबल का नोट उससे छिपा कर उसकी जेब में सरकाया था। अपनी बेवकूफी के मारे मैंने तो तब यह समझ लिया था कि तुम उदारता की वजह से, परोपकार की भावना से ऐसा कर रहे हो। दरवाजे पर उसे विदा करते समय, जैसे ही वह बाहर जाने के लिए मुड़ी और जिस वक्त तुम उससे हाथ मिला रहे थे, तुमने बाएँ हाथ से यह नोट उसकी जेब में सरका दिया था... जेब में... उसके जाने बिना ही। मैंने देखा था... मैंने!'

लूजिन पूरा का पूरा पीला पड़ गया।

'तुम भी इस वक्त क्या झूठ बोल रहे हो!' उसने अड़ियल की तरह से चिल्ला कर कहा। 'खिड़की के पास खड़े-खड़े तुमने नोट भला देख कैसे लिया तुम्हारी आँखों को धोखा हुआ, या तुमने इसकी कल्पना कर ली होगी! तुम पागलपन की बातें कर रहे हो!'

'नहीं, मैंने कल्पना नहीं की है! यह सच है कि मैं वहाँ से कुछ दूर खड़ा था, लेकिन मैंने देखा था... सब कुछ देखा था। तुम्हारा यह कहना ठीक है कि खिड़की के पास खड़े हो कर वहाँ से नोट पहचानना मुश्किल है, लेकिन मैं पक्के तौर पर कह सकता हूँ कि वह सौ का ही नोट था, क्योंकि जब तुमने सोफ्या सेम्योनोव्ना को दस का नोट दिया था तभी मैंने देखा था कि तुमने मेज पर से सौ का एक नोट भी उठाया था। (यह मैंने एकदम साफ देखा था क्योंकि उस वक्त मैं पास ही खड़ा था। चूँकि उसी वक्त मेरे दिमाग में एक खयाल भी आ गया था, इसलिए मैं इस बात को नहीं भूला कि तुम्हारे हाथ में सौ का नोट था।) तुमने उसे तह किया था और सारे वक्त उसे हाथ में दबाए रखा फिर मैं उसके बारे में लगभग भूल ही गया, लेकिन जब तुम उठे, तो वह नोट अपने दाहिने हाथ से बाएँ हाथ में ले लिया। वह तो तुम्हारे हाथ से गिरते-गिरते भी बचा था, और उसी वक्त मुझे फिर उसकी याद आई क्योंकि उस वक्त फिर वही खयाल मेरे दिमाग में आया था... यह कि तुम उसके साथ इस तरह उपकार करना चाहते हो कि मुझे भी पता न चले। तुम सोच ही सकते हो कि तब मैंने तुम्हें कितने गौर से देखना शुरू किया था और जाहिर है, मैंने यह भी देखा कि तुमने किस कामयाबी से वह नोट उसकी जेब में सरका दिया। मैंने देखा, मैं बताता हूँ कि मैंने देखा, और मैं यह बात हलफ ले कर कहने को तैयार हूँ।'

लेबेजियातनिकोव हाँफ रहा था। कमरे के हर कोने में तरह-तरह के भाव व्यक्त होने लगे थे। ज्यादातर भाव घोर आश्चर्य का था लेकिन कुछ लोगों का लहजा धमकी भरा भी था। सब लोग प्योत्र पेत्रोविच को घेर कर खड़े हो गए। कतेरीना इवानोव्ना लपक कर लेबेजियातनिकोव के पास पहुँची।

'मुझे माफ कीजिएगा,' वह रो कर बोली, 'मैंने आपके बारे में गलत सोचा था! उसे बचाइए! यहाँ तो अकेले आप ही इसका साथ दे रहे हैं! वह अनाथ है, भगवान ने आपको उसकी रक्षा के लिए ही भेजा है! भगवान आपको इसका अच्छा ही फल देगा मेहरबान।'

कतेरीना इवानोव्ना उसके सामने घुटने टेक कर बैठ गई। यह जाने बिना ही कि वह क्या कर रही है।

'बकवास!' लूजिन गुस्से से आगबगूला हो उठा। 'आप सरासर बकवास कर रहे हैं, जनाब! मैं भूल गया, मुझे याद आया, याद आया, भूल गया... आप आखिर कहना क्या चाहते हैं? आप क्या यह कहना चाहते हैं कि मैंने जान-बूझ कर यह नोट उसकी जेब में रखा था? किसलिए? मेरे ऐसा करने की क्या वजह हो सकती थी इससे मुझे क्या लेना-देना है, इस...'

'किसलिए यही बात मेरी भी समझ में नहीं आती। लेकिन इसमें तो जरा भी शक नहीं कि मैं जो कुछ कह रहा हूँ, वह पूरी तरह सच है। कमीने, दुष्ट! मैं जानता हूँ कि मेरी बात गलत नहीं है क्योंकि मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा कर रहा था और तुम्हारा हाथ दबा रहा था तभी इस सिलसिले में एक सवाल मेरे दिमाग में उठा था। मैंने वह सवाल अपने आपसे पूछा कि आखिर तुमने नोट उसकी जेब में क्यों सरकाया... मेरा मतलब है, चुपके से क्यों... क्या इसकी वजह सिर्फ यह थी कि तुम यह बात मुझसे छिपाना चाहते थे इसलिए कि पता है कि मेरे उसूल इस तरह की हरकत के खिलाफ हैं, कि मैं निजी खैरात को गलत समझता हूँ क्योंकि उससे बुनियादी तौर पर कोई भी बुराई दूर नहीं होती। खैर, तो मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि दरअसल, तुम इतनी बड़ी रकम मेरे सामने देते हुए शरमा रहे होगे। अलावा इसके, मैंने यह भी सोचा कि कौन जाने तुम यह चाहते होगे कि जब उसे अपनी जेब में सौ का नोट मिले तो वह चौंक पड़े और अचानक खुश हो जाए। (मैं जानता हूँ कि कुछ परोपकारी ऐसे होते हैं, जिन्हें अपने उपकार का असर ज्यादा देर तक कायम रखने में खास लुत्फ मिलता है।) अलावा इसके मेरे मन में यह बात भी आई कि शायद तुम उसको परख कर देखना चाहते होगे कि नोट मिलने पर वह तुम्हारा शुक्रिया अदा करने आती है या नहीं। फिर मैंने यह भी सोचा कि बात शायद इतनी ही हो कि तुम नहीं चाहते होगे कि इसके बदले तुम्हारा एहसान मान कर कुछ कहा जाए... जैसी कि मसल मशहूर है, तुम्हारे दाहिने हाथ को भी पता न चले कि... मतलब यह कि इसी तरह की कोई बात बहरहाल, उस वक्त इतने बहुत से विचार मेरे मन में उठे कि मैंने इस बारे में सोचने का काम बाद के लिए टाल दिया। लेकिन मैंने तब इतना जरूर सोचा कि मैं तुम्हारा भेद जानता हूँ, तुम्हारे सामने इस बात को जाहिर करना मुनासिब नहीं होगा। लेकिन फौरन ही मेरे दिल में एक दूसरा सवाल भी उठा। मैंने सोचा, अगर वह नोट सोफ्या सेम्योनोव्ना को पता चलने से पहले ही कहीं खो गया तो क्या होगा? इसीलिए मैंने यहाँ आने का फैसला किया। मैं उसे कमरे से बाहर बुला कर बता देना चाहता था कि उसकी जेब में तुमने सौ रूबल का नोट रखा है। लेकिन रास्ते में मैं कोबिल्यातनिकोव के यहाँ चला गया। उन्हें प्रत्यक्षवादी प्रणाली का सामान्य निष्कर्ष नाम की किताब देने और उनका ध्यान उसमें डॉ. पिदरित के निबंध, 'मन और आत्मा' की ओर खास तौर पर खींचने के लिए (और लगे हाथ, वैगनर के निबंध की ओर भी)। उसके बाद मैं यहाँ पहुँचा और तब देखा कि यहाँ तो यह हंगामा मचा हुआ है! तो अब ही मुझे बताओ कि अगर मैंने तुम्हें उसकी जेब में सौ रूबल का नोट रखते न देखा तो क्या मेरे दिमाग में ये सारे विचार उठ सकते थे... क्या मैं इतने सारे नतीजे निकाल सकता था?'

लेबेजियातनिकोव ने जब अपना यह लंबा-चौड़ा, इतने चक्करदार भाषण एक तर्कसंगत निष्कर्ष के साथ खत्म किया, तो बहुत थक चुका था और उसका चेहरा पसीने में तर था। बेचारा! वह रूसी में अपनी बात भी ठीक से नहीं कह सकता था (हालाँकि वह कोई और भाषा भी नहीं जानता था), इसलिए तफतीश में उसकी इस शानदार कामयाबी के बाद अचानक ऐसा लगा कि वह थक कर चूर हो चुका है, यहाँ तक कि कुछ पतला भी हो गया है। फिर भी उसके भाषण का गहरा असर पड़ा। इतने जोश और इतने गहरे विश्वास के साथ उसने अपनी बात सामने रखी थी कि सब लोगों को बजाहिर उस पर विश्वास आ गया। प्योत्र पेत्रोविच ने महसूस किया कि सारे हालात उसके लिए बिगड़ते जा रहे हैं।

'इससे मुझे क्या कि तुम्हारे दिमाग में बेवकूफी के ऐसे-ऐसे सवाल उठते हैं?' उसने चिल्ला कर कहा। 'इससे कुछ भी साबित नहीं होता। मैं तो यही समझता हूँ कि तुम सपना देख रहे होगे। और मैं यह भी बता दूँ कि तुम झूठ बोल रहे हो। इसलिए झूठ बोल रहे हो और मुझे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हो कि मुझसे तुम्हें कुछ शिकायत है। मुझसे इसलिए नाराज हो कि मैंने तम्हारे उच्छृंखल विचारों को और समाज के बारे में नास्तिकता के सुझावों को मानने से इनकार कर दिया है। असल बात यह है!'

लेकिन संकट से बच निकलने की इस चाल से प्योत्र पेत्रोविच को कोई फायदा नहीं हुआ। असर बल्कि उल्टा ही हुआ और कमरे के हर कोने से उसके खिलाफ आवाजें उठने लगीं।

'तो तुमने अब यह ढर्रा पकड़ा है, क्यों?' लेबेजियातनिकोव जोर से बोला। 'जी नहीं, इससे आपको कोई मदद नहीं मिलेगी। पुलिस को बुलवाइए, मैं हलफ लूँगा। वैसे एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि इस तरह की घिनौनी हरकत का जोखिम इसने उठाया क्यों कमबख्त... कमीना!'

'मैं बताता हूँ इस तरह की हरकत का जोखिम इसने क्यों उठाया,' रस्कोलनिकोव आखिरकार आगे बढ़ कर दृढ़ स्वर में बोला। 'और अगर जरूरत हो तो मैं भी हलफ लेने को तैयार हूँ।'

देखने में वह पूरी तरह शांत और दृढ़ लग रहा था। उसे एक नजर देख कर ही न जाने क्यों सबको यही लग रहा था कि उसे सचमुच रहस्य मालूम था, और यह कि अभी फौरन ही सारी बात सामने आ जाएगी।

'अब मुझे सारी बात साफ समझ में आ रही है,' रस्कोलनिकोव सीधे लेबेजियातनिकोव को संबोधित करके कहता रहा। 'इस पूरे मामले की शुरुआत से ही इसके पीछे मुझे किसी चाल के - किसी गंदी चाल के - होने का शक था। यह शक मुझे कुछ ऐसी बातों की वजह से था जिन्हें सिर्फ मैं जानता हूँ, और जो मैं अभी आपको बताऊँगा। इस सारे किस्से की जड़ में वही बातें हैं। लेकिन, जनाब लेबेजियातनिकोव, आपने अपनी अनमोल गवाही से आखिरकार में सारी बातें मेरे दिमाग में साफ कर दीं। मैं आप सबसे कहता हूँ कि मेरी बात ध्यान से सुनिए। ये जो सज्जन हैं न,' उसने लूजिन की तरफ इशारा किया, 'उनकी हाल ही में एक लड़की से, दरअसल मेरी बहन से, मँगनी हुई थी। लेकिन यहाँ पीतर्सबर्ग आने पर, अभी दो दिन हुए, मुझसे पहली मुलाकात में ही ये मुझसे लड़ बैठे और तब इन्हें मैंने अपने कमरे से बाहर निकाल दिया। इस बात को साबित करने के लिए मेरे पास दो गवाह हैं। यह आदमी खुंदक से भरा हुआ है... जनाब लेबेजियातनिकोव साहब, दो दिन पहले तक मुझे नहीं मालूम था कि यह आपके साथ ठहरे हुए हैं। तो उसी दिन जिस दिन हम लोगों का झगड़ा हुआ था, यानी परसों, इन्होंने स्वर्गीय मार्मेलादोव साहब के एक दोस्त की हैसियत से मुझे कतेरीना इवानोव्ना को उनके जनाजे के लिए कुछ पैसे देते देखा। इन्होंने फौरन मेरी माँ को एक खत लिख कर उन्हें खबर कर दी कि मैंने अपना सारा पैसा कतेरीना इवानोव्ना को नहीं बल्कि सोफ्या सेम्योनोव्ना को दिया है। साथ ही इन्होंने सोफ्या सेम्योनोव्ना का... चाल चलन बयान करते हुए कुछ बहुत ही घिनावनी बातें लिखीं, और उसके साथ मेरे ताल्लुकात के बारे में कुछ इशारा किया। ध्यान रहे कि यह सब इन्होंने मेरे और मेरे माँ-बहन के बीच झगड़ा डालने के लिए किया, उनके मन में यह बात बिठा कर कि जो पैसा उन्होंने बड़ी मुश्किल से जोड़-जोड़ कर मुझे भेजा था, उसे मैं वाही-तबाही लुटा रहा था। मैंने अपनी माँ और बहन से कल रात इनके सामने ही कहा - इनकी तोहमत सरासर झूठ है, यह भी कि मैंने पैसा सोफ्या सेम्योनोव्ना को नहीं बल्कि कतेरीना इवानोव्ना को कफन-दफन के लिए दिया था, और यह भी कि परसों तक मैं सोफ्या सेम्योनोव्ना को जानता तक नहीं था क्योंकि मैं उससे कभी मिला तक नहीं था। इसके अलावा मैंने यह भी कहा कि ये साहब, ये प्योत्र पेत्रोविच लूजिन, अपनी तमाम खूबियों के बावजूद सोफ्या सेम्योनोव्ना की छोटी उँगली के बराबर भी नहीं हैं, यह उसके बारे में काफी बुरी राय रखते हैं। इन्होंने जब मुझसे यह पूछा कि मैं क्या सोफ्या सेम्योनोव्ना को अपनी बहन के साथ बैठने दूँगा, तो मैंने जवाब दिया कि मैं उसी दिन ऐसा कर भी चुका हूँ। ये तो इसी बात पर भड़क उठे कि मेरी माँ और बहन ने इनकी ओछी तोहमतों की बुनियाद पर मुझसे झगड़ा नहीं किया। सो ये ढिठाई पर उतर आए और उनसे ऐसी बातें कहने लगे जिन्हें कोई भी माफ नहीं कर सकता। इनसे आखिर में सारा नाता खत्म कर लिया गया और इन्हें घर से निकाल दिया गया। यह सब कुछ कल शाम को हुआ। और अब मैं चाहूँगा कि मैं जो कुछ कहने जा रहा हूँ उसकी ओर आप सब खास तौर पर ध्यान दें। एक मिनट के लिए मान लीजिए कि यह इस बात को साबित करने में कामयाब हो जाते कि सोफ्या सेम्योनोव्ना चोर हैं। फिर तो सबसे पहले मेरी माँ और बहन की नजरों में यह साबित कर चुके होते कि इनका हर शुबहा ठीक था, और इसलिए इनका एक बात पर नाराज होना भी ठीक था कि मैंने अपनी बहन को सोफ्या सेम्योनोव्ना के साथ बराबरी का दर्जा दिया और यह कि मुझ पर हमला करके ये दरअसल मेरी बहन और अपनी मँगेतर की इज्जत की रक्षा कर रहे थे। सच बात तो यह है कि इन बातों के जरिए ये मेरे और मेरे परिवार के बीच फूट डालने में कामयाब हो जाते, और जाहिर है, इनको यही उम्मीद थी कि इससे इन्हें उन लोगों की नजरों में चढ़ने में मदद मिलेगी। मेरे लिए तो यह बताने की भी कोई खास जरूरत नहीं कि इसके अलावा ये निजी तौर पर मुझसे बदला लेने की कोशिश भी कर रहे थे क्योंकि ये अच्छी तरह जानते थे कि मुझे सोफ्या सेम्योनोव्ना की इज्जत और खुशी की काफी परवाह है। तो यह थी इनकी सारी चाल! मुझे तो सारा किस्सा यही समझ में आता है! इनके पास बस यही एक वजह हो सकती है, कोई दूसरी वजह नहीं हो सकती!'

रस्कोलनिकोव ने इसी तरह, या लगभग इसी तरह, अपनी बात पूरी की। वहाँ पर मौजूद सभी लोगों ने उसे ध्यान से सुना, हालाँकि बीच-बीच में लोग अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए कुछेक बातें कह भी देते थे। लेकिन बीच-बीच में लोगों के बोलने के बावजूद वह तीखे ढंग से, शांत भाव से, नपे-तुले शब्दों में, साफ-साफ और दृढ़ता के साथ अपनी बात कहता रहा। उसकी बेधती हुई आवाज, दृढ़ विश्वास के शब्दों और कठोर मुद्रा का सब पर काफी गहरा असर पड़ा।

'हाँ, तुमने एकदम मर्ज को पकड़ लिया है!' लेबेजियातनिकोव ने जोश के साथ उसका समर्थन किया। 'जरूर ऐसी ही बात होगी... क्योंकि कमरे में सोफ्या सेम्योनोव्ना के आते ही इन्होंने मुझसे पूछा था कि तुम यहाँ हो कि नहीं, और यह कि कतेरीना इवानोव्ना के मेहमानों में मैंने तुम्हें देखा था कि नहीं। इन्होंने मुझे खिड़की के पास ले जा कर यह बात चुपके से पूछी थी। जाहिर है, इसका सिर्फ एक मतलब हो सकता है और ये जनाब जरूर यही चाहते होंगे कि तुम यहाँ पर नजर आओ! बिलकुल यही बात है! यही है!'

लूजिन चुप रहा और तिरस्कार भाव से मुस्कराता रहा। अलबत्ता उसका चेहरा पीला पड़ गया था। लग रहा था, वह अपनी मौजूदा स्थिति से बाहर निकलने की कोई तरकीब सोचने में व्यस्त था। मुमकिन है कि उसे स्थिति के और ज्यादा बिगड़ने से पहले ही यहाँ से निकल जाने में खुशी होती, लेकिन उस वक्त ऐसा कर सकना लगभग असंभव था। ऐसा करने का मतलब यह बात मान लेने के बराबर होता कि उसके खिलाफ जो इल्जाम लगाए गए थे वे सच थे और यह कि उसने सचमुच सोफ्या सेम्योनोव्ना को बिला वजह बदनाम करने की कोशिश की थी। इसके अलावा कमरे में जो लोग मौजूद थे, वे पिए हुए भी थे और उनके तेवर टेढ़े हो रहे थे। कमिसारियट का पेन्शनयाफ्ता अफसर सबसे ज्यादा जोर से चिल्ला रहा था, हालाँकि वह पूरी तरह समझ भी नहीं सका था कि मामला आखिर क्या है। वह कुछ ऐसे इशारे भी कर रहा था, जो लूजिन को अच्छे नहीं लग रहे थे। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जो पिए हुए नहीं थे। सभी कमरों के लोग भी वहाँ आ कर जमा हो गए थे। वे तीनों पोल बेहद उत्तेजित थे, पोल भाषा में लूजिन को बुरा-भला कह रहे थे और उसे अपनी भाषा में दबी जबान से शायद धमकियाँ भी दे रहे थे। सोन्या रस्कोलनिकोव के कथन के प्रवाह को समझने की भरपूर कोशिश कर रही थी, लेकिन ऐसा लग रहा था कि उसकी समझ में भी कुछ आ नहीं रहा है। उसे देखने से बल्कि ऐसा लग रहा था, गोया उस पर अभी-अभी बेहोशी का दौरा पड़ चुका हो। उसने रस्कोलनिकोव पर से अपनी नजरें नहीं हटाईं, क्योंकि वह यही महसूस कर रही थी कि उसे बचानेवाला सिर्फ वही है। कतेरीना इवानोव्ना खर-खर की आवाज के साथ कठिनाई से साँस ले रही थी और थक कर बिलकुल निढाल हो चुकी लग रही थी। अमालिया इवानोव्ना सबसे ज्यादा बेवकूफ लग रही थी। मुँह बाए खड़ी उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है। उसकी समझ में कुल इतना आया कि प्योत्र पेत्रोविच किसी तरह एक बड़ी मुसीबत में फँस गया है। रस्कोलनिकोव ने उन लोगों से कुछ और बोलने का मौका देने को कहा, लेकिन उन लोगों ने उसे अपनी बात पूरी नहीं करने दी। वे सब शोर मचा रहे थे और लूजिन को घेर कर उसे गालियाँ और धमकियाँ दे रहे थे। लेकिन लूजिन चिकने घड़े की तरह वहीं जमा रहा। जब उसने देखा कि सोन्या पर चोरी का इल्जाम लगाने की चाल नाकाम रही है, तो उसने धौंस से काम लेने की कोशिश की।

'देवियो और सज्जनो, बराय मेहरबानी, मेरे चारों ओर भीड़ न लगाइए और मुझे निकलने का रास्ता दीजिए,' वह भीड़ के बीच से अपने लिए रास्ता बनाते हुए कहता रहा। 'और मेहरबानी करके मुझे धमकाइए भी नहीं। मैं सच कहता हूँ, इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा। आप मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकेंगे। मैं आप लोगों से नहीं डरता। उलटे, अगर आपने उस आदमी पर हाथ उठाया जिसने एक जुर्म का पर्दाफाश किया है तो आपको भी उस जुर्म में शामिल होने के लिए जवाबदेही करनी होगी। चोर की असलियत पूरी तरह खुल चुकी है, और उस पर मैं मुकद्दमा चलाऊँगा। अदालत में लोग न तो अंधे होते हैं और... न ही नशे में होते हैं कि वे दो बदनाम नास्तिकों, उत्पातियों और उच्छृंखल विचारवालों की गवाही को मान लें। जो मुझसे निजी बदला लेने के लिए मुझ पर इल्जाम लगा रहे हैं, वह इतने बेवकूफ हैं कि इस बात को खुद मान भी रहे हैं... जी हाँ, अच्छा तो अब बराय मेहरबानी मेरा रास्ता छोड़ दीजिए।'

'मेरे कमरे से फौरन अपना बोरिया-बिस्तर ले कर फूटो! अब हमारा और तुम्हारा कोई वास्ता नहीं रहा! आप जरा सोचिए तो सही, पूरे पखवाड़े मैं इस आदमी को अपने सिद्धांत समझाने में दिमाग खपाता रहा!'

'जनाब आंद्रेई सेमेनोविच अभी कुछ ही मिनट पहले जब आप मुझे कुछ ठहर जाने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे, मैंने खुद कहा था कि मैं आज ही जा रहा हूँ। और अब जनाब, मैं इतना और कहना चाहूँगा कि आप सरासर बेवकूफ हैं। मुझे उम्मीद है कि आप जल्दी ही अपने कमजोर दिमाग और अपनी कमजोर आँखों का इलाज करवा लेंगे। आप लोग मेहरबानी करके मुझे जाने दीजिए, रास्ता छोड़िए!'

भीड़ के बीच घुस कर आखिर उसने अपने लिए रास्ता बना ही लिया। लेकिन कमिसारियट का वह पेन्शनयाफ्ता अफसर उसे कुछ गालियाँ दे कर ही छोड़नेवाला नहीं था। उसने मेज पर से एक गिलास उठा कर जोर से प्योत्र पेत्रोविच की तरफ फेंका, लेकिन निशाना चूक गया। गिलास जा कर अमालिया इवानोव्ना को लगा और उसके मुँह से चीख निकल गई। कमिसारियट का अफसर भी लड़खड़ा कर मेज के नीचे धड़ाम से गिर पड़ा। प्योत्र पेत्रोविच सीधे अपने कमरे में चला गया और आधे घंटे बाद वह उस घर में नहीं था। सोन्या स्वभाव से ही दब्बू थी। वह हमेशा से जानती थी कि उसे बहुत ही आसानी से तबाह किया जा सकता था और कोई भी आदमी दंड पाने के डर के बिना उसका अपमान कर सकता था, उसे नीचा दिखा सकता था। लेकिन उस समय भी उसे यह उम्मीद थी कि किसी तरह वह मुसीबत में फँसने से बची रहेगी - बेहद सावधानी बरत कर, एकदम भीगी बिल्ली बन कर, सबकी बात मान कर। इसलिए उसे बहुत गहरा सदमा पहुँचा। इसमें शक नहीं कि वह सब्र के साथ उफ किए बिना कुछ भी बर्दाश्त कर सकती थी। सो वह यह बात भी बर्दाश्त कर गई। लेकिन पहले एक मिनट तक उसे यह सब बहुत बुरा लगा। बावजूद इसके कि उसकी विजय हुई थी और वह निर्दोष ठहराई गई थी, आतंक और भौंचक्केपन का पहला पल जब गुजर गया और जब हर चीज उसके दिमाग में पूरी तरह साफ हो गई, तो मुकम्मल लाचारी का एहसास और जो सदमा उसे पहुँचा था उसका एहसास हृदय तक को बेध गया। उस पर जुनून-सा छा गया। आखिर जब उससे और अधिक सहन न हो सका तो वह जल्दी से कमरे के बाहर निकल कर सीधे अपने घर भाग गई। यह बात लूजिन के जाने के लगभग फौरन बाद हुई। जब कमरे में मौजूद सभी लोगों के कहकहों के बीच अमालिया इवानोव्ना को गिलास से चोट लगी तो वह इस बात को बर्दाश्त न कर सकी कि उसका कोई दोष न होने पर भी उसका हर तरह से अपमान किया जाए। हर बात के लिए कतेरीना इवानोव्ना को जिम्मेदार ठहराती हुई वह चीख कर तूफान की तरह उस पर झपटी :

'निकल जाने का हमारा घर से! फौरन निकलने का! बाहर फूटो!' यह कह कर कतेरीना इवानोव्ना की जो भी चीज उसके हाथ लगी, उसे वह फर्श पर फेंकने लगी। कतेरीना इवानोव्ना पहले ही पस्त हो चुकी थी, उसका रंग पीला पड़ चुका था, वह लगभग बेहोश हुई जा रही थी और बुरी तरह हाँफ रही थी। पलँग पर से उछल कर वह खड़ी हो गई (जिस पर वह निढाल हो कर गिर पड़ी थी) और अमालिया इवानोव्ना पर टूट पड़ी। लेकिन मुकाबला बराबर का नहीं था। मकान-मालकिन ने जरा भी जोर लगाए बिना उसे पीछे ढकेल दिया।

'इसकी हिम्मत तो देखो! मुझ पर ऐसा बेहयाई से कीचड़ उछाल कर भी इसका कलेजा ठंडा नहीं हुआ। अब यह छिनाल मुझ पर भी हमला कर रही है। मेरे शौहर के जनाजे के दिन छोटे-छोटे, अनाथ बच्चों के साथ मुझे सड़क पर निकाल रही है, और वह भी मेरी मेज पर खाना खाने के बाद! मैं अब कहाँ जाऊँ?' वह बेचारी सिसक कर रो रही थी और हाँफते हुए चिल्ला रही थी। 'हे प्रभु!' अचानक उसकी आँखों में बिजली जैसी चमक पैदा हुई और वह चीखी, 'क्या न्याय इस दुनिया से उठ ही गया है? अगर तुम हम अनाथों की रक्षा नहीं करोगे तो फिर किसकी रक्षा करोगे? अच्छी बात है, हम भी देखेंगे! अभी इस धरती पर न्याय और सच्चाई बाकी हैं। बाकी हैं, बाकी हैं! उन्हें खोज निकालूँगी! तू देखती जा, अधर्मी कमीनी कहीं की! बेटी पोलेंका, तू मेरे वापस आने तक इन बच्चों को देखती रहना। मेरा इंतजार करना, चाहे सड़क पर ही इंतजार करना पड़े! देखते हैं, इस धरती पर न्याय कहीं है कि नहीं?'

फिर अपने सर पर वही शाल डाल कर, जिसकी चर्चा मार्मेलादोव ने रस्कोलनिकोव के साथ अपनी बातचीत के दौरान की थी, शराब के नशे में चूर और शोर मचाते अभी तक कमरे में भरे हुए किराएदारों की भीड़ को चीरती हुई, कतेरीना इवानोव्ना रोती-सिसकती, मन में फौरन और हर कीमत पर न्याय पाने की धुँधली-सी उम्मीद लिए भाग कर सड़क पर निकल गई। दोनों छोटे बच्चों के साथ पोलेंका कमरे के कोने में संदूक पर सहमी हुई, दबी-सिकुड़ी बैठी रही, और दोनों के गलें में बाँहें डाल कर, सर से पाँव तक काँपती हुई अपनी माँ के वापस आने का इंतजार करने लगी। अमालिया इवानोव्ना ने कमरे में पूरा एक तूफान मचा रखा था। वह चीख रही थी, रो रही थी, और जो भी चीज हाथ लग रही थी उसे ही गुस्से में फर्श पर फेंक रही थी। किराएदार तरह-तरह की आवाजों में यूँ चीख रहे थे कि कुछ भी समझ में नहीं आता था। कुछ तो जो कुछ हुआ था उस पर अपने-अपने ढंग से टीका-टिप्पणी कर रहे थे, कुछ और थे कि आपस में ही झगड़ा कर रहे थे और एक-दूसरे को गालियाँ दे रहे थे, और कुछ ने एक गाने की धुन छेड़ दी थी...

'अब मुझे भी चलना चाहिए,' रस्कोलनिकोव ने सोचा। 'तो सोफ्या सेम्योनोव्ना, देखता हूँ कि तुम अब क्या कहती हो!'

फिर वह सोन्या के घर की तरफ चल पड़ा।