अपराध और दंड / अध्याय 6 / भाग 4 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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'शायद तुम्हें पता हो (मैंने तो तुम्हें खुद ही बताया था!),' स्विद्रिगाइलोव ने कहना शुरू किया, 'कि मुझे यहाँ कर्ज न चुकाने पर जेल भेज दिया गया था। मेरे ऊपर बहुत बड़ा कर्ज था पर उसे चुकाने के न तो साधन थे न इसकी कोई उम्मीद थी। शायद विस्तार से यह बताना मेरे लिए जरूरी नहीं कि मेरी बीवी ने किस तरह मेरा कर्ज चुका कर मुझे छुटकारा दिलाया था। तुम्हें मालूम है क्या कि औरत कभी-कभी मुहब्बत में कितनी पागल हो जाती है वह बहुत ईमानदार औरत थी और कुछ खास नासमझ भी नहीं थी (हालाँकि वह पढ़ी-लिखी हरगिज नहीं थी।) अब जरा सोचो : इस ईमानदार और ईर्ष्यालु औरत ने रोने-धोने और कहा-सुनी की कई भयानक वारदातों के बाद मुझ पर एक बड़ा एहसान करके मेरे साथ एक तरह का करार कर लिया, जिसे उसने हमारे विवाहित जीवन में हमेशा निभाया। मुसीबत यह थी कि वह उम्र में मुझसे बहुत बड़ी थी। अलावा इसके हर वक्त वह लौंग चबाती रहती थी। पर मैं भी कुछ हद तक पाजी था और मैंने उससे साफ-साफ कह दिया कि मैं उसके साथ पूरी वफादारी नहीं बरत सकता। इस बात को मेरे मान लेने पर वह आग-बगूला हो उठी। लेकिन लगता है, मेरा दो-टूक बात कह देना उसे एक तरह से अच्छा ही लगा, क्योंकि उसने सोचा कि मैंने उसे पहले से ही आगाह कर दिया था और इसका मतलब यह था कि मैं उसे धोखा नहीं देना चाहता था। ईर्ष्यालु औरत के लिए सबसे बड़ी बात यही होती है। आँसुओं की नदियाँ बहाने के बाद हमने आपस में एक अनकहा समझौता कर लिया - पहली बात यह कि मैं कभी उसे छोड़ कर नहीं जाऊँगा और हमेशा उसका शौहर रहूँगा। दूसरे, मैं उसकी इजाजत के बिना कभी कहीं नहीं जाऊँगा। तीसरे, मैं हमेशा के लिए कभी कोई रखैल नहीं रखूँगा। चौथे, इसके बदले में मेरी बीवी कभी इस बात पर एतराज नहीं करेगी कि मैं कभी-कभार अपनी किसी नौकरानी के साथ कोई चक्कर पाल लूँ, लेकिन इस तरह कभी नहीं कि मेरी बीवी को अंदर-ही-अंदर उसका पता न हो। पाँचवें किसी भी हालत में मैं अपने वर्ग की किसी औरत के चक्कर में नहीं पड़ूँगा। छठे, भगवान न करे, अगर कभी मुझे किसी से बहुत गहरा प्यार हो जाए तो मुझे अपनी बीवी को बताना होगा लेकिन इस आखिरी शर्त के बारे में मेरी बीवी को कभी कोई खास चिंता नहीं हुई। वह समझदार औरत थी और इसलिए मुझे ऐसे ऐयाश और बदलचलन के अलावा कुछ और समझ ही नहीं सकती थी, जो किसी से संजीदगी से प्यार नहीं कर सकता था। लेकिन समझदार औरत और ईर्ष्यालु औरत दो अलग-अलग चीजें होती हैं, और सारी मुसीबत यही थी। मगर कुछ लोगों के बारे में एक निष्पक्ष राय कायम करने के लिए सबसे जरूरी यह होता है कि हम अपने चारों ओर की परिस्थितियों और अपने चारों ओर के लोगों के बारे में अपने पहले से कायम किए गए विचारों को और उनकी तरफ अपने आम रवैए को छोड़ें। मैं समझता हूँ, मैं दूसरे किसी भी आदमी के मुकाबले तुम्हारे फैसले पर कहीं ज्यादा भरोसा कर सकता हूँ। तुमने मेरी बीवी के बारे में बहुत से दिलचस्प और बेतुके किस्से सुने होंगे। यह सच है कि उसकी कुछ आदतें बेतुकी थीं, लेकिन मैं तुमसे साफ-साफ कहता हूँ कि मेरी वजह से उसे कई बार जो बहुत गहरी निराशा हुई, उसका मुझे बहुत ही अफसोस है। खैर, मैं समझता हूँ कि एक बेहद प्यार करनेवाली वफादार बीवी के मरने पर एक बेहद प्यार करनेवाले वफादार शौहर की तरफ से भावपूर्ण श्रद्धांजलि के रूप में इतना कहा जाना काफी है। झगड़ों के दौरान मैं ज्यादातर चुप रहता था और पूरी-पूरी कोशिश करता था कि किसी तरह की चिड़चिड़ाहट न दिखाऊँ। अपने शराफत के रवैए की वजह से इसमें मुझे लगभग हमेशा ही कामयाबी भी मिली। उस पर इसका न सिर्फ असर होता था बल्कि वह इसे यकीनन पसंद करती थी। सच बात तो यह है कि ऐसे भी मौके आए, जब वह मुझ पर गर्व तक करती थी। लेकिन इसके बावजूद तुम्हारी बहन की तरफ मेरे झुकाव की बात वह बर्दाश्त न कर सकी। यह बात तो मैं कभी समझ ही नहीं सका कि उसने उस बेपनाह खूबसूरत लड़की को बच्चों की देखभाल के लिए गवर्नेस रखने का जोखिम कैसे मोल लिया! मेरी समझ में इसकी एक ही वजह आती है : कि मेरी बीवी एक भावुक और जोशीली औरत थी, और उसे खुद तुम्हारी बहन से लगाव हो गया था - सचमुच उससे लगाव हो गया था। अव्दोत्या रोमानोव्ना भी कमाल की लड़की थी! जवाब नहीं था उनका! उन्हें देखते ही मैं अच्छी तरह समझ गया कि इस बार मेरी खैर नहीं है और जानते हो, मैंने जी में ठान लिया था कि उनकी तरफ देखूँगा भी नहीं। लेकिन मानो या न मानो अव्दोत्या रोमानोव्ना ने खुद पहल की... और क्या तुम इस पर यकीन करोगे कि शुरू में मेरी बीवी खुद ही मुझसे नाराज होती थी कि मैं तुम्हारी बहन के सामने कभी जबान तक नहीं खोलता था और वह अव्दोत्या रोमानोव्ना की शान में जो कसीदे लगातार पढ़ती रहती थी, उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता था। मुझे नहीं मालूम कि वह क्या चाहती थी। जाहिर है, मेरी बीवी ने अव्दोत्या रोमानोव्ना को मेरे बारे में सब कुछ बता दिया था। उसकी यह बहुत बुरी आदत थी कि वह सभी को हमारे परिवार की तमाम गुप्त बातें बता देती थी और हर आदमी से मेरी शिकायत करती थी। सो भला वह इस सिलसिले में अपनी इस नई और खूबसूरत दोस्त को कैसे नजरअंदाज कर सकती थी! मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वे दोनों मेरे अलावा किसी और चीज के बारे में बात ही नहीं करती थीं, और मुझे इसमें भी शक नहीं है कि अव्दोत्या रोमानोव्ना को जल्द ही उन शर्मनाक और रहस्यमय भयानक किस्सों का पता चल गया होगा जिन्हें लोग मेरे नाम के साथ जोड़ते हैं... मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि तुमने खुद भी इस तरह की कुछ बातें सुनी होंगी।'

'सुनी हैं। लूजिन ने आप पर इल्जाम लगाया था कि आपकी वजह से एक बच्ची की मौत हुई। यह सच है क्या?'

'मुझ पर इतना एहसान करो कि इन बेहूदा किस्सों की चर्चा न करो,' स्विद्रिगाइलोव ने नफरत से इस विषय को पक्के तौर पर टालते हुए कहा। 'अगर तुम खास तौर पर इस बेतुके किस्से के बारे में जानना ही चाहते हो, तो मैं तुम्हें किसी और वक्त बता दूँगा, लेकिन अभी...'

'मैंने लोगों को गाँव में आपके एक नौकर की चर्चा करते भी सुना है और यह कि आपकी ही वजह से उसके ऊपर भी कोई मुसीबत आई थी।'

'छोड़ो इस बात को, तुम एक भले आदमी हो!' स्विद्रिगाइलोव ने एक बार फिर साफ-साफ बेजार हो कर उसे टोका।

'यह वही नौकर था क्या जो मरने के बाद आपके पास आपका पाइप भरने आया था ...मुझे इस बारे में खुद आपने बताया था।' रस्कोलनिकोव की चिड़चिड़ाहट बढ़ रही थी।

स्विद्रिगाइलोव ने रस्कोलनिकोव को गौर से देखा। रस्कोलनिकोव को लगा, कि एक पल के लिए बिजली की लपलपाहट की तरह स्विद्रिगाइलोव की आँखों में एक दुश्मनी की चमक पैदा हुई थी।

'वही था,' स्विद्रिगाइलोव ने अपने आपको सँभाल कर शिष्टता से जवाब दिया। 'मैं देख रहा हूँ कि तुम्हें भी इन सब बातों में काफी दिलचस्पी है, और इसलिए मैं यह अपना फर्ज समझता हूँ कि पहला मुनासिब मौका मिलने पर इन सब बातों के बारे में तुम्हें वह सब कुछ बता दूँ जो तुम जानना चाहते हो। लानत है, अब मेरी समझ में आ रहा है कि कुछ लोगों को मैं सचमुच रोमांटिक लगता रहा हूँगा। तुम खुद समझ सकते हो कि इसके बाद मैंने अपनी बीवी का, जो अब मर चुकी है, कितना एहसान माना होगा कि उसने तुम्हारी बहन को मेरे बारे में बहुत-सी रहस्य भरी और दिलचस्प बातें बता दी थीं। यह तो मैं नहीं कह सकता कि तुम्हारी बहन पर उसका क्या असर हुआ लेकिन इससे मुझे बहरहाल फायदा ही हुआ। अवदोत्या रोमानोव्ना को मुझसे जो कुदरती दुराव था उसके बावजूद और मैं हमेशा जो गुस्से और चिढ़वाली मुद्रा बनाए रहता था उसके बावजूद, आखिरकार उनके दिल में मेरे लिए तरस पैदा हुआ, एक पूरी तरह गए-गुजरे आदमी के लिए तरस पैदा हुआ। पर जब किसी नौजवान लड़की के दिल में किसी के लिए तरस पैदा होता है तो यह बात उस लड़की के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होती है क्योंकि ऐसी हालत में वह लाजिमी तौर पर उसे 'बचाने' की कोशिश करती है; इसकी कोशिश करती है कि वह आदमी अपनी गलतियों को समझे। वह उसे एक नया इनसान बनाना चाहती है, उसके दिल में ज्यादा ऊँची चीजों के लिए दिलचस्पी पैदा करना चाहती है, और उसे एक नई जिंदगी के लिए नए कामों के लिए उभारना चाहती है। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि एक नौजवान लड़की के मन में किस तरह के सपने होते हैं। फौरन ताड़ गया मैं कि यह प्यारी खूबसूरत चिड़िया उड़ कर सीधे मेरे जाल में आ रही है, और मैं भी इसके लिए तैयार हो गया। लगता है दोस्त, तुम्हारी त्योरियों पर बल आ रहे हैं। परेशान न हो, जैसा कि तुम जानते ही हो, इन बातों का कोई नतीजा नहीं निकला। (लानत है, मुझ पर, लगता है बहुत ज्यादा शराब पीने लगा हूँ!) बात यह है कि मैं शुरू से ही हमेशा यही सोचा करता था कि अफसोस तुम्हारी बहन दूसरी या तीसरी सदी ईसवी के किसी राजे-रजवाड़े, किसी सूबे के गवर्नर, या एशिया-ए-कोचक के राजदूत के घर में क्यों नहीं पैदा हुईं। तब वे यकीनन उन लोगों में से होतीं जिन्हें शहीद कर दिया गया, और जब उनके स्तनों को दहकते चिमटों से दागा जाता तब भी वे यकीनन मुस्करातीं। वे हँसी-खुशी शहीद होने को तैयार हो जातीं। और अगर वे चौथी या पाँचवीं सदी में होतीं तो संन्यास ले कर मिस्र के निर्जन रेगिस्तान में चली गई होतीं और वहाँ तीस साल तल कंद-मूल खा कर ध्यान-तपस्या में अपने दिन काट दिए होते। वे इस चीज के लिए तड़प रही हैं, किसी की खातिर भी शहीद होने को तुली बैठी हैं, और अगर उन्हें शहीद होने का मौका न मिला तो बहुत मुमकिन है कि वे खिड़की से छलाँग लगा कर अपनी जान दे दें। मैंने रजुमीखिन नाम के किसी आदमी के बारे में सुना है। सुना है कि वह समझदार आदमी है। (इसका अंदाजा आप उसके परिवार-नाम से ही लगा सकते हैं, क्योंकि वह जिस शब्द से बना है उसका अर्थ 'विवेक' होता है। मैं समझता हूँ, वह धर्मशास्त्र का विद्यार्थी होगा।) खैर, वह अगर तुम्हारी बहन को खुश रख सके, तो काफी अच्छी बात है। मतलब यह मेरा खयाल है, मैं तुम्हारी बहन को अच्छी तरह समझता था और यह मेरे लिए बहुत इज्जत की बात है। लेकिन इसके साथ ही, जैसा कि तुम जानते हो, किसी से भी जान-पहचान की शुरुआत में हर आदमी कुछ ज्यादा ही नादान और नासमझ होता है। हमेशा गलत सिरा पकड़ लेता है। उसे सामने की चीज नहीं दिखाई देती। आखिर वे इतनी खूबसूरत क्यों हैं यह मेरा कसूर तो नहीं है। तो बात यह है कि जहाँ तक मेरा सवाल है, यह सारा सिलसिला मेरे दिल में वासना की एक ऐसी लहर से शुरू हुआ, जिसे दबा सकना मेरे लिए नामुमकिन था। अव्दोत्या रोमानोव्ना बेहद पवित्र और सच्चरित्र हैं, इतनी कि समझना और यकीन करना मुश्किल है। (याद रहे, मैं तुम्हारी बहन के बारे में यह सब कुछ एकदम सच-सच बता रहा हूँ। उनकी पवित्रता और सच्चरित्रता बीमारी की हद तक पहुँच चुकी है, बावजूद इसके कि वे बहुत समझदार हैं, और इसकी वजह से उन्हें बहुत-सी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।) तो हुआ यह कि उन्हीं दिनों हमारे यहाँ एक नई नौकरानी आई - पराशा। काली आँखोंवाली पराशा। वह ऊपर के कामों के लिए रखी गई थी। नई-नई किसी दूसरे गाँव से आई थी और मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था। बला की खूबसूरत थी, लेकिन हद दर्जे की बेवकूफ। एक हंगामा ही खड़ा कर दिया उसने, चीख-चीख कर आसमान सर पर उठा लिया... और छीछालेदार कितनी हुई! अफसोस की बात कि आखिर एक दिन दोपहर के भोजन के बाद अव्दोत्या रोमानोव्ना ने कोशिश करके मुझे बाग के छायादार पेड़ोंवाले एक रास्ते पर खोज निकाला और गुस्से से चमकती हुई आँखों से मुझसे माँग की कि मैं बेचारी पराशा का पीछा छोड़ दूँ। यह शायद पहला मौका था, जब हम दोनों ने बिलकुल अकेले आपस में बातचीत की थी। जाहिर है, मुझे उनकी इस प्रार्थना को पूरा करके बेहद खुशी हुई। मैंने अपनी तरफ से यह जताने की पूरी कोशिश की कि मुझे उनकी बात से ताज्जुब हुआ था और मैं काफी अटपटा महसूस कर रहा था, और सच तो यह है कि मैंने यह नाटक काफी अच्छी तरह खेला। इसके बाद हम दोनों छिप-छिप कर मिलने लगे; गुपचुप बातें होतीं, उपदेश दिए जाते, नसीहतें की जातीं, शिकवे-शिकायतें होतीं, और कभी-कभी आँसुओं तक की नौबत आ जाती... क्या तुम यकीन करोगें... आँसुओं की! दूसरों को सुधारने की धुन कुछ लड़कियों को कहाँ तक पहुँचा देती है! जाहिर है, मैंने हर बात के लिए अपने अभागे सितारों को दोषी ठहराया, यह जताया कि मैं इस अँधेरे से बाहर निकलने के लिए रोशनी की तलाश में तड़प रहा हूँ, और आखिर में औरत का दिल जीतने के सबसे अच्छे और अचूक तरीके का सहारा लिया, उस तरीके का जिसने अभी तक किसी को कभी निराश नहीं किया और जो हर औरत के सिलसिले के एक कारगर साबित होता है। वह जाना-पहचाना तरीका खुशामद का था। दुनिया में साफ बात कहने से ज्यादा मुश्किल कोई काम नहीं और कोई काम चापलूसी से ज्यादा आसान नहीं। अगर आपकी दोटूक बातों में सौवाँ हिस्सा भी झूठ का हो तो फौरन कोई मनमुटाव पैदा हो जाएगा और उसके तुरंत बाद झगड़ा शुरू हो जाएगा। लेकिन, दूसरी तरफ, अगर खुशामद में शुरू से आखिर तक झूठ हो, तब भी वह काफी सुखद होता है और संतोष के साथ सुना जाता है... बहुत भोंडे किस्म का संतोष होता है लेकिन होता तो है। और खुशामद कितना ही भोंडा क्यों न हो, कम-से-कम उसका आधा हिस्सा तो हमेशा ही सच मालूम होता है। यह बात हर तरह के और हर वर्ग के लोगों के बारे में सच है। चरित्रवान से चरित्रवान कन्याकुमारी को भी खुशामद के जरिए शीशे में उतारा जा सकता है। जहाँ तक मामूली इनसानों का सवाल है, वे इसके आगे एकदम बेबस हो जाते हैं। मुझे तो हँसी आती है जब मैं याद करता हूँ कि मैंने एक बार किस तरह समाज में ऊँची हैसियतवाली एक ऐसी महिला को फँसा लिया था जिसे अपने पति, अपने बच्चों और अपनी सच्चरित्रता से बड़ा लगाव था। कितना मजा आया था। और कैसी आसानी से सब कुछ हो गया था! वह महिला भी सचमुच और सही माने में सच्चरित्र थी; कम-से-कम अपने ढंग से तो थी ही। मैंने तो सिर्फ यह दाँव खेला कि यह जताया कि मैं उनकी सच्चरित्रता से पूरी तरह प्रभावित हूँ। मैं बड़ी बेशर्मी से उनकी खुशामद करता था, और ज्यों ही उनसे कुछ पाने में सफल हो गया, यानी कभी मैंने उसका जरा-सा हाथ दबा दिया या कभी उसने मेरी ओर कनखियों से देख लिया, तो मैं फौरन अपने आपको धिक्कारने लगता था कि मैंने जो कुछ पाया था, वह जबरदस्ती पाया था। मैं हमेशा उसे यह बताता रहता था कि वह तो लगातार डट कर मेरा विरोध करती रही थी, इतना डट कर कि अगर मैं बदचलन न होता तो मुझे कुछ भी मिल नहीं पाता। अपने भोलेपन में वह मेरी मक्कारी को पहले से समझ नहीं पाई और इस बात को समझे बिना या किसी तरह का शक किए बिना, अनजाने ही मेरे हथकंडों का शिकार हो गई थी, वगैरह, वगैरह। जो कुछ मैं चाहता था, आखिर मुझे मिल गया, और उन देवीजी को आखिर तक यही पक्का विश्वास रहा कि वह निर्दोष और सच्चरित्र थी, कि उसने अपने किसी कर्तव्य और दायित्व का हनन नहीं किया और यह भी कि उसका पथभ्रष्ट हो जाना बस संयोग की बात थी। तुम तो सोच भी नहीं सकते कि तब वह कितना नाराज हुई, जब मैंने उसे यह बताया कि पूरी ईमानदारी के साथ मैं तो यही समझता था कि आनंद लूटने के लिए वह भी उतनी ही बेचैन थी जितना मैं था। मेरी बीवी बेचारी भी बड़ी आसानी से खुशामद की शिकार हो जाती थी, और अगर मैं चाहता तो उसकी जिंदगी में ही उसकी सारी जमीन-जायदाद अपने नाम लिखवा सकता था। (मुझे डर है कि मैं अब बेहद पीने लगा हूँ और जरूरत से ज्यादा बातें करने लगा हूँ।) मुझे उम्मीद है कि अगर मैं तुम्हें अब यह बता दूँ कि यही बात अव्दोत्या रोमानोव्ना के साथ भी होने लगी थी तो तुम नाराज नहीं होगे। लेकिन मैंने ही अपनी नासमझी और बेसब्री की वजह से सारा बना-बनाया खेल बिगाड़ दिया। हमारी दोस्ती की शुरुआत में ही तुम्हारी बहन ने कई बार (एक बार तो खास तौर पर) उनमें एक ऐसी रोशनी रहती थी जिसकी चमक लगातार ज्यादा तेज और ज्यादा बेझिझक होती जाती थी। यहाँ तक कि उन्हें उस चमक से डर लगने लगा, और आखिर वे उससे नफरत करने लगीं। मैं तफसील की बातों में नहीं जाऊँगा, लेकिन हम दोनों की अनबन हो गई। और इस मंजिल पर पहुँच कर मैंने फिर बेवकूफी की। मैं उनकी आदेश देने की और मुझे सुधारने की कोशिशों का बेहद बदतमीजी से, खुल्लमखुल्ला मजाक उड़ाने लगा। पराशा एक बार फिर मेरी जिंदगी में आ गई... और अकेली वही नहीं, और भी कई आईं। मतलब यह कि एक काफी बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया। मेरे दोस्त, काश तुम अपनी जिंदगी में एक बार भी देख पाते कि तुम्हारी बहन की आँखें कभी-कभी किस तरह चमक सकती हैं! इस बात की कोई परवाह मत करो कि मैं इस वक्त नशे में हूँ, या मैं शराब का एक पूरा गिलास चढ़ा चुका हूँ - मैं तुमसे सच बात कह रहा हूँ। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि तुम्हारी बहन की नजर मेरे सपनों में मुझे सताने लगी। फिर एक ऐसा वक्त भी आया जब उनकी पोशाक की सरसराहट भी मेरे लिए बर्दाश्त के बाहर हो गई। मैं सचमुच सोचने लगा कि मुझे मिरगी का दौरा पड़ जाएगा। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मुझ पर ऐसा जुनून सवार होगा। मेरे लिए तुम्हारी बहन के साथ सुलह-समझौता बहुत जरूरी हो गया था लेकिन अब यह मुमकिन भी नहीं रह गया था। तो फिर तुम्हारी समझ में मैंने क्या किया होगा? गुस्सा आदमी को कितना निकम्मा बना देता है! जब तुम्हें बेहद गुस्सा आ रहा हो तब कोई काम मत करना, मेरे दोस्त! इस बात को ध्यान में रखते हुए कि अव्दोत्या रोमानोव्ना हर एतबार से कंगाल थीं। (माफ करना, मैं यह बात कहना नहीं चाहता था... लेकिन क्या फर्क पड़ता है!), दरअसल इस बात को देखते हुए कि उन्हें अपनी रोजी कमाने के लिए काम करना पड़ता था और अपनी माँ के लिए और तुम्हारे लिए भी बंदोबस्त करना पड़ता था (तुम्हारी त्योरियों पर फिर बल पड़ गए!), मैंने अपना सारा पैसा उन्हें इस शर्त पर दे देने का फैसला किया (उस वक्त भी मैं तीस हजार रूबल जुटा सकता था) कि वे मेरे साथ भाग चलें - अगर उनका जी चाहे तो पीतर्सबर्ग ही सही। इस सिलसिले में यह बताने की तो जरूरत नहीं कि उन्हें मैं उम्र भर प्यार करने का वचन देता, उन्हें यकीन दिलाता कि उन्हें सुखी रखूँगा, वगैरह, वगैरह। यह जानो कि उस वक्त मैं उनके प्यार में इतना पागल हो गया था कि अगर वे मुझसे कहतीं कि मैं अपनी बीवी की गर्दन काट दूँ या उसे जहर दे दूँ और उनसे शादी कर लूँ तो मैं फौरन यही सब कर बैठता! लेकिन, जैसा कि तुम्हें मालूम ही है, सारा किस्सा जिस तरह खत्म हुआ, वह बहुत ही बदनसीबी की बात थी। तुम सोच सकते हो कि तब मुझे कितना ताव आया होगा, जब मैंने यह सुना कि मेरी बीवी ने उस लुच्चे वकील लूजिन को पकड़ कर उसके साथ तुम्हारी बहन की शादी कराने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। सच पूछो तो यह वैसी ही बात होती जैसी कि मैंने उनके सामने सुझाव के तौर पर रखी थी। है न यही बात, है कि नहीं मैं देख रहा हूँ, मेरे दिलचस्प नौजवान दोस्त, कि तुम मेरी बातें बड़े ध्यान से सुनने लगे हो...'

स्विद्रिगाइलोव ने बेचैन हो कर मेज पर जोर से मुक्का मारा। उसका चेहरा तमतमा उठा। रस्कोलनिकोव समझ गया कि अनजाने ही चुस्कियाँ ले-ले कर और घूँट-घूँट करके वह जो डेढ़ गिलास शैंपेन पी गया था, उसका उस पर बुरी तरह असर हुआ था, और उसने इस मौके का भरपूर फायदा उठाने का फैसला किया। वह स्विद्रिगाइलोव को बहुत शक की नजर से देखता था।

'खैर, इसके बाद मुझे तो और भी पक्का यकीन हो गया है कि आप यहाँ मेरी बहन की वजह से ही आए हैं,' उसने स्विद्रिगाइलोव से कुछ भी छिपाए बिना, खुल्लमखुल्ला कहा ताकि वह और भी चिढ़ जाए।

'नहीं, भगवान की कसम, ऐसी बात नहीं!' यूँ लगा कि स्विद्रिगाइलोव ने अपने आपको सँभाल लिया है। 'मैं तो तुम्हें बता ही चुका हूँ ...इसके अलावा, तुम्हारी बहन मेरी सूरत तक देखने को तैयार नहीं हैं।'

'मुझे यकीन है कि ऐसी ही बात होगी, लेकिन अब सवाल इसका भी नहीं रहा।'

'अच्छा, तो तुम्हें यकीन है कि वे कभी ऐसा करने को तैयार नहीं हो सकतीं, क्यों?' स्वद्रिगाइलोव आँखें तरेर कर उसका मजाक उड़ाने के अंदाज से मुस्कराया। 'तुम एकदम ठीक कहते हो। वे मुझसे प्यार नहीं करतीं। लेकिन भरोसे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता कि शौहर और बीवी के बीच, या किसी आशिक और माशूक के बीच कब क्या हो जाए। एक कोना हमेशा ऐसा होता है जो दुनिया की नजरों से छिपा रहता है और उसका पता बस उन्हीं दोनों को होता है। क्या तुम्हें यकीन है कि अव्दोत्या रोमानोव्ना को मुझसे सख्त नफरत है?'

'आपकी कुछ बातों और कुछ शब्दों में मुझे लगता है कि दूनिया के सिलसिले में अभी तक आपके कुछ इरादे हैं, जाहिर है, वे शर्मनाक ही हैं, और आप उन्हें पूरा करने पर तुले हुए हैं।'

'मतलब क्या है तुम्हारा? क्या मैंने ऐसी कोई भी बात कही है या ऐसा कोई भी शब्द इस्तेमाल किया है?' स्विद्रिगाइलोव ने निष्कपट विस्मय से और उसके इरादों के बारे में जो विशेषण इस्तेमाल किया गया था, उसकी ओर ध्यान दिए बिना, चीख कर कहा।

'आप अभी भी इस्तेमाल कर रहे हैं। मिसाल के लिए, आप इतना डरे हुए क्यों हैं, अचानक इतना सहम क्यों गए हैं?'

'मैं और डरा-सहमा हुआ? किससे? तुमसे मेरे दोस्त, डरना तो मुझसे तुम्हें चाहिए। लेकिन यह भी क्या सरासर बकवास है... मैं कुछ नशे में हूँ, यह मैं समझ रहा हूँ। एक बार फिर एक ऐसी बात मेरे मुँह से निकलते-निकलते रह गई, जो मुझे नहीं कहनी चाहिए। लानत है इस शराब पर। वेटर, पानी लाओ!'

उसने बोतल उठा कर खिड़की के बाहर फेंक दी। फिलिप पानी ले कर आया।

'सब बकवास है!' स्विद्रिगोइलोव ने तौलिया भिगो कर सर पर रखते हुए कहा। 'लेकिन मैं बड़ी आसानी से तुम्हारी सारी उलझन दूर कर सकता हूँ; तुम्हारे सारे शक मिटा सकता हूँ। मिसाल के लिए, क्या तुम्हें मालूम है कि मेरी शादी होनेवाली है?'

'आप मुझे बता चुके हैं।'

'बता चुका हूँ मुझे याद नहीं। लेकिन तब मैंने पक्के तौर पर नहीं बताया होगा क्योंकि मैंने तब तक लड़की को देखा भी नहीं था। मेरा बस एक इरादा था। लेकिन अब बाकायदा मँगनी हो चुकी है, सब कुछ तय हो चुका है, और अगर अभी मुझे एक जरूरी कारोबारी काम से न जाना होता तो मैं तुम्हें फौरन वहाँ ले जाता क्योंकि मैं तुम्हारी राय जानना चाहता हूँ। लानत है, मेरे पास अब सिर्फ दस मिनट का वक्त रह गया है। टाइम देख रहे हो? मैं समझता हूँ मैं तुम्हें उसके बारे में बता ही दूँ... मेरा मतलब है अपनी शादी के बारे में, क्योंकि वह अपने ढंग का बहुत ही दिलचस्प सिलसिला है। तुम चले कहाँ जा रहे हो?'

'नहीं, अब नहीं जाऊँगा।'

'तुम्हारा मतलब है कि बिलकुल नहीं जाओगे... देखा जाएगा। मैं तुम्हें वहाँ ले जाऊँगा और अपनी मँगेतर से मिलाऊँगा लेकिन अभी नहीं, क्योंकि शायद तुम्हें जल्द ही जाना पड़ेगा। तुम दाहिनी ओर जाना और मैं बाईं ओर जाऊँगा। मादाम रेसलिख को तो जानते ही होगे? वही औरत जिसके यहाँ मैं रहता हूँ। सुन रहे हो कि नहीं... मेरा मतलब उस औरत से है जिसके बारे में लोग कहते हैं कि वह छोटी बच्ची उसी के घर में डूब कर मर गई थी - इसी जाड़े में... हाँ, तो तुम सुन रहे हो न, भले आदमी खूब! तो, यह सारा किस्सा मेरे लिए उसी ने तय किया है। उसने मुझसे कहा, तुम उकताए हुए रहते हो, तुम्हारा जी भी थोड़ा बहल जाएगा। और यह बात ठीक ही है : मैं बहुत उदास और नीरस आदमी हूँ। क्यों, तुम यह तो नहीं समझते कि मैं बहुत खुशमिजाज हूँ अरे नहीं, मैं बहुत ही उदास आदमी हूँ। किसी को मैं कोई नुकसान नहीं पहुँचाता, बस एक कोने में बैठा रहता हूँ, और कभी-कभी तो तुम तीन-तीन दिन तक मेरे मुँह से एक बात भी नहीं सुनोगे। लेकिन वह औरत... वह मादाम रेसलिख बड़ी चालाक कुतिया है, इतना मैं बताए देता हूँ। जानते हो, उसके मन में क्या बात है वह सोचती है कि मैं अपनी बीवी से उकता जाऊँगा और उसे छोड़ कर चला जाऊँगा। तब मेरी बीवी उसके कब्जे में आ जाएगी और वह उसे जिस तरह चाहेगी इस्तेमाल करेगी, उसे हमारे वर्ग के लोगों के बीच, या शायद और भी ऊँचे लोगों के बीच, घुमाना शुरू कर देगी। उसने मुझे बताया कि लड़की का बाप सरकारी नौकर था, अब पेन्शन पाता है और अपाहिज है, उसकी टाँगों को लकवा मार गया है और पिछले तीन साल उसने अपाहिजोंवाली कुर्सी पर ही काटे हैं। उसने मुझे बताया कि लड़की की माँ बहुत समझदार औरत है। उनके एक बेटा भी है जो किसी दूसरी जगह रहता है, किसी सरकारी नौकरी से लगा हुआ है, और उनकी कोई मदद नहीं करता। एक बेटी की शादी हो चुकी है लेकिन वह उनके यहाँ नहीं आती। उनके दो छोटे भतीजे भी साथ ही रहते हैं। (जैसे उनके अपने ही बच्चे कम हों।) अपनी दूसरी बेटी को उन लोगों ने पढ़ाई पूरी करने से पहले ही स्कूल से निकाल लिया था। एक महीने बाद वह सोलह साल की हो जाएगी और तब कानूनी तौर पर उसकी शादी हो सकती है। यानी कि मेरे साथ। तो हम लोग उनसे जान-पहचान पैदा करने गए। खूब चहल-पहल रही और हंगामा रहा। मैंने अपना परिचय दिया - मैं जमींदार हूँ, मेरी बीवी मर चुकी है, अच्छे घराने का आदमी हूँ, दूर-दूर तक पहुँच है और अपने बल पर अच्छा खाता-पहनता हूँ। क्या हुआ कि मैं पचास साल का हूँ और वह अभी सोलह साल की भी नहीं है कौन इसकी परवाह करता है लेकिन मुँह में पानी तो आ ही जाता है, कि नहीं? बहुत मजेदार बात है, हा-हा! तुम मुझे उसके माँ-बाप से बातें करते देखते! उस वक्त मुझे देखना... पैसा खर्च करके देखने लायक तमाशा था। वह अंदर आई और स्कर्ट के दोनों छोर पकड़ कर बड़ी अदा से झुक कर सलाम किया। जानते हो, वह अभी तक ऊँचा स्कर्ट पहनती है, बहुत प्यारी-सी मुँहबंद कली, डूबते सूरज की लाली की तरह लजाती हुई। (जाहिर है, उन लोगों ने उसे बता दिया होगा। मालूम नहीं औरतों के चेहरों के बारे में तुम क्या राय रखते हो, लेकिन मुझे तो सोलह साल की लड़की - वे छोटी-छोटी बचकानी आँखें, वह लजाना, और संकोच के आँसू - मुझे तो यह सब कुछ सुंदरता से कहीं ज्यादा अच्छा लगता है... और वह तो देखने में है भी तस्वीर जैसी। खूबसूरत सुनहरे बाल, छोटे-छोटे घूँघर पड़े हुए। भरे-भरे कोमल लाल होठ। नन्हे-नन्हे प्यारे-प्यारे पाँव। खैर, हम लोगों का परिचय हुआ। मैंने उन लोगों को बताया कि मुझे बहुत जल्दी है क्योंकि मुझे अपने परिवार के बहुत से मामले निबटाने हैं, और अगले ही दिन - यानी परसों - हमारी बाकायदा मँगनी हो गई। अब मैं जब भी वहाँ जाता हूँ, उसे फौरन अपनी गोद में बिठाता हूँ और वहीं बिठाए रखता हूँ। तो होता यह है कि वह शर्म के मारे डूबते सूरज जैसी लाल हो जाती है, और मैं उसे चूमता रहता हूँ। जाहिर है, उसकी माँ उसे बताती है कि मैं उसका होनेवाला शौहर हूँ और जो कुछ हो रहा है वह ठीक ही है... मतलब यह कि बड़ा मजा आता है! सच पूछो तो इस वक्त मेरी मँगेतरवाली हैसियत शौहरवाली हैसियत से अच्छी है। इस वक्त तो मेरे पास वह चीज है जिसने फ्रांसीसी में la nature et la verite 1 कहते हैं। हा-हा! मैंने उससे बात की है, एक या दो बार, और वह किसी भी तरह नासमझ लड़की नहीं है। कभी-कभी वह नजरें बचा कर मुझे इस तरह देखती है कि एक तीर दिल के पार निकल जाता है। सच कहता हूँ, उसकी सूरत देख कर मुझे रफाएल की मैडोना का चित्र याद आ जाता है। सिस्टीन की मैडोना का चेहरा बिलकुल अनोखा है, एक उदास धर्म-विभोर स्त्री का चेहरा। तुमने तो देखा है न बहरहाल, कुछ उसी किस्म की चीज। मँगनी के अगले दिन मैंने उसे पंद्रह सौ रूबल के तोहफे खरीद कर दिए। हीरों का एक जड़ाऊ सेट, मोतियों का एक सेट और एक काफी बड़ा चाँदी का सिंगारदान, जिसमें तरह-तरह की चीजें थीं। उन्हें देख कर उसका प्यार-सा, भोला-सा चेहरा, उस मैडोना का चेहरा खिल उठा। कल मैंने उसे अपनी गोद में बिठाया था, लेकिन मैंने शायद जरूरत से ज्यादा बे-तकल्लुफी से काम लिया था। लाज से उसकी कान की लवें तक लाल हो गईं और आँखों में आँसू छलक आए, लेकिन वह नहीं चाहती थी कि किसी को इसका पता चले। खुद उसके अंदर एक आग सुलग रही थी। वे सब लोग एक मिनट के लिए बाहर चले गए और वह अचानक मेरे गले से लिपट गई (खुद अपनी मर्जी से पहली बार), अपनी

1. स्वाभाविकता भी और निष्कपटता भी!

छोटी-छोटी बाँहों में मुझे जकड़ लिया और मुझे बार-बार चूमने लगी। उसने कसमें खा-खा कर मुझसे कहा कि वह हमेशा मेरा कहना मानेगी, मेरी अच्छी और वफादार बीवी बनेगी, मुझे सुखी रखेगी, अपना सारा जीवन, उसका एक-एक पल मुझे अर्पित कर देगी, हर चीज त्याग देगी, और इसके बदले में वह सिर्फ इतना चाहती है कि उसे मेरी तरफ से सम्मान मिले। बोली, 'मुझे कुछ नहीं चाहिए, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं चाहिए, किसी तरह का कोई भेंट-उपहार नहीं चाहिए।' यह तो तुम्हें मानना ही पड़ेगा कि अकेले में सोलह साल की ऐसी फरिश्तों जैसी लड़की के मुँह से, जिसके गालों पर कुँआरेपन की मासूमियत की लाली हो और जिसकी आँखों में अथाह खुशी के आँसू हों, ऐसी दिल से निकली हुई बात सुन कर जी तो ललचा ही उठता है। क्या खयाल है तुम्हारा, है न यही बात? इसे कहते हैं कि कोई बात हुई, कि नहीं क्यों अच्छा... सुनो तो... खैर, मैं तुम्हें अपनी मँगेतर के पास ले चलूँगा... लेकिन अभी नहीं!'

'मतलब यह कि आप दोनों की उम्रों में और मानसिक विकास में जो भारी अंतर है, उसी की वजह से आपके मन में वासना जागती है! क्या आप सचमुच इस लड़की से शादी करनेवाले हैं?'

'क्यों नहीं? मैं यकीनन उससे शादी करूँगा। हर आदमी अपने काम की बात सोचता है, और जो अपने आपको सबसे अच्छी तरह धोखा देना जानता है वही सबसे ज्यादा सुखी भी रहता है। हा-हा! पर तुम अचानक ऐसे सदाचारी क्यों बन गए मुझे बख्शो दोस्त, मैं एक अभागा पापी हूँ। हा-हा-हा!'

'लेकिन कतेरीना इवानोव्ना के बच्चों का सारा बंदोबस्त भी तो आपने किया। पर... मैं समझता हूँ कि आपने किसी खास वजह से ऐसा किया होगा... अब सब कुछ मेरी समझ में आ रहा है।'

'मुझे बच्चे आम तौर पर बहुत अच्छे लगते हैं, बहुत ही अच्छे लगते हैं,' स्विद्रिगाइलोव ठहाका मार कर हँसा। 'इस सिलसिले में मैं एक बहुत ही मजेदार किस्सा सुनाता हूँ जो अभी तक खत्म नहीं हुआ। यहाँ आने के बाद पहले ही दिन मैंने कई बदनाम अड्डों का चक्कर लगाया, और... मेरा मतलब यह है कि सात साल बाद मैं एक धारे में बह निकला। तुमने देखा होगा कि मुझे पुराने दोस्तों और मिलनेवालों से फिर से नाता जोड़ने की कोई खास जल्दी नहीं है। सच मैं तो उम्मीद यही करता हूँ कि जितने दिन भी हो सकेगा, उनके बिना ही काम चला लूँगा। बात यह है कि मैं जब अपनी प्यारी बीवी के साथ देहात में रहता था, तो मन बहलाने की उन छोटी-छोटी रहस्यमय जगहों की याद मुझे सताती रहती थी, जहाँ किसी जानकार आदमी को दिलचस्पी की कितनी ही चीजें मिल सकती हैं। लानत है! आम लोग नशे में धुत हो जाते हैं। पढ़े-लिखे नौजवान, जिनके पास कुछ उपयोगी करने को नहीं होता, कभी पूरे न हो सकनेवाले ऐसे सपनों और कोरी कल्पनाओं में खो कर घुलते रहते हैं। जरूरत से ज्यादा सिद्धांत बघारने की वजह से उनकी बढ़त भी मारी जाती है। न जाने कहाँ से ये यहूदी भी एक मुसीबत की तरह आ धमके हैं और पैसा बटोर रहे हैं, जबकि बाकी लोग बदकारी और बदचलनी की जिंदगी बिता रहे हैं। तो हुआ यह कि शहर में पहुँचते ही मेरी नाक में जानी-पहचानी खुशबुएँ समाने लगीं। मैं एक जगह गया जिसे नाच-क्लब कहा जाता था। बदकारी का भयानक अड्डा था वह भी। (मुझे तो यही अच्छा लगता है कि ये अड्डे गंदे हों।) खैर, लोग वहाँ कैन-कैन नाच इस तरह से नाच रहे थे जिस तरह वह कहीं और नहीं नाचा जाता। हमारे जमाने में तो यह नाच कहीं देखने को भी नहीं मिलती थी। हाँ साहब, इसी को तरक्की कहा जाता है। अचानक मैंने तेरह साल की एक लड़की को देखा। बहुत ही खूबसूरत कपड़ों में एक उस्ताद के साथ नाच रही थी, और एक दूसरा उस्ताद सामने था। लड़की की माँ दीवार के पास एक कुर्सी पर बैठी थी। अब तुम ही सोचो कि वह किस तरह का कैन-कैन नाच रहा होगा। लड़की बौखला उठी, शर्म से लाल हो गई, और आखिरकार इतनी बुरी तरह शर्मिंदा हुई, इतनी दुखी हुई कि फूट-फूट कर रोने लगी। लेकिन उस्ताद ने उसे कस कर पकड़ा, उसे ले कर तेजी से चक्कर काटने लगा और उसके सामने अपनी कला दिखाने लगा। हर आदमी जोरों से चिल्ला-चिल्ला कर हँसने लगा और - इस तरह के मौकों पर मुझे कैन-कैन नाच देखनेवाली अपनी यह जनता भी बहुत अच्छी लगती है, तो सब लोग हँसते रहे और चिल्लाते रहे, इसकी सही सजा है। यहाँ बच्चों को लाना ही नहीं चाहिए! खैर, मुझे उनकी रत्तीभर परवाह नहीं थी। अलावा इसके, मुझे क्या मतलब कि लोग जिस तरह से अपना मन बहला रहे थे वह समझदारी से भरा तरीका था या नहीं। मैंने फौरन उसकी माँ के पास एक खाली कुर्सी देखी और झपट कर उस पर आसन जमा लिया। मैंने बताना शुरू किया कि मैं अभी शहर में नया-नया आया था, कि यहाँ के लोग बहुत ही उजड्ड हैं जो न सच्चे गुण को पहचानते हैं और न ही उसका उचित सम्मान करना जानते हैं। यह भी जता दिया मैंने कि मेरे पास ढेरों पैसा है और उन्हें अपनी गाड़ी में घर तक पहुँचाने का वादा किया। मैं उन्हें उनके घर ले गया और उनसे जान-पहचान पैदा की। वे लोग हाल ही में आए थे, और किसी किराएदार से एक छोटा-सा कमरा ले कर उसमें रहते थे। मुझे बताया गया कि माँ और बेटी दोनों मुझसे जान-पहचान पैदा करना अपने लिए बहुत बड़ी इज्जत की बात समझ रही थीं। मैंने यह पता लगा लिया कि उसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी और वे किसी मंत्रालय से कुछ पैसों की मदद लेने लिए शहर आई थीं। मैंने इस काम के लिए अपनी सेवा और पैसों की मदद देने की पेशकश की। पता चला कि वे उस जगह गलती से, यह समझ कर चली गई थी कि वहाँ सचमुच नाचना सिखाया जाता है। मैंने फौरन उस लड़की को फ्रांसीसी भाषा और नाच सिखवाने के लिए अपनी सेवा पेश की। उन्होंने फौरन मेरा सुझाव मान लिया, इसे अपने लिए भारी इज्जत की बात समझा, और मैं अब भी उनसे मिलता रहता हूँ... चाहो तो मैं तुम्हें भी वहाँ ले चलूँ... लेकिन अभी नहीं।'

'आपकी बेहूदा और शर्मनाक कहानियाँ मैं काफी सुन चुका! नीच, बदकार, लंपट!'

'शिलर को तो देखो जरा! एकदम शिलर जैसा! O·u va-t-elle la vertu se nicher?1 जानते हो, मैं सोच रहा हूँ कि मैं तुम्हें ये किस्से सुनाता रहूँ ताकि इनके खिलाफ तुम्हारी झल्लाहट भरी बातें मुझे सुनने को मिलती रहें। मजा आता है!'

'क्यों नहीं! क्या मुझे नहीं पता कि इस वक्त मैं कैसा जोकर लग रहा हूँ,' रस्कोलनिकोव गुस्से से बुदबुदाया।

स्विद्रिगाइलोव की हँसी गूँज उठी। आखिरकार उसने फिलिप को बुलाया, बिल चुकाया और उठने लगा।

'कमाल है, मैं सचमुच नशे में हूँ,' वह बोला। 'खैर, बातचीत काफी अच्छी रही हमारी, मजा आया!'

'मैं समझता हूँ, आपको मजा आना ही चाहिए था,' रस्कोलनिकोव ने भी उठते हुए ऊँची आवाज में कहा। 'आप जैसे घिसे हुए अय्याश को इस तरह के कारनामे बयान करने में मजा तो आएगा ही, जबकि वह वैसी ही परिस्थितियों में और उतने ही बेहूदा किसी और कारनामे की बात सोच रहा हो, तो मुझ जैसे शख्स से बयान करने में... मजा क्यों नहीं आएगा!'

'आह, अगर ऐसी बात है,' स्विद्रिगाइलोव ने रस्कोलनिकोव को गौर से देखते हुए कुछ आश्चर्य से कहा, 'अगर ऐसी बात है तो तुम भी पूरी तरह इनसानों से बेजार हो। कुछ नहीं तो तुम्हारे अंदर ऐसा बनने की संभावनाएँ तो जरूर मौजूद हैं। तुम बहुत कुछ समझ सकते हो, बहुत कुछ... और बहुत कुछ कर भी सकते हो... कर सकते हो न लेकिन, बस बहुत हुआ। मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारे साथ और ज्यादा देर बातचीत नहीं कर सका। लेकिन अभी तो तुम हो ही, बस थोड़ा इंतजार करो...'

स्विद्रिगाइलोव लंबे-लंबे कदम रखता हुआ रेस्तराँ से बाहर निकल गया। रस्कोलनिकोव भी उसके पीछे चल पड़ा। लेकिन स्विद्रिगाइलोव ज्यादा नशे में नहीं था। शराब बस थोड़ी देर के लिए उसे चढ़ी थी और उसका असर तेजी से हर मिनट कम हो रहा था। वह किसी बात के बारे में काफी परेशान था, किसी बहुत जरूरी बात के बारे में... उसकी त्योरियों पर अभी तक बल पड़े हुए थे। साफ था कि उसे किसी ऐसी चीज की फिक्र थी जो उसे परेशान कर रही थी। पिछले कुछ मिनटों के दौरान रस्कोलनिकोव के प्रति भी उसका रवैया अचानक बदल चुका था, हर पल उसके साथ और भी ज्यादा रुखाई से पेश आ रहा था और उसका और भी ज्यादा मजाक उड़ा रहा था। रस्कोलनिकोव का ध्यान इन सब बातों की ओर गया और वह भी कुछ डरा-डरा-सा हो गया। उसके

1. सदाचार कहीं भी डेरा जमा लेता है। (फ्रांसीसी)

दिल में स्विद्रिगाइलोव के बारे में काफी शक पैदा हो रहा था और इसलिए ही उसने उसका पीछा करने का फैसला किया।

वे दोनों सड़क की पटरी पर पहुँचे।

'तुम दाहिनी ओर जाओ और मैं बाईं ओर... या चाहो तो हम आपस में दिशाएँ बदल लें... लेकिन इस वक्त तो हमें अलग होना पड़ेगा, दोस्त! फिर मिलेंगे!' इतना कह कर वह दाहिनी तरफ, भूसामंडी की ओर चल दिया।