अपराध और दंड / अध्याय 6 / भाग 5 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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रस्कोलनिकोव उसके पीछे लग गया।

'यह क्या?' स्विद्रिगाइलोव ने पीछे घूम कर देखा और चीख कर बोला। 'मैंने कहा था न...'

'इसका मतलब सिर्फ यह है कि आपको अब मैं आँखों से ओझल नहीं होने दूँगा।'

'क्या...या?'

दोनों रुक कर एक-दूसरे को एक मिनट तक देखते रहे, गोया एक-दूसरे की थाह ले रहे हों।

'आपने आधे नशे की हालत में जो किस्से सुनाए हैं,' रस्कोलनिकोव ने तीखेपन से जवाब दिया, 'उनसे मैं पक्के तौर पर इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि मेरी बहन के सिलसिले में आपने अभी तक अपने बुरे इरादे नहीं छोड़े हैं, बल्कि उन्हें पूरा करने में और भी मुस्तैदी से जुटे हुए हैं। मैं जानता हूँ, आज सबेरे मेरी बहन को एक खत मिला है। इस पूरे दौरान आप चैन से नहीं बैठे... मैं समझता हूँ, बहुत मुमकिन है कि आपने इस बीच अपने लिए एक बीवी भी जुटा ली हो, लेकिन इसका कोई मतलब तो नहीं है। मैं खुद ही पक्का भरोसा कर लेना चाहता हूँ...'

रस्कोलनिकोव खुद नहीं जानता था कि वह क्या चाहता है या किस बात का भरोसा कर लेना चाहता है।

'तो यह बात है! तुम यह तो नहीं चाहते हो कि मैं पुलिस को बुलवाऊँ?'

'बुलवा लीजिए पुलिस को!'

दोनों फिर एक मिनट तक आमने-सामने खड़े रहे। आखिरकार स्विद्रिगाइलोव की मुद्रा बदली। यह महसूस करके कि रस्कोलनिकोव उसकी धमकी से कतई नहीं डरा, उसने अचानक हँसी-मजाक और दोस्ती का रवैया अपना लिया।

'अजीब आदमी हो तुम भी! मैं तो जान-बूझ कर तुम्हारे मामले की चर्चा करने से कतरा रहा था, हालाँकि कुदरती बात है कि मैं उसके बारे में जानने के लिए बेताब हूँ। कमाल की बात है। उसे मैंने किसी दूसरे वक्त के लिए उठा रखा था, लेकिन तुम तो बड़े-से-बड़े संन्यासी को भी उकसा कर उसका मौनव्रत भंग करा सकते हो... तो अच्छी बात है, चलो। लेकिन मैं इतना बता दूँ कि मैं सिर्फ एक मिनट के लिए कुछ पैसे लेने घर जा रहा हूँ। उसके बाद मैं अपने कमरे को ताला मार दूँगा, एक गाड़ी लूँगा और पूरी शाम द्वीपों पर बिताऊँगा। बोलो, अब भी मेरे साथ आना चाहते हो क्या?'

'मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर तक चलूँगा लेकिन अंदर नहीं आऊँगा। मैं सोफ्या सेम्योनोव्ना से मिल कर जनाजे में न आ पाने की माफी माँगना चाहता हूँ।'

'जैसी तुम्हारी मर्जी, लेकिन सोफ्या सेम्योनोव्ना घर पर नहीं हैं। वे बच्चों को ले कर मेरी पुरानी जान-पहचान की एक वृद्ध महिला के पास गई हुई हैं। ऊँचे लोगों में इन महिला का बड़ा नाम है और वे कुछ अनाथालय भी चलाती हैं। जब मैंने कतेरीना इवानोव्ना के तीन बच्चों की देखभाल के लिए इन महिला को पैसे दिए और साथ ही उनके अनाथालयों के लिए भी चंदा दिया तो वह मुझ पर लट्टू हो गईं। फिर मैंने उन्हें सोफ्या सेम्योनोव्ना का पूरा किस्सा ब्यौरे की पूरी भयानकता के साथ सुनाया। इसका जो असर उन पर हुआ, उसे बयान नहीं किया जा सकता। इसीलिए सोफ्या सेम्योनोव्ना को आज उस होटल में बुलाया गया है जहाँ यह महिला गर्मी बिता कर वापस आने के बाद कुछ दिन के लिए ठहरी हुई हैं।'

'कोई बात नहीं। मैं फिर भी चलूँगा!'

'जैसी तुम्हारी मर्जी लेकिन मुझे साथ ले चलने की जिद न करना। बाकी मुझे कोई परवाह नहीं। लो, हम उसके पास तक पहुँच ही गए। खैर, यह बताओ, मेरा यह सोचना ठीक है क्या कि मुझ पर इतना शक इसलिए कर रहे हो कि मैंने समझदारी से काम ले कर अब तक तुमसे एक भी सवाल नहीं पूछा... मेरी बात समझे न तुमने सोचा होगा कि आम तौर पर ऐसा होना नहीं चाहिए था, क्यों मेरा दावा है कि तुमने यही सोचा होगा। खैर, इससे बस यही साबित होता है कि बहुत ज्यादा समझदारी से काम लेना भी गलत है।'

'आपको छिप कर लोगों की बातें सुनने में संकोच तो नहीं होता न?'

'आह, तो तुम यह कहना चाहते थे... क्यों?' स्विद्रिगाइलोव हँसा। 'खैर, मैं समझता हूँ इतना सब कुछ होने के बाद मुझे ताज्जुब तो तब होता अगर तुमने यह बात न कही होती। हा-हा! हो सकता है, जो कुछ तुम करते रहे हो, जिसके बारे में तुम सोफ्या सेम्योनोव्ना को बता भी रहे थे, उसकी कुछ भनक मेरे कानों में पड़ी हो। लेकिन उन सब बातों का भला मतलब क्या निकलता है? शायद मैं वक्त से बहुत पीछे हूँ और कुछ भी नहीं समझ पाता। भगवान के लिए, मुझे कुछ समझाओ मेरे दोस्त। मेरे दिमाग का अँधेरा भी जरा दूर हो। मुझे बताओ कि तुम्हारे सबसे हालिया सिद्धांत क्या हैं।'

'कुछ भी नहीं सुना है आपने! झूठ बोल रहे हैं आप!'

'लेकिन उसकी बात तो मैं कर भी नहीं रहा था, हालाँकि थोड़ा-बहुत सुना जरूर था। नहीं, मेरी मुराद इस वक्त तुम्हारे लगातार आहें भरने और कराहने से है। तुम्हारे अंदर जो शिलर छिपा हुआ है, वह रह-रह कर बेचैन हो उठता है और तुम मुझे अब यह बता रहे हो कि छिप कर दूसरों की बातें न सुना करूँ। अगर ऐसी बात है तो तुम जा कर पुलिस को क्यों नहीं बता देते कि तुम्हारे सिद्धांत में जरा-सी कमी रह गई। अगर तुम्हारा विश्वास यह है कि छिप कर दूसरों की बातें सुनना बुरा है, लेकिन जो कुछ हाथ लगे उससे बूढ़ी औरतों की खोपड़ी खोल देने में कोई हर्ज नहीं है तो तुम्हारे लिए फौरन अमेरिका चले जाना ही बेहतर है। भाग जाओ मेरे नौजवान दोस्त, भाग जाओ! शायद अभी भी इसका वक्त बाकी हो। मैं सच्चे दिल से कह रहा हूँ। तुम्हारे पास पैसा है कि नहीं... किराया मैं दूँगा।'

'मैं इस बारे में कतई नहीं सोच रहा हूँ,' रस्कोलनिकोव ने झल्ला कर बीच में टोकते हुए कहा।

'मैं समझता हूँ (अगर तुम्हारा जी नहीं चाह रहा तो बहुत ज्यादा बातें करने की कोशिश न करो) मैं समझ रहा हूँ कि किस तरह के सवाल तुम्हें परेशान कर रहे हैं... शायद नैतिक सवाल समाज में मनुष्य की स्थिति के सवाल बेहतर है तुम उनसे अपना पीछा छुड़ा लो। तुम्हें उनकी जरूरत भी अब क्या रह गई? हा-हा! इसलिए कि तुम अभी तक एक इनसान हो और एक नागरिक हो लेकिन अगर ऐसी बात है तो तुम्हें यह सिलसिला शुरू ही नहीं करना चाहिए था। तुम्हें ऐसे काम का बीड़ा नहीं उठाना चाहिए था जिसे तुम पूरा नहीं कर सकते थे। तुम अपना भेजा गोली मार कर क्यों नहीं उड़ा देते या ऐसा करने को जी नहीं चाहता?'

'मैं समझता हूँ, आप मुझे जान-बूझ कर उकसाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि मैं आपका पीछा छोड़ दूँ...'

'अजीब आदमी हो! लो, हम लोग पहुँच भी गए। आओ, ऊपर चलें। देखा यह रहा सोफ्या सेम्योनोव्ना के कमरे का दरवाजा। कोई भी अंदर नहीं है। तुम्हें मेरी बात का यकीन नहीं आता? कापरनाउमोव से पूछ लो : वे अपनी चाभी आम तौर पर उसी के पास छोड़ आती हैं। लो, मादाम कापरनाउमोव खुद ही आ गईं। तो (वे कुछ ऊँचा सुनती हैं।) क्या बाहर गई हैं? कहाँ? हो गई तसल्ली? वे जा चुकी हैं और रात तक वापस नहीं आएँगी। चलो मेरे कमरे में चलो। तुम मुझसे मिलने भी तो आनेवाले थे तो लो, आ ही गए। मादाम रेसलिख घर पर नहीं हैं। यह औरत हमेशा किसी न किसी चक्कर में रहती है लेकिन, सच कहता हूँ, है बहुत अच्छी औरत... अगर तुम कुछ और समझदारी से काम लेते तो वह तुम्हारे भी काम आ सकती थी। यह देखो, मैं दराज में से पाँच फीसदी सूदवाली एक हुंडी निकाल रहा हूँ। (देखते हो न अभी मेरे पास और भी हैं?) आज इसे मैं भुनाऊँगा। देख लिया न... माफ करना, मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है। देखो, मैंने दराज में ताला लगा दिया, फ्लैट में भी लगा दिया और यह लो, हम लोग फिर सीढ़ियों पर आ गए। चाहो तो हम लोग एक गाड़ी कर लें : मैं तो द्वीपों की तरफ जा रहा हूँ। तो चलोगे सैर करने? मैं गाड़ी को येलागिन द्वीप तक ले जाना चाहता हूँ। क्या मेरे साथ नहीं आना चाहते? हिम्मत न हारो, चलो सैर करने चलते हैं। मैं समझता हूँ बारिश होगी, लेकिन फिक्र मत करो, छतरी चढ़ा लेंगे...'

स्विद्रिगाइलोव गाड़ी में बैठ चुका था। रस्कोलनिकोव इस नतीजे पर पहुँचा कि कम-से-कम इस वक्त उसके सारे शक बे-बुनियाद हैं। वह कुछ भी कहे बिना पीछे मुड़ा और वापस भूसामंडी की ओर चल पड़ा। अगर उसने एक बार भी पीछे चेहरा घुमाया होता तो देखता कि स्विद्रिगाइलोव ने मुश्किल से सौ गज जा कर गाड़ीवाले को पैसे दे दिए थे और अब सड़क की पटरी पर चला जा रहा था। लेकिन वह नुक्कड़ पर मुड़ चुका था और अब कुछ भी देख नहीं सकता था। एक गहरी नफरत उसे स्विद्रिगाइलोव से दूर, और दूर खींचे लिए जा रही थी। 'क्या एक पल के लिए भी मुझे उस घिनौने बदमाश, अय्याश और लुच्चे से सचमुच कुछ पाने की उम्मीद थी?' वह अनायास ही चीख उठा। यह सच है कि रस्कोलनिकोव ने अपना यह मत बहुत जल्दी में, बिना कुछ सोचे-समझे जाहिर कर दिया था। स्विद्रिगाइलोव में कोई बात तो ऐसी थी जो उसके व्यक्तित्व में रहस्य का नहीं तो कम-से-कम मौलिकता का एक पुट पैदा कर ही रही थी। रस्कोलनिकोव का यह विश्वास भी कायम रहा कि स्विद्रिगाइलोव उसकी बहन का पीछा छोड़नेवाला नहीं था। लेकिन अब सब कुछ उसकी बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा था और वह महसूस कर रहा था कि इस बारे में सोचते रहना उसके लिए पीड़ादायक बनता जा रहा था।

जैसा कि हमेशा होता था, अकेले रह जाने पर वह कोई बीस गज ही चलने के बाद गहरे विचारों में डूब गया। अपने आपको पुल पर पा कर वह रेलिंग के पास जा कर खड़ा हो गया और पानी को देखने लगा। इसी बीच दुनेच्का भी चलती हुई पुल पर आ चुकी थी और उसके पास ही खड़ी थी।

पुल शुरू होते ही वह उसके पास से गुजरा था लेकिन उसे देख नहीं सका था। दुनेच्का ने उसे कभी सड़क पर इस हालत में नहीं देखा था। इसलिए वह बुरी तरह सहम गई। वह चौंकी पर उसकी समझ में यह नहीं आया कि उसे पुकारे या न पुकारे। अचानक दुनेच्का ने स्विद्रिगाइलोव को देखा, जो पुल के दूसरी ओर से जल्दी-जल्दी आ रहा था।

लग रहा था वह बड़े रहस्यमय ढंग से और होशियार रह कर आगे बढ़ रहा था। वह पुल पर नहीं आया बल्कि एक तरफ हट कर पटरी पर ही रुक गया। वह पूरी कोशिश कर रहा था कि रस्कोलनिकोव उसे न देख सके। स्विद्रिगाइलोव ने दूनिया को कुछ देर पहले ही देख लिया था और उसकी तरफ इशारे कर रहा था। दूनिया को लगा, वह उसे इशारा कर रहा है कि अपने भाई को वहीं खड़ा रहने दे और उससे न बोले। इसके साथ ही वह दूनिया को अपने पास भी बुला रहा था।

दूनिया ने ऐसा ही किया। दबे पाँव अपने भाई के पास से हट कर, उसकी नजरें बचाती हुई वह स्विद्रिगाइलोव के पास जा पहुँची।

'जल्द आओ,' स्विद्रिगाइलोव ने दबी आवाज में कहा। 'मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे भाई को हमारी मुलाकात का पता चले। मैं तुम्हें इतना बता दूँ कि अभी मैं उसके साथ यहाँ से थोड़ी ही दूर एक रेस्तराँ में बैठा था, जहाँ वह खुद मुझसे मिलने आया था। बड़ी मुश्किल से मैंने उससे पीछा छुड़ाया। लगता है, मैंने तुम्हें जो खत लिखा था उसकी उसे कुछ सुनगुन मिल गई है और उसके मन में किसी बात का शक पैदा हो चुका है। उसे तुमने तो नहीं बताया इस बारे में? लेकिन तुमने अगर नहीं बताया तो फिर किसने बताया होगा?'

'चलो, हम लोग मोड़ तो घूम चुके,' दूनिया ने बात काटते हुए कहा। 'भैया अब हम लोगों को नहीं देख सकते। मैं आपके साथ अब और आगे नहीं जाने की, जो कुछ बताना है, यहीं बताइए। ऐसी कोई वजह नहीं कि आप मुझे यहाँ सड़क पर न बता सकें।'

'पहली वजह तो यह है कि मैं वह बात यहाँ सड़क पर नहीं बता सकता। दूसरे, मुझे तुमको सोफ्या सेम्योनोव्ना की बात सुनानी है और तीसरे, तुमको कुछ दस्तावेज दिखाने हैं... अच्छी बात है, तुम मेरे साथ अगर नहीं आना चाहतीं तो मैं कोई सफाई नहीं दूँगा और फौरन यहाँ से चला जाऊँगा। पर यह न भूलना कि तुम्हारे जान से प्यारे भाई का कोई भेद पूरी तरह मेरे हाथ में है।'

दूनिया चौंकी और पैनी नजरों से स्विद्रिगाइलोव को देखने लगी; उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि करे तो क्या करे।

'डरती किस बात से हो तुम?' स्विद्रिगाइलोव ने शांत भाव से कहा। 'यह शहर है, कोई देहात नहीं, और वहाँ देहात में भी मैंने तुम्हें जितना नुकसान पहुँचाया था, तुमने मुझे उससे ज्यादा ही नुकसान पहुँचाया, जबकि यहाँ...'

'क्या आपने सोफ्या सेम्योनोव्ना को बता दिया है?'

'नहीं, मैंने उनसे एक बात भी नहीं कही। सच तो यह है कि मुझे यह भी भरोसा नहीं है कि वे इस वक्त घर पर होंगी। वैसे मुझे उम्मीद है कि घर पर ही होंगी। वे आज अपनी सौतेली माँ के जनाजे में गई थीं, और ऐसे दिन वे शायद ही किसी के यहाँ जाएँ। फिलहाल मैं किसी को उसके बारे में नहीं बताना चाहता, और मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हें बता दिया। इस तरह के मामले में जरा-सी भी लापरवाही हो तो पुलिस को यकीनन पता चल जाएगा। मैं यहीं रहता हूँ, इस घर में। लो, हम पहुँच ही गए। वह रहा हमारे घर का दरबान। मुझे अच्छी तरह से जानता है। देखा... झुक कर मुझे सलाम कर रहा है। वह देख रहा है कि मैं एक शरीफ औरत के साथ हूँ, और मुझे यकीन है कि उसने तुम्हारी सूरत भी देख ली है। अगर तुम मुझसे डरती हो और मुझ पर किसी तरह का शक है तो यह बात आगे चल कर तुम्हारे काम आएगी। माफ करना, मैं इस तरह साफ-साफ खुल कर बातें कर रहा हूँ। मैं खुद एक किराएदार से कमरा ले कर रहता हूँ। सोफ्या सेम्योनोव्ना बगलवाले कमरे में रहती हैं। वे भी किराएदार हैं। यह पूरी मंजिल ही किराएदारों को उठाई गई है। तुम बच्चों की तरह क्यों डर रही हो क्या मैं सचमुच डरावना लगता हूँ?'

स्विद्रिगाइलोव का चेहरा तौहीन भरी मुस्कराहट से ऐंठ गया : उसका जी मुस्कराने को नहीं चाह रहा था। उसका दिल जोर से धड़क रहा था और वह साँस भी मुश्किल से ले रहा था। अपनी बढ़ती हुई उत्तेजना को छिपाने के लिए वह जान-बूझ कर जोर-जोर से बोल रहा था। लेकिन दूनिया का ध्यान उसकी इस खास किस्म की उत्तेजना की ओर नहीं गया। वह उसकी यह बात सुन कर बेहद बौखला उठी थी कि वह उससे बच्चों की तरह डर रही थी और वह उसे बहुत डरावना लगता था।

'यूँ तो मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि... कि आप कोई शरीफ इनसान नहीं हैं लेकिन आपसे मुझे जरा भी डर नहीं लग रहा। आप जरा आगे-आगे चलिए,' उसने कहा। देखने में वह एकदम शांत लग रही थी लेकिन उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था।

स्विद्रिगाइलोव सोन्या के कमरे के सामने पहुँच कर रुक गया।

'मैं देख लूँ कि वे घर पर हैं कि नहीं। नहीं, वे नहीं हैं। बहुत बुरा हुआ। लेकिन मैं जानता हूँ कि वे जल्द ही लौट आएँगी। अगर वे बाहर गई हैं तो अनाथ बच्चों के सिलसिले में ही एक महिला से मिलने गई होंगी। उन बच्चों की माँ मर चुकी है। मैंने अपनी ओर से उनकी मदद करने की पूरी कोशिश की और सारा जरूरी बंदोबस्त कर चुका हूँ। अगर सोफ्या सेम्योनोव्ना दस मिनट में वापस नहीं आतीं तो, अगर तुम कहो तो, मैं आज ही उन्हें तुम्हारे पास भेज दूँगा। तो, यहाँ रहता हूँ मैं। ये रहे मेरे दो कमरे। इस दरवाजे के पीछे मेरी मकान-मालकिन मादाम रेसलिख रहती हैं। अब इधर देखो : मैं तुम्हें अपना ज्यादा महत्वपूर्ण दस्तावेज दिखा रहा हूँ। मेरे सोने के कमरे के इस दरवाजे से हो कर दो बिलकुल खाली कमरों में रास्ता जाता है, जो अभी किराए पर नहीं उठे। ये रहे वे कमरे... मैं चाहता हूँ कि तुम इन्हें खास तौर पर, गौर से देखो...'

स्विद्रिगाइलोव दो काफी बड़े कमरों में रहता था जिनमें जरूरत का हर फर्नीचर मौजूद था। दूनिया संदेह भरी नजरों से चारों ओर देखने लगी लेकिन उसे न तो फर्नीचर में ही कोई खास बात दिखाई पड़ी, न उन कमरों की स्थिति में। वैसे कोई बात जरूर ऐसी थी जिसकी ओर शायद उसका ध्यान न गया हो - मिसाल के लिए, यह बात कि स्विद्रिगाइलोव के कमरों के दोनों तरफ के फ्लैट लगभग खाली थे। उसके कमरों में जाने का रास्ता सीधे बाहर के गलियारे में से न हो कर मकान-मालकिन के उन दो कमरों में से था, जो लगभग खाली थे। अपने सोने के कमरे के एक दरवाजे का ताला खोल कर स्विद्रिगाइलोव ने दूनिया को एक और खाली फ्लैट दिखाया जो अभी किराए पर नहीं उठा था। दूनिया ठिठक कर चौखट पर ही खड़ी हो गई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि उससे क्या देखने को कहा जा रहा है। लेकिन स्विद्रिगाइलोव ने उसे जल्दी से समझाना शुरू किया :

'जरा इस दूसरेवाले बड़े और खाली कमरे को देखो। वह दरवाजा देखती हो। उसमें ताला पड़ा है। उसके पास एक कुर्सी रखी है... इन दोनों कमरों में सिर्फ यही एक कुर्सी है। यह कुर्सी मैं अपने कमरे से ले कर आया था ताकि आराम से बैठ कर सुन सकूँ। इस दरवाजे के ठीक पीछे सोफ्या सेम्योनोव्ना की मेज है। उसी के पास बैठ कर वे तुम्हारे भाई से बातें कर रही थीं और मैंने इस कुर्सी पर बैठ कर लगातार दो रातों को, रोज लगभग दो-दो घंटे, उनकी बातें सुनीं। क्या खयाल है तुम्हारा मैं कुछ पता लगा सका हूँगा कि नहीं?'

'आप छिप कर, चोरी से बातें सुन रहे थे?'

'हाँ, मैं चोरी से बातें सुन रहा था। अब आओ, मेरे कमरे में वापस चलें। यहाँ तो बैठने को भी कुछ नहीं है।'

वह दूनिया को ले कर अपने बैठने के कमरे में वापस गया और उसे बैठने को एक कुर्सी दी। खुद वह मेज के दूसरे सिरे पर, उससे कोई सात फुट की दूरी पर, बैठा लेकिन शायद उसकी आँखों में वही ज्वाला धधक उठी थी जिससे दूनिया किसी जमाने में बेहद डरती रहती थी। वह चौंकी और एक बार फिर संदेह भरी नजरों से कमरे में चारों ओर देखने लगी। वह यह सब कुछ अनायास ही कर रही थी और यह नहीं चाहती थी कि उसका संदेह किसी पर प्रकट हो। लेकिन स्विद्रिगाइलोव के कमरों का बाकी कमरों से इस तरह अलग-थलग होना उसे खटक गया। वह उससे पूछनेवाली ही थी कि कम-से-कम उसकी मकान-मालकिन तो घर पर हैं, लेकिन स्वाभिमान के मारे नहीं पूछा। अलावा इसके, वह अपने लिए जो खतरा महसूस कर रही थी, उससे भी बड़ी कोई तकलीफ उसके दिल को खाए जा रही थी। वह बेहद चिंतित थी।

'यह रहा आपका खत,' उसने मेज पर खत रखते हुए कहना शुरू किया। 'आपने जो कुछ लिखा है, वह क्या मुमकिन है? आपने किसी ऐसे अपराध की तरफ इशारा किया है जिसके बारे में यह समझा जा रहा है कि वह मेरे भाई ने किया है। आपका इशारा पूरी तरह साफ है, और आप उससे मुकर नहीं सकते। पर मैं आपको इतना बता दूँ कि आपके यह खत लिखने से पहले भी मैं यह बेसर-पैर का किस्सा सुन चुकी हूँ और मैं इसके एक शब्द पर भी विश्वास नहीं करती। यह पूरी तरह बेतुका और बेहूदा शक है। मुझे यह पूरा किस्सा पता है और यह भी पता है कि इसे कैसे और क्यों गढ़ा गया था। आपके पास कोई सबूत तो हो ही नहीं सकता। आपने इसे साबित करने का वादा किया था... तो, कीजिए साबित! लेकिन इतना मैं आपको पहले से बता दूँ कि मैं आपकी बात का यकीन नहीं करती...'

दूनिया ने ये सारी बातें जल्दी-जल्दी, हाँफते हुए कहीं और एक पल के लिए उसके चेहरे पर लाली दौड़ गई।

'अगर तुम्हें मेरा यकीन न होता तो कभी यहाँ अकेले आने का जोखिम मोल न लेतीं। तुम यहाँ आईं क्यों? अपनी जिज्ञासा मिटाने?'

'मुझे सताइए मत! बताइए मुझे!'

'मुझे इसमें कोई शक नहीं कि तुम बहादुर लड़की हो। मैंने तो यह सोच रखा था कि तुम मिस्टर रजुमीखिन को साथ ले कर आओगी। लेकिन वह तो न तुम्हारे साथ थे और न ही कहीं आस-पास थे। मैंने देखा था... सचमुच बड़ी हिम्मत की तुमने। इससे पता चलता है कि तुम्हें अपने भाई को बचाने की फिक्र है। तुम हर तरह से एक देवी जैसी हो... जहाँ तक तुम्हारे भाई का सवाल है, तो मैं तुम्हें क्या बताऊँ तुमने खुद अभी उनको देखा है। तुम्हारा क्या खयाल है उनके बारे में?'

'आप सिर्फ इसी बात को तो उनके खिलाफ अपने इलजामों की बुनियाद नहीं बना रहे?'

'नहीं, इसे नहीं, बल्कि खुद उनकी कही हुई बातों को। देखो, वे यहाँ सोफ्या सेम्योनोव्ना से लगातार दो रातों को मिलने आए। मैं तुम्हें दिखा चुका हूँ कि वे कहाँ बैठे थे। उन्होंने उसको सारी बात बताई। सब कुछ साफ-साफ मान लिया कि उन्होंने कत्ल किया है। उन्होंने ही उस सूदखोर बुढ़िया का कत्ल किया, जिसके यहाँ उन्होंने खुद भी कुछ चीजें गिरवी रखी थीं। उन्होंने उसकी बहन लिजावेता का भी कत्ल किया, जो पुराने कपड़े बेचती थी। वह इत्तफाक से अपनी बहन के कत्ल के वक्त वहाँ आ पहुँची थी। उन्होंने उन दोनों का कत्ल एक कुल्हाड़ी से किया था जिसे वह अपने साथ ले कर आए थे। उन्होंने यह कत्ल डाका डालने के इरादे से किया था और उनके यहाँ डाका डाला भी। उन्होंने वहाँ से कुछ रकम और कुछ दूसरी चीजें भी... उन्होंने खुद ये सारी बातें, एक-एक शब्द, सोफ्या सोम्योनोव्ना को बताईं, और यह भेद सिर्फ उसी को मालूम है। हाँ, कत्ल में उसने किसी तरह का हिस्सा नहीं लिया था; उसने न कुछ कहा न कुछ लिया, बल्कि जब उसने पहली बार इसके बारे में सुना तो वह भी उसी तरह सहम गई जिस तरह इस वक्त तुम सहम गई हो। फिक्र न करो, वह उनका भेद किसी को नहीं बताएगी।'

'नामुमकिन!' दूनिया बुदबुदाई। उसके होठ मुर्दों की तरह सफेद पड़ चुके थे और वह ठीक से साँस भी नहीं ले पा रही थी। 'एकदम नामुमकिन है! ऐसा करने के लिए कोई भी मकसद नहीं था, कोई भी वजह नहीं थी... यह झूठ है! झूठ है!'

'उन्होंने उसके यहाँ डाका डाला, यही मकसद था। उन्होंने वहाँ से कुछ रकम और कुछ चीजें लीं। यह सच है, जैसा कि उन्होंने खुद माना है, कि उन्होंने उस रकम और उन चीजों का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि उन्हें किसी जगह पत्थर के नीचे छिपा दिया, जहाँ वे अभी तक पड़ी हुई हैं। लेकिन अगर उन्होंने उनका कोई इस्तेमाल नहीं किया तो वजह सिर्फ यह है कि उनकी हिम्मत नहीं हुई।'

'लेकिन यह क्या मुमकिन है कि वे चोरी करें या डाका डालें? वे ऐसा करने की बात क्या सोच भी सकते हैं?' दूनिया जोर से चीखी और अपनी कुर्सी से उछल पड़ी। 'आप तो उन्हें जानते हैं... आपने उन्हें देखा है... क्या आप यह समझते हैं कि वे चोर हो सकते हैं?'

लग रहा था, वह गिड़गिड़ा कर स्विद्रिगाइलोव से प्रार्थना कर रही है। उसके दिल में जो डर था, उसे वह एकदम भूल चुकी थी।

'मुमकिन तो हजारों और लाखों बातें हैं, अव्दोत्या रोमानोव्ना। चोर चोरी करता है, लेकिन अच्छी तरह जानता है कि वह बदमाश है। पर मैंने एक बहुत ही इज्जतदार आदमी का किस्सा सुना है जिसने डाक लूटी थी, और ऐन मुमकिन है, उसने यही सोचा हो कि वह ठीक कर रहा है। जाहिर है कि अगर मुझे भी यह बात किसी और ने बताई होती तो तुम्हारी ही तरह मैं भी यकीन न करता। लेकिन खुद अपने कानों पर विश्वास तो मुझे करना ही पड़ा। उन्होंने सोफ्या सेम्योनोव्ना को सब कुछ समझाया था कि ऐसा क्यों किया। उसे भी शुरू में अपने कानों पर यकीन नहीं आया लेकिन आखिरकार यकीन करना ही पड़ा। देखो न, उन्होंने खुद उसे बताया था।'

'क्यों... उन्होंने यह काम आखिर क्यों किया था?'

'यह एक लंबी कहानी है। बात यह है... मैं कैसे समझाऊँ तुम्हें ...यह एक तरह का सिद्धांत है, एक तरह की ऐसी चीज जिसकी वजह से मुझे यकीन करना ही पड़ता है कि, मिसाल के लिए, एक अकेला अपराध करने में कोई हर्ज नहीं हैं, बशर्ते वह किसी अच्छे मकसद के लिए किया जाए। एक बुराई और सौ नेकी! जाहिर है, वह एक बहुत ही गुणी नौजवान है, उसके हौसले बहुत बुलंद हैं, और उसे यह सोच कर ताव आता है कि अगर उसके पास मिसाल के लिए सिर्फ तीन हजार रूबल होते तो उसकी जिंदगी का पूरा ताना-बाना उसका पूरा भविष्य, कुछ और ही होता, और वे तीन हजार रूबल उसके पास नहीं हैं। साथ ही यह भी जोड़ लीजिए कि ठीक से खाना न मिलने की वजह से, अपने बिल जैसे कमरे की वजह से, अपने फटे-पुराने कपड़ों की वजह से वह हरदम झुँझलाता रहता है, इस बात को साफ तौर पर महसूस करता है कि समाज में उसकी हैसियत की वजह से और साथ ही अपनी माँ और बहन की बेहद बदहाली की वजह से उसे कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यह सबसे बढ़ कर स्वाभिमान और अहंकार की बात है। हालाँकि कौन जाने उसमें बहुत-सी अच्छाइयाँ होते हुए भी शायद... देखो, मैं उन्हें दोष नहीं दे रहा। ऐसा न सोचना। इसके अलावा मुझे इससे कोई सरोकार भी नहीं तो उनका अपना अलग ही एक सिद्धांत था, जो कोई ऐसा बुरा भी नहीं था। इसके अनुसार सारे लोग समझ लो कि दो हिस्सों में बँटे होते हैं, आम लोग और खास किस्म के लोग। तो एक तरफ हैं वे लोग, जो अपनी ऊँची हैसियत की वजह से कानून से परे होते हैं, जो बाकी सभी इनसानों के लिए, आम लोगों के लिए इनसानियत के कचरे के लिए, खुद कानून बनाते हैं। यह एक अच्छा-खासा, छोटा-सा सिद्धांत है; une th¬eorie comme une autre.1 नेपोलियन से वे बुरी तरह प्रभावित थे, बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि वे जिस बात से प्रभावित थे वह यह थी कि ये मेधावी महापुरुष बुराई की मिसालों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे, बल्कि उनके बारे में सोचे बिना ही आगे निकल जाते थे। मैं समझता हूँ, उन्होंने भी यही सोचा होगा कि वे भी एक मेधावी महापुरुष हैं - मतलब यह कि कुछ अरसे के लिए उन्हें इस बात का पूरा-पूरा यकीन रहा होगा। उन्होंने बहुत मुसीबतें उठाई हैं और यह विचार अब भी उन्हें सता रहा है कि कोई उनमें एक सिद्धांत ईजाद करने की क्षमता तो थी, लेकिन संकोच किए बिना सीमा को पार कर जाने की क्षमता नहीं थी, और इसलिए वे मेधावी महापुरुष नहीं हैं। पर यह बात बुलंद हौसलेवाले नौजवानों के लिए, खास तौर पर हमारे इस जमाने के नौजवानों के लिए बहुत ही अपमानजनक होती है...'

'लेकिन उनके जमीर को क्या हुआ? उनके जमीर ने क्या उन्हें धिक्कारा भी नहीं होगा क्या आप इस बात से इनकार करते हैं कि उनको नैतिकता का एहसास है... क्या वे ऐसे आदमी हैं?'


1. सदाचार कहीं भी डेरा जमा लेता है। (फ्रांसीसी)


'लेकिन, अव्दोत्या रोमानोव्ना, इस वक्त हर चीज बेहद उलझी हुई है। मेरा मतलब यह है कि खास तौर पर बहुत ठीक तो वह कभी भी नहीं रही। रूसी आम तौर पर बहुत ही खुले और उदार स्वभाव के होते हैं, उतने ही खुले और विशाल हृदय जितना कि उनका देश है। जो चीज कल्पनातीत हो, जो अस्त-व्यस्त हो, उसकी ओर उनका बेहद झुकाव रहता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है कि आदमी का स्वभाव तो इतना खुला और उदार हो, लेकिन उसमें मेधावी प्रतिभा की कोई झलक न हो। तुम्हें याद है, हम लोगों ने रात के खाने के बाद बाग से लगे बरामदे में बैठ कर इसी सवाल के बारे में कितनी बातें की थीं। तुम्हीं ने मुझे मेरे खुले और उदार स्वभाव पर लताड़ा था। तुम वह बात उसी वक्त शायद कह रही होगी, जब वे यहाँ लेटे हुए अपने विचारों की उधेड़बुन करते रहते थे। देखो, बात यह है कि हम पढ़े-लिखे लोगों की कोई ऐसी खास परंपरा नहीं होती जिन्हें हम पवित्र मानते हों, जब तक कि उनमें से कोई शख्स अपने लिए किताबों में से निकाल कर एक परंपरा गढ़ न ले, या किसी पुराने वृत्तांत से उसकी नकल न करने लगे। लेकिन ज्यादातर ऐसे लोग विद्वान होते हैं, एक तरह से सबकी तरह बेवकूफ, यहाँ तक कि किसी भी व्यावहारिक, दुनियादार आदमी को उनके जैसा होना शोभा नहीं देता। लेकिन तुम मेरे विचार तो मोटे तौर पर जानती ही हो। मैं किसी को दोष नहीं देता, किसी को भी नहीं। मैं खुद ही निकम्मे रईसों में से एक हूँ। न काम करता हूँ और न काम करने का कोई इरादा है। लेकिन इस बात पर हम लोग पहले भी कई बार बहस कर चुके हैं। मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझता हूँ कि अपने विचारों के बारे में तुम्हारे मन में दिलचस्पी पैदा कर सका! ...तुम्हारा चेहरा बहुत पीला पड़ रहा है!'

'उनका यह सिद्धांत मुझे पता है। मैंने ऐसे लोगों के बारे में उनका वह लेख पढ़ा था जिन्हें अपनी मर्जी का कोई भी काम करने का अधिकार होता है... रजुमीखिन ने मुझे वह पत्रिका ला कर दी थी जिसमें वह लेख छपा था...'

'मिस्टर रजुमीखिन ने? तुम्हारे भाई का लेख किसी पत्रिका में... इस तरह का कोई लेख छपा है क्या? मुझे पता नहीं था। दिलचस्प तो बहुत होगा! लेकिन तुम कहाँ चलीं?'

'सोफ्या सेम्योनोव्ना से मिलना है,' दूनिया ने मरी-मरी आवाज में कहा। 'रास्ता किधर है उनके कमरे का शायद अब वे आ गई हों। मुझे उनसे मिलना ही पड़ेगा। वे खुद...'

दूनिया अपनी बात पूरी न कर सकी। साँस ने साथ नहीं दिया।

'सोफ्या सेम्योनोव्ना देर रात गए तक वापस नहीं आने की। मैं नहीं समझता कि आएँगी। चूँकि वे सीधे लौट कर नहीं आईं, इसलिए मैं समझता हूँ कि रात को देर से ही आएँगी...'

'खूब, तो आप झूठ बोल रहे थे! अब मेरी समझ में आया... आप झूठ बोल रहे थे... आप पूरे वक्त झूठ बोलते रहे हैं! मुझे आपकी बातों का यकीन नहीं रहा! नहीं, बिलकुल नहीं!' दूनिया पूरी तरह अपना मानसिक संतुलन खो कर उन्मादियों की तरह चीख उठी। वह लगभग मूर्च्छित हो कर उसी कुर्सी पर धम से गिर पड़ी, जिसे स्विद्रिगाइलोव ने जल्दी से उसकी ओर बढ़ा दिया था।

'क्या हुआ अव्दोत्या रोमानोव्ना भगवान के लिए, होश में आओ। लो, यह पानी पी लो। थोड़ा-सा...'

उसने जरा-सा पानी दूनिया के मुँह पर छिड़का। दूनिया चौंक कर उठी।

'ज्यादती हुई इसके साथ,' स्विद्रिगाइलोव भौहें सिकोड़ कर धीम से बुदबुदाया। 'फिक्र मत करो। यह न भूलो कि उनके बहुत से दोस्त हैं। हम लोग उन्हें बचा लेंगे... उनकी मदद करेंगे। कहो तो उन्हें ले कर मैं विदेश चला जाऊँ। मेरे पास पैसा है, तीन दिन में टिकट का इंतजाम कर सकता हूँ। जहाँ तक कत्ल का सवाल है, तो वे बहुत से नेक काम करेंगे और लोग सब कुछ भुला देंगे। फिक्र न करो, वे अब भी बहुत बड़ी हस्ती बन सकते हैं। जी कैसा है ठीक तो हो न?'

'नीच, पापी, मेरा मजाक उड़ा रहा है तू? मुझे जाने दे!'

'लेकिन कहाँ भला किधर जाओगी तुम?'

'उनके पास। कहाँ हैं वे... मालूम है... यह दरवाजा बंद क्यों है? हम इसी दरवाजे से अंदर आए थे, और यह अब बंद है। तुमने इसमें ताला कब लगाया?'

'हमें जो बातें करनी थीं वे बहुत ही निजी किस्म की थीं... कि नहीं? दरवाजा तो बंद करना ही पड़ता... और मैं तुम्हारा मजाक तो बिलकुल नहीं उड़ा रहा... बस भारी-भरकम शब्दों में बातें करते-करते उकता गया हूँ। लेकिन तुम ऐसी हालत में कहाँ जाओगी क्या तुम चाहती हो कि उनका भेद सबको पता चल जाए? तुम उन्हें पागल कर दोगी और वे अपने आपको पुलिस के हवाले कर देंगे। मैं समझता हूँ, मुझे यह बात तुम्हें बता ही देनी चाहिए कि उनके ऊपर निगरानी रखी जा रही है। उनका पीछा तो इस वक्त भी किया जा रहा है। तुम बस उनका भेद खोलोगी, और कुछ नहीं। जरा सब्र करो। कुछ ही देर पहले मैं उनसे मिला था और उनसे बातें की थीं। उन्हें अब भी बचाया जा सकता है। जरा ठहरो और बैठ जाओ, इसके बारे में हम लोग मिल कर कुछ सोचें। मैंने तुमसे यहाँ आने को इसीलिए कहा था कि तुमसे इस बारे में बातें करना चाहता था, इस बारे में ठीक से विचार करना चाहता था। बैठो!'

'बचाएँगे कैसे? उन्हें बचाया जा सकता है क्या?'

दूनिया बैठ गई। स्विद्रिगाइलोव भी उसके पास बैठ गया।

'इसका दारोमदार तुम पर है, सिर्फ तुम्हारे ऊपर,' उसने बिजली की तरह चमकती हुई आँखों से, लगभग कानाफूसी में कहना शुरू किया। उत्तेजना के मारे वह कुछ शब्दों का ठीक से उच्चारण भी नहीं कर पा रहा था।

दूनिया सहम कर दूर हट गई। वह भी सर से पाँव तक काँप रहा था।

'तुम... बस एक शब्द तुम बोल दो तो वे बच जाएँगे! मैं... मैं उन्हें बचाऊँगा। मेरे पास पैसा है, बहुत से दोस्त हैं, मैं उन्हें फौरन यहाँ से कहीं बाहर भिजवा दूँगा। मैं खुद पासपोर्ट बनवा दूँगा... दो पासपोर्ट। एक उनके एक अपने लिए। बहुत से दोस्त हैं मेरे, काम के लोग हैं... कहो तो तुम्हारा पासपोर्ट भी बनवा दूँ... और तुम्हारी माँ का... रजुमीखिन भला तुम्हारे किस काम का है? मैं तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ जितना वह करता है... तुम्हारे प्यार में पागल हूँ मैं। मुझे अपने लिबास का दामन ही चूम लेने दो। चूम लेने दो! चूम लेने दो! मुझसे उसकी सरसराहट नहीं सही जाती। जो भी करने को कहोगी, मैं करूँगा। कोई भी काम करूँगा। अनहोनी से अनहोनी भी करके दिखाऊँगा। जिस बात पर तुम विश्वास करोगी, उसी पर मैं भी विश्वास करूँगा। मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ, कुछ भी! इस तरह मुझे मत देखो! मत देखो इस तरह! तुम मुझे मारे डाल रही हो! पता है तुम्हें...'

वह पागलों की तरह बड़बड़ाने लगा था। उसे अचानक कुछ हो गया था, जैसे अचानक उसका दिमाग चल गया हो। दूनिया उछल कर दरवाजे की ओर भागी।

'खोलो दरवाजा, दरवाजा खोलो!' वह दरवाजे को हिला-हिला कर चीखने लगी जैसे किसी को मदद के लिए पुकार रही हो। 'दरवाजा खोलो! अरे, कोई बाहर है क्या?'

स्विद्रिगाइलोव उठा और अपने आपको सँभाला। उसके होठों पर, जो अभी तक काँप रहे थे, धीरे-धीरे एक दुष्टता भरी मुस्कान फैल गई।

'घर में कोई नहीं है,' वह शांत स्वर में, एक-एक शब्द को तौलते हुए बोला। 'मकान-मालकिन बाहर गई है... तुम इस तरह चिल्ला कर अपना ही गला खराब कर रही हो। बेकार ही इस तरह झल्ला रही हो।'

'चाभी कहाँ है दरवाजा फौरन खोल दे, कमीने... फौरन!'

'लगता है मैंने चाभी कहीं रख दी है और अब मिल नहीं रही।'

'अच्छा तो तू जबरदस्ती करना चाहता है!' दूनिया ने चिल्ला कर कहा। उसका चेहरा पीला पड़ गया था। वह कमरे के कोने की ओर भागी वहाँ एक छोटी-सी मेज की आड़ में हो गई जो संयोग से उसके हाथ लग गई थी। अब वह चीख नहीं रही थी बल्कि आततायी पर नजरें जमा कर गौर से उसकी एक-एक हरकत को देख रही थी। स्विद्रिगाइलोव भी अपनी जगह से नहीं हिला, बल्कि कमरे के दूसरे सिर पर उसकी ओर मुँह किए खड़ा रहा। कम-से-कम देखने में यही लगता था कि उसने फिर से खुद पर काबू पा लिया था, लेकिन चेहरे का रंग पहले की तरह ही उड़ा हुआ था। वैसे चेहरे पर उपहास भरी मुस्कान अब भी खेल रही थी।

'तुमने अभी-अभी जरबदस्ती की बात कही थी। पर अगर मेरा इरादा तुम्हारे साथ जबरदस्ती करने का रहा होगा तो तुम्हें यह भी मालूम होगा कि मैंने पहले ही हर तरह की सावधानी बरत ली होगी। सोफ्या सेम्योनोव्ना घर पर हैं नहीं, कापरनाउमोव परिवार यहाँ से काफी दूर रहता है, बीच में पाँच कमरे हैं जिनमें ताला पड़ा हुआ है। आखिरी बात यह कि मैं तुमसे कम-से-कम दोगुना ताकतवर हूँ। इसके अलावा किसी बात का डर भी मुझे नहीं है क्योंकि यह तो चाहोगी नहीं कि मैं तुम्हारे भाई का भेद खोल दूँ... क्यों वैसे तुम्हारी बात पर कोई विश्वास भी नहीं करेगा : आखिर कोई तो दूर... लड़की किसी को साथ लिए बिना किसी अकेले आदमी के कमरे में गई ही क्यों? तुम अपने भाई को कुरबान भी कर दो, तब भी कुछ साबित नहीं कर पाओगी; बलात्कार साबित करना बेकार की बात है।'

'कमीना कहीं का!' दूनिया ने गुस्सा से लाल हो कर धीमी आवाज में कहा।

'जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन इतना याद रखना कि यह सब मैं सिर्फ इस तरह कह रहा था कि मान लो ऐसा हो जाए। निजी तौर पर मैं मानता हूँ कि तुम बिलकुल सही कहती हो : बलात्कार एक घिनावनी हरकत है। मैं तो बस यह कहने की कोशिश कर रहा था। कि अगर.. अगर अपने भाई को बचाने के लिए तुम अपनी खुशी से मेरी बात मान लो, जैसा कि मेरा सुझाव है, तब भी तुम्हारा जमीर साफ ही रहेगा क्योंकि उस हालत में तुमने परिस्थितियों से मजबूर हो कर ही किया होगा। वैसे तुम चाहो, और हमारे लिए इस शब्द का इस्तेमाल जरूरी ही हो, तो तुम इसे जबरदस्ती भी कह सकती हो। सोच लो तुम्हारे भाई और तुम्हारी माँ की तकदीर का फैसला तुम्हारे हाथों में है। मैं तो तुम्हारा गुलाम ही रहूँगा... जिंदगी भर। मैं यहाँ बैठ कर तुम्हारे फैसले का इंतजार कर रहा हूँ...'

स्विद्रिगाइलोव इतना कह कर सोफे पर, दूनिया से लगभग आठ कदम की दूरी पर बैठ गया। दूनिया को उसके पक्के इरादे के बारे में जरा भी संदेह नहीं था। और फिर, वह उसे जानती भी तो थी...

अचानक उसने अपनी जेब में से रिवाल्वर निकाला, उसका घोड़ा चढ़ाया और जिस हाथ में रिवाल्वर था उसकी कुहनी मेज पर टिका दी। स्विद्रिगाइलोव उछल कर खड़ा हो गया।

'आहा! तो यह बात है!' वह चौंक कर बोला, लेकिन उसके होठों पर दुश्मनी से भरी मुस्कराहट थी। 'यानी कि अब तो परिस्थिति एकदम बदल गई है। तुम मेरे लिए हर चीज बहुत आसान बनाए दे रही हो, अव्दोत्या रोमानोव्ना! लेकिन तुम्हें रिवाल्वर कहाँ से मिला मिस्टर रजुमीखिन ने तो नहीं दिया हे भगवान! यह तो मेरा ही रिवाल्वर है! मेरा पुराना दोस्त! और मैं इसे ढूँढ़-ढूँढ़ कर थक गया... मैं देख रहा हूँ कि देहात में गोली चलाने का अभ्यास बेकार नहीं गया।'

'यह रिवाल्वर तेरा नहीं पापी, तेरी बीवी का है जिसे तूने मार डाला। मैंने इसे उसी वक्त ले लिया था जब मुझे यह शक होने लगा था कि तू क्या-क्या कर सकता है। अब अगर एक कदम भी आगे बढ़ाया तो मैं कसम खा कर कहती हूँ कि तुझे मार डालूँगी।'

दूनिया पर भूत सवार हो गया था। वह रिवाल्वर का निशाना साधे हुए थी।

'और तुम्हारे भाई का क्या होगा? मैं तो बस यूँ ही, जानने के लिए पूछ रहा हूँ,' स्विद्रिगाइलोव अब भी अपनी जगह से हिले बिना बोला।

'बता दे पुलिस को, तेरा जी चाहे तो! हिलना भी मत! एक कदम भी आगे बढ़ा तो गोली चला दूँगी! तूने अपनी बीवी को जहर दे कर मारा है, यह मुझे मालूम है। तू खुद ही हत्यारा है...'

'तो तुम्हें पक्का यकीन है कि मैंने अपनी बीवी को जहर दिया था?'

'हाँ, तूने दिया जहर! तूने खुद यह बात मुझसे इशारों में कही थी... मुझसे जहर की बात कही थी। मैं जानती हूँ तू जहर लेने शहर गया था... वह तेरे पास तैयार था... तूने दिया जहर... यकीनन दिया, कमीने!'

'लेकिन अगर यह बात सच भी हो, तब भी मैंने तुम्हारी ही खातिर तो ऐसा किया होगा... इसकी वजह तो फिर भी तुम ही रहोगी।'

'झूठ बोलता है तू! मुझे तुझसे हमेशा नफरत रही है, हमेशा...'

'आहा, अव्दोत्या रोमानोव्ना! लगता है तुम यह बात एकदम भूल चुकी हो कि मुझे सुधारने के जोश में तुम कैसे नरम पड़ने और पिघलने लगी थीं। मुझे तुम्हारी आँखों में यह बात साफ-साफ दिखाई देती थी। वह रात याद है... चाँदनी रात, जब बुलबुले चहक रही थीं?'

'झूठा है तू!' दूनिया की आँखें दहकने लगीं। 'तू झूठा है! सरासर तोहमत लगा रहा है!'

'मैं झूठा हूँ, क्यों अच्छी बात है... मान लो मैं झूठ ही बोल रहा हूँ। ठीक, तो मैं झूठ बोल रहा हूँ। औरतों को कम-से-कम यह तो नहीं चाहिए कि किसी को इस तरह की बातों की याद दिलाएँ।' वह खीसें निकाल कर हँस पड़ा। 'मुझे यकीन है कि तुम गोली चलाओगी। अच्छी बात है, चलाओ गोली!'

दूनिया ने रिवाल्वर ऊपर उठाया। उसका रंग एकदम सफेद पड़ चुका था, नीचेवाला होठ सफेद हो कर काँप रहा था, और बड़ी-बड़ी, काली आँखें अंगारों की तरह दहक रही थीं। गोली चलाने का पक्का फैसला करके, बीच की दूरी का अंदाजा लगाते हुए और उसकी हरेक हरकत पर सावधानी से नजर रखते हुए वह उसकी ओर देखने लगी। स्विद्रिगाइलोव को वह इतनी खूबसूरत कभी नहीं लगी थी। जिस क्षण उसने रिवाल्वर ऊँचा किया था उसी समय उसकी आँखों में धधक रही आग में वह झुलसने लगा था। उसका दिल तकलीफ के मारे बैठने लगा। वह एक कदम आगे बढ़ा। गोली चलने की आवाज गूँजी और गोली उसके बालों को छूती हुई, पीछे दीवार में जा कर धँस गई। वह रुका और धीरे से हँसा :

'भिड़ ने डंक मार दिया! और निशाना भी सीधा मेरे को बनाया। यह क्या खून!' उसने दाहिनी कनपटी पर बह रहा खून पोंछने के लिए रूमाल निकाला। गोली उसकी खोपड़ी की खाल को छूती हुई निकली होगी। दूनिया ने रिवाल्वर नीचे कर लिया और स्विद्रिगाइलोव को घूरने लगी। दहशत से कम और गुस्से व हैरानी से ज्यादा। लग रहा था, उसकी समझ में खुद नहीं आ रहा था कि उसने क्या कर दिया था और क्या हो रहा था।

'खैर, निशाना तो चूक गया! अब फिर गोली चलाओ, मैं इंतजार कर रहा हूँ!' स्विद्रिगाइलोव ने अब भी खीसें निकाल कर हँसते हुए, लेकिन थोड़ा उदास हो कर धीमे से कहा। 'तुमने अगर जल्दी न की तो तुम्हें रिवाल्वर का घोड़ा चढ़ाने का वक्त मिले, उससे पहले ही मैं तुम्हें दबोच लूँगा।'

दूनिया चौंक पड़ी। उसने जल्दी से रिवाल्वर का घोड़ा चढ़ा कर उसे ऊपर उठाया।

'मुझे छोड़ दे!' दूनिया घोर निराशा से चिल्लाई। 'मैं कसम खा कर कहती हॅँ, फिर गोली चला दूँगी... मैं... मैं तुझे जान से मार डालूँगी...'

'खैर, तीन फुट की दूरी से तो निशाना नहीं चूकेगा, क्यों लेकिन अगर चूका... तो मैं...' स्विद्रिगाइलोव की आँखें चमक उठीं। वह दो कदम और बढ़ आया।

दूनिया ने घोड़ा दबाया, लेकिन रिवाल्वर ठीक से नहीं चला।

'उसे तुमने ठीक से भरा ही नहीं था। कोई बात नहीं, मैं समझता हूँ उसमें एक गोली अभी और होगी। ठीक से तैयार कर लो। मैं खड़ा हूँ।'

वह दूनिया से बस दो फुट की दूरी पर था। जुनून से भरे पक्के इरादे के साथ उसे देखते हुए वह इंतजार करता रहा। वह उसे उत्तेजना से भरी, दहकती हुई नजरों से घूर रहा था। दूनिया इतना समझ गई कि वह भले मर जाए, उसे नहीं छोड़ेगा और... यकीनन वह उसे मार डालती... बस दो फुट की ही दूरी तो थी...

अचानक उसने रिवाल्वर फेंक दिया।

'फेंक दिया!' स्विद्रिगाइलोव ने हैरान हो कर कहा और गहरी साँस ली। लगा, अचानक उसके दिल पर से एक भारी बोझ हट गया हो। लेकिन यह मौत के डर का बोझ शायद नहीं था, क्योंकि यह डर तो उसने उस समय महसूस भी नहीं किया होगा। उसे किसी दूसरी ही, अधिक भयानक और घिनावनी भावना से छुटकारा मिल गया था, जिसकी तीव्रता की वह स्वयं भी व्याख्या नहीं कर सकता था।

वह आगे बढ़ कर दूनिया के पास गया और नरमी से उसकी कमर को अपनी बाँह में लपेट लिया। दूनिया ने विरोध नहीं किया, लेकिन बुरी तरह काँपते हुए विनती भरी नजरों से उसे देखती रही। वह कुछ कहना चाहता था, लेकिन उसके होठ फड़के और वह एक शब्द भी नहीं बोल सका।

'मुझे जाने दो,' दूनिया ने गिड़गिड़ाती हुई आवाज में कहा।

स्विद्रिगाइलोव काँप उठा। दूनिया की आवाज में एक अजीब-सी अपनाइयत का पुट आ गया था, जो पहले नहीं था।

'तो तुम मुझसे प्यार नहीं करती?' उसने धीरे-से पूछा।

दूनिया ने सर हिला दिया।

'और... कर भी नहीं सकतीं कभी नहीं?' उसने निराश हो कर, धीमी आवाज में कहा।

'कभी नहीं!' दूनिया ने भी धीमी आवाज में कहा।

स्विद्रिगाइलोव के दिल में पलभर तक एक भयानक मगर खामोश संघर्ष चलता रहा। उसने दूनिया को अकथनीय पीड़ा से देखा। अचानक उसने अपनी बाँह खींच ली, पीछे मुड़ा और जल्दी से खिड़की के पास जा कर उसके सामने ठहर गया।

एक पल और बीता।

'यह लो चाभी!' कोट की बाईं जेब से उसने चाभी निकाली और दूनिया की ओर मुड़ कर देखे बिना ही अपने पीछे मेज पर रख दिया। 'यह लीजिए और फौरन यहाँ से चली जाइए!'

वह नजरें जमाए खिड़की से बाहर घूरता रहा।

दूनिया चाभी लेने मेज के पास गई।

'फौरन! जल्दी!' स्विद्रिगाइलोव ने दोहराया। वह अब भी न अपनी जगह से हिला और न ही पीछे मुड़ कर देखा। स्पष्ट था कि उसके उस 'फौरन' में एक भयानक खतरा छिपा हुआ था।

दूनिया समझ गई, चाभी ले कर दरवाजे की ओर लपकी और जल्दी से ताला खोल कर कमरे से बाहर निकल गई। एक ही मिनट में वह बाँध पर पहुँच चुकी थी। इस बात से बेखबर कि वह कर क्या रही है, वह पागलों की तरह... पुल की ओर भागी जा रही थी।

स्विद्रिगाइलोव कोई तीन मिनट तक खिड़की के पास खड़ा रहा। आखिरकार वह धीरे-धीरे मुड़ा, अपने चारों ओर देखा और माथे पर हाथ फेरा। एक अजीब-सी मुस्कराहट से उसका चेहरा विकृत हो गया - दयनीय, उदास, कमजोर मुस्कराहट से, घोर निराशा की मुस्कराहट से। हाथ सूखते हुए खून में सन गया। उसने बेहद क्रोध से उसे देखा। फिर उसने एक तौलिया भिगो कर अपनी कनपटी पोंछी। अचानक उसकी नजर दूनिया के फेंके हुए रिवाल्वर पर जा टिकी जो दरवाजे के पास पड़ा हुआ था। उसने उसे उठा लिया और उलट-पुलट कर देखा। वह तीन गोलियोंवाला पुराने ढंग का एक छोटा-सा रिवाल्वर था। अब भी उसमें दो गोलियाँ बची हुई थीं, और गोली दागने की एक टोपी भी। एक गोली तो अभी और दागी जा सकती थी। उसने पलभर तक कुछ सोचा, रिवाल्वर को जेब में रखा, अपना हैट उठाया और बाहर निकल गया।