ओशो के द्वार पर बुद्ध की दस्तक / ओशो / पृष्ठ 3

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
बुद्धा को राजी कर लो
विश्व की अनूठी प्रवचनमाला: जोरबा दि बुद्धा

- मनीषा ने पूछा हैः

- प्यारे बुद्धा! जब से आप गौतम दि बुद्धा के आतिथेय हुए हैं, मुझे आप बिलकुल भिन्न लगते हैं और आपकी भौतिक उपस्थिति में ध्यान करना भी भिन्न लगता है। यह आपको बहुत दिनों बाद देखने का ही प्रभाव मात्र नहीं है, क्योंकि समय के साथ यह अहसास कम नहीं हुआ है, और न केवल यह मेरी कल्पना मात्र है, क्योंकि अन्य लोगों की भी ऐसी ही अनुभूति है। आपका प्रेम एक उषापूर्ण आलिंगन कम और एक विशाल पात्रक जैसा अधिक लगता है।

- मनीषा ! आज सायँ छह बजे के पहले तक तुम सही थीं। अब तुम्हारा प्रश्न असंगत है।

- ठीक है।

- आज नहीं तो कल यहाँ ऐसा कोई भी नहीं होगा जो अपनी हैसियत पर बुद्ध न हो। इसके पहले कि निवेदनो तुम्हें बुलाए, बुद्धा को राजी कर लो। ...वापस आ जाओ। अपने साथ अपना सारा मौन, और आनंद और महिमा लेते आओ। कुछ क्षण वसंत से भरपूर होकर बैठो।

- आज तुम्हें खड़े होकर संगीत के साथ नृत्य करना है, क्योंकि यह मेरी अंतिम घोषणा है।

- ओ.के. मनीषा?

- हाँ बुद्धा।

साभार : एस धम्मो सनंतनो तथा ओशो की अन्य पुस्तकों से संकलित अंशः

सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन