चंद्रकांता संतति / खंड 1 / भाग 4 / बयान 8

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था।

नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारहदरी में पहुंचे जहां कई आदमी बैठे हुए कुछ काम कर रहे थे। बाबाजी को देखते ही वे लोग उठ खड़े हुए। बाबाजी ने उन लोगों की तरफ देखकर कहा, “नानक को मैं ठिकाने पहुंचा आया हूं, बड़ा भारी ऐयार निकला, हम लोग उसका कुछ न कर सके। खैर उसे गंगा किनारे उसी जगह पहुंचा दो जहां बजड़े से उतरा था, उसके लिये कुछ खाने की चीज भी वहां रख देना।” इतना कहकर बाबाजी वहां से लौटे और महारानी के पास पहुंचे। इस समय महारानी का दरबार उस ढंग का न था और न भीड़भाड़ ही थी। सिंहासन और कुर्सियों का नाम-निशान न था। केवल फर्श बिछा हुआ था जिस पर महारानी, रामभोली और वह औरत जिसके घोड़े पर सवार हो रामभोली नानक से जुदा हुई थी, बैठी आपस में कुछ बातें कर रही थीं। बाबाजी ने पहुंचते ही कहा, “मैं नहीं समझता था कि नानक इतना बड़ा धूर्त और चालाक निकलेगा। धनपति ने कहा था कि वह बहुत सीधा हे, सहज ही में काम निकल जायगा, व्यर्थ इतना आडंबर करना पड़ा!”

पाठक याद रखें, धनपति उसी औरत का नाम था जिसके घोड़े पर सवार होकर रामभोली नानक के सामने से भागी थी। ताज्जुब नहीं कि धनपति के नाम से बारीक खयाल वाले पाठक चौंकें और सोचें कि ऐसी औरत का नाम धनपति क्यों हुआ! यह सोचने की बात है और आगे चलकर यह नाम कुछ रंग लावेगा।

धनपति - खैर जो होना था सो हो चुका, इतना तो मालूम हुआ कि हम लोग नानक के पंजे में फंस गये। अब कोई ऐसी तरकीब करनी चाहिए जिससे जान बचे और नानक के हाथ से छुटकारा मिले।

बाबाजी - मैं तो फिर भी नसीहत करूंगा कि आप लोग इस फेर में न पड़ें। कुंअर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बड़े प्रतापी हैं, उन्हें अपने आधीन करना और उनके हिस्से की चीज छीन लेना कठिन है, सहज नहीं। देखा, पहली ही सीढ़ी में आप लोगों ने कैसा धोखा खाया। ईश्वर न करे यदि नानक मर जाय या उसे कोई मार डाले और वह किताब उसी के कब्जे में रह जाय और पता न लगे तो क्या आप लोगों के बचने की कोई सूरत निकल सकती है

रामभोली - बेशक कभी नहीं, हम लोग बुरी मौत मारे जायेंगे!

बाबाजी - मैं बेशक जोर देता और ऐसा कभी होने न देता मगर सिवाय समझाने के और कुछ नहीं कर सकता।

महारानी - (बाबाजी की तरफ देखकर) एक दफे और उद्योग करूंगी। अगर काम न चलेगा तो फिर जो आप कहेंगे वही किया जाएगा।

बाबाजी - मर्जी तुम्हारी, मैं कुछ कह नहीं सकता।

महारानी - (धनपति और रामभोली की तरफ देखकर) सिवाय तुम दोनों के इस काम के लायक और कोई भी नहीं है।

धनपति - मैं जान लड़ाने से कब बाज आने वाली हूं।

रामभोली - जो हुक्म होगा करूंगी ही।

महारानी - तुम दोनों जाओ और जो कुछ करते बने करो!

रामभोली - काम बांट दीजिए।

महारानी - (धनपति की तरफ देख के) नानक के कब्जे से किताब निकाल लेना तुम्हारा काम और (रामभोली की तरफ देख के) किशोरी को गिरफ्तार कर लाना तुम्हारा काम ।

बाबाजी - मगर दो बातों का ध्यान रखना, नहीं तो जीती न बचोगी!

दोनों - वह क्या

बाबाजी - एक तो कुंअर इंद्रजीतसिंह या आनंदसिंह को हाथ न लगाना, दूसरे ऐसे काम करना जिससे नानक को तुम दोनों का पता न लगे, नहीं तो वह बिना जान लिए कभी न छोड़ेगा और तुम लोगों के किए कुछ न होगा। (रामभोली की तरफ देख के) यह न समझना कि अब वह तुम्हारा मुलाहिजा करेगा, अब उसे असल हाल मालूम हो गया, हम लोगों को जड़-बुनियाद से खोदकर फेंक देने का उद्योग करेगा।

महारानी - ठीक है, इसमें कोई शक नहीं। मगर ये दोनों चालाक हैं, अपने को बचावेंगीं। (दोनों की तरफ देखकर) खैर तुम लोग जाओ, देखो ईश्वर क्या करता है। खूब होशियार और अपने को बचाए रहना।

दोनों - कोई हर्ज नहीं!