जनता के मंचों पर गिरदा की याद बरबस आती रहेगीदा / गिरीश तिवारी गिर्दा

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जनता के मंचों पर गिरदा की याद बरबस आती रहेगीदा
लेखक:विजय जड़धारी

गिरदा से मेरा मिलना जुलना भले ही कम हुआ, किन्तु कुछ मुलाकातों में ही ऐसा लगता है जैसे हम वर्षों एक साथ कार्य करते रहे हैं। उनके हाल-चाल के लिये जब मैंने शेखर पाठक से फोन पर जानकारी चाही तो तब तक वे उन्हें अलविदा कह कर आ रहे थे। गिरदा के अलविदा होने की खबर ने हमें झकझोर दिया। युवाओं द्वारा मंचों पर गाये जाने वाले उनके गीत मेरे मानस में गूँजने लगे।

गिरदा टिहरी की तरफ कम आये और जब आये होंगे तो मेरी मुलाकात संयोग से उनसे नहीं हो पायी। एक बार कटाल्डी खनन विरोधी आंदोलन के मुकदमे के संदर्भ में मैं और कुँवर प्रसून नैनीताल में थे। ‘नैनीताल समाचार’ के कार्यालय और ‘अशोक होटल’ में गिरदा मिल गये। लम्बे दिनों बाद मिले थे। हमारी मेजबानी में राजीव लोचन साह लगे थे। नाश्ता खाते-खाते गिरदा से बातचीत हुई तो पल भर में ही गिरदा ने पूरे टिहरी, उत्तरकाशी की जैसे डायरी ही खोल दी। ऐसे लगा जैसे वे वर्षों से हमारे साथ-साथ ही काम कर रहे हों। गिरदा ने बड़ी आत्मीयता से साथियों की कुशल-क्षेम पूछी। इतनी आत्मीयता….. जैसे हम सब सचमुच एक परिवार के सदस्य हों। पल भर में खनन माफियाओं और जंगल के तस्करों के कई कारनामे उन्होंने सुना दिये। कहने लगे खनन माफिया कुछ भी करा सकते हैं। इनसे सावधान रहने की जरूरत है।

गिरदा किस वाद, किस पंथ से थे कुछ पता नहीं चलता था। किंतु उनका सच्चा पंथ आम आदमी था। आम आदमी की पीड़ा और पहाड़ के संसाधनों को बचाने का दर्द उनकी कविताओं और उन से बातचीत करते समय बखूबी छलकता था। वे देखने में बहुत साधारण थे, किंतु उनका व्यक्तित्व बहुत बड़ा था। जन संघर्षों व मंचों में गिरदा की याद बरबस आती रहेगी। उनकी याद को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये निं:संदेह अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट ने हाल ही में गिरदा के सम्मान में गिरीश तिवारी ‘गिरदा’ सम्मान की स्थापना कर पहला सम्मान जन कवि डॉ. अतुल शर्मा को दे कर एक अच्छी शुरूआत की है। गिरदा की याद को अक्षुण्ण बनाने के लिये और भी कार्यक्रम चलाये जाने की हम सबकी जिम्मेदारी है।

नैतीताल समाचार से साभार