जब घर पर हों महमान और खिलाने के लिए कुछ न हो! / महेश हलधर

Gadya Kosh से
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स्कूल के बस्ते को कंधों पर सवार करके मनीष घर की ओर चल पड़ा। मनीष के आसपास से गुजरते लड़के दोस्तों से बातें कर रहे थे और कह रहे थे कि आज का दिन बड़ा ही बोरियत भरा बीता। गौरव को घर तक जाने के लिए एक हमराही तो मिल गया था। मनीष को अकेलापन महसूस हो रहा है। भानचंद के स्कूल न आने की वजह से आज उसे अकेले घर जाना पड़ रहा है।

वह घर पहुंचा तो दरवाज़े की कुंडी पर ताला लगा हुआ था। मनीष ने अपने पड़ोसियों से पूछा पर किसी को कुछ नहीं पता था। उसने सामने मकान में बाहर बैठी बूढ़ी अम्मा से पूछा, “क्या पापा ने आपको घर की चाबी दी है?” बूढ़ी अम्मा अपने हिलते-डूलते शरीर के साथ बोलीं, “हां बेटा, अभी देती हूं!” उन्होंने अपनी बीड़ी को नाली में फेंका और घर के अंदर से चाबी लाकर मनीष के हाथ में थमाते हुए बोलीं, “तुम्हारे पापा कहकर गए हैं कि तुम घर में ही रहना। घर को खुला छोड़कर कहीं मत जाना।” मनीष ने उनकी हां में हां मिलाते हुए दरवाज़े पर लगे ताले को खोला, फिर कुंडी खोलकर घर के अंदर गया। अंदर जाते ही घर की साफ़ सफाई करने लगा। साफ-सफाई करने के बाद जैसे ही उसने अपनी कमीज़ का बटन खोला तभी घर के बाहर किसी ने दस्तक दी। मनीष ने जल्दी से शर्ट पहनकर बाहर खड़े लोगों से पूछा, “क्या हुआ अंकल?” वे बोले, “बेटा, क्या यह मदन चौधरी का घर है?”


“हां, पर क्यों? क्या हुआ? कुछ चाहिए क्या?”

“बेटा कैसे हो? कितने बड़े हो गए हो!” उस व्यक्ति ने कहा। उनकी बात सुनकर मनीष को अचम्भा हुआ। वह सोचने लगा कि ये कौन हैं? मुझे इतने खुशनुमा चेहरे से क्यों देख रहे हैं? मनीष ने उनसे पूछा, “अंकल आप कौन हैं और मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं?”

“बेटा, मैं तुम्हारा चाचा हूं और यह तुम्हारी तुम्हारी चाची!”

यह सुनकर वह कुछ देर चुप रहा फिर नमस्ते करते हुए अंदर बुलाया और पूछा, “चाचा आप बिना बताये कैसे आ गए!”

“बेटा, मैंने घर से निकलते समय तुम्हारी मम्मी को फ़ोन कर दिया था!”

“मम्मी ने तो हमें कुछ नहीं बताया।”

“तुम्हारी मम्मी उस वक़्त बस में थी, जब मैंने उन्हें फ़ोन किया था।”

“आपको कैसे पता चला कि मम्मी बस में थी?”

“बस की आवाज़ आ रही थी और तुम्हारी मम्मी ने भी फ़ोन पर बता दिया था कि मैं बस में हूं।”

“अच्छा!”

उन दोनों की बातों के बीच चाची किचन में घुसते हुए बोलीं, “जब तक तुम्हारी मम्मी काम से लौटती हैं, तब तक मैं आटा गूँद कर रोटी बना देती हूं।” यह सुनकर मनीष घबरा गया और हिचकिचाते हुए बोला, “नहीं चाची, रहने दो। मम्मी आयेगी तो गूँद लेगी।” कहकर वह सोचने लगा कि इन्हें क्या पिलाऊं! घर में न तो रूहआफज़ा है और न ही पैसे! अगर पैसे होते तो दुकान से पेप्सी लाकर चाचा-चाची को पिला देता। तभी उसने सब्जी की टोकरी निकाली और उसमें से दो नींबू निकालकर चीनी के साथ तीन गिलास नींबू पानी बनाया और उन्हें देते हुए पंखा और टी.वी. चलाकर बोला, “चाचा, आप पंखे की हवा लेते हुए टी.वी. देखने का मज़ा लो। मैं अभी आता हूं।”

“कहाँ जा रहा है?”

“कहीं नहीं, बस अभी आ रहा हूं,” कहकर उसने अपने तख़्त के नीचे से दो रुपए लिए और चप्पल पहनकर एस.टी.डी. बूथ की तरफ़ फ़ोन करने चल दिया। फ़ोन के रिसीवर को कान पर लगाकर नंबर मिलाया। दूसरी तरफ़ से फ़ोन उठाते ही वो बोला, “हैलो मम्मी, मैं मनीष। घर में चाचा-चाची आये हुए हैं, मैं क्या करूं?”

दूसरी तरफ़ से मम्मी बोली, “तुमने उनको पानी-वानी दिया?”

“हाँ मम्मी, पर नींबू पानी।”

“अच्छा ठीक है, मैं आधे घंटे में घर पहुंच रही हूं, अभी मुंडका में हूं। घर आकर सारी बात बताऊंगी।”

“अच्छा!”

फ़ोन रखकर वह जाने लगा तभी दुकानवाले ने उसे रोकते हुए बोला, “पैसे देने का इरादा नहीं है क्या?”

“ओह सॉरी, मुझे माफ़ करना, गलती हो गई। कितने पैसे हुए?”

“दो रुपए। जल्दी दो। तुम लोगों का तो रोज़ का ड्रामा हो गया है। पकड़े गए तो माफी मांग ली, नहीं तो ऐसे ही चले जाते हैं।” दुकानदार ने कहा। दुकानदार के हाथ में दो रुपए थमाते हुए मनीष बोला, “अंकल, मैं उन आवारा लड़कों की तरह नहीं हूं। पैसे देना भूल गया था,” कहकर वह घर की तरफ़ भागा। घर पहुंचा तो चाचा ने पूछा, “कहाँ गया था?”

“मम्मी को फ़ोन करने एस.टी.डी. बूथ गया था।”

“क्या, फ़ोन तो मेरे पास भी था, एक बार बोल देता!”

“अरे नहीं चाचा, रहने दो, छोड़ो न इस बात को।”

इसी बीच उसकी मम्मी भी आ गईं। मनीष ने मम्मी को सारी बात बताई। उन्होंने मनीष की बात को बीच में ही काटते हुए पूछा, “चाचा-चाची को कुछ खाने के लिए दिया!” यह सब चाचा-चाची के सामने बढ़ा-चढ़ाकर बोल रहीं थी, घर में तो अनाज का एक दाना भी नहीं था। चाचा-चाची ने उसकी मम्मी के पैर छूते हुए बोले, “आ गईं भाभी!”

“और कैसे हो तुम लोग! मम्मी-पापा को लेकर आते!”

“मैंने उन्हें साथ चलने को कहा था पर उन्हें काम से फुरसत मिले तब न यहां आएं। पर भाभी आपका बेटा नींबू पानी बहुत अच्छा बनाता है।”

“अच्छा, पर घर में तो नहीं बनाता!”

मनीष को बाहर लाकर उसकी मम्मी ने कहा, “बेटा, तू पानवाले अंकल की दुकान पर जाकर कहना कि मम्मी ने पचास रुपए मंगवाए हैं!”

“क्यों मम्मी?”

“तू जा और जल्दी लेकर आ!”

मनीष ने पानवाले की दुकान पर जाकर वही कहा जो उसकी मम्मी ने कहा था। दुकानदार ने पैसे देते हुए कहा, “यह लो, पर याद से लौटा देना!”

“ठीक है, अंकल!” कहकर मनीष वापस अपनी मम्मी के पास पहुंचा। उसकी मम्मी ने उससे कहा, “जा जल्दी से छोले-भठूरे लेकर आ, पर देखकर। अगर दस रुपए वाली प्लेट हुई तो दो प्लेट लेकर आना।”

“मम्मी, हम क्या खायेंगे!”

“बेटा पहले मेहमान को खाने दो, जो बचेगा तुम खा लेना!”

“मैं चाचा का झूठा खाऊँगा?”

“बेटा तू तो जानता ही है न घर का हाल!” ये सुनते ही आंखों में आंसू लिए वह छोले-भठूरे की दुकान पर चल दिया। मनीष ने पूछने से पहले ही देख लिया था कि दस रुपए की प्लेट है। उसने सीधा दुकानदार से कहा, “अंकल बीस रुपए की अलग-अलग प्लेट पैक कर दो!”

दुकानदार बोला, “दस रुपए वाली प्लेट का सपना देख रहा है, क्या?”

“अंकल वहां पर तो दस रुपए ही लिखा है!”

“देख नहीं रहा, नीचे बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है। जो तू पढ़ रहा है वह पुराना हो गया है।”

यह सुनकर मनीष सोच में पड़ गया कि मम्मी ने तो दस रुपए वाली प्लेट मंगवाई थी पर ये तो बीस रुपए की प्लेट कह रहे हैं। वह भागते हुए घर वापस गया और बोला, “मम्मी दस रुपए वाली बीस की हो गई है।” उदास चेहरे के साथ वह बोली, “तो रहने दो!”

चाचा खिड़की में खड़े सुन रहे थे। वे वापस तख़्त पर बैठ गए। उन्होंने मनीष की मम्मी को अंदर बुलाते हुए कहा, “भाभी, अच्छा तो हम चलते हैं!”

“अरे इतनी जल्दी जा रहे हो! कुछ खाकर जाते!”

“खाया नहीं तो क्या हुआ, नींबू पानी तो पिया!”

“बस एक गिलास नींबू पानी पीकर तुम्हारा पेट भर गया।”

“हाँ, एकदम फूल भर गया।”

आंखों में आंसू लिए बोलीं, “कितने दिनों बाद आए थे और कुछ खिला भी न सकी!”

“भाभी तुम रो रही हो?”

“नहीं-नहीं, ये तो खुशी के आंसू हैं!”

“अच्छा तो चलते हैं!” कहकर उन्होंने मनीष के हाथ में सौ रुपए का नोट दिया और बस स्टैंड की ओर चल दिए।