जब शम्मी कपूर ने संगीतकार आर डी बर्मन की चोरी पकडी / नवल किशोर व्यास

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जब शम्मी कपूर ने संगीतकार आर डी बर्मन की चोरी पकडी


बात 1965-66 की है। मशहूर निर्देशक नासिर हुसैन साहब एक फिल्म बना रहे थे ‘तीसरी मंजिल’ जिसे निर्देशित कर रहे थे विजय आनंद साहब, तो ज़ाहिर है कि फिल्म के नायक के रूप में पहली पसंद थे देव आनंद और म्यूजिक डायरेक्शन के लिए पहला नाम था एस डी बर्मन। अब जनाब, एक साथ दो मुसीबतें आ गईं। देव साहब ‘गाइड’ के इंग्लिश वर्ज़न में व्यस्त थे और बर्मन दादा की तबियत ख़राब। तो देव साहब की जगह ली शम्मी कपूर साहब ने और संगीतकार के नाम पर माथापच्ची शुरू हुई। एस डी बर्मन साहब ने नासिर साहब से अपने बेटे पंचम, यानी राहुल देव बर्मन को मौक़ा देने की ने गुजारिश की, पर जब नायक शम्मी साहब हों, तो उनसे बिना पूछे फिल्म का म्यूज़िक कैसे फाइनल किया जा सकता है। हम सब जानते हैं, शम्मी कपूर के कैरियर को इस उरूज़ तक पहुँचाने में उनकी फिल्मों के संगीत की कितनी अहमियत थी. और फिर उनकी संगीत की समझ भी बेमिसाल थी। हर फिल्म के संगीत में उनका सकारात्मक योगदान कह लें या बेजा दखल पर रहता जरूर था। शम्मी कपूर ने ज़्यादातर शंकर-जयकिशन और ओ पी नैयार साहब के साथ ही काम किया था, सो उनकी पहली पसंद भी ये ही थे।  शम्मी जी से इसरार किया गया कि एक बार पंचम को सुन तो लीजिये। यहाँ यह ज़िक्र कर देना बेहद लाज़िमी है की शम्मी साहब से ये इसरार करने वालों में राइटर सचिन भौमिक के साथ-साथ ख़ुद जयकिशन साहब भी थे, जो शम्मी साहब की पहली पसंद थे। आज के ज़माने में किसी कलाकार में किरदार की ये बुलंदी देखने को नहीं मिलेगी। जैसी दरियादिली जयकिशन साहब ने दिखाई, अब क़िस्सों और कहानियों में ही सुनने को मिलती है। तो बाक़ायदा पंचम शम्मी कपूर के पास ऑडिशन के लिए पहुँचे। शम्मी कपूर ने कहा कि क्या कम्पोज़ किया है? सुनाओ! पंचम ने पहले गाने की धुन सुनाई. गाना था ‘दीवाना मुझसा नहीं, इस अम्बर के नीचे, आगे है कातिल मेरा और में पीछे पीछे।"

पंचम ने जैसे ही धुन शुरू की, बाक़ी धुन शम्मी साहब ने ख़ुद ही सुना दी, क्योंकि ओरिजिनल ट्यून एक नेपाली गाने ‘ओ कांचा’ से ली गई थी। शम्मी कपूर को वर्ल्ड म्यूजिक की गहरी समझ थी, इसलिए पंचम पकड़े गए। थोड़ा घबराए पर शम्मी कपूर ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा, कि अगली धुन सुनाओ! अब पंचम ने सुनाया ‘ओ मेरे सोना रे सोना रे सोना’, फिर ‘ओ हसीना जुल्फों वाली’. फिर एक एक करके सभी गाने। एक घंटे के बाद ‘तीसरी मंजिल’ को नया म्यूजिक डायरेक्टर मिल चुका था और फिल्म संगीत में एक नए दौर की आमद के लिए लाल कालीन बिछाया जा चुका था।

आरडी के  बहाने याद आते है दो और निर्देशक-सुभाष घई और विधु विनोद चोपड़ा। सुभाष घई ने अपने शिखर के दिनों में एक साथ दो फिल्मो की घोषणा की- एक थी राम-लखन और दुसरी अमिताभ बच्चन के साथ देवा। राम-लखन में म्युजिक रखा आरडी का और देवा में थे लक्ष्मी-प्यारे। अमिताभ के साथ बात बनी नही और देवा बीच में ही बंद हो गई तो सुभाष घई ने बिना आरडी को बताये राम-लखन में उनकी जगह लक्ष्मी-प्यारे को ले लिया। ये आरडी के सबसे मुफलिसी और अपमान के दिन थे। 

इन्ही खाली और उदास दिनों में विधु विनोद ने 1942-ए लव स्टोरी के लिए आरडी को अ्प्रोच किया तो सुस्त पड चुके आरडी ने किसी और से म्यूजिक लेने का कहा पर विधु विनोद ने स्पष्ट और लाउड कहा कि आरडी इस फिल्म में संगीत नही देंगे तो ये फिल्म भी नही बनेगी। आरडी के झूलते विश्वास को विधु ने सहारा दिया और आरडी ने फाइटर की तरह जीवन के रिंग में गिरने से पहले अपना सबसे पावरफुल पंच 1942-ए लव स्टोरी में दिया।