जमीन की कमी और आधुनिक खेती / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती

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जमींदारी मिटाने की बात से जो लोग घबराते हैं उन्हें भूलना न चाहिए कि जमीन का एक ही काम है कि मुल्क के सभी लोगों को सुंदर खाना दे और कारखानों के लिए पूरा कच्चा माल पैदा करे। आवश्यकता-भर गेहूँ , बासमती , सागभाजी , फल , मेवे और घी-दूध जब तक न पैदा हो स्वराज्य क्या ? किसान-मजदूर राज्य क्या ? अगर लाखों कारखानों के लिए कच्चा माल न पैदा हो तो मुल्क का काम कैसे चलेगा ? यह भी याद रहे कि गत 70-80 साल के भीतर जनसंख्या 20 करोड़ से 40 करोड़ हो गई। इतने ही साल में 80 करोड़ और डेढ़ सौ वर्ष बाद 160 करोड़ हो जाएगी। तब उतने लोगों को अन्न-वस्त्र कहाँ से आएगा , जबकि आज ही नहीं आता ? यह सबसे बड़ा प्रश्न है और सारे देश इसी के हल करने में लगे हैं। हमें भी यही करना है। जमीन के ऊपर से व्यक्ति विशेष की मिल्कियत हटा कर उसे खेती करनेवालों के हवाले कर देना और उन्हें विश्वास दिला देना है कि खूब अन्नादि उपजाओ , स्वयं डटकर खाओ , पीओ , भोगो और जो बचे उसमें से सरकार को दो-समाज को दो। जमीन की उपज आज से कई गुनी किए बिना काम न चलेगा और यह बात असंभव है जब तक मोटर के हलों से खूब गहरी जुताई , काफी सिंचाई , भरपूर खाद और अच्छे बीजों का प्रबंध सरकार खुद नहीं करती। इसीलिए हमें एक ओर फौरन ऐसी सरकार बनानी है जो किसान-मजदूरों की अपनी हो , जिसका इनके साथ दिली अपनापन हो , जिसे ये समझें कि वास्तव में हमारी है।

दूसरी ओर सभी मिल्कियतों को जमीन के ऊपर से फौरन मिटा देना है , ताकि किसान जमीन को भी सरकार की ही तरह अपनी समझने लगें , यह उनकी अपनी हो जाए। जमीन पर जमींदारों या गैरों का कुछ भी हक रहने पर ऐसा न होगा और जब तक जमीन के साथ किसान का अपनापन न होगा वह उसकी उपज बढ़ाने में अपने खून को पानी न करेगा।

इसी के साथ खेतों की बीचवाली सीमाओं और मेंड़ों को भी मिटा देना है।तभी ट्रैक्टरों से खेती होगी। नन्हे-नन्हे खेतों में ट्रैक्टर चल नहीं सकते। हर गाँव में इन मेंड़ों के मिटाने से पचासों बीघे जमीन और भी निकल आएगी। अगर खाद , सिंचाई , जुताई आदि की पूरी सुविधा होगी तो किसान पैदावार काफी बढ़ाएगा , खासकर जब उसे यह विश्वास हो कि उपज में सर्वप्रथम उसे सपरिवार के सुख के लिए खर्च करनाहै।