टॉम काका की कुटिया - 25 / हैरियट वीचर स्टो / हनुमान प्रसाद पोद्दार

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दिनों के बाद महीने और महीनों के बाद वर्ष, देखते-देखते सेंटक्‍लेयर के यहाँ टॉम के दो वर्ष यों ही बीत गए। टॉम ने अपने घर जो पत्र भेजा था, कुछ ही दिनों बाद उसके उत्तर में मास्‍टर जार्ज का पत्र आ पहुँचा। इस पत्र को पाकर टॉम को बड़ा आनंद हुआ। टॉम के छुटकारे के निमित्त क्‍लोई के लूविल में नौकरी करने जाने, टॉम के दोनों पुत्र मोज और पिटे बड़े आनंद में है और कुछ काम-काज करने लायक हो गए हैं, उसकी छोटी कन्‍या का भार सैली को सौंपा गया है, ये सब बातें इस चिट्ठी में लिखी हुई थीं। जार्ज अपने नए घोड़े की खरीद की बात भी लिखना नहीं भूला था। पत्र पाने के बाद से टॉम को जब फुर्सत मिलती, तभी वह उसे सामने रखकर बड़ी चाह से पढ़ने की चेष्‍टा करता था। इवा और टॉम में बड़ी देर तक इस बात पर आलोचना होती रही कि इस पत्र को शीशे के साथ एक सुंदर चौखटे में जड़वाकर दरवाजे पर लटकाना ठीक होगा या नहीं। अंत में बहुत सोच-विचार के बाद तय हुआ कि ऐसा करने से पत्र के दोनों हिस्‍से दिखाई नहीं पड़ेंगे, इससे चौखटे में जड़वाना ठीक नहीं।

टॉम और इवा का स्‍नेह दिन-दिन बढ़ता गया। टॉम इवा को बहुत प्‍यार करता था। जब बाजार जाता, उसके मन-बहलाव के लिए कोई अच्‍छी-सी चीज खरीद लाता। इवा को वह कभी फूलों का सुंदर गुच्‍छा, कभी सुंदर-सुंदर फूल चुनकर उसकी माला बना कर देता। इवा जब टॉम के पास बैठकर बाइबिल पढ़ती और धर्म-चर्चा करती, उस समय वह उसे मनुष्‍य-लोक की न मानकर, देव-लोक की कन्‍या समझकर, मन-ही-मन उसकी आराधना करता था।

गर्मी की ऋतु आ जाने के कारण सेंटक्‍लेयर शहर छोड़कर, वहाँ से कुछ दूर झील के किनारे अपने उद्यान में सपरिवार जाकर रहने लगा। वहाँ रोज शाम के समय इवा और टॉम बैठकर बाइबिल की चर्चा किया करते थे।

एक दिन रविवार को संध्‍या-समय वहीं टॉम के पास बैठी हुई इवा बाइबिल पढ़ रही थी। उसमें उसने पढ़ा - "स्‍वर्ग का राज्‍य बहुत पास है।" यह पढ़कर उसने कहा - "टॉम काका, मैं जाऊँगी।"

"कहाँ?"

"स्‍वर्ग के राज्‍य में।"

"स्‍वर्ग कहाँ है?"

इवा ने आकाश की ओर अंगुली उठाकर कहा - "वह स्‍वर्ग है। मैं जल्‍दी ही जाऊँगी।"

यह सुनकर टॉम के मन को बड़ा धक्‍का लगा। इवा का शरीर सूखते देखकर टॉम के हृदय में बड़ी चिंता रहा करती थी, खासकर इस बात से कि मिस अफिलिया कहा करती थी, इवा को जिस ढंग की खाँसी की बीमारी हो रही है, वह बीमारी किसी दवा से आराम नहीं होती। इस समय वह बात भी टॉम के मन में जाग उठी। टॉम इवा को देवकन्‍या समझता था। उसका खयाल था कि उसके मुँह से कभी कोई असत्‍य वचन नहीं निकलता। इससे आज की बात सुनकर टॉम के हृदय में किस भाव का उदय हुआ होगा, इसका सहज में अनुमान किया जा सकता है।

क्‍या कभी किसी के घर इवा-सरीखे बच्‍चे हुए हैं? हाँ, हुए हैं; पर उनका नाम समाधि के पत्‍थरों पर ही खुदा हुआ मिलता है। उनकी मधुर मुस्कान, उनके स्‍वर्गीय सुधावर्षी नयन, उनके साधारण वाक्‍य और आचरण गुप्‍त धन की भाँति केवल उनके स्‍नेही आत्‍मीयों ही के मन-मंदिर में छिपे पड़े रहते थे। कितने ही घरों की बात सुनी जाती है कि उस से एक बच्‍चा जाता रहा। उसका रंग-ढंग ऐसा सुंदर था कि उसके सामने और बालकों के रूप-गुण फीके थे। जान पड़ता है, मानो विधाता ने मनुष्‍यों के पापी मन को स्‍वर्ग की ओर खींचने के लिए वहाँ एक विशेष श्रेणी के देवदूतों का दल रख छोड़ा है। वे थोड़े दिनों के लिए शिशु के रूप में जन्‍म लेकर मृत्‍यु-लोक में आते हैं, और चारो ओर के विपथगामी हृदयों को अपने स्‍नेह-बंधन में इस तरह जकड़ लेते हैं कि जब वे अपने स्‍वदेश-स्‍वर्ग-को जाने लगें तो वे विपथगामी हृदय भी उन्‍हीं के साथ स्वर्ग को जा सकें। जिस शिशु के नेत्रों में यह आध्‍यात्मिक ज्‍योति दीख पड़े; या उसकी बातों में साधारण शिशुओं से कुछ विशेषता, मधुरता और विज्ञता का आभास मिले, तब जान लो कि वह इस जगत् में घर बनाने नहीं आया है, उसके बहुत दिनों तक पृथ्‍वी पर रहने की आशा में मत रहो; क्‍योंकि उसके ललाट में बिधना के अक्षर हैं, उसके नेत्रों में अमृत की किरणें हैं। इसी से तो स्‍नेह-धन इवा, घर की एकमात्र उज्‍जवल तारा, तू भी चली जा रही है; पर जो तुझे प्राणों से अधिक प्‍यार करते हैं, वे इस बात को नहीं जानते।

मिस अफिलिया के अकस्‍मात् झील के किनारे आकर इवा को पुकारने पर टॉम और इवा की बातें बंद हो गईं। मिस अफिलिया ने कहा - "इवा बेटी, बड़ी ओस गिर रही है। यह बाहर बैठने का समय नहीं है।"

इवा और टॉम दोनों अंदर चले गए।

बच्‍चों के पालन-पोषण के काम में मिस अफिलिया की निगाह बड़ी तेज थी। बच्‍चों के रोग बड़े सहज में जान लेती थी। इवा की सूखी खाँसी देखकर उसके मन में बड़ा खटका लग गया था। ऐसे रोग से उसने कितने ही बच्‍चों का जीवन नष्‍ट होते देखा था। वह अपनी आशंका कभी-कभी सेंटक्‍लेयर पर भी प्रकट करती थी, लेकिन वह उसकी बात पर ध्‍यान नहीं देता था, उल्‍टा कभी-कभी असंतुष्‍ट होकर कहता - "बहन, तुम्‍हारी ये आशंकाएँ मुझे नहीं भातीं। यों ही जरा-सी बात देखकर तुम लोग जमीन-आसमान एक करने लगती हो। इवा बढ़ रही है, इसी से वह दुबली जान पड़ती है। बच्‍चे जब बढ़ते हैं, तब हमेशा कमजोर हो जाते हैं।"

पर अफिलिया ने फिर कहा - "अगस्टिन, उसकी खाँसी बहुत बुरी है। इस रोग से जेन, ऐलेन, और सेंडर तीन को तो मैंने मरते देखा है।"

सेंटक्‍लेयर ने खीझकर कहा - "तुम अपनी ये फालतू बातें रहने दो। उसे रात को बाहर न निकलने दिया करो, बहुज ज्‍यादा खेलने भी मत दिया करो। इसी से वह अच्‍छी हो जाएगी।"

कहने को उसने अफिलिया को इस प्रकार कहकर टाल दिया, पर उसके मन में खटका लग गया और बेचैनी छा गई। उसने मन-ही-मन, 'रोग न सही, पर इसका यह धर्म-संबंधी गंभीर विषयों की बातें करना बड़े आश्‍चर्य में डालता है और मन में शंका उत्‍पन्‍न कर देता है।' वह सोचता - यह कैसे आश्‍चर्य की बात है कि इतनी बड़ी बालिका को जहाँ अपने खेल-कूद में ही मस्‍त रहना चाहिए, वहाँ अभी से दूसरे का दु:ख देखकर उसका हृदय विदीर्ण होने लगता है। संसार में व्‍याप्‍त अत्‍याचार और उत्‍पीड़न की बात सोचकर जब इवा बड़ी दु:खी होती और रोने लगती, उस समय सेंटक्‍लेयर उसे जोर से अपनी छाती से चिपटा लेता।

इवा ने एक दिन एकाएक अपनी माँ से कहा - "हम लोग अपने गुलामों को पढ़ना क्‍यों नहीं सिखाते?"

मेरी बोली - "यह क्‍या सवाल है। कोई भी उन्‍हें पढ़ना नहीं सिखाता।"

"क्‍यों नहीं सिखाते?"

"इसलिए कि उससे उनका कोई मतलब सिद्ध नहीं होगा। वे संसार में केवल काम करने के लिए बनाए गए हैं। पढ़ाई से उन्‍हें किसी तरह की मदद न मिलेगी।"

इवा ने कहा - "माँ, मेरी समझ में हरएक इंसान को बा‍इबिल पढ़ना आना चाहिए। वे पढ़ लेंगे तो बाइबिल तथा और? आप ही पढ़ते रहेंगे।"

"इवा, तू बड़ी अनोखी लड़की है।"

"बुआ ने टप्‍सी को बा‍इबिल सिखाया है।"

मेरी ने कहा - "हाँ, पर तू देखती है कि टप्‍सी क्या बाइबिल पढ़कर सुधर गई?" उस-जैसी तो पाजी लड़की ही मैंने नहीं देखी।

इवा बोली - "मामी को बाइबिल से बड़ा प्रेम है, वह चाहती है कि उसे पढ़ ले...। और जब मैं उसे पढ़कर नहीं सुना सकूँगी तब वह क्‍या करेगी।"

इवा जब ये बातें कर रही थी, उसी समय उसकी माँ एक संदूक की चीजें ठीक कर रही थी। इवा की बातें समाप्‍त होने पर उसकी माँ ने कहा - "इवा, ये बातें जाने दे। तू जन्‍म भर इन नौकरों के सामने बाइबिल ही नहीं पढ़ती रहेगी। बड़ी होने पर सज-धजकर समाज में आना-जाना पड़ेगा। तब फिर तुझे बाइबिल पढ़ने का समय न रहेगा। यह देख, यह हीरे का हार मैं तुझे बाहर आने-जाने लगने पर दूँगी। मैं पहले-पहल जिस दिन यह हार पहनकर दावत में गई थी, उस दिन, मैं तुझसे कहती हूँ इवा, कितनों की आँखें मैंने चकाचौंध कर दी थीं।"

इवा ने उस हार को हाथ में लेकर अपनी माँ से पूछा - "माँ, क्‍या यह हार बहुत कीमती है?"

मेरी बोली - "निश्‍चय ही बड़ा कीमती है। पिता ने यह फ्रांस से मँगवाया था। एक साधारण गृहस्‍थ की सारी संपत्ति भी इसके सामने कुछ नहीं।"

इवा ने कहा - "मैं इसे इस शर्त पर लेना चाहती हूँ कि जो मेरे जी में आएगा, इसका करूँगी।"

"तू इसका क्‍या करना चाहती है?"

"मैं इसे बेचूँगी और स्‍वतंत्र देश में जमीन खरीदूँगी। फिर वहाँ अपने सब गुलामों को लेकर मास्‍टर रखकर उनको पढ़ना-लिखना सिखाऊँगी।"

इवा की बात से उसकी माँ को इतनी हँसी आई कि आगे की बातें बीच में ही रह गईं।

"बोर्डिंग स्‍थापित करेगी। उन्‍हें तू पिआनो बजाना और मखमल पर बेल-बूटे काढ़ना नहीं सिखलाएगी?"

इवा ने बड़ी दृढ़ता से कहा- "मैं उन्‍हें बाइबिल पढ़ना, पत्र लिखना और पत्र पढ़ना सिखलाऊँगी। माँ, मैं जानती हूँ कि वे अपने पत्र अपने हाथ से नहीं लिख सकते, और अपने पत्र अपने आप पढ़ भी नहीं सकते, इससे उनके मन को बड़ा कष्‍ट होता है। टॉम को, मामी को, बहुतों को इससे बड़ा दु:ख होता है।"

मेरी ने कहा - "चुप रह! तू अजीब ही लड़की है। इन बातों के विषय में कुछ जानती-बूझती नहीं है। तेरी बातों से तो मेरा सिर दुखने लगता है।"

इवा चुप हो गई। मेरी की आदत थी कि जब कोई उसकी मर्जी के खिलाफ बातें करने लगता, तब उसका सिर दुखने लगता था।