टॉम काका की कुटिया - 30 / हैरियट वीचर स्टो / हनुमान प्रसाद पोद्दार

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इवान्‍जेलिन की निर्मल आत्‍मा मंगलमय के मंगल-धाम को चली गई। जीवन से शून्‍य शरीर घर में पड़ा हुआ है। उसके शयनागार में रखी पत्‍थर की मूर्तियों और चित्र आदि को सफेद वस्‍त्रों से ढक दिया जाता है। घर में गहरा सन्‍नाटा है। बीच-बीच में पैरों की मंद-मंद आहट सुनाई पड़ जाती है। बंद खिड़कियों से बाहर की धुँधली रोशनी अंदर आकर घर के सन्‍नाटे को और भी बढ़ा रही है।

बिस्‍तर सफेद चादर से ढका पड़ा है और उसी पर वह नन्‍हीं सोयी हुई है - ऐसी नींद में, जो कभी खुलने की नहीं।

बालिका की देह लतिका पहले की तरह श्‍वेत वस्‍त्रों में लिपटी हुई है। उषा की किरणें यवनिका को पार करके मृत्यु के पंजे में पड़े, शीत से जड़ शरीर पर प्रभा बिखेर रही हैं। सिर एक ओर को झुका हुआ है, मानो बालिका सचमुच सो रही हो। समग्र आनंद-व्‍यापिनी शोभा, आनंद और शांति की अपूर्व सम्मिलन-श्री देखने से ही पता लगता है कि यह नींद क्षणिक नहीं है। यह लंबी नींद आत्‍मा का अनंत-पवित्र विश्राम है।

इवा, तुम-सरीखी देवियों की मृत्‍यु नहीं होती, न मृत्‍यु की छाया है और न अंधकार। जिस प्रकार प्रात:काल के प्रकाश में शुक्र तारा छिप जाता है, उसी प्रकार तुम लोगों की आँखों से ओझल हो गई हो। बिना युद्ध किए ही तुमने गढ़ जीत लिया है, बिना विरोध के राजमुकुट प्राप्‍त कर लिया है।

सेंटक्‍लेयर शय्या के पास खड़ा हुआ एकटक उसकी ओर देख रहा है, मानो वह किसी विचार में मग्‍न होकर कुछ सोच रहा हो, पर कौन जाने, क्‍या सोच रहा है... उसे चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार दिखाई दे रहा है।

रोडाल्‍फ और रोजा, दोनों मृत बालिका के कमरे और शय्या को भाँति-भाँति के फूलों से सजा रहे हैं। उनकी आँखों से आँसुओं की धार बह रही है।

कमरे में अब भी पहले दिन के फूलों के ढेर पड़े हैं। इवा की मेज पर यत्‍नपूर्वक सजाए गुलदस्‍ते में केवल एक गुलाब की कली है। तभी रोजा एक डलिया भर फूल लेकर घर में आई, किंतु सेंटक्‍लेयर को सामने देखकर सम्‍मान से पीछे हट गई। सेंटक्‍लेयर ने उसकी ओर ध्‍यान नहीं दिया, यह देखकर वह फिर आगे बढ़ी और मृत देह के चारों ओर फूलों को बड़ी सुघड़ता से सजा दिया। बालिका के सुंदर हाथ में एक सुगंधित पुष्‍प देकर वह चली गई। सेंटक्‍लेयर ऐसे देखता रहा, मानो कोई स्‍वप्‍न देख रहा हो।

इतने में टप्‍सी अपने अंचल में एक फूल छिपाए हुए वहाँ आई। रोते-रोते उसकी दोनों आँखें सूज गई थी। उसे देखते ही रोजा ने चुपके से कहा - "भाग-भाग, यहाँ तेरा क्‍या काम?"

टप्‍सी ने अंचल से एक अधखिला गुलाब का फूल निकालकर कातरता से कहा - "देखो, मैं यह कैसा सुंदर फूल लाई हूँ!... मुझे जाने दो... मैं इसे वहाँ रखूँगी।"

रोजा ने दृढ़ता से कहा - "भाग जा!"

सहसा सेंटक्‍लेयर ने टोककर कहा - "उसे मत रोको, आने दो!"

रोजा पीछे हट गई। टप्‍सी ने धीरे-धीरे बिस्‍तर के पास आकर वह फूल उसके पैरों पर रख दिया और धरती पर लोटकर जोर-जोर से रोने-चीखने लगी। मिस अफिलिया वहाँ गई और उसे उठाकर समझाने की चेष्‍टा करने लगी, पर उसको सफलता न मिली। टप्‍सी रो-रो कहती थी - "मिस इवा, मिस इवा, मैं भी तुम्‍हारे साथ चलना चाहती हूँ।... मुझे भी ले चलो।"

बालिका का मर्म-भेदी क्रंदन सुनकर सेंटक्‍लेयर का पथराया हुआ सफेद चेहरा एकदम सुर्ख हो गया। इवा की मृत्‍यु के बाद अब उसकी आँखों से आँसू गिरे।

मिस अफिलिया ने बड़े स्‍नेह से कहा - "टप्‍सी, रो मत। मिस इवा स्‍वर्ग में गई है।"

टप्‍सी ने सिसकते हुए कहा - "मुझे तो वह नहीं दिखाई पड़ती हैं।... अब मुझे वह कभी नहीं दिखाई पड़ेंगी।"

पल भर के लिए सब चुप हो गए।

टप्‍सी ने फिर कहा - "मिस इवा मुझे प्‍यार करती थीं। उन्‍होंने स्‍वयं कहा था कि वह मुझे प्‍यार करती हैं। हाय, अब तो मेरा कोई भी नहीं रहा! अब मुझे कौन प्‍यार करेगा?"

सेंटक्‍लेयर ने ठंडी साँस लेकर मिस अफिलिया से कहा - "बहन, इवा टप्सी को सचमुच प्‍यार करती थी। तुम इस बेचारी बालिका को समझाकर शांत करो।"

मिस अफिलिया अश्रु-पूर्ण नेत्रों से टप्‍सी को घर से बाहर ले गई और उससे कहने लगी - "टप्‍सी, तू दु:खी मत हो, मैं तुझसे प्‍यार करूँगी। इवा ने मुझे प्‍यार करना सिखाया है। मैं उसके जैसे दिल की तो नहीं हूँ, तो भी तुझे प्‍यार करूँगी, तुझे प्‍यार की निगाह से देखूँगी, अच्‍छी सीख दूँगी और अच्‍छे रास्‍ते पर लाने की चेष्‍टा करूँगी।"

मिस अफिलिया को सरलता और स्‍नेह से यों बोलते देखकर आज टप्‍सी का हृदय उसकी ओर खिंच गया। वास्‍तव में स्‍नेह की पहचान बहुत जल्‍दी हो जाती है। निश्‍छल प्रेम और सहज स्नेह के प्रभाव से पत्‍थर का हृदय भी मोम हो जाता है। टप्‍सी का परिवर्तन देखकर सेंटक्‍लेयर अपने-आप कहने लगा - "हाय, मेरी इवा! इस संसार में बहुत थोड़े दिन ही रहकर तूने कितना अच्‍छा काम कर दिखाया! पत्‍थर-से दिल को कोमल बना दिया। पर मैंने अपनी इतनी बड़ी जिंदगी बेकार ही गँवाई, कुछ भी नहीं किया! मैं ईश्‍वर के सामने ऐसे जीवन के लिए क्‍या जवाब दूँगा?"

दिन अच्‍छी तरह चढ़ आया। चारों ओर से आत्‍मीय जन आए, पड़ोसी आए, सारा घर भर गया। मधुर प्रतिमा इवान्‍जेलिन की देह को ताबूत में रखकर उसका मुँह बंद किया गया। बगीचे में जहाँ बैठकर इवा और टॉम बाइबिल पढ़ा करते थे, वहाँ उस ताबूत को दफन कर दिया गया। सेंटक्‍लेयर खड़ा होकर देखने लगा। वह सोचता था, यह स्‍वप्‍न है या सच्‍ची घटना! क्‍या सचमुच आज मेरी प्राणाधार इवा धरती में समा गई! नहीं, वह देवकन्‍या धरती में नहीं समाई। यह तो उसकी काया..., पुराना कपड़ा था। आज इवा ने पुराना चोला त्‍यागकर नए चोले में स्‍वर्ग को कूच किया है। कौन है, जो उसका अमरत्‍व मिटा सके? इवा मर नहीं सकती। अंतिम क्रिया पूरी हुई।

इवा की जननी मेरी विलाप करने लगी। घर के सारे दास-दासियों को असह्य शोक हुआ था, पर उन्‍हें अपने शोक में रोने-पीटने की फुरसत ही नहीं मिलती थी। मेरी सबका नाकों दम किए रहती थी। शायद वह समझती थी कि संसार में दु:ख, शोक तथा प्‍यार और किसी के हृदय में प्रवेश नहीं कर सकता। यह सब केवल उसी की बपौती है। जब-तब मेरी कहा करती थी कि उसके स्‍वामी की आँखों से एक बूँद आँसू तक तो गिरा ही नहीं। वह एक बार भी उसे धीरज बँधाने नहीं आया। उसने एक बार भी उसके इस शोक में सहानुभूति प्रकट नहीं की, उसके स्‍वामी-जैसा कठोर हृदय आदमी इस संसार में दूसरा नहीं है।

कभी-कभी ये आँखें और कान मनुष्‍य को बड़ा धोखा देते हैं। ये दोनों इंद्रियाँ केवल बाहरी चीजों को देखती हैं। अंत:करण का गूढ़ भाव नहीं देख पातीं। इसलिए जो लोग केवल बाहरी बातों पर दृष्टि डालकर भले-बुरे का फैसला कर लेते हैं, वे सहज में धोखा खा जाते हैं। मेरी का यह बाहरी रुदन सुनकर टॉम और अफिलिया के सिवा सेंटक्‍लेयर के घर के कई दास-दासी समझते थे कि इवा की मृत्‍यु का मेरी को ही सबसे अधिक दु:ख है। सेंटक्‍लेयर के हृदय के गहरे शोक को टॉम सहज में जान गया। इसी से वह इवा की मृत्‍यु के उपरांत कभी अपने मालिक का साथ नहीं छोड़ता था। कभी-कभी वह बड़े उदास भाव से इवा के कमरे में बैठता, उसकी छोटी बाइबिल को उठाकर खोलता और फिर बंद करता। यद्यपि उसमें से वह कुछ भी पढ़ता नहीं था, तथापि उस समय उसके हृदय में जैसी विकट यंत्रणा होती थी, इसे टॉम के सिवा और कोई नहीं समझ सकता था। ऐसे नि:शब्‍द आंतरिक शोक से हृदय जितना जलता था, उसका शतांश भी मेरी की बाहरी चिल्‍लाहट से नहीं जलता था।

कुछ दिनों बाद सेंटक्‍लेयर अपने बागवाले घर को छोड़कर परिवार सहित नगरवाले मकान में आ गया। अपने हृदय की असह्य शोक-यंत्रणा को घटाने के लिए वह हर समय किसी-न-किसी काम में लगा रहता। वह पहले की भाँति सब से हँसता-बोलता था। यदि वह शोक-चिह्न धारण न किए होता तो कोई जान भी नहीं सकता था कि उसकी संतान की मृत्‍यु हो गई है।

एक दिन मिस अफिलिया से मेरी ने शिकायत के ढंग से कहा - "बहन, सेंटक्‍लेयर भी क्‍या अजीब आदमी है! मैं समझा करती थी कि संसार में यदि सेंटक्‍लेयर किसी को सबसे अधिक प्‍यार करते हैं तो बस इवा को; पर वह उसे भी बड़ी जल्‍दी भूल गए जान पड़ते हैं। कभी भूलकर भी उसका नाम नहीं लेते। मैंने सोचा था कि उन्‍हें इसका बहुत दु:ख होगा, पर मेरा यह खयाल गलत निकला।"

अफिलिया बोली - "बात यह है कि अथाह जल अंदर-ही-अंदर जोरों से बहा करता है।"

मेरी ने प्रतिवाद किया - "मैं इन बातों को नहीं मानती। ये सब कोरी बातें-ही-बातें हैं। यदि मनुष्‍य के मन में दु:ख होगा तो वह उसे अवश्‍य प्रकट करेगा। बिना प्रकट किए रहा ही नहीं जाएगा। पर मनुष्‍य के मन में किसी बात के लिए दु:ख होना दुर्भाग्य की निशानी है। भगवान ने यदि मुझे भी सेंटक्‍लेयर की भाँति निर्दयी बनाया होता तो मैं क्‍यों दु:ख सहती। मुझमें थोड़ी ममता है, यही मेरी जान लिए लेती है।"

मामी ने कहा - "मेम साहब, आप यह क्‍या कहती हैं! बेचारे साहब दिन-ब-दिन शोक में सूखे जा रहे हैं। इवा की मृत्‍यु के उपरांत किसी दिन पेट भर भोजन नहीं किया।" फिर उसने आँसू बहाते हुए कहा - "मैं जानती हूँ कि साहब मिस इवा को कभी भूल नहीं सकते; साहब ही क्‍या, उस नन्‍हीं प्‍यारी बालिका को कोई भी नहीं भूल सकता।"

मेरी बोली - "यह सब होने पर भी वह मेरा कभी खयाल नहीं करते। उन्‍होंने मुझसे कभी सहानुभूति का एक शब्‍द भी नहीं कहा। वह यह बात नहीं जानते कि पिता की अपेक्षा माँ को संतान का कितना अधिक दु:ख होता है!"

मिस अफिलिया ने गंभीरता से कहा - "हर एक का हृदय ही अपने-अपने दु:ख हो जानता है। दूसरे के दु:ख को और कोई क्‍या समझेगा?"

मेरी बोली - "मैं भी यही समझती हूँ। मुझे जितना दु:ख है, उसे दूसरा कौन समझेगा? इवा समझती थी, सो चली गई।" इतना कहकर वह अपने पलंग पर लेट गई और बड़ी बेसब्री से सिसकने लगी।

इधर ये बातें हो रही थीं, उधर सेंटक्‍लेयर की लाइब्रेरी के कमरे में और चर्चा चल रही थी। पहले कहा जा चुका है कि इवा की मृत्‍यु के बाद टॉम सदा अपने मालिक के पीछे-पीछे लगा रहता था। आज सेंटक्‍लेयर अपनी लाइब्रेरीवाले कमरे में गया। टॉम बाहर बैठा बाट देखता रहा। जब देर होने पर भी वह बाहर न निकला तब टॉम धीरे-धीरे कमरे के अंदर गया। वहाँ जा कर देखा कि मालिक इवा की नन्‍हीं बाइबिल को मुख पर रखे हुए पड़े हैं। टॉम चुपचाप उनकी आराम-कुर्सी के पास जाकर खड़ा हो गया। सेंटक्‍लेयर उसे देखते ही उठ बैठा। टॉम के मुख की ओर आँखें फेरते ही दयालु सेंटक्‍लेयर का हृदय भर आया। सरलता और साधुता से परिपूर्ण टॉम का मुख-मंडल स्‍वामी के दु:ख से एकदम मलिन पड़ गया। उस मुँह से कोई वाक्‍य नहीं निकला, पर मुख की कातरता और करुणा का भाव प्रभु के दु:ख में स्‍पष्‍ट रूप से सहानुभूति प्रकट कर रहा था।

कुछ देर बाद सेंटक्‍लेयर ने कहा - "टॉम, इस संसार में सब-कुछ असार है।"

टॉम बोला - "मैं जानता हूँ प्रभु, सब-कुछ असार है, पर स्‍वर्ग की ओर, जहाँ इस समय हम लोगों की इवा है, ईश्‍वर की ओर निगाह रखने से कल्‍याण होगा।"

सेंटक्‍लेयर ने कहा - "टॉम, मैं स्‍वर्ग की ओर निगाह डालता हूँ और ईश्‍वर की ओर देखने की चेष्‍टा करता हूँ, पर मुझे कुछ नहीं दिखाई देता। यदि कुछ दीख पड़ता तो मन को संतोष दिला सकता।"

टॉम ने एक दीर्घ नि:श्‍वास छोड़ा।

सेंटक्‍लेयर ने फिर कहा - "टॉम, मैं समझता हूँ कि निर्मल चरित्र शिशुओं को और तुम-सरीखे सरस और साधु-प्रकृति के लोगों को ही ईश्‍वर दिव्‍य दृष्टि देता है, हम-जैसों को नहीं; इसी से तुम लोग स्‍वर्ग की बातें जान सकते हो।"

टॉम बोला - "प्रभु, बाइबिल का मत है कि जो ज्ञान का अभिमान करते हैं और कानून की दुहाई देते हैं उन्‍हें ईश्‍वर के दर्शन नहीं होते। जिनका चित्त बालक की भाँति सरल है, उन्‍हीं को भगवान के दर्शन मिलते हैं।"

सेंटक्‍लेयर ने कहा - "टॉम, बाइबिल पर मेरा विश्‍वास नहीं है। अपनी शंकालु प्रकृति के कारण किसी बात पर मेरा विश्‍वास नहीं जमता। मैं चाहता तो हूँ कि बाइबिल पर मेरा विश्‍वास जम जाए, पर ऐसा होता नहीं।"

टॉम ने कहा - "प्रभु, आप ईश्‍वर से प्रार्थना कीजिए कि हे भगवान! मेरे मन के संदेहों को दूर कर दो।"

टॉम की यह बात सुनकर सेंटक्‍लेयर स्‍वप्‍न में पड़े हुए मनुष्‍य की भाँति बोला - "कोई बात समझ में नहीं आती। क्‍या संसार का यह प्रेम, विश्‍वास और भक्ति सभी निरर्थक हैं? क्‍या मृत्‍यु के साथ-साथ इन सबका नाश हो जाता है? क्‍या मेरी इवा नहीं? क्‍या स्‍वर्ग नहीं है? क्‍या ईश्‍वर नहीं? क्‍या कुछ नहीं है?"

टॉम ने घुटने टेककर कहा - "प्रभु, सब-कुछ है। मैं भली-भाँति जानता हूँ कि सब कुछ है। आप इन सब पर विश्‍वास करने की चेष्‍टा कीजिए, चेष्‍टा कीजिए।"

सेंटक्‍लेयर बोला - "तुमने कैसे जाना कि ईश्‍वर है? तुमने तो कभी ईश्‍वर को देखा नहीं।"

टॉम ने कहा - "मैंने अपनी आत्‍मा के अंदर उसे जाना है। इस समय भी वह मेरे अंदर है। प्रभु, जब मैं अपने बाल-बच्‍चों से अलग करके बेच डाला गया, उस समय एकदम निराश हो गया था। मेरे मन में तनिक भी बल न रहा और तब मैंने निराश होकर ईश्‍वर को पुकारा। इससे अकस्‍मात् मेरे मन में शक्ति पैदा हो गई और मेरे अंदर से आवाज आई कि 'टॉम, डरो मत, मैं तुम्‍हारे साथ हूँ।' इससे मेरे सारे दु:ख दूर हो गए और हृदय में आशा जाग उठी। प्रभु, क्‍या अपने-आप मन में ऐसा भाव आ सकता है? अंदर बैठे हुए परमात्‍मा ने ही मेरे मन को बल दिया था।"

ये बातें कहते समय टॉम का हृदय भक्ति और प्रेम से भर गया। उसकी आँखों से पानी की गंगा-यमुना बहने लगीं। सेंटक्‍लेयर ने उसके कंधे पर सिर रखकर और उसके काले हाथ पकड़कर कहा - "टॉम, तुम मुझे प्‍यार करते हो?"

टॉम बोला - "प्रभु, यदि मेरे प्राण देने से भी ईश्‍वर में आपकी भक्ति और विश्‍वास हो जाए, तो यह दास अभी खुशी-खुशी अपने प्राण देने को तैयार है।"

सेंटक्‍लेयर ने द्रवित होकर कहा - "मेरे भोले भाई, मेरे लिए प्राण दोगे? मैं तो तुम्‍हारे-जैसे साधु और सहृदय मनुष्‍य के स्‍नेह के योग्‍य भी नहीं हूँ।"

टॉम बोला - "प्रभु, मेरी अपेक्षा ईश्‍वर आपको हजार गुना ज्‍यादा प्‍यार करते हैं।"

सेंटक्‍लेयर ने पूछा - "टॉम, यह तुम कैसे जानते हो?"

टॉम ने कहा - "मेरी आत्‍मा में इसका अनुभव होता है। प्रभु, मिस इवा मुझे बड़ी अच्‍छी तरह बा‍इबिल पढ़कर सुनाया करती थी। उसके बाद किसी ने नहीं सुनाई। आप थोड़ा-सा पढ़कर सुनाइए।"

सेंटक्‍लेयर ने बाइबिल में से लाजरस के उद्धार का वृत्तांत पढ़ा। टॉम भक्ति-भाव से हाथ जोड़कर उसे सुन रहा था। समाप्‍त होने पर सेंटक्‍लेयर ने पूछा - "टॉम, क्‍या तुम्‍हें ये सब बातें सच्‍ची जान पड़ती हैं?"

टॉम बोला - "प्रभु, मुझे ये सब बातें साफ दिखाई पड़ रही हैं।"

सेंटक्‍लेयर ने विभोर होकर कहा - "टॉम, मुझे तुम्‍हारी आँखें मिल जातीं तो अच्‍छा होता।"

टॉम ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया - "ईश्‍वर आप पर अवश्‍य दया करेंगे।"

"लेकिन टॉम, तुम जानते हो कि तुमसे मेरा ज्ञान कहीं अधिक बढ़ा-चढ़ा है। मैं यदि तुमसे कहूँ कि मैं इस बाइबिल पर विश्वास नहीं करता तो इससे क्‍या तुम्‍हारे हार्दिक विश्‍वास को कुछ ठेस पहुँचेगी?"

"रत्ती भर भी नहीं।" टॉम ने कहा।

सेंटक्‍लेयर बोला - "क्‍यों टॉम, तुम तो जानते हो कि मैं तुमसे अधिक पढ़ा-लिखा हूँ।"

टॉम बोला - "प्रभु, अभी आप ही ने तो कहा है कि ईश्‍वर को वे लोग नहीं देख सकते, जिन्‍हें अपने ज्ञान का अभिमान है। बालकों-जैसे विश्‍वासियों को ही भगवान के दर्शन मिलते हैं। जान पड़ता है, आप मेरे हृदय की परीक्षा ले रहे हैं। ये आपके हृदय के सच्‍चे भाव नहीं हैं।"

सेंटक्‍लेयर ने कहा - "हाँ, मैंने तुम्‍हारी परीक्षा के लिए ही ऐसा कहा था। मैं बाइबिल पर अविश्‍वास नहीं करता। इसमें शक नहीं कि धर्म-शास्‍त्र युक्ति-संगत है। पर खेद है कि मेरा स्‍वभाव बिगड़ा हुआ है।"

"प्रभु, प्रार्थना से सुधर जाएगा।" टॉम ने धीमे स्‍वर में कहा।

"टॉम, तुम कैसे जानते हो कि मैं प्रार्थना नहीं करता?" सेंटक्लेयर ने पूछा।

टॉम बोला - "प्रभु, क्‍या आप प्रार्थना करते हैं?"

"मैं अवश्‍य करता, पर किसके सामने करूँ, कुछ भी तो नहीं दिखाई देता। किंतु टॉम, तुम इस समय प्रार्थना करो, मैं सुनता हूँ।" सेंटक्‍लेयर ने एक साँस में कहा।

टॉम बड़े भक्ति-भाव से ईश्‍वर की प्रार्थना करने लगा। उसकी सरल प्रार्थना से सेंटक्‍लेयर का हृदय भर आया। प्रार्थना की धारा में उसका मन स्‍वर्ग की ओर बह चला। उसने प्रत्‍यक्ष ही अनुभव किया कि इवा अमृतमय की अमृत-गोद में विराज रही है।

टॉम की प्रार्थना समाप्‍त होने पर सेंटक्‍लेयर ने कहा - "टॉम, तुम जब-तब मेरे सामने ऐसे ही प्रार्थना किया करो। परंतु इस समय तुम मुझे थोड़ी देर एकांत में रहने की छुट्टी दो। मैं और किसी समय तुमसे अधिक बातें करूँगा।"

टॉम चुपचाप उस कमरे से चला गया।