टॉम काका की कुटिया - 32 / हैरियट वीचर स्टो / हनुमान प्रसाद पोद्दार

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गुलामों के मालिक के मर जाने पर या कर्जदार हो जाने पर गुलामों पर बड़ी विपत्ति आया करती है। इस दशा में पहले मालिक के उत्तराधिकारी या उनके महाजन इन अभागे, असहाय तथा अनाथ गुलामों को प्राय: नीलाम कर डालते हैं। उस समय माता की गोद से बालक को और स्‍वामी के पास से स्‍त्री को अलग होना पड़ता है।

जिस बच्‍चे के माँ-बाप मर जाते हैं और उनका पालन-पोषण उसके आत्‍मीय जन करते हैं, उसे देशप्रचलित कानून के अनुसार, मनुष्‍य के अधिकारों से वंचित नहीं होना पड़ता। पर क्रीत दासों को किसी प्रकार के मानवीय स्‍वत्‍व प्राप्‍त नहीं है। घर की दूसरी वस्‍तुओं की भाँति इनका भी क्रय-विक्रय होता है।

सेंटक्‍लेयर की मृत्‍यु से उसके दास-दासी बहुत सोच में पड़ गए। सभी के मन में चिंता होने लगी कि आगे न जाने कैसे निर्दयी के हाथ में पड़ना पड़ेगा। सेंटक्‍लेयर का-सा दयालु मालिक दास-प्रथा के चलन के इस देश में मिलना एकदम मुश्किल है। ऐसे सहृदय मालिक को खोकर दास-दासियों को कितना शोक हुआ होगा, इसका सहज ही अनुमान किया जा सकता है।

मेरी सेंटक्‍लेयर ने अपने को छूट दे-देकर शरीर और मन को बिल्‍कुल निकम्‍मा कर लिया था। अत: स्‍वामी की मृत्‍यु के समय धीर चित्त से उसकी परिचर्या करना तो दूर, उसके सामने खड़ी भी न हो सकी। भय के कारण वह बार-बार बेहोश होने लगी। जिसके साथ मेरी पवित्र बंधन में बँधी थी, वह पत्‍नी से कुछ कहे बिना ही सदा के लिए बिदा हो गया।

मिस अफिलिया ने अंतिम समय तक तन-मन से सेंटक्‍लेयर की सेवा-शुश्रूषा की। अफिलिया के सिवा इन बेचारे गुलामों पर और कोई करुणा की दृष्टि डालनेवाला न था। इसी से सब-के-सब अब व्‍याकुल-चित्त से मिस अफिलिया की ओर देखते थे।

जिस समय सेंटक्‍लेयर की लाश कब्र में दफनाई जाने लगी, उस समय उसकी छाती पर एक स्‍त्री का छोटा-सा चित्र और उसी के पीछे एक गुच्‍छा बालों का लगा हुआ मिला। गाड़ने के समय वह सैकड़ों आशाओं का, स्‍वप्‍नमय तरुण जीवन का, स्‍मृति-चिह्न उसके निष्‍प्राण वक्षस्‍थल पर ही रख दिया गया।

टॉम का मन परलोक की चिंता में डूब गया। एक बार भी उसके मन में यह बात न आई कि सेंटक्‍लेयर की आकस्मिक मृत्‍यु के कारण अब उसे जन्‍म भर के लिए दासता की बेड़ियों में ही जकड़े रहना पड़ेगा। उसने मालिक की मृत्‍यु के समय बड़े भक्ति-भाव और विश्‍वास के साथ परमात्‍मा की प्रार्थना की। उसे इस बात का विश्‍वास हो गया कि परमेश्‍वर ने उसकी प्रार्थना स्‍वीकार कर ली। इससे उसे अंदर-ही-अंदर बड़ी शांति प्राप्‍त हुई।

काले वस्‍त्रों के आडंबर, पादरियों की अभ्‍यस्‍त प्रार्थना और बाह्य गंभीरता के साथ सेंटक्‍लेयर की अंत्‍येष्टि-क्रिया समाप्‍त हुई। फिर सदा से जो होता आया है, वही प्रश्‍न सबके सामने आया - इसके बाद क्‍या करना होगा?

उदास दास-दासियों से घिरे, शोकसूचक काले वस्‍त्रों के नमूने देखते हुए, मेरी के मन में यही सवाल पैदा हुआ। मिस अफिलिया के मन में यह बात उठी तो उसने उत्तर में अपने पिता के घर लौट जाने की ठानी। पर उन अनाथ गुलामों के मन में यह प्रश्‍न उठते ही उनकी जान सूख गई। अब जिसके हाथ में उनकी लगाम आई थी, उसकी कठोरता किसी से छिपी न थी। वे खूब जानते थे कि अब तक वह सेंटक्‍लेयर के कारण ही उनपर अत्‍याचार नहीं करने पाती थी, पर अब जान बचने की कोई सूरत न रही।

सेंटक्‍लेयर की अंत्‍येष्टि-क्रिया के पंद्रह दिन बाद की बात है। एक दिन मिस अफिलिया अपने कमरे में बैठी हुई कुछ काम कर रही थी, इतने में किसी ने धीरे-से उसका दरवाजा खटखटाया। उसने दरवाजा खोल कर देखा कि बाहर वर्ण-संकर सुंदरी युवती रोजा खड़ी है। उसके बाल बिखरे हुए थे और रोते-रोते उसकी आँखें सूज गई थीं।

रोजा मिस अफिलिया के पैरों पर गिर पड़ी और उसके कपड़े का कोना पकड़कर रोते-रोते कहने लगी - "मिस फीली, मेरी तरफ से मेरी मालकिन को कुछ कहिए, मेरी जान बचाइए। वह बेंत लगवाने के लिए मुझे दंड-गृह भेज रही हैं। यह देखिए!" इतना कहकर उसने मिस अफिलिया के हाथ में एक कागज थमा दिया। इस कागज में दंड-गृह के अध्‍यक्ष को लिखा गया था कि रोजा को पंद्रह कोड़े लगाए जाएँ।

मिस अफिलिया ने कहा - "बात क्‍या थी?"

रोजा बोली - "मिस फीली, आप जानती हैं, मेरा मिजाज बड़ा खराब है। मुझे जरा सी बात में गुस्‍सा आ जाता है। मैं मालकिन का कपड़ा अपने बदन पर पहन कर देख रही थी। इस पर उन्‍होंने मेरे गाल पर एक थप्‍पड़ जमा दिया। इससे मुझे गुस्‍सा आ गया। बिना सोचे-विचारे जो भला-बुरा मेरे मुँह से निकला, मैं बक गई। इस पर मालकिन ने कहा, 'देख, अब तेरा सिर चढ़ना कैसे उतारती हूँ। तब तू समझेगी कि मैं कौन हूँ। तेरा यह घमंड अधिक दिन तक नहीं टिकेगा'।"

कागज हाथ में लिए हुए खड़ी मिस अफिलिया सोचने लगी।

रोजा ने कहा - "मिस फीली, देखिए, मैं मार से नहीं डरती। यदि मालकिन या आप घर बिठाकर पचास बेंत लगावें तो कोई शर्म नहीं। पर मर्द के पास भेजना, और वह भी ऐसे भयंकर नीच के पास - कैसी शर्म की बात है!"

मिस अफिलिया ने पहले भी यह सुन रखा था कि गुलामी की प्रथावाले प्रदेशों में, दासों के मालिक युवती दासियों को बड़ी नीच प्रकृतिवाले पुरुषों के पास दंड देने को भेजते हैं। इन अभागिनों को इस तरह दंड मिलने में लज्‍जा, शील और यहाँ तक कि मनुष्‍यता को भी तिलांजलि दे देनी पड़ती थी। पर इस प्रकार दंड मिलने से स्त्रियों को कैसा भयंकर कष्‍ट होता था, यह बात कानों से सुनकर भी हृदय में बैठी नहीं थी। आज भय और दु:ख से थर-थर काँपती हुई रोजा को देखकर सब बातें हृदय में अंकित हो गईं।

घृणा से मिस अफिलिया का चेहरा लाल हो गया। किंतु उसने कागज को मजबूती से अपने हाथ में थाम रख रोजा से कहा - "बच्‍ची, तुम यहाँ बैठो। मैं तुम्‍हारी मालकिन के पास जाती हूँ।"

अफिलिया ने मेरी के पास जाकर देखा, वह कुर्सी पर बैठी हुई है, उसकी आँखें अधखुली हैं। मामी पीछे खड़ी उसके बाल झाड़ रही है और जेन जमीन पर बैठी उसके पैर दबा रही है।

मिस अफिलिया ने उससे पूछा - "कहिए, आज आपकी तबीयत कैसी है?"

सुनते ही मेरी ने ठंडी साँस लेकर आँखें बंद करते हुए कहा - "जैसी हमेशा रहती हूँ वैसी ही हूँ।" यह कहकर उसने एक बढ़िया रूमाल से आँखें पोंछीं।

मिस अफिलिया ने इस ढंग से, जैसे कोई मुश्किल बात कहता हो, सूखे गले से कहा - "मैं रोजा के बारे में तुमसे कुछ कहने आई हूँ।"

अब मेरी की आँखें खुल गईं, मुँह लाल हो गया। कर्कश स्‍वर में बोली - "रोजा के बारे में क्‍या कहना है?"

"वह अपने अपराध के लिए बहुत पछता रही है।"

"पछता रही है! पछता रही है? इसका क्‍या माने! अभी उसे बहुत पछताना पड़ेगा। मैं थोड़े में छोड़नेवाली नहीं हूँ। मैंने बहुत दिनों तक इस छोकरी की धृष्‍टता सही है। अब मैं इसे दुरुस्‍त करूँगी, धूल में मिला दूँगी।"

"क्‍या तुम उसे और किसी प्रकार की सजा नहीं दे सकती हो, जो इससे कम लज्‍जाजनक हो?"

"मेरा तो मतलब ही उसे शर्म दिलाने से है।... यही तो मैं चाहती हूँ। यह छोकरी जन्‍म से ही शेखी के मारे ऐंठकर अपनी असलियत को भूल गई है। अब मैं इसकी सारी शेखी और अकड़ निकाल दूँगी।"

"पर बहन, सोचकर देखने की बात है। किसी जवान लड़की की लज्‍जा नष्‍ट करना, उसके पतित होने के मार्ग को साफ कर देना है।"

घृणा के साथ हँसकर मेरी ने कहा - "लज्‍जा! मैं उसे बताऊँगी कि फटे कपड़े पहनकर राह में जो स्त्रियाँ ठोकरें खाती फिरती हैं, उनसे वह किसी तरह अच्‍छी नहीं है... मेरे सामने उसकी अब शेखी नहीं चलेगी।"

मिस अफिलिया ने जोर के साथ कहा - "इस निर्दयता के लिए तुम्‍हें ईश्‍वर के यहाँ जवाब देना पड़ेगा।"

"निर्दयता? मुझे बताओ, इसमें क्‍या निर्दयता है? मैंने तो बस पंद्रह कोड़े लगाने को लिखा है, सो भी हल्‍के-हल्‍के। मैं इसमें कुछ भी निर्दयता नहीं देखती।"

मिस अफिलिया ने कहा - "निर्दयता नहीं है? मेरा विश्‍वास है कि इस दंड की अपेक्षा स्त्रियाँ मृत्‍यु को कहीं अच्‍छा समझेंगी।"

मेरी बोली - "तुम्‍हारे जैसा दिल जिसका है, उसमें ऐसा भाव आ सकता है, पर इन दासियों को ऐसा दंड भोगने का अभ्‍यास है। उनकी अक्‍ल को ठिकाने रखने का यही एकमात्र उपाय है। एक बार माफ कर देने से तो ये सिर पर चढ़ जाते हैं। मैं अब तक इन्‍हें छोड़ती रही हूँ, इसी से ये बिगड़ गए। मैं अब इन्‍हें ठीक करूँगी। जो कसूर करेगा, उसे तुरंत दंड-गृह में कोड़े लगवाने भेज दूँगी।"

जेन, जो मेरी के पैर दबा रही थी, यह बात सुनकर एकदम चौंक उठी। उसने सोचा, यह अंतिम बात उसी को सुनाकर कही गई है। शायद रोजा के बाद उसी की बारी आए।

मिस अफिलिया को मेरी की बात पर बड़ा क्रोध आया। उसका शरीर काँपने लगा। पर उसने सोचा, उसके साथ झगड़ा करने का कोई नतीजा न होगा। वह वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली गई। रोजा के दु:ख से वह इतनी दुखी हुई कि लौटकर रोजा से यह बात नहीं कह सकी कि मेरी ने उसकी बात नहीं मानी।

कुछ देर के बाद एक काला गुलाम मेरी की आज्ञा से रोजा को पकड़कर दंड-गृह में ले गया। रोजा रोई-चिल्‍लाई, पर मेरी का वज्र-हृदय न पसीजा।

एडाल्‍फ पर मेरी खार खाए हुई थी। परंतु सेंटक्‍लेयर की वजह से किसी दास-दासी पर उसका बस न चलता था, इसी से अब तक एडाल्‍फ को किसी प्रकार का दंड न दे सकी थी। सेंटक्‍लेयर की मृत्‍यु से एडाल्‍फ एकदम निराशा के सागर में डूब गया। अब वह हरदम मेरी के डर से काँपा करता था। मेरी ने सेंटक्‍लेयर के भाई अल्‍फ्रेड और अपने वकील से सलाह करके निश्‍चय किया कि वह सेंटक्‍लेयर के मकान और सब गुलामों को बेच डालेगी। बस उन गुलामों को जो उसके निजी हैं, अपने साथ लेकर पिता के घर जा कर रहेगी। एडाल्‍फ ने यह बात सुन ली। इसलिए एक दिन टॉम से जाकर कहा - "टॉम, क्‍या तुम्‍हें मालूम है कि मालकिन हम लोगों को बेच डालेंगी?"

टॉम ने पूछा - "तुमने किससे सुना?"

एडाल्‍फ बोला - "मेरी जब वकील से बातें कर रही थी, तब मैंने पर्दे की ओट से सब बातें सुनी थीं। टॉम, अब कुछ ही दिनों में हम लोग नीलामघर भेज दिए जाएँगे।"

टॉम ने ठंडी साँस लेकर कहा - "जो ईश्‍वर की मर्जी होगी।"

एडाल्‍फ बोला - "अब ऐसा दयालु मालिक नहीं मिलेगा। लेकिन इस मालकिन के पास रहने से तो दूसरे के हाथ बिकना ही अच्‍छा है।"

टॉम घूमकर खड़ा हो गया। उसका हृदय विषाद से भरा हुआ था। कहाँ तो वह स्‍वाधीन होने की खुशियाँ मना रहा था, और शीघ्र ही अपने बाल-बच्‍चों से मिलने की आशा में फूले न समाता था और कहाँ यह एकाएक विपत्ति का पहाड़ उस पर टूट पड़ा! नाव किनारे लगते-लगते डूब गई! आजाद होने की जो आशाएँ उसने सँजो रखी थीं, वे धूल में मिल गईं। टॉम स्‍वाधीनता को बड़ा मूल्‍यवान समझता था, फिर भी ईश्‍वर के भरोसे उसने धीरज न छोड़ा। उसने ऊपर को सिर उठाया और हाथ जोड़कर कहने लगा - "प्रभो, तुम्‍हारी इच्‍छा पूर्ण हो!" पर यह वाक्‍य कहते समय उसका हृदय विदीर्ण होने लगा।

कुछ देर बाद वह मिस अफिलिया के कमरे में गया। इवा की मृत्‍यु के उपरांत मिस अफिलिया टॉम पर विशेष स्‍नेह रखती थी।

टॉम ने कहा - "मिस फीली! मालिक सेंटक्‍लेयर ने मुझे गुलामी से मुक्‍त कर देने का वचन दिया था। वकील से इस मामले में उन्‍होंने मसविदा बनाने को भी कह दिया था। अब आप मालकिन से कहें तो वह मालिक के वचनों को पूरा कर सकती हैं।"

मिस अफिलिया बोली - "टॉम, मैं तुम्‍हारे लिए कहूँगी, भरसक प्रयत्‍न करूँगी, पर मुझे आशा नहीं कि मेरी कुछ करेंगी। कोशिश बेकार ही होगी।"

टॉम को विदा करके मिस अफिलिया सोचने लगी कि शायद रोजा के लिए अनुरोध करते समय मेरे मुँह से कुछ कठोर बातें निकल गई थीं। इसी से उसने मेरी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। आज मैं उसे मीठी-मीठी बातों से राजी करूँगी। शायद इस तरह वह टॉम को छोड़ने पर राजी हो जाए। यह सोचकर वह मेरी के कमरे में गई।

मेरी खाट पर लेटी हुई थी और जेन उसे तरह-तरह के काले कपड़ों के नमूने दिखा रही थी। मेरी ने उन नमूनों में से एक चुनकर कहा - "यह ठीक है, लेकिन मैं कह नहीं सकती कि यह पूरी तरह शोकसूचक होगा या नहीं।"

जेन ने कहा - "आप क्‍या कहती हैं? अभी उस दिन जनरल डरबन के मरने पर उनकी मेम ने यही कपड़ा पहना था। पहनने पर साहब यह बहुत जोरदार लगता है। इससे दर्शकों का मन खिंच उठता है।"

मेरी ने मिस अफिलिया से कहा - "आपकी समझ में यह कपड़ा कैसा है?"

मिस अफिलिया बोली - "यह अपने-अपने यहाँ की रीति पर निर्भर है। मेरी अपेक्षा तुम इस बात को अच्‍छी तरह जानती हो।"

मेरी ने कहा - "असल में मेरे लायक एक भी पोशाक नहीं है, पर अगले ही हफ्ते मैं जानेवाली हूँ। इससे कोई एक पसंद कर लेना है।"

मिस अफिलिया ने कहा - "तुम इतनी जल्‍दी जाओगी?"

मेरी बोली - "हाँ, अल्‍फ्रेड और वकील की राय है कि घर का माल-असबाब तथा दास-दासी सबको नीलाम कर डालना ही ठीक है।"

मिस अफिलिया ने गंभीर स्‍वर में कहा - "मैं तुमसे एक बात कहनेवाली थी। अगस्टिन ने टॉम को आजाद कर देने का वचन दिया था, यहाँ तक कि उसके लिए मसविदा बनवाने की भी बातचीत हो गई थी। मैं आशा करती हूँ कि तुम वकील से जल्‍दी ही आजादी की सनद लिखवा लोगी।"

"नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं करूँगी। टॉम के पूरे दाम आएँगे। वह इस तरह कैसे भी नहीं छोड़ा जा सकता। फिर उसे आजादी की ऐसी जरूरत ही क्‍या है? आजाद होने पर वह मौजूदा हालत से अच्‍छा तो रह न सकेगा।"

"पर आजाद होने की उसकी बड़ी इच्‍छा है, और उसके मालिक ने उसे आजाद कर देने का वचन दिया था।"

"हाँ, टॉम की यह इच्‍छा हो सकती है। ये लोग तो जन्‍म भर असंतुष्‍ट ही बने रहते हैं। जो इन्‍हें नहीं मिलता, उसकी ये बराबर इच्‍छा किया करते हैं। मैं सदा से गुलामी को खत्‍म करने के खिलाफ हूँ। जब तक ये हब्‍शी किसी मालिक की अधीनता में रहते हैं तब तक अच्‍छे रहते हैं। लेकिन आजादी मिलते ही ये आलसी हो जाते हैं। शराब पीना आरंभ कर देते हैं। नीचे गिरते चले जाते हैं। मैंने सैकड़ों बार यही बात देखी है। इन्‍हें आजाद करने में इनका भला नहीं, उल्‍टे इनका बिगाड़ करना है।"

मिस अफिलिया बोली - "पर टॉम तो भलामानस, मेहनती और धार्मिक है।"

"ओह, मुझे तुम्‍हारे समझाने की जरूरत नहीं है। मैंने ऐसे सैकड़ों देख डाले हैं। सौ बात की एक बात यह है कि वे गुलामी में ही अच्‍छे रहते हैं।"

"पर खयाल करो, जब तुम इसे नीलाम करोगी तब हो सकता है कि कोई बेरहम आदमी इसे खरीद ले जाए।"

"ये सब फिजूल की बातें है। नौकर अच्‍छा हो तो सैकड़ों में एक भी मालिक बुरा नहीं मिलता। मालिकों की लोग नाहक झूठी शिकायत करते हैं। मैं जन्‍म से इसी दक्षिणी क्षेत्र में हूँ। पर अब तक ऐसा एक भी मालिक नहीं देखा, जो अपने दासों के साथ अच्‍छा व्‍यवहार न करता हो। मैं इस पर विश्‍वास नहीं करती कि टॉम का होनेवाला मालिक उससे बेरहमी का बर्ताव करेगा।"

अफिलिया ने कहा - "खैर, मैं जानती हूँ कि तुम्‍हारे पति की अंतिम इच्‍छा टॉम को मुक्‍त कर देने की थी। उसने इवा की मृत्‍यु के समय उससे भी इस बात की प्रतिज्ञा की थी कि टॉम को बहुत शीघ्र आजाद कर दिया जाएगा। कोई कारण नहीं कि तुम अपने स्‍वामी और कन्‍या की इच्‍छा को इस तरह ठुकरा दो।"

मेरी ने रूमाल से अपना चेहरा ढक लिया और सिसक-सिसककर रोने लगी। बेहोशी के डर से बार-बार एमोनिया की शीशी सूँघते-सूँघते भरे हुए गले से कहने लगी - "जो आता है, मुझसे ही लड़ने चला आता है। कोई मेरे दु:ख का खयाल नहीं करता। मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम मुझे शोक की याद दिलाकर कटे पर नमक छिड़कने आओगी। तुम्‍हें भी मुझे ही सताने की सूझी। तुम्‍हें मेरा जी दुखाने में तनिक भी दया नहीं आई! पर मेरी सोचता कौन है? मेरी दशा को समझता कौन है? सबको अपने-अपने सुख की पड़ी है। मेरी एक लड़की थी, उसे भी भगवान ने उठा लिया। उसके बाद मेरे पति चल बसे। तुम्‍हारे मन में जरा भी मोह-माया नहीं है। इसी से तुमने भी मेरी बेटी और स्‍वामी की मौत की बात कहकर मेरे दु:ख की आग में घी डाल दिया।"

मेरी और जोर-जोर से रोने लगी। बेहोशी के लक्षण दिखाई देने लगे। वह मामी से कहने लगी - "अरे खिड़की खोल दे! कपूर की शीशी ला! मेरे सिर पर पानी डाल। मेरे कपड़े ढीले कर दे।"

चारों ओर बड़ा शोर मचा। इसी बीच मिस अफिलिया किसी तरह जान बचाकर अपने कमरे की ओर भागी।

मिस अफिलिया ने देखा कि मेरी से बहस करना फिजूल है। बेहोशी बुलाने की उसमें अदभुत क्षमता है। इसके बाद जब कभी दास-दासियों के संबंध में सेंटक्‍लेयर और इवा की इच्‍छा की चर्चा की जाती, वह बखेड़ा कर देती थी। मिस अफिलिया ने टॉम के छुटकारे का कोई उपाय न देखकर मिसेज शेल्‍वी को टॉम के दु:ख की सारी बातें साफ-साफ लिख दीं और उसे शीघ्र छुड़ा ले जाने का विशेष अनुरोध किया।

इसके दूसरे ही दिन, टॉम, एडाल्‍फ तथा दूसरे छ: दास नीलाम करने के लिए नीलाम-घर भेज दिए गए।