टॉम काका की कुटिया - 6 / हैरियट वीचर स्टो / हनुमान प्रसाद पोद्दार

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रात गई। दिन निकला। प्रभात का सूर्य गगन में उदय होकर गोरे, काले सब पर समान भाव से अपनी मनोहर प्रभा फैलाने लगा। सारा संसार उठकर अपने-अपने कामों में लग गया, पर शेल्‍वी साहब के कमरे के किवाड़ अभी तक नहीं खुले। कारण यही था कि कल रात को मेम और वे ठीक समय पर नहीं सो सके थे, इसी से आज बड़ी देर तक सोते रहे। मेम बिस्तर से उठते ही इलाइजा को पुकारने लगी, पर कोई जवाब न मिला। कुछ देर बाद उसने आंडी नामक दास को इलाइजा को बुलाने भेजा। आंडी ने इलाइजा के घर से लौटकर कहा कि उसका घर सूना पड़ा है। चीजें जहाँ-तहाँ बिखरी हुई हैं। जान पड़ता है कि वह भाग गई!

इन बातों से शेल्‍वी साहब और उनकी मेम ने तुरंत समझ लिया कि अपने बच्चे को लेकर वह कहीं चली गई। मेम के मुँह से अकस्मात निकला - "परमात्मा इलाइजा के बच्चे की रक्षा करे।"

लेकिन शेल्‍वी साहब यह सुनकर बहुत झुँझलाए और बोले - "प्‍यारी, तुम एकदम नासमझ की-सी बातें कर रही हो। हेली जरूर कहेगा कि मैंने ही षड़यंत्र रचकर इलाइजा को भगा दिया है। उसके कहने की कई खास वजहें भी हैं। और उसका ऐसा सोचना अकारण न होगा, क्योंकि मैंने पहले से ही इलाइजा के लड़के को बेचने की अनिच्छा प्रकट की थी।"

इसके बाद शेल्‍वी साहब नीचे के घर में आए। इधर घर की नौकर-मंडली में इलाइजा के भागने की बात पर बड़ा आंदोलन आरंभ हुआ। किसी ने कहा कि हेली तो सुनते ही दुःख में पागल हो जाएगा; किसी ने कहा कि वह अर्थ-पिशाच यह खबर पाकर बड़ा ऊधम मचाएगा; कोई बोला कि हेली निश्‍चय ही गालियों की बौछार करेगा। ये बातें हो ही रही थीं कि चाबुक लिए हेली वहाँ आ पहुँचा। इलाइजा के भागने की बात सुनते ही दाँत पीसकर - "हरामजादी, सूअर की औलाद" , इत्यादि घृणित गालियों की बौछार से वह इलाइजा को याद करने लगा। अंत में वह सहसा असभ्य व्यक्ति की भाँति उस कमरे में पहुँचा जहाँ शेल्‍वी और उसकी मेम बैठे थे। वहाँ जाकर वह जोर से बोला - "शेल्‍वी, तुमने बड़ा जुल्म किया है।"

शेल्‍वी साहब ने कहा - "हेली, जरा भलमनसाहत से बातें करो। देखते नहीं, मेरी स्त्री यहाँ बैठी है!"

पर अर्थ-पिशाच हेली को उस समय भले-बुरे का ज्ञान कहाँ था? उसने फिर उसी प्रकार चिल्लाकर कहा - "सचमुच, तुमने बड़ा जुल्म किया है!"

इस पर शेल्‍वी साहब बहुत क्रुद्ध हुए और हेली को झिड़ककर बोले - "तुम क्या निरे मूर्ख ही हो! एक भद्र महिला के सामने यों सिर पर टोप डाले खड़े हो!"

इतना कहकर उन्होंने अपने नौकर आंडी को हेली का टोप गिरा देने की आज्ञा दी। आंडी ने तुरंत हेली के सिर का टोप और हाथ का चाबुक छीन लिया। तब हेली मिजाज को ठंडा करके बोला - "भई, तुम्हें भलमनसी से काम लेना चाहिए था।"

इतना सुनना था कि शेल्‍वी ने बड़े क्रोध से कड़ककर कहा - "मैंने कौन-सी बेईमानी की है? मेरी भलमनसी की बात मुँह से निकाली तो अभी धक्का देकर बाहर कर दूँगा।"

अर्थ-पिशाच प्रायः कायर ही होते हैं। वे कमजोरों के सामने शेर बने रहते हैं, पर जब कोई अपने से सवाया मिल जाता है तो भेड़ बन जाते हैं। हेली ने शेल्‍वी साहब को क्रुद्ध देखकर डरते हुए कहा - "हमारी किस्मत ही फूटी है, नहीं तो ऐसा क्यों होता?"

शेल्वी साहब क्रोध को रोककर कहने लगे - "तुम्हारा इस तरह नुकसान न हुआ होता तो मैं कभी तुमको घर में घुसने न देता। पर खैर, तुम्हें मेरे साथ कारोबार करके घाटा हुआ है, इसलिए मैं तुम्हें अपने घोड़े और आदमी देता हूँ। तुम इलाइजा को खोज लाओ और उसे पकड़कर अपना खरीदा हुआ माल ले जाओ।"

धन-लोलुप हेली की करतूत देखकर शेल्‍वी साहब की मेम मन-ही-मन बहुत कुढ़ी और वहाँ से उठकर चली गई। तब शेल्‍वी ने आंडी को बुलवाकर कहा - "आंडी, तुम और साम दोनों हेली साहब के साथ घोड़ों पर चढ़कर इलाइजा की खोज में जल्दी जाओ।"

आंडी ने अस्तबल में पहुँचकर साम को ये सब बातें सुनाईं और घोड़े तैयार करने को कहा।

मालिक की आज्ञा सुनते ही साम झटपट घोड़ा तैयार करने लगा और कूद-फाँद करके कहने लगा - "इलाइजा को अभी पकड़कर लाता हूँ, अभी लाता हूँ।"

आंडी ने उसके कान में कहा - "अरे, तू समझता नहीं? मेम साहब नहीं चाहतीं कि इलाइजा पकड़ी जाए। इससे घोड़ा कसने में जरा देर कर दे।"

साम बोला - "तुमने कैसे जाना कि मेम साहब नहीं चाहती?"

आंडी ने कहा - "जब मैंने मेम साहब से इलाइजा के भाग जाने का समाचार कहा तो वे बोलीं - "परमात्‍मा इलाइजा के बच्‍चे की रक्षा करे।" पर साहब यह सुनकर झुँझला उठे।

साम बड़ा नंबरी था। जब जान लिया कि मेम साहब इलाइजा को पकड़ने के पक्ष में नहीं हैं, तब फिर वह जल्‍दी घोड़ा क्‍यों कसे? अस्‍तबल में जाकर एक घोड़ा खोल देता है, फिर उसको पकड़ता है; फिर छोड़ देता है, फिर पीछे दौड़कर पकड़ता है, यों ही समय टाल रहा है। फिर अपनी सवारी के घोड़े पर काठी कसकर इस ढंग से उसके नीचे एक काँटा लगा दिया कि घोड़े पर चढ़ते ही काँटा चुभने से घोड़ा भड़ककर सवार को जमीन पर पटक दे। हेली के घोड़े की जीन के नीचे भी उसने एक ऐसा ही काँटा लगा दिया।

शेल्‍वी ने कई बार साम को पुकारकर कहा - "साम, इतनी देरी क्‍यों हो रही है?"

साम ने कहा - "सरकार, बड़ा बदमाश घोड़ा है। जल्‍दी जीन ही नहीं धरने देता।"

इस तरह धीरे-धीरे समय निकलने लगा। इधर शेल्‍वी साहब की मेम ने साम को बुलाकर कहा - "साम, दोनों घोड़ों के पैरों में न जाने क्‍या हो रहा है! देखना, बहुत दौड़ाकर हैरान मत करना।"

साम को चाहे अक्‍ल हो या न हो, पर ऐसी बातें वह बड़ी फुर्ती से समझ लेता था। मेम साहब का मतलब वह तत्‍काल समझ गया। साम को घोड़ा लाने में देरी करते देख हेली स्‍वयं अस्‍तबल में पहुँचा। साम और आंडी को झटपट घोड़े पर चढ़ने को कहकर वह अपने घोड़े पर चढ़ने लगा, परंतु उसका पीठ पर बैठना था कि घोड़ा एकदम उछल पड़ा और वह नीचे जमीन पर आ गिरा। हेली को पटककर घोड़ा मैदान की ओर भागा। आंडी, साम तथा शेल्‍वी के दूसरे नौकर - "अरे, घोड़ा भाग गया! पकड़ो, पकड़ो!" चिल्‍लाते हुए उसके पीछे दौड़ने लगे। इस तरह दोपहर का दिन चढ़ आया। तीसरे पहर साम घोड़े को पकड़कर हेली के पास आया। हेली साम को डाँटकर बोला - "तूने हमारे तीन घंटे यों ही बरबाद कर दिए। अब फौरन घोड़े पर सवार होकर हमारे साथ चलो।" ...

साम बोला - "आपका घोड़ा पकड़ने में जो मुसीबत मुझे उठानी पड़ी, उसे मेरा जी ही जानता है। और क्‍या कहूँ! आपको बड़ी जल्‍दी थी, इसी से मैंने इतनी मेहनत की। मेरी तो जान ही निकल गई। आपका काम था, इसलिए कर दिया। अगर दूसरे का होता तो कभी नहीं करता; पर बिना पेट में दाना पड़े नहीं चला जाएगा। घोड़े भी बहुत थक गए हैं। कोई खटके की बात नहीं है। इलाइजा तेज नहीं चल सकती। भोजन के बाद चलने पर भी उसे चुटकी बजाते पकड़ लेंगे।"

इसी समय शेल्‍वी साहब की मेम हेली के पास आकर बड़ी नम्रता से बोली - "महाशय, दोपहर दिन बीत चला है। अब बिना खाए, भूखे-प्‍यासे जाना तो ठीक न होगा। कृपा करके आज हमारे यहाँ भोजन कीजिए।"

सच तो यह है कि शेल्‍वी की मेम हेली-सरीखे नर-पिशाच से बात तक करने से नफरत करती थी; पर आज उसके साथ बैठकर भोजन तक करने में उसे घृणा नहीं हुई। व्यावहारिक कामों में हेली अपने को बड़ा चतुर समझता था, पर स्‍त्री की चतुराई समझना कठिन काम है। जो हेली दुनिया को चराता फिरता है, आज वही स्‍त्री के फंदे में फँसकर स्‍वयं ठगा गया।