दो फिल्में जैसे पूनम को डूबता चांद और उगते सूरज का दृश्य / जयप्रकाश चौकसे

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दो फिल्में जैसे पूनम को डूबता चांद और उगते सूरज का दृश्य
प्रकाशन तिथि :19 दिसम्बर 2015


भंसाली की बाजीराव में अपने अंतिम युद्ध पर जाते समय बाजीराव मस्तानी से कहता है कि जब आसमान में एक ओर सूर्य और दूसरी ओर चांद भी उफक पर होगा और बरसात भी हो रही होगी, तब हम दोनों मिलेंगे। पूनम की रात ऐसा होता भी है कि डूबता चांद और उगता सूरज आसमान पर नज़र आते हैं। इस सीन में चांद थोड़ा मद्धम है और सूरज भी बार-बार बादलों की ओट में चला जाता है। बाजीराव मस्तानी के साथ ही रोहित शेट्‌टी की 'दिलवाले' भी लगी है और सिनेमा के ये सूरज और चांद आज एक साथ नज़र आए हैं। दोनों फिल्मों की लागत में भारी अंतर है, क्योंकि ऐतिहािसक पृष्ठभूमि वाली फिल्मों में बहुत पैसा लगता है और यह संभव है कि लागत का ही अंतर आय में भी दिखे। भंसाली की फिल्म मराठी भाषा में लिखी एक किताब से प्रेरित है परंतु ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की फिल्मों में इतिहास को खोजना कठिन होता है। इस उद्योग की सफलतम फिल्म 'मुगले आजम' (5 अगस्त 1960) में अनारकली का पात्र ही काल्पनिक है। सच तो यह है कि हमारी फिल्मों में विश्वसनीयता, तर्क, प्रामाणिकता खोजना घास में सुई खोजना है और फिल्मकार अवाम के अवचेतन को समझने के प्रयास में फिल्म बनाता है और फिल्म पर अंतिम अदालत जनता की अदालत होती है और अवाम ही न्यायाधीश है। फिल्म इतना महंगा माध्यम है कि उसमें पूंजी की वापसी संभव हो सके और लाभ भी मिले केवल यही प्रयोजन होता है। इस माध्यम में भी अनेक फिल्मकारों ने सामाजिक सौद्‌देश्यता को कायम रखा है।

भंसाली की फिल्मों में रंग और ध्वनि का अतिरेक होता है और अब वे स्वयं अपने विचार के फॉर्मूले में बंध गए हैं। इस बार फिल्म का संगीत भी उन्होंने दिया और कुछ गीतों में उनकी अपनी पुरानी फिल्म के गीतों को ही थोड़े रद्‌दोबदल के साथ प्रस्तुत किया गया है। देवदास की पारो और चंद्रमुखी की तरह इसमें भी काशीबाई और मस्तानी साथ-साथ नाचे भी हैं। इस फिल्म में मुस्लिम मस्तानी और महाराष्ट्रीयन रानी के चरित्र-चित्रण में कुछ बातें काबिले तारीफ हैं। मसलन, यह केशरबाई है, जो बाजीराव को बताती है कि उसकी सौतन मस्तानी का कत्ल किया जाने वाला है। यह उदारता सहज नारी सुलभ गुण है। इतिहास प्रेरित फिल्म में संवाद नाटकीय द्वंद्व को पैना बनाते हैं और 'बाजीराव' में नाटकीय संवादों की कमी नहीं है। विशेषकर मस्तानी और केशरबाई के आमने-सामने होने के दृश्य। दीपिका पादुकोण और प्रियंका ने अपने पात्रों को जीवंत बनाने की पूरी कोशिश की है। इस फिल्म से जुड़े एक लेखक, जिनका भंसाली से झगड़ा हो चुका है, ने दो वर्ष पहले बताया था कि पुणे राजवंश के निवास में मस्तानी को कभी आने नहीं दिया गया और उसकी अभिलाषा थी कि राजमहल उसे स्वीकार करे। फिल्म के अंत में दोनों की मृत्यु हो जाती है और फिल्म यही समाप्त हो जाती है परंतु उस लेखक ने दृश्य लिखा था कि बाजीराव की मां और पत्नी आदेश देते हैं कि दोनों के मृत शरीर राजकीय समारोह के साथ राजमहल में लाए जाए। अभी फिल्म का अंत कुछ अधूरा-सा लगता है। काश! मस्तानी के मृत शरीर को राजमहल आने का सौभाग्य मिलता।

रोहित शेट्‌टी ने अशोक कुमार और किशोर की 'चलती का नाम गाड़ी' के साथ अमिताभ अभिनीत 'हम' की कथा को जोड़ा है। रोहित के सिनेमाई स्कूल में युवा वर्ग के मनोरंजन को केंद्र में रखकर फिल्म का निर्माण होता है। इसमें नायिका और नायक के पिता अपराध जगत के दुश्मन हैं, इसलिए विवाह नहीं हो पाता और पंद्रह वर्ष पश्चात नायक के भाई और नायिका की युवा प्रेम कहानी के माध्यम से दोनों सीनियर की प्रेम कहानी भी संपूर्ण होती है।

काजोल ने कुछ अंतराल के बाद वापसी की है और आज भी वे 'दुल्हनिया' की तरह तरोताजा और सुंदर लगती हैं। मंजी हुई अभिनेत्री हैं। शाहरुख खान ने बड़े भाई का पात्र ईमानदारी से निभाया है और उनके भाई की भूमिका में वरुण धवन ने बहुत अच्छा अभिनय किया है। इस फिल्म मंे रोहित शेट्‌टी की सभी फिल्मों की तरह हास्य, प्रेम, हिंसा इत्यादि के दृश्य होते हैं, क्योंकि उसका उद्‌देश्य केवल मनोरंजन देना है। इंटरवल के बाद के एक-दो प्रसंग हटाए जा सकते थे परंतु हर शेफ भोजन बनाते समय मसालों की कंजूसी नहीं करता। 'चलती का नाम गाड़ी' में एक विंटेज कार महत्वपूर्ण पात्र थी और इसमें वह कार खलनायक की सम्पत्ति है। बहरहाल, दोनों ही फिल्मों में कुछ विशेषताएं और कुछ कमियां हैं। बसे शुभ बात यह है कि प्रशासन और पुलिस ने अच्छा इंतजाम किया है। थोड़े शहरों में ही गड़बड़ी हुई है। पुलिस प्रशासन को बधाई!