दो साल हो चुके हैं, कोई भी उसे लेने नहीं आया… / नंदनी

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[[नंदनी, उम्र 20 साल। दसवीं कक्षा की छात्रा हैं। ये दक्षिणपुरी में रहती हैं। इनका जन्म सन 1999 में दिल्ली में हुआ। पिछले तीन सालों से अंकुर क्लब से जुड़ी हैं। इन्हे तरह – तरह के रियाज़ों को करना और उनसे उभरती कहानियों को अलग अलग संदर्भों में सुनाना बेहद पसंद है।]]

पूरी गली में धूप बिखरी थी। कहीं–कहीं पर ही छाया थी, जिसका सहारा लेकर औरतें अपनी कहानियाँ बुनने में लगी थीं। बच्चे स्कूल की थकावट को दूर करने के लिए गली में दौड़ लगा रहे थे।

इतने में गली के कोने से एक अधेड़ उम्र की औरत भागते हुये आई और गली के एक बड़े से चबूतरे पर बैठी तीन–चार औरतों के बीच जा बैठी और बोली, “क्या तुमने सुना? पीछे वाली गली से दो बच्चे गायब हो चुके हैं।” उस औरत को कोई जानता तो नहीं था। लेकिन वह इस तरह से उनके बीच में बैठी कि जैसे सभी औरतों को जानती हो। वह फिर से बोली, “अरे वही समोसे वाले के पोते। वे बड़े दुखी हैं। मैं वहीं से आ रही हूँ।”

सभी सुन रही थी। सभी को उस औरत की बात ने अपने में समा लिया था। उन्ही औरतों के बीच में बैठी एक औरत ने चौंकते हुये कहा, “वही न जिनका कोने वाला मकान है?” वह हाँ में हाँ मिलते हुये बोली, “हाँ, हाँ वही।”

साथ वाली एक औरत ने अपने पल्लू को आगे की और खिसकाते हुये बोली, “उन पर क्या बीत रही होगी? उस माँ का क्या हाल हो रहा होगा?”

बातें दो औरतों के बीच में हो रही थी मगर उसका असर सभी पर छाया हुआ था। तभी अंजली हड़बड़ी में उठी और जोरों से चिल्लाने लगी, “नन्नो, नन्नो! कहाँ गई, मेरी बच्ची?”

अंजली को यहाँ पर सभी जानते हैं। कई बच्चों की अकेली सहारा अंजली, उनका घर बच्चों से भरा रहता है। उनका घर अनजान बच्चो के लिए खेलने की किसी जगह से कम नहीं है।

साथ वाले घर से निकलती चार या पाँच साल की लड़की ने कहा, “मम्मी मैं तो अंदर थी, टीवी देख रही थी।” अंजली उस लड़की को अपनी गोद में बिठाती हुई बोली, “मेरी लाडो, घर से बाहर मत निकलियो, कोई तुझे उठा कर ले गया तो मैं क्या करूंगी?” वह बच्ची भौंचक-सी अपनी माँ को देखने लगी। अंजली ने उस लड़की को अपनी गोद में ही बैठा लिया। औरतों के बीच की बातें थोड़ी धीमी सी पड़ गई थी, लेकिन बंद नहीं हुई थी।

दूसरी औरत उस चुप बैठी अंजली से बोली, “तू घबरा क्यों रही है? कुछ नहीं होगा हमारे बच्चों को, देखते हैं कि कोई कैसे ले जाता है इन्हें।”

अंजली कुछ नहीं बोली, यहाँ पर सभी उसकी बेचैनी को जानती थीं। सब खामोश हो गईं। कुछ ही देर के बाद में धीरे–धीरे सब कुछ सिमटने लगा। औरतें अपने अपने घरों की ओर लौटने लगीं।

गली में एक ज़ोरदार आवाज़ हुई, सभी लोग एकदम से बाहर की ओर आ गए। एक बच्चा जोरों से रो रहा है और यहाँ–वहाँ छुपने की कोशिश कर रहा है। सभी उसकी बेचैनी को देख रहे थे। कोई भी उस बच्चे की ओर नहीं जा रहा था। वह लगातार रोये जा रहा था। रोते-रोते एक घर के चबूतरे पर जाकर लेट गया और कुछ देर के लिए शांत हो गया।

प्रेस वाले अंकल चिल्लाये, “अरे, ये किसका बच्चा है?”

सब्जी वाले भैया बोले, “पता नहीं, लगता है किसी और ही गली का है?”

एक औरत ने कहा, “अरे देख तो लो कहीं बेहोश तो नहीं हो गया।” दूसरी औरत ने बोला, “बेचारा, यह तो गरम भी है।”

गली के दादा जी बोले, “देख क्या रही हो, उठाओ इसे, यहाँ मेरी खाट पर ले आओ।” सभी उसे उठा कर खाट पर ले आये।

“लगता है कहीं और का है यह, यहाँ का तो नहीं लगता।”

“यह कहीं छुट तो नहीं गया, पिछली रात यहाँ पर एक बारात आई थी।”

“लग तो यही रहा है।”

“थोड़ी देर रुक जाओ, क्या पता कोई इसे ढूँढता हुआ आ जाए।”

“हाँ, हाँ, ऐसे ही कर लो।”

वह बच्चा तो जैसे सो चुका था। सभी उसके जागने का इंतजार कर रहे थे और साथ ही उसे ढूँढने आने वालों का भी। लेकिन काफी देर हो चुकी थी। जब वह लड़का नहीं उठा तो उसके मुँह पर पानी का छिड़काव किया गया। वह नहीं उठा। सभी उसे नजदीक के डाक्टर के पास लेकर भागे।

औरतों के बीच में बातें होने लगीं। कोई कहती, “देखो, कोई किसी के बच्चे को उठा कर ले जाता है तो यहाँ किसी का बच्चा खो जाता है।”

“सही कह रही हो जीजी। दर्द तो दोनों ही सूरतों में होता है।”

“पता नहीं किस का बच्चा है?”

“मैं तो कहती हूँ कि पुलिस को दे दो।”

“अरे नहीं, वहाँ पर बेचारा और पागल हो जायगा।”

कुछ ही देर में आदमियों का जत्था बच्चे को लेकर वापस लौटा। साथ वे दोनों लड़के भी जो यह पता लगाने के लिए गए हुये थे कि किसका बच्चा है। किसी को कुछ भी नहीं मालूम पड़ा। समोसे वाले अंकल भी आए कि कहीं उनका ही पोता तो नहीं है। पर यह वह नहीं था। बच्चा सो रहा था। रात हो चुकी थी। बच्चा खाट पर ही सोया हुआ था। बातें धीमी हो चुकी थीं। फैसला हुआ कि बच्चे को ढूँढने वाले जब तक यहाँ नहीं आयेंगे, हम इसे कहीं नहीं भेजेंगे।

“पर इसे रखेगा कौन?” दादा जी ने कहा, “और कौन रखेगा? मैं रखूँगा, मेरे पास ही सो जायगा।”

‘कौन रखेगा, कौन रखेगा’ का नारा और परेशानी सभी में देखी जा सकती थी। इतने में अंजली गली के अंदर आती हुई दिखाई दी। सभी की आँखों में जैसे खुशी छलक आई थी। जैसे ही अंजली उनके करीब आई, तभी दादा जी ने कहा, “बेटा अपने घर में एक बिस्तर और कर दे। इसे देख, कौन आया है?”

अंजली उस बच्चे को देखती रही। छ: या सात साल का बच्चा नंगा सोया हुआ। वह कुछ नहीं बोली। वह उसे अपने घर ले जाने के लिए खड़ी हुई। गली के बीच खड़े लोगों के सिर आई कोई बड़ी परेशानी जैसे खत्म हो गयी थी।

आज दो साल हो चुके हैं मगर कोई भी उसे लेने नहीं आया। कई शादियाँ हुई, हादसे हुये, लेकिन अंजली के घर का शोर बढ़ता गया है कम नहीं हुआ।