पढ़कर दिल बैठ गया / संध्या रॉयचौधरी

Gadya Kosh से
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दैनिक भास्कर का पहला पेज खोलते ही सबसे पहले खबर पर नज़र गई “परदे के पीछे कॉलम की आख़िरी किस्त आज” पढ़कर दिल बैठ गया। हालाँकि चौकसे सर की तबियत के बारे में मेरी बाल सखा महिमा वर्मा ( 1982 से हम दोनों की दोस्ती क़ायम है) जो सर की भांजी है, बताती रहती थी ।लेकिन दैनिक भास्कर उनके कॉलम के बग़ैर कल से छपेगा ..यह मानने और स्वीकारने को मन ही नहीं कर रहा है।

दैनिक भास्कर इंदौर में जब मैं सिटी भास्कर डेस्क पर थी, तब लास्ट पेज ( पेज नं 6) पर सर का कॉलम मैं लगाती थी, तब न जाने कितनी बार उनसे फ़ोन पर बात होती थी। मुझे आ. श्रवण गर्ग सर ( तब वे संपादक थे) का स्पष्ट निर्देश था कि संध्या , चौकसे जी के कॉलम में यदि मात्रा की मामूली सी भी ग़लती हो तो उनसे ही पूछ कर ठीक करना।

कम्प्यूटर आदि का चलन होने के बाद भी वे हाथ से लिखकर कॉलम भेजते थे।एक दिन पहले सिटी भास्कर में उनका कॉलम लगा देने के बाद भी दूसरे दिन छपा हुआ कॉलम फिर पढ़ती थी । एक बार भास्कर में पाठकों की पसंद को लेकर सर्वे करवाया गया उसमें सबसे ज़्यादा फ़ीसदी पसंद चौकसे सर के कॉलम की थी। फ़िल्मी दुनिया की कई हस्तियों के संग वे भास्कर आए तब हम लोगों को भी चाय पीने के लिए बुला लेते थे।सर बात करते हुए ज़ोर से ठहाका लगाते थे और स्पष्टवादी तो इतने कि असंख्य उदाहरण दिए जा सकते हैं।

दैनिक भास्कर के मालिक सुधीर अग्रवाल जी के नाम से अख़बार में यदा- कदा ही कुछ छपा हो, लेकिन आज उनके नाम से पहले पेज पर चौकसे सर के बारे में छपे शब्द कि “ भास्कर हमेशा उनका कृतज्ञ रहेगा” यह महसूस करने के लिए काफ़ी है कि उन्हें भी कितनी पीड़ा हो रही होगी कि अब “ परदे के पीछे” कॉलम बंद होने के बाद वो जगह किस सामग्री से भरी जाएगी।