पानी के करते बे पानी / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती

Gadya Kosh से
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एक ओर यह है। दूसरी ओर प्राय: हर साल गंगा , गंडक , कोसी आदि नदियों की बाढ़ों से उनके नजदीक और दियारे में बसनेवाले किसान बरबाद हो जाते हैं। यह बात पहले इतनी भी भीषण न थी जितनी इधर दिनोंदिन होती जा रही है। खूबी यह कि उनकी रक्षा का उपाय स्वराजी शासक भी कुछ नहीं कर रहे हैं। बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए सरकार से लाखों रुपए दिए जाने की घोषणा जरूर होती है। मगर वे रुपए एक तो दाल में नमक के समान भी नहीं होते और जले पर नमक का काम करते हैं। दूसरे वे कुछ स्वार्थी नेताओं और उनके दलालों के ही पेटों में चले जाते हैं। यह पक्की बात है। हमें इसपर अपना गुस्सा जाहिर करना जरूरी है।

दूसरी ओर सिंचाई का प्रबंध न होने से लाखों एकड़ जमीनों में फसल होती ही नहीं , या नाममात्र को ही होती है। जहाँ सम्मेलन हो रहा है वह ढकाइच और पास-पड़ोस के गाँव इस बात के नमूने हैं। यदि नहर से पानी मिले , पुनपुन , पैमार काव जैसी छोटी-बड़ी नदियों को बाँधकर उन्हीं का पानी खेतों में पहुँचाया जाए , बिजली के कुओं का प्रबंध हो और बरसात के रत्ती-रत्ती पानी को जमा करने का इंतजाम सरकार करे तो सिंचाई का प्रश्न हल हो , पैदावार चौगुनी हो और जमीनें दोफसिला जरूर बन जाएँ। अधिक अन्न उपजाने का यही रास्ता है। कहीं पानी न मिलने से और कहीं पानी के मारे ही किसान बेपानी हो रहे हैं। यह शीघ्र बंद होना जरूरी है। नहरों के इलाके में लंबी मुद्दत के सट्टे के लिए जो नियम हैं वे निहायत बेहूदे हैं। उन्हें फौरन बदलना होगा। नहीं तो किसान घूसखोरी से तबाह होते ही रहेंगे। बिजली के नए कुओं के नियम तो और भी गतरबूद हैं। बिना पानी दिए भी रेट वसूली का कायदा है। नाजायज पानी के बारे में भी बहुत बेढंगे नियम हैं। सबों को फौरन बदलवाना होगा। तभी अधिक अन्न उपजेगा।