बागड़ी बाबा और इंसानियत का धर्म / अध्याय 12 / सत्य शील अग्रवाल

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जिन पाठकों ने इस पुस्तक के कथानक को पूर्णरूपेण पढ़ लिया है। उनके मानस पटल पर अनेकों प्रश्नों का उभरना स्वाभाविक है। यह प्रश्नोत्तरी आपके द्वारा व्यक्त सम्भावित जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास करेगी।

आपके प्रश्न और बाबा बागड़ी के उत्तर

प्रश्न: क्या ज्योतिष शास्त्र ईश्वर के अस्तित्व का गवाह नहीं है?

बाबा बागड़ी: ज्योतिष शास्त्र को धर्म से जोड़कर देखा जाता है। ज्योतिष विद्या को ईश्वर का लेखा-जोखा पढ़कर बताना, माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र सौर मंडल में मौजूद विभिन्न ग्रहों का मान शरीर पर प्रभाव का अध्ययन होता है। इस अध्ययन को विज्ञान भी कहा जाये तो गलत न होगा। इस अध्ययन को सांख्यिकी की गणनाओं द्वारा निर्णय लेकर भविष्यवाणी की जाती है। अर्थात अमुख कुंडली वाले व्यक्तियों का इतिहास कैसा रहा उनके साथ कैसी घटनाएँ घटी, उन्होंने अपना जीवन कैसे जिया। उसी आधार पर ज्योतिषी निर्णय सुनाते हैं। अतः ज्योतिष शास्त्र को ज्योतिष विज्ञान भी कह सकते हैं।

प्रश्न: सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण का मानव पर क्या प्रभाव पड़ता है?

बाबा बागड़ी: प्रत्येक ग्रह का मानव शरीर पर सूक्ष्म रूप से प्रभाव पड़ता है यह प्रभाव उस ग्रह एवं पृथ्वी की सापेक्ष स्थिति से निर्धारित होता है। ग्रहों से विकसित किरणें मानव अंगों एवं मानव मस्तिष्क को प्रभावित करती रहती हैं। प्रत्येक व्यक्ति की ग्राहृय क्षमता भिन्न-भिन्न होती है अतः प्रत्येक व्यक्ति पर प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होता है। सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण के समय कुछ खास किस्म की किरणें विकसित होकर मानव शरीर को प्रभावित करती हैं, जो हमारे शरीर के सूक्ष्म अंगों जैसे मस्तिष्क, आँखें, पाचन तन्त्र को हानि पहुँचाने की क्षमता रखती हैं। इसी कारण ग्रहण के समय भोजन को वर्जित माना जाता है।

प्रश्न: विभिन्न नगों का मानव शरीर से क्या सम्बन्ध है?

बाबा बागड़ी: अक्सर ज्योतिषि अपने जजमानों को किसी विशेष प्रकार का नग धारण की सलाह देते हैं। यद्यपि वे इसे शुद्ध धार्मिक क्रिया बताते हैं, जबकि यह शुद्ध वैज्ञानिक कारण है। प्रत्येक नग से भिन्न प्रकार की किरणें उत्सर्जित होती हैं जो उंगली पर प्रवाहित खून के द्वारा मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति एवं उसकी समस्याओं का अध्ययन कर नग का चयन किया जाता है। इसका विशेष अनुभव नग विक्रेताओं एवं ज्योतिषियों के पास होता है। उचित नग का धारण करना कोई अन्धविश्वास अथवा धार्मिक आस्था से सम्बन्ध नहीं माना जा सकता।

प्रश्न: क्या इंसानियत के धर्म में व्रत का कोई महत्व है?

बाबा बागड़ी: व्रत एक संकल्प होता है, दिन में एक समय भोजन करना है अथवा कुछ समय बिना जल पिये रहना है, किसी प्रिय वस्तु का त्याग करना है, किसी बुराई को छोड़ना है आदि। संकल्प से दृढ़ता आती है, त्याग के महत्व का ज्ञान होता है। यदि उपवास का व्रत है तो शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है और कोई भी अच्छा कार्य इंसानियत के धर्म में आता है। अक्सर व्रत धार्मिक लाभ के लिए रखने का चलन है जिसमें सवेरे, चाय, दोपहर को चाय के साथ अल्प आहार फिर फलाहार और रात्रि में भोजन इस प्रकार व्रत का उद्देश्य ही खत्म हो जाता है। व्रत में यदि एक समय सिर्फ भोजन किया जाये तो ही स्वास्थ्यप्रद हो सकता है।

प्रश्न: क्या देश की रक्षार्थ हिंसा का प्रयोग इंसानियत के विरूद्ध होगा?

बाबा बागड़ी: यदि देश पर युद्ध थोपा गया है, तो अपने बचाव के लिए हिंसा करना भी इंसानियत ही है। प्रत्येक नागरिक का प्रथम कर्त्तव्य है, देश के दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दे परन्तु साम्राज्यवाद अथवा आर्थिक लाभ के लिए किसी के देश पर हमला करना इंसानियत के विरूद्ध होगा। देश के लिए अपने जीवन की आहुति देने वाला व्यक्ति इंसानियत का सबसे बड़ा रक्षक है।

प्रश्न: क्या विवाह एक धार्मिक क्रिया है?

बाबा बाबड़ी: विवाह एक सामाजिक व्यवस्था है, एक संकल्प है। पति-पत्नी को जीवन भर साथ रहने का संकल्प है, भावी परिवार की जिम्मेदारियाँ निभाने का। परिवार की आर्थिक सामाजिक, नैतिक आवश्यकताओं को मिल-जुलकर पूर्ण करना एक इंसान का कर्त्तव्य है। विवाह एक माध्यम है समाज को व्यवस्थित, सभ्य रूप देने का, परिवार को आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा देने का। अतः विवाह धार्मिक क्रिया नहीं है, विवाह का आयोजन धार्मिक क्रिया है एक धार्मिक पद्धति से आयोजन विवाह का रूप है।

प्रश्न: नास्तिक की दृष्टि में छठी इन्द्री का क्या अर्थ है?

बाबा बागड़ी: विज्ञान के शोधों से ज्ञात हुआ है हमारे शरीर के कुछ सैल ट्रांसमीटर का कार्य करते हैं जो सूचनाएँ भेज सकते हैं, परन्तु उन सूचनाओं को ग्रहण उसका रक्त सम्बन्धी ही कर सकता है। विज्ञान ने इसे ‘इनटयूशन’ का नाम दिया है। अक्सर विशेष संकट की परिस्थितियों में ऐसी सूचनाएँ पाने का आभास होता है देखा गया है जिसे धर्माधिकारियों ने ईश्वर की प्रेरक सूचना का नाम दिया हुआ है।

प्रश्न: साधु सन्तों के बारे में आपके क्या विचार हैं?

बाबा बागड़ी: साधु सन्तों ने अतीत काल से जनता का मार्गदर्शन किया है। जनता को नैतिकता का पाठ पढ़ाया है और सदैव समाज सेवा की है। उनके उपदेश का माध्यम कोई देवी देवता हो सकता है परन्तु उद्देश्य नेक होता है। समाज का कल्याण करना होता है। अतः मेरे लिए सम्मानीय हैं। वर्तमान समय में कुछ छद्म साधु सन्यासी बन गये हैं जिनकी कथनी और करनी में फर्क होता है उनका उद्देश्य जनता को मूर्ख बनाकर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाना और अपना जीवन स्तर ऊँचा करना होता है। वास्तव में साधू सन्यासी वही है जो ‘सादा जीवन उच्च विचार’ में विश्वास रखता हो, अपने जीवन में अपनाता हो, निस्वार्थ सेवा भाव से समाज के कल्याण का उद्देश्य रखता हो। कुछ छद्म रूपी साधू सन्यासी पूरे साधू समाज को शक के घेरे में खड़ा कर रहे हैं।

प्रश्न: धर्मों द्वारा व्यक्त ‘मुक्ति’ से क्या तात्पर्य है?

बाबा बाबड़ी: इंसान के सारे सुख और दुख का कारण है उसका शरीर एवं मस्तिष्क। मौत के पश्चात तन और मन दोनों ही नष्ट हो जाते हैं। अतः मौत ही मुक्ति है। जीवन-मरण से मुक्ति महज काल्पनिक ही हो सकता है। तर्कहीन बातों पर विश्वास करना अन्धविवास है।

प्रश्न: बिजली का प्रवाह अदृश्य होता है क्या उसके अस्तित्व का भी नकार देना चाहिये?

बाबा बागड़ी: ऐसे ही बहुत सी वस्तएु हैं जो अदृश्य है परन्तु उनके अस्तित्व को विज्ञान की कसाटी पर तौला जा सकता है। उनके अस्तित्व को जाँचा-परखा जा सकता है, जैसे हवा, बेक्टीरिया , ऊर्जा के रूप में बिजली, ध्वनि, विद्यतु तरंगें (मोबाइल , टीवी, रेडीयो आदि में प्रयुक्त ) इत्यादि अतः इनके अस्तित्व को नकारने का प्रश्न ही नहीं उठता।

प्रश्न: क्या आध्यात्मवाद और धर्म में भी अन्तर है?

बाबा बागड़ी: आध्यात्मवाद से तात्पर्य है किसी अदृश्य शक्ति में विश्वास करना,

एक पालक, जनक सहायक के रूप में किसी शक्ति की कल्पना। जबकि धर्म द्वारा आध्यात्मवाद को एक मूर्त रूप दिया जाता है, जीवनशैली अथवा जीवन पद्धति को निर्देशित किया जाता है। सभी धर्म अपनी शैली के अनुयायी अधिक से अधिक बनाने में विश्वास करते हैं। पूरी दुनिया को अपनी विचारधारा के अनुरूप देखना चाहते हैं।

प्रश्न: क्या नमस्ते, राम-राम, आदाब अर्ज, गुड मॉर्निंग आदि भी धार्मिक कृत्य है?

बाबा बागड़ी: जब दो व्यक्ति आमने सामने होते हैं तो अभिवादन स्वरूप वार्ता प्रारंभ करने से पर्वू राम-राम, राधे कृष्ण, अस्लामअलकैमु अथवा गडुमॉर्निंग जैसे शब्दों का उच्चारण किया जाता है जो संकेत होता है, आपसी सम्मान का, आपसी स्नहे का अथवा आपसी मित्रता का। पाश्चात्य सभ्यता में शेक हैण्ड अर्थात हाथ मिलाने का भी चलन है,और भारतीय सभ्यता में प्रायः हाथ जोड़ क़र अभिवादन किया जाता है। यह एक संकेत है जो दो व्यक्ति आपस में मिल रहे हैं उनके सम्बन्ध मधुर हैं,उनमे प्यार है उनमे एक दुसरे के लिए सम्मान है आरै जो भी वार्तालाप होगा स्वस्थ वातावरण में होगा। अब चूंकि मानव सभ्यता का विकास धर्मों के सरंक्षण में हुआ अतः उसमें धामिर्क शब्दों के उच्चारण जोड़े गये जिसे हम धामिर्क स्वरूप में देखकर धर्मलाभ के दृष्टिकोण से देखते है।

प्रश्न: क्या चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करना तर्कसंगत है?

बाबा बागड़ी: निश्चित रूप से धार्मिक व्यक्तियों के लिए अपने बुजुर्गों, सम्माननीयों के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद अथवा दुआयें लेना ईश्वर के समीप पहुंचने की सीढ़ी मानी जा सकती है। विभिन्न धर्मों के अनुसार अपने से बड़ा व्यक्ति अथवा बुजुर्ग व्यक्ति अधिक ऊर्जावान होता है अतः उसके चरण स्पर्श कर कुछ ऊर्जा ग्रहण की जाती है और बदले में मिले आशीर्वाद ईश्वर से उसके हितों की सिफारिश के

रूप में देखी जाती है अर्थात ईश्वर की कृपा दृष्टि पाने का माध्यम माना जाता है। यदि हम चरण स्पर्श को तार्किक दृष्टि से देखें तो भी लाभकारी है, कैसे?जब एक बालक शिष्य के रूप में अपने अध्यापक के चरण छूता है, एक अधीनस्थ अपने अधिकारी के पैर छूता है, एक कमजोर व्यक्ति सामर्थ्यवान अथवा धनवान के आगे झुकता है, एक बेटा अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करता है, एक चुनाव का उम्मीदवार बुजुर्ग मतदाता के चरण स्पर्श करता है तो वह अपने सम्माननीय सामर्थ्यवान का सहयोग एवं समर्थन पाने का रास्ता खोल देता है अर्थात अपनी महत्वाकांक्षाएँ पूर्ण करने का मार्ग प्रशस्त करता है। अतः चरण स्पर्श जीवन में सफलता पाने का माध्यम है। सामने वाले को अपने पक्ष में कर लेने का सशक्त माध्यम है। अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का अचूक नुस्खा है।

बागड़ी बाबा का समापन सन्देश

आज बागड़ी बाबा आश्रम के सभी कार्यकर्ताओं, शिष्यों के विभिन्न प्रश्नों एवं जिज्ञासाओं का उत्तर दे रहे थे। जब सभी के प्रश्नों के उत्तर पूर्ण हो चुके, तो बाबा ने अपने “इंसानियत के धर्म” पर आधारित प्रवचनों के समापन पर सभा को सम्बोधित किया।

बाबा बागड़ी: सभी बन्धुओं, मित्रों एवं शिष्यांे को सम्बोधित करते हुए मुझे खुशी है मैंने अपने जो विचार “इंसानियत के धर्म” के रूप में अपने शिष्यों के समक्ष रखें, आज उनका समापन करने जा रहा हूँ।

मेरे विचारों को आप सब लोगों ने समय-समय पर सुना, समझा और उन पर कार्यान्वयन करने का प्रयास किया इसके लिए मैं आप लोगों का आभारी हूँ।

“इंसानियत का धर्म” को मैं भविष्य के धर्म के रूप में देखता हूँ जिसमें कट्टरता, वैमनस्यता, सामाजिक शोषण, अन्याय, रूढ़ीवाद, ढकोसले जैसे कृत्यों का कोई स्थान नहीं होगा। एक सुखद एवं सम्पन्न समाज की कल्पना करता हूँ। शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा० विलियम एच. मैकनील के अनुसार “भविष्य में वही समाज सफल होगा जो आपसी सामूहिक सहयोग के साथ जीना सीख लेगा” अतः अपने धर्म को अपनाने के साथ-साथ उसके मूलसार “इंसानियत का धर्म“ का ध्यान रखा जाये तो हम तथाकथित ‘सतयुग’ अथवा ‘राम राज्य’ में प्रवेश कर सकेंगे। मानव विकास का रथ दौड़ेगा एवं मानव कल्याण होगा।

धन्यवाद!