बागड़ी बाबा और इंसानियत का धर्म / अध्याय 1 / सत्य शील अग्रवाल

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विभिन्न धर्मों का उदय

इस सृष्टि का जन्म कैसे हुआ, कब हुआ, क्यों हुआ आज भी रहस्य के अन्धेरे में है। यदि यह मान लिया जाये कि सृष्टिकर्ता ईश्वर है तो ईश्वर की उत्पत्ति भी अबूझ पहेली है।

आदि मानव का इतिहास

फारूख एवं जय भगवान बाबा द्वारा दिये गये समय पर बाबा के आश्रम पहुंच गये, समय था प्रातः 6.45। अभी बाबा अपने शिष्यों को योगाभ्यस करा रहे थे। दोनों दोस्त चुपचाप बाबा का योगाभ्यास के कार्यक्रम से फ्री होने की प्रतीक्षा करने लगे। ठीक सात बजे बाबा ने आकर दर्शन दिये, दोनों दोस्तों ने अभिवादन किया और प्रश्नसूचक मुद्रा में बाबा के संदेश का इंतजार करने लगे।

बागड़ी बाबा: आज हम आप लोगों को प्रथम अध्याय से अपना संदेश कार्यक्रम प्रारम्भ करते हैं और जय भगवान से पूछते हैं, तुम बताओ क्या इंसान जिस रूप में आज हमें-आपको नजर आता है, मानव सृष्टि प्रारम्भ काल में भी ऐसा ही था?

जय भगवान: बाबा जी, जैसा कि मैंने प्रारम्भिक कक्षाओं में पढ़ा है, उसके अनुसार तो इंसान और जानवर में कोई फर्क नहीं था। मानव भी अन्य जानवरों की भांति कन्दमूल फल खाता था और बंदरों की भांति पेड़ों पर रहता था, जंगलों में घूमता था और कन्दराओं में रहना सीख रहा था। इतिहास के पन्नों पर पाषाण युग का वर्णन करते हुए बताया गया है, इस युग में मानव ने पत्थरों से आग जलाना, मांस भूनकर खाना और पेड़ांे की छाल या पत्ते बदन को ढकने के लिए प्रयोग में लाने लगे थे।

बाबा बागड़ी: बिल्कुल ठीक कहा बेटा तुमने और यहीं से हम प्रथम अध्याय का प्रारम्भ कर रहे हैं। इस सृष्टि का जन्म कैसे हुआ, कब हुआ, क्यों हुआ कुछ ऐसे प्रश्न है जिनके उत्तर न तो आज तक मिल पाये हैं और न ही आगे कोई संतोषजनक तर्क संगत उत्तर मिलने की सम्भावना है। जो भी इन प्रश्नों का उत्तर देते हैं वे सिर्फ कल्पना के घोड़े दौड़ाते हैं। ठोस उत्तर किसी के पास नहीं है। परन्तु यह तो निश्चित है इंसान उत्पत्ति काल में कैसा था और पाषाण युग उसकी विकास यात्रा की प्रथम सीढ़ी थी। परन्तु फारूख क्या यह बता सकते हो सिर्फ मानव ही विकास क्रम में प्रवेश कर पाया, अन्य जीव आज भी यथावत स्थिति में है क्यों?

फारूख: बाबाजी, मानव एवं अन्य जीवों में मुख्य अंतर है, मानव का मस्तिष्क, मानव का मस्तिष्क विकास करने की क्षमता रखता है, वह सोच सकता है, विचार करके अपनी परिस्थितियों में परिवर्तन ला सकता है जबकि अन्य जीवों में मस्तिष्क तो होता है, परन्तु अपने दैनिक कार्यों तक सीमित होता है, उनकी विचार शक्ति, परिवर्तन लाने की क्षमता नहीं रखती। उसी अद्भुत विकास क्षमता के कारण मानव ने अपने लिए अपार सुविधाएं जुटा लीं और आज भी निरंतर विकास की ओर उन्मुख है।

बाबा बागड़ी: तुम दोनों दोस्त वाकई बुद्धिमान हो, और मुझे आशा है तुम्हें समय देकर मेरी मेहनत बेकार नहीं जायेगी, तुम मेरे लिए कारगर शिष्य साबित होगे। हाँ, तो अपने विषय पर लौटते हुए सिर्फ मानव दिमाग ने जो कभी आसमान में चमकती बिजली से भयभीत हुआ, कभी वर्षा की जानकारी लेने का प्रयास किया, अन्य जीवों के बारे में सोचा समझा, गर्मी और जाड़े की पहेली समझने की कोशिश की तो कभी जंगलों में अनेकों पेड़ पौधों के बारे में सोचा समझा।

अनेक प्रश्नों के उत्तर उसके लिए उलझन पैदा करते रहे। बहुत से प्रश्न तो आज तक भी अनसुलझे हैं। इन अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर के रूप में उसने एक अज्ञात-अदृश्य शक्ति की कल्पना कर डाली। अनसुलझी घटनाओं और परिस्थितियों के लिए उसे जिम्मेदार मानकर अपने मन की जिज्ञासा शांत की।

अब इस अदृश्य शक्ति की कल्पना को भिन्न-भिन्न स्थानों पर, अलग-अलग देशों में पृथक रूपों और पृथक नामों से जाना गया। कहीं पर वह देवता, शिव पार्वती, राम, अल्लाह के नाम से जाना गया तो कहीं पर गौड़ के रूप में उसे देखा गया। सभी ने अपने इष्ट देव को विभिन्न आकृतियों में जाना। सबके पूजा-अर्चना, नमाज, प्रेयर आदि के ढंग भी अलग ही रहे। इष्ट देव की मान्यताओं के ढंग भी अलग ही रहे। इष्ट देव की मान्यताओं के अनुसार धर्म भी अलग-अलग नाम से जाने गये। धर्म के प्रवर्तक और अनुयायियों एवं प्रचारकों ने अपने वर्ग, अपने समाज, देश की कानून व्यवस्था, मानव जीवनचर्या को नियंत्रित करने का भार भी अपने ऊपर ले लिया। समुचित साधनों के विकास के अभाव में यह एक चुनौती भरा कार्य था परन्तु धर्माधिकारी अपने इस शुभ कार्य में सफल हुए। क्योंकि शिक्षा के अभाव में जनता को व्यवस्थित करना, उन्हें समाज में शान्ति-अहिंसा एवं कर्त्तव्यों का पाठ पढ़ाना आसान कार्य नहीं था। उन्होंने धर्म के सहारे मानव को इंसानियत का पाठ पढ़ाया। उनके उद्देश्य महान थे। परन्तु कालान्तर में उनके बताये गये दिशा-निर्देशों का दुरूपयोग शुरू कर दिया गया, कुछ नियमों का अर्थ का अनर्थ बना दिया गया। कुछ कायदे-दिशा-निर्देश विकास के साथ अपरिहार्य हो गये।

उपरोक्त सभी कारणों से समाज ने अनेकों भ्रांतियों-रूढ़ियों-आडम्बरों को जन्म दिया। अनेकों प्रकार की विसंगतियाँ उत्पन्न हो गयीं। जिन्होंने समाज को कष्टप्रद जीवन जीने को मजबूर कर दिया। अनेक कुप्रथाओं के चंगुल में समाज फंसता चला गया। सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा, धार्मिक कट्टरता, नारी शोषण, तान्त्रिक शोषण, छुआछूत जैसी परम्पराओं से समाज कराह उठा।राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी, भीमराव अम्बेडकर जैसे अनेक महापुरुषों ने समाज के दर्द को समझा और यथा शक्ति भरपूर प्रयास कर समाज में सुधार लाये। परन्तु अभी भी बहुत सारी विकृतियाँ समाज में विराजमान हैं, जिन्हें सुधारने की आवश्यकता है। अतः आज के वैज्ञानिक युग एवं विकसित सामाजिक स्थिति में प्रत्येक धर्म में प्रचलित परम्पराओं का तर्कसंगत एवं समाज के हित में विश्लेषण करने की आवश्यकता है। ताकि विसंगतियों, रूढ़ियों, आडम्बरों से समाज मुक्त हो सके और मानव विकास के रथ पर तेज दौड़ लगा सके। इसके साथ ही बाबा बोले आज हम अपने संदेश को यहीं विराम देते हैं। अगली बैठक (मीटिंग) में फिर मिलेंगे। फारूख और जय भगवान दोनों बाबा को प्रणाम कर अपने अपने घर लौट गये। कुछ समय पश्चात जब दोनों अपने शोरूम पर पहुंचे तो दोनों दोस्तों में गजब का उत्साह था, उन्हें बाबा द्वारा किया गया वार्तालाप बहुत पसन्द आ रहा था। वे उनसे अपनी मुलाकात को अपना सौभाग्य मान रहे थे। वे दोनों इतने प्रभावित थे कि उन्हें बाबा के आश्रम में रहकर सेवा करने की इच्छा हो रही थी। परन्तु वे अपने कारोबार एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों से बंधे हुए थे। अतः प्रत्येक सोमवार को मुलाकात बनाये रखने का ही विकल्प उनके पास था।

विभिन्न धर्मों का उद्भव

यद्यपि पाषाण युग के पश्चात् धर्मों के उद्भव तक के सफर को र्काइे विशेष इतिहास उपलब्ध नहीं है। सिर्फ कल्पना से ही सोचा समझा जा सकता है। प्रस्तुत है बाबा के इस सम्बन्ध में अपने उद्गार। आज फारूख आरै जय भगवान जब बाबा के आश्रम में पहुंचे तो बाबा उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहे थे।उन्होंने दोनों का भरपूर स्वागत किया। बाबा भी इन दोनों शिष्यों लेकर काफी उत्साहित थे।

बाबा ने अपना वार्तालाप प्रारंभ करते हुए कहा:

बाबा बागड़ी: धर्मों के उद्भव के बारे में विचार करने से पहले हमें मानव की पाषाणयुग से धर्मों के उद्भव काल तक की विकास यात्रा का अध्ययन करना होगा, जो सिर्फ कल्पना पर ही आधारित है परन्तु तर्क पर आधारित है। सर्वप्रथम पत्थर से आग उत्पन्न कर मांस भून कर खाना, पेड़ों की छाल और पत्तों से बदन ढकना पाषाण युग तक का विकास है। उसके पश्चात् आपसी बातों को एक-दूसरे तक धीरे-धीरे भाषाओं के रूप में विकसित हो गये। विचारों का आदान-प्रदान मानव विकास की महत्वपूर्ण एवं आवश्यक कड़ी थी। भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न भाषाओं का विकास हुआ और एक दूसरे के विचार जानने, बतलाने की योग्यता प्राप्त कर ली। उसके पश्चात् प्राकृतिक घटनाओं को सोचने समझने का प्रयास किया गया। कुछ घटनाएं समझ आयीं तो कुछ को अपनी कल्पना से विश्लेषण किया और कल्पना की किसी अदृश्य शक्ति की अथवा ईश्वर की। भाषाओं के विकास की भांति ईश्वर को भी भिन्न नामों से जाना गया। जब तक मानव ने खेती बाड़ी करना सीख लिया था, अपने समूह में परिवार को इकाई का रूप देना प्रारम्भ कर दिया और भिन्न नदियों अथवा जल स्रोतों के करीब अपने रहने के लिए मकान (झुग्गी-झोंपड़ी) बनाने शुरू कर दिये और समूह को बस्ती का रूप मिल गया।

मानव ने समूह में मिलकर सभी जीवों को मार डाला अथवा मारने की योग्यता प्राप्त कर ली। कुछ को अपने कब्जे में करना सीख कर अपने लाभ के लिए उनका उपयोग किया। गाय, भैंस, भेड़, बकरी, गधे, घोड़े, ऊँट, हाथी आदि इसी प्रकार के जीवों में आते हैं। जो मानव के लिए नुकसानदायक थे उन्हें नष्ट कर दिया अथवा अपनी बस्ती से खदेड़ दिया। सभी जीवों को नियंत्रित करने के पश्चात समस्या थी, मानवीय व्यवहार को नियंत्रित करने की क्योंकि मानव के पास दिमाग होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार भी भिन्न-भिन्न होता है। सबको साथ मिलकर शांतिपूर्वक रहने के लिए कुछ नियमों का निर्माण कर उन्हें लागू करने की बाध्यता थी।

ईश्वर के रूप में उसे अभेध अस्त्र प्राप्त हो चुका था और उन्होंने मानव को अपने समाज में रहने के लिए कुछ नियम बनाये और ईश्वर द्वारा बताया गया निर्देश माना गया। जैसे हिंसा न करो, सबके साथ प्यार से रहो, अपने बच्चों और परिवार को पालने की जिम्मेदारी निभाओ, ईश्वर से डरो। उसके कहर से बच नहीं सकते, तुम्हारे सारे कार्य उसकी नजर से बच नहीं सकते। अतः अपने क्रियाकलापों पर नियंत्रण करो, आदि अनेक नियम बनाकर एक धर्म का रूप दे दिया गया। धर्म का वास्तविक अर्थ है- धारण करना अर्थात अपनी जीवन चर्या को एक व्यवस्थित रूप देना।

ये विभिन्न धर्म ही समाज को जब भी नियंत्रित करते रहें, जब मानव के पास अपराध रोकने के पर्याप्त साधन नहीं थे और आज के हाईटैक युग में भी अपना दखल बनाये हुए हैं। जबकि आज समाज को नियंत्रित करने के लिए अनेकों कानून विद्यमान हो चुके हैं। ईश्वर की वाणी, संदेश के रूप में एकत्र कर प्रत्येक धर्म ने अपने ग्रन्थों की रचना की जिसमें मानव को उसके प्रत्येक कार्य (अवस्थानुसार- आवश्यकतानुसार) के लिए निर्देशित किया गया और मानव जीवन सुलभ कराया। यह भी एक रोचक तथ्य है धार्मिक उद्भव का इतिहास अधिकतम पांच हजार वर्ष पुराना है जबकि पृथ्वी पर सृष्टि का आगमन लाखों वर्ष पूर्व माना जाता है और पृथ्वी का निर्माण काल करोड़ों वर्ष पूर्व माना गया है। स्पष्ट है धर्म का उद्भव उसी समय सम्भव हुआ जब मानव ने भाषा का विकास पूर्ण रूपेण कर लिया, रहने और खाने की व्यवस्था करना सीख लिया अन्य जीवों पर विजय प्राप्त कर ली। उसके पश्चात ही उसे मानव समाज को नियंत्रित करने और अपने विकसित दिमाग को शांत करने का मार्ग खोजना सम्भव हुआ।

जय भगवान: क्या हमारे पास लगभग पांच हजार पूर्व तक का ही इतिहास उपलब्ध है। उससे पूर्व सिर्फ कल्पनाओं एवं वैज्ञानिक तर्कों पर आधारित इतिहास है?

बाबा बागड़ी: इतिहास एक संचित ज्ञान एवं जानकारी होती है जो बिना लेखन सामग्री एवं लेखन योग्यता (भाषा का विकास, लिपि का विकास) के बिना सम्भव नहीं होता और यह भी सत्य है प्राचीनतम ग्रन्थों में धार्मिक ग्रन्थ ही उपलब्ध हैं। आज भी देसी इलाजों का मुख्य स्रोत ‘आयुर्वेद’ माना जाता है जिसमें विभिन्न जड़ी बूटियों के सेवन से मानव स्वास्थ्य रक्षा के उपाय सुझाए गये हैं। यहाँ पर ग्रन्थों का अध्ययन करना अपने मुख्य विषय से हटना होगा। अतः संदर्भ में इतना ही बताना काफी है। हिन्दू धर्म के ग्रन्थ विश्व में प्राचीनतम ग्रन्थ माने जाते हैं जिन्होंने धर्म, ईश्वर और अध्यात्म के विषय में जानकारी उपलब्ध करायी है। साथ ही साथ मानव व्यवहार उसकी जीवनशैली और स्वास्थ्य रक्षा के उपायों का वर्णन भी संचित है। ईसाई धर्म का इतिहास लगभग दो हजार वर्ष पूर्व स्थापित माना जाता है। ”जबकि इस्लाम धर्म लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व स्थापित माना जाता है“ बौद्ध धर्म, जैन धर्म भी समकालीन माने जा सकते हैं, सिख धर्म का इतिहास सिर्फ लगभग छः सौ वर्ष पुराना है। विश्व में और अपने देश में अनेक अन्य धर्म भी मौजूद हैं जिनमें अलग-अलग परम्पराएं, मान्यताएं हैं। मानव समाज धर्मों एवं धर्माधिकारियों द्वारा निर्देशित एवं नियन्त्रित होते रहे। यद्यपि विश्व स्तर पर धर्मों का प्रभाव आपसी सम्बन्धों को पुष्ट करने के लिए बाधित नहीं रहा है। अब मानव ने अपने व्यवहार को धर्मों से जोड़ने की प्रवृत्ति छोड़ दी है। विश्व स्तर पर विकास करने के लिए यह आवश्यक भी हो गया है। सिर्फ मानवीयता या इन्सानियत की धारणा जन्म ले रही है। आज की चर्चा यही पर समाप्त करता हूँ।