बागड़ी बाबा और इंसानियत का धर्म / अध्याय 2 / सत्य शील अग्रवाल

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धर्मों के माध्यम से सामाजिक नियन्त्रण

‘‘प्राचीनकाल में धर्मों के माध्यम से ही सामाजिक नियन्त्रण सम्भव हुआ। मानव स्वास्थ्य से सम्बन्धित प्रत्येक लाभप्रद वस्तु को धार्मिक रूप देकर आम जनता में लोकप्रिय बनाया गया।”

जय भगवान् और फारूख अपने शो रूम पर बैठकर भी बाबा से हुई मुलाकात और चर्चा को याद करते रहते थे। वे अपने अनुभव अपने स्टाफ यानि रमेश, राजेन्द्र एवं नसीम जो सभी टैक्निशियन थे, से बांटते थे। उनके लिए स्टाफ उनके परिवार के सदस्य के रूप में थे। सभी बहुत ईमानदार और नेक इंसान थे, बिल्कुल अपने मालिकांे की तरह। उन्हें सिर्फ अपने वेतन से ही सन्तुष्टि थी। वे भी अपने मालिकों की ईमानदारी, सभ्यता, पारदर्शिता, शालीनता से बहुत प्रभावित थे। यही कारण उन्हें यहाँ कई वर्षों से रोके हुए था। जब मालिक लोग बागड़ी बाबा की चर्चा करते थे, वे लोग बड़े ध्यान से उनकी बातें सुनते थे। उन्हें बाबा के बारे में बातें सुनना बहुत पसन्द आता था। फारूख ने उन लोगों की दिलचस्पी देखते हुए उन लोगों से वादा किया जो भी वे सुनकर आयेंगे आप लोगों को बता दिया करेंगे।

फारूख: अब की बार सोमवार को कम्पनी के ऑफिस भी जाना है, वहाँ माल का ऑर्डर, रिप्लेसमेंट के बारे में चर्चा एवं पेमेण्ट आदि अनेक कार्य करने हैं। जय भगवान क्या इस हफ्ते बाबा बागड़ी के पास जाना स्थगित करना पड़ेगा।

जय भगवान: हम लोग ऐसा भी कर सकते हैं, सवेरे जल्दी कम्पनी के ऑफिस जाकर, संध्या पांच बजे तक लौट आयें और बाबा से संध्या समय वार्तालाप का समय नियत कर लें।

फारूख: क्या बाबा शाम का समय दे देंगे? क्या उनके पास समय खाली होगा?

जय भगवान: बाबा से आज ही फोन पर बातें करके अपना आग्रह करेंगे यदि मान गये तो एक सोमवार खाली नहीं जायेगा।

फारूख: हाँ तुम्हारा विचार सही है। जय भगवान ने फोन पर बाबा से निवेदन किया तो बाबा ने स्वीकार कर लिया। अगले दिन सोमवार संध्या सात बजे बाबा ने चर्चा आरम्भ की।

बाबा बागड़ी: आज हम द्वितीय अध्याय प्रारम्भ करने जा रहे हैं। इस अध्याय द्वारा हम विभिन्न धर्मों के संस्थापकों ने जो नियम, मानव दिनचर्या के लिए बनाये, उन्होंने ‘क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये’ के दिशा-निर्देश स्थापित किये, का विश्लेषण करेंगे। इस अध्याय में सिर्फ वे नियम अध्ययन के लिए चुन रहे हैं जो मानव हित में आज भी समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं यदि उन्हें तार्किक रूप से समझा जाये और उसके पीछे छिपे उद्देश्य को पहचाना जाये। प्राचीन स्थापित मान्यता आज भी मानव समाज को लाभप्रद साबित हो सकती है। जय भगवान बेटा बताओ तुम गंगा में स्नान करने जाते हो?

जय भगवान: बचपन में अपने ननिहाल से अनेकों बार अनेक पर्वों पर नहाने जाते थे, क्योंकि गंगा जी ननिहाल से कुछ किमी पर ही थी। उस समय गंगा जल आज की भांति गंदा और काला नहीं होता था परन्तु अब तो मुझे गंगा स्नान किये हुए दस वर्ष से अधिक हो चुके हैं। बाबा क्या वास्तव में उसमें स्नान करके पापों से छुटकारा मिलता है?

गंगा स्नान से पापों से मुक्ति

बाबा बागड़ी: गंगा में स्नान वास्तव में मानव स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। वैज्ञानिक शोधां से ज्ञात हुआ है गंगा जल जो गंगोतरी से आता है उसमें अनेक रासायनिक तत्व मौजूद हैं जो मानव को अनेक त्वचा रोगों और पेट के रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम हैं।

परन्तु गंगा जैसे-जैसे मैदानों में उतरकर आगे बढ़ती है इसमें विभिन्न कल कारखानों का कचरा अथवा रासायनिक द्रव और विभिन्न बस्तियों से मलमूत्र विसर्जित किया जाता है जिसने गंगा जैसी पवित्र नदी के जल को पूर्णतया प्रदूषित कर दिया है। गंगा नदी एक गंदे नाले के रूप में बदलने लगी है। अतः इस प्रदूषित जल में स्नान करना और पीना स्वास्थ्य कर नहीं हो सकता। शायद आगे चलकर तो इसे छूना भी अपने को संक्रमित कर लेना होगा।अतः यदि प्रकृति के इस अनमोल तोहफे का लाभ लेना है तो सिर्फ आस्था मात्र से लाभ नहीं चलेगा। प्रत्येक आस्थावान और सचेत व्यकित को गंगा को अशुद्ध करने वाले कारकों से जूझना पड़ेगा और स्वयं भी इस जल को प्रदूषित न करने का संकल्प लेना होगा।गंगा का जल यदि वास्तविक रूप में प्राप्त हो तो गंगा स्नान का अर्थ होगा प्रकृति की गोद में स्नान कर स्वास्थ्य लाभ करना। स्वास्थ्य लाभ ही मानव के लिए सबसे बड़ी पाप से मुक्ति के समान है। प्रकृति की गोद में स्नान का अर्थ है, प्रकृति के पांचों तत्वों का यानि अग्नि, पृथ्वी वायू, जल और आकाश का मिलन जो प्राकृतिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण माना गया है। तुलसी का पौधा प्रत्येक हिन्दू के घर में विद्यमान होता है, उसकी पूजा अर्चना की जाती है। जय भगवान तुम्हारे घर आंगन में भी तुलसी महकती होगी।

जय भगवान: जी बाबा, मैंने एक बड़ी सी होदी में बहुत बड़ा पौधा लगा रखा है, हम तो उसके पत्ते चाय में डालकर भी पीते हैं। अनेक रोगों में इसके पत्तों का उपयोग करते हैं। मेरी दादी मां इसके पत्तों को दवा के रूप में प्रयोग करना जानती हैं।

तुलसी को देवी रूप में पूजा जाता है

बाबा बागड़ी: हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार प्रत्येक घर में तुलसी का होना शुभ माना जाता है और सुबह-शाम इसकी पूजा अर्चना का भी विधान है। वैज्ञानिकों ने जब इस मान्यता का अध्ययन किया तो उन्हें चौकाने वाले परिणाम मिले। तुलसी का पौधा इतनी ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है जिससे पूरे परिवार की ऑक्सीजन आवश्यकताएं पूर्ण होती हैं और आसपास का वातावरण भी शुद्ध होता है। यह हमारे पूर्वजों की एक नायाब खोज है। जो मानव स्वास्थ्य के लिए वरदान है। सवेरे शाम पूजा अर्चना का अर्थ है हम उसके सानिध्य से अधिक ऑक्सीजन ग्रहण कर सकें। एक और चमत्कार इस पौधे में है यह विद्युत का सुचालक होता है तथा आसमान में उपस्थित तड़ित विद्युत भवन पर नहीं गिरती, बल्कि तुलसी के पौधे के माध्यम से पृथ्वी में समा जाती है और भवन को विद्युत से हानि नहीं होती। तुलसी के पत्ते के बीज अनेक रोगों से मुक्ति दिला सकते हैं। तुलसी के पत्तों का एक निश्चित मात्रा में नियमित सेवन इंसान के शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है। चरणामृत में तुलसी का प्रयोग इसी कारण से बताया गया है। तुलसी से चिकित्सा एक गहन विषय है। अतः वर्तमान युग में भी तुलसी के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। जिसे ऋषि मुनियों ने धार्मिक आस्था का विषय बनाकर अपरोक्ष रूप से मानव को स्वस्थ रहने का मार्ग उपलब्ध करा दिया। जब इंसान को तुलसी के उपयोग से लाभ होगा तो उसकी आस्था उसकी पूजा-अर्चना में दृढ़ होती है और धर्म संचालकों को अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त होती है। समाज की सेवा का संतोष लाभ भी प्राप्त होता है।

फारूख: बाबा क्या मैं भी अपने घर पर तुलसी का पौधा लगा सकता हूँ।

बाबा बागड़ी: बेटा तुलसी के पौधे का लाभ मानव मात्र के लिए नहीं है। उसके लाभ धर्म को देखकर नहीं होते। प्रत्येक धर्म के अनुयायी तुलसी के पौधे का पूरा-पूरा लाभ पा सकते हैं। स्वास्थ रहना प्रत्येक मानव का जन्म सिद्ध अधिकार हैं

फारूख: बाबा आपने तो मुझे एक वरदान दे दिया। अपने घर वालों की सहमति लेकर मैं भी अपने घर में तुलसी का पौधा लगाऊँगा।

सूर्य नमस्कार

बाबा बागड़ी: अब हम आगे बढ़ते हैं ‘सूर्य नमस्कार’ की मान्यता की ओर। हिन्दू धर्म में प्रातः सवेरे विशेष रूप से सूर्योदय के समय ‘सूर्य’ को जलाभिषेक कर नमन करने की मान्यता है। अर्थात सूर्य को भगवान के रूप में पूजा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार अब तक की खोजों के अनुसार पृथ्वीवासियों के लिए एकमात्र असीम ऊर्जा का स्रोत है और यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सूर्य के बिना पृथ्वी पर सृष्टि का अस्तित्व भी असम्भव है। इसका अंशतः अनुभव जब प्राप्त होता है जब कभी शरद ऋतु में बादलों के कारण पन्द्रह बीस दिन तक सूर्य की किरण पृथ्वी तक नहीं आ पाती। सभी जीव जन्तु मुरझा जाते हैं, पेड़ पौधे के पत्ते पीले पड़ जाते हैं और नर्सरी पौधे मरने लगते हैं। अतः सूर्य का अस्तित्व हमारे लिए महत्वपूर्ण है। सूर्योदय के समय सूर्य से प्राप्त किरणें मानव स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। उस समय हमारा शरीर विटामिन डी की आवश्यकताओं की पूर्ति भी कर सकता है। इसी लाभ को जनता तक पहुँचाने के लिए, सवेरे स्नानादि कर सूक्ष्म कपड़ों के साथ सूर्योदय को जलविसर्जन एवं सूर्य नमस्कार को योग को सूर्य पूजा के रूप में मान्यता दी गयी। चिकित्सा विज्ञान के न्यूनतम साधनों के समय मानव स्वास्थ्य को बनाये रखने का बेहतरीन तरीका खोजा गया जिसका लाभ आज भी कम नहीं हुआ है। यदि सम्भव हो तो सवेरे

शीघ्र उठकर प्रत्येक धर्म के अनुयायी को सूर्य के समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज करनी चाहिये।

जय भगवान: बाबा, मैं तो सुबह सात बजे के पश्चात ही उठ पाता हूँ तो फिर सूर्योदय के वक्त जल विसर्जन करना कैसे सम्भव हो सकता है।

फारूख: बाबा हम व्यापार के कार्यों से देर से मुक्त होते हैं और फिर दिन में विश्राम करने का भी समय नहीं मिल सकता। फिर सूर्योदय के समय उठकर सूर्य दर्शन चाहकर भी नहीं कर सकते।

बाबा बागड़ी: मुझे खुशी है, मेरी प्रत्येक चर्चा तुम्हें प्रभावित कर रही है। देखो, बेटा सारे सुख सबको उपलब्ध नहीं हो पाते, परन्तु उससे उस सुख का महत्व कम नहीं होता। तुम लोग प्रत्येक सोमवार को मेरे पास सवेरे आते हो, जाहिर है उस दिन शीघ्र उठते हो, अतः कम से कम उस दिन सूर्य दर्शन भी कर सकते हो। अतः जो सम्भव है, उसे तो कर ही सकते हो। अधिक नहीं थोड़ा लाभ तो होगा ही।

दोनों दोस्त: आपका सुझाव पसन्द आया और आगे से सोमवार का दिन सूर्य दर्शन के लिए उचित रहेगा। उसके पश्चात दोनों मित्रों ने बाबा को प्रणाम कर विदा ली।

उपवासों की मान्यता

निश्चित कार्यक्रम के अनुसार अगले सोमवार सवेरे समय पर दोनों मित्रों ने बाबा के आश्रम में प्रवेश किया। बाबा के शिष्य ने उन्हें, प्रतीक्षा करने के लिए आंगन में पड़ी कुर्सियों पर बैठने का आग्रह किया। उनके नाम पूछकर बाबा को सूचित करने चला गया। लौटकर उसने बाबा द्वारा बुलाये जाने का संदेश दिया। दोनों दोस्त उठकर बाबा के पास पहुँचे।

बाबा बोले: यद्यपि मैं एक आवश्यक योजना बनाने में व्यस्त था परन्तु आप लोगों के पास समय सीमित होता है और फिर अपने कार्य के लिए व्यस्त होना पड़ता है। अतः अपने कार्य बाद में कर लूँगा। पहले आप लोगों को अपनी चर्चा का अंश सुनाकर फ्री कर दूँ।

दोनों मित्र: आपका व्यवहार सुनकर-देखकर हम लोग आपके अत्यन्त आभारी हैं। आपने हमारे लिए इतना सोचा यह कोई साधारण सोच नहीं हो सकती। यह हम पर आपके प्यार की वर्षा है।

बाबा बागड़ी: क्योंकि मैं एक हिन्दू परिवार मैं पैदा हुआ था, अतः हिन्दू मान्यताओं का अधिक अध्ययन करने का मौका मिला। यद्यपि उपवास प्रत्येक धर्म में प्रचलित है परन्तु उनके स्वरूप भिन्न-भिन्न हैं जैसे मुस्लिम धर्म में रोजे के रूप में उपवास किये जाते हैं। तो हिन्दू धर्म में व्रत के रूप में और ईसाई धर्म में फास्ट के रूप में जाने जाते हैं। प्राचीन काल में शिक्षा प्रचार के अभाव में समाज के नेता अर्थात धार्मिक नेता (उस समय धार्मिक नेता ही समाज का नेतृत्व भी संभालते थे) प्रत्येक लाभप्रद कार्य को धर्म से जोड़कर जनता के सामने रखते थे और जनता को अपरोक्ष रूप से स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करते थे, जो स्वरूप आज भी जनता के दिलों में विराजमान है, अब देखते हैं उपवास, रोजे अथवा फास्ट से मानव स्वास्थ्य कैसे लाभ करता है। सभी उपवास पेट को नियन्त्रित करने के माध्यम हैं। हिन्दू धर्म में वैसे तो वर्ष भर त्यौहारों का प्रावधान चलता रहता है परन्तु नवरात्रि के व्रतों का महत्व कुछ अधिक ही बताया गया है। नवरात्रि वर्ष में दो बार अर्थात हर छः माह पश्चात आठ दिन लगातार व्रत रखे जाते हैं। जब भी नवरात्रि पर्व आते हैं हमारे देश में ऋतु परिवर्तन काल होता है और परिवर्तन काल में समस्त प्राणी पेट की समस्या अर्थात हाजमा खराब से जूझते हैं।अतः उन दिनों लगातार एक समय भोजन कर पेट को विश्राम का अवसर देकर उसे ऋतु परिवर्तन के लिए तैयार कर लिया जाये तो पूरे वर्ष मानव प्राणी पेट की समस्याओं से बच सकता है। और पेट स्वस्थ रहने से स्वास्थ्य सम्बन्धी अधिकतर समस्याओं से बचा रहता है। अतः नवरात्रि व्रत पाचन क्रिया नियन्त्रित करने का अचूक नुस्खा है। इसी प्रकार रोजों में उपवास का अलग महत्व है। रोजे पूरे वर्ष में एक चक्रीय तिथियों में पीछे को हटते हुए चलते हैं। अर्थात् प्रति वर्ष रोजों का समय पूर्व से लगभग दस दिन पहले शुरू होता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में हर मौसम में रोजे रखने का अनुभव करता है। रोजों के दिनों में पूरे दिन (सूर्यकाल) कुछ भी खाने पीने से अलग रहना होता है। पूरे रमजान माह में उन्हें भूख एवं प्यास को सहन करना होता है। अब रमजान का माह गर्मी में भी हो सकता है और बरसात और जाड़ों में भी। वस्तुतः पूरे माह रोजों से मनुष्य भूखे प्यासे रहने की सहनशक्ति विकसित करता है। साथ ही पेट को एक निश्चित अवधि तक नियन्त्रित विश्राम देकर स्वास्थ्य बनाने मंे सहयोग देता है और नई ऊर्जा के संचार होने से पूरे वर्ष हष्ट पुष्ट बना रहता है। यह एक आश्चर्य की बात है कि रोजे रखने से धार्मिक लाभ के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। मैंने अपने अनेक साथियों को रोजे न रखकर रोजों का बहाना करते देखा है। वे अपने धर्म से विमुख तो होते ही हैं, अपने स्वास्थ्य से भी अन्याय करते हैं। यह तो अब जानने को मिला।

जय भगवान: हमारे परिवार में लगभग सभी नवरात्रि के पहले दिन और आखिरी दिन व्रत रखते हैं ताकि देवी मां की पूजा भी हो जाये और अधिक दिन व्रत भी न रखना पड़े। परन्तु स्वास्थ्य की दृष्टि से तो पूरे आठ दिन ही व्रत रहना चाहिये।

बाबा बागड़ी: व्रत का अर्थ होता है सिर्फ एक समय सादा भोजन और फलाहार लिया जाये। यदि कोई व्यक्ति पकवान एवं व्यंजन का सेवन करता है तो वह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी नहीं हो सकता। आज समय अभाव के कारण सिर्फ इतना ही काफी है और आज का कार्यक्रम समाप्त करते हैं।

देवालयों में शंखनाद एवं घंटों की ध्वनि का महत्त्व

अनेक धार्मिक स्थलों पर घंटे बजा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी जाती है,शायद देवताओं अथवा इष्ट देव को प्रसन्न की प्रथम सीढ़ी मानी जाती है परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं की घंटे बजने का एक वैज्ञानिक महत्त्व भी है ,विज्ञान के अनुसार यह क्रिया स्वास्थ्यकारी है .

जय भगवान: मुझे तो अपनी संस्कृति एवं पूजा पद्धति से लगाव होता जा रहा है। भगवान मिले न मिलें वे हमारी मनोकामना पूरी करें न करें हमारा स्वास्थ्य तो पूजा पद्धति ही सही कर देती है। धन्य है हमारी संस्कृति। धामिर्क स्थलों पर घंटे बजाकर अपनी उपस्थित दर्ज करायी जाती है, शायद देवताओं अथवा इष्टदेव को पस्रन्न करने की प्रथम सीढी़ मानी जाती है। परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि घन्टे बजाने का वैज्ञानिक आधार पर अलग महत्व है जो स्वास्थ्यकारी है

जय भगवान: बाबा आप फरमा रहे हैं, भला घंटे बजने से स्वास्थ्य का क्या सरोकार। यह तो बिल्कुल आश्चयजनक बात आप बता रहे हैं।

फारूख: क्या हम जान सकते हैं इनका वैज्ञानिक महत्व क्या है?

बाबा बागड़ी: अवश्य बताऊँगा, यह बताने के लिए ही तो इस विषय को छेड़ा है। दरअसल घंटों की ध्वनि तरंगे बैक्टीरिया का नाश करती हैं और मन्दिर का वातावरण शुद्ध करने में सहायक होती हैं।

जय भगवान: बाबा जी, मन्दिर में तो पुजारी जन काफी साफ सफाई रखते हैं फिर बीमारी के बैक्टीरिया कहाँ से आ जाते हैं। हमारे पुजारी जी तो भगवान की मूर्तियों की बहुत साफ-सफाई करते रहते हैं। उनके वस्त्रों को भी बदलकर शुद्ध करते रहते हैं।

बाबा बागड़ी: जय भगवान बेटा तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। परन्तु बेटा मन्दिर एक सार्वजनिक स्थान है जहाँ प्रत्येक वर्ग अर्थात गरीब, अमीर, रोगी-निरोगी के लिएद्वार खुले हैं अतः निरन्तर शंखनाद एवं घंटों की ध्वनि करते रहने से बैक्टीरिया खत्म होते रहते हैं और हवा शुद्ध-रोग रहित बनी रहती है। विशेष तौर पर किसी पर्व पर मन्दिर में अधिक भीड़ होने पर उपस्थित भक्तों को संक्रामकता से बचाव होता है।यह सही है?

जय भगवान: बाबा जी, हवन को भी तो वायु शुद्धि का कारण माना जाता है क्या ?

बाबा बागड़ी: यह बात सही है कि हवन में प्रयुक्त हवन-सामग्री घी, कपूर, धूप बत्ती आदि अग्नि में प्रज्वलित होकर वायु में ऑक्सीजन की वृद्धि करते हैं और वायु को कीटाणु रहित करते हैं। अक्सर तुमने देखा होगा जिस देवालय में नियमित हवन होते रहते हैं वहाँ पहुंचकर मन एक अजीब सी शान्ति अनुभव करता है और मन प्रफुल्लित होता है, वह वहाँ के शुद्ध वातावरण का कमाल होता है।

गायत्री मन्त्र का महत्व

बाबा बागड़ी: अब मैं एक विषय पर और प्रकाश डालकर अपनी वाणी को विराम दूंगा। हिन्दू धर्म में गायत्री मन्त्र का जाप सभी मन्त्रों के मुकाबले अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। सभी ऋषि मुनियों ने गायत्री का जाप प्रत्येक पूजा में आवश्यक माना है। इसके जाप का महत्व जानने के लिए बह्म्रबर्चस्व शान्तिकुञ्ज हरिद्वार ने शोध किया, तो पाया सभी मन्त्रों के उच्चारण के मुकाबले गायत्री मन्त्र का जाप अर्थात उसके जाप से उत्पन्न ध्वनि तरंगों का प्रभाव मानव शरीर एवं मन पर सर्वाधिक पाया गया।गायत्री मत्रं के निरतंर उच्चारण से न सिर्फ मानव शरीर में ऊर्जा का संचार होता है, उसका शरीर स्वस्थ रहता है, बल्कि

जाप स्थल के वातावरण में भी स्वच्छता आरै सकारात्मकता आती है जो आने वाले मेहमानों को सुखद अनुभूति का अहसास कराती है।

जय भगवान: मुझे तो अपनी संस्कृति एवं पूजा पद्धति से लगाव होता जा रहा है। भगवान मिले न मिलें वे हमारी मनोकामना पूरी करें न करें हमारा स्वास्थ्य तो पूजा पद्धति ही सही कर देती है। धन्य है हमारी संस्कृति।

बाबा बागड़ी: सभी धर्मों में इस प्रकार के लाभ मौजूद हैं, आवश्यकता है इनका अध्ययन करने की और तर्क ढूंढने की। यदि इन लाभों की जानकारी प्राप्त हो तो पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है। शेष फिर ........

ईष्ट देव में विश्वास एवं पूजा-अर्चना का महत्व

आज हम चर्चा करेंगे आस्था एवं पूजा से लाभ की। सभी धर्मों के अपने-अपने इष्ट देव होते हैं, उनके नाम पृथक-पृथक हैं, उनके अस्तित्व का स्वरूप भिन्न-भिन्न है। कहीं पर राम, शिव, विष्णु इष्ट देव के रूप में जाने जाते हैं तो कहीं गुरु, अल्लाह गौड के रूप में मान्य हैं। कहीं पर इष्ट देव को आकार (मूर्ति) देकर पूजा जाता है तो कहीं निराकार रूप में स्तुति की जाती है। आस्था किसी भी रूप में हो परन्तु आस्था के अपने लाभ हैं और यह आस्था मानव को इसी प्रकार संरक्षण प्रदान करती है जैसे घर में बुजुर्ग व्यक्ति घर की पूरी जिम्मेदारी संभालता है तो शेष परिजन बेफिक्र हो जाते हैं। उनकी उपस्थिति परिजनों का हौसला बनाये रखती है, उन्हें उत्साहित एवं ऊर्जावान बनाये रखती है। कभी-कभी बुजुर्गों का योगदान परिवारिक कार्यों में न के बराबर होता है, फिर भी सभी परिजनों को संतोष रहता है। इसी प्रकार किसी भी इष्ट देव में विश्वास, मानव को मानसिक कवच का काम करता है। प्रत्येक इंसान को अपने जीवन में अनेकों बार कष्टदायी या उलझन भरे क्षणों से गुजरना पड़ता है। ऐसे नाजुक पलों में उसका विश्वास ही उसका मनोबल बनाये रखता है। वह अपने मन को संतुलित एवं शांत रख पाता है। कहीं भी अनिर्णय की स्थिति में अपने इष्ट देव की मर्जी पर छोड़कर तनाव मुक्त हो जाता है, और तनाव जनित रोगों से अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर पाता है।यद्यपि कभी कभी अपने इष्ट देव में कट्टर विश्वास के कारण दूसरे उपास्य देव के आस्थावानों के प्रति असहनशील हो जाता है। जो धार्मिक उन्माद का रूप लेकर हिंसा को जन्म देता है। कालान्तर में धार्मिक दंगों का रूप लेकर सामाजिक विकृतियां उत्पन्न कर देता है। प्रत्येक व्यक्ति की आस्था अलग-अलग होती है। किसी व्यक्ति को अपनी आस्था किसी पर थोपने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। आस्था सिर्फ मानसिक शांति एवं सामाजिक व्यवस्था का कारक है और प्रत्येक धर्म की आस्था का मूल उद्देश्य यही है। उपास्य देव में विश्वास के साथ पूजा अर्चना का विधान बनाया गया है। पूजा,इबादत, प्रेयर देवालयों में भी हो सकती है और घर इत्यादि में भी हो सकती है। वैज्ञानिक रूप से पूजा अर्चना का मूल उद्देश्य मन को केन्द्रित करना है, उसे एकाग्रचित करना है जिससे मानसिक विकारों से मुक्ति मिलती है। शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। पूजा अर्चना इंसान की दिनचर्या को नियमित करने का साधन भी है जिससे मानव स्वास्थ्य स्थिर बना रहता है। पूजा अर्चना विशेष कर सामूहिक आयोजनों द्वारा समाज में आपसी भाई-चारा, सहयोग और सम्मान को बढ़ावा मिलता है। अतः सामाजिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता है और अपराधों पर अंकुश लगता है।

जय भगवान: बाबा जी आपने पूजा एवं आस्था के इतने लाभ बता दिये। क्या पूजा अर्चना कर रहे आस्थावानों को इन लाभों की जानकारी होती है अथवा अपरोक्ष लाभ लेते रहते हैं।

फारूख: इतनी गहराई से जानने की कोशिश तो शायद ही कोई करता होगा।

बाबा बागड़ी: सही बात यही है आस्था अथवा श्रद्धा तर्क के सहारे नहीं चलती। अतः सभी लाभ भी अपरोक्ष रूप से इंसान उठा लेता है जिन्हें वह अपने इष्ट देव के आशीर्वाद के रूप में समझकर और अधिक दृढ़ आस्थावान हो जाता है।

जय भगवान: प्राचीन काल में हजारों वर्ष पूर्व भी कुछ लोग इतने विद्वान रहे हैं जानकर हैरानी होती है। उन्होंने अपनी विद्वता का उपयोग समाज के कल्याण, उसके सुख चैन, उसकी व्यवस्था के लिए किया, यह तो और भी प्रशंसनीय है। हम वास्तव में उनके ऋणी हैं जो उन्होंने हमारे समाज (मानव समाज) को विकसित करने का मार्ग प्रशस्त किया.

जय भगवान की बातें सुनकर बाबा बागड़ी गद्गगद् हो गये। उन्होंने जय भगवान के सटीक विश्लेषण की सराहना की।

त्यौहारों का धर्मों से सम्बन्ध

बाबा ने आगे का विषय लेते हुए त्यौहारों, उत्सवों का धर्मों से सम्बन्ध पर चर्चा की। इसके मनोवैज्ञानिक कारण ढूंढे।

बाबा बागड़ी: हर धर्म में कुछ पर्व मनाये जाते हैं, जैसे हिन्दू धर्म में मुख्य रूप से दिवाली, होली, रक्षाबन्धन आदि। मुस्लिम धर्म में ईद-उल-फितर, ईद-उल-जुआ, ईसाई धर्म में मुख्य त्यौहार क्रिसमस, सिख धर्म में गुरु पूरब, लोहड़ी, बैसाखी इत्यादि के अतिरिक्त कुछ क्षेत्रीय त्यौहार भी मनाये जाते हैं जैसे महाराष्ट्र गणेश चतुर्थी, बंगाल में दुर्गा पूजा, केरल में ओणम, तमिलनाडू में पांेगल, असम में बीहू आदि त्यौहारों की लम्बी लिस्ट हैं तात्पर्य यह है अलग-अलग देशों में विद्यमान अलग-अलग धर्म एवं मान्यताओं के अनुसार त्यौहार मनाये जाते हैं। धर्मों के उद्भव काल में इंसान के मनोरंजन के साधन सीमित होते थे। अतःधर्माधिकारियों ने इंसान को कार्य निरंतरता और कार्य की एकरूपता की ऊब से मुक्ति दिलाकर प्रसन्नता के क्षण उपलब्ध कराये ताकि मानव अपने समाज में सामूहिक से परिजनों और मित्रगणों के साथ कुछ समय सुखद पलों के रूप में बिता सके। त्यौहारों, उत्सवों के रूप में, मानव गतिविधि को एक तरफ तो अपने इष्टदेव की ओर आकृष्ट किया (पूजा-अर्चना-नमाज आदि) तो दूसरी ओर अनेक पकवानों का प्रावधान कर, मेल-जोल की परम्परा देकर मानव जीवन में उत्साह का संचार किया। जिससे उसमें फिर से कार्य करने की क्षमता वृद्धि की और मानसिक प्रसन्नता से जीने की लालसा बढ़ी। अनेक धार्मिक मेलों का आयोजन कर बच्चों, बड़ों का विभिन्न क्रियाकलापों द्वारा मनोरंजन किया। पहले त्यौहार आने की खुशी मानव को सुखद अनुभूति कराती है तो बाद में त्यौहारों से जुड़ी यादें उसे कार्य समय के दौरान भी उत्साहित करती रहती हैं। साथ ही अपने इष्ट देव से सम्बद्ध होने का अवसर मिलता है। आज के वातावरण में (उन्नतिशील समाज) जब अनेकों मनोरंजन के साधन विकसित हो चुके हैं, नये नये खान-पान मानव जीवन में जुड़ गये हैं। उनकी हर समय सुलभता बढ़ गयी है। सामूहिक भावना का अभाव हो गया है, मनुष्य आत्म केन्द्रित होता जा रहा है। त्यौहारों का महत्व अप्रासंगिक होता जा रहा है। वर्तमान में त्यौहारों में उत्साह में हो रही कमी इस बात का प्रमाण है। आज त्यौहारों का मुख्य उद्देश्य गौड़ हो गया है। इसके साथ ही बाबा ने चर्चा समाप्त की।

नमाज पढ़ने की क्रियाएँ स्वास्थ्यप्रद

बाबा बागड़ी: मुस्लिम धर्म में नमाज की आयतें पढने का कार्य विभिन्न क्रियाओं द्वारा सम्पन्न किया जाता है। नमाज पढते वक्त इबादतकार घुटनों के बल बैठकर दोनों हाथ फैलाकर अल्लाह से दुआएं मागं ता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पाया गया है, घुटनों के बल बैठने की क्रिया योग में बताये गये वज्रासन की भांति है,जो कि पाचन क्रिया में सहायक होता है। पाचन क्रिया ठीक रहने से व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ करता है। इस प्रकार हमारे पूर्वजों ने चमत्कारिक ढंग से धर्मों के माध्यम से शारीरिक और मानसिक लाभ सुलभ कराया।

जय भगवान: जय भगवान: हमारे धर्म में पाचन क्रिया सुधारने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया।

बाबा बागड़ी: तुम्हारी यह बात मान्य नहीं है। हिन्दू धर्म में योग का वर्णन प्राचीन ग्रंथों में विद्यमान है जिसमें वज्रासन ही वह क्रिया है। योग द्वारा स्वास्थ्य की प्राप्ति आज बहुत प्रासंगिक हो चुकी है। बाबा राम देव ने जनता में इसका प्रचार प्रसार कर लोकप्रिय बना दिया और पूरे विश्व को रोग रहित बनाने का बीड़ा उठाया है।

फारूख: अब मैं नमाज पढ़ते वक्त सिर्फ धार्मिक नहीं स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि भी रखूँगा। और शरीर के लिए एक आवश्यक क्रिया मानकर नियमित रहने का प्रयास करूँगा।

गाय को माता के रूप में मान्यता

बाबा बागड़ी: जय भगवान, क्या तुम्हें गाय के महत्व की जानकारी है, गाय से प्राप्त दूध, गोबर व मूत्र के उपयोग अथवा लाभ जानते हो?

जय भगवान: बाबा जी, गाय का दूध अन्य पशुओं के दूध के मुकाबले अधिक स्वास्थ्यप्रद माना जाता है। उसे पीने से रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है। इसीलिए बच्चों के लिए गाय का दूध वरदान है। गाय का गोबर व मूत्र अनेक दवाओं में उपयोग होता है। गोबर को पवित्र एवं एण्टी-बायोटिक माना जाता है। इसीलिए प्राचीन काल में घरों को लीपने में काम आता था और ईंधन के रूप में इसक कंडे बनाकर प्रयोग होता था।

बाबा बागड़ी: गाय से प्राप्त उत्पादों की गुणवत्ता को देखते हुए हिन्दू धर्म में गाय को माता के रूप में माना गया। गाय को अति सम्मान देकर प्रत्येक हिन्दू का कर्त्तव्य बताया गया कि वह गौसेवा और गौरक्षा करे। जैसा कि जय भगवान ने बताया गाय की उपयोगिता देखते हुए, गौवंश की रक्षा और उसके महत्व को जनता तक प्रसारित करने के लिए गाय को पूजनीय करार दिया गा। कष्टों के समय गौ-दान कष्ट निवारक एवं पुण्य का कार्य बताया गया। ताकि गौ वंश की रक्षा हो और मानव स्वास्थ्य बना रहे। विज्ञान के द्वारा प्राप्त शोधों से पाया गया है कि गाय का दूध मां के दूध के पश्चात सर्वाधिक लाभदायक है। आयुर्वेद की अनेक दवाओं का सेवन गाय के दूध के साथ श्रेष्ठकर होता है। इसी प्रकार गौमूत्र एवं गोबर से अनेक आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं। गाय के दूध से प्राप्त घी की गुणवत्ता सर्वाधिक होती है। अतः पूर्वजों ने गाय की पूजा और उसके दान का संदेश देकर मानव जाति को स्वस्थ

रहने का पैगाम दे दिया। गौवध और गौमांस उपभोग को निषेध बताया गया ताकि गाय के उत्पादों की उपलब्धता बनी रहे। फारूख क्या गाय की रक्षा करना सिर्फ हिन्दूओं के लिए उचित होगा?

फारूख: जो गाय मानव मात्र के लिए उपयोगी है तो उसकी रक्षा भी प्रत्येक मानव को करनी चाहिये। मानव तो मानव होता है, हिन्दू-मुस्लिम बाद में। मानवहित में सोचना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। उसी में सब का लाभ है। आज का विषय अब समाप्त करते हैं। अगले सोमवार फिर एक नया टौपिक विचारणीय होगा।

हवन का महत्व

आज रविवार के दिन फारूख और जय भगवान अपने शोरूम में बैठे बाबा बागड़ी के बारे में बातें कर रहे थे जिसमें उनके द्वारा बताये गये नमाज के लाभ एवं गाय को माता के रूप में पूजने के कारण शामिल थे। अपने स्टाफ के साथ अपने विचार रख रहे थे। उनके स्टाफ के सदस्य बाबा द्वारा दिये जा रहे ज्ञान का लाभ ले रहे थे। वे लगभग चौंक गये थे कि नमाज से स्वास्थ्य लाभ भी होता है। नसीम बोला ‘बाबा महान हैं, मैं चाहता हूं मैं भी बाबा के दर्शन करू और उनसे रू-ब-रू होकर बातें करूँ। क्या आप मुझे भी कल अपने साथ ले चलेंगे?

फारूख: पहले बाबा से पूछना होगा तब ही उनसे मुलाकात हो सकती है। हम कल बाबा से आज्ञा मागेंगे फिर अगले सोमवार को मिलना सम्भव हो सकता है।

नसीम: सर, कृपया कल आप पूछियेगा अवश्य। मैं अपने को धन्य मानूँगा। अगले दिन दोनों दोस्त एक नई जानकारी पाने की हसरत लिए बाबा के दरबार पहुंचे।

बाबा: आज हम लोग हवन के लाभ जानेंगे। हवन हिन्दू धर्म का प्रमुख आयोजन है जो सामूहिक रूप से सभी भक्त मिलकर करते हैं। इस आयोजन में मन्त्रोच्चार के पश्चात हवन कुण्ड में विभिन्न जड़ी-बूटियों एवं घृत से तैयार हवन सामग्री को प्रज्जवलित किया जाता है। उसके साथ-साथ देशी घी की आहूति भी दी जाती है। मन्त्रोच्चारण के लाभ के अतिरिक्त हवन सामग्री एवं घी की आहूति से प्राप्त वायु एवं ऊष्मा हवन कुण्ड के चारों ओर विद्यमान भक्तों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाती है। उन्हें अतिरिक्त ऑक्सीजन मिलती है, साथ ही वायुमण्डल को शुद्ध एवं कीटाणु मुक्त करने में मदद मिलती है। यही कारण है कि देवालयों और सन्तों के आश्रम का वातावरण खुशगवार मिलता है। वहाँ पहुंचने वाला आगन्तुक शान्ति का अहसास करता है और सन्तों एवं आश्रम निवासियों के चेहरे पर तेज दिखाई देता है। उनके चेहरे पर लाली उनके खानपान के कारण नहीं होती बल्कि उनके संयमित जीवन, योग क्रियाएँ, नियमित हवन-यज्ञ के कारण आती है। वे प्रकृति के अधिक करीब होकर अपने जीवन को तनाव मुक्त होकर जीते हैं। स्पष्ट है हवन सिर्फ धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि स्वस्थ रहने का अचूक साधन भी है। इस विषय के साथ ही हमारी विचार श्रृंखला का द्वितीय अध्याय समाप्त हुआ।