बागड़ी बाबा और इंसानियत का धर्म / अध्याय 4 / सत्य शील अग्रवाल

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धर्मों के दुरुपयोग

युगों युगों तक विभिन्न धर्मों ने समाज को नियन्त्रित रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है परन्तु कुछ विसंगतियों ने मानव समाज को व्यथित भी किया है। जैसे धार्मिक कट्टरता के कारण हिंसा (धर्मिक दंगे) आतंकवाद का पनपना, धर्मों के सहारे राजनीति करना, धर्मान्तरण के लिए अत्याचार एवं मानव शोषण, धर्म की आड़ में महिलाओं का शोषण करना, जातिवाद के सहारे समाज को विभक्त करना अर्थात सामाजिक विद्वेष बढ़ाना आदि।

धार्मिक कट्टरता और हिंसा

बाबा बागड़ी ने अपने शिष्यों से चर्चा करते हुए विभिन्न समुदायों द्वारा धर्म की आड़ में किये जा रहे हैवानियत भरे व्यवहार पर प्रकाश डालने का संकल्प व्यक्त किया। ताकि एक आम व्यक्ति धर्म और इंसानियत को एक साथ जोड़कर देख सके और धार्मिक कृत्यों एवं प्रचार करते समय मानवता का ध्यान रख सके और धर्मों के दुरूपयोग पर अंकुश लगाया जा सके। चतुर्थ अध्याय में इसी संदर्भ में धर्मों के विभिन्न दुरूपयोगों पर प्रकाश डाला जायेगा।धार्मिक आस्था मानवता अथवा मानव मात्र को शान्तिपूर्वक जीवन जीने का सहारा देने के लिए है। यदि यह आस्था समाज को कष्टदायी साबित होने लगे तो वह आस्था अभिशाप का रूप ले लेती है। जब भी कोई धर्म अथवा धार्मिक समुदाय सिर्फ अपने धर्म अथवा आस्था को पूरी दुनिया पर थोपने का प्रयास करता है तो हिंसा का रूप ले लेता है, यह कट्टरता और अन्य धर्मों के प्रति ईर्ष्या, असहिष्णुता धार्मिक दंगों के रूप में समाज को झेलने पड़ते हैं। जिनसे सैकड़ों व्यक्ति अकाल मौत के शिकार होते हैं और हजारों व्यक्ति घायल एवं अपाहिज हो जाते हैं। इंसान धर्म के नाम पर इंसान से हैवान बनते देखा जाता है। वह जानवर का रूप ले लेता है। ऐसे धार्मिक अनुयायी से तो किसी धर्म को न मानने वाला (नास्तिक) जो ईर्ष्या और हिंसा से दूर रहता है समाज के लिए उपयोगी होता है।यदि वह अपने कार्यों को इंसानियत के दायरे में रहकर करता है वह समाज का हितैषी होता है। प्रत्येक धर्म का उद्भव समाज को व्यवस्थित और मानवता के दायरे में रखने के लिए हुआ था जिसने कालांतर में अवांछित रूप धारण कर लिया।

आज तो पूरी दुनिया में धार्मिक कट्टरता को आतंकवाद का रूप दे दिया गया है।शायद कुछ कुटिल बुद्धि लोग धर्म-मजहब का सहारा लेकर जनता को गुमराह करना चाहते हैं। उनका आहवान अपने धर्मावलंबियों से होता है कि वे अपने धर्म को पूरे विश्व में लागू करवायें भले ही उसके लिए उन्हें हिंसा और आतंकवाद-आत्मघात का सहारा लेना पड़े। इसी आहवान के जरिये भोली-भाली जनता से समर्थन, सहयोग, उन्माद, सहानुभूति पाने में सफल होते हैं। पूरी दुनिया में आतंकवाद विभिन्न रूपों में उभर रहा है।

प्रत्येक धर्मानुयायी को यह समझना आवश्यक है कि धर्म का अस्तिव्त्व मानवता की सेवा के लिए है न कि मानव का अस्तित्व धर्म के लिएं धर्म एक आस्था है, विश्वास है, आस्था और विश्वास डंडे के जोर से उत्पन्न नहीं होता। अपनी आस्था, विचारों, इच्छाओं को किसी अन्य व्यक्ति अथवा समाज पर थोपने का अधिकार किसी को नहीं हो सकता।

प्रत्येक धर्म के अनुयायी को अपने प्रचार प्रसार करने, उसके लाभों से किसी को प्रेरित करना, वांछनीय है। परन्तु अपने धर्म के प्रचार को जेहाद अथवा आतंकवाद का रूप देकर पूरी दुनिया अपनी मुट्ठी में करने का इरादा रखना धर्म विरूद्ध है। इंसानियत के विरूद्ध है। ऐसा व्यक्ति अथवा समुदाय मानवता का दुश्मन है। आतंकवादी धार्मिक व्यक्ति नहीं बल्कि हैवानियत का पर्याय है। वह न स्वयं जीना चाहता है और न ही अन्य को जीने देता है। क्योंकि उसे भ्रम है कि धर्म के लिए मरने वाला जन्नत का भागीदार बनता है। उसकी यही कट्टरता उसे हिंसक बना देती है।

फारूख: बाबा क्या आतंकवाद को मिटाने का कोई ठोस उपाय भी संभव है अथवा मानवता यूँ ही सिसकती रहेगी।

बाबा बागड़ी: आतंकवाद को समाप्त किया जा सकता है उसके मुख्य रूप से दो उपाय हैं।प्रथम पूरी दुनिया असमानता न्यूनतम स्तर पर लायी जाए अर्थात गरीब और अमीर के बीच जीवन स्तर में न्यूनतम स्तर पर अंतर हो जो संसार से गरीबी, विपन्नता, अभाव समाप्त कर सकती है जब सबके मकान शीशे के होंगे (सुविधा संपन्न) तो कोई दूसरे के मकान पर पत्थर नहीं मारेगा। आतंकवाद को बढ़ाने में गरीबी, अभाव का बहुत बड़ा हाथ होता है। गरीबी-अमीरी का अंतर कम करने के लिए विश्व के समस्त देशों का विकास समान रूप से होना आवश्यक है। प्रत्येक मानव को मानव द्वारा विकसित वैज्ञानिक उपलब्धियों का लाभ मिलना चाहिये। बेरोजगारी, अभाव, अशिक्षा से मुक्ति मिलनी चाहिये। द्वितीय उपाय जो शीघ्र अपना प्रभाव दिखा सकता है और तुरंत संभव हो सकता है वह है विश्व के प्रत्येक देश के शासनाध्यक्षों की इच्छा शक्ति मजबूत एवं मानवता के प्रति ईमानदार हो। विश्व के प्रत्येक धर्म के धर्माधिकारी सार्वजनिक रूप से आतंकवाद की भर्त्सना करें और प्रत्येक आतंकवादी संगठन को धर्म से बेदखल करने का संकल्प लें, उनको समर्थन देने वाले व्यक्तियों, संस्थाओं को चिन्हित कर उनका बहिष्कार करें। प्रत्येक देश की अपनी सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हो, सुरक्षा तन्त्र सक्षम हो।धर्माधिकारियों पर पर्याप्त दबाव बनाया जाये। उक्त उपाय से शीघ्र ही स्वस्थ परिणाम आ सकते हैं और पूरी दुनिया सुख शान्ति से विकास पथ पर अग्रसर हो सकती है। सुख शान्ति से विकास स्वतः ही प्रथम उपाय के रूप में परिवर्तित हो सकता है और समृद्धि का परचम लहरा सकता है।

जय भगवान: आतंकवाद को बढ़ाने में भ्रष्टाचार भी अपना बहुत बड़ा योगदान देता है।

बाबा बागड़ी: आतंकवाद को फल-फूलने में अनेक कारक सहयोग करते हैं, उनमें उनमे भ्रष्टाचार,गरीबी,देशभक्ति का अभाव, नेताओं की कमजोर इच्छाशक्ति, आम जनता की उदासीनता प्रमुख है। धार्मिक कट्टरता जो हिंसा का रूप लेती है वह भी शिक्षा का अभाव और देशप्रेम की कमी के कारण होती है जो आतंकवाद तक परिवर्तित हो जाती है।

धर्म के सहारे राजनीति

हमारे देश में जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार ही कार्य करती हैं गणतंत्र देश में कोई भी व्यक्ति ( नेता) वोटों के माध्यम से सत्ता पा सकता है। अतः प्रत्येक सत्ताधारी अथवा विपक्षी नेता का भविष्य जनता के मत पर निर्भर होता है। हमारे देश के नेता विकास के मुद्दे से हटकर धर्म के द्वारा भ्रमित कर जनता से वोट अपने पक्ष में करने के प्रयास करते रहे हैं और इस माध्यम से वोट अपने हक में करने के लिए विभिन्न हथकण्डे अपनाते हैं। वे धर्म के सहारे लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं और धार्मिक दंगे करवाते हैं, तत्पश्चात पीड़ितों के प्रति सहानुभूति का मरहम लगाकर अपना वोट बैंक मजबूत करते हैं। इस प्रकार राजनेता धर्म के नाम पर, जातिवाद को बढ़ावा देकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं और देश व जनता का अनर्थ करते हैं।

सिर्फ धर्म के सहारे कोई देश, समाज उन्नति नहीं कर सकता। यदि देश को उन्नति के शिखर पर ले जाना है तो सिर्फ विकास, अध्यवसाय, लगन से ही सम्भव है। जनता को बुनियादी सुविधाएं सिर्फ विकास के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती हैं। धर्म के नाम पर चुनी सकार कर्त्तव्यहीन ही होगी। खाड़ी के देश जिन्होंने भी धर्मों के प्रति उदारता दिखाई, सभी धर्मों का सम्मान किया, विकास के बीच में धर्म को आड़े नहीं आने दिया, विश्व मंच पर विकसित देशों के श्रेणी में शामिल हो गये। ऐसा भी नहीं है कि वे अपने धर्म को भूल गये अथवा धर्मविहीन हो गये परन्तु अपने धर्म में विश्वास करते हुए, अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता, भाईचारा दिखाया जो उन्हें ऊँचाइयों पर ले जा सका।

उपरोक्त उदाहरण सिद्ध करता है कि धर्म और राजनीति एक साथ नहीं की जा सकती। धर्म का उपयोग व्यक्ति के अपने आचरण तक सीमित होना चाहिये। शासन अथवा सत्ताधारी व्यक्ति धर्म के सहारे देश का विकास नहीं कर सकता। आज का कार्यक्रम यहीं पर समाप्त करते हैं। यह कहकर बाबा अपने विश्राम स्थल को चले गये।

महिलाओं का शोषण

जय भगवान एवं फारूख यथा समय पहुंच चुके थे परन्तु बाबा आश्रम के कार्यों में व्यस्त थे अतः दोनों दोस्तों को प्रतीक्षा के लिए कहा गया। दोनों दोस्त अपनी चर्चा में संलग्न हो गये। जय भगवान बोला अनेक धर्मों ने हमारे समाज में कुरीतियों को जन्म दिया। यह बात सत्य है कि प्रारम्भ में धर्म ही मानव नियन्त्रण का माध्यम था। शायद विकास के अभाव में उस समय आज के आधुनिक समाज (उन्नत समाज) की आवश्यकताओं के अनुसार नहीं सोचा गया। इसीलिए बहुत सी रीतियाँ, रिवाज आज असंगत-अप्रासंगिक लगते हैं। कुछ रिवाज समय के साथ-साथ अपभ्रंश हो गये। उचित अर्थ को दिग्भ्रमित कर अनर्थ कर दिया गया।

फारूख बोला;बाबा द्वारा बताये जा रहे वर्तमान अध्याय का मकसद यही है कि हम सभी रीति रिवाजों को वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप विश्लेषण कर निभायें। लकीर के फकीर न बनकर धर्म में बतायी गयी अप्रासंगिक बातों को परिवर्तित रूप में अपनाया जाये तो समाज की उन्नति में धर्म बाधक नहीं बन पायेंगे।

बाबा अपने आवश्यक कार्यों को समाप्त कर आ चुके थे। उन्होंने आज हमारे समाज में व्याप्त नारी शोषण के संदर्भ में चर्चा करने की बात अपने शिष्यों से कही।

बाबा बागड़ी: धर्म के ठेकेदारों ने आदिकाल से ही महिलाओं का शोषण किया।पुरुष प्रधान समाज की रचना कर नारी को दोयम दर्जे का नागरिक बना कर रख दिया। जो आज तक जारी है। महिला की सारी खुशियाँ,भावनाएं,इच्छाएं पुरुष समाज को संतुष्ट करने तक सीमित कर दिया गया। पति को परमेश्वर बताकर महिला के अस्तित्व को धर्मानुसार गुलामी देदी गयी। कभी-कभी तो ग्रन्थों में नारी को नरक का द्वार भी कहा गया। उसको शिक्षा पाने के अधिकार से वंचित किया गया। पति के मरने के पश्चात पत्नी को सती होना धर्म माना गया। पति के लिए अनेक विवाह करने में आपत्ति नहीं थी परन्तु नारी के लिए अन्य पुरुष के लिए सोचना पाप था। पति को तलाक देने का अधिकार दिया गया परन्तु पत्नी ऐसा नहीं कर सकती जब तक पति न चाहे। पत्नी के लिए अपने ससुराल वालों की सेवा करना उसका धर्म माना गया चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, परन्तु पति के लिए अपने ससुराल वालों से सम्मानजनक व्यवहार भी आवश्यक नहीं माना गया। प्रत्येक धार्मिक संस्कार पूजा पाठ, इबादत में पुरुष की पहल को आवश्यक माना गया अर्थात पहले पूजा पुरुष करेगा तत्पश्चात महिला।

यद्यपि आज सती प्रथा नहीं रही परन्तु विधवा को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार आज भी नहीं है, वह दूसरा विवाह नहीं कर सकती। अनेक स्थानों पर आज भी बाल विवाह मौजूद हैं। कच्ची उम्र में मां बनना, बच्चे और उसकी मां दोनों के स्वास्थ्य एवं जान का खतरा बना रहता है। आज भी नारी को विषय वस्तु ही माना जाता है। महिलाओं को शिक्षा का अधिकार मिल गया परन्तु वेतन में पुरुष से भेदभाव आज भी मौजूद हैं। प्रत्येक परिवार में लड़का होने की खुशी होती है और लड़की होने पर अपना दुर्भाग्य माना जाता है। लड़की का अंदेशा होने पर आज भी अबोर्शन करा दिया जाता है। कहीं-कहीं तो लड़की होने पर उसे जीने के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। नारी के शोषण का कारण धर्म की परम्परा को माना जाता है। अतः विभिन्न धर्मों ने नारी के साथ अन्याय ही किया है।

फारूख; हमारे समाज में तो नारी की स्थिति बहुत अधिक खराब है, उन्हें आज भी अक्सर वंचित रखा जाता है। उन्हें बुरके में रहने को मजबूर किया जाता है।यदि कोई महिला अपने प्रयासों से देश का नाम भी ऊँचा कर दे तो भी उसके पहनावे को लेकर टिप्पणी कर दी जाती है। यह बिना सोचे समझे कि धार्मिक पहनावे के साथ उक्त स्तर तक पहुंचना भी संभव नहीं था। हमारे यहाँ पुरुष को पांच विवाह करने की धर्मानुसार छूट दी हुई है। जबकि नारी के लिए अवांछनीय परिस्थितियों में भी तलाक लेने की इजाजत नहीं है। (शरीयत के अनुसार) अफगानिस्तान में तो तालिबान धर्म के नाम पर नारी समाज को सोलहवीं शताब्दी में जीने को मजबूर कर रहे हैं। उन्हें पढ़ने-लिखने, बाजार घूमने अथवा सार्वजनिक स्थानों पर कार्य करना वर्जित कर रखा है। नारी को घर के पालतू जानवर एवं बच्चे पैदा करने की मशीन बनाकर रख दिया है।यद्यपि अमेरिका के हस्तक्षेप से अफगानिस्तान के समाज में परिवर्तन आ रहा है परन्तु तालिबान ने पाकिस्तान में अपने पांव पसारने प्रारम्भ कर दिये हैं।

जय भगवान: हमारे समाज में काफी परिवर्तन आया है फिर भी पुरुष सत्तात्मक मानसिकता अभी भी बरकरार है। धार्मिक रीति रिवाज आज भी ज्यों के त्यों हैं। जो नारी को समय-समय पर अपमानित करने का कारण बने हुए हैं। जो पुरुष पहल कर रहे हैं उन्हें ‘जोरू का गुलाम’ कहा जाता है। कभी-कभी नारियाँ अपनी स्वतन्त्रता का नाजायज फायदा उठाने से नहीं चूकती। देश में निर्मित नारी संरक्षण कानूनों का दुरुपयोग करने से नहीं हिचकती। कुल मिलाकर नारी आज भी दोयम दर्जे की नागरिक बनी हुई है और धर्म की आड़ में शोषण जारी है।

बाबा बागड़ी: मैं आप लोगों के विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ। नारी शोषण, नारी नारी उत्थान,समान नागरिक अधिकार आदि ऐसे विषय हैं जिन पर जितना लिखा जाये, पढ़ा जाये, चर्चा का विषय बनाया जाये कम है। मेरा यहाँ पर नारी संदर्भ लेने का तात्पर्य सिर्फ उसके मुख्य स्रोत धर्म के दुरुपयोग का कारण रहा है। दहेज प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, नारी अशिक्षा, नारी की सामाजिक स्थिति, नारी के व्यवहार पर अनेक प्रकार के अंकुश धर्म के कारण ही लगाये गये हैं। मैं आज एक और विषय पर चर्चा करना चाहता हूं। क्या आप लोगों पर समय का अभाव तो नहीं है। जब दोनों दोस्तों ने कहा वे अभी और समय दे सकते हैं। हमें खुशी होगी यदि आप एक विषय और आज की चर्चा में शामिल कर लेंगे।

जातिवाद धार्मिक देन

बाबा का जातिवाद पर विरोध कुछ अधिक स्पष्ट होकर उभरा। वे जातिवाद को समाज के पतन का जिम्मेदार मानते हैं।

बाबा बागड़ी: यद्यपि प्रत्येक धर्म के धर्माधिकारियों ने अपने धार्मिक अनुयायियों बांटा और उनके कार्य नियत किये गये अर्थात उनके परम्परागत कार्यों के अनुसार उन्हें विभिन्न जातियों में विभक्त किया। परन्तु हिन्दू धर्म में विशेषकर पण्डितों ने अर्थात ब्राह्मणों ने पूरे हिन्दू समाज को चार मुख्य जातियों में विभक्त किया। क्योंकि धर्म ग्रन्थों के सृजक एवं समाज की धार्मिक व्यवस्थापक ब्राह्मण ही थे। अतः सारे नियम अपनी जाति, ब्राह्मण जाति के पक्ष में बनाये। उन्हें धर्मदूत, ईश्वर का आंशिक स्वरूप बताकर बाकी समाज के लिए उसका आदर सम्मान, सेवा इष्ट देव को प्रसन्न करने का माध्यम बताया गया। अतः पूरे समाज के संचालक के रूप में उभरे। किसी परिवार में जीवन, मृत्यु, विवाह, अन्य संस्कार कुछ भी हो पंडितों को भेंट दिये बिना सम्पन्न नहीं होते। अन्यथा अनिष्ट की आशंका का भय बना रहता है। यहां तक कि किसी परिवार में कोई विपदा आई है तो ब्राह्मण को दान देकर विपदा से पार पाने की सम्भावना रहती है। यदि कोई शुभ कार्य बड़ी खरीददारी, कार, बंगला, स्कूटर आदि किसी परिवार में हुई है तो बिना दक्षिणा के परिवार द्वारा उसका उपयोग करना शुभ अवसर में प्रसन्नचित्त होना वांछनीय नहीं है।

यह तो हुई ब्राह्मण वर्ग के अपने धर्म की स्थापना की कीमत वसूली की बात। इसके अतिरिक्त वर्ग थे वैश्य, क्षत्रीय शुद्र। वैश्य को व्यापार का भार सौंपा गया तो क्षत्रीय को वीरता का प्रतीक बताकर सैन्य कार्य एवं खेती कार्य सौंपे गये। परन्तु चतुर्थ वर्ग था शुद्र ,जिन्हें सभी जातियों का सेवक बना दिया गया। उन्हें चर्मकार, सेवाकार के रूप में हजारा वर्षों तक प्रताड़ित किया जाता रहा। समय-समय पर तथाकथित उच्च जातियों ने उनका शोषण किया, उन पर अत्याचार किये उन्हें मामूली श्रम मूल्य पर कार्य करने को मजबूर किया गया जिस कारण यह जाति पिछड़ती चली गयी। हजारों वर्षों अत्यन्त मेहनत के बावजूद गरीबी की रेखा से ऊपर न उठ सकी।अज्ञानता के कारण विभिन्न प्रकार के नशे, जुआ आदि जैसी बुराईयों से ग्रस्त हो गये जिससे हिन्दू समाज विभक्त होकर रह गया। शुद्रों ने अपनी हिन्दू जाति में अपमान के कारण अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गये जिनमें मुसलमान, ईसाई, बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने के अनेक उदाहरण सामने आये। अब स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात हमारे संविधान निर्माताओं ने सबको बराबर के अधिकार दे दिये और पिछड़े वर्ग को विभिन्न आरक्षणों और मदद द्वारा उठाने का प्रयास किया जिसने इस वर्ग के दिन लाभकारी बनाये। अनेक कानूनों द्वारा इन पर हो रहे अत्याचारों को समाप्त किया। इस प्रकार विभक्त हो रहे हिन्दू समाज को एकजुट करने का प्रयास किया गया है। समाज में असमानता का बीज बोकर कोई भी धर्म अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकता। आप दोनों में कोई प्रश्न करना चाहता है? जब दोनों मित्रों ने न कहकर गर्दन हिलाई तो बाबा ने अपनी बैठक स्थगित करदी और अपने आश्रम के कार्यों में व्यस्त हो गये।

धर्मान्तरण और हिंसा

हिन्दू धर्म को छोड़कर लगभग सभी धर्मों ने सामदाम दण्ड भेद अपनाकर अन्य धर्म के अनुयायियों के धर्म परिवर्तन के लिए वातावरण तैयार किया। जिनमें अनेकों बार अत्याचार का भी सहारा लिया गया। इसी संदर्भ में बाबा ने अनेक धर्मों की धर्मान्तरण प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है।

बाबा बागड़ी: धर्मान्तरण और हिंसा विषय पर विचार करने के लिए हमें बारी-बारी बारे में अध्ययन करना होगा। सर्वप्रथम ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार को समझते हैं। उसके इतिहास पर प्रकाश डालें तो ज्ञात होता है इस धर्म के प्रचार प्रसार की कहानी उसके उद्भव काल से ही विद्यमान रही है। ब्रिटेन को ईसाई धर्म का मुख्य केन्द्र माना जाता है और ब्रिटेन का शासन बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक दुनिया के चौथाई भाग में विस्तृत था। दुनिया के प्रत्येक भाग पर कहीं न कहीं ब्रिटिश साम्राज्य था इसीलिए यह कहावत प्रसिद्ध थी ‘‘ब्रिटिश साम्राज्य में कभी सूर्य नहीं डूबता’। पूरे विश्व पर अपना प्रभुत्व जमाने का मुख्य उद्देश्य भौतिक उपलब्धि के अतिरिक्त अपने ईसाई समाज की मिशनरियों की स्थापना और प्रचार प्रसार कर धर्मान्तरण करना भी था। विभिन्न प्रलोभन, सुविधायें देकर अथवा दबाव बनाकर धर्म परिवर्तन करना उनका मुख्य उद्देश्य रहा है जो आज भी जारी है। आज भी ईसाई मिशनरियों को दुनिया में सर्वाधिक धन उपलब्ध होता है। यदि सुविधाएं उपलब्ध कराकर किसी को धर्म परिवर्तन के लिए प्रोत्साहित किया जाये तो कुछ हद तक न्यायसंगत माना जा सकता है परन्तु दबाव बनाकर अत्याचार द्वारा अथवा गरीबी की मजबूरी का फायदा उठाकर धर्म परिवर्तन करना अनुचित है। 1977 से 97 के बीच बी.एस. नागपाल ने ईरान, मलेशिया, इंडोनेशिया, पाकिस्तान के लोगों की मानसिकता का प्रत्यक्ष रूप से अध्ययन किया और पाया सभी मतान्तरित लोग अपनी संस्कृति, इतिहास, पूर्वजों से दूर होकर विभिन्न मनोरोगों से ग्रस्त हो गये। यह अध्ययन स्वयं सिद्ध करता है। मजबूरीवश मतान्तरण करने से उनकी मानसिकता में बदलाव नहीं आता। ईसाई मिशनरियां अक्सर मजबूर लोगों को सहायता के नाम पर धर्म परिवर्तन के लिए प्रोत्साहित करती हैं। किसी आपदा के समय उनका सेवाभाव धर्मान्तरण के उद्देश्य की पूर्ति के लिए जागृत होता है। यही कारण है हिन्दू समाज से ईसाई बनने वालों की अधिकतम संख्या पददलित, पिछड़े एवं गरीबील रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों की होती है।

गांधी जी के अछूत विरोधी आन्दोलन का विरोध ईसाई मिशनरियों एवं ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा किया गया क्योंकि इससे उन्हें अपने शिकार मिलने की सम्भावना घटती नजर आ रही थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी ईसाई मिशनरियों ने यथासम्भव अपना कार्य जारी रखा। पिछले ही दिनों स्वामी लक्ष्मणानन्द की हत्या ईसाइयों की अवांछित गतिविधियों को परिलक्षित करते हैं। स्वामी लक्ष्मणानन्द धर्मान्तरण के खिलाफ थे। अपने व्यवधान को हटाने के लिए उनकी हत्या कर दी जिसने बाद में धार्मिक उन्माद का रूप लेकर अनेक अन्य मौतों का कारण बना दिया। उड़ीसा की कंध जाति पिछले सैकड़ों वर्षों से ईसाईयों के अत्याचारों को सहती आयी है। मानसिक दुर्बलता अशिक्षा, गरीबी, अनुभवहीनता उन्हें धर्मान्तरण का शिकार बनाती रही है। धर्मान्तरण के नाम पर हिंसा का सहारा लेना मानवता पर कुठाराघात है। लालच एवं दबाव से किया गया धर्मान्तरण मानव की अन्तरात्मा और उसके विश्वास को नहीं बदल सकता।

द्वितीय चरण में मुस्लिम धर्म पर अध्ययन करते हुए हम पाते हैं कि इस धर्म के अनुयायी सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम धर्म को ही मान्यता देते हैं और पूरे विश्व में मुस्लिम धर्म को ही देखना चाहते हैं। उनके अनुसार विश्व में कोई भी व्यक्ति मुस्लिम नहीं है तो काफिर है। अर्थात अन्य धर्म के प्रति सहिष्णुता का भाव उन्हें मान्य नहीं है।

यही धार्मिक कट्टरता उन्हें मुस्लिम और गैर मुस्लिम की जंग के लिए प्रेरित करती है, हिंसक बनाती है और जेहाद का रूप लेकर पूरे विश्व को हिंसा और आतंकवाद की अंधेरी गली में धकेलती है। धार्मिक पुरोहित आम जनता को गुमराह कर आतंकवादी बनाकर अधार्मिक कार्य करते हैं और पूरे मुस्लिम समुदाय को कलंकित कर रहे हैं। उनकी छवि विश्व पटल पर सन्देहास्पद बना दी है। आज जिन खाड़ी के मुस्लिम देशों ने

धर्म के प्रति उदारता दिखायी, विकसित होकर विश्व पटल पर सम्मानजनक स्थिति पा ली है। यह एक अच्छा उदाहरण है कि धार्मिक उदारता ही मानव, विकास पथ पर बढ़ सकता है। हिंसा से किसी को लाभ नहीं मिलता। अपने धर्म की विशेषताएं दिखाकर किसी को धर्म परिवर्तन के लिए प्रोत्साहित करना ही अपने धर्म के प्रति वफादारी मानी जा सकती है।

तृतीय चरण में हम हिन्दू धर्म पर दृष्टिपात करेंगे। हिन्दू धर्म सिर्फ धर्म न होकर जीवन शैली का नाम है जो पूरे विश्व में सर्वाधिक उदारता के लिए प्रसिद्ध है। इसकी उदार संस्कृति को अक्सर इसकी कमजोरी मान ली जाती है। इसी उदारता का ही दंश इसने हजारों वर्षों तक मुस्लिम और ईसाईयों की गुलामी के रूप में झेला है। सत्ताधारियों ने समय-समय पर हिन्दूओं पर मतान्तरण के लिए दबाव बनाया और सफलता पायी। आज करोड़ों मुसलमान और ईसाई भारतीय कभी हिन्दू ही थे जिन्हें धर्म परिवर्तक के लिए दबाव बनाया गया अथवा प्रेरित किया गया, लालच दिया गया। हिन्दू धर्म के अनुयायियों ने कभी मतान्तरण के लिए किसी को न तो प्रेरित किया और न ही हिंसा द्वारा अपने धर्म का विकास किया। बल्कि उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया। उनके प्रति सहिष्णुता दिखाई। इतिहास साक्षी है इस धर्म ने ‘सर्व धर्म सम्भाव’ का व्यवहार अपनाया। अहिंसा-उदारता इस धर्म की विशेषता रही है। इसी कारण ‘बौद्ध धर्म’ अर्थात हिंसा के खिलाफ प्रचार पूरे विश्व में अनुकरणीय बन गया। अहिंसा की विशेषता के कारण ही पूरे विश्व में सिर्फ उत्तर भारत के इलाकों में शाकाहारी व्यक्ति मिलते हैं। अतः हिन्दू धर्म को मतान्तरण और हिंसा से मुक्त कहा जाये तो बिल्कुल गलत न होगा।

चतुर्थ श्रेणी में विश्वव्यापी अनेक अन्य जातियाँ, धर्म, विश्वास रखे जा सकते हैं। प्रत्येक धर्म में आपसी कलह भी हिंसा का रूप लेती रही है। जैसे मुस्लिम में शिया-सुन्नी, ईसाईयों में यहूदी-ज्यूश, विभिन्न कबीलों के रूप में संघर्ष भी विभिन्न मतों के द्वारा प्रेरित हिंसा ही है। सिंहली और तमिल संघर्ष भी अपने वर्चस्व की जंग है। प्रत्येक धर्म, जाति, विचारधारा अन्य देशों, धर्मों विचारधारा पर हावी होने के लिए हिंसा का सहारा लेते रहते हैं। आज का आतंकवाद भी पूरे विश्व को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिए दबाव बनाने का माध्यम बना हुआ है।

फारूख; सारी फसाद की जड़ विभिन्न धर्मों द्वारा यह मान लिया जाना है कि अपने धर्म का प्रचार प्रसार करना भी अपने धर्म की सेवा करना है। यदि इसको सिर्फ मानव सेवा के लिए प्रेरणा वस्तु माना जाता तो मानव हिंसा का शिकार होने से बच जाता।

जय भगवान: मैं इस मामले में भाग्यशाली हूं। मैं एक अहिंसक धर्म से हूं। हमारे धर्म हमारे धर्म में तो कुछ समय पूर्व तक किसी अन्य धर्मावलम्बी को हिन्दू धर्म अपनाने की स्वीकृति भी नहीं मिलती थी। धर्मान्तरण के लिए हिंसा का सहारा लेना तो बहुत दूर की बात थी। सभी धर्मों के अपने-अपने नियम अलग होते हैं परन्तु धर्मान्तरण के लिए हिंसा अथवा दुसरे धर्म के प्रति असहिष्णुता विकास की गति को अवरूद्ध करके रख देती है।

चमत्कार बनाम धर्म

आज महा शिवरात्रि का पर्व है सभी व्यापार संस्थान,सरकारी कार्यालय बंद हैं। आश्रम के सभी कर्मचारी, शिष्य, बुजुर्ग आज बाबा से प्रवचन सुनने के इच्छुक हैं। वे सब प्रतीक्षा कर रहे थे, दोनों दोस्तों के आगमन की ताकि वे भी बाबा के साथ बैठकर उनके विचार सुनने का सौभाग्य प्राप्त कर सकें। जैसे ही फारूख एवं जय भगवान आश्रम पहुंचे, सभी लोग दौड़ पड़े, उनके कार्यक्रम में शामिल होने के लिए। व्यापारी बन्धु घबरा गये, आखिर आज सभी लोगों को क्या हुआ है। पहले तो कभी उन्होंने इतना जोरदार स्वागत नहीं किया। एक शिष्य ने बाबा को उनके आने का समाचार सुनाया। फिर आश्रम के सभी बन्धु सभागार में एकत्र हो गये और बाबा की प्रतीक्षा करने लगे। बाबा के आगमन के साथ ही सभी लोग खड़े हो गये और बाबा को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। बाबा ने अभिवादन स्वीकार करते हुए बैठने का संकेत किया। आज बाबा ‘धर्मों के दुरुपयोग’ अध्याय के संदर्भ में चमत्कार बनाम धर्म पर प्रकाश डालने वाले हैं।

बाबा बागड़ी: विश्व के सभी धर्मों में कभी न कभी चमत्कार की कल्पना की जाती के अनुसार संसार से सारे दुराचार एवं कष्ट को हरण करने के लिए ईश्वर अवतार लेते हैं और अपने चमत्कारों से हमारा जीवन खुशियों से भर देते हैं। अल्लाह की कृपा से आपके जीवन में छप्पर फाड़ खुशियां आयेंगी। क्रिसमस के पर्व पर गौड, सांताक्लाज के रूप में आकर सबकी इच्छाएं पूर्ति करेंगे। हनुमान जी अपनी गदा से दुश्मनों का नाश कर देंगे। परीक्षाओं में सफलता दिला देंगे।

भूकम्प आने पर देवी की कृपा से पूरा समाज सुरक्षित बच जायेगा। ये सब चमत्कार की कल्पनाएं व्यक्ति की अपने धर्म में आस्था को दृढ़ करते हैं परन्तु धर्म एवं ईश्वर के चमत्कार की उम्मीद में व्यक्ति कर्महीन हो जाता है। अतः कहीं न कहीं धर्म द्वारा जगायी गयी उम्मीद व्यक्ति को निष्क्रिय, आलसी बनाने में सहायक साबित होती है। ईश्वर के द्वारा चमत्कार के भरोसे रहकर व्यक्ति का प्रयासहीन, उत्साहहीन हो जाना भी धर्म के दुरुपयोग की सूची में शामिल हो जाता है। बिना परिश्रम बिना अध्यवसाय, बिना मानसिक एवं शारीरिक प्रयास के कोई विकास सम्भव नहीं है।

जय भगवान: बाबा क्या ‘राम’ एवं ‘कृष्ण’ को अवतार माना जाना सिर्फ कल्पना ‘अल्लाह के पैगम्बर’ एवं ‘ईसा मसीह’ अपने-अपने धर्म को अवतार बताना भी सिर्फ कल्पनाओं पर आधारित है।

बाबा बागड़ी: यहाँ पर इस मुद्दे को विवाद बनाना उचित नहीं होगा। आस्था के न हो जाते है। परन्तु यहाँ पर मेरे कहने का आशय यह नहीं है। अवतार होते हैं अथवा नहीं कहने का अभिप्राय है अवतार और चमत्कार की प्रतीक्षा में निष्क्रिय होकर बैठ जाना हमारे लिए, हमारे जीवनकाल के लिए श्रेयस्कर नहीं हो सकता। आश्रम निवासी शिष्य;गुरुजी हम पूजा पाठ आदि इसीलिए करते हैं कि हमारे चमत्कारपूर्वक हमारे दुःख दर्द का नाश करेंगे और हमें समृद्धशाली एवं खुशहाल बनायेंगे।

एक अन्य शिष्य: श्रीमान गुरुजी कोई भी कार्य नियम विरूद्ध अर्थात विज्ञान द्वारा स्थापित नियमों के विरुद्ध होता है तो चमत्कार कहलाता है उसी चमत्कार की आशा हमें अपने इष्ट देव से होती है। अर्थात हम अपने भौतिक संसाधन, भौतिक सुखों को आध्यात्म मार्ग अर्थात पूजा अर्चना, इबादत द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

बाबा बागड़ी: सीमित समय तक पूजा अर्चनाकर अपने मन को शांत करना मानव में ऊर्जा प्रदान कर सकता है। शायद शेश दिन अधिक उत्साह से कार्य को अंजाम दे सकता है परन्तु सिर्फ इष्ट देव के भरोसे रहकर अपने क्रियाकलापों पर विराम लगा देना किसी भी प्रकार से उचित नहीं हो सकता। दैनिक कार्यों को अंजाम देना जीवन के लिए आवश्यक है और उन्नति के लिए परिश्रम एवं निरंतर प्रयास करना देश समाज-परिवार सबके हित में है।

फारूख; मैं तो इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूं, कुछ समय परन्तु सीमित समय ही पूजा अर्चना या इबादत में लगाना चाहिये बाकि समय उत्पादन कार्यों में भी लगाना आवश्यक है।बिना खेत में मेहनत किये फसल नहीं हो सकती, सैनिक द्वारा शत्रु का डटकर सामना किये बगैर युद्ध नहीं जीता जा सकता। बिना मशीन चलाये और उसका विकास किये बिना उत्पादन ‘फैक्ट्री प्रोडक्ट’ सम्भव नहीं है। बिना डॉक्टर द्वारा उचित उपचार के मरीज के कष्टों का नाश सम्भव नहीं है। अपराधी को सजा दिलवाये बिना समाज में शान्ति की उम्मीद करना बेमानी है।

आतंकवाद और धर्म

‘चमत्कार बनाम धर्म’ पर चर्चा पूर्ण होने पर अपने श्रोताओं से समय की उपलब्धता की ओर ध्यानाकर्षित करते हुए पूछा क्या अभी एक और विषय पर चर्चा करना सम्भव होगा। आश्रम के कर्मचारियों एवं शिष्यों ने आग्रह किया यदि आप एक और विषय पर विचार देना चाहेंगे तो हमें खुशी होगी, हम लोग आश्रम के कार्यों में शिथिलता नहीं आने देंगे, अपने-अपने कार्य शीघ्रता से पूर्ण कर लेंगे।

बाबा बागड़ी: कोई भी मानव अथवा जीव अपने जीवन को समाप्त करना नहीं अपने जीवन के लिए पूर्ण संघर्ष करता है और अधिक से अधिक जीने की इच्छा रखता है। यही कारण है एक बस ड्राईवर के ऊपर पचास-साठ लोग भरोसा कर यात्रा करते हैं अर्थात अपने जीवन को उसके विश्वास पर खतरे में डालते हैं। इसी प्रकार कुछ क्रू सदस्य एवं पायलट के विश्वास पर सैकड़ों हवाई यात्रियों का जीवन दांव पर लगा होता है जिन यात्रियों में बड़े से बड़े नेता, उद्योगपति, व्यवसायी आदि भी होते हैं। छोटे से छोटा व्यक्ति अथवा जीव अपने जीवन से हाथ नहीं धोना चाहता यह जीव का एक विशेष गुण है। परन्तु आतंकवादी वह भी आत्मघाती अपना जीवन नष्ट कर कुछ अन्य व्यक्तियों का जीवन नष्ट करने के लिए कैसे तैयार हो जाते हैं। यह भी धर्म की कट्टरता के कारण सम्भव होता है। कोई व्यक्ति कैसे और क्यों आतंकवादी बनता है, उसकी क्या मजबूरियां होती हैं, उन कारणों में भिन्नता हो सकती है परन्तु उन सबमें मूल भावना जो काम करती है वह है ‘इस्लाम के लिए आत्मघाती हमले में अपनी जान देना जन्नत का पासपोर्ट बनवा लेना है’ अर्थात सच्चे मुसलमान को इस्लाम की भलाई के लिए कुर्बान हो जाना चाहिये। उनका मकसद पूरे विश्व को इस्लामिक बनाना है। आतंकवाद को इस्लाम और गैर इस्लाम की जंग का नाम दिया है। अतः धार्मिक कट्टरता ने ही पूरे विश्व को आतंक के साचे में जीने को मजबूर कर दिया है। जो मानव की सभ्यता के लिए कलंक बन चुका है। विश्व में वर्तमान आतंकवाद के लिए जिम्मेदार धर्म है, धर्म की कट्टरताहै, धर्म का दुरूपयोग है।

धर्म की आड़ में मौत का घिनौना खेल खेलने वाले न तो स्वयं शांति से जीना चाहते हैं और न ही अन्य किसी को जीने देते हैं। यद्यपि यह भी सत्य है हिंसा में लिप्त व्यक्ति किसी धर्म का और मानवता का हितैषी नहीं हो सकता। वह सिर्फ इंसानियत का दुश्मन है वह सिर्फ हैवान है।

फारूख: क्या आतंकवादी यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि उनके आत्मघाती हमले में सिर्फ गैर इस्लामी व्यक्ति निशाना बनते हैं। उनके हमले में क्या मुसलमान नहीं मारे जाते। दरअसल यह तो आतंकवादी बनाने के लिए उनकी बुद्धि को कुण्ठित करने के लिए इस्लाम का सहारा लेकर मोहरा बनाने की साजिश है। वे सिर्फ अपना भला चाहते हैं, अपना आधिपत्य बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें किसी धर्म, देश, व्यक्ति से कोई लगाव नहीं है। वे हिंसा का सहारा लेकर सत्ता के गलियारे तक पहुंचना चाहते हैं। वे इस्लामी कट्टरता, बदले की भावना, गरीबी व अन्य मजबूरियों का फायदा उठाकर आतंकवादी तैयार कर लेते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करने में कामयाब हो रहे हैं। एक आम मुसलमान, अमनप्रिय मुसलमान, शिक्षित मुसलमान, इनके काले कारनामों के कारण संदेह के अंधेरे में जीने को मजबूर है। पूरे इस्लाम समुदाय को विश्व में अविश्वास के साथ रहना पड़ रहा है। वह अपना दर्द किसी को बता भी नहीं पा रहा है।

बाबा बागड़ी: फारूख तुमने अपने समुदाय में व्याप्त दर्द और क्षोम व्यक्त किया उसके लिए तुम धन्यवाद के पात्र हो। साथ ही हमारी पूरी सहानुभूति तुम्हारे जैसे प्रत्येक शान्तिप्रिय व्यक्ति के लिए है। क्योंकि प्रत्येक मुसलमान गलत नहीं हो सकता। चन्द दुस्साहसी व्यक्तियों ने पूरे धर्म को बदनाम कर दिया है। धर्म का दुरूपयोग इससे अधिक क्या हो सकता है? अब मैं अध्याय चार समाप्त करने के लिए इसी अन्तिम विषय पर प्रकाश डालकर आज का कार्यक्रम समाप्त करूंगा।

नकारात्मक मान्यताएं

प्रत्येक धर्म में कुछ ऐसी मान्यताएं विद्यमान हैं जिनका मानव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्हें दुष्कर्म करने के लिए अपरोक्ष रूप से प्रेरित करते हैं। अब देखते हैं कैसे इस्लाम धर्म के अनुसार जीवन में कम से कम एक हज यात्रा मुसलमान को जन्नत के रास्ते तक ले जा सकती है। हिन्दुओं में जाप जैसे उपायों से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। अतः इंसान कितने भी दुष्कर्म कर ले उपरोक्त शार्टकट उपाय करने से सारे पाप माफ। प्रायः अन्य सभी धर्मों में भी किसी न किसी रूप में यह मान्यता, यह धारणा विद्यमान है। पूजा अर्चना, इबादत, प्रेयर सबकुछ दुष्कर्मों के अभिशाप से मुक्ति के साधन माने जाते हैं। उपरोक्त धारणाएं, मान्यताएं इंसान को परोक्ष रूप से असंगत कार्यों को करने की छूट प्रदान करती है। जो धर्म के मूल उद्देश्य से भटकाव है, मानवता के विरूद्ध है। किसी भी धर्म का उद्देश्य मानव कल्याण के अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकता। अवश्य ही इन मान्यताओं को गलत ढंग से परिभाषित किया गया है।

जय भगवान: शायद धर्माधिकारियों ने अपने स्वार्थ के लिए ग्रन्थों में लिखित शब्दों को गलत ढंग से परिभाषित किया अथवा किवदंतियों द्वारा प्रचारित किया जिसने समाज को पथभ्रष्ट करने में योगदान दिया।

बाबा बागड़ी: किसी भी धर्म को मूल उद्देश्य इंसानियत के विरूद्ध हो ही नहीं सकत . पूजा-इबादत करने से क्या फायदा जो व्यक्ति को अपने व्यवहार से इंसानियत के दायरे में न रख सके। सुना है डकैत भी अपने इष्ट देव से पूजा कर अपने कार्य में सफलता की कामना करते हैं। इसके साथ ही आज की चर्चा यहीं समाप्त करते हैं और अध्याय चार अर्थात ‘धर्मों का दुरूपयोग’ की विषय वस्तु सम्पूर्ण होती है।