बागड़ी बाबा और इंसानियत का धर्म / परिचय / सत्य शील अग्रवाल

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“प्रस्तुत पुस्तक का मुख्य पात्र ‘बागड़ी बाबा’ एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम है जो इंसानियत की प्रतिमूर्ति है। ‘बागड़ी बाबा’ अपने विद्यार्थी जीवन में अलौकिक प्रतिभा का छात्र रहा है, साथ ही परिवार की पुश्तैनी अपार सम्पदा का मालिक भी। परन्तु सारे सुख वैभव अथवा विलासितापूर्ण जीवन के स्थान पर समाज सेवा एवं सादा जीवन अपनाने का संकल्प लिया। समस्त जायदाद को आश्रमों में स्थानान्तरित कर दीन दुखियों को समर्पित कर दिया।”

जय भगवन और फारूख बचपन से ही दोस्त रहे हैं। उनकी स्कूली शिक्षा से लेकर स्नातक की शिक्षा साथ-साथ हुई। उन्होंने आगरा विश्विद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। क्योंकि दोनों दोस्त मध्यम दर्जे के विद्यार्थी रहे थे। उच्च योग्यता पाने के लिए प्रयास नहीं किये और अपने भावी जीवन में व्यापार करने की योजना बनायी। दोनों में आपसी विश्वास, ईमानदारी, वफादारी कूट-कूट कर भरी हुई थी। अतः दोनों ने एक साथ ही इलैक्ट्रोनिक्स एलायंस जैसे टी.वी., ओडियो, वीडियो सिस्टम, वाशिंग मशीन इत्यादि का शोरूम खोलने का निर्णय लिया। टैक्निकल कार्य शुरू करने से पहले उसके बारे में ज्ञान एवं अनुभव की आवश्यकता होती है।

इसीलिए व्यापार प्रारम्भ करने से पहले एक वर्ष का टी.वी. कोर्स स्थानीय प्राइवेट संस्था से करने का निश्चय किया। साथ ही शोरूम के लिए स्थान एवं अन्य औपचारिकताओं के लिए प्रयास भी प्रारम्भ कर दिये। शीघ्र ही शहर के विकसित क्षेत्र में दुकान पाने में सफल हो गये। दुकान किराये पर मिल गयी। दुकान में आवश्यक रिपेयर वर्क और रंगाई-पुताई आदि कार्य प्रारम्भ कर दिये ताकि प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा होते ही व्यापार शुरू किया जा सके। अतः पढ़ाई के साथ-साथ दुकान को तैयार करने का कार्यक्रम भी चलता रहा। प्रशिक्षण का वर्ष पूरा होते ही फर्नीचर बनवाना शुरू कर दिया और वह दिन भी आ गया जब दुकान एक शोरूम के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी। दुकान का मुहुर्त किया गया। दोनों दोस्तों की तन्मयता, ईमानदारी और सद्व्यवहार ने व्यापार को लोकप्रिय बना दिया। पूरे शहर में उनकी चर्चा आम हो गयी थी। चर्चा थी उनके छल-कपट रहित एवं धोखाधड़ी विहीन व्यवहार की, उनकी ईमानदारी की एवं तर्कसंगत कीमतों की। दोनों दोस्तों का उद्देश्य अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ समाज सेवा भी था। एक दिन जय भगवान कुछ फुर्सत के क्षणों में फारूख से बोला ‘हमारे पड़ोसी डा. ए.के. एन्टनी (एम.डी.) के घर बाबा बागड़ी रूके हुए हैं और शायद कल शाम तक वे अपने आश्रम के लिए प्रस्थान कर जायेंगे’।

फारूख बोला: मुझे बाबाओं से क्या लेना देना, आये हैं तो आएँ, जाना है तो जाएँ, अगर उन्हें टी.वी. आदि लेना हो तो बात करें।

जय भगवान बोला: बागड़ी बाबा वैसे बाबा नहीं हैं जैसा तुम सोच रहे हो। वे वास्तव में इंसानियत के पुजारी हैं, उन्होंने अपना जीवन जनता के कल्याण के लिए समर्पित किया हुआ है।

फारूख: क्या ऐसे बाबा भी होते हैं?

जय भगवान: जब तुम उनसे मिलोगे और उनके बारे में जानकारी प्राप्त करोगे तो उनके कायल हुए बिना नहीं रह सकते।

फारूख: ऐसा क्या है बाबा बागड़ी में?

जय भगवान: बाबा ऐसे समाज सेवक हैं जो समाज में बहुत कम देखने को मिलते हैं। मैं तुम्हें उनके बारे में संक्षिप्त रूप से बताता हूँ। बाबा अपने विद्यार्थी जीवन में मेधावी छात्र रहे हैं। परन्तु वे गांधीवाद से काफी प्रभावित थे। अतः स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर समाज सेवा करने का संकल्प लिया। उनके पूर्वज गांव के बड़े जमींदार थे, उकने पास अपार सम्पत्ति थी। बाबा सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास करते हैं। अतः उन्होंने अपनी पैत्रिक जायदाद को बेचकर अनेक शहरों में सेवालय खोल दिये, जो पूर्णतः गरीबों, असमर्थों, वृद्धों, महिलाओं की सेवा में कार्य कर रहे हैं। उन सेवालयों में बीमार व्यक्तियों के लिए चिकित्सा सुविधा मुफ्त उपलब्ध है, वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम है एवं गरीब युवक युवतियों के लिए निःशुल्क विवाह स्थल के रूप में समर्पित हैं। बच्चों की शिक्षा के लिए असमर्थ विद्यार्थियों को बाबा की ओर से सहयोग दिया जाता है। शहर के गणमान्य उद्योगपति व्यापारी बाबा के कार्य में अपना योगदान देते हैं। बाबा के स्वयं के खर्चे नगण्य हैं। शौक के रूप में मानव पीड़ा का हरण करना, उनके जीवन का उद्देश्य बना हुआ है। उनके इस पुनीत कार्य में उनके अनेक अनुयायी उनके साथ जुड़े हुए हें, जो आश्रम के कार्यों में उनका सहयोग करते हैं। अब उनके इस कार्य ने शहर में अभियान का रूप ले लिया है। वे किसी धर्म के प्रचारक नहीं हैं। मानव सेवा और इंसानियत ही उनका धर्म है। वे प्रत्येक धर्म का सम्मान करते हैं। उनका कथन है ”हम नहीं पूछते तेरा धर्म क्या है? हम पूछते हैं, तेरा दुःख दर्द क्या है?“ उनके अनुयायी अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार तन-मन-धन से उनके इस सद्कार्य में अपना योगदान करते हैं। डा0 एन्टोनी भी अपना दो घंटे का समय आश्रम के चिकित्सालय में आये रोगियों को निःशुल्क परामर्श में देते हैं।

फारूख: जय भगवान क्या मैं भी ऐसे पैगम्बर रूपी बाबा से मिल सकता हूँ।

जय भगवान: जैसा तुम्हें याद होगा डा0 एन्टोनी इंटर तक हमारे साथ ही पढ़ा करते थे। हम लोग बचपन में साथ-साथ खेला करते थे।

फारूख: हाँ याद आया जिसे हम किताबी कीड़ा कहकर चिढ़ाया करते थे।

जय भगवान: हाँ, वही किताबी कीड़ा आज अपने शहर का नामी-गिरामी डॉक्टर बन चुका है। गांधीनगर में उसने शानदार कोठी बनाई है। हम लोग डॉक्टर के सहयोग से बाबा से मुलाकात कर सकते हैं। क्योंकि डॉक्टर बाबा के पक्के अनुयायी और सहयोगी हैं, उनके द्वारा परिचय कराने से बाबा हमारी जिज्ञासाओं का शान्तिपूर्वक उत्तर देंगे।

फारूख: यह तो एक स्वर्ण अवसर होगा और हमें कुछ सीखने को मिल पायेगा। शायद उनके सहारे हमारा जीवन भी सफल हो जाये।

दोनों मित्रों की सहमति हो जाने पर जय भगवान ने डॉक्टर एन्टोनी से सम्पर्क कर बाबा से अगले दिन प्रातः छः बजे का समय नियत कर लिया। सवेरे जब मित्रगण डॉक्टर के निवास पर पहुँचे, डॉक्टर साहब किसी अस्पताल में विजिट करने के लिए तैयार हो रहे थे। उन्होंने दोनों मित्रों का हार्दिक स्वागत किया। उन्होंने बाबा का अहसान जताया जिनके कारण उन्हें उनके पुराने सहपाठियों से मुलाकात का अवसर मिला। डॉक्टर साहब उनकी बाबा से मुलाकात करने की इच्छा से बहुत प्रभावित थे।

डॉक्टर एन्टोनी: बाबा अभी योग क्रिया में लीन हैं, अतः कुछ समय प्रतीक्षा करनी होगी। जब तक हम लोग गपशप करते हैं। डॉक्टर साहब ने अपने घरेलू नौकर से चाय नाश्ते का बंदोबस्त करने का आदेश दिया।

जय भगवान: अरे एन्टोनी आप तो कहीं जाने के लिए तैयार हो रहे थे। हम लोग आपका समय व्यर्थ कर रहे हैं।

डॉक्टर एन्टोनी: दोस्तों का आगमन कभी-कभी होता है और आप लोगों से कम से कम दस वर्ष बाद मुलाकात हो रही है। अस्पताल कुछ देर से चला जाऊँगा। तीनों मित्र बातचीतों में इतना व्यस्त हो गये कि समय का पता ही न चला। नौकर ने आकर सूचना दी कि बाबा योग क्रिया समाप्त कर चुके हैं। डॉक्टर साहब तुरंत उठकर मित्रों को बाबा से मिलवाने के लिए ले गये और बाबासे जय भगवान एवं फारूख को अपने घनिष्ठ मित्र कहकर मिलवाया। उन्होंने बाबा को अपने मित्रों का नेकदिल, ईमानदार, समाज सेवा के इच्छुक इंसानों के रूप में परिचय दिया और बाबा से उनकी जिज्ञासाएँ शांत करने की प्रार्थना की।

बागड़ी बाबा: मुझे आप लोगों से मिलकर प्रसन्नता हुई और यह जानकर कि आप लोगों की समाज में व्याप्त कष्टों को दूर करने की भावना है, ने मुझे अत्यन्त प्रभावित किया। हमारे देश को, हमारे समाज को निःस्वार्थ स्वयं सेवकों की महती आवश्यकता है। आप लोग आसन ग्रहण करें और अपने प्रश्नों द्वारा अपनी जिज्ञासा शांत करें।

फारूख ने प्रश्न किया: बाबा जैसा मैंने आपके बारे में सुना है आप एक योग्य एवं मेधावी छात्र रहे हैं, परिवार से भरपूर सम्पन्न रहे हैं। आप एक अच्छे उद्योगपति अथवा प्रशासनिक अधिकारी बनने की क्षमता रखते थे, फिर भी अपना जीवन जनता के लिए कुर्बान कर दिया। सादा जीवन उच्च विचार को अंगीकार किया, आखिर ऐसा फैसला क्यों लिया? आप तो जीवन के सब सुख प्राप्त करने के हकदार थे।

बाबा बागड़ी: दीन दुखियों की सेवा से बड़ा कोई और सुख हो ही नहीं सकता। अतः मैं अपने को सबसे भाग्यशाली एवं सुखी मानता हूँ। जो आनन्द सादा जीवन जीने में है, वह भौतिकवादी सुखों एवं सुविधाओं में नहीं होता। विलासी व्यक्ति मानसिक रूप से अधिक अशांत रहता है। यदि कभी उन सुविधाओं का अभाव झेलना पड़े तो विचलित हो जाता है और उसे कष्टों का अहसास होता है।

फारूख: क्या आप अपने धर्मविहीन ‘इंसानियत’ का धर्म का हमें परिचय करायेंगे?

बाबा बागड़ी: तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर चन्द घंटों या चन्द दिनों में देना सम्भव नहीं है। डॉक्टर साहब के मित्र होने के नाते मैं तुम्हें सब कुछ विस्तार से बताऊँगा, यदि तुम लोग पर्याप्त समय मुझे दे सको और मेरे आश्रम पर आकर मेरे विचारों को जान सको।

जय भगवान: बाबा हमें खुशी होगी यदि आप हम पर इतनी कृपा करेंगे। हम लोग आपकी सुविधा के अनुसार समय निकाल कर आपके आश्रम पर आ सकते हैं, यह तो हमारा सौभाग्य होगा।

फारूख: जी बाबा, हम लोग आपके आदेश का पालन करेंगे।

जय भगवान: बाबा, हम लोगों की सोमवार की व्यापार से छुट्टी रहती है। अतः उस दिन किसी भी समय आप हमें बुला लें।

बागड़ी बाबा: मेरे लिए सप्ताह के सातों दिन व्यस्त होते हैं परन्तु आप लोगों को आप लोगों की सुविधानुसार सोमवार को सवेरे योग कक्षाओं के पश्चात् अर्थात सात बजे से आप लोगों के लिए समय दे दिया करूँगा। दोनों युवा बाबा की स्वीकृति पाकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। डॉक्टर एन्टनी ने इस बीच अपने दोस्तों से विनयपूर्वक विदा ली क्योंकि वे पहले ही काफी लेट हो चुके थे। मरीजों से अधिक प्रतीक्षा करवाना उचित नहीं है। उन्होंने अपने नौकर रामू से अपने दोस्तों और बाबा की मेहमान नवाजी करते रहने को कहा।

बाबा बागड़ी: यहाँ पर आज मैं अपना संक्षिप्त परिचय आप लोगों को देता हूँ, ताकि आज से ही आप मेरे से जुड़ सकें।

मेरे पिता अपने गांव में नामी एवं बड़े जमींदार थे। उनके पास अनेकों खेत एवं बाग थे वे सब उन्हें पैत्रिक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त हुए थे। अतः मेरा बचपन सम्पूर्ण सुविधाओं के साथ बीता। मैं अपने विद्यार्थी जीवन में अपनी कक्षा में मेधावी छात्रों में गिना जाता था। ईमानदारी, सत्यता और सादा जीवन मेरे उच्च विचारों की धारणा के पोषक थे। मैं अक्सर गरीबों, दीन-दुखियों, आपदाग्रस्त व्यक्तियों को देखकर विचलित हो जाता था।

हाईस्कूल की शिक्षा के पश्चात् गांधी जी द्वारा लिखित साहित्य को पढ़ने का अवसर मिला। मैं उनके अहिंसा के सिद्धान्त से बहुत प्रभावित हुआ। उनके समाज सेवा, सत्य, राष्ट्रप्रेम, छुआछूत निवारण जैसे भावों से अत्यधिक प्रभावित हुआ। फलस्वरूप मैंने निश्चय कर लिया कि अपनी शिक्षा समाप्त कर देश और समाज की सेवा करूँगा। सत्य, अहिंसा, ईमानदारी, उदारता जैसे गुणों को आत्मसात करूँगा। अतः स्नातकोत्तर की समाजशास्त्र में उपाधि प्राप्त कर अपना सर्वस्व समाज को न्यौछावर कर दिया। मैं अपने पिता की अकेली संतान था। अतः उनके देहान्त के पश्चात् सारी जमा पूंजी को समाज सेवा के लिए लगा दिया। खेत खलिहान बेचकर अनेक शहरों में बागड़ी आश्रम बनवा दिये और उनमें मुफ्त चिकित्सालय खोल दिये। वृद्धों एवं अनाथ बालकों के रहने की व्यवस्था की। प्रत्येक आश्रम में गरीब युवक युवतियों के विवाह आयोजन की व्यवस्था कर दी गयी। गरीब बच्चों की शिक्षा का खर्च भी समय-समय पर आश्रम द्वारा उठाया जाता है। मेरे इस शुभ कार्य से प्रभावित होकर जहाँ-जहाँ आश्रम स्थित हैं वहाँ भी और उसके आसपास शहरों से अनेक सामर्थ्यवानों ने अपना तन-मन-धन से सहयोग देना प्रारम्भ कर दिया। डॉक्टरों ने फ्री मरीजों के देखने के लिए समय दिया, शिक्षकों ने गरीब बच्चों को ट्यूशन देकर उनकी सहायता करने का संकल्प किया, कुछ विद्वान एवं समर्पित लोगों ने आश्रम का संचालन अपने हाथ में लिया। वहीं धनवान व्यक्तियों, उद्योपतियों, अफसरों ने आर्थिक योगदान का प्रस्ताव रखा और आज इतना बड़ा कारवाँ बन चुका है कि तुम जैसे व्यवसायी भी मेरी ओर उन्मुख होकर मेरे सिद्धांतों एवं कार्यशैली जानने के इच्छुक हो गये।

जय भगवान: बाबा क्या आप संन्यासी बन गये हैं, ब्रह्मचारी हैं? आपने अपना घर भी नहीं बसाया क्या?

बाबा बागड़ी: समाज सेवा के लिए ब्रह्मचारी अथवा सन्यासी बनना आवश्यक नहीं है। महान उद्देश्य का संकल्प लेना ही समाज सेवा के लिए काफी होता है। परिवार बनाना उसका यथा शक्ति पालन करना भी समाज सेवा का ही छोटा रूप है। साधुओं-सन्यासियों को सन्देह के घेरे में लाने की सम्भावना भी बनी रहती है। आज अच्छाईयां को दबाने के लिए अनेक नकारात्मक तत्व उभर कर आते रहते हैं। मैंने समय पर विवाह किया और आज मेरे दो पुत्र बड़े हो चुके हैं। वे अपनी पढ़ाई के अतिरिक्त समय को मेरे कार्यों में सहयोग करते हैं। मेरी पत्नी भी सच्ची समाज सेविका है और मुझे मेरे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करती है। वे अक्सर नारी शोषण के खिलाफ आवाज उठाती रहती हैं और नारी उत्थान के प्रयास करती रहती हैं और आज की बैठक यहीं समाप्त होती है। जैसा तुम जानते हो मेरा मुख्य आश्रम यहाँ से पांच किमी पर स्थित है। अगले सोमवार आप लोग वहीं पर मुझसे मुलाकात करेंगे।