भारत भारती सम्मान लौटा दिया!!/ अशोक कुमार शुक्ला

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भैया जी पं0 श्रीनारायण चतुर्वेदी का स्मरण !!
हिन्दी दिवस के अवसर पर

पं0 श्रीनारायण चतुर्वेदी का जन्म उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में हुआ था जन्म वर्ष के सम्बन्ध में इसे सन् 1895 ई0 में हुआ माना जाता है (‘माना जाता है’ इस लिये कि श्रीनारायण जी इसी जन्मतिथि के हिसाब से ही भारत सरकार की राजकीय सेवा से सेवानिवृत भी हुये । हाँलांकि इनकी मृत्यु के उपरांत प्रकाशित आत्मकथा ‘परिवेश की कथा’ में उन्होने अपना जन्म आश्विन कृष्ण तृतीया, अर्थात 28 दिसम्बर 1893 ई0 की मध्यरात्रि को होना अवगत कराया है)।

लखनऊ जनपद के गणेशगंज मोहल्ले मे स्थित खुर्शीदबाग का मकान संख्या 53 हिन्दी विषय पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिये किसी तीर्थ स्थान से कम महत्व नहीं रखता क्योंकि यह आदरणीय चतुर्वेदी जी की कर्मस्थली रहा हैं।

बीती 14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर एक साहित्यिक कार्यक्रम के सिलसिले मे दुगांवा स्थित आदरणीय मुद्राराक्षस जी के घर को जाना हुआ। गणेशगंज के भीड भरे इलाके से होता हुआ को किसी जमाने में लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान माने जाने वाले श्रेत्र खुर्शीदबाग से होकर गुजरा तो बरसस याद हो आयी मकान नम्बर 53 की । यह आवास आदरणीय श्रीनारायण चतुर्वेदी जी यानी हिन्दी साहित्यकारों के पितामह कहे जाने वाले दद्दा जी का आवास था। एक समय था जब इसमें साहित्यिक रौनकें हुआ करती थीं परन्तु अब यहाँ साहित्यिक रौनके नही सजतीं।

दद्दा जी जितने मुंहफँट थे उसकी मिसाल दी जाती है। हिन्दी दिवस के अवसर पर उनसे जुडा हिन्दी भाषा का एक मुद्दा याद आता है जो हिन्दी के प्रति इस महान साहित्यकार की हठधर्मिता का जीवंत उदाहरण है।

आदरणीय हेमवती नंदन बहुगुणा जी उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे । किसी अवसर पर उन्होने किसी परिपेक्ष्य में यह कह दिया कि हिन्दी के कौन से सुरखाब के पर लगे हैं। बस फिर क्या था श्रीनारायण जी की त्यौरियाँ चढ गयीं और उन्होने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से बहुगुणा को ऐसा जवाब दिया कि वे निरूत्तर हो गये।

एक और किस्सा है उनके हिन्दी प्रेम का । जब आदरणीय वी पी सिंह जी ने उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने सम्बन्धी निर्णय लिया तो उन्होंने बी पी सिंह जी को जो पत्र लिखा उसकी भाषा कुछ इस प्रकार थीः-

‘....आपने राष्ट्रभाषा के साथ द्रोह किया है......’

इस भाषा में लिखा पत्र उन्होंने न सिर्फ बीपी सिंह को प्रेषित ही किया अपितु स्वयं उनके पास जाकर यह पत्र सुनाया भी साथ ही प्रदेश में हिंदी के समर्थन में जनान्दोलन भी खडा किया। उन्हें दीर्धकालीन हिंदी सेवा के लिये भारत भारती सम्मान दिया गया परन्तु जब प्रदेश सरकार ने उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया तो उन्होंने यह सम्मान लौटा दिया।