मीना कुमारी : दिन की झोली में भीख की रातें / जयप्रकाश चौकसे

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मीना कुमारी : दिन की झोली में भीख की रातें
प्रकाशन तिथि : 08 जुलाई 2014


विगत सप्ताह फिल्मकार कमाल अमरोही की पहली पत्नी से जन्मे ज्येष्ठ पुत्र ताजदार अमरोही ने एक जमीन का मुकदमा जीता है। यह जमीन 251 पाली हिल, बांद्रा, मुंबई की कोजी हाउसिंग सोसायटी को कमाल अमरोही की दूसरी पत्नी सितारा मीनाकुमारी ने लीज पर दी थी और लीज संभवत: समाप्त हो गई है। आज की खबर है कि रोली प्रकाशन ने मीनाकुमारी की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद और जीवन वृतांत "मीनाकुमारी पोएट: लाइफ बियोंड सिनेमा' का प्रकाशन किया है। इस कॉलम के लिखे जाने तक यह किताब बाजार में नहीं आई है। मीनाकुमारी के वसीयतनामे में धारा पांच में उन्होंने अपनी कविताओं एवं डायरी के प्रकाशन एवं उसका स्वामित्व अधिकार गुलजार के नाम किया है। संभवत: यह अंग्रेजी अनुवाद गुलजार की आज्ञा से ही हुआ हो। मीनाकुमारी ने अपनी संपत्ति का कुछ भाग शिया ट्रस्ट को भी दिया था। श्रीचांदबहादुर सक्सेना उनकी वसीयत के क्रियान्वयन के अधिकारी नियुक्त किए गए थे।

अपनी संपत्ति की वसीयत की जा सकती है और रिश्तेदारों को कम या ज्यादा मिलने के शिकवे शिकायत हमेशा रहते हैं और कई बार विवाद अदालत तक जाते हैं। मरने वाले का दर्द कभी नहीं बंटता, उसकी यातनाएं अविभाजित रहती हैं। उसके अवचेतन की संपदा पर कोई वसीयतनामा लागू नहीं होता। मीनाकुमारी के शिखर काल में कमाई राशि तो कमालिस्तान स्टूडियो में लगी और उनके पति के अधिकार में ही रही तथा पति से अलगाव के बाद उनके कॅरिअर के संध्या काल की कमाई का विभाजन उन्होंने किया था।प्रकाशित किताब में मीनाकुमारी का सिनेमा के परे का विवरण है परंतु वह तो स्टूडियो के आंगन में खेलकर बड़ी हुई थी और अल्पायु से ही बचपन की भूमिकाएं करते-करते जवान हुईं गाेयाकि उनके जीवन के 39 बरसों का अधिकांश समय स्टूडियो में ही गुजरा है। सारांश यह है कि सिनेमा ही उसका जीवन रहा है।

अपने अभिनय में बने रहने का कारण उन्होंने बताया था कि एक मां ने बच्चे को कहानी सुनाई कि एक शहजादा था जिसके पास बहुत तेज भागने वाला, हवा से बात करने वाला लाल रंग का घोड़ा था, जिस पर सवार होकर वह एक परी की तलाश में निकला। अगले दिन मां ने देखा कि उनका किस्सा सुनने वाला बच्चा अपने लकड़ी के घोड़े पर बैठा था और मां ने बुलाया तो उसने कहा वह अपनी परी की तलाश में निकला है। जाना पहचाना शहजादा अनजान परी की तलाश तमाम उम्र करता है। मीनाकुमारी भी अनजाने की तलाश में कलाकार बन गई और विभिन्न चरित्रों के अभिनय ने उसकी तलाश को धार प्रदान की, आगे वे लिखती हैं, हर भूमिका एक ख्वाब है अौर ख्वाब दर ख्वाब में सफर करती जा रही हूं और यकीं है एक दिन खुद को पा लूंगी। फिल्म मेरा लाल घोड़ा जो बहुत तेज भागता है। उनकी ताजा किताब नहीं पढ़ी है। उनकी मृत्यु के बाद उन पर बहुत ही अंतरंग (इंटीमेट) बातें "माधुरी' नामक फिल्म पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। दिलीपकुमार की तरह मीनाकुमारी ने भी एक दौर में अनेक दुखांत फिल्मों में अभिनय किया और "दर्द की देवी' की उनकी छवि इतनी मजबूत बनी कि उस दौर में प्रदर्शित हास्य फिल्म "मिस मेरी' अच्छी होते हुए भी नहीं चली। वे भूमिकाओं में डूब जाती थीं और यह संभव है कि गुरुदत्त की "साहब, बीबी, गुलाम' में छोटी बहू की भूमिका में ऐसी डूबीं कि कभी निकल ही नहीं पाई।वे शायद काफी पहले से शराब पीती थीं परंतु इस फिल्म में खूब शराब पीने वाली बहू की भूमिका के बाद उनका पीना दिन दिन बढ़ता गया यहां तक कि उनकी मृत्यु भी शराब के अति सेवन के कारण यकृत की बीमारी से हुई- सिरोसिस ऑफ लीवर। यह कितने आश्चर्य की बात है कि इसी फिल्म का पाश्र्वगायन करने वाली गीता राय की मृत्यु 20 जुलाई 72 को हुई और कुछ ही दिनों के अंतराल में मीनाकुमारी की भी मृत्यु हुई। क्या "छोटी बहू' ने दो लोगों के प्राण लिए?

मीनाकुमारी अपनी नज्मों को नाज के नाम से प्रकाशित करती थीं। कुछ रचनाएं इस तरह हैं-1. मांगी-मांगी हुई सी कुछ बातें, दिन की झोली में भीख की रातें, मेरी दहलीज पर भी आई थीं, जिंदगी दे गई नई सौगातें। 2. मसर्रतों पे रिवाजों का सख्त पहरा है, जाने कौन सी उम्मीद पे दिल ठहरा है, तेरी आंखों में झलकते हुए इस गम की कसम, दोस्त! दर्द का रिश्ता बहुत ही गहरा है। 3. टूटे हुए हाथों से कोई भीख मांगे, जो फर्ज था, वह कर्ज है पर इस तरह ना हो। 4. सोचा था खुश्बुओं से सांसें बसाएंगे, चीखा लहू कि देखो कौले कजह हो।