मुम्बई आये और महालक्ष्मी के दर्शन न किये तो क्या किया / संतोष श्रीवास्तव

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प्रियदर्शिनी पार्क से महालक्ष्मी तक की सड़क महत्त्वपूर्ण इमारतों से युक्त है। मुकेश चौक में गायक मुकेश की स्मृति में-सी स्टोन से बनी दो मूर्तियाँ स्थापित हैं जो भारतीय संगीत का बेहतरीन नमूना हैं। पैडर रोड, भूलाभाई देसाई रोड, ब्रीच कैंडी अस्पताल जो फ़िल्मी हस्तियों के इलाज के लिए जाना जाता है और जहाँ भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के घुटनों का ऑपरेशन हुआ था, वार्डन रोड का प्रभुकुंज स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर का निवास स्थान है। मीना मंगेशकर, आशा भोंसले भी इसी इलाके में रहती हैं। जसलोक अस्पताल उच्च तकनीकी इलाज के लिए प्रसिद्ध है। तमाम वीज़ा एम्बेसीज़ आदि के बाद महालक्ष्मी में समँदर के किनारे धनधान्य की देवी लक्ष्मी का मंदिर है जो शिलाखंड पर निर्मित है। मंदिरमें देवी महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली रूप की मनोहारी प्रतिमाएँ हैं। प्रतिमाओं का श्रृँगार रत्नजड़ित आभूषणों से किया जाता है। मुम्बई में आतंकवादी हमले के बाद से महालक्ष्मी मंदिर में सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम हैं। -सी सी टी वी में श्रद्धालुओं की कतारें आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती हैं... नवरात्रि में बम डिटेक्शन और खोजी कुत्तोंका स्क्वाड पुलिस दल और सुरक्षा दल के साथ मंदिर की सुरक्षा में कड़ी नज़र रखता है। महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण काल बॉम्बे गज़ेटियर्स में 1761 से 1771 के बीच का माना गया है। कहते हैं कि अँग्रेज़ सरकार ने गिरगाँव, मालाबार हिल से वर्ली कॉज़वे को जोड़ने का काम किसी रामजी-शिवजी प्रभु को सौंपा था। आलम यह था किदिन भर का निर्माण रात को समुद्री ज्वार में बह जाता... एक रात प्रभु को सपने में महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती के दर्शन हुए... तीनों देवियों ने कहा... "हमें समुद्र की तलहटी से निकाल कर यहाँ हमारा मंदि रब नवाओ." नींद से जागकर जैसे प्रभु-प्रभु मय हो गया। करिश्मा ये हुआ कि समुद्र तल से मूर्तियाँ निकालते ही निर्माण पूरा हो गया। 80 हज़ार की लागत से डेढ़ एकड़ के परिसर में मंदिर बन कर तैयार हुआ। मंदिर दूर से द्वीप की तरह लगता है जिसके तीन ओर ठाठें मारता सागर मंदिर का प्रक्षालन करता रहता है। चैत्र और क्वार की नवरात्रि में मानो सूरज उगते ही अपनी कोमल किरनों से देवियों का स्पर्श करता है। पहले मंदिर के पिछवाड़े की सीढ़ियाँ उतर चट्टानों पर खड़े होकर सागर दर्शन कर सकते थे लेकिन अब इसे घेर दिया गया है। आतंक की छाया इधर भी डेरा डाले है।

मंदिर के गर्भगृह में रजत सिंहासन, ध्वजस्तंभ, सभामंडप, मुख्य द्वार और बाहर गणपति, विट्ठल रुक्मणी, जयविजय की प्रतिमाएँ, श्रीयंत्र, सामने स्तंभों पर हाथी और मोर की आकृतियाँ मंदिर की अन्य विशेषताएँ हैं। मंदिर के पीछे उतराई पर एक जलपान गृह है जहाँ मूँग की और चने की दालके पकौड़े राईके तेल में तल कर दिये जाते हैं। इन स्वादिष्ट पकौड़ों को हरी चटनी के साथ हर दर्शनार्थी अवश्य खाता है। यहाँ आकर समँदर का नाम वर्ली तट हो जाता है।

महालक्ष्मीरोड पर ही हाजी अली की दरगाह है जो समँदर मेंस्थित एक टापू पर बनी है। टापू से सड़क तक कंक्रीट का जल मार्ग है लगभग आधा किलोमीटर का जिसमें आजू बाजू कोई रेलिंग नहीं है और जिस पर चलना किसी रोमाँच से कम नहीं है क्योंकि शरारती लहरें कब उछलकर आपको भिगो दें कहा नहीं जा सकता। यह दरगाह मुस्लिम संत सैय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है। वे बुखारा के निवासी थे और 15वीं सदी में दुनिया का भ्रमण करते हुए मुम्बई आ बसे थे। जब वे मुम्बई से मक्का जा रहे थे तो इसी स्थान पर डूबकर उनकी मृत्यु हो गई थी। उनकी स्मृति में 1431 में यह दरगाह बनी। जो इस्लामी स्थापत्य का नायाब नमूना है। 4500 मीटर के क्षेत्र में बनी इस दरगाह के साथ ही मस्जिद भी है जो दुनिया में अपनी तरह का एकमात्र ऐसा धर्मस्थान है जहाँ दरगाह और मस्जिद समुद्र के बीच टापू पर हो। दरगाह झक्क सफेद रंग की है जिसकी सबसे ऊँची मीनार 85 फीट की है। मकबरा लाल हरे रंग की चादर से ढँका हुआ है। मुख्य परिसर में स्तंभों पर काँच की सुन्दर नक्काशी है। पुरुषों और महिलाओं के इस्लाम रीति अनुसार अलग-अलग प्रार्थना स्थल हैं। चार सौ साल पुरानी यह दरगाह ऐसा लगता है जैसे कल ही बनी हो। प्रांगण में खाने पीने की वस्तुएँ, फूल, चादर, अगरबत्ती आदि की दुकानें हैं। जब समँदर में ज्वार आता है तो जलमार्ग पानी में डूब जाता है। प्रतिदिन सुबह से दोपहर तीन बजे तक वह पानी में डूबा रहता है। इसके आसपास समुद्री चट्टानें हैं जिन पर सफेद पँखों वाले पक्षियों के झुंड बैठे रहते हैं। उड़ते हैं तो एकसाथ, बैठते हैं तो एक साथ। इसकी एक मीनार पर चढ़कर अमिताभ बच्चन ने फ़िल्म कुली का सीन दिया था। खूबसूरत कार्पिंग वाली दरगाह का मुख्य आकर्षण हर शुक्रवार को सूफ़ी संगीत और कव्वाली की महफ़िल है। चट्टानों पर लहरें टकराकर मानो कव्वाली की महफ़िल में शामिल होने की कोशिश करती हैं। यहाँ से दूर-दूर तक समँदर बाँहें फैलाए मानो मुम्बई की गगनचुम्बी इमारतों को बस पुकार ही रहा हो।

यहीं महालक्ष्मी रेसकोर्स है। ओवल शेप का ट्रैक दो हज़ार चार सौ मीटर तक स्ट्रेट गया है। महालक्ष्मी रेसकोर्स की संरचना 1883 में ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न स्थित रेसकोर्स को ध्यान में रखकर की गई. रेसकोर्स का गेट समुद्र की ओर खुलता है। यह सर कसरो एन वाडिया के धन से बनकर तैयार हुआ। अब इसे म्यूनिसिपल कार्पोरेशन ऑफ़ग्रेटर मुम्बई की देखरेख में'रॉयलवेस्टर्न इन्डिया टर्फ़क्लब' चलाता है। घोड़े पर करोड़ों का सट्टा लगाना अमीरों का शगल है।

महालक्ष्मी रेस कोर्स के बाजू में पर्यावरण संरक्षण की बड़ी इमारत है। तुलसी के पौधे यहाँ मुफ़्त मिलते हैं। सामने हीरा पन्ना शॉपिंग सेंटर है जहाँ अभिजात्य वर्ग और फ़िल्मी हस्तियाँ शॉपिंग करती हैं।

समँदर को जहाँ किनारों से बाँधा है वहाँ वर्ली-सी फेस है। वर्ली मुम्बई का समृद्ध इलाका है। खूबसूरत सड़क ऊँचाई पर है और थोड़ा नीचे समँदर का अथाह जल। रेलिंग पर बैठे पर्यटक लहरों की बौछारों से भीग जाते हैं। सामने ही वर्ली दुग्ध डेअरी बहुत विशाल अहाते को घेरे हुए है। यहाँ प्रतिदिन लाखों लीटर दूध मशीनों द्वारा छानकर प्लास्टिक की थैलियों में पैक किया जाता है। दूध पावडर, क्रीम, मक्खन सबकी बड़ी-बड़ी मशीनें दिनरात चलती हैं। इस डेअरी की इमारत में सुस्ताना मना है। रात और दिन काम ही काम।

महालक्ष्मी रोड पर ही आगे नेहरु सेंटर है जिसमें बच्चों का साइंस पार्क और स्थाई आर्ट गैलरी है जिसमें ज़िन्दग़ी से जुड़ी को समय-समय पर चित्रों द्वारा दर्शाया जाता है। एंटीक वस्तुओं की प्रदर्शनी में रेलवे एंजिन, ट्राम, सुपर सॉनिक हवाई जहाज और भाप से चलने वाली ट्रेन विशेष दर्शनीय है। यहाँ नेहरू जी द्वारा लिखित पुस्तक डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया का चित्ररूप में प्रस्तुतीकरण किया गया है। यहाँ चौदह गैलेरीज़ हैं और ऑडियो विज़ुअल शो भी होते हैं। कई तरह के कल्चरल प्रोग्राम नृत्य, गायन, साहित्यिक सम्मेलन भी होते हैं। नेहरु सेंटर में ही लाफ़्टर क्लब द्वारा आयोजित एकल कविता पाठ में मैंने एक घंटे तक कविता सुनाई थी। और सुनने वाले साहित्यकार नहीं बल्कि साहित्य में रूचि रखने वाली आम पब्लिक थी।

नेहरु साइंस सेंटर से आगे डॉ. एनी बेसेंट रोड पर नेहरु तारांगण (प्लेनेटेरियम) है। जहाँ अलग-अलग समय में अँग्रेज़ी और हिन्दी भाषा में शो होते हैं जिसमें तारे, सूर्य, चंद्र, आकाशगंगाएँ, ग्रहनक्षत्रों को बिल्कुल असली रूप में दिखाया जाता है। ऐसा लगता है जैसे हम कुर्सी पर बैठे आसमान की सैर कर रहे हैं। बेहद खूबसूरत इमारत के अंदर भी शो के लिए बनाया गया प्रतीक्षा लय भी ऐसा लगता है मानो आसमान नीचे उतर आया है। दीवारों पर खूबसूरत कलाकृतियाँ... मंगल, शनि के बड़े-बड़े मॉडल... धरती से आसमान... ब्रह्मांड की सैर करा देते हैं।

वर्ली में ही पांडुरंग बुधकर मार्ग पर दूरदर्शन केंद्र है। किसी ज़माने में दूरदर्शन केंद्र बहुत लुभाता था। मात्र दो चैनल मेट्रो और दूरदर्शन। इन दो चैनलों ने रामायण, हम लोग जैसे कई बेहतरीन धारावाहिक देकर लोगों को टी वी सेट का दीवाना बना दिया था। हम लोग में उषारानी के लिए डॉन क्वीन सम्बोधन तब लोगों की ज़बान पर था। हर रविवार को मुम्बई की सड़कें कर्फ्यू ग्रस्त नज़र आती थीं और लोग हाथ पाँव धोकर बाकायदा पालथी लगाकर टी वी के सामने बैठकर रामायण धारावाहिक देखते थे। अब आठ सौ से अधिक चैनल होने के बावजूद उतने नहीं लुभाते। हर जगह बाज़ारवाद छा गया है। मुम्बई में भारतीय टेलीविज़न स्टेशन 2 अक्टूबर 1972 में बना। प्रसार भारती के कार्यक्रमों का प्रसारण नियमित होने लगा। 1994 में दूरदर्शन ने सह्याद्रि चैनल लाँच किया जो पूरे महाराष्ट्र को कवर करता है। दूरदर्शन केन्द्र में अन्य कल्चरल प्रोग्राम भी समय-समय पर आयोजित किये जाते हैं। 2013 में आशीर्वाद साहित्यिक संस्था द्वारा वैश्विक हिन्दी पर महानगर की लेखिकाओं की परिचर्चा आयोजित की गई थी जिसमें वक्ता के तौर पर मैं भी मौजूद थी। यह कार्यक्रम सह्याद्रि चैनल पर दिखाया गया था।

मैं वर्ली से सीधे प्रभादेवी होते हुए दादर की राह पकड़ती हूँ। वर्लीसे प्रभादेवी तक ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं में महत्त्वपूर्ण सरकारी और ग़ैर सरकारी ऑफ़िसेज़ रहाइशी फ्लैट आदि हैं जिसमें ऊँचे तब केके लोग रहते हैं। भीतर ही भीतर कई गलियाँ मुम्बई की चॉल को समेटे हैं। चॉल भी बैठी चॉल, खड़ी चॉल आदि नामों से अपने आवरण को उजागर करती हैं। प्रभादेवी सिद्धि विनायक मंदिर के लिए प्रख्यात है। जो 30 साल पुराना है यहाँ तगड़ी सुरक्षा के बीच भक्तगण आते हैं और घंटों लाइन में खड़े रहकर दर्शन करते हैं। मंदिर में छोटे से मोहक गनपति अपनी पत्नियाँ रिद्धि-सिद्धि के साथ पूजे जाते हैं। गणेश चतुर्थी यानी संकष्टि के दिन यहाँ लड्डू प्रसाद मिलता है। बूँदी का मेवों से भरा लड्डू इतना बड़ा होता है कि एक ही लड्डू से पेट भर जाता है। भक्तों की कतार कभी वी आई पी की अलग से नहीं होती। अमिताभ बच्चन जैसी हस्ती भी आठ-आठ घंटे नंगे पाँव कतार में खड़े रहते हैं। किसी के लिए स्पेशल पूजा का विधान नहीं है। तभी तो तमाम अवरोधों के बावजूद मुम्बई मंगलमय है सबको लुभाती है।

प्रभादेवी से दादर रेलवे स्टेशन जाने वाले रास्ते में पुर्तगाली चर्च आता है। पुर्तगाली स्थापत्य का यह चर्च अपनी विशेष बनावट के लिए प्रसिद्ध है। यह पुर्तगालियों के समय से उनका प्रार्थना स्थल रहा है। आगे कबूतरखाना है। हज़ारों कबूतरों का चौराहे के बीचों बीच निर्धारित गोल घेरे में बैठना, पर्यटकों द्वारा डाले गये दाने चुगना, पँख फड़फड़ाना विशेष आकर्षण का केन्द्र है। यह गोल दायरा लोहे की फैंसिंग वाला है। कबूतर खाने के चारों रास्ते दिन भर बसों, टैक्सियों और पदयात्रियों से भरे रहते हैं लेकिन ये क़बूतर कभी किसी के लिए रूकावट नहीं बनते।