मेरी आत्मकथा / अध्याय 20 / चार्ली चैप्लिन / सूरज प्रकाश

Gadya Kosh से
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पूरब के बारे में पहले से ही कई उत्कृष्ट पर्यटन किताबें लिखी गयी हैं इसलिए मैं पाठक के धैर्य की परीक्षा नहीं लूंगा। अलबत्ता, मेरे पास जापान के बारे में लिखने के लिए एक बहाना है क्योंकि मैं वहां पर अजीबो-गरीब हालात में पहुंचा था। मैंने जापान के बारे में लाफकाडियो हर्न की एक किताब पढ़ी थी और उन्होंने जापानी संस्कृति और उनके थियेटर के बारे में जो कुछ लिखा था, उससे जापान जाने के बारे में मेरी इच्छा बढ़ गयी थी।

हमने एक जापानी जहाज में यात्रा की। इसने जनवरी की बर्फीली हवाओं में तट छोड़ा था और सुएज नहर में गर्मी के मौसम में प्रवेश करने वाला था। एलेक्जेंड्रिया तट पर उसमें नये यात्री चढ़े। अरब और हिन्दू। दरअसल उनके आने से हमारे सामने एक नयी दुनिया खुली। सूर्यास्त के वक्त अरब डेक पर अपनी चटाइयां बिछा देते और मक्का की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ते।

अगली सुबह हम लाल सागर में थे। इसलिए हमने अपने औपचारिक कपड़े लबादे जैसे कपड़े उतार फेंके और सफेद निकरें और हल्की रेशमी कमीजें पहन लीं। हमने अपने साथ गर्म देशों वाले फल और नारियल एलेक्जेंड्रिया में ही भर लिये थे इसलिए नाश्ते में हम आम लेते और डिनर के वक्त बर्फ से ठंडा किया गया नारियल दूध लेते। एक रात हमने जापानी ढंग अपना लिया और डेक के फर्श पर डिनर लिया। मुझे जहाज के अधिकारी ने बताया कि अगर मैं अपने चावलों पर थोड़ी सी चाय डाल दूं तो उनका स्वाद बढ़ जाता है। जैसे जैसे जहाज दक्षिणी तट के नजदीक पहुंचा तो हमारा रोमांच बढ़ने लगा। जापानी कप्तान ने शांत स्वर में बताया कि हम अगली सुबह कोलम्बो पहुंचने वाले हैं। हालांकि सीलोन जाना एक मोहक अनुभव था, हमारी इच्छा थी कि हम बाली और जापान पहुंचें।

हमारा अगला पत्तन सिंगापुर था जहां पर हम चीनी शैली के बेंत की तरह लचीली प्लेट के परिवेश में जा पहुंचे। वहां पर समुद्र के बीचों बीच वट वृक्ष उगते हैं। मुझे सिंगापुर की जो सबसे शानदार स्मृति है वो है उन चीनी अभिनेताओं की जो न्यू वर्ल्ड एम्यूजमेंट पार्क में प्रदर्शन करते थे। उन बच्चों को ईश्वरीय देन थी अभिनय की क्योंकि उनके नाटकों में महान चीनी नाटककारों के कई कई महान कृतियां शामिल थीं। वे लोग परम्परागत तरीके से पैगोडा में प्रदर्शन कर रहे थे। जो नाटक मैंने देखा, वह तीन रात तक चलता रहा। कलाकारों की मंडली में से जो प्रमुख अभिनेत्री थी, वह पन्द्रह बरस की लड़की थी और उसने राजकुमार का अभिनय किया था। वह ऊंचे, उत्तेजनापूर्ण स्वर में गा रही थी। तीसरी रात क्लाइमेक्स की थी। कई बार ये बहुत अच्छा होता है कि आप भाषा नहीं जानते क्योंकि जितना अधिक असर अंतिम अंक ने छोड़ा और किसी चीज़ का उतना असर हो ही नहीं सकता था। संगीत की व्यंग्यपूर्ण धुनें, कांपती तारें, और घंटों की तूफानी टकराहट और एकांत आकाश में क्रोध में चिल्लाती निर्वासित युवा राजकुमार की बेधती उस वक्त की भारी आवाज़ जिस वक्त वह अंतिम रूप से मंच से जाता है।

सिडनी ने इस बात की सिफारिश की कि बाली द्वीप चला जाये। उसने बताया कि ये अभी भी आधुनिक सभ्यता से अछूता है और ये भी बताया कि वहां की औरतें अभी भी नंगे सीने के साथ चलती हैं और बेहद खूबसूरत होती हैं। इन बातों से मेरी रुचि जागृत हो गयी। द्वीप की पहली झलक हमने सुबह के वक्त तब देखी जब सफेद रुई के गालों जैसे बादल हरे पर्वतों के चारों तरफ घेरा बनाये हुए थे और उनकी चोटियां ऐसे लग रही थीं मानो द्वीप हवा में तैर रहे हों। उन दिनों कोई पत्तन या हवाई पट्टी नहीं हुआ करती थी, बस, यात्रियों को अपनी नावों से एक लकड़ी के तट पर उतरना होता था।

हम दालानों में से आगे गुज़रे। ये खूबसूरत दीवारों से घिरे शानदार अहाते थे जिनमें दस बीस परिवार रहते थे। हम जितना अंदर जाते गये, प्रदेश उतना ही खूबसूरत होता चला गया। हरे धान के खेतों के चांदी से चमकते सीढ़ीनुमा खेत हमें घुमावदार झरने की तरफ ले गये। अचानक सिडनी ने मुझे कोंचा। सड़क के किनारे राजसी औरतों की एक पांत जा रही थी। उन्होंने अपनी कमर पर सिर्फ छींट लपेटे हुए थे और उनकी छातियां नंगी थीं। वे अपने सिरों पर टोकरियां लिये हुए थीं जिनमें वे फल लादे हुए थीं। इसके बाद तो हम लगातार एक दूसरे को कोंचते रहे। कुछ तो वाकई बेहद खूबसूरत थीं। हमारा गाइड जो एक अमेरिकी तुर्क था, और आगे ड्राइवर के साथ बैठा हुआ था, बेहद गुस्सा दिला रहा था क्योंकि जब भी हम कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करते, वह ओछेपन के साथ सिर घुमाता मानो उसने हमारे लिए कोई शो रखा हुआ हो।

डेनपासर में होटल अभी हाल ही में बनाया गया था। हरेक बैठक के सामने एक वरांडा था जिसे पिछवाड़े की तरफ सोने के कमरे से अलग किया गया था। सोने के कमरे आरामदायक और साफ सुथरे थे।

हर्चफेल्ड, अमेरिकी वाटर कलर चित्रकार और उसकी पत्नी बाली में दो महीने से रह रहे थे और उन्होंने अपने घर पर हमें आमंत्रित किया। वहां पर उनसे पहले मैक्सिकन कलाकार मिगुएल कुआरीबियास रह चुके थे। उन्होंने ये घर बाली के एक मुखिया से किराये पर ले रखा था और पन्द्रह डॉलर प्रति सप्ताह पर घर के मालिक की तरह शानो शौकत से रह रहे थे। डिनर के बाद हर्चफेल्ड दम्पत्ति, सिडनी और मैं टहलने के लिए निकले। रात अंधियारी और नमकीन थी। हवा नहीं चल रही थी और पत्ता भी नहीं खड़क रहा था। तभी अचानक वहां पर जुगनुओं ने हमला कर दिया और धान के खेतों पर वे नीली रौशनी के उतार चढ़ाव वाली लहरों की तरह फैल गये। दूसरी दिशा से संगीतमय आरोह अवरोह के साथ घंटे बजने और तम्बूरे बजने की आवाज़ें आने लगीं। "कहीं डांस हो रहा है," हर्चफेल्ड ने कहा,"आओ चलें।"

लगभग दो सौ गज दूर, स्थानीय वासी समूहों में खड़े थे या आस पास चौकड़ी मार के बैठे थे। लड़कियां पैर मोड़े टोकरियां और छोटे छोटे लैम्प लिये बैठी थीं और खाने पीने की चीज़ें बेच रही थीं। हम भीड़ में से रास्ता बनाते हुए निकले। हमने दस बरस की उम्र की दो लडकियों को देखा जो क़ढ़ाईदार सारोंग लपेटे हुई थीं और उन्होंने बहुत ही भव्य, सोने के काम वाले सिर के दुपट्टे ओढ़े हुए थे और वे बड़े बड़े पीतल के घंटों में से निकलती गहरी आवाज़ की धुन पर सिर हिलाती नाच रही थीं। ऊंचे सुर में कांपती धुनें बज रही थीं। संगीत की लहरियां किसी तूफानी लहर की तरह ऊपर उठतीं और गम्भीर नदी में उतार की तरह नीचे आ जातीं। अंतिम पल एक दम हतप्रभ कर देने वाले थे। नर्तकियां अचानक ही रुक गयीं और भीड़ में गुम हो गयीं। किसी किस्म की कोई तालियां नहीं बजीं। बाली समाज में कभी तारीफ में ताली नहीं बजायी जाती, न ही उनके पास प्यार या आभार के लिए शब्द ही हैं।

वाल्टर स्पाइस, संगीतकार और पेंटर हमसे मिलने आये और उन्होंने हमारे साथ होटल में लंच लिया। वे पन्द्रह बरस से बाली में रह रहे थे और बाली भाषा बोलते थे। उन्होंने बाली वासियों के संगीत के कुछ हिस्सों को अपने लिए पिआनो की धुनों में ढाल लिया था। उन्होंने वे अंश बजा कर सुनाये। इसका असर दोहरे समय में बजाये गये बाख कोन्सार्टो की तरह का था। बाली वासियों की संगीत की अभिरुचि काफी परिष्कृत है, बताया उन्होंने। हमारे आधुनिक जाज को वे ये कह कर दरकिनार कर देते हैं कि ये धीमा और सुस्त है। मोजार्ट को वे संवेदनशील मानते हैं लेकिन वे सिर्फ बाख को ही पसंद करते हैं क्योंकि उसकी पद्धतियां और धुनें उन्हें अपने खुद के संगीत के निकट जान पड़ती हैं।

मुझे उनका संगीत ठंडा, बेरहम और कुछ हद तक बेचैन करने वाला लगा। यहां तक कि गहरे विषादपूर्ण अंश भी भूखे ग्रीक देव मिनोटार की मनहूस उबासी की तरह थे।

लंच के बाद स्पाइस हमें जंगल के भीतर की तरफ ले गये। वहां पर पताका आरोहण का कोई आयोजन होने वाला था। वहां तक पहुंचने के लिए हमें जंगल के रास्ते से चार मील पैदल चलना पड़ा। जब हम वहां पहुंचे तो हमें लगभग बारह फुट लम्बी पवित्र वेदी को घेर कर खड़े हुए हजारों आदमियों की भीड़ दिखायी दी। नंगी छातियां झलकातीं, सुंदर सारोंग पहने नवयुवतियां थीं वहां। वे अपनी टोकरियों में फल और अर्ध्य की दूसरी वस्तुं लिये पंक्तियों में खड़ी थीं और एक पुजारी, जो दरवेश की तरह लगता था, उसके छाती तक लम्बे बाल थे, और उसने सफेद चोगा पहना हुआ था। वह आशीर्वाद दे रहा था और उनसे पूजा अर्चन का सामान ले कर वेदी पर रख रहा था। जब पुजारी ने अर्चन की आरती गा ली तो खिलखिलाते युवकों ने वेदी पर हल्ला बोल दिया और वहां पर सारी चीज़ें लूट लीं। उनके हाथ जो भी आया, उन्होंने लूटा और पुजारी उन पर बेरहमी से अपने कोड़े बरसाने लगा। कुछ लोगों को लूटा गया अपना सामान लौटा देना पड़ा क्योंकि कोड़े बहुत तीखे पड़ रहे थे और ये मान्यता थी कि इससे उन्हें उन बुरी आत्माओं से मुक्ति मिल जायेगी जो उन्हें चोरी करने के लिए प्रेरित कर रही थीं।

हम जब भी जी चाहता, मंदिर और अहाते के भीतर चले जाते और बाहर आ आते। हमने मुर्गों की लड़ाइयां देखीं, मेलों और धार्मिक विधियों में शामिल हुए। वहां रात दिन अनुष्ठान चलते रहते। एक दिन तो मैं सुबह पांच बजे वापिस आया। उनके देवता मौज मस्ती पसंद करते हैं और बाली के लोग उनकी आराधना डर के मारे नहीं बल्कि स्नेह से करते हैं।

एक रात बहुत देर स्पाइस और मैं मशालों की रौशनी में नाचने वाली एक लम्बी वीरांगना से जा टकराये। उसका बच्चा पीछे बैठा उसकी नकल उतार रहा था। युवा सा दिखने वाला एक आदमी उसे बार बार हिदायतें दे रहा था। बाद में हमें पता चला कि वह आदमी उस लड़की का पिता था। स्पाइस ने उससे उसकी उम्र पूछी।

"भूकम्प कब आया था," उस आदमी ने पूछा।

"बारह बरस पहले," स्पाइस ने बताया।

"तो उस वक्त मेरे तीन शादीशुदा बच्चे थे," अपने जवाब से वह संतुष्ट नजर नहीं आया इसलिए आगे बोला,"मेरी उम्र दो हज़ार डॉलर है।" ये इस बात की घोषणा थी कि मैं अपनी जिंदगी में दो हजार डॉलर जितनी रकम खर्च कर चुका हूं।

कई अहातों में मैंने एकदम नयी लिमोज़िन कारें देखीं जिन्हें मुर्गियों के अंडे सेने के काम में लाया जा रहा था। मैंने स्पाइस से इसका कारण पूछा। उसने बताया,"यहां के अहाते समुदाय के आधार पर चलाये जाते हैं और थोड़े से मवेशियों का निर्यात करके उन्हें जो पैसे मिलते हैं उन्हें ये बचत खाते में डालते रहते हैं और जो वक्त बीतने के साथ साथ बहुत बड़ी रकम हो जाती है। एक दिन कारों का एक होशियार सेल्समैन इनके पास आया और कैडिलैक लिमोजिन कारें खरीदने के बारे में बात करने लगा। पहले कुछ दिन तो उन लोगों ने कारों में खूब मज़ा किया, आस पास सैर सपाटा किया, फिर उनमें पेट्रोल खत्म हो गया। इसके बाद इन लोगों ने पाया कि एक दिन कार चलाने के लिए जितने पैसों के पेट्रोल की ज़रूरत पड़ती है, उतनी तो उनकी पूरे महीने की कमाई है। इसलिए उन्होंने कारों को अहाते में ही छोड़ दिया और अब उनमें मुर्गियां पाली जाती हैं।

बाली वासियों का हास्य बोध भी हमारी तरह ही है और उसमें सैक्स संबंधी लतीफों, स्वयं सिद्ध बातों की भरमार है और वे शब्दों के साथ खिलवाड़ करते हैं। मैंने होटल में एक युवा वेटर के हास्य बोध की परीक्षा ली। "मुर्गे ने सड़क पार क्यों की?" पूछा मैंने।

उसकी प्रतिक्रिया बेहद शानदार थी। "हर कोई इस बात को जानता है।' उसने दुभाषिये से कहा।

"अच्छी बात है, अब ये बताओ कि पहले मुर्गी हुई या अंडा?"

इस सवाल से वह परेशान हो गया। उसने अपना सिर हिलाया, "मुर्गी ..." "अंडा . . ." उसने अपनी पगड़ी पीछे सरकायी, कुछ पलों के लिए सोचा और पूरे विश्वास के साथ घोषणा की, "अंडा।"

"लेकिन अंडा दिया किसने?"

"कछुए ने, क्योंकि कछुआ ही परम सत्ता है और वही सभी अंडे देता है।"

बाली तब स्वर्ग की तरह था। वहां के निवासी चार महीनों तक धान के खेतों में काम करते और अपने बाकी आठ महीने कला और संस्कृति के नाम करते। मनोरंजन पूरे द्वीप में नि:शुल्क था और एक गांव वाले दूसरे गांव में जा कर प्रदर्शन करते। लेकिन अब उस स्वर्ग के दिन लद गये हैं। शिक्षा ने उन्हें अपनी छातियां ढकना सिखा दिया है और अब वे अपने प्रसन्न चित्त रहने वाले देवताओं को पश्चिमी देवताओं के पक्ष में छोड़ रहे हैं।

जापान के लिए निकलने से पहले मेरे जापानी सचिव कोनो ने इच्छा व्यक्त की कि वह पहले जा कर मेरे आगमन की तैयारियां करना चाहेगा। हम सरकार के मेहमान रहने वाले थे। कोबे बंदरगाह पर हमारा स्वागत हमारे जहाज पर चक्कर काटते विमानों ने किया। वे ऊपर से स्वागत के पर्चे गिरा रहे थे। हज़ारों लोगों ने तट पर खुशी से हमारा स्वागत किया। धूंए के बादलों और गंदे धूसर डैक की पृष्ठभूमि में सैकड़ों की संख्या में शोख रंग के किमोनो पहने लड़कियों को देखना किसी स्वर्गतुल्य नज़ारे की तरह था। बेहद खूबसूरत। उस जापानी प्रदर्शन में प्रसिद्ध रहस्यवाद या रुकावट का लेश मात्र भी स्थान नहीं था। यह उसी तरह से उत्तेजना और उत्साह से भरी भीड़ थी जैसी मैंने किसी भी जगह पर देखी थी।

सरकार ने हमारे लिए एक विशेष रेलगाड़ी उपलब्ध करा रखी थी जो हमें टोकियो ले जाने वाली थी। हरेक स्टेशन पर भीड़ और उत्तेजना दोनों ही बढ़ते जाते, प्लेटफार्म खूबसूरत लड़कियों से अटे पड़े रहते और वे लड़कियां हमें उपहारों से लाद देतीं। इसका असर, जिस वक्त वे किमोनो में इंतजार करती खड़ी होतीं, फूलों की प्रदर्शनी की तरह था। टोकियो में तकरीबन चालीस हज़ार की भीड़ हमारे स्वागत के लिए खड़ी हुई थी। भीड़ की धक्का मुक्की में सिडनी गिर गया और उसे लगभग कुचल ही डाला गया था।

पूरब का रहस्य मिथकीय है। मैं हमेशा ही ये मान कर चलता रहा कि पश्चिम वाले उसे बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं। लेकिन जिस पल से हम कोबे बंदरगाह पर उतरे थे, ये रहस्य वहां की फिजां में था और अब टोकियो में ये हमें अपनी गिरफ्त में ले रहा था। होटल की तरफ जाते समय हम शहर के एक शांत इलाके से गुज़रे। अचानक कार धीमी हो गयी और सम्राट के महल के पास रुक गयी। कोनो ने चिंतातुर होते हुए लिमोजिन की खिड़की में से पीछे हमारी तरफ देखा। तब वह मेरी तरफ मुड़ा और एक अजीब सा अनुरोध करने लगा,"क्या मैं कार से बाहर निकलूंगा और महल की तरफ देखते हुए झुकूंगा?"

"क्या ये परम्परा है?" पूछा मैंने।

"हां, उसने यूं ही जवाब दिया,"आपको झुकने की जरूरत नहीं है, बस कार में से उतर भर जाइये, इतनी ही काफी हेगा।"

इस अनुरोध ने मुझे कुछ हद तक परेशानी में डाल दिया क्योंकि हमारे पीछे आ रही दो तीन कारों के अलावा वहां पर कोई भी नहीं था। अगर ये रिवाज का हिस्सा था तो लोगों को पता होता और वहां पर भीड़ जमा हो गयी होती। बेशक छोटी सी ही सही। अलबत्ता, मैं बाहर निकला और सिर झुकाया। जब मैं कार में वापिस आया तो कोनो ने राहत की सांस ली। सिडनी को ये अजीब सा अनुरोध लगा और उसे लगा कि कोनो ने कुछ अजीब सा व्यवहार किया है। जब से हम कोबे में पहुंचे थे, कोनो परेशान लग रहा था। मैंने मामले को रफा दफा कर दिया और कहा कि शायद कोनो कुछ ज्यादा ही मेहनत कर रहा है इसलिए परेशान लग रहा है।

उस रात कुछ नहीं हुआ, लेकिन अगली सुबह सिडनी मेरी बैठक में आया। वह अभी भी उत्तेजित था। "मुझे ये पसंद नहीं है," वह बोला,"मेरे बैगों की तलाशी ली गयी है और मेरे सारे कागजात आगे पीछे कर दिये गये हैं।" मैंने उसे बताया कि भले ही ये सच हो सकता है लेकिन कुछ मायने नहीं रखता। "कुछ न कुछ तो रहस्यमय चल रहा है।" सिडनी ने कहा। लेकिन मैं हँस दिया और उसी पर आरोप लगा दिया कि वह ही कुछ ज्यादा ही शकी होता जा रहा है।

अगली सुबह हमारी देखभाल करने के लिए एक सरकारी एजेंट लगा दिया गया और उसने बताया कि हम कहीं भी जाना चाहें हम उसे कोनो के जरिये बता दें। सिडनी ने फिर इस बात पर ज़ोर दिया कि हम पर निगाह रखी जा रही है और कि कोनो कुछ न कुछ छुपा रहा है। मैं ये स्वीकार करता हूं कि अब कोनो पहले की तुलना में और भी ज्यादा परेशान नज़र आ रहा था।

सिडनी के शक के पीछे कोई न कोई वजह थी। क्योंकि उस दिन एक और अजीब बात हो गयी। कोनो ने बताया कि एक व्यापारी है जिसके पास रेशम के कपड़े पर चित्रित कुछ कामुक नंगी तस्वीरें हैं और वह मुझे ये तस्वीरें दिखाना चाहता है। वह मुझे अपने घर पर बुला कर ये तस्वीरें दिखाना चाहता है। मैंने कोनो को बताया कि उस आदमी से कह दे कि मेरी इनमें कोई दिलचस्पी नहीं है। कोनो परेशान नज़र आया।

"अगर मैं उससे कहूं कि वह तस्वीरें होटल में छोड़ जाये?" कोनो ने सुझाव दिया।

"किसी भी हालत में नहीं," कहा मैंने,"बस उससे यही कहो कि अपना समय बरबाद न करे।"

वह हिचकिचाया, "ये लोग न सुनने के आदी नहीं होते।"

"आप बात ही क्या कर रहे हैं?" पूछा मैंने।

"दरअसल, वे मुझे कई दिनों से धमका रहे हैं, टोकियो में उन लोगों का बहुत आतंक है।"

"क्या बेहूदगी है?" मैंने जवाब दिया,"मैं उनके पीछे पुलिस लगा दूंगा।"

लेकिन कोनो ने सिर हिलाया।

अगली रात, जब मेरा भाई सिडनी, कोनो और मैं एक रेस्तरां के प्राइवेट रूप में डिनर ले रहे थे, छ: युवक भीतर आये। एक आदमी कोनो के साथ सट कर बैठ गया और अपनी बांहें मोड़ लीं। जबकि बाकी पांच आगे पीछे होते रहे और खड़े ही रहे। बैठे हुए आदमी ने कोनो से जापानी में दबी हुई आवाज़ में बात करनी शुरू कर दी और। उसने कुछ कहा जिससे कोनो अचानक पीला पड़ गया।

मैं निहत्था था। इसके बावजूद मैंने अपना हाथ कोट के जेब के भीतर लिया मानो मेरे पास रिवाल्वर हो और मैं चिल्लाया,"इस सबका क्या मतलब है?"

कोनो अपनी प्लेट से सिर उठाये बिना कुछ मिनमिनाया,"इसका कहना है कि आपने तस्वीरें देखने से इन्कार करके इसके पूर्वजों का अपमान किया है।"

मैं अपने पैरों पर उछला, और अपने हाथ को कोट की जेब में रखे हुए ही उस युवक की तरफ तेज निगाहों से देखा,"ये सब क्या हो रहा है?" तब मैंने सिडनी से कहा,"चलो हम यहां से चलें। और आप, कोनो, एक टैक्सी मंगवाओ।"

एक बार गली में आ जाने के बाद हम सुरक्षित महसूस कर रहे थे। हमें राहत मिली।

रहस्य से परदा अगले दिन उस वक्त उठा जब प्रधान मंत्री के पुत्र मिस्टर केन इनाकुई ने हमें सुओमी कुश्ती के मैचों में अपने मेहमानों के रूप में आमंत्रित किया। जब हम बैठे और मैच देख रहे थे, एक परिचर आया और उसके कंधे पर थपथपा कर उसके कान में कुछ फुसफुसाया। केन हमारी तरफ मुड़ा और माफी मांग कर चला गया कि कोई खास बात हो गयी है और उसे जाना पड़ेगा लेकिन वह बाद में जल्दी ही लौट आयेगा। कुश्ती खत्म होने के आस पास वह वापिस आया। उसका चेहरा सफेद फक्क था और वह बुरी तरह से भयभीत लग रहा था। मैंने उससे पूछा कि उसकी तबीयत तो ठीक है। उसने सिर हिलाया और अचानक दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया,"मेरे पिता को अभी अभी कत्ल कर दिया गया है।"

हम उसे अपने कमरे में लेकर गये और उसे थोड़ी ब्रांडी पिलायी। तब उसने बताया कि क्या हुआ था। जल सेना के छ: कैडेटों ने प्रधान मंत्री के निवास के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को मार डाला था और उनके निजी आवास में घुस गये थे। वहां पर प्रधान मंत्री अपनी और पुत्री के साथ थे। बाकी कहानी उसे उसकी मां ने बतायी थी: हमलावर बीस मिनट तक पिता के सिर पर बंदूक ताने खड़े रहे जबकि पिता उनसे बहस करके उन्हें समझाने बुझाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बिना कुछ बोले वे गोली मारने ही वाले थे लेकिन पिता ने उसने अनुरोध किया कि वे उन्हें उनके परिवार के सामने न मारें। इसलिए उन लोगों ने पिता को इस बात की इजाज़त दे दी कि वे अपनी पत्नी और पुत्री से विदा ले लें। शांत वे उठे और हत्यारों को दूसरे कमरे में ले गये। वहां उन्होंने हत्यारों को फिर से समझाने की कोशिश की होगी क्योंकि परिवार जान निकाल देने वाले सस्पेंस में बैठा रहा और तभी उन लोगों ने गोलियां चलने की आवाज़ सुनी और इस तरह से केन के पिता को मार डाला गया।

कत्ल उस समय हुआ जब उनका बेटा कुश्ती मैच देख रहा था। अगर वह हमारे साथ न होता तो उसे भी अपने पिता के साथ मार दिया जाता, कहा था उसने।

मैं उसके साथ उसके घर तक गया और उस कमरे को देखा जहां दो घंटे पहले उसके पिता को मार दिया गया था। कालीन पर अभी भी गीले खून के चहबच्चे थे। वहां पर कैमरामैन और रिपोर्टर बड़ी संख्या में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इतनी शालीनता दिखायी कि कोई तस्वीर नहीं ली। अलबत्ता, उन्होंने मुझ पर ज़ोर डाला कि मैं बयान दूं।

मैं सिर्फ यही कह पाया कि ये परिवार और देश के लिए हिला देने वाली त्रासदी है।

जिस दिन ये हादसा हुआ, मुझे प्रधान मंत्री से एक आधिकारिक स्वागत समारोह में मिलना था और बेशक इस आयोजन को कैंसिल कर दिया गया था।

सिडनी ने घोषित कर दिया कि इस कत्ल की कड़ियां ज़रूर एक बड़े रहस्य से जुड़ी हुई हैं और कि इसमें हम किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं। उसने कहा,"ये एक संयोग से ज्यादा ही है कि छ: कातिलों ने प्रधान मंत्री को मारा और छ: ही आदमी उस रात रेस्तरां में आये थे जब हम खाना खा रहे थे।"

ये तभी हुआ कि बहुत अरसे बाद ह्यूज ब्यास ने बेहद रोचक और सूचनाप्रद पुस्तक गवर्नमेंट बाय एसेसिनेशन लिखी तो सारे रहस्य से पर्दा उठा। इसे अल्फ्रेड ए नॉप्फ ने छापा था। जिसमें जहां तक मेरा सवाल था, पूरे रहस्य पर से पर्दा उठा दिया था। ऐसा लगता है कि ब्लैक ड्रैगन नाम की एक सोसाइटी उस समय सक्रिय थी और उन्होंने ही ये मांग रखी थी कि मैं महल के सामने सिर झुकाऊं। जिन लोगों पर प्रधान मंत्री का हत्या के लिए मुकदमा चलाया गया था, मैं यहां पर उसका लेखा जोखा प्रस्तुत कर रहा हूं।

लेफ्टीनेंट सेशी कोगा, प्लॉट के रिंग लीडर ने बाद में अदालत को बताया था कि षडयंत्र कारियों ने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के भवन को उड़ा कर मार्शल लॉ लाने की योजना बनायी थी। आम आदमी जो आसानी से बिना पहचान में आये वहां से गुज़र सकते थे, बम फैंकते और युवा अधिकारी बाहर इंतज़ार करते रहते और जिस वक्त सदस्य बाहर आते, उन्हें मार डालते। दूसरी योजना, बेहद क्रूर थी अगर पूरी की जाती, जैसा कि अदालत को बताया गया था। ये प्रस्ताव था उस वक्त जापान की यात्रा पर आ रहे चार्ली चैप्लिन की हत्या का। प्रधान मंत्री ने चार्ली को चाय पर बुलाया था और युवा अधिकारियों ने योजना के बारे में सोचा था कि जब पार्टी चल रही हो तो सरकारी निवास पर हमला कर दिया जाये।

न्यायाधीश: चार्ली को मारने का क्या महत्त्व होता?

कोगा: चार्ली अमेरिका में एक लोकप्रिय व्यक्तित्व है और पूंजीवादी वर्ग का चहेता है। हम ये मानकर चल रहे थे कि चार्ली को मारने से अमेरिका के साथ जंग छिड़ जायेगी और इस तरह से हम एक तीर से दो शिकार कर लेते।

न्यायाधीश: लेकिन तब आपने इतनी शानदार योजना को छोड़ क्यों दिया?

कोगा: क्योंकि बाद में अखबारों ने खबर दी थी कि होने वाली स्वागत पार्टी का कुछ पक्का नहीं था।

न्यायाधीश: प्रधान मंत्री के राजकीय निवास पर हमला करने की योजना बनाने के पीछे क्या मंशा थी?

कोगा: इससे प्रीमियर का तख्ता पलट दिया जाता। वे राजनीतिक पार्टी के सर्वे सर्वा भी थे। दूसरे शब्दों में, सरकार के केन्द्र को ही नेस्तनाबूद करना था।

न्यायाधीश: क्या आप प्रीमियर को मारना चाहते थे?

कोगा: हां, मैं मारना चाहता था लेकिन मेरी उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।

उसी कैदी ने बताया था कि उन्होंने चार्ली को मारने की योजना इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि इस बात पर विवाद हो गया था कि क्या इस बात में दम है कि मात्र इस आधार पर एक कामेडियन को मार देना कि उससे अमेरिका से लड़ाई छिड़ जायेगी और मिलिटरी की ताकत बढ़ जायेगी।

मैं ये कल्पना कर सकता हूं कि हत्यारों ने अपनी योजना पूरी करके चार्ली को मार दिया होता और बाद में उन्हें पता चलता कि मैं अमेरिकी नहीं, अंग्रेज़ हूं तो वे कहते, "ओह, सो सॉरी।"

अलबत्ता, जापान में सब कुछ रहस्यमय और अप्रिय ही नहीं था, वहां पर मैंने अपना ज्यादातर वक्त अच्छा ही गुज़ारा। काबुकी थियेटर देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव था और ये मेरी उम्मीदों से कहीं अधिक था। काबुकी मात्र औपचारिक थियेटर ही नहीं है, बल्कि ये आधुनिकता और पुरातनता का मिश्रण है। वहां पर किसी अभिनेता की दक्षता ही प्रमुख होती है और नाटक तो मात्र वह सामग्री है जिसके साथ वह प्रदर्शन करता है। हमारे पश्चिमी मानकों के अनुसार, उनकी तकनीक की तीव्र सीमाएं हैं। जहां पर यथार्थवाद को प्रभावी ढंग से प्राप्त नहीं किया जा सकता, वहां पर उसकी उपेक्षा कर दी जाती है। उदाहरण के लिए, हम पश्चिमी वासी बिना अमूर्त के स्पर्श के तलवारों की लड़ाई दिखा ही नहीं सकते क्योंकि भले ही लड़ाई कितनी भी भीषण न हो, सामने वाले को सतर्कता का थोड़ा बहुत पता चल ही जाता है। दूसरी तरफ जापानी यथार्थवाद का कोई दिखावा नहीं करते। वे एक दूसरे से थोड़ी दूरी बनाये रखते हुए लड़ते हैं और अपनी तलवारों से तेज धार से काट डालने वाली मुद्राएं दिखाते हैं मानो वह सामने वाले का सिर ही काट डालेगा और सामने वाला अपने विरोधी के पैर काट डालने का प्रयास करता लगता है। दोनों ही अपने अपने दायरे में कूदते हैं, नृत्य करते हैं, और एक पांव पर नृत्य करते हैं। ये सब बैले की तरह होता है। ये संघर्ष प्रभाववादी होता है और इसका समापन विजेता और पराभूत में होता है। इस प्रभाववाद में से अभिनेता मृत्यु वाले दृश्य के दौरान यथार्थवाद में घुल मिल जाते हैं।

विडंबना उनके अधिकांश नाटकों की थीम होती है। मैंने उनका एक नाटक देखा जिसकी तुलना रोमियो और जूलिएट से की जा सकती है। इस नाटक में दो युवा प्रेमी होते हैं जिनके विवाह का विरोध उनके माता पिता कर रहे हैं। इसे एक घूमते हुए मंच पर अभिनीत किया गया था। इस तरह के मंच को जापानी लोग तीन सौ बरस से उपयोग में ला रहे हैं। पहला दृश्य वैवाहिक कक्ष के भीतर का था जहां अभी अभी परिणय सूत्र में बंधे प्रेमी युगल को दिखाया जाता है। अंक के दौरान दूत दोनों के माता पिता को प्रेमी युगल के पक्ष में समझाने बुझाने का प्रयास करते हैं और उम्मीद करते हैं कि शायद समझौता हो जाये। लेकिन परम्परा जो है, बहुत गहरी है। माता पिता जिद पर अड़े हुए हैं। इसलिए प्रेमी युगल तय करता है कि वे जापानी पद्धति से आत्महत्या कर लेंगे। दोनों ये फैसला करते हैं कि फूलों की कलियों की कौन सी सेज पर कौन मरेगा। दूल्हा दुल्हन को पहले मारेगा और फिर खुद को तलवार की धार पर गिरा देगा।

जिस वक्त प्रेमी प्रेमिका मृत्यु का वरण करने के लिए फूलों की सेज बिछा रहे होते हैं तो उस वक्त वे जो जुमले बोलते हैं, उनसे दर्शकों के बीच हँसी फैल गयी। मेरे दुभाषिए ने बताया कि इस तरह की पंक्तियों, कि इस तरह की प्यार भरी रात के बाद जीना हतप्रभ करने वाला होगा, के व्यंग्य पर लोग हँसे थे। दस मिनट तक वे इस तरह की व्यंग्यपूर्ण शैली में अपनी अपनी राम कहानी कहते रहते हैं। इसके बाद दुल्हन अपनी फूलों की सेज पर घुटनों के बल झुक जाती है। ये सेज दूल्हे की सेज से ज़रा सी दूरी पर है। वह दुल्हन के गले पर से कपड़ा हटाता है और जैसे ही दूल्हा तलवार निकालता है और धीरे धीरे दुल्हन की तरफ बढ़ता है, मंच घूमना शुरू हो जाता है और उस बिंदु पर आने से पहले कि दूल्हे की तलवार दुल्हन के गले को छूए, दृश्य दर्शकों के सामने से चला जाता है और अब घर के बाहर का दृश्य दिखाया जाता है। चारों तरफ चांदनी फैली हुई है। दर्शक सांस रोके बैठे रहते हैं कि पता नहीं आगे क्या होगा। एक दम सन्नाटा छा जाता है। आखिरकार आवाज़ें नजदीक आनी शुरू हो जाती हैं। ये लोग मृतक प्रेमी युगल के मित्र लोग हैं जो ये खुशखबरी ला रहे हैं कि उनके माता पिताओं ने उन्हें माफ कर दिया है। अब उनमें ये बहस छिड़ गयी है कि प्रेमी युगल को ये खुशखबरी कौन देगा। इसके बाद वे आवाज़ें देना शुरू कर देते हैं और कोई उत्तर न पा कर दरवाजा पीटने लगते हैं।

"उन्हें डिस्टर्ब मत करो," उनमें से एक कहता है,"या तो वे सो रहे हैं या फिर बहुत व्यस्त हैं।" इसलिए वे अपने अपने रास्ते चले जाते हैं। वे अभी भी आवाजें दे रहे हैं और टिक टौक, बक्से जैसी आवाजें कर रहे हैं। ये इस बात का इशारा है कि नाटक समाप्त हो रहा है। और मंच पर धीरे धीरे परदा नीचे आने लगता है।

ये प्रश्न बहस मांगता है कि जापान कब तक पश्चिमी सभ्यता की बुराइयों से बच पायेगा। ज़िंदगी के उन साधारण पलों के लिए भी जापान के लोगों में सराहना उनकी सभ्यता का एक ऐसा अभिन्न अंग है। चांदनी की लकीर को देर तक देखते रहना, चेरी को खिलते देखने के लिए जाने के लिए तीर्थ की तरह यात्रा, चाय के आयोजन का शांत ध्यान, लगता है ये सारी चीजें पश्चिमी हवा के झोंके के साथ न जाने कहां उड़ जायेंगी।

मेरी छुट्टी समाप्त होने वाली थी और हालांकि मैंने इसके कई पहलुओं का भरपूर आनंद उठाया था, कुछ बातें हताश करने वाली भी थीं। मैंने खाने को बरबाद होते देखा, सामान के ढेर ऊपर उठते देखे लेकिन लोगों को उनके आसपास भूख से मंडराते देखा। वहां लाखों लोग बेरोज़गार थे और उनकी सेवाएं बेकार जा रही थीं।

दरअसल मैंने एक आदमी को डिनर के दौरान ये कहते सुन लिया था कि जब तक हमें और सोना नहीं मिल जाता, हालात सुधरने वाले नहीं हैं। जब मैंने इस समस्या की बात की कि मशीनीकरण से हाथ के काम खत्म होते जा रहे हैं तो किसी ने कहा कि समस्या का समाधान अपने आप ही निकल आयेगा क्योंकि अंतत मजदूरी इतनी सस्ती हो जायेगी कि वह मशीनीकरण का मुकाबला करने की हालत में आ जायेगी। ये हताशा निश्चय ही मारक थी।