मेरी आत्मकथा / अध्याय 23 / चार्ली चैप्लिन / सूरज प्रकाश

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अब ये अपरिहार्य हो गया था कि पॉलेट और मैं अलग हो जायें। हम दोनों ही इस बात को दग्रेटडिक्टेटर के शुरू होने से बहुत पहले से जानते थे और अब फिल्म पूरी हो जाने के बाद हमारे सामने ये सवाल मुंह बाये खड़ा था कि कोई फैसला लें। पॉलेट यह संदेश छोड़ कर गयी कि वह पैरामाउंट में एक और फिल्म में काम करने के लिए कैलिफोर्निया वापिस जा रही है। इसलिए मैं कुछ अरसे तक रुका रहा और न्यू यार्क के आस-पास ही भटकता फिरा। फ्रैंक, मेरे बटलर ने फोन पर बताया कि जब वह बेवरली हिल्स वापिस आयी तो वह वहां पर ठहरी नहीं, अलबत्ता उसने अपना सामान समेटा और चली गयी। जब मैं बेवरली हिल्स अपने घर लौटा तो वह तलाक लेने के लिए मैक्सिको जा चुकी थी। घर अब बहुत उदास हो गया था। ज़िंदगी का ये मोड़ वाकई तकलीफ देने वाला था क्योंकि किसी की ज़िंदगी से आठ बरस के संग-साथ को काट कर अलग कर पाना मुश्किल काम था।

हालांकि दग्रेटडिक्टेटर अमेरिकी जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हो रही थी, इस बात में कोई शक नहीं था कि इसने भीतर ही भीतर विरोध के स्वर भी खड़े किये थे। इस तरह का पहला संकेत प्रेस से उस वक्त आया जब मैं बेवरली हिल्स वापिस आया। बीस से भी ज्यादा लोगों की धमकाती भीड़ हमारे कांच से घिरे पोर्च में आ जुटी और आ कर चुपचाप बैठ गयी। मैंने उन्हें शराब पिलानी चाही तो उन्होंने मना कर दिया - प्रेस के सदस्यों द्वारा इस तरह का व्यवहार करना असामान्य बात थी।

'आपके दिमाग में क्या है, चार्ली?' उनमें से एक ने पूछा। वह स्पष्टत: ही उन सबकी तरफ से बात कर रहा था।

'द डिक्टेटर के लिए थोड़ा-बहुत प्रचार!' मैंने मज़ाक में कहा।

मैंने उन्हें राष्ट्रपति के साथ अपने साक्षात्कार के बारे में बताया और इस बात का उल्लेख किया कि अमेरिकी दूतावास को अर्जेन्टीना में इस फिल्म की वज़ह से तकलीफ़ हो रही है। मुझे लगा कि मैंने उन्हें एक मज़ेदार किस्सा सुनाया है, लेकिन फिर भी वे मौन ही बने रहे। थोड़ी देर के अंतराल के बाद मैंने हँसी मज़ाक में कहा,'लगता है ये बात कुछ हजम नहीं हुई, क्या ख्याल है?'

'नहीं, बात तो नहीं जमी,' प्रवक्ता ने कहा। 'आपका जन सम्पर्क बहुत अच्छा नहीं है। आप प्रेस की परवाह न करते हुए चले गये थे और हमें ये बात अच्छी नहीं लगी।'

हालांकि मैं स्थानीय प्रेस के साथ कभी भी इतना लोकप्रिय नहीं था, उसकी बात से मुझे थोड़ा मज़ा आया। सच तो ये था कि मैं प्रेस से बिन मिले ही हॉलीवुड से चला गया था क्योंकि मैं यह मान कर चल रहा था कि जो मेरे बहुत अच्छे दोस्त नहीं हैं, हो सकता है वे लोग `दग्रेटडिक्टेटर को न्यू यार्क में देखे जाने का मौका दिये जाने से पहले ही उसकी चिंदी-चिंदी कर डालें। फिल्म में मेरे 2,000,000 डॉलर दांव पर लगे हुए थे और मैं कोई भी जोखिम लेना गवारा नहीं कर सकता था। मैंने उन्हें बताया कि चूंकि ये नाज़ी विरोधी फिल्म है, इसलिए इसके दुश्मन भी शक्तिशाली हैं,यहां कि वे लोग अमेरिका में भी हैं और फिल्म को एक मौका दिये जाने के लिए मैंने अंतिम क्षणों में ही जनता के लिए इसे प्रस्तुत करने से पहले इसका रिव्यू करने का फैसला लिया था।

लेकिन मेरी कही कोई भी बात उनके अड़ियल रुख को डिगा नहीं सकी। माहौल बदला और प्रेस में कई खुराफाती चीज़ें नज़र आने लगीं। शुरू-शुरू में छोटे-छोटे हमले, मेरे कमीनेपन के किस्से, फिर पॉलेट और मेरे बारे में अफवाहें। लेकिन उल्टे प्रचार के बावजूद दग्रेटडिक्टेटर इंगलैंड और अमेरिका, दोनों ही जगह धूम मचाती रही, कीर्तिमान भंग करती रही।

·

हालांकि अमेरिका अभी तक युद्ध में नहीं उतरा था, रूज़वेल्ट ने हिटलर के साथ शीत युद्ध छेड़ा हुआ था। इस बात ने राष्ट्रपति को अच्छी-खासी परेशानी में डाल रखा था क्योंकि नाज़ियों ने अमेरिकी संस्थाओं और संगठनों में भीतर तक पैठ बनायी हुई थी; चाहे ये संगठन इस बात को जानते थे या नहीं; उन्हें नाज़ियों के हथियारों की तरह इस्तेमाल में लाया जा रहा था।

तभी अचानक और ड्रामाई खबर आयी कि जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया है। इसकी भीषणता ने अमेरिका को सन्न कर दिया। लेकिन अमेरिका ने तत्काल ही युद्ध के लिए कमर कस ली और देखते ही देखते अमेरिकी सैनिकों की कई डिवीज़न समुद्र पर जा चुकी थीं। इसी वक्त में, रूसी सैनिक हिटलरी सेना को मास्को के बाहर रोके हुए थे और मांग कर रहे थे कि जल्दी ही दूसरा फ्रंट खोला जाये। रूज़वेल्ट ने इसकी सिफ़ारिश की थी; और हालांकि नाज़ियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग अब भूमिगत हो चुके थे, उनका फैलता गया ज़हर अभी भी फिज़ां में घुला हुआ था। हमें अपने रूसी मित्रों से अलग करने की हर संभव कोशिश की जा रही थी। उस वक्त इस तरह का ज़हरीला प्रचार-प्रसार हो रहा था: 'पहले दोनों को आपस में लड़ मरने दो, फिर हम मौके के हिसाब से फैसला करेंगेl'

दूसरे फ्रंट को रोकने के लिए हर तरह की तरकीब इस्तेमाल की जा रही थी। आने वाले दिन चिंता से भरे थे। हर दिन हमें रूस में मरने वालों की दिल दहला देने वाली खबरें मिलतीं। दिन हफ्तों में बदलते गये और हफ्ते कई-कई महीनें में बदल गये, लेकिन हालात अभी भी वही थे। नाज़ी मास्को के बाहर डेरा डाले हुए थे।

·

मेरा ख्याल है, इसी वक्त के दौरान मेरी मुसीबतें शुरू हुईं। मुझे सैन फ्रांसिस्को में रूसी युद्ध राहत के लिए अमेरिकी समिति के प्रमुख की ओर से एक टेलीफोन संदेश मिला। उन्होंने पूछा कि क्या मैं रूस में भूतपर्व अमेरिकी राजदूत मिस्टर जोसेफ ई डेविस की जगह ले सकूंगा? वे बोलने वाले थे लेकिन अंतिम क्षणों में उन्हें गले की तकलीफ हो गयी है। हालांकि मेरे पास कुछ ही घंटे का समय था, मैंने न्यौता स्वीकार कर लिया। बैठक अगले दिन होने वाली थी, इसलिए मैंने शाम की गाड़ी पकड़ी जिसने मुझे अगले दिन सुबह आठ बजे सैन फ्रांसिस्को पहुंचा दिया।

समिति ने मेरे लिए `एक सामाजिक यात्रा दौरा' तैयार किया था। लंच फलां जगह लेना है और डिनर दूसरी जगह - इसकी वज़ह से मुझे भाषण के बारे में सोचने का बहुत थोड़ा-सा ही वक्त मिल पाया। अलबत्ता, मैंने डिनर के वक्त दो गिलास शैम्पेन के अपने हलक के नीचे उतारे तो कुछ बात बनी।

उस हॉल की दस हज़ार लोगों की क्षमता थी और वह खचाखच भरा हुआ था। मंच पर विराजमान थे अमेरिकी जल सेना अध्यक्ष और थल सेना अध्यक्ष, तथा सैन फ्रांसिस्को के मेयर रोस्सी। उनके भाषण बंधे-बंधे से तथा टाल मटोल वाली भाषा में थे। मेयर ने कहा,'इस तथ्य को स्वीकार करना ही होगा कि रूसी हमारे मित्र हैं।' वे इस बात के प्रति सतर्क थे कि कहीं वे रूसी एमर्जेंसी का कुछ ज्यादा ही बखान न कर दें, या उनकी बहादुरी की कुछ ज्यादा ही तारीफ़ न कर दें या इस तथ्य का उल्लेख न कर दें कि वे नाज़ियों की लगभग दो सौ डिवीज़नों को रोके रखने के लिए लड़ और मर रहे थे। उस शाम मैंने महसूस किया कि नज़रिया तो यही था कि हमारे मित्र राष्ट्र हमदम तो हैं लेकिन अजीब हैं।

समिति के प्रमुख ने मुझसे आग्रह किया था कि मैं, हो सके तो एक घंटे तक बोलूं। इस बात ने मुझे भयभीत कर दिया। अधिकतम चार मिनट तक बोलने की मेरी सीमा थी। लेकिन इस तरह की कमज़ोर दलीलें सुन कर मेरा गुस्सा भड़क उठा था। मैंने अपने डिनर के निमंत्रण पत्र के पीछे चार विषयों की टिप्पणियां लिखीं। मैं घबराहट और डर की हालत में मंच के पीछे वाले हिस्से में दायें बायें हो रहा था। मैं मित्रों के आगे बढ़ने का इंतज़ार कर रहा था। तभी मैंने सुना कि मेरा परिचय दिया जा रहा था।

मैं काली टाई और डिनर जैकेट पहने हुए था। थोड़ी सी तालियां बजीं जिससे मुझे अपने आपको संभालने के लिए थोड़ा-सा वक्त मिल गया। जब शोर थमा तो मैंने एक ही शब्द कहा,'कॉमेरड्स!' और पूरे हॉल में हँसी वे जैसे फटाखे फूटे। जब हँसी थमी तो मैंने ज़ोर देकर कहा,'और मैं सचमुच कॉमरेड ही कहना चाहता हूं।' नये सिरे से हँसी की फुहारें, फिर तालियां। मैंने अपनी बात जारी रखी,'मैं ये मान कर चल रहा हूं कि आज रात यहां पर बहुत सारे रूसी हैं, और जिस तरह से आपके देशवासी ठीक इस पल में लड़ रहे हैं और मर रहे हैं, आपको कॉमरेड कह कर पुकारना अपने आप में आदर और विशेषाधिकार है।' तालियां बजाते हुए कई लोग खड़े हो गये।

'दोनों को खून बहाने दो' के बारे में सोचते हुए अब मेरे भीतर जोत जल चुकी थी। मैं इस जुमले के बारे में अपनी नाराज़गी दर्शाना चाहता था, लेकिन किसी भीतरी प्रेरणा ने मुझे ऐसा करने से रोका। इसके बजाये मैंने कहा,'मैं कम्यूनिस्ट नहीं हूं, मैं एक इन्सान हूं और मेरा ख्याल है, मैं मानवों की, इन्सानों की प्रतिक्रिया के बारे में जानता हूं। कम्यूनिस्ट किसी और व्यक्ति से ज़रा-सा भी अलग नहीं होते; चाहे वे अपना एक हाथ खो बैठें, या अपनी टांग खो बैठें; उन्हें भी उतनी ही तकलीफ़ भोगनी पड़ती है जितनी हमें भोगनी पड़ती है, वे भी वैसे ही मरते हैं जैसे हम मरते हैं और कम्यूनिस्ट मां भी किसी दूसरी मां की ही तरह होती है। जब उसे यह दु:खद समाचार मिलता है कि उसका बेटा अब कभी लौट कर नहीं आयेगा तो वह भी उसी तरह से रोती है जिस तरह से कोई और मां रोती है। मुझे ये सब जानने के लिए मेरा कम्यूनिस्ट होना ज़रूरी नहीं है। ये सब जानने के लिए मेरा इन्सान होना ही काफी है, और ठीक इन्हीं पलों में रूसी माताएंं बहुत रो रही हैं और उनके बहुत से बेटे मर रहे हैं...।'

मैं चालीस मिनट तक बोलता रहा। मुझे नहीं मालूम था कि अगले शब्द कौन से होंगे। मैंने उन्हें हँसाया और रूज़वेल्ट के बारे में किस्से सुना कर खुश किया। मैंने उन्हें पहले विश्व युद्ध में युद्ध संबंधी अपने भाषण के बारे में बता कर हँसाया - मैं गलती पर नहीं था।

मैंने अपनी बात जारी रखी,'और अब ये युद्ध - 'मैं यहां पर रूसीयुद्धराहत की ओर से आया हूं।' मैं रुका और फिर मैंने अपने शब्द दोहराये,'रूसी युद्ध राहत।' धन से मदद हो सकती है लेकिन उन्हें धन से भी अधिक कुछ चाहिए। मुझे बताया गया है कि आयरलैण्ड के उत्तर में मित्र राष्ट्रों के बीस लाख सैनिक जान की बाजी लगाये बैठे हैं जबकि रूसी अकेले के दम पर नाज़ियों की दोनों डिवीज़नों को रोके हुए हैं।' मौन बहुत अधिक घना हो गया। 'रूसी,' मैंने ज़ोर देकर कहा,'हमारे मित्र हैं। वे केवल अपनी जीवन शैली के लिए ही नहीं लड़ रहे हैं, वे हमारी जीवन शैली के लिए भी लड़ रहे हैं और अगर मैं अमेरीकियों को जानता हूं तो वे अपनी खुद की लड़ाई लड़ना पसन्द करते हैं। स्तालिन चाहते हैं, रूज़वेल्ट ने इसका आह्वान किया है, इसलिए आइए, हम सब इसकी मांग करें - अब हम दूसरा मोर्चा खोलें।'

इसे सुन कर जो पागल कर देने वाला शोर-शराबा हुआ, पूरे सात मिनट तक चलता रहा। यह विचार श्रोताओं के दिल में और दिमाग में था। उन्होंने मुझे आगे बात ही नहीं करने दी। वे लगातार ज़मीन पर पैर पटकते और तालियां बजाते रहे। जिस वक्त वे ज़मीन पर पैर पटक रहे थे,चिल्ला रहे थे, और हवा में अपने हैट उछाल रहे थे, मैं ये सोच-सोच कर हैरान होने लगा कि मैंने कहीं कुछ ज्यादा तो नहीं कह दिया है या कहीं बहुत आगे तो नहीं बढ़ गया हूं। तब मैं अपने आपसे इस बात पर गुस्सा होने लगा कि मैंने उन हज़ारों लोगों के, जो लड़ रहे थे और मर रहे थे, के मुंह पर भयभीत कर देने वाले इतने घिनौने विचार प्रकट ही कैसे कर दिये, और आखिर में जब श्रोता शांत हुए तो मैंने कहा,'आप जिस तरह से इस चीज़ के बारे में सोचते हैं, क्या आप में से हरेक व्यक्ति राष्ट्रपति को इस आशय का एक तार भेजेगा? हम उम्मीद करें कि कल तक राष्ट्रपति तक दस हज़ार तार इस अनुरोध के साथ पहुंच जायेंगे कि दूसरा मोर्चा खोला जाये!'

बैठक के बाद मैंने महसूस किया कि माहौल में तनाव और बेचैनी घुल गये हैं। डुडले फील्ड मालोने, जॉन गारफील्ड और मैं किसी जगह पर खाना खाने के लिए गये। 'यार, आपमें तो गज़ब की हिम्मत है,' गारफील्ड ने मेरे भाषण का ज़िक्र करते हुए कहा। उनकी बात ने मुझे विचलित कर दिया, क्योंकि मैं शहीद नहीं होना चाहता था और न ही किसी राजनैतिक पचड़े में फंसना चाहता था। मैंने वही कहा था जो मैंने ईमानदारी से महसूस किया था और जिसे मैंने सही समझा था। इसके बावजूद, जॉन के जुमले के बाद मैं बाकी पूरी शाम हताशा महसूस करता रहा। लेकिन भाषण के नतीजे के रूप में मैंने जिन डरावने बादलों की उम्मीद की थी, वे सब हवा में उड़ चुके थे और बेवरली हिल्स वापिस आ कर जीवन एक बार उसी ढर्रे पर चलने लगा था।

कुछ ही हफ्तों बाद मुझे एक और अनुरोध मिला कि मैं मेडिसन स्क्वायर में होने वाली विशाल जनसभा को टेलीफोन पर ही संबोधित करूं। चूंकि ये सभा भी उसी मकसद के लिए थी, मैंने उसे स्वीकार कर लिया। और करता भी क्यों नहीं? इस सभा को सर्वाधिक सम्मानित व्यक्तियों के संगठनों द्वारा प्रायोजित किया गया था। मैं चौदह मिनट तक बोलता रहा। यह भाषण औद्योगिक संगठनों की कांग्रेस की परिषद को इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इसे प्रकाशित करना उचित समझा। इस प्रयास में मैं अकेला ही नहीं था, ये बात सीआइओ द्वारा प्रकाशित पुस्तिका से स्पष्ट हो जायेगी:

भाषण

'रूस के लड़ाई के मैदानों पर

लोकतंत्र जियेगा या मरेगा'

विशाल भीड़, जिसे पहले से ही चेतावनी दे दी गयी थी कि वह न तो बीच में टोकेगी और न ही तालियां बजायेगी, प्रत्येक शब्द पर हिस हिस करती रही और तनाव में बैठी रही। इस तरह से वे अमेरिका की महान जनता के महान कलाकार चार्ल्स चैप्लिन को चौदह मिनट तक उस वक्त सुनते रहे जब वे हॉलीवुड से टेलीफोन पर उन्हें संबोधित कर रहे थे।

22 जुलाई 1942 की शाम होने से पहले न्यू यार्क में मेडिसन स्क्वायर पर ट्रेड यूनियनों के सदस्य, नागरिक, भाई बिरादर, बुजुर्ग सदस्य,समुदाय और गिरजा घर संगठनों और अन्यों के सत्रह हज़ार सदस्य जुटे ताकि वे हिटलर और उसकी चांडाल चौकड़ी पर अंतिम विजय के पलों को निकट लाने के लिए दूसरा मोर्चा तत्काल ही खोलने के लिए राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट के समर्थन में अपनी आवाज़ उठा सकें।

इस विशाल प्रदर्शन की प्रायेजक थीं ग्रेटर न्यू यार्क इंडस्ट्रियल यूनियन काउंसिल सीआइओ से जुड़ी 250 यूनियनें। वेंडल एल विल्की, फिलिप मुरे, सिडनी हिलमैन और कई अन्य प्रमुख अमेरिकियों ने इस रैली के समर्थन में अपने उत्साहवर्धक संदेश भेजे।

इस अवसर पर मौसम ने भी अपना समर्थन जतलाया। आसमान साफ रहा। वक्ताओं के मंच पर अमेरिकी राष्ट्र ध्वज के दोनों तरफ मित्र राष्ट्रों के झण्डे लहरा रहे थे और राष्ट्रपति के समर्थन में तथा दूसरा मोर्चा खोलने के लिए नारों की पट्टिकाओं से वह विशाल जन सागर अटा पड़ा था। पार्क के चारों तरफ की सड़कों पर जहां कहीं देखो, लोग नज़र आते थे।

बैठक की शुरुआत लूसी मोनरो ने द' स्टारस्पैंगल्डबैनर गीत गा कर की तथा जेन फ्रोमैन, आरलेन फ्रांसिस और अमेरिकी थियेटर संघ के कई अन्य लोकप्रिय सितारों ने जन समुदाय का मनोरंजन किया। युनाइटेड स्टेट्स सीनेटर जेम्स एम. मीड, और क्लाउड पैपर, मेयर एफ एच ला गॉर्डिया, लेफ्टिनेंट गवर्नर चार्ल्स पोलेटी, प्रतिनिधि वीटो मर्केन्टोनियो, माइकल क्विल तथा जोसेफ कुर्रान, न्यू यार्क सीआइओ काउंसिल के अध्यक्ष आदि मुख्य वक्ता थे।

सीनेटर मीड ने कहा,'हम इस युद्ध को तभी जीत पायेंगे जब हम आज़ादी के संघर्ष के लिए एशिया में, जीते हुए यूरोप में, अफ्रीका में, पूरे दिल से और पूरे उत्साह से बड़ी संख्या में लोगों को भर्ती करेंगे।' और सीनेटर पैपर: 'वह जो हमारी कोशिशों में अड़ंगा लगाता है, जो रोकने के लिए गिड़गिड़ाता है, वह गणतंत्र का दुश्मन है।' और जोसेफ़ कुर्रान: 'हमारे पास मानव शक्ति है। हमारे पास सामग्री है। हम जीतने का एक ही रास्ता जानते हैं - और वह है कि दूसरा मोर्चा खोल दिया जाये!'

यहां पर जो आम जनता की भीड़ जमा थी, जब भी राष्ट्रपति का ज़िक्र होता, दूसरे मोर्चे का, और हमारे बहादुर मित्र राष्ट्रों का, बहादुर लड़ाकों का और सोवियत संघ का, ब्रिटेन और चीन का ज़िक्र होता तो सबके सब एक स्वर में खूब उत्साह बढ़ाते। इसके बाद लाँग डिस्टेंस टेलीफोन के ज़रिये चार्ल्स चैप्लिन का भाषण आया।

अबदूसरेमोर्चेकेलिए राष्ट्रपतिकीरैलीकासमर्थनकरनेकेलिए!

मेडिसन स्क्वायर पार्क, जुलाई 22, 1942

'रूस के लड़ाई के मैदानों में लोकतंत्र जीवित रहेगा या खत्म हो जायेगा। मित्र राष्ट्रों की किस्मत कम्यूनिस्टों के हाथों में है। अगर रूस को हटा दिया जाता है तो एशियाई महाद्वीप - इस ग्लोब में सबसे बड़ा और सबसे समृद्ध महाद्वीप नाज़ियों के अधिकार में चला जायेगा। चूंकि लगभग पूरा का पूरा पूर्वी क्षेत्र जापानियों के हाथों में है, तब दुनिया की कमाबेश सभी महत्त् वपूर्ण युद्ध सामग्री नाज़ियों के हाथ लग जायेगी। तब हमारे पास हिटलर को हराने का कौन-सा मौका रह जायेगा?

परिवहन की दिक्कत, हमारी संचार की लाइनों के हज़ारों मील दूर होने की समस्या, इस्पात, तेल और रबड़ की समस्या - और हिटलर की ये रणनीति कि फूट डालो और जीतो - अगर रूस को हटा दिया जाता है तो हम तो कहीं के नहीं रहेंगे। बुरी हालत हो जायेगी हमारी।

'कुछ लोग कहते हैं कि इससे युद्ध दस या बीस बरस तक खिंच जायेगा। अगर मैं अपने अनुमान की बात करूं तो यह इस बात को आशावादी तरीके से सामने रखना है, ऐसे हालात में और इस तरह के खतरनाक शत्रु के सामने भविष्य बेहद अनिश्चित रहेगा।

हमकिसबातकाइंतज़ारकररहेहैं?

'रूसियों को मदद की बहुत सख्त ज़रूरत है। वे दूसरे मोर्चे के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। मित्र राष्ट्रों के बीच इस बात को लेकर मतभेद है कि क्या इस वक्त एक दूसरा मोर्चा संभव है। हमारे सुनने में ये बात आती है कि मित्र राष्ट्रों के पास इतनी आपूर्ति नहीं है कि वे दूसरे मोर्चे का बोझ उठा सकें। लेकिन फिर सुनायी देता है कि उनके पास पर्याप्त साज़ो-सामान है। हम ये भी सुनते हैं कि वे इस वक्त, संभावित हार को देखते हुए दूसरे मोर्चे का जोखिम नहीं लेना चाहते। कि वे तब तक कोई मौका नहीं लेना चाहते जब तक वे निश्चित या तैयार न हो जायें।

'लेकिन क्या हम तब तक इंतज़ार करना गवारा कर सकते हैं जब तक निश्चित और तैयार न हो जायें। क्या आप सुरक्षित खेलना गवारा कर सकते हैं? युद्ध में कोई भी रणनीति सुरक्षित नहीं हुआ करती। ठीक इसी वक्त जर्मन काकेशस से 35 मील दूर हैं। अगर काकेशस उनके हाथ में चला जाता है तो रूसी तेल का 95 प्रतिशत हाथ से चला जायेगा। जब हज़ारों लोग मर रहे हों और लाखों लोग मरने की कगार पर हों तो हमें ईमानदारी से वह सब कुछ कह ही डालना चाहिये जो हमारे दिमाग में है। लोग-बाग अपने आपसे सवाल पूछ रहे हैं। हम सुनते हैं कि आयरलैण्ड में महान अभियान दल उतर रहे हैं, हमारी कानबाइयों में से पिचानवे प्रतिशत सफलता से यूरोप में पहुंच रही हैं, बीस लाख अंग्ऱेजों के पास हर तरह का साज़ो-सामन है, और वे कूद पड़ने को तैयार हैं। तो ऐसे में जबकि रूस में हालात इतने हताशाजनक हैं, हम किस चीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं?

हमचुनौतीस्वीकारकरसकतेहैं

'नोट करें वाशिंगटन के अधिकारीगण और लंदन के अधिकारीगण, ये प्रश्न असहमतियां पैदा करने के लिए नहीं। हम उनसे ये सवाल इसलिए पूछते हैं ताकि भ्रम को दूर कर सकें और आखिर में होने वाली विजय के लिए विकास और एकता की भावना कर सकें। और जो भी जवाब होगा,हम स्वीकार कर सकते हैं।

'इस समय रूस की जो हालत है, वह दीवार से पीट सटाये लड़ रहा है। ये दीवार है मित्र राष्ट्रों की सबसे मज़बूत प्रतिरक्षा। हमने लीबिया की प्रतिरक्षा की और उसे खो बैठे, हमने क्रेटे की प्रतिरक्षा की और उससे हाथ धो बैठे। हमने प्रशांत के इलाके में फिलिपीन्स की और दूसरे द्वीपों की रक्षा की और वे सब हमसे छिन गये। लेकिन हम रूस को हाथ से जाने देना गवारा नहीं कर सकते। जिस वक्त हमारी दुनिया - हमारा जीवन -हमारी सम्पति हमारे पैरों के पास गिरी पड़ी हो तो हमें मौके का फायदा उठाना ही होगा।

'अगर रूस काकेशस को हार बैठता है तो ये मित्र राष्ट्रों के उद्देश्‍यों के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी। तब आप तुष्टि देने वालों का इंतज़ार करेंगे। वे छिपने की अपनी जगहों से बाहर आयेंगे। वे विजेता हिटलर के साथ शांति स्थापित करना चाहेंगे। वे कहेंगे: `और अधिक अमेरिकी जानें गंवाने में कोई समझदारी नहीं है - हम हिटलर के साथ 'एक अच्छा सौदा कर सकते हैं।`

नाज़ीफंदेसेसावधानरहें

`इस नाज़ी फंदे से सावधान रहें। ये नाज़ी भेड़िये भेड़ों का भेस धारण कर लेंगे। वे हमारे लिए शांति को बहुत अधिक आकर्षक बना देंगे और इससे पहले कि हम उस शांति को जान ही पायें, हम नाज़ी विचारों के चंगुल में फंस चुके होंगे। तब हमें गुलाम बना लिया जायेगा। वे हमसे हमारी आज़ादी छीन लेंगे और हमारे दिमागों पर नियंत्रण कर लेंगे। इस दुनिया पर तब गेस्टापो कर राज होगा। वे हवा में से हम पर शासन करेंगे। हां,यही भविष्य की ताकत है।

'जब सारे आकाशों की ताकत नाज़ी हाथों में होगी तो नाज़ी आदेशों का विरोध करने वाली सारी ताकतों का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जायेगा। मानव प्रगति का नामो-निशान नहीं रहेगा। दुनिया में अल्पसंख्यकों के कोई अधिकार नहीं रहेंगे, कामगारों के कोई अधिकार नहीं रहेंगे। नागरिक अपने लिए किसी अधिकार की मांग नहीं कर सकेंगे। सारी की सारी चीज़ें नेस्तनाबूद कर दी जायेंगी, हम अगर एक बार भी इन तुष्टिदाताओं की बात सुन लें और विजेता हिटलर के साथ शांति का समझौता कर लें तो उन्हीं का आतताई आदेश पूरी धरती को नियंत्रित करेगा।

हमएकमौकालेसकतेहैं

'उन तुष्टिदाताओं पर निगाह रखो जो आपदा के बाद हमेशा सिर उठाते हैं।

'अगर हम अपनी निगाहें खुली रखते हैं और हम अपने मनोबल को ऊंचा बनाये रखते हैं तो हमें बिल्कुल भी डरने की ज़रूरत नहीं है। याद रखें, मनोबल था इसीलिए इंगलैंड बच पाया, और अगर हम अपना मनोबल बनाये रखेंगे, तो आश्वस्त रहें, जीत हमारी ही है।

'हिटलर ने कई मौकों का फायदा उठाया है। उसका सबसे बड़ा मौका रूसी मुहिम है। अगर वह इन गर्मियों तक काकेशस की घेराबंदी तोड़ने में सफल नहीं हो जाता तो ईश्वर ही मालिक है। अगर उसे मास्को के आस पास सर्दियों का एक और मौसम गुज़ारना पड़ता है तो ईश्वर ही मालिक है। उसके पास जो अवसर है, वह बहुत दुर्लभ है लेकिन फिर भी उसने मौका ले लिया है। और अगर हिटलर मौकों का फायदा उठा सकता है तो हम क्यों नहीं ले सकते मौका? हम एक्शन चाहते हैं। हमें बर्लिन पर गिराने के लिए और बम दो। हमें वे उन्नत ग्लेन मार्टिन सी प्लेन दो ताकि हम अपनी परिवहन की समस्या से निपट सकें। सबसे बड़ी बात, अब हमें दूसरा मोर्चा चाहिए ही चाहिए।

वसन्तऋतुतकविजय

'आइए, हम लक्ष्य बना कर चलें कि वसन्त ऋतु तक विजय पा लेंगे। आप भले ही फैक्टरियों में हों, आप भले ही खेतों में हों, आप वर्दी में हों, दुनिया के सभी नागरिको, आइए, हम इस लक्ष्य को पाने के लिए मिल कर काम करें और इसके लिए संघर्ष करें। आप, वाशिंगटन के अधिकारीगण, और लंदन के अधिकारीगण, आइए, हम अपना लक्ष्य निश्चित कर लें - हमें वसंत ऋतु तक विजय हासिल करनी है।

'अगर हम इसी विचार को लेकर चलें, इसी विचार के साथ काम करें, इसी विचार के साथ जीयें, इससे एक ऐसी भावना पैदा होगी जिससे हमारी ऊर्जा बढ़ेगी और हम अपनी मुहिम में तेज़ी ला पायेंगे।

'आइए, इस असंभव को संभव कर दिखाने के लिए जुट जायें। इस बात को याद रखें कि पूरा इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि सबसे बड़ी उपलब्धियां वे ही जीतें रही हैं जिन्हें असंभव माना जा रहा था।'

फिलहाल मेरे दिन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे थे, लेकिन ये तूफान से पहले की शांति थी। जो परिस्थितियां इस अजीबो-गरीब किस्से तक ले गयीं वे बेहद मासूमियत से शुरू हुई थीं। रविवार का दिन था और टेनिस के एक खेल के बाद डूरैंट ने मुझे बताया कि उसने जॉन बैरी नाम की एक नवयुवती से मिलने की बात तय कर रखी है। वह पोला गेट्टी की मित्र है; वह उसके किसी मित्र ए.सी. ब्लूमेंटल के परिचय पत्र के साथ हाल ही में मैक्सिको शहर से आयी है। टिम ने बताया कि वह उस लड़की और उसकी एक सहेली के साथ खाना खाने जा रहा है। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं भी साथ चलना चाहूंगा क्योंकि मैरी ने मुझसे मिलने की इच्छा व्यक्त की है, हम पेरिनो के रेस्तरां में मिले। जिस सहेली का उसने ज़िक्र किया था वह खुशमिजाज और देखने में भली लग रही थी। हम चारों ने वह सुकून भरी शाम एक साथ गुज़ारी और मैंने सोचा भी नहीं था कि उस लड़की से दोबारा मुलाकात होगी।

लेकिन अगले ही रविवार टिम उसे अपने साथ लेकर आया। ये टेनिस के लिए ओपन हाउस था। रविवारों की शाम को हमेशा यही होता था कि मैं अपने सारे स्टाफ को छुट्टी दे देता था और बाहर खाना खाया करता था इसलिए मैंने टिम और मिस बैरी को रोमानोफ रेस्तरां में खाने के लिए आमंत्रित किया और डिनर के बाद मैंने उन्हें अपनी गाड़ी में उनके घर पर छोड़ दिया। अलबत्ता, अगली सुबह मिस बैरी का फोन आया। वह जानना चाह रही थी कि क्या मैं उसे लंच के लिए ले जाऊंगा। मैंने उसे बताया कि मैं नब्बे मील दूर सांता बारबारा में एक नीलामी में हिस्सा लेने जा रहा हूं और अगर उसे करने के लिए और कोई काम नहीं है तो वह मेरे साथ चली चले। हम वहां पर लंच करेंगे और उसके बाद नीलामी में चले जायेंगे। एक दो चीज़ें खरीदने के बाद मैंने उसे गाड़ी में वापिस लॉस एंजेल्स छोड़ दिया।

मिस बैरी बाइस बरस की भरपूर सौन्दर्य वाली युवती थी। उसकी कद काठी अच्छी थी। ईश्वर उसके वक्षस्थल को लेकर उस पर कुछ अधिक ही मेहरबान हुआ था। उसके उरोज बेहद आकर्षक और विशाल थे और जब वह गर्मियों वाली काफी नीचे वाले गले की काट वाली पोशाक पहनती तो सामने वाले की नीयत डांवाडोल कर देती थी। मैं जब उसे वापिस उसके घर छोड़ रहा था तो उसने मेरी कामुक उत्सुकता को जगा दिया। तभी उसने बताया कि पॉल गेट्टी के साथ उसका झगड़ा हो गया है और वह अगली ही रात न्यू यार्क वापिस जा रही है। लेकिन अगर मैं चाहूं तो वह मेरे लिए सब कुछ छोड़-छाड़ कर रुक सकती है। मुझे थोड़ा-सा शक हुआ क्योंकि ये प्रस्ताव इतना अचानक, इतना अजीब लग रहा था, मैंने उसे साफ-साफ बता दिया कि वह मेरे भरोसे न रहे और ये कहते हुए मैंने उसे उसके अपार्टमेंट के बाहर छोड़ दिया और उसे विदा किया।

मेरी हैरानी की सीमा न रही जब उसने दो एक दिन बाद फोन किया और बताया कि वह कैसे भी करके रुक रही है और क्या मैं उससे उसी रात मिल सकूंगा। जहां चाह वहां राह! और इस तरह से वह अपने लक्ष्य को पाने में सफल रही और मैं उससे अक्सर मिलने लगा। इसके बाद जो दिन आये, हालांकि नाखुश करने वाले नहीं थे लेकिन उनमें कुछ न कुछ ऐसा था जो अजीब था और सब कुछ सामान्य नहीं था। कई बार बिना फोन किये वह देर रात को अचानक ही मेरे घर आ जाती। ये बात कुछ हद तक विचलित करने वाली थी। कभी ऐसा भी होता कि पूरे हफ्ते तक मुझे उसकी कोई खबर न मिलती। हालांकि मैं इस बात को स्वीकार नहीं करूंगा लेकिन मैंने बेचैनी महसूस करना शुरू कर दिया। हां, ये ज़रूर होता कि जब वह दोबारा अपना चेहरा दिखाती तो बेहद खुश नज़र आती और फिर मेरे शक और डर हवा में उड़ जाते।

एक दिन मैंने सर कैड्रिक हार्डविक और सिन्क्लेयर लेविस के साथ लंच लिया। लंच के दौरान उन्होंने शैडोएण्डसब्सटेंस नाम के नाटक का ज़िक्र किया। इसमें खुद कैड्रिक ने भूमिका निभायी थी। लेविस ने ब्रिजेट की भूमिका की तुलना आधुनिक जॉन ऑफ आर्क से की। उसका सवाल था कि इस नाटक पर एक बेहतरीन फिल्म बनायी जा सकती है। इसमें मेरी दिलचस्पी जागी। मैंने कैड्रिक से कहा कि मैं नाटक पढ़ना चाहूंगा। उन्होंने मेरे पास प्रति भिजवा दी।

एक या दो रात बाद की बात है। जॉन बैरी डिनर के लिए आयी। मैंने उससे नाटक का ज़िक्र किया तो बैरी ने बताया कि उसने ये नाटक देख रखा है और वह लड़की की भूमिका करना चाहेगी। मैंने उसे गम्भीरता से नहीं लिया। लेकिन उस शाम उसने मुझे लड़की वाली भूमिका पढ़ कर सुनायी और मैं ये देखकर हैरान रह गया कि उसने बेहतरीन ढंग से पाठ किया था। वह आइरिश उच्चारण बनाये रख पायी थी। मैं इतना अधिक उत्साहित हो गया कि मैंने यह देखने के लिए उसका मौन परीक्षण भी किया कि वह कैमरे के सामने कैसी लगेगी। मैं सन्तुष्ट हुआ।

अब उसकी अजीबो-गरीब हरकतों के बारे में मेरे सारे शक दूर हो गये। मुझे तो यहां तक लगा कि मैंने एक खोज कर ली है। मैंने उसे मैक्स रेनहार्ड के अभिनय स्कूल में भेजा क्योंकि उसे तकनीकी प्रशिक्षण की ज़रूरत थी और अब चूंकि वह वहां पर व्यस्त थी, हमारी कम ही मुलाकातें हो पातीं। मैंने अभी तक नाटक के अधिकार नहीं खरीदे थे, इसलिए मैं कैड्रिक से मिला और उसकी मदद से मैं 25,000 डॉलर में फिल्म के लिए अधिकार हासिल कर पाया। तब मैंने बैरी को 250 डॉलर प्रति सप्ताह के करार पर रख लिया।

ऐसे रहस्यवादी लोग होते हैं जो ये मान कर चलते हैं कि हमारा अस्तित्व आधा स्वप्न होता है और कि ये जानना मुश्किल होता है कि वह सपना कहां खत्म होता है और कहां वास्तविकता शुरू होती है। मेरे साथ यही हो रहा था। महीनों तक मैं पटकथा लिखने में उलझा रहा। तभी अजीबो-गरीब और परेशान करने वाली बातें होने लगीं। बैरी अपनी कैडिलैक चलाते हुए आधी रात को आती। वह बहुत ज्यादा नशे में होती। तब मुझे अपने ड्राइवर को जगाना पड़ता ताकि वह उसे घर छोड़ आये। एक बार तो उसने अपनी कार रास्ते में भिड़ा दी और उसे कार को वहीं छोड़ घर आना पड़ा। अब चूंकि उसका नाम चैप्लिन स्टूडियो से जुड़ा हुआ था, मुझे इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं पुलिस उसे शराब पीकर गाड़ी चलाने के जुर्म में पकड़ कर ले गयी तो इससे अच्छा-खासा हंगामा खड़ा हो जायेगा। आखिर हालत ये हो गयी कि वह इतनी झगड़ालू हो गयी कि जब वह आधी रात को फोन करती तो मैं न तो फोन उठाता और न ही उसके लिए दरवाजा खोलता। उसने तब खिड़कियों के कांच तोड़ना शुरू कर दिया। रातों-रात मेरा अस्तित्व एक दु:स्वप्न में बदल गया।

तब मेरी जानकारी में ये बात आयी कि वह रेनहार्ड स्कूल से कई हफ्तों से गैर हाज़िर है। जब मैंने उससे आमने-सामने इस बारे में पूछा तो उसने अचानक घोषणा कर दी कि वह अभिनेत्री नहीं बनना चाहती और अगर मैं उसके लिए तथा उसकी मां के लिए न्यू यार्क वापिस जाने पर किराया और 5000 डॉलर दे दूं तो वह खुशी-खुशी करार फाड़ डालेगी। ऐसी हालत में मैंने बिना किसी हूल हिज्जत के उनकी बातें मान लीं, उनका किराया दिया, 5000 डॉलर दिये और मुझे इस बात की खुशी हुई कि मैं उससे जान छुड़वा पाया।

हालांकि, बैरी मैडम का मामला टांय टांय फिस्स हो गया था, मुझे शैडोएण्डसब्सटेंस के अधिकार खरीदने का कोई अफसोस नहीं था। मैं पटकथा लगभग पूरी कर चुका था और मेरे ख्याल से ये बहुत अच्छी बन पड़ी थी।

सैन फ्रांसिस्को की बैठक को इस बीच महीनों बीत चुके थे, और रूसी अभी भी दूसरे मोर्चे की मांग कर रहे थे। अब न्यू यार्क से एक और अनुरोध आया। मुझसे अनुरोध किया गया कि मैं कार्नेजी हॉल में एक सभा को संबोधित करूं। मैं अपने आप से बहस करता रहा कि जाऊं या न जाऊं और इस नतीजे पर पहुंचा कि मैंने बिस्मिल्लाह कर दिया था, उतना ही काफी है। लेकिन एक दिन बाद जब जैक वार्नर मेरे टेनिस कोर्ट में खेल रहे थे, तो मैंने उनसे इसके बारे में बताया। उन्होंने रहस्यमय तरीके से सिर हिलाया।

'मत जाओ,' वे बोले।

'लेकिन क्यों नहीं?' पूछा मैंने।

उन्होंने कारण तो नहीं बताया लेकिन यही कहते रहे, 'मैं आपको भीतर की बात बता रहा हूं, मत जाइए।'

इसका उलटा असर हुआ। मेरे लिए ये एक चुनौती हो गया। ये वह वक्त था जब दूसरे मोर्चे के लिए पूरे अमेरिका में सहानुभूति की चिंगारी लगाने के लिए बहुत ही कम शब्दों की ज़रूरत थी। रूस हाल ही में स्तालिनग्राद की लड़ाई जीत चुका था। इसलिए मैं गया, टिम डुरैंट को अपने साथ लेता गया।

कार्नेजी हॉल बैठक में पर्ल बक, रोकवैल कैंट, ओर्सोन वैलेस और कई ख्यातिनाम विभूतियां मौजूद थीं। ओर्सोन वैलेस को इस मौके पर बोलना था, लेकिन जब विरोधी पक्ष की आवाज़ बुलंद होने लगी, उन्होंने नपे तुले शब्दों में ही अपनी बात कहने में अपनी बेहतरी समझी। ऐसा मेरा ख्याल है। वे मुझसे पहले बोले और इस बात का उल्लेख किया कि उन्हें इस बात की कोई तुक नज़र नहीं आती कि वे क्यों न बोलें क्योंकि ये आयोजन रूसी युद्ध राहत के लिए है और रूसी हमारे मित्र हैं। उनका भाषण बिना नमक के भोजन की तरह बेस्वाद था। इससे मेरा फैसला और भी पक्का हो गया कि मुझे अपने मन की बात कहनी ही चाहिए। मैंने अपने शुरुआती शब्दों में एक स्तम्भ लेखक का उल्लेख किया जिसने मुझ पर आरोप लगाया था कि मैं चाहता हूं कि यह युद्ध चलता रहे और मैंने कहा, 'जिस तरह की मुट्ठियां उस स्तम्भकार ने तानी हैं, मेरा तो यही कहना है कि वही ईष्यार्लु है और खुद ही लड़ाई का चलते रहना चाहता है। मुसीबत ये है कि हम रणनीति पर असहमत हो जाते हैं - वह खुद इस वक्त दूसरे मोर्चे पर भरोसा नहीं करता। मैं खुद करता हूं।'

'ये बैठक चार्ली और दर्शकों के बीच एक प्यार भरी दावत थी।' डेलीवर्कर ने लिखा। लेकिन मेरी भावनाएं मिली-जुली थीं; हालांकि मैं सन्तुष्ट था लेकिन डरा हुआ था।

कार्नेजी हॉल से निकलने के बाद टिम और मैंने कांसटेंस कौलियर के साथ खाना खाया। वे भी बैठक में मौजूद थीं। मेरी बात सुन कर वे बहुत अभिभूत थीं। कांसटेंस कुछ भी हो सकती थीं, वामपंथी नहीं थीं। जब हम वाल्डोर्फ आस्टोरिया पहुंचे तो हमें जॉन बैरी की तरफ से कई टेलीफोन संदेश मिले। मेरी बायीं आंख फड़कने लगी। मैंने सारे संदेश तुरंत फाड़ डाले लेकिन फोन फिर बजा। मैं टेलीफोन ऑपरेटर से कहना चाहता था कि वह उसकी तरफ से मुझे कोई कॉल न लगाये लेकिन टिम ने कहा, 'बेहतर होगा आप ऐसा न करें। या तो आप फोन पर बात करें या वह खुद ही यहां पहुंच जायेगी और हंगामा खड़ा करेगी।'

अगली बार जब फोन बजा तो मैंने बात की। वह काफी सामान्य और खुश लग रही थी। वह सिर्फ़ आ कर मिलना और हैलो कहना चाहती थी। मैंने सहमति दे दी और टिम से कहा कि वे मुझे बैरी के साथ अकेला न छोड़ें। उस शाम बैरी ने मुझे बताया कि न्यू यार्क आने के बाद में वह पियरे होटल में रह रही है। ये होटल पॉल गेट्टी का है। मैंने झूठ बोला कि हम सिर्फ़ एक या दो दिन के लिए ही रुक रहे हैं और मैं कोशिश करूंगा और एकाध लंच उसके साथ करने की गुंजाइश निकालूंगा। वह आधे घंटे तक रुकी और पूछा कि क्या मैं उसे पीयरे तक छोड़ने चलूंगा? जब उसने ज़िद की कि मैं उसे कम से कम लिफ्ट तक तो छोड़ दूं तो मुझे शक होने लगा। अलबत्ता, मैंने उसे प्रवेश द्वार पर छोड़ा और और ये पहली और आखिरी बार था जब मैंने उसे न्यू यार्क में देखा था।

दूसरे मोर्चे के लिए मेरे भाषणों का ये नतीजा हुआ कि न्यू यार्क में मेरी सामाजिक ज़िंदगी में उतार आने लगा। अब मुझे सप्ताहांत बिताने के लिए महलनुमा देहाती घरों में नहीं बुलाया जाता था। कार्नेजी हाल बैठक के बाद क्लिफटन फैडीमैन, लेखक और निबंधकार जो कि कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के लिए काम कर रहे थे, होटल में मुझसे मिलने आये और पूछा कि क्या मैं अन्तर्राष्ट्रीय प्रसारण करना चाहूंगा। वे मुझे सात मिनट देंगे और मैं अपनी मर्जी से कुछ भी कह सकता हूं। मुझे ये प्रस्ताव स्वीकार करने का लालच हो रहा था लेकिन तभी उन्होंने ज़िक्र किया कि ये प्रसारण केट स्मिथ कार्यक्रम में होगा। तब मैंने इस आधार पर मना कर दिया कि युद्ध के प्रयासों के बारे में मेरी प्रतिबद्धताएं जेलो के लिए विज्ञापनबाजी बन कर रह जायेंगी। मैं फैडीमैन का दिल नहीं दुखाना चाहता था। वे बहुत प्यारे, ईश्वरीय दिल वाले और सुसंस्कृत व्यक्ति थे और जब वे जैलो का ज़िक्र कर रहे थे, उनका चेहरा लाल हो गया था। मुझे तत्काल अफसोस हुआ। काश, मैं अपने शब्द वापिस ले सकता।

उसके बाद, मेरे पास हर तरह के ढेरों खत आये - एक पत्र विख्यात अमेरीकी प्रथम नागरिक - गेराल्ड एल के स्मिथ की तरफ से था जो इस विषय पर मुझसे बहस करना चाहते थे। अन्य प्रस्ताव भाषणों के थे, दूसरे मोर्चे के पक्ष में बोलने के थे।

अब मुझे लगने लगा कि मैं राजनैतिक भंवर में फंस गया हूं। मैंने अपने लक्ष्यों के बारे में ही सवाल करने शुरू कर दिये। मेरे भीतर का अभिनेता मुझे कितना प्रेरित करता था और सामने वाली जनता की प्रतिक्रिया कितनी प्रेरित करती थी? अगर मैंने नाज़ी विरोधी फिल्म न बनायी होती तो क्या मैं इस शेखचिल्लीपने के रोमांचकारी हंगामे में उतरा होता? क्या ये मेरी सवाक फिल्मों के खिलाफ मेरी चिढ़ और प्रतिक्रिया का परम बिन्दु था? मेरा ख्याल है, ये सभी बातें कहीं न कहीं जुड़ी हुई थीं, लेकिन सबसे खास बात ये थी कि ये नाज़ी व्यवस्था के लिए मेरी नफ़रत और अवमानना थी।


§ जर्मनों द्वारा 1914 में विकसित चलने पिरने वाली होवित्जर तोपें। इनका नामकरण गुस्ताव क्रुप की पत्नी के नाम पर किया गया था। 43 टन की ये तोपें 2200 पौंड के गोले पेंक सकती थीं। अऩु

§ 1939-45 युद्ध से पहले प्रांस जर्मन सीमा पर प्रांस द्वारा घेरी गयी सीमा रेखा

± मई 1940 में प्रांस के बंदरगाहों से हारी हुई ब्रिटिश सेनाओं को समुद्री रास्ते से निकालने के दृश्य