यश चोपड़ा - मसरूफ जमाना और पल दो पल का शायर... / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 22 अक्तूबर 2012
इस वर्ष कथा फिल्मों की शताब्दी मनाई जा रही है और पचास वर्ष तक फिल्में बनाने वाले यश चोपड़ा का अस्सी वर्ष की अवस्था में देहांत हो गया। उनकी निर्देशित अंतिम फिल्म 'जब तक है जान' 13 नवंबर को प्रदर्शित होने जा रही है। इस तरह यह उनका स्वान सांग है। किंवदंती है कि स्वान का अंतिम गीत उसका मधुरतम गीत होता है। यश चोपड़ा के बड़े भाई बलदेवराज चोपड़ा ने पत्रकार की हैसियत से कॅरिअर शुरू किया था और फिल्मकार बन गए। उन्होंने ही अपने छोटे भाई को निर्देशन का अवसर दिया।
बलदेवराज चोपड़ा सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्में बनाते थे गोयाकि फिल्मों में जाने के बाद भी पत्रकारिता का नजरिया कायम रखा और उनका यह प्रभाव यश चोपड़ा पर भी धूल का फूल फिल्म से इत्तफाक तक रहा, परंतु उनका मूल स्वभाव अपने भाई से अलग होकर स्वतंत्र निर्माता बनने के बाद राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर और राखी अभिनीत दाग में सामने आया। उन्हें प्रेम कहानियों को फिल्माना पसंद था, परंतु स्थापित भाई से अलगाव के समय पूंजी निवेशक गुलशन राय से अनुबंध के तहत उन्होंने राय के लिए जोशीला, दीवार और त्रिशूल निर्देशित की।
यश चोपड़ा की एक विशेषता यह रही कि उन्हें प्राय: प्रतिभाशाली व्यक्ति उसकी सुबह में ही दिख जाता था और यश चोपड़ा उसके साथ अनेक फिल्में रचते थे। उन्होंने अमिताभ बच्चन को उनकी अलसभोर में पहचाना, शाहरुख खान को भी जल्द ही परख लिया। इत्तफाक देखिए कि उनकी अंतिम फिल्म के नायक भी शाहरुख हैं गोयाकि जब तक जान है साथ निभाया है। अमिताभ बच्चन भी अपने बुरे वक्त में उनके पास पहुंचे और मोहब्बतें से बतौर सशक्त चरित्र अभिनेता का रास्ता चुना।
यश चोपड़ा शराब नहीं पीते थे, सिगरेट को हाथ नहीं लगाया। उन्होंने जवानी में ही फिल्म स्टूडियो में कदम रखा। सिनेमा ही उनका एकमात्र शौक और प्यार रहा। यह मोहब्बत भी उन्होंने आखरी दम तक निभाई। उन्होंने पुत्र आदित्य और उदय को भी बचपन में सिनेमा घुट्टी के रूप में पिलाई। उनके सिनेमा केंद्रित स्वभाव के कारण ही आज उनके पुत्रों ने यशराज स्टूडियो और निर्माण संस्था को कॉर्पोरेट के रूप में खड़ा कर दिया। इसी संस्थान ने अनेक नए निर्देशकों और कलाकारों को अवसर दिए। इस तरह यशराज फिल्म स्कूल ही यश जी का असली स्मारक है, जो उन्होंने स्वयं अपने जीवनकाल में अपने हाथों से रचा है। हर व्यक्ति के लिए मृत्यु के बाद एक संस्था के रूप में जीने का काम करके मनुष्य मृत्यु को हरा देता है और यश चोपड़ा ने यही किया।
उन्होंने भी एक सिलसिला के साथ एक बुरा दौर झेला जब उनकी फासले, विजय, नाखुदा और मशाल असफल रही। उम्र के उस दौर में अर्थात पचपन की आयु में उन्होंने समझ लिए कि उन्हें बाजार की मांग और उसके फैशन के अनुरूप भेडिय़ा धसान में नहीं उलझना चाहिए वरन अपने मिजाज की फिल्में रचना चाहिए। क्योंकि रचनाधर्मिता में स्वयं से ईमानदारी ही एकमात्र शर्त है। अत: उन्होंने ऋषि कपूर और श्रीदेवी के साथ चांदनी से शानदार वापसी की।
उन्होंने अत्यंत साहस के साथ लम्हे नामक फिल्म बनाई जो उस व्यक्ति की प्रेमकथा है जो प्यार में हारने के बाद प्रेमिका की बेटी का पूरा ध्यान रखता है और वह अपनी मां की हमशक्ल उससे प्यार कर बैठती है। यह फिल्म यश जी ने पूरी लगन से रची, हर फ्रेम एक पेंटिंग की तरह है। परंतु विषय की नवीनता ग्रहण नहीं हुई और फिल्म असफल रही। लेकिन कुछ दर्शकों ने इसे सराहा। याद आता है कि लम्हे में सफलता नहीं मिलने पर भी यश चोपड़ा ने एक पूरे पेज का विज्ञापन दिया- मैं अपनी बड़ी फिल्म की छोटी सफलता पर भी गर्व करता हूं और इसे पसंद करने वाले दर्शकों का शुक्रिया अदा करता हूं। उनके इस विज्ञापन से जाहिर है कि वह अपनी असफलता को भी स्वीकार करते थे।
क्या उन्हें मृत्यु का पूर्वानुमान हो गया था। कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने ऋषि कपूर व नीतू को फोन किया और इच्छा जाहिर की कि उनकी इस आखरी फिल्म में केवल चंद दृश्यों के लिए वे लंदन आएं। और कपूर दंपत्ति लंदन गए और अत्यंत संक्षिप्त भूमिकाएं अदा की। यश चोपड़ा की कभी-कभी में अमिताभ बच्चन, राखी गुलजार और वहीदा के साथ ऋषि कपूर व नीतू ने भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं की थीं। उन्हें ऋषि-नीतू की याद क्यों आई? उनके स्वतंत्र निर्माण की दूसरी फिल्म थी कभी-कभी। ज्ञातव्य है कि उस समय अमिताभ बच्च की छवि आक्रोश की थी परंतु यश जी ने साहस किया और प्रेमकथा बनाई।
इसी फिल्म में साहिर साहब की नजम का इस्तेमाल यश जी ने किया था- मैं पल दो पल का शायर हूं, पल दो पल मेरी कहानी है, पल दो पल मेरी जवानी है, कल और आएंगे खिलती कलियों के नगमे चुनने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले और मुझसे बेहतर कहने वाले। कल कोई मुझे क्यों याद करे, मसरूफ जमाना क्यों अपने लिए वक्त बर्बाद करे।
यश चोपड़ा मशरूफ जमाना तो हमेशा आपसे प्रेम कहानियां सुनना चाहता रहा है, आप ही अब खामोश हो गए परंतु आपकी संस्था बोलती रहेगी और जमाना सुनता रहेगा।