ये सुबह बहुत भारी है / वर्षा मिर्ज़ा

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये सुबह बहुत भारी है।कल भी भारी थी जब बड़े देश ने छोटे पर हमला कर दिया था।आदरणीय जयप्रकाश चौकसे जी का कॉलम परदे के पीछे आज आखिरी है। ऐसी घोषणा दैनिक भास्कर ने आज पहले पन्ने पर की है। वे छब्बीस सालों से लगातार इसे लिख रहे थे।यह पाठकों के लिए बरास्ता सिनेमा मानवता और संवेदना के ऐसे द्वार खोलता था कि वह हतप्रभ रह जाता था। जीवन और दर्शन का अनूठा दस्तावेज प्रतिदिन । उन्हें पढ़ना बेहतर इंसान होते जाने की तरफ लगातार बढ़ना था।आज यह सिलसिला रुक गया है। अखबार में यह खबर पढ़ते ही आंसू जब्त किए और कुछ समय चुप बैठी रही ।फोन उठाया चौकसे जी को कॉल किया। सर ये क्या किया आपने? आपके ये खत अब हम पाठकों को नहीं मिलेंगे । वे बोले अब हाथ पांव नहीं चल रहे ।मैने कहा आप लिखिए ।आप बोलते जाइएगा मैं लिखती जाऊंगी।यह तो उषा(उनकी पत्नी) भी कर देगी।वे खांस रहे थे। मेरा जब्त जा चुका था आवाज रूंध गई आंसू बहने लगे।

ये दर्द का दौर है । उन्होंने आज लिखा है। प्रिय पाठको, यह विदा है लेकिन अलविदा नहीं है।कभी विचार की बिजली कौंधी तो फिर रूबरू हो सकता हूं लेकिन संभावनाएं शून्य हैं।

नहीं सर संभावनाएं शून्य नहीं सौ हैं। हमें इंतजार रहेगा क्योंकि ऐसा स्तंभ न कभी हुआ और न होगा।आप लिखें हमे पढ़ना है🙏अगर हमारी उम्र है तो वह आपकी हो।