योग के सैद्धान्तिक एवं क्रियात्मक पक्ष / डॉ. स्मिता राय / कविता भट्ट

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शारीरिक, बौद्धिक एवं आत्मिक चेतना का विज्ञान: योग

योग के सैद्धान्तिक एवं क्रियात्मक पक्ष : डॉ. कविता भट्ट ,संस्करण: 2016,, पेपर बैक, पृष्ठ: 296; मूल्य: रुपये 299/- आईएसबीएन: 9789350317679,काशक: वर्चुअस पब्लिकेशन्स, नोएडा

तीव्र गति युक्त आधुनिक भौतिकवादी युग में अनेक विषम परिस्थितियों के कारण मानव का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है, जिससे गति अवरुद्ध हो जाती है। हमारे आस-पास ऐसे अनेक कारण विद्यमान हैं, जो तनाव, थकान तथा चिड़चिड़ाहट को जन्म देते हैं, जिससे जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे में व्यक्तित्व को स्वस्थ तथा ऊर्जावान बनाये रखने के लिए योग का अभ्यास रामबाण है। यह हमारे मस्तिष्क को शांत और शरीर को स्वस्थ रखता है।

योग भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम वैज्ञानिक विधाओं में से एक है और भारतीय सभ्यता की धरोहर है। योग के महत्त्व को रेखांकित करते हुए आज सम्पूर्ण विश्व इसका अनुकरण कर रहा है। प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। योग वैदिक काल से ही भारतीय जीवनचर्या का अभिन्न अंग रहा है। ऋग्वेद में कई स्थानों पर यौगिक क्रियाओं के विषय में उल्लेख मिलता है। इसके आदि प्रणेता हिरण्यगर्भ्य के पश्चात ऋषि-मुनियों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया, किन्तु इसे सुव्यवस्थित रूप महर्षि पतंजलि ने दिया। वर्तमान समय में योग का अभ्यास तेजी से लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला रहा है और यह वैश्विक पटल पर अत्यंत लोकप्रिय ही चुका है। पाठक योग साहित्य में अत्यधिक रुचि ले रहे हैं, किन्तु इस बात को नकारा नहीं सकता कि इस क्षेत्र में अभी भी उपयोगी पुस्तकों का अभाव है। इसलिए समग्र ज्ञान हेतु यथोचित पुस्तकों की आवश्यकता है।

इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए डॉ0 कविता भट्ट ने अत्यधिक श्रमसाध्य लेखन करते हुए योग के सैद्धांतिक एवं क्रियात्मक पक्षों को पूर्णतः वैज्ञानिक विवेचन के साथ प्रस्तुत किया है। वर्चुअस पब्लिकेशन्स द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक के अध्ययन में मैंने पाया कि विदुषि लेखिका ने पाठकों की आवश्यकता को गंभीरता से समझते हुए इस पुस्तक को संकलित किया है। डॉ. भट्ट विगत एक दशक से योगदर्शन के सैद्धान्तिक एवं क्रियात्मक पक्ष के विविध पहलुओं पर शोध एवं लेखन में समर्पित भाव से कार्य कर रही हैं। परिणामतः उन्हें इन विषयवस्तुओं की गहन समझ है, परन्तु किशोर मनोविज्ञान के अनुरूप योग के सिद्धान्तों को समग्रता में प्रस्तुत करना और वह भी सहज-सरल भाषा में रोचक अभिव्यक्ति द्वारा यह निश्चय ही एक कठिन कार्य है।

प्रस्तुत पुस्तक इस कारण विशिष्ट है, क्योंकि यह सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्षों को पृथक् न कर समग्रता के साथ देखने का प्रयास है। योगाभ्यास एवं योगिक क्रियाओं का मन-शरीर पर प्रभाव, शरीर एवं शरीर क्रिया विज्ञान के ज्ञान के अभाव में सम्भव नहीं है। शारीरिक संरचना एवं योगाभ्यास का उन पर सकारात्मक प्रभावों का वर्णन इस पुस्तक को विशिष्ट बनाता है।

योगाभ्यास का मानवीय शरीर एवं मन पर सकारात्मक प्रभाव की प्रक्रिया को सात्त्विक एवं शाकाहारी भोजन प्रवृत्ति, नित्यकर्म में अनुशासन तथा अपेक्षित सामान्य नियमों का विवरण प्रस्तुतीकरण समग्र विषय-वस्तु का अपेक्षित आयाम है। योगाभ्यास के व्यावहारिक एवं क्रियात्मक पक्ष का प्रभावी ढंग से प्रस्तुतीकरण के बीच सम्यक् सैद्धान्तिक एवं आध्यात्मिक पक्ष का यथोचित विवेचन योग-दर्शन की मूल आत्मा को भी बचाये रखने में समर्थ है।

‘योगश्चित्तवृत्ति-निरोधः’ पातंजल योग दर्शन का यह सूत्र बताता है कि इन्द्रियों को अंतर्मुखी करते हुए अंत मे सभी वृत्तियों का निरोध करना चाहिए। यदि सामान्य शब्दों में कहा जाय तो व्यक्ति को सकारात्मक मानस चिन्तन से जोड़ना ही योग है। जब ऐसा होगा, तो चिन्तन और व्यवहार की एकरूपता बढ़ेगी, जीवन में सामंजस्य होगा। गीता में निर्देशित योग की परिभाषा-‘योगःकर्मसु कौशलम्’ उसी का व्यावहारिक रूप है। फल की इच्छा से रहित होकर कुशलता पूर्वक कर्म करना ही योग है।

जब ऐसा होगा तभी हमारा जीवन स्वस्थ एवं संतुलित होगा। जीवन तभी तनाव रहित होगा, एकाग्रता बढ़ेगी, आचार-व्यवहार में समता होगी। इसी को गीता में ‘समत्वं योग उच्यते’ कहा गया है। अपने कार्य-क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए एकाग्रता और दृढ़ निश्चय की आवश्यकता है। यह स्थिति योग द्वारा प्राप्त की जा सकती है। लेखिका ने योग के शास्त्रीय पक्ष का दिग्दर्शन करवाते हुए व्यावहारिक योग पर जो पुस्तक का प्रणयन किया है, उसका अध्ययन सामान्य जन के अतिरिक्त आज की युवा पीढ़ी और विद्यार्थियों के लिए अपरिहार्य है। इसके अनुपालन से जीवन-सन्तुलन बढ़ेगा और कार्य-क्षमता में वृद्धि होगी। मानव में अन्तर्निहित विराट ऊर्जा को कार्यरूप में परिणत करना सच्चा योग है। इस दृष्टि से लेखिका यह कार्य बहुत उल्लेखनीय है।

वहीं लेखिका ने षड्दर्शन आदि की दार्शनिक पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करते हुए हठ योग के अभ्यासों को शरीर क्रिया विज्ञान के वैज्ञानिक पक्षों के साथ प्रस्तुत किया है। इन अभ्यासों में से षट्कर्म, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा एवं ध्यान का समग्र एवं सचित्र विवेचन किया गया है। योग के जिज्ञासुओं को इस पुस्तक का अध्ययन अवश्यमेव करना चाहिए। सरल भाषा से युक्त यह पुस्तक जनसामान्य हेतु भी उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसी अपेक्षा है। डॉ. भट्ट का श्रमसाध्य प्रयास अपने उद्देश्य एवं लक्ष्य को पूर्ण करें ऐसी मेरी शुभकामना है।

समीक्षक: डॉ. स्मिता राय