रससिक्त व विषय वैविध्य युक्त मंत्रमुग्ध करते रश्मि के हाइकु / कविता भट्ट

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रश्मि विभा त्रिपाठी द्वारा रचित हाइकु-संग्रह ‘प्रेम-पाँखुरी’ की पाण्डुलिपि पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। चरम भौतिक तथा वैज्ञानिक विकास के आधुनिक युग में अध्यात्म, दर्शन तथा प्रकृति इत्यादि जैसे रोचक विषयों पर हाइकु रचते हुए मानवीय मूल्यों के साथ ही अन्य समसामयिक एवं प्रासंगिक विषयों पर केन्द्रित हाइकु का संग्रह ‘प्रेम-पाँखुरी’ पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। संग्रह में समाहित विभिन्न हाइकु में से ही कुछ हाइकु-शीर्षक से ही संग्रह का नामकरण किया गया है। इसे पढ़कर विषयवस्तु, कलापक्ष एवं भावपक्ष पर कुछ विचार मन में उमड़े हैं।

सर्वप्रथम विषयवस्तु की बात करेंगे; जैसा कि संग्रह के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि इसमें सम्मिलित अधिकतर हाइकु प्रेम पर केन्द्रित हैं। प्रेम विभिन्न सम्बन्धों यथा माता-पिता, भाई-बहिन, पति-पत्नी तथा प्रेमी-प्रेमिका इत्यादि सम्बन्धों को ऊर्जान्वित करने के साथ ही सदैव जीवन्त भी रखता है। प्रस्तुत हाइकु-संग्रह में माँ जन्मदात्री, पिता, राखी, ऋतु, भू-मंत्रमुग्धा, यादों का मेला, रिश्ते, नदी, पंछी- प्रवास, झील तथा सपनों की मौलसिरी इत्यादि शीर्षकों से इस संग्रह को सुसज्जित किया गया है। विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत विषय को पूर्णतः जीवन्त और प्रासंगिक बनाया गया है। कुछ सुन्दर हाइकु उदाहरणस्वरूप निम्न हैं-

प्रवहमान/श्रद्धा का अतिरेक/रुद्राभिषेक

मैं बलिहारी/मिली कल्पवृक्ष माँ/शैलकुमारी

सूनी कलाई/सरहद पे भाई/राखी न आई

पतझड़ में/लग रहे अधेड़/सारे ही पेड़

प्रेम-पाँखुरी/सुगंधित सलोना/मन का कोना

उपर्युक्त जैसे ही अनेक सशक्त हाइकु के द्वारा जीवन के विविध पक्षों का मार्मिक एवं दार्शनिक चित्रण रचनाकार द्वारा किया गया है। इसके अतिरिक्त सामाजिक विद्रूपताओं, विसंगतियों तथा सामयिक स्थितियों का बहुत सुन्दर शब्द-चित्र रचनाओं में खींचा गया है। एक-एक रचना मानस-पटल पर अनुपम प्रभाव छोड़ती है।

पूरा हाइकु-संग्रह विश्लेषणात्मक शैली में कहे गये अनूठे हाइकु का दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक संग्रह है। समस्त रचनाओं द्वारा हाइकुकार रश्मि विभा समाज को निहित संदेश देने में सफल रही हैं। जहाँ तक भावपक्ष एवं कलापक्ष की बात है; तो इनके प्रत्येक हाइकु में भाव, प्रभाव एवं प्रवाह सभी कुछ है। भाषागत सरलता एवं सर्वग्राह्यता इस संग्रह की अनोखी विशिष्टता है। आध्यात्मिक, दार्शनिक एवं सामाजिक विषयों को केन्द्र में रखते हुए रश्मि जी अपनी अद्भुत भाषा शैली द्वारा पाठक को सम्मोहित करती हैं। हाइकु के इस निर्झर से पाठक अपनी प्यास भी बुझाता है; साथ ही स्नान करके तृप्त होते हुए मानस को शीतल भी करता है। मानव मन और मानवता के अद्भुत चित्रण सहित इस संग्रह के समस्त हाइकु मानव को सृष्टि में व्याप्त कण-कण के साथ आत्मीय सम्बन्ध हेतु उद्बोधित करते हैं। मन के स्वाभाविक भाव इन हाइकु में बड़ी सुन्दरता के साथ समाहित किए गए हैं। यहाँ पर यह कहना भी आवश्यक है कि रश्मि जी ने हाइकु- संरचना का अनुपालन करते हुए भी इन्हें केवल वर्ण विषयक अनुपालन का विषय नहीं माना। जैसा कि मेरी दृढ़ अवधारणा है कि मात्र 5-7-5 वर्ण धर्म का पालन करना ही हाइकु नहीं है; यदि केवल यान्त्रिकता का निर्वाह करते हुए कुछ भी लिख दिया जाए, तो वर्ण सही होने पर भी वे हाइकु नहीं कहलाएँगे। हाइकु को उपर्युक्त वर्ण-विधान के साथ ही रससिक्त व भावपूर्ण होना आवश्यक है। रश्मि जी ने प्रत्येक हाइकु में संरचना का यथोचित निर्वाह करने के साथ ही भाव व रस से प्रत्येक हाइकु को परिपूर्ण किया। इस बात के लिए भी उनकी अनूठी काव्य-शक्ति अन्य हाइकुकारों के लिए भी अनुकरणीय है।

चैतन्य को जाग्रत करने वाले ये हाइकु आध्यात्मिकता और गूढ़ दर्शन का संगम हैं; जो निश्चित रूप से व्यष्टि और समष्टि को सकारात्मक दिशा देंगे; ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। इस प्रकार के संग्रह सदैव स्वागत योग्य है। इस दृष्टि से ‘प्रेम-पाँखुरी’ को पढ़ना आनन्ददायी है और यह पठनीय तथा संग्रहणीय कृति है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आने वाले समय में आपका सृजन-संसार और भी अधिक समृद्ध होगा।

रश्मि जी को साधुवाद व स्वर्णिम भविष्य हेतु मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ!

प्रेम-पाँखुरी ( हाइकु-संग्रह): रश्मि विभा त्रिपाठी, पृष्ठ:104, मूल्य: 230 रुपये, प्रकाशक :अयन प्रकाशन, जे-19/39, राजापुरी, उत्तम नगर , नई दिल्ली-110059

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