राधिका आप्टे : बरगद की डाली का जड़ में बदलना / जयप्रकाश चौकसे

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राधिका आप्टे : बरगद की डाली का जड़ में बदलना
प्रकाशन तिथि :14 अप्रैल 2015


प्रचार का माध्यम कुछ गैर-पारंपरिक सी घटना पर उसे सनसनीखेज एवं विवादास्पद बनाने में माहिर है क्योंकि यही उसका स्थायी मसाला है। राधिका आप्टे ने "बदलापुर' में छोटी भूमिका की है, परन्तु एक दृश्य में नायक अपना बदला लेने के लिए खलनायक की पत्नी से थोड़ा अभद्र होता है और इसी दृश्य ने राधिका आप्टे को सुर्खियों में ला दिया और संयोगवश उन्हीं दिनों उसके नाम पर किसी अन्य स्त्री के 'साहसी' चित्र का वैकल्पिक संसार में प्रदर्शन भी हुआ गोयाकि जबर्दस्त तड़का भी लग गया और राधिका ने उस मॉर्फ्ड चित्र को हटाने या उस पर प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया। ऐसी खामोशी सनसनी के होम में घी का काम करती है। अत: आग की लपटों में राधिका आप्टे का नाम लिपटकर और भभक उठा।

सन् 2014 में रितेश देशमुख की 'लई भारी' की नायिका भी राधिका थी, परन्तु उसकी 'शोर इन द सिटी' में उसका अभिनय सराहा गया था, परन्तु उस 'सराहना' को कैश करने के बदले राधिका ने लंदन के ट्रिनिटी लबान में नृत्य का प्रशिक्षण पूरा करना बेहतर समझा। महाराष्ट्र के मराठी भाषी लोग सदैव से कला, नाटक, संगीत को प्राथमिकता देते रहे हैं, परन्तु इसी कला प्रेम के साथ उन्होंने पारंपरिकता का निर्वाह भी किया है। परन्तु 21वीं सदी की नई पीढ़ी ने पारंपरिकता को नए ढंग से परिभाषित किया और उन्होंने इसके नाम पर प्रस्तुत दकियानूसी को खारिज किया है। पहले की पीढ़ियों की कन्या का सौंदर्य उनकी कला निष्ठा के आवरण में छुपा था, परन्तु नई पीढ़ी अपने साहसी जीवन दृष्टिकोण से अपना सौंदर्य प्रस्तुत करती है। कुछ वर्ष पूर्व भास्कर द्वारा आयोजित टेलीफोन पर लताजी से मैंने यह प्रश्न पूछा था कि उनके प्रवेश वर्षों में कला समर्पण के भाव में क्या अब कुछ अंतर आया है और युवा रुझान बदले हैं। लताजी कुछ क्षण विचार करती रहीं, फिर उन्होंने कहा कि बहुत अंतर आया है, परन्तु संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इस परिवर्तन की लहर का वहां तक पहुंचना संभव नहीं है।

राधिका और उसकी पीढ़ी की प्रतिभाशाली कन्याओं ने अपने परिवर्तित रूप में हंगामे खड़े किए हैं और लताजी द्वारा बताई जड़ों में थोड़ा-सा कम्पन तो हुआ है। इस कम्पन को हम इस सकारात्मक ढंग से भी ले सकते हैं कि हजारों वर्ष के बरगद के वृक्ष की कुछ डालियां अपने भार से झुककर धरती में समा जाती हैं और इस तरह वृक्ष की डालियां ही उसकी जड़ों से जुड़कर उसे नई मजबूती देती हैं। इस फिनोमिना के कारण बरगद समय को चुनौती देता रहा है। राधिका को हुमा कुरैशी अभिनीत झिलमिल का पात्र अच्छा लगा था, परन्तु निर्देशक हुमा से अनुबंध कर चुका था, अत: राधिका ने कोको की भूमिका अभिनीत की। किसी खलनायक की नेक पत्नी की भूमिका अपराध के कीचड़ में कमल के खिलने की तरह और न्यूनतम वस्त्र में एक दृश्य के कारण यह नीलकमल की तरह है। राधिका ने बंगला, मलयाली, तमिल व तेलुगु भाषाओं की फिल्में भी अभिनीत की हैं। कन्याएं मानसून की तरह केरल से अपनी यात्रा करके "बदलापुर' तक पहुंचती हैं। इस पीढ़ी का ढेर-सी भाषाओं की फिल्मों में अभिनय करने को एक तरह से राजनीति में संकीर्णता वाले क्षेत्रवाद के शीशमहल पर फेंके गए पत्थर की तरह मानना चाहिए।

राधिका ने 'हंटर' में अभिनय किया और फिल्म लागत पर मुनाफा कमा रही है। कुछ प्रस्ताव बड़े निर्माताओं से मिले हैं, परन्तु वो पटकथा पढ़े बगैर फिल्म नहीं चुनना चाहती। एक तरफ हम देखते हैं कि युवा पीढ़ी हर काम बहुत जल्दी-जल्दी करना चाहती है और दूसरी तरफ राधिका जैसी युवा लड़की सितारा बनने की जल्दी नहीं दिखा रही है। उसे अपने काम पर विश्वास है और वह धीमी गति से ही मनपसंद भूमिकाएं करना चाहती है। उसका दृष्टिकोण इससे भी स्पष्ट होता है कि उसके नाम पर किसी महिला का अभद्र चित्र इंटरनेट पर किसी ने भेज दिया और वो इसका भी विरोध नहीं करना चाहती। इस युवा पीढ़ी को किसी एक मापदंड से नहीं तौला जा सकता।