संभलकर आगोश में आओ, जहर की पुड़िया हूँ मैं / संतोष श्रीवास्तव

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नवजात कन्या को दूध के साथ बूंद-बूंद विष पिलाना, उसकी किलकारियों को फुफकार में बदल देना, उससे उशके जीने का हक छीन लेना क्योंकि वह रूपवान है, वह औरत है, जिसके अंग जवान होने पर पुरुष की उस लिप्सा के काम आएंगे जो वह साम्राज्य को पाने के लिए अपने मन में जगाए है।

विषकन्या प्राचीन भारतीय विष विज्ञान की देन है। साम्राज्य बढ़ाने और राज्य की सुरक्षा के लिए इनका सहारा लिया जाता रहा है। उस वक्त के अधिकतर राजपुरुष अपने शत्रुओं के विरुद्ध विषकन्याओं का उपयोग करते थे।

ईसा से 300 वर्ष पूर्व भारत की राजनीतिक परिस्थिति बेहद उथल-पुथल भरी थी। राजाओं में आपस में साम्राज्य प्राप्ति के लिए युद्ध छिड़े रहते थे। जब बल से प्रतिद्वंद्वी को हराना मुश्किल हो जाता था तब छल से उसे मारने के लिए विषकन्या का सहारा लिया जाता था। विष कन्याएँ कैसे तैयार की जाती थीं उसका सविस्तार वर्णन कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है। शत्रुओं के विनाश के लिए चाणक्य ने विभिन्न तरीकों और कूटनीति की चर्चा कि है। शत्रुओं को पराजित करने के लिए स्त्रियों की सहायता लेने में भी उन्हें ज़रा भी संकोच नहीं होता था। महाभारत और मनुस्मृति जैसे अति प्राचीन ग्रंथों में भी इनका उल्लेख मिलता है। ये व्यक्तिगत और राजकीय सुरक्षा के लिए बेहद उपयोगी समझी जाती थीं। उस वक्त के अधिकतर पुरुष जो राजघराने से सम्बंधित थे, अपने शत्रुओं के विरुद्ध इनको इस्तेमाल करते थे। जिस महाबली को युद्धभूमि में हजार शत्रु भी नहीं हरा पाते थे, आखिरकार वह किसी के मादक सौंदर्य के हाथों परास्त हो जाता था। उस पुरुष रत्न की आधी जान तो उस सुंदरी के भृकुटि कटाक्ष से निकल जाती थी, रही सही उसके चुम्बन और स्पर्श से खत्म हो जाती थी।

विष कन्याएँ कैसे तैयार की जाती थीं यह कौटिल्य के अर्थशास्त्र में विस्तारपूर्वक लिखा है। विष कन्या के चयन के लिए किसी विशेष ग्रह नक्षत्र में पैदा हुई लड़की ही उपयुक्त मानी जाती थी। पुरोहितों की गणना के अ्नुसार राज्य के गुप्तचर पूरे राज्य में ढऊंढ़कर ऐसी किसी बालिका को उसके माता-पिता कि गोद से बलपूर्वक छीनकर ले आते थे। फिर शुरू होती थी विष कन्या बनाने की जटिल, रहस्यमयी और पीड़ादायक प्रक्रिया। उस नन्ही-सी जान को जिसके मुंह से दूध की सुगंध आती थी भंग, अफीम, धतूरा से लेकर संखिया तक खिलाई जाती थी। दिन-ब-दिन इन जहरीले पदार्थों की मात्रा बढ़ाई जाती थी। उसे और अधिक जहरीला बनाने के लिए उशकी जीभ पर जहरीले सर्प का दंश भी करवाया जाता था।

उसे हथियार चलाने में भी पारंगत किया जाता था। इतना ही नहीं बल्कि चौंसठ कलाओं का ज्ञान भी दिया जाता था। अस्त्र-शस्त्र, गुप्तचर शास्त्र के साथ वशीकरण, तंत्र-मंत्र और काम कलाओं में भी उसे पारंगत किया जाता था। जहर की डिबिया या विष युक्त छुरी को भी विशेष मौकों के लिए वस्त्रों में पिपाने की कला उसे सिखाई जाती थी। विष कन्या के लिम नमक का प्रयोग बिल्कुल वर्जित था। विष कन्या को ताउम्र फीका भोजन करना पड़ता था। आधुनिक विज्ञान के अनुसार नमक आमाशय में जाकर हाइड्रोक्लोरिक एसिड के रूप में परिवर्तित हो जाता है। जो कुछ भी खाया जाता है हाइड्रोक्लोरिक एसिड उसे कणिकाओं में विभक्त कर हजम करने लायक बनाता है। नमक न लेने पर इस एसिड का असर खत्म हो जाता है और खाया हुआ विष आमाशय में सुरक्षित रहकर पूरे शरीर के रक्त में फैल जाता है और विष कन्या विषैली हो जाती है।

आष्टांग संग्रह के एक श्लोक में स्पष्ट लिखा है कि विष कन्या के स्पर्श से फूलपत्ते तक कुम्हला जाते हैं। वह जिस बिस्तर पर सोती है वहाँ किसी कीट पतंगे का जीवित रहना असंभव है। उसके स्नान किए जल से भी कीट पतंगे मर जाते हैं। उसके संसर्ग से उत्पन्न हुए पसीने के स्पर्श मात्र से उसका विष दूसरे के शरीर में पहुँचकर उशे यमलोक पहुँचा देता है। संभोग के साथ ही पुरुष शिश्न विगलित हो जाता था। मृत्यु तो प्रथम मिलन में ही निश्चित थी। विषकन्याएँ चूंकि चलन में थीं, इसलिए सभी राजघराने सतर्क रहते थे और यदि कोई इनके संपर्क में आ ही गया तो विषय के असर को खत्म करने के नुस्खे भी कौटिल्य के अर्थशास्त्र में लिखे हैं।

विष कन्या जब दुश्मन राजा के पास भेजी जाती थी तो यह उसकी चतुराई पर निर्भर था कि वह राजमहल और अर्न्तमहल में कैसे प्रवेश करे और कैसे उसे अपने वश में करे। वह अथीव सुंदरी होती है अत: राजा का आकृष्ट होना लाजिमी है। पुरुषों को वश में करने के सभी हाव-भाव वह व्यवहार में लाती थी और नाच गाकर उसका मन मोह लेती थी। पूरी तरह वश में करके वह कामशास्त्र के सभी प्रयोग उस पर आजमाती थी। उसे ऐसा मादक चुंबन देती थी कि काम से मतवाला हुआ पुरुष समझ ही नहीं पाता था कि कब उसके होठों पर विषकन्या ने अपने दांत चुभो दिए हैं और कब विष का असर उसके शरीर में घुलकर उसे बेजान कर रहा है लेकिन यह अंतिम अवस्था होती थी। उसके पहले वह अपनी वाकपटुता के लिए जरिए उस राज्य के तमाम रहस्य जान लेती थी।

महाभारत काल में भी युद्ध के समय सेनाओं के साथ मणिकाएँ जाती थीं, युद्ध से थके सैनिकों का मनोरंजन करना और रात्रि प्रहर में शत्रुओं के शिविर में जाकर खुफिया का काम करना इनका मुख्य कार्य था। इन विष कन्याओं को गणिका के नाम से इसलिए भेजा जाता था ताकि सभी इन्हें मात्र मनोरंजन के लिए ही समझें। शत्रु शिविर में यदि ये पहचान भी ली गई तो जो जहर द्वारा इन्हें मारा नहीं जा सकता था, बल्कि ये स्वयं ही नागिन की तरह शत्रु को डस लेती थीं। गुप्तकाल और मौर्यकाल तो इन विष कन्याओं का स्वर्ण युग कहा जाता था। इस युग में राजाओं की सेनाओं को इन विष कन्याओं से भरपूर मदद मिलती थी तथा विजय का सेहरा दिलाने में इनकी प्रमुख भूमिका रहती थी।

इन विष कन्याओं का वर्णन ऋग्वेद से लेकर संहिताओं, पौराणिक गाथाओं, रामायण-महाभारत इत्यादि में तो मिलता ही है साथ ही भारत में प्रचलित गुप्तचर्चा के अनेक सिद्धांतों को इन्हीं विष कन्याओं ने जन्म दिया। गुप्त चर्चा के ये सिद्धांत अनेक वर्षों तक राजाओं, सभासदों द्वारा दोहराए जाते रहे। गुप्त सूचनाएँ कैसे इकट्ठी की जाती हैं, इनको क्रमबद्ध रूप में इकट्ठा करके जो साहित्य रचा गया उसे अर्थशास्त्र में प्रस्तुत किया गया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इन विष कन्या रूपी महिला गुप्तचरों को लाने का श्रेय कौटिल्य राज्य में ही हुआ था। कौटिल्य के राज्य में ही विष कन्याएँ सेना में रखी गई थीं और इनका प्रमुख कार्य दुश्मन को चालाकी से लुभाना और महत्त्वपूर्ण जानकारी इकट्ठी करना था। इन विष कन्याओं के शरीर में जो विष इकट्ठा होता रहता था वह बहुत प्रभावशाली था जो निश्चय ही दुश्मन को मारकर उसके सारे रहस्य पता कर लेता था।

मौर्यकाल में पुंश्चली कही जाने वाली देवदासी वस्तुत: विष कन्याएँ ही होती थीं। इनका स्वयं का जीवन सुख, वैभव, समृद्धि से भरा होता था। चूंकि पुंश्चली देवदासी होती थी, अत: उच्च वर्ग की विष कन्याओं की बनिस्बत जल्दी ही दासी के रूप में राजाओं के महलों में प्रवेश पा जाती थीं। इन दासियों का प्रमुख कार्य भीतरी बात को बाहर लाना तो था ही बल्कि ये सरकारी अधिकारियों की सही संपत्ति का पता भी लगा लेती थीं। उनके पास यह जानकारी भी रहती थी कि कौन राजशुल्क से बच रहा है, कौन रिश्वत ले रहा है, कौटिल्य के बाद एक लंबे अर्से तक देश के राजा इन्हीं के द्वारा बनाए सिद्धांतों पर खुफिया जासूसी करवाते रहे।

गुप्त चर्चा प्राचीन भारतीय राजनीति का एक प्रमुख अंग थी। कालिदास, शूद्रक, दंडी, वाण, कनिष्ठ, याज्ञवल्क्य आदि लेखकों ने अपनी पुस्तकों, ग्रंथों में विष कन्याओं, गुप्तचरों का वर्णन किया है। इन गुप्तचरों को चर और छद्मवेश में जासूसी करने वाले को अपसर्प कहा जाता था। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को निष्कंटक करने के लिए सम्राट पर्वतक के पास विष कन्या भेजी थी जिसका नाटकीय वर्णन विशाखदत्त के नाटक मुद्राराक्षस में मिलता है। हरअसल नंद राज्य के मंत्री अमात्य राक्षस ने चंद्रगुप्त की हत्या के लिए जिस विष कन्या को भेजा था, उशी को चाणक्य ने अपने कूटनीतिक कौशल के जाल में फंसाकर पर्वतक की हत्या करने के लिए भेज दिया। पर्वतक उसके रूप पर ऐसे आसक्त हुए जैसे कमल पुष्प पर भंवरा। उस विष कन्या का नाम था नागमती। नागमती उस समय की सुंदरियों में सबसे अधिक सुंदरी स्त्री थी। उसने नाच, गाना, सुरापान तथा अपनी काम कलाओं से पर्वतक को उन्मत्त कर अपनी विषभरी मुस्कान और चुंबन, आलिंगन से पर्वतक के होश उड़ा दिए। पर्वतक के प्राण उड़ने को फड़फड़ा उठे। लेकिन नागमती को लगा कि अगर यहाँ के चतुर वैद्यों ने उसे बचा लिया तो वह चाणक्य को क्या जवाब देगी। इसलिए उसने विष भरे पान का बीड़ा भी उसे खिला दिया। पर्वतक का अंत होते ही नागमती गुप्त रास्ते से चाणक्य के पास लौट गई।

जिन सुंदरियों को विष कन्या बनाया जाता था उनके लिए मानव जीवन शून्य था। न तो वे वैवाहिक जीवन जी सकती थीं, न माँ बन सकती थीं, न ही किसी से प्रेम कर सकती थीं। उम्र भर फीका बेस्वाद भोजन, जीवन का एकाकीपन और ज़िन्दगी का मकसद केवल हत्या... इन कोमलांगी औरतों की मनोदशा पर दो घड़ी ठिठककर सोचना क्या मानवता नहीं? क्या कसूर था इन अत्यंत रूपवान कन्याओं का? बेहद बुद्धिवान, संपन्न व्यक्तित्व, धन संपदा के बीच उनका जीवन वेश्याओं से भी बदतर था। ये विष कन्याएँ आम औरतें ही तो थीं पर शरीर में रक्त के साथ बहते विष के कारण ये तिल-तिल कर घुटते मरते अपना विनाश कर लेती थीं। मृत्यु ही इन्हें इस विषैले जीवन से मुक्ति देती थी।

महिला जासूस आज भी होती हैं पर अब विष नहीं होता बल्कि ऐसी रहस्यभरी चालें होती है कि किसी को पता ही नहीं चलता कि वह जासूसी की गिरफ्त में है। बर्लिन में सोविएत जासूसों ने मारिया कुंथ नामक बहुत ही आकर्षक जर्मन अभिनेत्री को पोलैंड के भूतपूर्व सैन्य अधिकारी की जासूसी करने के लिए भेजा। यह सैन्य अधिकारी कला का इतिहासकार था और प्राचीन ऐतिहासिक वस्तुओं की दुकान चलाता था। इस दुकान पर मारिया कुंथ भी उसकी मदद करती थी। मारिया को जासूसों द्वारा यह काम सौंपा गया था कि वह ब्रिटिश और अमेरिकी अधिकारियों को, जो दुकान पर आएँ, अपने सौंदर्य जाल में फंसाकर अपने शयन कक्ष में ले जाए और अपनी मादक अदाओं से इन्हें ब्लैकमेल करे। इस काम के लिए सोविएत जासूसों ने कोलोन के निकट एक लवनेस्ट विला और फ्रैंकफर्ट में एक अपार्टमेंट भी ले रखा था। मारिया के इस काम के लिए इंकार करने पर उसकी प्रोफेशनल और शादीशुदा ज़िन्दगी को चौपट कर देने की धमकी दी गई। मारिया पति से बिना बताए चुपचाप यह कार्य करती रही लेकिन जब उसके पति को पता चला कि उसकी पत्नी जासूसी के जाल में फंसकर लगभग वेश्या बन चुकी थी तो उसने आत्महत्या कर ली। पति के वियोग में और जासूसी करती पकड़े जाने पर कैंसर से पीड़ित मारिया भी चल बसी।

महिला जासूसों में सबसे महत्त्वपूर्ण जासूस इजराइल की अदा थी। अदा उसका सांकेतिक नाम था। उसने मिस्र में रहकर इजराइल के लिए बहुत ही उपयोगी जासूसी की और कभी भी पकड़ी नहीं गई। उसके सम्बंध बड़े-बड़े पदाधिकारियों से थे और राष्ट्रपति कर्नल नासिर से तो उसके दोस्ताना सम्बंध थे। फ्रांस के गुप्तचर संगठन की रोमानिया कि रहने वाली बेहद सुंदर जासूस थी येवेटी। वह अपने सौंदर्य के जाल में बड़े-बड़े पदाधिकारियों को फंसाकर सारे रहस्य उगलवा लेती थी और उनके साथ हुई तमाम बातों को अपने बालों में लगे हेयरपिन रिकार्डर में रिकार्ड कर लेती थी। जिन्हें वह बाद में फ्रांसीसी गुप्तचरों को सौंप देती थी। ब्रिटेन ने अपनी एक जासूस चीन भेजी थी। उसका कोड नाम लोट्स ब्लॉम्स था। वह चीन जाकर माओत्से तुंग की अनुयायी बन गई और उसने माओ की रेड बुक का एक-एक शब्द रट लिया था और उसके प्रचार प्रसार में लग गई। इस तरह वह एक विश्वसनीय कम्युनिस्ट बन गई थी और कम्युनिस्ट पार्टी में उसने महत्त्वपूर्ण पद हासिल कर लिया था। युद्ध के दौरान वह इंग्लैंड चली गई। जहाँ उसे ब्रिटेन ने अपने जासूसी मिशन स्पेशल आॅपरेशन एक्जीक्यूटिव की एजेंट बनाकर फ्रांस भेजा। उसने बड़ी ही विकट परिस्थितियों में अपना काम लंबे समय तक जारी रखा और अंतत: नाजी सैनिकों द्वारा पकड़ी गई। उसे तरह-तरह की यातनाएँ दी गईं और वहीं उसकी मृत्यु हो गई।

सदियों से जासूसी के लिए इस्तेमाल की गई औरत जिसे कि पितृसत्ता जड़, जाहिल, मूर्ख और हर तरह से अयोग्य समझती थी, कैसे पुरुष के दिमाग में जासूसी के लिए महत्त्वपूर्ण बन गई। जाहिर है उशका रूप और यौवन ही केन्द्र में आया। उसे जासूसी के लिए विष पिलाकर तरह-तरह के प्रशिक्षण देकर इतना चतुर बना दिया कि वह सात तालों में बंद रहस्य को भी ताड़ लेती थी। लेकिन यह कार्य सौंपते हुए उसके दिमाग में यह नहीं आया कि वह औरत से उसके जीने का हक छीन रहा है, उसका मातृत्व छीन रहा है, उसकी कोमल भावनाओं को आघात पहुँचा रहा है और ताउम्र तिल-तिल मरने के लिए विवश कर रहा है। साम्राज्य की चाहत में, दूसरे देश के विकास की ओर बढ़ते कदमों को रोकने के लिए औरत की बलि देते हुए वह ज़रा भी नहीं हिचकिचाया।