सोचने से नहीं, देने से फैलती हैं खुशियाँ / सुरेश कुमार मिश्रा

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प्रतिवर्ष 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस मनाया जाता है। रक्तदान का नाम लेते ही कई लोग पीछे हट जाते हैं। धारणा यह है कि रक्त की कमी से शरीर कमजोर पड़ जाता है। सच्चाई यह है कि जितना रक्त हम देते हैं उतनी ही मात्रा में शुद्ध रक्त पुनः तैयार होने लगता है। इससे मनुष्य के स्वास्थ्य में और अधिक वृद्धि होती है। शरीर में सबसे अधिक कीमती द्रव रूपी कण रक्त ही है। शरीर के कुल भार का यह आठ प्रतिशत होता है। यानी 5 से साढ़े 5 लीटर रक्त। रक्त की जाँच करने पर पता चलता है कि यह परखनली में डालते ही तीन कणिकाओं में बंट जाता है। इन तीनों में सबसे गाढ़ी कणिका सूखे घास के रंग में होती है। पारदर्शी दिखने वाली यह कणिका ऊपरी सतह पर तैरती नज़र आती है, इसे ही प्लाज्मा कहते हैं। इसकी निचली परत में दिखायी देने वाली कणिका सफ़ेद रंग की होती है। इसे ही श्वेत रक्त कणिका कहते हैं। अंत में नीचे तक दिखायी देने वाली कणिका ही लाल रक्त कणिका है। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुँचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करती है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वेत रक्त कणिका हानिकारक तत्वों तथा बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं से शरीर की रक्षा करती हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा रक्त बनाने में सहायक होते हैं। यह लाल रंग में इसलिए होता है क्योंकि इसकी लाल कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन नाम का लाल रंग पाया जाता है। रक्त का निरंतर निर्माण अस्थि मज्जा में होता रहता है।

सन् 1900 में सबसे पहली कारललैंड नामक चिकित्सक ने रक्त का विभाजन 4 समूहों में किया। वे हैं-ए, बी, एबी और ओ। इन समूहों का पुनः विभाजन करते हुए ऋणात्मक व धनात्मक उपसमूहों में बाँटा गया है। रक्त का निर्माण कृत्रिम रूप से करना असंभव है। यह एक प्राकृतिक व सहज प्रक्रिया है। रक्तदाता अपने समूह विशेष के किसी भी व्यक्ति को रक्त देकर प्राणदान कर सकता है। रोग की रोकथाम, दुर्घटनाओं के समय, आपातकालीन स्वास्थ्य स्थितियों में पीड़ितों को अपनी इच्छा से रक्त देना रक्तदान कहलाता है। इस तरह रक्तदान केवल सेवा ही नहीं हमारा दायित्व भी है। ओ रक्त समूह वाले लोगों को विश्वदाता कहते हैं। जबकि एबी समूह के लोग विश्वग्राह्यक हैं।

रक्त का रंग देखने में एक जैसा ही दिखता है, किंतु कुछ लोगों का रक्त विशेष रक्त समूह को ही दान किया जा सकता है। एबी रक्त समूह वाले केवल एबी रक्त समूह को ही रक्त दान कर सकते हैं। ए रक्त समूह वाले ए व एबी रक्त समूह, बी रक्त समूह वाले बी व एबी रक्त समूह, ओ रक्त समूह वाले ए, बी, एबी व ओ रक्त समूह के सभी लोगों को रक्तदान कर सकते हैं। किंतु ओ रक्त समूह मात्र ओ रक्त समूह वाले से ही रक्तदान ले सकता है।

रक्तदान सभी नहीं कर सकते। इसके भी कुछ नियम होते हैं। 16 से 60 वर्ष के स्वस्थ व्यक्ति जिनका भार 45 किलो से कम न हो, वे ही रक्तदान के योग्य कहलाते हैं। नब्ज, रक्तदाब, हृदयगति की समस्या वाले व्यक्ति रक्तदान नहीं कर सकते। हर व्यक्ति 3-4 महीने में एक बार रक्तदान कर सकता है। 18 वर्ष की आयु वाला व्यक्ति अपने जीवन काल (60 वर्ष की आयु तक) में 168 बार रक्तदान कर सकता है। इस हिसाब से हर व्यक्ति 672 लोगों की जान बचा सकता है। रक्तदाता के रक्त को 35 से 45 दिन तक स्टोर किया जाता है। इसे तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है-लाल रक्त कणिका, प्लाज्मा, प्लेट्लेट्स। आवश्यकतानुसार ज़रूरी लोगों को दिया जाता है।

रक्तदान करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। यह आत्मसंतृप्ति का कारक बनता है। हमें इस बात का अहसास दिलाता है कि हमने किसी की जान बचायी है। यह सुखद अनुभव आप में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। रक्तदान करने वालों में कैंसर का ख़तरा कम रहता है। निशुल्क रक्त की जाँच हो जाती है। इससे उन्हें उनके स्वास्थ्य के बारे में यूँ ही पता चल जाता है। आवश्यक सावधानी बरत सकते हैं। रक्तदान करने से व्यर्थ अथवा मात्रा से अधिक कैलोरी में कमी आती है। इससे शरीर का मोटापा कम हो जाता है। वसा कि मात्रा घटती है। शुद्ध कैलेस्ट्राल की वृद्धि में सहायक होता है। हृदयघात के खतरे से बचा जा सकता है। महिलाओं में लोह की मात्रा में संतुलन बनाये रखने का अच्छा उपाय है। लोगों में यह धारणा है कि रक्तदान करने से शारीरिक कमजोरी बढ़ जाती है या फिर कुछ और हो जाता है। जबकि सच्चाई यह है कि दुनिया में तलसेमिया (हर 15 दिन में रक्त की आवश्यकता वाला रोगी) और अन्य रक्त रोगों से ग्रस्त कइयों की जान बचा सकते है। चलिए आज ही हम रक्तदान करते हैं। किसी की जान बचाकर उनकी ख़ुशी का कारण बनते हैं। क्योंकि खुशियाँ सोचने से नहीं, कुछ देने से फैलती हैं।