हिंदी के ऐतिहासिक स्तंभकार के लेखन और निरंतरता को सलाम / अजय ब्रह्मात्मज

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हमारे अग्रज, वरिष्ठ और समकालीन जयप्रकाश चौकसे का आज अंतिम कॉलम दैनिक भास्कर के प्रथम पृष्ठ पर छपा है। साथ ही दैनिक भास्कर के संपादक सुधीर अग्रवाल का एक पत्र भी है।

जयप्रकाश चौकसे पिछले 26 सालों से यह दैनिक स्तंभ लिखते रहे हैं। अपनी व्यस्तता, बीमारी और तमाम गतिविधियों के बीच उन्होंने इसे निरंतर जारी रखा। संभवत: यह एक रिकॉर्ड है। मुझे उनके सानिध्य, विमर्श और विचारों का सहयोग मिलता रहा है। मैंने एक बार उनसे लंबी बातचीत भी की थी। जो अभी एक ईबुक के रूप में नॉटनल से प्रकाशित हो चुकी हैं।

हिंदी के ऐतिहासिक स्तंभकार के लेखन और निरंतरता को सलाम। वह कैंसर से पीड़ित हैं और अभी शायद इतने अस्वस्थ हो गए होंगे कि उन्हें अपना प्रिय स्तंभ बंद करना पड़ा है। यह उनके प्रशंसकों और पाठकों के लिए दुख का समय है।

उनके लेखों और विचारों की कमी बनी रहेगी।