“द सेंट ऑफ ग्रीन पपाया” एक स्त्री के मनोभावों की कोमल अभिव्यक्ति / राकेश मित्तल

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“द सेंट ऑफ ग्रीन पपाया” एक स्त्री के मनोभावों की कोमल अभिव्यक्ति
प्रकाशन तिथि : 15 नवम्बर 2014


इस फिल्म की कोमल, खूबसूरत रोमांटिक कहानी की पृष्ठभूमि में बहुत खामोशी के साथ वियतनाम की राजनीतिक अस्थिरता को भी महसूस किया जा सकता है, जो अंडरटोन के रूप में साथ-साथ चलती है।

वियतनाम के युवा एवं प्रतिष्ठित फिल्म निर्देशक ट्रॉन आं हंग ने वर्ष 1993 में प्रदर्शित अपनी पहली ही फिल्म 'द सेंट ऑफ ग्रीन पपाया" से विश्व सिनेमा के गलियारों में हलचल मचा दी थी। यह वियतनाम की अब तक की एकमात्र फिल्म है, जिसे विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के ऑस्कर पुरस्कार हेतु नामांकित किया गया था। यह एक बालिका के स्त्री स्वरूप में विकसित होने की कहानी है। इस प्रक्रिया से गुजरते हुए हम उसकी आंखों से उसके आसपास की दुनिया और अनुभवों को महसूस करते हैं। फिल्म के विजुअल्स इतने खूबसूरत और मनोहारी हैं कि पर्दे पर से पल के लिए भी नजरें नहीं हट पातीं।

फिल्म का समय 1951 से 1961 के बीच का है, जब वियतनाम पूरी तरह गृहयुद्ध की चपेट में था। एक तरफ अमीर सामंतवादों और जमींदारों के खिलाफ जनता ने विद्रोह कर दिया था, तो दूसरी तरफ इंडो चाइना वॉर अपने चरम पर था, जिसमें सोवियत संघ, चीन और अन्य कम्यूनिस्ट देशों द्वारा समर्थित उत्तरी वियतनाम अमेरिका समर्थित दक्षिणी वियतनाम से युद्धरत था। फिल्म की कोमल, खूबसूरत रोमांटिक कहानी की पृष्ठभूमि में बहुत खामोशी के साथ वियतनाम की राजनीतिक अस्थिरता को भी महसूस किया जा सकता है, जो अंडरटोन के रूप में साथ-साथ चलती है।

इस फिल्म को हम दो हिस्सों में बांट सकते हैं। पहले हिस्से में दस साल की मासूम अनाथ बच्ची मुई (मन सन लू) अपने गांव से वियतनाम के हो ची मिन्ह शहर में एक समृद्ध व्यापारी परिवार में घरेलू नौकरानी के रूप में लाई जाती है। घर में आते ही वह बहुत तन्मयता और शीघ्रता से सारे काम सीख लेती है। उसे लग जाता है कि घर में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। गृहस्वामी शराबी और परस्त्रीगामी है। वह थोड़े-थोड़े दिनों में अचानक सारे पैसे लेकर गायब हो जाता है और उन्हें लुटाकर लौटता है। उसकी पत्नी किसी तरह संघर्ष करके घर चलाती है। उसके तीन बेटे और बूढ़ी सास अपने आप में मगन रहते हैं। मुई अपने मध्ाुर स्वभाव और कार्य कुशलता से सबका दिल जीत लेती है। विशेष तौर पर गृहस्वामिनी उसे बहुत पसंद करती है। मुई अत्यंत जिज्ञासु प्रवृत्ति की बालिका है। वह अपने आसपास की हर चीज को बहुत ध्यान से देखती-परखती है। घर के सारे क्रियाकलाप और घटनाएं हम उसी के निरीक्षण के माध्यम से देखते हैं। उसे छोटी-छोटी बातों को खूब ध्यान से देखने-समझने में बड़ा मजा आता है, जैसे दीवार पर चलती चींटियों की कतारें, जो अपनी पीठ पर दाना लेकर जा रही हैं या बारिश खत्म होने के बाद पत्तों से फिसलती पानी की बूंदें या कच्चे हरे पपीते के पेड़ से रिसता हुआ सफेद द्रव्य या दीवार पर चपलता से रेंगती छिपकली आदि। निर्देशक ने कैमरा मानो उसकी आंखों में फिट कर रखा है। इस तरह के दृश्यों के माध्यम से हमें कुछ बेहतरीन विजुअल्स और कैमरा वर्क का कमाल देखने को मिलता है। इसी दरम्यान बचपन से किशोर और फिर युवा होती मुई के सूक्ष्मतम मनोभावों और प्रतिक्रियाओं को निर्देशक बड़ी खूबसूरती से कैमरे में कैद करता है।

फिल्म के दूसरे भाग में मुई एक खूबसूरत युवती (नू येन खे ट्रॉन) के रूप में हमारे सामने है। गृहस्वामी की मृत्यु हो चुकी है। मुई अब भी वहां काम कर रही है पर उनके पास उसकी तनख्वाह देने को पैसे नहीं हैं। वह परिवार के एक पुराने मित्र खूयेन (होआ होई वांग) के घर नौकरी कर लेती है, जहां उसकी नई प्रेम कहानी शुरू होती है।

यह फिल्म सेल्यूलाइड पर लिखी गई एक कविता है। रोजमर्रा के साध्ाारण कामों को किस तरह कविता और संगीत में बदला जाता है, यह इस फिल्म को देखकर जाना जा सकता है। मुई के हर काम में एक लय है। वह पपीता भी इतने सलीके और करीने से काटती है कि मानो उस पर चाकू से सितार बजा रही हो! ट्रॉन की फिल्मों की सबसे बड़ी खूबी उनकी नयनाभिराम दृश्यावली होती है। वे संवादों के बजाए दृश्यों के माध्यम से अपनी बात कहना पसंद करते हैं। फिल्म में युवा मुई की भूमिका उनकी पत्नी ने की है। हालांकि फिल्म की पृष्ठभूमि पूरी तरह से वियतनाम की है लेकिन इसकी पूरी शूटिंग फ्रांस के एक छोटे-से स्टूडियो में सेट बनाकर की गई है।

इस फिल्म का प्रीमियर कान के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में किया गया था, जहां इसे सर्वश्रेष्ठ डेब्यू फिल्म का पुरस्कार दिया गया।