“रोम, ओपन सिटी” एक तबाह होते शहर का प्रतिरोध / राकेश मित्तल

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“रोम, ओपन सिटी” एक तबाह होते शहर का प्रतिरोध
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2014


इटली के विश्व विख्यात फिल्म निर्देशक रॉबर्टो रोज़ेलिनी नव-यथार्थवादी सिनेमा के प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं। वे कम बजट में उत्कृष्ट फिल्में बनाने के लिए मशहूर हैं। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद वर्ष 1945 में प्रदर्शित उनकी फिल्म 'रोम, ओपन सिटी" ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित कर दिया। विश्व सिनेमा के इतिहास में यह फिल्म एक मास्टरपीस मानी जाती है। यह नाज़ियों द्वारा रोम पर कब्जा करने और कुछ बहादुर नागरिकों द्वारा उनके विरोध की कहानी है।

यह फिल्म अपनी ईमानदार अभिव्यक्ति एवं घटनाओं के वास्तविक चित्रण के लिए जानी जाती है। फिल्म की पूरी शूटिंग वास्तविक लोकेशंस पर की गई है और इसमें काम करने वाले अधिकांश कलाकार स्थानीय नागरिक थे, जिनका अभिनय से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं रहा। उन्होंने बस, अपने साथ और आसपास जो घटित हुआ, उसे पर्दे पर जीवंत कर दिया। फिल्म इतनी वास्तविकता के साथ बनाई गई है कि यह वृत्तचित्र होने का आभास देती है।

युद्ध के दौरान जब किसी शहर पर दुश्मन सेनाएं कब्जा कर लेती हैं, तो स्थानीय प्रशासन उसे 'ओपन सिटी" घोषित कर देता है क्योंकि उस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं रह जाता। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी की नाजी सेना द्वारा कब्जा कर लिए जाने के बाद 14 अगस्त 1943 से रोम को 'ओपन सिटी" घोषित कर दिया गया था। यहीं से रोज़ेलिनी अपनी फिल्म की शुरूआत करते हैं। नाजी सैनिकों ने रोम को लगभग रौंद डाला था। रोम के निवासियों के पास बेहद सीमित विकल्प थे: या तो नाज़ियों का विरोध करते हुए शहीद हो जाएं या उनके आगे समर्पण कर एक दु:खद, मर्मांतक पीड़ा युक्त जीवन व्यतीत करते हुए उनके अत्याचारों को सहते रहें। शहर को पूरी तरह अपने नियंत्रण में रखने के लिए नाज़ियों ने विद्रोहियों को पूरी तरह कुचलने की रणनीति पर काम किया। नाज़ी सेना इंजीनियर जॉर्जियो मेनफ्रेडी (मार्सेलो पेगलिएरो) को ढूंढकर गिरफ्तार करना चाह रही है क्योंकि वह फासीवाद का घोर विरोधी है और विद्रोहियों का नेता है। जर्मन सैनिकों से घिर जाने पर वह घर की छत से पड़ोस के मकान पर कूद जाता है, जहां उसकी मुलाकात फ्रांसिस्को (फ्रांसिस्को ग्रैंडजैकेट) और उसकी गर्भवती पत्नी पीना (एना मगनानी) से होती है। वे भी विद्रोहियों के समर्थक हैं, इसलिए जॉर्जियो को शरण देते हैं। जर्मन सेना और विद्रोहियों में लुका-छिपी और शह-मात का खेल चलता रहता है। एक-एक करके अनेक पात्र और चरित्र हमारे सामने नमूदार होते हैं, जो घटनाओं और कहानी को आगे बढ़ाते हैं। इस दरम्यान हम नाज़ी सेना के अत्याचार और आम नागरिकों के संघर्ष से रूबरू होते हैं। सीन-दर-सीन फिल्म हमारे दिलो-दिमाग को जकड़ लेती है और हम उस दौर की भयावहता में खोकर रह जाते हैं। रोम की जनता के बीच से रोज़ेलिनी ने कुछ केंद्रीय पात्र रचे हैं, जो पूरे अवाम की छटपटाहट के प्रतीक हैं और अपने-अपने स्तर पर अपने तरीकों से अन्याय का प्रतिरोध कर रहे हैं। एक तबाह हो चुके शहर और छलनी हो चुकी संवेदनाओं के बीच भी रोज़ेलिनी ने रिश्तों व भावनाओं की गर्माहट तथा सहज हास्य के क्षण निकाल लिए हैं।

फिल्म की कहानी को कहानी कहना गलत होगा। यह किसी मुक्तभोगी की डायरी के पन्नों के अंश जैसी प्रतीत होती है। फिल्म को देखते हुए मन आक्रोश से भर उठता है। एक अजीब-सी बेचैनी और क्रोध की अनुभूति होने लगती है। मानव सभ्यता का इतिहास किस तरह के स्याह और रक्तिम पृष्ठों में लिपटा हुआ है, यह सोचकर हैरत और शर्म से सिर झुक जाता है। साथ ही, उन बहादुर नागरिकों के प्रति सम्मान से नतमस्तक होने को जी चाहता है, जो अपने अस्तित्व और स्वतंत्रता की लड़ाई में पूरी शक्ति के साथ अंत तक डटे रहे।

फिल्म का लेखन और निर्देशन उच्चतम स्तर का है। फेडरिको फेलिनी जैसे महान फिल्मकार ने इसकी पटकथा लिखने में सहयोग किया है। मुख्य अभिनेत्री एना मेगनानी और अभिनेता द्वय मार्सेलो पेगलिएरो तथा एल्डो फेबरिझी ने अभिनय के शिखर छुए हैं। कलाकारों का जबर्दस्त अभिनय तथा रोज़ेलिनी का उत्कृष्ट निर्देशन एक कालजयी फिल्म की रचना कर देते हैं।

कान फिल्म समारोह के सर्वाधिक प्रतिष्ठित 'ग्रांड प्राइज़" सहित विभिन्ना अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे ढेरों पुरस्कार मिले। विश्व भर के फिल्मकारों और समीक्षकों ने इसे मुक्त कंठ से सराहते हुए सदी की महान फिल्म निरूपित किया है।