“वन फ्लू ओवर द कुकूज नेस्ट” जकड़ी हुई व्यवस्था से मुक्त होने की लालसा / राकेश मित्तल

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“वन फ्लू ओवर द कुकूज नेस्ट” जकड़ी हुई व्यवस्था से मुक्त होने की लालसा
प्रकाशन तिथि : 22 मार्च 2014


सिनेमा की दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित ऑस्कर फिल्म समारोह मंम कुल 24 श्रेणियों में पुरस्कार दिए जाते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण पांच श्रेणियां मानी जाती हैं, जिन्हें 'बिग फाइव" कहा जाता है। ये हैं सर्वश्रेष्ठ फिल्म, निर्देशक, मुख्य अभिनेता, मुख्य अभिनेत्री एवं पटकथा। किसी एक फिल्म को इन पांचों श्रेणियों में पुरस्कार मिल पाना बहुत ही मुश्किल बात है। ऑस्कर के इतिहास में अब तक केवल तीन फिल्मों को यह दुर्लभ सम्मान हासिल हुआ है। वर्ष 1975 में प्रदर्शित चेक फिल्मकार मिलो फोरमैन की अमेरिकन फिल्म 'वन फ्लू ओवर द कुकूज नेस्ट" उनमें से एक है। इसके पूर्व 1934 में पहली बार 'इट हैपन्ड वन नाइट" तथा बाद में 1991 में 'द सायलेंस ऑफ द लैम्ब्स" को यह उपलब्धि हासिल हुई। मगर 'वन फ्लू ओवर..." दुनिया की एकमात्र फिल्म है जिसे प्रथम चारों शीर्ष श्रेणियों के ऑस्कर के अलावा गोल्डन ग्लोब एवं बाफ्टा पुरस्कार भी मिले। अमेरिका की 'नेशनल फिल्म रजिस्ट्री" में परिरक्षित इस फिल्म को विश्व की सौ महानतम फिल्मों में शामिल किया गया है।

यह फिल्म प्रसिद्ध लेखक केन केसी द्वारा 1962 में इसी नाम से लिखे गए लोकप्रिय उपन्यास पर आध्ाारित है। विक्षिप्त और मनोरोगी किस्म की भूमिकाओं के सिद्धहस्त अभिनेता जैक निकलसन ने इसमें केंद्रीय भूमिका निभाई है। वे विश्व के एकमात्र अभिनेता हैं, जिन्हें सर्वाधिक बारह मर्तबा ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया है। फिल्म का नायक रैंडल मॅकमर्फी (जैक निकलसन) आदतन अपराधी है, जिस पर हाल ही में एक किशोरी पर बलात्कार का आरोप लगा है। उसे एक मानसिक चिकित्सालय में परीक्षण हेतु कुछ समय रहने के लिए भेजा जाता है, जहां डॉक्टरों को उसके दैनंदिन व्यवहार पर निगरानी रख उसकी मानसिक स्थिति पर रिपोर्ट देना है। उसके आचरण से किसी भी तरह का असामान्य लक्षण प्रकट नहीं होता किंतु फिर भी उसे मनोरोगियों के वॉर्ड में अन्य मरीजों के साथ रखा जाता है। अपने मजाकिया व्यवहार से वह अन्य मरीजों के साथ बहुत जल्द घुल-मिल जाता है। चिकित्सालय की मेट्रन मिल्ड्रेड रेचड (लुइज फ्लैचर) बेहद शुष्क, जिद्दी, अनुशासन प्रिय एवं कठोर स्वभाव वाली महिला है।

मर्फी और रेचड एक-दूसरे को बिल्कुल पसंद नहीं करते। मर्फी को लगता है कि यहां के मरीज रेचड के कठोर अनुशासन और किताबी तौर-तरीकों के बजाय बाहर खुले वातावरण में ज्यादा सहज रहेंगे और जल्दी ठीक होंगे। मर्फी कोई-न-कोई ऐसी हरकत करता रहता है जो रेचड को बिल्कुल नागवार गुजरती है पर अन्य मरीजों को अच्छी लगती है। एक दिन वह चोरी से अस्पताल की बस में मरीजों को बिठाकर उन्हें पिकनिक पर ले जाता है। रास्ते में वह एक क्लब डांसर मित्र को भी बस में बैठा लेता है। मरीजों को इस पिकनिक में बहुत मजा आता है और उनमें एक नए आत्मविश्वास का संचार होेता है किंतु रेचड व अन्य अधिकारी इस अनुशासनहीनता पर आग-बबूला हो उठते हैं। इसके बाद मर्फी और अन्य मरीजों पर तमाम तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं। उन्हें जरा-जरा-सी बात पर इलेक्ट्रिक शॉक थैरेपी दी जाने लगती है। अनेक घटनाओं-दुर्घटनाओं के माध्यम से कहानी आगे बढ़ती है और एक अनेपक्षित, चौंकाने वाले अंत के साथ खत्म होती है।

जैक निकलसन और लुइज फ्लैचर ने मर्फी और रेचड की भूमिकाओं में कमाल किया है। साथी मरीजों के रूप में अन्य कलाकारों ने भी बहुत अच्छा सहयोग किया है। एक तरफ जहां जैक ने अधिकतम संवादों और चपल अभिनय से मर्फी के बेपरवाह, खिलंदड़ और जिंदादिल चरित्र को उभारा है, तो दूसरी तरफ लुइज ने एकदम विपरीत, सिर्फ चेहरे और शरीर की भाव-भंगिमाओं, चालढाल एवं न्यूनतम संवादों के सहारे रेचड के कठोर चरित्र को आत्मसात किया है। यह फिल्म अभिनय के उच्च प्रतिमान स्थापित करती है। कसी हुई पटकथा और उत्तम पार्श्व संगीत कहानी की गति बनाए रखते हैं।

फिल्म की केंद्रीय विषयवस्तु मानसिक बीमारी नहीं, बल्कि एक बंद, जकड़ी हुई व्यवस्था में छटपटाती मुक्त होने की लालसा को उजागर करना है। फिल्म यह बताने की कोशिश करती है कि शारीरिक या मानसिक किसी भी तरह की तानाशाही जीवन के सहज उत्थान को अवरुद्ध करती है। इस फिल्म को देखना एक बेहतरीन अनुभव है।